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कविता

लागी तुझसें लगन
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लागी तुझसें लगन

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** लागी तुझसें लगन ऐ रिश्ता क्या कहलाता है । अनु दामिनी वीरा कसम से भाग्य विधाता है ।। दीया और बाती हम पवित्र है जिनका बंधन । चाहे रक्षा बंधन हो या सात फेरों का हो गठबंधन ।। तहे दिल से करते है हम सादर वंदन प्रणाम । स्वीकार किजिऐगा हमारा नमस्कार सलाम ।। पुष्प गुछ और तिलक चंदन स्वागत और वदंन । माटी जिनकी चंदन, शत्-शत् हार्दिक अभिनंदन।। हम साथ-साथ है तो साथ निभाना साथी मेरे । प्रेम प्यार विश्वास को मत छोडना यारना मेरे ।। श्री राम-सीता श्री कृ‌ष्णा-राधा खिले जहां पे चमन । आपको हमारा सादर तहे दिल से सौ-सौ बार नमन ।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
तेजोपुंज महान्
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तेजोपुंज महान्

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सप्त घोड़ों पर सवार जब तुम आते नभ पर हर बार जीवन, कालचक्र, तेज और बल सबके बन जाते संबल गतिमान् तुम, जगत् प्रकाशक तुम रवि, आदित्य, दिवाकर ,विवस्वान अनेक शुभ नामों से होता तुम्हारा गुणगान धरा हमारी घूम घूम कर लगाती फेरे चारों ओर पा कर नव ऊष्मा तुमसे बांध रही सबके जीवन की डोर सृष्टि के तुम पालनहार न तुमको कोई मान गुमान उदय होते, अस्त होते रहते सदा एक समान बादलों को भी देना है मान तुमने कर लिया है यह ठान जब वे आते आसमान खुश हो दे देते तुम अपना स्थान सर्वशक्तिमान तुम, तेजोपुंज हो महान् ।। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
तेरा मेरा रिश्ता
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तेरा मेरा रिश्ता

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भाई तेरा मेरा बचपन, था इमली सा खट्टा मीठा रूठ के जब मैं सो जाती थी, तेरी खुशियाँ खो जाती थी मुझे मनाने को तुम कितने जतन लगाते थे आखिर में आँगन के पेड़ से इमली तोड़ लाते थे एक चुटकी नमक लगा फिर जबरन मुझे खिलाते थे मेरे चटकारों में तुम, अपनी हँसी लुटाते थे खट्टी सी इमली में भी तुम प्यार भरकर लाते थे बीत गया अब वो बचपन, इमली सी न बात रही दूर हुए हम दोनों ही, कहीं तो थोड़ी खटास रही बदल गए क्यों रंग जीवन के, मीठा सा अब वो साथ नहीं बदल गया है सबकुछ अब तो हम दोनों के बीच में बूढा हुआ क्या रिश्ता हमारा उस आँगन के पेड़ सा वो शरारती बचपन मेरा फिर से लौटा लाओ ना फिर उस बूढ़े पेड़ से, एक इमली तोड़ लाओ ना। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी...
मिलकर उन्हें करें नमन
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मिलकर उन्हें करें नमन

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (१५ जनवरी थल सेना दिवस) आओ मिलकर उन्हें करें नमन जिनके लिए सब कुछ है वतन..! देश की रक्षा के लिए जिन्होंने निछावर कर दी तन और मन…!! घर से दूर वतन के लिए लड़ते मुश्किलों से लड़कर आगे बढ़ते..!! देकर दुश्मनों को जंग में मात भारत माँ की हिफाजत करते..!! आओ मिलकर उन्हें करें नमन जिनके लिए सब कुछ है वतन..! सरहद में दुश्मन से टक्कर लेते तिरंगे को कभी झुकने न देते..!! ठंडी,गर्मी और बरसात को सहते ईट का जवाब, पत्थर से देते ..!! दुश्मनों की गोली सीने में खाकर अपने वतन को महफूज रखते.है.!! आओ मिलकर उन्हें करें नमन जो देश के लिए कुछ करते है परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्...
नारी हूँ अभिशाप नहीं
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नारी हूँ अभिशाप नहीं

