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कविता

धरती का श्रृंगार
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धरती का श्रृंगार

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** पेड़ पौधा है जिन्दगी का आधार जल वायु से मानव जगत उजियार वनों में है अपना जहान जिसमे है लाख, तेंदू, महुआ, चार होता है इससे अपना गुजार हम भी करे इस धरती का श्रृंगार लगाके वृक्ष एक वरदान हो एक नए भारत का उत्थान जो हो जग में विस्तार वृक्ष लगाओ जिंदगी बचाओ। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
महिला दिवस का पाखंड
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महिला दिवस का पाखंड

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! एक बार फिर महिला दिवस का पाखंड करते हैं, महिला दिवस के नाम पर औपचारिकता का प्रपंच करते हैं। रोज रोज महिलाओं का अपमान करते हैं, नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं गँवाते हैं, उनकी हर राह में कांटे बिछाते हैं। महिलाओं को बराबरी का दर्जा देते हैं पर सच तो यह है कि हम सब अपनी माँ बहन बेटियों को भी ठेंगा दिखाते हैं। नारी तू नारायणी है का जितना गान करते हैं, उससे अधिक हम उनका अपमान करते हैं। नारी के प्रति श्रद्धा के दिखावे खूब करते हैं बड़े बड़े भाषण, गोष्ठियां, दिखावा करते हैं पत्र पत्रिकाओं में असंख्य लेख कविता, कहानियां भी लिखते हैं, परिचर्चा, वैचारिक चिंतन महिला हितों के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं, महिलाओं को साल में इस एक दिन महिला दिवस के नाम पर सबसे ज्यादा बरगल...
खिलखिलाती धूप हूँ
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खिलखिलाती धूप हूँ

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** खिलखिलाती धूप हूँ, सुबह की बयार हूँ, गुलशन सी महकती, नित नई बहार हूँ। मन्दिर का एक दीप भी हूँ, और एक धधकती आग भी हूँ।। साज और शृंगार भी हूँ, सुन्दर सा एक राग भी हूँ।। धैर्य हूँ धरा बन सब कुछ सह लेती हूँ। सब की खुशी में भी, मैं भी हँस लेती हूँ।। घर घर का मान हूँ, और अभिमान हूँ। जीवन में चेतना हूं और संचार हूँ।। व्यक्ति हूँ, अभिव्यक्ति हूँ, स्वरूपा हूँ शक्ति हूँ। पावन हूँ प्रीति हूँ, निश्छल हूँ, नूतन हूँ।। साथी हूँ, सन्गनी हूँ, माँ और बहन हूँ। हाँ मैं एक स्त्री हूँ ... नहीं चाहिये मुझे व्याख्या और बखान आंचल में समेटना चाहती बस, प्यार और सम्मान, प्यार और सम्मान ... परिचय :- प्रीति तिवारी "नमन" निवासी : गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती...
महिला प्रबंधक
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महिला प्रबंधक

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बिना वेतन जो काम करे न कोई छुट्टी न कोई गम। बस समय पर काम करे और लोगों को खुश रखे। बता सकते हो ये कौन है जो निस्वार्थ भाव से करती है। ये और कोई नहीं घर की एक महिला हो सकती है।। हर मौसम की ये आदि है सबसे बाद में सोती है। पर सबसे पहले उठती है और सबका ख्याल रखती है। नित्य क्रियाओं से निवृत होकर दिया भोग प्रभु को लगती है। जिसे घर में सुख शांति और बरकत बहुत होती है।। यह सब अकेली महिला हर दिन नियम से करती है। खुद की चिन्ता कम पर सब का ख्याल रखती है। घर की कारंदा होकर अपना फर्ज निभाती है। बिना प्रबंधन की शिक्षा के भी प्रबंध अच्छे से करती है।। ये सब एक महिला ही कर सकती है. . . ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड ...
बंसत का अभिवादन
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बंसत का अभिवादन

