Monday, January 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

ये दिल कहीं लगता नहीं बिन आपके…
कविता

ये दिल कहीं लगता नहीं बिन आपके…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! तन्हाई में ये दिल अक्सर बातें करता है तेरी अपनी बातों ही बातों में उलझा करता है ये पागल हो गया है ये दिल दीवाना एक ना सुने दुनिया के रिवाज माने ना जिद करे एक ना सुने जब देखूँ आईना मैं सिर्फ अपना ही अक्स देखूं ये दिल कहीं लगता नहीं आपके बिना क्या करूँ साथ तेरा चाहे हरपल बस तुझे चाहे ये दिल लम्हा लम्हा जीना चाहे साथ तेरे चाहे ये दिल नादां दिल तेरे सिवा कोई और ना चाहे ये दिल हाथों मेरे तेरा हाथ रहे हर लम्हा साथ चाहे ये दिल ऐ साथी तेरे बिना ये अधूरा जीवन भी क्या जीवन है मैं चकोर तुम चाँद हो मेरी हम दोनों ही एक हो गए है एक अनजानी चाहत में मैं खुद को खो बैठा तुममें तुझमें अपने आप को ही पाता हूँ सुध खो बैठा तुममें रोक न सकेगा जमाना हमको हम हो गए हैं आपके सोनू! हम बताएं ये दिल कहीं लगता न...
सुहानी भोर
कविता

सुहानी भोर

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुनो ना ! उषा के आलोक हुई आलोकित मैं तुम्हें विलोक अंतस: में मेरे फैला उजियारा तमस का न रहा कोई गलियारा सुहानी भोर भर रही नव चेतना किसी ठौर न रही अब कोई वेदना पल-क्षण दिवस-निसि निर्निमेष भरा उजास अंतस: तम न रहा शेष नव आशा संग उषा का हो आगमन नव उमंग संग हरषे सब के अंतर्मन नित-नित उषा आ वातायन से आलोकित करें आंगन जीवन में रहो आलोकित उषा के आलोक तुम हो तिरोहित जग के सब रंजो-गम आलोक नाम तुम्हारा हो सार्थक हर लो अज्ञान तिमिर सब निरर्थक सुनो ना ! उषा के आलोक होती प्रफुल्लित मैं तुम्हें विलोक उषा संग नित-नित तुम आना घर आंगन संग अंतर्मन जगमगाना परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
अपना संविधान
कविता

अपना संविधान

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** श्रेष्ठ बना अपना संविधान । लगता है यह खूब महान ।। इस पर हम सबको है नाज । है संविधान दिवस यह आज ।। कड़ी साधना से बन पाया । इसको हम सबने अपनाया ।। भारत का यह मान बढ़ाता । हम सब का इससे है नाता ।। चलती है सरकार इसी से । ऊपर है संविधान सभी से ।। नीति धर्म और न्याय इसी में । नही बात ये अन्य किसी में ।। भीमराव अम्बेडकर जी थे । मुखिया इस संविधान सभा के ।। छब्बीस नवंबर का दिन प्यारा । पूर्ण हुआ संविधान हमारा ।। सन् था उन्नीस सौ उन्चास । सबके मन में जागी आस ।। अपना देश अपना संविधान । गाएँ भारत माँ का गान ।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षि...
रूठे-रूठे रवि
कविता

रूठे-रूठे रवि

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रूठे-रूठे रवि रविराज रूठे-रूठे से हाय रवि रश्मि धुंधलाई ओस कणो की रजत माल है करती जग की अगुवाई शीत समीर तन कांप रहा भरता रोमांच मन में मेरा मन खिले-खिले जाता देख का प्रकृति को प्रांगण में ठिठुरे से लगते हैं धुंध से गिरे करोगी शांत चीड़ के नीड़ से है आती आवाज खगवृद की मेरा चित्त चंचल हो जाता करने सैर उपवन की परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखि...
चलो धरा को स्वर्ग बनाएँ
कविता