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** चिड़ियों के बिन सूना आँगन, कलियाँ बिन सूनी डाली। कन्या के बिन सूना लगता, पूरा घर आँगन खाली।। जब ये किलकें‌ खेलें चहकें, तृप्त नयन हो जाते हैं। जीवन में जब पुण्य फलें तो, कन्या का फल पाते हैं।। मुझे जन्म लेने दे माता, मैं भी अंश तुम्हारी हूँ। बड़ी लड़ोधर हूँ पापा की, घर की राजदुलारी हूँ।। बचा-खुचा खाकर जी लूंगी, भैया गोद खिलाऊंगी। एक दिवस तेरे आँगन से चिड़िया सी उड़ जाऊंगी।। पढ़ा लिखा कर मुझको भी माँ, खड़ी पैर पर कर देना। होकर बड़ी करूंगी सेवा, अच्छा सा चुन वर देना।। तू भी नारी मैं भी नारी, नारी होना पाप नहीं। सूना जग नारी बिन सारा, नारी हूँ अभिशाप नहीं।। परिचय :- महेश चंद जैन 'ज्योति' निवासी : महोली ‌रोड़, मथुरा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...
पौधे से बात
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पौधे से बात

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक दिन अपने घर के बरामदे में खड़ी कुछ विचारों में डूबी देख रही थी, गमले के पौधों को बड़े ही गौर से जाने मन क्यूं खो गया एक छोटा सा नन्हा सा पौधा झांक रहा था मिट्टी के भीतर से मुझे देखा उसने और मुस्कुराया लगा कुछ कहना चाहता है, पूछा मैंने क्यूं मुस्कुराए, वो बोला, मैं आज दुनिया को देख रहा हूं कल मैं भी बड़ा हो जाऊंगा फलदार वृक्ष बनूंगा, हरा-भरा हो जाऊंगा पर सोचा है कभी मुझे यह तक कौन लाया? एक बीज था मुझसे पहले इस धरती पर उसने खुद को मिटा दिया सौंप दिया खुद को इस मिट्टी के हाथों में कि भले ही मैं ना रहूं पर संभाल लेना मेरी इस अमानत को मेरा अस्तित्व नहीं मिटने देना, मत जाने देना व्यर्थ मेरा ये त्याग, समर्पण, मैं जड़ बन कर भी मिट्टी के भीतर से उसको देखूंगा जो है मेरी ही परछाईं। पौधा फिर से बोला मुझसे ...
बेटी बचाओ
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बेटी बचाओ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बेटी बचाओ ओ दुनिया वालो बाबुल करता है अब ये गुहार दुनिया रहेगी जब होगी बेटी कहती है ये माँ की पुकार। खिल जाते है मन सभी के बिटियाँ हो हर घर सभी के दुःख दूर होगा सुख होगा पास बस करना तुम सब पे ये उपकार बेटी बचाओ ...................। पायल बजेगे अब हर घर अंगना बिटियाँ से घर ना होगा सुना माँ अब अभी ना होना उदास होगी रोनक बिटियाँ से हर द्वार बेटी बचाओ .....................। अब कभी गीत होंगे ना सूने श्रृंगार को कोई अब ना छीने ऐसा संकल्प लेवे सब हम आज बिटियाँ करे इस जग पर राज बेटी बचाओ ...................। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचन...
नई दिशा
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नई दिशा

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** राग अनुराग गीत हम गाएंगे प्रकाशमान हो चहुं ओर ऐसा ऐसा दीप हम जलाएंगे गर राह में कांटे आए मुस्कान प्रतीक वह पुष्प सा हम खिल जायेंगे पिछड़े समाज की मान- मर्यादा को पूर्ण स्वरूप में लाएंगे परिवेश जैसा भी हो समाज को नई दिशा हम दिखलाएंगे खंडित रहने से कुछ नहीं होता है जग में संगठन की ताकत सर्वजन को हम बतलाएंगे चाहे लाख आए परेशानी बस भरोसा खुद पर कुछ कर गुजरने का दम वह दर्पण स्रदिस हम बन जाएंगे परिवेश जैसा भी हो समाज को नई दिशा हम दिखलाएंगे जागरूक स्वयं होकर समाज की महत्ता सर्वजन तक हम फैलाएंगे करेंगे मेहनत खुद को मिसाल हम बनाएंगे इन्हीं नेक इरादों से हम ध्रुव तारे सा चमककृत कर जाएंगे जात-पात, ऊंच-नीच ईष्र्या-द्वेष के बंधन से मुक्त हो समाज ऐसा सूत्र हम बनाएंगे ना रहेगी छुआछूत का कोई अंश एक...
जीवन – निर्झर
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जीवन – निर्झर