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** मन प्रभात करता प्रफुल्लित ह्रदयवाटिका में पुष्प सुमन की भांति जब बंसतरूपी आंगन में खिलकर आता है हर दुःख दर्द जमींदोज होकर खुशहाली चारों दिशाओं में विराजमान हो जाती हैं। खूबसूरत धरा पर ऋतु राज़ बंसत हो जाता हैं कुन्दन सा निखार हर जीवनशैली के मधुमास पर छाकर इन्द्रधनुष की तरह ऊंचाई पर विराजमान हो जाता हैं । हर सुबह महकती है गुलज़ार होता गुलशन, फूलों की खूबसूरती लिए बहारों का अभिनन्दन करते हुए गगन सृष्टि को मुस्कुराने का एक निश्चित मौसम परिवर्तन का सुन्दर सा बंसत करता अभिवादन हैं। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४ साहित्य में कद...
मन की पीड़ा
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मन की पीड़ा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब मन की पीड़ा उभरी तो मैंने उसे लगाम दिया है कठिन पलों में मैंने खुद को एक नई पहचान दिया है पीकर के अपमान घूंट का मैंने संयम पाला है दूर दर्शिता के आंगन में स्वयं हृदय को ढाला है विचलित होकर जब दुनिया के लोग यहां घबराते हैं तब हम अपनी जीवन की गाथा लिखकर उन्हें सुनाते हैं जीवन मुल्यों की धूरी पर जब जब भी आघात हुआ है और निखरकर जीनें के साहस भी एहसास हुआ है रिश्तों के ब्वहारिकता में मौकों को सम्मान दिया है जब मन.... जब तुम मुझे समझ पाओगे और अधिक इतराओगे मेरे भावों की सरिता में तब तुम और नहाओगे प्रेम नहीं ये नैतिकता है इसका मूल्य समझना होगा उछली उछली भावुकता से तुमको आज उभरना होगा गहन विचारों में डूबी जब सोच निकलकर आयेगी तब इस प्रेम कहानी की सच्चाई तुमको भायेगी समझ सकोगे शायद मैंने तुमको क्या संधा...
ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं
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ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। कम मुझे आप मत आको, मै इस सारी दुनिया पर भारी हूं।। सदियों से जीती औरो के लिए, सदियों से यह अत्याचार सहे। हर बात पर एक सीमा होती है, ऐसे घुट–घुट कर कौन रहे।। ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। नही डरती हूं मैं इस दुनिया से, बस अपनो से सदा मैं हारी हूं। कम मुझे आप मत आको, मै आज की युग की नारी हूं।। मैं बाहर काम पड़ने पर जाती हूं, परिवार का अभिमान बढ़ाती हूं। गृहस्थी का गाड़ी स्वय चलाती हूं अपने परिवार खुश रख पाती हूं।। ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। फिर मैं लोगों का हवस का शिकार बन जाती हूं, जान बचाने के लिए जोर–जोर से चिलाती हूं। फिर भी मै अपने बातों को नही बता पाती हूं, फिर भी भारत में महिला दि...
दीप जलाएँ
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दीप जलाएँ

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** चहक उठा सबका दिल फिर से, आई देखो ! दिवाली। खेत - खेत में झूम रही है, देखो ! धानों की बाली। जीवन - बगिया महक उठी है, दीपों के फूल खिले हैं। बिहसि रही है अखिल धरा ये, तम के होंठ सिले हैं। झूम रही चहुँ ओर फ़िजाएँ, वो कुदरत के नजारे। सुख - दुःख तो आना- जाना है, सब ईश्वर के सहारे। परहित में कदम उठें सबके, अहं की दीवार गिराएँ। मोहब्बत की दरिया में हम, अब मिलकर नित्य नहाएँ। ज्ञान प्रकाश करें जग में, अंधेरा हम दूर भगाएँ। राम राज्य लाकर भू पर, खुशहाली का दीप जलाएँ। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा : कविता सम्प्रति : पूर्व (रिटायर) मनपा शिक्षक बृहन्नमुम्बई महानगरपालिका, मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हू...
मैं कमजोर नहीं
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मैं कमजोर नहीं

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** इतिहास गवाह है हर जुल्म और सीतम के खूनी पन्नों में मेने इबारत लिखी हुई है वतन पर मरने वालों में। हर शास्त्र धर्म में रची बसी हूं नारी शक्ति के शब्द रूपों में मिटकर भी अमर कहानी बनी रही मैं हर युगों में। नई शक्ति का सृजन कर मेनें नवराष्ट्र को हर बार रचा है। असहनीय दर्द भी सहनकर कोमल शिशु को सींचा हैं। समय चक्र कि धारा में कई बार टूटी और बिखरी हूं, पर अब मैं अबला नहीं रही खुद को सबल बना खड़ी हूं। वैचारिकता के शब्दों ने भी खुब अन्याय ढाये मुझ पर, पर मजबूत इरादों से लडकर, चौखट लांगकर बनी आत्मनिर्भर। बराबरी के हक को लेकर राष्ट्र विकास कि धूरी बनी हूं अबला से सबला बनकर इतिहास कि वो नारी बनी हूं। विश्व जगत भी चकित हुआ देखकर नारी की शक्ति से, हर घर अब विकसित हो रहा महिला-पुरुष कि सहभागी ...
कमल बनके खिलना होगा
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कमल बनके खिलना होगा