चलो धरा को स्वर्ग बनाएँ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घृणा विश्व में बहुत हो गई, हम सब इसको दूर भगाएँ चलो प्रेम की सुधा वृष्टि से, पुण्य धरा को स्वर्ग बनाएँ। नहीं त्यागना कभी मीत को, सम्बन्धों को तोड़ न देना। रार अगर कुछ हो जाए तो, मुखड़ा अपना मोड़ न लेना। गए रूठ कर किसी बात पर, उन रूठों को आज मनाएँ। चलो प्रेम की सुधा वृष्टि से, पुण्य धरा को स्वर्ग बनाएँ। नही असंभव कहीं कर्म कुछ, संभव है सब आप करें तो। घृणा-उष्णता अगर घोर हो, प्रेम-पुष्प से ताप हरें तो। करें यत्न सब मिले जीत ही बंजर भू पर फूल खिलाएँ। चलो प्रेम की सुधा वृष्टि से, पुण्य धरा को स्वर्ग बनाएँ। कथन प्रेम के रहें नित्य ही, शब्द मधुर हों,क्रोध न आए। उसे रोक दें सदा प्रेम से, जो अनबन के राग सुनाए। सभी ओर हो मधुर रागिनी, सरगम ऐसी नित्य सुनाएँ। चलो प्रेम की सुधा वृष्टि से, पुण्य धरा...
वृक्ष लगाओ
कविता

वृक्ष लगाओ

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** वृक्ष लगाओ, वृक्ष लगाओ वृक्ष लगाओ रे हरियली को इस धरती पर फिर से लाओ रे हरी भरी धरती से जीना हो जाता आसान भोजन, पानी और हवा सब मिलते सगरे ठाम मिटी में तुम बीज को बो कर अंकुर लाओ रे वृक्ष लगाओ.... धीरे-धीरे नन्हे पौधे पादप में बदलेंगे हरे हरे पत्तों से अपने निज तन को ढक लेंगे फूल फलों से वृक्षों को फिर से सजवाओ रे वृक्ष लगाओ.... मीठे-मीठे फल खा करके उदर जीव भर लेंगे चिड़िया भी घोषाला बनाकर बच्चों को जन्मेंगे विश्व बनेगा स्वर्ग सरीखा हाथ बटा ओ रे वृक्ष लगाओ.... परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशि...
मेरा भारत
कविता

मेरा भारत

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत के लिए मरूँ मैं भी, यह गीत हृदय से गाता हूँ । नयनों के मध्य तिरंगा है, मैं नित नित शीष झुकाता हूँ ।। कर्तव्य यही बस मेरा हो, भारत की सेवा कर जाऊँ । खुशहाल रहे भारत मेरा, यह देख नजारा मर जाऊँ ।। १ ओ आदिशक्ति जगदंबे माँ, तन मन में बल भरदो मेरे । भारत की सेव करूँ मन से, अद्भुत क्षमता कर दो मेरे ।। यह कलम लिखे नित भारत को, हे वींणावादिनि वर देना । सपनों में भारत हो मेरे, कल्मष स्वारथ के हर लेना ।।२ बस एक रहे भारत मेरा, बलपौरुष में सबसे आगे । भारत की क्षमता देख-देख, दुश्मन पीछे को ही भागे ।। चहुँ ओर सुरक्षित भारत हो, बस ध्यान यही नित मैं ध्याऊँ । हर भारतवासी के उर में, केवल भारत को ही पाऊँ ।।३ स्निग्ध प्रबल उर भाव वसे, भारत के लिये हमेशा ही । शास्त्र शस्त्र हो कर मेरे, यह लक्ष्य रहे बस ऐस...
सबसे बड़ी अमानत
कविता

सबसे बड़ी अमानत

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्राणों को इस माटी में न्योछावर करता। देश का सैन्य बल, हमारी सबसे बड़ी अमानत है। सीमा पर डटे वीर जवान, कर्तव्य निभाना मात्र लक्ष्य है। कड़कड़ाती ठंड में, चिलचिलाती गर्मी में, धुआं धार बारिश में, माँ भारती की रक्षा यही समर्पण भाव है। फ़र्ज़ है देशवासियों का सैन्य शक्ति का करें सम्मान। मुख्य पदासीन नेतृत्व को, मिलकर करना हमें मजबूत। जल, थल, नभ सैन्य शक्ति, देश रक्षा में जी जान से जुटी है। कर्तव्य हमारा हौसला बढ़ाना, करें शुभ भावना का दान। सेना की सुविधाओं में, नयी तकनीकों के साधन हुए बहाल, सेना की ताकत है, योग्य सरकार। सरकार की शक्ति, योग्य जन समुदाय। देश का सैन्य बल हमारी सबसे बड़ी अमानत है। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुके...
बचपन
कविता