माधवी तारे (लन्दन से) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंद लिखो, छंद भेजो, छंदों का बनेगा अंक।। छंद की धुन में, मन में उठी अक्षर-तरंग। छंदानुकुल विषय खोज में, मन मे मचा द्वंद।। सब सीमा रेखाएँ लाँघ, आया कोरोना, निगलते नर-संघ। उम्र, जाति, और लिंग भेद बिना, किया सर्वनाश स्वच्छंद।। राजा हो या रंक, सबकी खातिर एक समान। जनजन का "अंति गोत्र", कोरोना का संविधान।। अर्थनीति हो या धर्म नीति, जन्म-मृत्यु या प्रणय-प्रीति। जीव से जीव का ना हो संग सब पर कोरोना का प्रतिबिंब।। सहे हर सदी में मानव ने प्रलय भयंकर, लेकिन, आत्मसंयम, मनो-धैर्य से, "बहता रहा जीवन निर्झर"॥ संकलन (लंदन से प्रेषित हैं) परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लन्दन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...
सिंदूरी पल
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सिंदूरी पल

रागिनी स्वर्णकार (शर्मा) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज अचानक खुला क्या दराज ! लगा अंदर कुछ खुल गया है! और खुलता ही जा रहा है... मैं जा रही हूँ अंदर ...बहुत अंदर! उस बीते समय मे; पल-पल मुस्कुराता खड़ा! महकता हुआ वह ख़त, प्रथम गुलाबी स्पर्श, गुलाबी हुईं धड़कनें..! मैं सांगोपांग धड़कती हुई, हाथ में पत्र चारों ओर देखती विस्मित!!!!! एकांत में पढ़ने लगी पत्र! कुसुम-कली सी लज्जा, फैली हुई चेहरे पर..!I मानों ! सामने तुम! हर शब्द धड़क रहा दिल के संग! प्रथम अछूता एहसास ! महक गया था; सम्पूर्ण वजूद, चाहत की खुशबू से !! भला क्यों न महकता??? आज भी महक रहा पल जो मौलश्री हो गया स्मृतियों में!!! गुलमुहर-सा बिखेरता लालिमा, आज भी खड़ा है वह जीवन्त पल, सिंदूरी पल, जब भावनाओं ने रचा था स्वयंवर !!! परिचय :- रागिनी स्वर्णकार (शर्मा) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)। ...
तुम्हें बहुत लिखना है
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तुम्हें बहुत लिखना है

सूरज सिंह राजपूत जमशेदपुर, झारखंड ******************** तुम्हें बहुत लिखना है मुझे बहुतों को तुम्हें भुख से मरने वालों की संख्या मुझे कारण। तुम्हें बलात्कार का सरकारी आंकड़ा मुझे हर उच्चारण। तुम्हें मरते किसानों की संख्या मुझे निवारण। तुम्हारे लेख राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मेरे साधारण। परिचय : सूरज सिंह राजपूत निवासी : जमशेदपुर, झारखंड सम्प्रति : संपादक- राष्ट्रीय चेतना पत्रिका, मीडिया प्रभारी- अखिल भारतीय साहित्य परिषद जमशेदपुर घोषणा : मैं सूरज सिंह राजपूत यह घोषित करता हूं कि यह मेरी मौलिक रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
तुम्हारी जुदाई में
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तुम्हारी जुदाई में

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम्हारी जुदाई में आंखों से आंसू ही नहीं बहे।। एक वक्त बाद। आंसुओ के साथ बहे तुम्हारी यादें.... तुम्हारी बातें.... वो मुलाकातें.... वो जगाती रातें.... और बह गई वो सब उदासियां। बह गई वो सब बैचेनीयां।। बह गई वो सब परेशानियां।। बह गई वो सब दुरियां।। और बहते- बहते ठहर गएं वो आंसू मेरी कलम में आकर.... उतरने लगीं वो सारी बातें कागज़ पे समाकर.... और फिर मैं तुम्हें याद करने लगी.... तुमसे बात करने लगी.... अकेले में मुलाकात करने लगी.... सोकर फिर तुममें जागने लगी.... मुझे अच्छी लगने लगी उदासियां.... सखी बन गई बैचेनीयां.... समझाने लगी परेशानियां.... पास रहने लगी दुरियां.... फिर मैं प्रेम के उस द्वौर में चली गई जहां प्रेम ने मुझे प्रेम समझायां था। और मैं समझ गई कि प्रेम को कभी समझा ही नहीं जा सकता है.....
हिन्दी मेरी पहचान है
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हिन्दी मेरी पहचान है

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं हिन्दी मेरी पहचान है हिन्दी एक उँची उड़ान है सबकी आन और बान है ह्रदय में सबके रस घोल दे ऐसी मीठी जुबान है हिन्दी मेरी पहचान है हिन्द का अभिमान है राग द्वेष से अनजान है शब्द शब्द इसकी धरोहर अन्तरमन का कराती भान है हिन्दी मेरी पहचान है बंसी में छिपी तान है कर्मणता की पहचान है ईश्वर को भी नाज है जिस पर ऐसी पुनीत पावन है हिन्दी मेरी पहचान है अध्यात्म का सोपान है कृष्ण की मुस्कान है भावनाओं को जो करे उजागर कुदरत का दिया वरदान है हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं हिन्दी मेरी पहचान है परिचय :- मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
हिंदी माता सम सदा
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हिंदी माता सम सदा

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** हिंदी होती है सदा, प्रेम भाव आधार। सुंदर शोभित वाक्य दें, अटल ज्ञान भंडार। अटल ज्ञान भंडार, रही भाषा की जननी। प्रांजलि का अभिमान, यही है भाषा अपनी। भाषा की सिरमौर, लखे मस्तक में बिंदी। छोड़ो सोच विचार, पढ़ो बच्चों नित हिंदी। हिंदी माता सम सदा, देती अनुपम ज्ञान। हिंदी पढ़ पढ़ के बने, तुलसी दास महान। तुलसी दास महान, लिखी प्रभुवर की माया। करने जग उद्धार, रखी मानव की काया। होता विधिवत ज्ञान, समझ कामा वा बिंदी। आती लेखन धार, रचो रचना नित हिंदी।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच...
हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान
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हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान। हिंदी भारत देश है, हिंदी भारत गान। हिंदी से है मान हमारा। करें काम हिंदी में सारा। हिंदी पर ही तन मन वारा। इसके गुण गाये जग सारा। सूर कबीरा तुलसी गाते। हिंदी से ही भाव जगाते। कोयल भ्रमर पपीहा बोले। हिंदी द्वार हृदय के खोले। हिंदी हिंद देश की भाषा। हिंदी जन-जन की अभिलाषा। जीवन में हिंदी अपनाएं। इसको जीवन सूत्र बनाएं। हिंदी है अभिमान हमारा। हिंद देश है सबसे प्यारा। आओ हिंदी के गुण गाएं। सब मिल ऊँचे शिखर चढ़ाएं। हिंदी ही है जान हमारी। लगती है प्राणों से प्यारी। माँ हिंदी में लोरी गाती। झप्पी देकर हमें सुलाती। हिंदी में ही नानी मेरी, मुन्ना कह कर हमें बुलाती। फिर क्यों हम हिंदी को भूले। पर, भाषा के कर में झूले। अम्मा के माथे की बिंदी। अपने सिर पर रखती हिंदी। हिंदी भाषा है अ...
हिन्दवासी हिंदी बोलो
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हिन्दवासी हिंदी बोलो

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हम हिंद के रहवासी हैं हिंदुस्तानी कहलाते हैं हिंदी हमारी मातृभाषा है यह देश की राजभाषा है राष्ट्रभाषा भी बन जाएगी ए हिंदवासियों हिंदी बोलो जननी जन्मभूमि हमारी स्वर्ग से भी महान होती तीसरी माँ है ये मातृभाषा प्रथम पूजनीय को त्याग क्यूँ पहने विदेशी ये जामें सबसे पहले हिंदी ही बोले यह सहज सरल व मधुर है झोपड़ी से महल तक जाती है संचार विचार का आधार है देश का अभिमान पहचान है एकता की भी ये सूत्रधार है संस्कृत की संस्कारी बेटी है विश्व बोलियों में तृतीय नं है विश्व में देश का अस्तित्व है सबने माना हमारा प्रभुत्व है इतिहास भी इसका भव्य है बने भारतीयों का व्यक्तित्व है हम सबको मिला मातृत्व है विज्ञान पर भी खरी उतरती है ध्वनि सिद्धांत पर आधारित है जो सोचे वही बोले व लिखते अंकल आँटी घोटाला नहीं है हर भाव के पृथ...
मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मां का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, जन गण मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की तुतलाई बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी हर जन मानस में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति :...
ये कैसा राष्ट्र प्रेम
कविता

ये कैसा राष्ट्र प्रेम

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ये कैसा राष्ट्र प्रेम तुम्हारा, देशभक्तों को मिटाते आये हो। सत्ता के लिए अबतक तुम, देशभक्तों को मिटाते आये हो।। राह से हटाया था बोस तुमने, सुखदेव राजगुरु को फांसी चढ़ने दिया। चन्द्र शेखर को विवश किया तुमने, भगतसिंह को भी फांसी चढ़ने दिया।। चयनित पटेल थे बहुमत से फिर भी, प्रधानमंत्री जिन्होंने न बनने दिया। कर समझौता गोरों से तुमने तब, प्रधानमंत्री पद को झपट लिया।। समझते लोकतंत्र को बपौती क्यों, शास्त्री जी का तुमने कैसा हश्र किया। कर अपमान सीताराम केसरी का, नरसिंहाराव का कैसा हस्र किया।। अब तो हद कर दी अरे तुमने आज, प्रधानमंत्री पद की गरिमा को भुला दिया। चक्रव्यूह रचकर राष्ट्र समापन का क्यों, पापी दल ने राष्ट्र की गरिमा को भुला दिया।। क्यों चुप हो गये प्रतिपक्षी सारे आज, जब "हाउ द जोश" कांग्रेस ने ...
एक रस्ते के मुसाफिर
कविता

एक रस्ते के मुसाफिर

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक रस्ते के मुसाफिर आप भी हैं हम भी हैं अब तो इस गुलशन में हाजिर आप भी हैं हम भी हैं खूबसूरत साज है दिलकश यहां आवाज है इश्क की नजरों में कातिल आप भी हैं हम भी हैं आज पैमाने छलककर होठ तक आये मेरे दर्द में इस दिल के शामिल आप भी हैं हम भी है जाम आंखों से जो पीकर होश मैंने खो दिया अब इसी महफ़िल के काबिल आप भी हैं हम भी हैं जिस अदा से आपनें दस्तक दिया दिल पर मेरे बस उसी खुशबू की हाशिल आप भी हैं हम भी हैं। परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के ...
निज हित के प्रयास भुलाकर
कविता

निज हित के प्रयास भुलाकर

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** निज हित के प्रयास भुलाकर, निज प्राणों से ऊपर उठकर जो देश के हित सब करते हैं वो वीर भला कब मरते हैं! तीक्ष्ण धूप में, शीत- धार में घोर बसंत में, सूखे पतझड़ कदम बड़े जो धरते हैं वो वीर भला कब मरते हैं! काल के बादल छा जाने से ग़म का तम सब छाया है ये मत सोचो क्या- क्या खोया ये सोचो क्या पाया है अभिनव भारतवंश के बेटे सूर कभी नहीं डरते हैं वीर भला कब मरते हैं! भारत मां के कण- कण मिलकर सृष्टि खुद कर जोड़- जोड़कर मुख से मधुर सा गान करेगी रावत पुष्प के नाम करेगी देश के खातिर सबकुछ तज दो दिल- मस्तक में ये समर रहे बिपिन सिंह रावत अमर रहे बिपिन सिंह रावत अमर रहे परिचय :- तनेंद्रसिंह "खिरजा" निवासी : ग्राम- खिरजा आशा, जोधपुर प्रांत, (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक (विज्ञान वर्ग) जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय ...
तुम चाँद हो पूनम का
कविता

तुम चाँद हो पूनम का

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तुम चाँद हो पूनम का मैं तेरा ही चितचोर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा... तुम सावन की फुहार हो मैं प्यासा उमस का थार हूँ तुम शीतल ठंडी बहार हो मैं पतझर का तलबगार हुँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तुम बाग के खिलते फूल हो मैं मंडराता बांवरा भ्रमर हूँ, तुम सुरभित फुल बयार हो मैं प्रतिक्षित राही डगर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तुम उषा सिंदूरी लाली हो मैं आतुर दिवस वासर हूँ। तुम सुनहरी लाली आभा हो मैं तुमसे ही होता उजागर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तेरे बिना मेरा कुछ नही है तू तो मेरा सर्वस्व संसार है तू ही आसरा तू ही आधार है तुमसे जीवन ये खुशगवार है परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...
समझो द्वारे पर है बसन्त
कविता

समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी के स्वागत में जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द पँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलने लगते हों, जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई सुषमा बिखेरती नई नई विटपों से लिपटी लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों, शाखें शरमाईंं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब सघन वनों के बीच हवन में सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएंँ को मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन फिर बिखरा दे ताजगीभरी तरुणाई को कुछ बीज मन्त्र शुचिताएँ छाईं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती झूमा झटकी लख खिलखिला उठे सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी पल हर दृष्टि सुहानी सृष्टि द...
कुसुम केसर चंदन से
कविता

कुसुम केसर चंदन से

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनंदन नव वर्ष। शुभ यश जीवन में मिलें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली हाथ में, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नई साल के भाल। नूतन वर्ष शोभित हो, सदा सदी के भाल। नई सुबह की नव किरणें, चमक रही है लाल। अभिनंदन नववर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठाकर हाथ। नव किरण नव उजास में, पोषित हो नव भोर। नव वर्ष में दूर रहें, यह संकट अति घोर। कागज़ कलम दवात से, सपने लिखता रोज़। नये साल से आरज़ू, मेरे करदे काज। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। जीव जगत में खुशी मिलें, हर्षित हो चहुॅं ओर। पग पग नृत्य लोग करें, मस्त रहें हर छौर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान ...
वक़्त का वक्तव्य
कविता

वक़्त का वक्तव्य

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वक़्त का वक्तव्य तो सौभाग्य से असीम अनुभव दे गया संवाद समय का समन्वय ही चुस्त बना देता बुजुर्गों को। सदा ही सुनते कि बुढापे में स्मृति व्यवधान आ जाता है हालातों से बचाव भाव ही मजबूर बनाता है बुजुर्गों को। रुचिकर ज्ञान ध्यान मान में अतीत का अनुभवी जीवन व्यथित व्यवस्था में नए ढंग उत्साहित करता बुजुर्गों को। कष्ट अनेक वृद्धावस्था में, कुछ जज़्बात भी साथ होते हैं एहसास करने का स्वभाव ही, खुशियां देता बुजुर्गों को। माना जरावस्था में सुनने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है ऊंचे स्वर बिना भी सहज संवाद सुनाई देता बुजुर्गों को। निज सेवा आदत जिनकी ना रही हो वृद्धों की जिंदगी में सिर पैर कमर में हल्का दबाव सुकून दे जाये बुज़ुर्गों को। वाह वाह, जय हो, आनंद आ गया वाली जब बोली सुनो जैसे दुखती हुई रगों में आराम पहुंचा हो अब बुजुर्गों...
सर्दी की सरकार
कविता

सर्दी की सरकार

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** ओढ़कर आँचल रहो अब सर्दी की सरकार है। जिसकी चलती थी हुकूमत हौसले अब पस्त हैं। देर से आता है सूरज जल्दी होता अस्त है। छुपता, छुपाता खुद को जैसे गुनाहगार है। ओढ़कर .... बेवजह चिढ़ती थी जो दुपहरी उन दिनों सूखते थे पेड़, पौधे होठों पर बस प्यास थी हर तरफ है हरियाली बिखरी अब बाहर है। ओढ़कर.... ओस से भीगे हैं पत्ते बारिश का अहसास है फूल,कलियां भीगें हैं जैसे आया मधुमास है। कोहरा ठहरा है जैसे सर्दी ने रखा पहरेदार है ओढ़कर.... ठिठुरते हाथ लेकर संध्या रात में समा गई तारों की बारात लेकर रात है अब आ गयी सूनी हों हर गलियाँ, राहें सबको खबरदार है ओढ़कर आँचल रहो अब सर्दी की सरकार है। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...