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** नारी तुम्हें कमल बनके खिलना होगा, कीचड मे भी साफ-सुथरा चलना होगा! नारी तुम्हें सन्तान का हित देखना होगा, संतान को सम्पत्ती के मोह से दूर रखना होगा! नारी तुम्हें दिमाग का खूब इस्तेमाल करना होगा, खुद की ताकद को नेकी मे ढालना होगा! नारी तुम्हें हर काम यूँ ढंग से करना होगा, राष्ट्र की उन्नति मे हरदम हाथ बंटाना होगा! नारी तुम्हें सबको सम्भालते हुए चलना होगा, मानवजाती की गरिमा को बनाए रखना होगा! नारी तुम्हें परिवार को साथ तो बनाये रखना होगा, पर स्वार्थों से परे खुद का किरदार लिखना होगा! नारी तुम्हें खुद का दामन बचाए रखना होगा, बेदाग अपने दामन को हर पल लहराना होगा! नारी किसी के बहकावे मे आना अच्छा न होगा, दिलोदिमाग को साथ चलना सिखाना होगा! नारी तुम्हें खुद की नींव को मजबूत करना होगा, नित प्रगती से निर...
स्कूल
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स्कूल

पूजा महाजन पठानकोट (पंजाब) ******************** स्कूल हमारा है शिक्षा का मंदिर स्कूल बिना है जीवन कठिन स्कूल हमें है सब कुछ सिखाता स्कूल हमारा है ज्ञानदाता स्कूल से जीवन सरल बन जाता स्कूल समझे सबको भाई भ्राता स्कूल करे ना कोई जाति भेद स्कूल में रहे सब मिलकर एक जात धर्म की यह दीवार मिटाता सबके दिल में यह प्यार बढाता स्कूल को करूं मैं शत-शत नमन स्कूल को करूं मैं शत-शत नमन परिचय :- पूजा महाजन निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविता...
पापा
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पापा

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आज अचानक मुझे दीदी ने कहा, पापा पर कुछ लिखने को। तो मेरे मन मे ख्याल आया, क्या लिखु मै उनके बारे मे, जब मुझे कुछ याद ही नही, उनके साथ बिताए हुए पलो के बारे मे। क्या लिखु मै उनके बारे मे; सच कहु तो मुझे नही पता, किस तरह का रिश्ता होता है, एक बेटी और पिता का। काश! मुझे भी पता होता, कि पापा का प्यार कैसा होता है। सुना है कि पापा का प्यार, नसीब वालो को मिलता है, पर क्या फर्क पड़ता है जनाब, प्यार तो प्यार होता है। मुझे कभी कमी ही नही खली, पापा के प्यार की, क्योकि मुझे नाना-नानी, मामा व अपनो का प्यार जो मिला था। काश!मै उनके बारे मे कुछ लिख पाती, वो मुझसे और मै उनके नाम से पहचानी जाती, वो मुझसे और मै उनसे हर वो बात कहे पाते, वो मुझसे और मै उनके साथ खुब मस्ती करते। क्या लिखु मै उनके बारे मे; बस इतना लिखन...
मेरा वजूद
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मेरा वजूद

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मिलेगा  गम  तो खुशियों  में  बदल देंगे ! खुशियों के सौदागर है, गम के खरीददार नहीं !! खुश है और खुश रहकर हम खुशियाँ बांटेंगे ! लूट ले मेरी खुशियाँ किसी का अधिकार नहीं !! लोगों  को  खैरात में  हम खुशियाँ  दे देंगे ! माँगे किसी से  खुशियाँ  हम तलबगार नहीं !! ना दिखाओ ज़ख्म  जमाने को, दर्द ही मिलेंगे ! मिटा सके ज़ख्म मलहम का कारोबार नहीं !! ये जालिम  जमाना  है यहाँ गम ही मिलेंगे ! दे दे  रंज भर सुकून हमें, कोई वफादार नहीं !! आएंगे   बुरे  वक़्त  तो सामना कर लेंगे ! वक़्त  के सिपाही  हैं कोई  गुनहगार नहीं !! इतिहास के  पन्ने  है  हम, लोग पलटते रहेंगे ! मिट जाए  वजूद  मेरा  मैं अखबार  नहीं !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेर...
नारी जीवन
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नारी जीवन