बचपन

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** काश की लौट आये एक बार फिर वो बचपन, जब न कोई जबाबदारी थी, न था कोई टेंशन हर वक़्त पर एक खुमारी थी, जल्दी बड़े होने की तैयारी थी, अब लगता है जैसे, एक वही उम्र थी जो सबसे प्यारी थी चलो अब फिर से लम्हें चुराते हैं, एक बार फिर से दिल से मुस्कुराते हैं।। सबकुछ भूलकर फिर वही सुक़ून के दो चार पल निकालते हैं।। चलो अपने बचपन को फिर से वापस दोहराते हैं एक वक्त था जब हर काम के लिए, बड़ो की अनुमति को तरसते थे, आज समय मिलने पर भी हम बाहर जाने से कतराते हैं।। अब कोई रोकटोक नहीं, फिर भी हम जिम्मेदारी में दबे जाते हैं।। सोच सोच कर खाते है, अलार्म लगाकर खुद ही उठ जाते हैं।। और बिना किसी के बोले, चुपचाप काम पर लग जाते हैं।। चलो अब एक बार फिर सब भूलकर बीते दिनों को फिर से वापस लाते हैं, जिंदगी से अपने लिये एक बार फिर चलो ...
आया बालदिवस
कविता

आया बालदिवस

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** चौदह नवंबर आया। बाल दिवस लाया। आओ आज हम सब। बच्चे बाल दिवस मनावै। हम सब बच्चे। मन के सच्चे, हम। सब बच्चे अक्ल के कच्चे। हम सबके उर आनंद उपजै। आओ आज हम सब बच्चे। मिलकर नाचै गावै। खुशियां मनावै। हम सब चाचा नेहरू। जन्म दिवस धूमधाम से मनावै। हम निर्मल पावन भाव उर धर। हर्षित हो मयूर सम नृत्य करें। चाचा नेहरू स्मृत कर। उनके गुण अपने। जीवन में धारण करें। आया-आया बाल दिवस। आया संग अपने अपार। हर्ष लाया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय...
ये कैसे नेता हैं?
कविता

ये कैसे नेता हैं?

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** जो करे समर्थन तालिबान का, वो बेहूदा नेता है। इक पापी देने लगा बधाई तालिबान विजेता है। देश द्रोह में फंसकर प्यारे सारी उम्र गुज़ारोगे। जाकर जेल सड़ोगे बरसों कैसे तुम हुंकारोगे? पत्थर पड़े अक़्ल पर तेरी, है कोई औक़ात नहीं। चली ज़ुबां कैंची जैसी मालूम है तेरा हाथ नहीं। गर्म लौह पर, वार करें कब, आता है योगीजी को। धधकी आग छुपाएं कैसे आता है मोदी जी को। अफगानी संकट है ऐसा मानो सांप छछूंदर है। पाक चीन दो बिल्ली मानो, माल बांटता बंदर है। कुछ मत बोलो धूर्त विपक्षी, देखो तेल, धार को देखो। स्वप्न तुम्हारे खंडित होंगे, अब पुनः पुनः हार को देखो। बिजू की ललकार यही है, तुम शक्ति कलम की पहचानो। तालिबान नहीं सगा किसीका, अपनीअपनी मत तानो। परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर म...
मन मंदिर
कविता

मन मंदिर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन मंदिर कर दो मेरा तृप्त शबनम हो अगर पत्तों पर की दे दो कमनीयता मुझे तुम जैसा क्षणिके जीवन जीने की रजत रश्मि हो गर आफताब की दो बिछा दो बिछा चांदनी आंगन में गर्व हो मेहताब की रश्मि तो दे दो कुछ क्षण शाम के अलसाई से परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्व...
उठो देव
कविता

उठो देव

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा लगता सदीं बीत गयीं, देव तुम्हारे सोने में| उठो देव हम बाट निकाले, मन मंदिर के कोने में|| तुम सोए तो सो गए कारज, भाग्य सोए यूवाओं के | दिन तो कटें तिथि गिनने में, रात कटे तारे गिनके|| तय संबंध हुए हैं उनके, बस कमी है फेरे लेने में || ऐसा लगता सदी बीत गयी, देव तुम्हारे सोने में || गन्ने के मंडप में विनती करते, क्वांरे युव -युवती | रिश्ते मधुर रहें गन्ने से, करें दण्डवत यह विनती || आशा पूर्ण करोगे हमरी, बस देर रहे न गौने में | ऐसा लगता सदीं बीत गयी, देव तुम्हारे सोने में|| कोरोना के कारण शादी ब्याह रहे सब फींके से | नहीं बरात का आनंद आया, भोज नहीं स्वरुचि के से|| तैयारी करनी है ढेरों तुम "गम्भीर" हो सोने में| ऐसा लगता सदीं बीत गयी, देव तुम्हारे सोने में|| परिचय :-राम स्वरूप र...
सत्य पथ को आजमा ले
कविता