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नारी है नारायणी, नारी नर की खान, नारी से ही उपजे ध्रुव प्रहलाद समान। नारी ने हर क्षेत्र में अपने , हौसलें की उडा़न भर परचम लहराया कीर्तिमान स्थापित किया है। बंधनो के निबद्ध भावनाओं की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है नारी। कटीली नागफनी राहों में गुलाब है नारी। सोच का आंकडा बनाना, जटिलताएं, विवशताएँ, समाज की समस्याएं, रूढ़ीवादी परम्पराएं सबको निभानें का हौसला रखती है नारी। झरने की तरह मानिन्द शांत पीडा़ओं को सहती नारी। रिश्तों की परिधि में घिरकर सहती है नारी। दुर्गा, लक्ष्मी, अहिल्या, मीरा, सीता, सावित्री न जाने कितने रुप है नारी। फिर भी नारी को वह सम्मान नहीं मिला है। आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है। नारी सामाजिक दायित्व के प्रति सजग, अधिकारों के प्रति आवाज उठाने का हौसला रखती है नारी। पथ, प्रदर्शिका, स्वरक्षिका हर श...
ये जिंदगी भी ना
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ये जिंदगी भी ना

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** ये जिंदगी भी ना क्या से क्या कराती है मुश्किल वक्त पर इशारे पर नाच नचाती है करवाएं बदल-बदल कर फिर खून की आंसू सुलगाती है सोच-सोच के ये मन घबराए चैन कहा अब बेचैनी जो छाए रामरहीम अब सब तेरे वास्ते जिंदगी की बागड़ोर अब तू ही संभाले। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिय...
अब नही तोड़ती वो पत्थर
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अब नही तोड़ती वो पत्थर

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** अब नही तोड़ती वो पत्थर जिसे देखा था कभी तुमने इलाहाबाद के पथ पर, अब लड़ती हैं हर लड़ाई आंखों में अटल संकल्प कर, हमेशा ही मिटती रही, जो पुरुष के झूठे अहम पर, नारी ही क्यों सिद्ध करें, हर बात को, क्या नारी होना अभिशाप है ? मै तो कहूँगी, नारी सबसे सुंदर रचना है नारी होना वरदान है, इसमे देश की उन्नति है समाज की शान है, पुरुष की पहचान है नारी आज भी मरियम है जीवन उसका अनुपम है बच्चे की पुकार है प्रेम की प्यास है यही शिव की भी पहचान है परिचय :-  इन्दु सिन्हा "इन्दु" निवास : रतलाम (मध्यप्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
दर्द उनका संभालते रहना
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दर्द उनका संभालते रहना

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दर्द उनका संभालते रहना कोई मुद्दा उछलते रहना मां का बच्चा ये बहुत प्यारा है इसको हरदम दुलारते रहना जो मुसीबत में फंसे हैं देखो ग़म से उनको उबारते रहना फर्ज की बात बस करो मुझसे अब तो खुद को तरासते रहना मां बड़ी है जहान दुनिया में उसको हरदम दुलारते रहना गलतियां जब भी तुमसे हो जाए हर कदम पर सुधारते रहना खूब इज्जत कमा सको रंजन रब से इतना पुकारते रहना परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि ...
नामुराद इश्क का मिज़ाज
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नामुराद इश्क का मिज़ाज

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** "नामुराद इश्क का मिज़ाज बड़ा अजीब है यारो" रात ये सोने नहीं देता सुबह ये होने नहीं देता बात करने भी नही देता वो बात सुनने नहीं देता। मरीज ए इश्क की हालत बड़ी नासाज है अब तो कभी खाने नहीं देता कभी पीने भी नहीं देता। यकीन ना हो तो तुम भी इश्क करके देख लेना। कभी मरने नहीं देता तो कभी जीने नहीं देता। नामुराद इश्क का मिज़ाज बड़ा अजीब है यारो यह हंसने भी नहीं देता यह रोने भी नहीं देता। दिल टूटने पर दिल के जख्म किसी को ना बताना दिल के जख्म को ये सीने भी नहीं देता ये धोने नहीं देता इश्क करने वालों के सीने में इश्क की वो आग होती है ये इस आग को बुझने नहीं देता सुलगने नहीं देता। इश्क है तो जिंदगी है ऐसा जमाने में लोग कहते हैं यह सर उठाने नहीं देता यह सर झुकने नहीं देता। परिचय :- सीताराम पवार निवासी : ...
अंतिम अरण्य
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अंतिम अरण्य

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अनंत का अंतिम अरण्य कहां है कोई नहीं जानता। पर निश्चित है कि प्रत्येक को, उसी अंतिम अरण्य में जाना है। देर सबेर दोपहर सुबह शाम वृद्ध, अबाल, जवान, राजा, रंक, फकीर। सभी उस पथ के प्रबल दावेदार। राख मिट्टी में परिवर्तित होने के लिए अंतिम स्थल की मिट्टी बाट जोहती है पगडंडी मार्ग से आने की कभी ना जाने देने के लिए पंचतत्व के दो तत्व निकल ले छू ले। कोई नहीं जानता कहां दबोच ले मसल दे भस्म कर दें हर एक की की मृत्यु का कारण निराला कहीं कोई समानता नहीं मृत्यु मृत्यु हैं, जीवन नहीं कोई नहीं जानता कैसे क्यों जाना है धरा पर वापस ना आने के लिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं...
सुन रही हो माँ
कविता

सुन रही हो माँ

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** देखो माँ, हर वर्ष महिला दिवस पर तुम्हारा गुणगान किया जाता है, उस एक दिन में, भर दिए जाते है पन्ने, तुम्हारी महानता के, माँ महान है, माँ बगैर हम कुछ नही, कही झूठ कही सच, कही भ्रम का लिबास पहनाकर, तुम्हारी महिमा बतायी जाती है, ऐसा लगता है, काँच के शोकेस को चमकाकर, कोई मूर्ति रख दी हो, देवी कहकर तुमको तुमको, प्यार के रैपर से कवर किया जाता है, लेकिन कोई नही लिखता, कोई नही गाता, महानता के पीछे छिपे, पूरे घर मे तुम्हारी भागदौड़ को, दिन भर खटती रहती, तुम्हारी जिम्मेदारी को, आधी रात तक बर्तन घिसती, तुम्हारी उँगलियों को, तुम्हारे टूटे सपनो को, छिप छिप कर बहाए आँसुओं पर, होठों की नकली मुस्कान को, पल पल मरती इच्छाओं पर, तुम्हारे खोए व्यक्तित्व पर, घर घर ऐसी ही होती है माँ, तुम सुन रही हो ना माँ ? परिचय ...
मैं कहाँ?
कविता

मैं कहाँ?

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तेरी महफ़िल में शोर कहां ? मेरे सिवा तेरा कोई यहां और कहां ? लोग कहते हैं तुम हर लफ़्ज़ को पकड़ लेते हो। फिर तुम्हारी जिंदगी में मोहब्बत के पन्नों पर इश्क की दास्तां कहां? लोग कहते हैं हर आशिक तेरा यहां। फिर तेरे चाहने वालों में यहां मेरा नाम का कहां? लोग कहते हैं मोहब्बत की में हर शायरी हर नगमे में तेरा नाम है यहां? फिर इश्क के दरिया बीच प्यार के नाव में तू अकेला बैठा क्यों यहां ? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
नवोदित सृजनकार मसीहा
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नवोदित सृजनकार मसीहा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सरस्वती देवी मां कृपा, महिमा सुनी सुनाई है। कर्म-मर्म की सभी अच्छाई, समाज हित बरसाई है। परवरिश कहानी कहती है, कसर बाकी राह ना जाये अपनी कुव्वत से भी ज्यादा बच्चों को अर्पित हो जाये यह भाव समाया जब दिल में, कौन तुम्हें फिर रोकेगा बाधा विलंब तो लिखी बदी होना जो वो होवेगा। कर्मों के फल का संतोष यही, तन-मन से शक्ति पाई है कर्म मर्म की सभी अच्छाई समाज हित बरसाई है सरस्वती देवी मां कृपा, महिमा सुनी सुनाई है। कलमकारों का कलम बल ही साहित्य मिसाल बनाती समाज को दर्पण दिखलाने, जब लेखनी दम दे जाती 'माखन'' दिनकर ''सरल' 'निराला' 'पंत' 'गुप्त' पाठ पढ़ाती रचनाकारों के शब्द भाव समस्या का हल दिखलाती इतिहास गवाही देता है, लेखन बल चतुराई है कर्ममर्म की सभी अच्छाई समाज हित बरसाई है सरस्वती देवी मां कृपा महिमा सुनी सुनाई है...
माँ
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माँ

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** माँ शब्द का एहसास ही कुछ और होता है -२ क्योकि यह हजारो, लाखों मे नही, पूरे ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली शब्द है। माँ की दुनिया तो अपने बच्चो मे ही समाई रहती है, पता नही वो कितने दर्द को अपने अन्दर छिपाए रखती है। -२ माँ का हृदय समन्दर सी गहराईयो को लिए फिरता है, ना जाने इसमे कितने आशीर्वादो का बवन्डर भरा है। -२ पता नही वो किस तरह हर दर्द को छिपा के हमेशा मुस्कराती है, वो 'माँ' है इसलिए मुस्कराती है। -२ बीमार होने पर कहती है मै ठीक हु, कुछ नही हुआ मुझे, ओर फिर काम पर लग जाती है। अपने बच्चो की खुशी के लिए कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखती है, क्योंकि वो 'माँ' है। -२ माँ शब्द का एहसास ही कुछ ओर होता है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करत...
सबसे न्यारी है मेरी माँ
कविता

सबसे न्यारी है मेरी माँ

पारस चवदहिया बाड़मेर (राजस्थान) ******************** मेरी माँ प्यारी जग मे सबसे न्यारी है मेरी माँ खुद भुखी सोती है हमे खिलाती है मेरी माँ! न जाने यह कैसा अनमोल रत्न है मेरी माँ मुझे रुठे किस्सो पर हंस कर बतलाती है मेरी माँ !! मेरे दिल की परी है अपनी बात पर खरी है मेरी माँ मेरे दिल ने कह दिया उसने न मांगे दे दिया ! वह गिले पर सोती है हमे सुखे मे सुलाती है मेरी माँ अपने लहु का कण-कण एक करके दुध पिलाती है मेरी माँ!! अपने जीवन की सारी खुशिया मुझे देती है मेरी माँ मा यह सब कैसे करती हैं मेरी माँ! मेरे बुलन्द हौसलो को उडान देती हैं मेरी माँ मेरी टुटी हर उम्मीद फिर से जगा देती हैं मेरी माँ!! जब दुर तेरे से होता हु मेरी मा सच कहु तो रोना होता हैं मेरी माँ! हर ख्वाहिश पूरी कर लेती हो मेरी माँ सच की राह पर चलना सिखाया हैं तूने मेरी माँ जीवन चलाने का सही पथ बताया तूने मेरी ...
बात जो भी कहते है, सच ही कहते है …
कविता

बात जो भी कहते है, सच ही कहते है …

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** बात जो भी कहते है, सच ही कहते है, गुलाब को तुम फूल, हम पंखुड़ी कहते है। ये माना हम तेरी , मुहब्बत के तलबगार नही है, फिर भी तुझको, अपनी जिंदगी कहते है। हम नही जानते पेंचो-रवम, इश्क के मगर, इश्क वालों को ही हम, आदमी कहते है। जल रहा है, अब शहर , नफरतों के कारोबार से, ऐसे लोगों को हम , सियासत के कारोबारी कहते है। हर शिकारी से अव्वल है, एक शिकारी भी अब, पल में बदले रुख हवा का, उसे ही बाज़ीगरी कहते है। तेरे नैनों नक्श को, तराशा नही हमने, रूह डालें जो पुतलो में मिट्टी के, उसे कारीगरी कहते है। गुनाह-ए-मुहब्बत हम भी, कभी-कभी करते है, बातें मुहब्बत की मगर, शहर में बन के अजनबी करते है। कितने पागल थे वो लोग, जिसने बुझा ली लौ जिंदगी की, शाहरुख़ इसी बात को तो मुहब्बत में खुदकुशी कहते है। परिचय :- शाहरु...