सत्य पथ को आजमा ले

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** तू रात दिन रोता फिरे, निज़ पाप का परिणाम है। प्रारब्ध को भी समझ तू, जो पाप तेरे नाम है। तू न समझेगा अभागे, मति तेरी मारी गई। कुपथ ही अपना लिया तब, अक्ल भी सारी गई। भटकता फिरता सदा ही, छोड़कर सद्कर्म तू। जिंदगी का भी समझ ले, फल सफा और मर्म तू। जब तलक ए जिंदगी है, तू भटकता ही फिरेगा। जो ना समझेगा प्रभू को, पा पतन नीचे गिरेगा। वक्त है अब भी संभल जा, सत्य पथ को आजमा ले। जो बचा है शेष जीवन, कर दे तू प्रभु के हवाले। दौड़ कर बाहों में लेंगे, तुझको प्यारे राम जी। भुलाकर अपराध तेरे, देंगे अपना धाम भी।। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम…!
कविता

अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम…!

लव कुमार सिंह "आरव" बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** सभी के ह्रदय में स्नेह-प्रीत जगाना प्रेम में भीगी बाती से नव दीप जलाना सभी चेहरों पर चमकती मुस्कान लाना भूल कर ही सही हर एक बुराई भूल जाना तुम मिटे हर तम... अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम ll कुछ उदास आंखों के आँसु मोती कर जाना किसी अन्जान सूने घर का अंधेरा हर लाना कहीं रूठकर बैठे किसी बच्चे को हँसी दे जाना जो मन को मन से जोड़े ऐसी लड़ी लगाना तुम मिटे हर तम... अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम।l नव लय, नव ताल ले नव रसों से नव गीत बनाना सद्भावना की खुशबू से महके ऐसे फूल खिलाना मिट्टी से जुड़ी हो डोर ऐसे उनमुक्त पतंग लहराना जड़ से मन के भेद मिटादे ऐसी लहर उठाना तुम मिटे हर तम... अबकी दिवाली ऐसे मनाना तुम।l परिचय :- लव कुमार सिंह "आरव" निवासी : बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्व...
शिक्षा
कविता

शिक्षा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** किसी को माध्यम बनाकर सड़कों पर भीख मांगते बच्चे कभी कटोरों या खुले हाथों में भीख मांगने पर मिल जाते कुछ सिक्के जिनसे आज की महंगाई में कुछ भी नहीं आता उन सिक्कों में कुछ खोटे भी है इनकी किस्मत की तरह जो चल नहीं पाते उन सिक्कों पर छपे चिन्ह मौन भी है किन्तु संकेत सभी को देते नई राह शिक्षा प्राप्त करने का ताकि ज्ञान प्राप्त कर भीख मांगने के अवैध व्यवसाय से उभर सके और शिक्षा के बल पर नाम रोशन कर सके। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्...
मेरे देश की पावन मिट्टी
कविता

मेरे देश की पावन मिट्टी

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे देश की पावन मिट्टी, तुझको शत-शत प्रणाम है। तुझको मेरा तनमन अर्पण ये जीवन बस तेरे नाम है। तू मेरा आस विश्वास है, तू ही मेरा स्वाभिमान है। तुझमे ही मेरी आस्था है, तू ही तो जग में महान है। तू ही तो त्याग की मूरत है, तू ही धैर्यता की मिशाल है। तुझमे ही सहनशीलता है, तू अद्वितीय है बेमिशाल है। साश्वत तेरा अस्तित्त्व है सत्ता को तेरा आभार है। तू ही सबका पालनहार है तू ही तो सबका आधार है। तेरी महिमा बड़ी महान है तेरी कृपा सभी को समान है हम करे सब यही आभार है तेरा सब पर रहे उपकार है। मैं तेरा ऋण क्या चुकाऊंगा, ये सामर्थ्य मैं नही ला पाऊंगा। तुझमे बस ये तनमन अर्पित है, ये धृष्टता बस मैं कर जाऊंगा। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मै...
सलोना बचपन
कविता, बाल कविताएं

सलोना बचपन

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** याद है मुझे आज भी बचपन की वो अठखेलियाँ बारिश के पानी नाचते कूदते भीगना संग साथियाँ सबका साथ साथ रहना खाना पीना सोना बैठना दादा दादी नाना नानी से सुनते हुए हम कहानियाँ भाई बहनों और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना कभी खेतों में कभी तालाब कभी जाते अमरईयाँ पेड़ों पर चढ़ करके दीवारें फांदना तोड़ने को आमियां कभी तितली के पीछे कभी पकड़ते पतंग की डोरियां पढ़ना लिखना खेलना कूदना कांटे या चुभे कंचियाँ सायकिल के टायरों को चलाते रेस लगाते साथियाँ चिल्लमचों से भरी हुई जिंदगी भी सुकून देती रुशवाईयां नीले आसमां के तले निहारते उड़ते पतंग संग पुरवइयां गांव में शादी हो व्याह हो या कोई अन्य कोई भी अठखेलियाँ सब साथी मिलकर झूमते नाचते गाते नाचे संग गवईयाँ खूब लड़ते झगड़ते हम फिर मिल जाते बिन रागियाँ गुल्ली डंडा भौंरा...
शिव-संकल्प
कविता

शिव-संकल्प

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** सादर कोटि वंदन पिताश्री आपको, शारदोपासना का संकल्प लिया | बनाएंगे स्नातक पुत्र एक को, गृहस्थोपासना का संकल्प लिया || पुत्र तीनों ही स्नातक बने, संकल्प ने ऐसा स्वरूप लिया | स्नातकोत्तर प्रथम मथुरा दत्त बने, व्याकरण विषय का ज्ञान लिया || स्नातकोत्तर द्वितीय सुरेश चन्द्र बने, साहित्य-व्याकरण उभय में किया | किया अध्ययन ज्योतिर्विज्ञान का, पितृ प्रतिद्वंद्वियों को लपक लिया || छूटा स्नातकोत्तर तीसरा हिंदी का, आत्मजा "शिवानी" ने पूर्ण किया | संकल्प तप:प्रभाव" बाज्यू इजा" का, पंच शतक प्रधानमंत्री पर पूर्ण किया || परम आशीष मिला इजा का, "इजा-शतकम्" द्वि भाषाओं में लिख दिया | प्रेरणाशीष डॉ भोलादत्त अग्रज का, "मोदी पंचशतकम्" लिख दिया || पिताश्री के शुभ संकल्प ने मुझे , नहीं अतिशयोक्ति का ज्ञान दिया | देकर सुदृढ़ अडिग ...
बूंद जल की
कविता

बूंद जल की

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम रुक गए अविरल चलने वाले क्या मोती सा दिखने के लिए या सुमन सौरभ भा गई तूम्हे यह सुमन पंखुड़ी का आलिंगन भा गया तुम्हें तुम तो अबाध गति हो विरल हो अनवरत पाषाण को खंड-खंड करते हो खंड-खंड पाषाण पूछता है तुमसे क्या तुम्हें कलि की कमनियता भा गई या रंग सुगंध मखमली पंखुड़ी की सेज तुम्हें लुभा गई या तुम स्वयं को मोती समझने की होड़ में चमक-चमक कर चहेतों कामन लुभा रहे हो दूर बहुत दूर की सोचते हो पर जानते हो इतना इतराना ठीक नहींं क्षणिक है हां क्षणिक है क्योंकि पंखुरी मुरझा कर गिर जावेगी उसकी ही सजीली नरम मखमली सतह पर जिस पर तुम बैठे हो तुम भी नीचे बह जाओगे पुनः धरा पर अपने अस्तित्व को लेकर क्या फिर नहीं जाओगे अवनी में या सरिता में या किसी प्यासे के कंठ में उसकी प्यास बुझाने उसे तृप्त करने जो तुम्हारा ध्य...
जाड़ा आया
कविता

जाड़ा आया

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो मम्मी-जाड़ा आया, इसने नोजी को, चलवाया। जाड़े से पड़ गया है पाला- कोट मंगा दो बढ़िया वाला। मेरा मफलर लेकर आओ- मेरे कानों को ढक जाओ। किटकिट दाँत गीत सुनाएँ, सब बच्चे, बादाम हैं खाएँ। मुझको पहले चाय पिलाओ फिर थोड़े बादाम खिलाओ। मम्मी, पापा से यह कह देना- मूंगफली-लाकर, रख लें ना। अब मुझको पाँच रुपैया लाओ- और भैया से टिफिन दिलाओ। भैया जब भी जिदपर आता, झट से मेरा टिफिन छिपाता। बस अब पढ़ने को जाती हूँ- पढ़कर वापिस घर आती हूँ। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण,...
वृक्ष
कविता

वृक्ष

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पेड़ केवल, पेड़ नहीं होता, जीवन और संस्कृति भी है। पेड़ में हवा छाँव उर्जा है, सूरज का मित्र, जंगल का आधार, सृष्टी का संवाहक है। पेड़ से प्रकृति, प्रकृति से जीवन और जीवन संस्कृति का प्राण है। पेड़ में जड़ मिट्टी, वायु मंड़ल जीवन रस, जीव अजीव सभी हैं। पेड़ जमीन में, पेड़ आकाश में, पेड़ भोतिक वस्तुओं में है पेड़ में बीज, बीज में जीव आत्मा और जीव आत्मा में स्वपन अनिवार्य है। पेड़ से प्यार, प्यार में मनुहार, और लालित्व में, सत्य शिव की, सुन्दर परिकल्पना है अतः विचारों में पेड़ और पेड़ पर विचार जरूरी है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इ...
बचपन की कहानी
कविता

बचपन की कहानी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आओ तुम्हें सुनाता हूं बचपन की कहानी, वहां भी होती थी दिल्लगी और साथ ही होती थी हर दिन एक नई कहानी। रूठना मनाना आए दिन ही चलता था। पर नहीं थी मन में कोई छल कपट की कहानी। हर रोज़ हम सब लड़ते और झगड़ते थे पर नहीं थी दिल में कोई खूनी दरिंदों जैसी दुश्मनी की कोई कहानी। मां की गोद थी जिसपे रखकर सिर मिलती थी नित्य ही सुने को एक प्यारी सी कहानी। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
काश लौट आता बचपन …
कविता

काश लौट आता बचपन …

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** याद है मुझे आज भी बचपन की वो अठखेलियाँ बारिश के पानी नाचते कूदते भीगना संग साथियाँ सबका साथ साथ रहना खाना पीना सोना बैठना दादा दादी नाना नानी से सुनते हुए हम कहानियाँ भाई बहनों और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना कभी खेतों में कभी तालाब कभी जाते अमरईयाँ पेड़ों पर चढ़ करके दीवारें फांदना तोड़ने को आमियां कभी तितली के पीछे कभी पकड़ते पतंग की डोरियां पढ़ना लिखना खेलना कूदना कांटे या चुभे कंचियाँ सायकिल के टायरों को चलाते रेस लगाते साथियाँ चिल्लमचों से भरी हुई जिंदगी भी सुकून देती रुशवाईयां नीले आसमां के तले निहारते उड़ते पतंग संग पुरवइयां गांव में शादी हो व्याह हो या कोई अन्य कोई भी अठखेलियाँ सब साथी मिलकर झूमते नाचते गाते नाचे संग गवईयाँ खूब लड़ते झगड़ते हम फिर मिल जाते बिन रागियाँ गुल्ली डंडा भौंरा...
जज्बा ये जोश बाक़ी है।
कविता

जज्बा ये जोश बाक़ी है।

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अभी भी हमारे दिलों में जज्बा ये जोश बाक़ी है। मेरे देश को आंच न आये अभी होशो-हवास बाकी है। अपने वतन के लिए ये जिस्मो-जान बाकी है। कुछ काम आ सके हम वक्त पर ये जज्बात बाकी है मिट्टी का रखो ध्यान इस मिट्टी का एहसान बाकी है। मिट्टी के बिना हम कुछ नही इसका मोल चुकाना बाकी है। वतन के राह जो फना हुए उनके लिए जीना बाकी है। उनकी शहादत जाया न हो उनके लिए इबादत बाकी है। उनकी शहादत को सलाम है अभी हमारी खिदमत बाकी है। उन्होंने जो समर्पण किया है उसका कीमत चुकाना बाकी है। ओ आसमा से जमी को देखते होंगे अभी भी हम में कुछ कमी बाकी है। जीते जी कुछ अच्छा करलो यारों अभी भी वक्त और जज्बा बाकी है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता...