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कविता

ग्रीष्म
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ग्रीष्म

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। लपट फैंकती हवा मचलती, पोखर तप्त उबलती है।। दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द्ध रात अज्ञारी जैसी, सुबह शाम अखबारों सी।। सिगड़ी जैसा दहक रहा घर, देहरी धू-धू जलती है। गरमी फैंक रही है गरमी, तपती सड़क पिघलती है।। सीना सिकुड़ गया नदियों का, नहरें नंगीं खड़ीं दिखीं। कुए बावड़ी हुए बावरे, झीलें बेसुध पड़ीं दिखीं।। तपन घुटन में हौकन ज्वाला, बाग-बाग में लगी हुई। बदली बनकर बरस रही है, आग-आग में लगी हुई।। जीभ निकाले श्वान हाँफते, बेबस व्याकुल लगते हैं। जीव जन्तु प्यासे पशु पक्षी, जग के आकुल लगते हैं।। हरे खेत हो गए मरुस्थल, पर्वत रेगिस्तान हुए। सारे विटप बिना छाया के, जलते हुए मकान हुए।। एसी, कूलर, अंखे, पंखे, डुलें वीजने नरमी से। बिगड़ रहे...
झूठों का  शहर
कविता

झूठों का शहर

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** झूठों के शहर में सच कौन बोलेगा जो बोलेगा वह मारा जाएगा। न कोर्ट होगी ना ही तारीखें होंगी सीधे सजा सुनाया जायगा। अंधे-बहरो के बीच वह चीखेंगा, चिल्लायेगा बार बार इन्साफ़ की गुहार लगाएगा। अंततः वह आरोपी कहलायेगा। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डा...
होली राम रंग संग खेलो
कविता

होली राम रंग संग खेलो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** होली राम रंग संग खेलो, हनुमत झूम के नाचेंगे। लगेगा भक्तों का दरबार, नाम महिमा वे बांचेगे। होली ..... बहाओ र से रंग फुहार, म में है माँ सीता का प्यार, चढ़ेगा जिन पर हनुमत रंग, वो माँ के चरण पखारेंगे। होली....... नहीं हुड़दंग का ये त्योहार, लुटा दो सब पर अपना प्यार, बढ़ी कटुता जिनसे इस साल, मिटाकर गले लगालेंगे। होली....... न डूबो दारू में या भांग, यही है सात्विकता की मांग। आओ बैठो हनुमत दरबार, "नाम" का नशा चढ़ा देंगे।होली....... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
सब गुलजार हुआ होगा
कविता, छंद

सब गुलजार हुआ होगा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ताटंक छंद त्योहार मनाने का उत्साह, इंतजार में पलता है राग द्वेष को तजते इसमें, अपनेपन से चलता है। होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। दुनिया रंगबिरंगी होती, चालों में रंग सिमटता रंगों पर हक नहीं किसी का, घटना घेरों में पलता आशा विश्वास सहयोग दया, रंगो का पहरा रहता रहमत रंग की पात्रता से, अमन चैन खजाना होगा सच्चे पक्के जब रंग समाए, दांवपेंच गुजरा होगा होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। बिना कर्म और समर्पण से, अंक गणित का शून्य है रंग तुम्हारे कितने चोखे, साहस मार्ग अनन्य है अमल खलल रूप सच्चाई से, रंग गाथा भी धन्य है जहमत रंग प्रतिपालन में, काया कल्प हुआ होगा रंग लगाकर रंग बदलना, आपा भी खोया होगा होली होली क...
कोई फर्क नहीं
कविता

कोई फर्क नहीं

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं कब हारा मैं कब जीता मुझे इससे कोई फर्क नहीं। कौन अपना कौन पराया मुझे इससे कोई फर्क नहीं। मैं क्यों रोया मैं क्यों हंसा मुझे इससे कोई फर्क नहीं। कौन मेरा कौन तेरा मुझे इससे कोई फर्क नहीं। क्या खोया क्या पाया मुझे इससे कोई फर्क नहीं परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपन...
रंगलो तन-मन रंग से
कविता

रंगलो तन-मन रंग से

वीरेंद्र दसौंधी खरगोन (मध्य प्रदेश) ******************** रंगलो तन-मन रंग से, देखो होली आई। रंग-बिरंगे रंग लिए, हँसी ठिठोली आई।। ढोल, मृदंग की थाप पर, नाचे गाये सारे। पिचकारीयो  से  बरसे,  रंगो की बौछारे।। लिए रंग हुरियारो की, देखो  टोली  आई। रंगलो तन-मन रंग से, देखो होली आई।। तेरे प्यार का हर रंग, रंगे मेरा तन-मन। प्रीत रंग ना छुटे कभी, चाहे करे सब जतन। सहेलियों को संग लिए, लो हमजोली आई। रंगलो  तन-मन  रंग से, देखो होली आई। बिसराकर मन राग-द्वेष, सबको गले लगाए। जाति, धर्म के भेद मिटा, एक रंग हो जाए। चंदन, गुलाल, कुमकुम की, देखों रोली आई। रंग लो तन-मन रंग से, देखो होली आई। कौना-कौना धरती का, लगता है सतरंगी। भक्ति के रंग में रंगा, झूम  रहा सतसंगी।। वीर लिए संग श्याम को, राधा भोली आई। रंग लो तन-मन रंग से, देखो होली आई।। परिचय :- वीरेंद्र दसौंधी निवासी : खरगोन (म...
मन पलाश बन गया
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मन पलाश बन गया

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया रंग तुमने डाला ऐसा, मन पलाश बन गया अबीर, गुलाल या रंग हो हरा सारे रंगों ने रंगी कर दिया जिया मेरा रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया सामने बैठ कर तुमने लालिमा बना दिया सुर्ख लब किए और रुखसार भी रंग दिया रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया होली है या नज़र की पिचकारी तुम्हारी छिन-छिन, पल-पल हो रही बावरी तुम्हारी रंग गिरते रहे और छा गई खुमारी इंद्रधनुष सा तुम्हारा मन, जीवन सतरंगी कर गया तन मन तो क्या तुमने, वजूद भी रंग दिया रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
होली – हैवानियत
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होली – हैवानियत

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** रंगों कि पीछे छिपे होते है हैवानियत, नशा पान करके भांग पीकर मांस खाकर उर्ग होते है परेशानीयां.! रंगों कि होड मे गलत करते कलयुग के रावण, समझो जानो अपनो कि इज्ज़त सम्मान को पहचनो ! सभी के साथ खुशियों से रंग लगावो, बुरे इंसान उनके हरकतो को पहचानो उनसे दुर है जाओ.! बुरा न मानो होली है लेकिन किसी के साथ बुरा करना होली नहीं, गांव को गोकुल, मथुरा, काशी, बनाओ, रंगो कि बौछार से अपनो से खुशियां बनाओ.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के...
रंग पंचमी इन्दौर की
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रंग पंचमी इन्दौर की

  गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** गेरों और गुलाल, रंगों का है संगम, सज धजकर टोलियां निकलती हैं, मस्ती के रंगों में गुलाल अबीर से अहिल्या राजबाड़ा चौक सराबोर हो जाता हैं रंगों की रंग पंचमी देखी है इन्दौर की। हंसी मजाक ठिठोली करते नहीं किसी से भेदभाव यही दिखती हमारी संस्कृति सभ्यता परम्पराओं और एकता और आत्मविश्वास अंखण्ड धर्मनिरपेक्ष भारत की भारतीय रंग में, रंग पंचमी बस इन्दौर की। तीज़ त्यौहार हर उत्सव उल्लासपूर्ण अपनात्व के रंगों में सराबोर हुआ करता है गगन जहां सभी को सम्मान दिया जाता हैं, ऐसी जन्मभूमि है विकास यहां अहिल्या बाई होलकर की आत्मा से जुड़ी, आत्मीय रंगों से खेली जाती है होली रंग पंचमी इन्दौर की, रंग पंचमी इन्दौर की, रंग पंचमी इन्दौर की। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया म...
सौगात तिरंगे की
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सौगात तिरंगे की

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सरहदों के पहरेदारों हिन्द के ओ सूरमाओं सौप कर हमको तिरंगा वो सितारे बन गए हैं केसरी बाना पहनकर कफ़न अपना ही सजाए माँ बहन और सजनी मिलके विजय टीका है लगाए तिरंगे की शान खातिर खुद निछावर हो गए हैं सौप आज़ादी हमें वो अंतिम सफ़र पर चल पड़े खुश रहो भारत के वासी ये सभी से कह गए वो शोर अब सब बंद कर दो वीर प्यारे सो रहे हैं आज़ाद बिस्मिल और भगत कारगिल के ओ शहीदों सौरभ विक्रम नचिकेतों क़ुरबां हुए प्यारे हज़ारों माँ का आँचल सूना करके पिता के कांधों पे सोए ओढे तिरंगा जा रहे हैं सरहदों के पहरेदारों हिन्द के ओ सूरमाओं सौप कर हमको तिरंगा वो सितारे बन गए हैं परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
मेरी कविता
कविता

मेरी कविता

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरी कविता मेरा सुर और साज है। मेरी कविता में मेरा आवाज है।। मेरी कविता भावों का आधार है। मेरी कविता में इसका विस्तार है।। मेरी कविता बहती आठों याम है। मेरी कविता ईश्वर का पैग़ाम है।। मेरी कविता ही मेरा सम्मान हैं। मेरी कविता गीता और, कुरान है।। मेरी कविता यह वेदों का सार है। मेरी कविता भाषा का विस्तार है।। मेरी कविता ही मेरा श्रृंगार हैं। मेरी कविता में छुपा संसार है। मेरी कविता रंगों की बहार है। मेरी कविता खुशियों की बौछार है। मेरी कविता में सातों स्वर साथ हैं। मेरी कविता यह विश्व विख्यात है।। मेरी कविता सुर, संगम, साज़ है। मेरी कविता में कृष्णा के राज़ है।। मेरी कविता विधाओं का ताज़ है। मेरी कविता में नवरस आगाज़ हैं। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि :...
होली के रंग फाग के संग
कविता

होली के रंग फाग के संग

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ चम्पा आओ सखी चमेली, फूलों से मिलकर खेलेंगे हम होली गुलाल लगाकर हम करेंगे सम्मान पर्यावरण का भी रखना है ध्यान ! पानी की न करेंगे हम सब बर्बादी बचाना होगा पीने योग्य हमें पानी ।। होली के रंग फाग के संग जमेंगे, नाचेंगे जब मिलकर सब धूम करेंगे! थाली सजेगी सभी रंगों के गुलाल से, जब मन के मन से तार मिलेंगे सबके एक दूजे को रंग गुलाल लगाकर हम संतुलित होली का पूरा मान रखेंगे।। फागुन आया संग होली लाया है नाचता गाता ये मन सबसे कहता इस होली मैं सबका मन हर्षाया हैं नीले, पीले, लाल गुलाबी गुलाल से, धरती पर जैसे इंद्रधनुष उतर आया प्यारी होली के रंग है फाग के संग।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार...
काश्मीर की आत्मव्यथा
कविता

काश्मीर की आत्मव्यथा

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** नभ उदास है धरती सूनी तीनों लोक सुनो त्राहि पुकारे कर्म नहीं है, धर्म नहीं है इन्सा का कोई भरम नहीं है चहुँओर है छाया अंधेरा माँगे लहू है जगत ये सारा क्यो विफल हुई कश्यप की तपस्या स्वर्ग बसाया नर्क बना है ईश्वर अल्लाह दो नाम तिहारे फिर क्यों इनमें जंग छिड़ी है तेरी रचना न तुझसे सँभलती ये कैसी माया है बरसती क्या व्यर्थ हुआ है बलिदानी येशू स्तंभित खडी गौतम की वाणी मानव में दानव संचारे लुप्त हुई मानवता सारी कब आओगे कहो कन्हाई गीतावाला वचन निभाने परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
होली आई
कविता

होली आई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे आंगन-आंगन बजी बधाई डेहरी पहने पायल अरे फागुन आया होली आई, ढोल बजाओ मांदल रे। यौवन सजे सजे हरद्वारे पायल नूपुर बाजे रे गेम बाली लेकर आती खंन-खन करती चूड़ियां थे हां बुलाया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे। रंग गुलाल संग मचल रही हरि पीली आंचल चांदनी ताल-ताल पर नाच रही मेरे मन की रागिनी रवि किरण भी खेल रही है सतरंगी केसरिया रंग अरे। फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे। केसु, टेसु रंग केशरिया पाखी, पंछी झुमे थे घर आंगन में सजी सावरी धानी चुनरिया ओढ़ रे पीली-पीली सरसों पर मन मतवाला डोले रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे। सुबह संध्या अवनी अंबर अबीर केसरिया खेले रे आज नहीं है द्वेष कहीं भी अनुराग मन भरे रे फागुन फाग सजे मतवाले रंगा बिरंगी टोली रे। फागुन आया होल...
नीति नियति निर्णय सही
कविता

नीति नियति निर्णय सही

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** नीति नियति निर्णय सही सकल सिद्धि के सार यदि अपनाओ मंत्र यह खुले ख़ुशी का द्वार जीत हार जो भी मिले दिल से हो स्वीकार बनी रहे सद्भावना पनपे नहीं विकार अनुचित की हो वर्जना उचित रहे स्वीकार मान प्रतिष्ठा का सदा सपना हो साकार निज हित और समग्र हित मिट जाए दीवार जन-मन भी होगा सुखी फैले नवल विचार देश-भूमि का व्यक्ति पर अनगिन है उपकार उसके प्रति कुछ धर्म है मन में हो आभार हम समाज के अंग हैं देता वही ख़ुराक वसुधा एक कुटुम्ब है इसका हो परिपाक धर्म जाति के चक्र से निकलो मित्र तुरंत वरना इस दुष्चक्र से है दुनिया का अंत। परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, स...
हे कान्हा! तेरे प्रेम में
कविता

हे कान्हा! तेरे प्रेम में

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे कान्हा! तेरे प्रेम में कुछ पूरी सी, कुछ अधूरी सी प्रेम रंग में पूरी तरह डूबी सी चढ़ा है तेरा रंग ऐसा कि दूसरा कोई रंग चढ़ता ही नहीं ऐसी रंगी तेरी प्रीत के रंग में कि ये रंग अब उतरता ही नहीं हर रंग तुझसे, हर रंग तुझमें तुझसे ही है रंगीन दुनिया मेरी महज़ एक दिन के गुलाल से नहीं, रोज खेलूं तेरे संग मैं प्रेम की होली होकर तेरी डूब जाऊं तेरे रंग में, कि खतम हो फिर हर तमन्ना अधूरी परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
होली खेलत हैं कन्हाई
कविता

होली खेलत हैं कन्हाई

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** होली खेलन को आये हैं कन्हाई रंग और गुलाल लेके हैं छुपाई ग्वाल बाल संग लेके पिचकारी सखियन पर मारि‌ रहे हैं फुहारी प्रेम के रंग से गगन हुआ लाल राधिका, गोपिका सब हुई निहाल मधुमय मधुर रंग भरी यह होली ब्रज वनितायें सब उनकी होली परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वारा "हिन्दी रत्न" सम्मान से सम्मानित, मुक्तक लोक द्वारा चित्र मंथन सृजन सम्मान, महात्मा गाँधी शांति सम्मान आदि से सम्मानित। निरन्तर लेखन कार्...
आओ मिल जुल होली मनाएँ
कविता

आओ मिल जुल होली मनाएँ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** प्रेम के रंग में रंग जाओ भाई, होली परब पर आत्मीय बधाई| काम क्रोध लोभ मोह को जलाओ रे, अंतस मन अंहकार को दूर भगाओ रे| यही संदेश देते शुभ घड़ी आई..... ईर्ष्या जलन द्वेष भाव को दफनाओ रे, समाज में फैले कुरीतियों को भगाओ रे| जीवन की यही असली सच्चाई ..... बुराई हराकर अच्छाई के हार पहन लो, दया प्रेम करुणा का गहना अपना लो| परिवार सुसंस्कारी बनाओ भाई ..... चोरी नशा दुराचार भष्टाचार को मिटाओ, संवर जायेगा देश सदाचार को अपनाओ| संकल्पित भाव से ज्योति जलाई..... जल जंगल जमीन प्रकृति के अंग है, पर्यावरण मित्र बनो जीने के ढंग है| ‘धर्मेन्द्र’ फूलों की होली मनाई.... परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र...
विश्व शांति ….होली
कविता

विश्व शांति ….होली

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** रंग जिंदगी का हिस्सा है। रंग -बिरंगी दुनिया में रंगों का अपना किस्सा है। क्यों ....हम विश्व शांति हेतु प्रयास नहीं कर पाए हैं । लाल रंग की प्यास में अपनी धरती को, मनुष्यता के खून से लाल कर आए हैं। आओ सारे अपनी मेहनत से धरा को हरा-भरा बनाए। कोई पेट भूखा ना हो । विश्व से भुखमरी -लड़ाई झगड़ा हटाएं। रंग -बिरंगे रंगों से विश्व के जन-जन को सजाएं। शांति रूप सफेद रंग का परचम हम लहराएं। युद्ध खत्म हो यूक्रेन-रूस का, इस होली पर विश्व शांति होली दिवस मनाएं। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
आया बसंत बहार
कविता

आया बसंत बहार

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** आया बसंत बहार लेकर खुशियां अपार चारों ओर महकें फूलों की बैछार रंगो से सजे यह नवयौवन सा राग कोयल कुहके मधुर तान देखकर मन में उठे उमंग, उल्लास रंगो में पिरोए है भाईचारा एकता का मिशाल हरियाली छाई है नई विश्वास चारों ओर महकें एक ताजगी का एहसास देखकर मन भवर नाचने को है बेताब ऐसा है मेरा ऋतुराज बसंत बहार। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ह...
बीते लम्हें
कविता

बीते लम्हें

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बीते लम्हों में बचपन को जब भी याद करती हूँ अश्क आँखों से बहते हैं लबों पर मुस्कुराती हूँ हवाएं गुनगुनाती हैं और पत्ते सरसराते है मेरे माथे को छूता हाथ माँ का याद आता है पलों में रूठकर रोकर सखी से बात ना करना वो फिर से सुलह करना आज भी याद आता है बहन के केश सुलझाना उसे बातों में उलझाना लोरी से सुलाना भाई को आज फिर याद आता है वो बुहारना आँगन और फिर मांडना स्वस्तिक शालिग्राम पर तुलसी चढ़ाना याद आता है वो अमरुद की फांके और कच्चे बेर मुट्ठी में चुरा कर इमली का खाना आज भी याद आता है माँ संग काम का करना दबाना पैर बाबा के फिर खुद भी सो जाना मुझे अब याद आता है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
गृह वाटिका
कविता

गृह वाटिका

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** गृह वाटिका के पुष्प तुम, ऐसे ही खिलते रहना | मेरे जीवन का सार तुम, ऐसे ही दिखते रहना || गृह वाटिका.... आत्म मूल के अंकुर तुम, प्रस्फुटित होते रहना | श्वेद रक्त से सिंचित तुम, विकसित होते रहना || गृह वाटिका..... षड् ऋतु में मेरे पुष्पो तुम, सुगंधित सदा ही रहना | धरा तपे या शीतलहर हो तुम, प्रमुदित सदा ही रहना || गृह वाटिका..... ताप सहन कर ग्रीष्म का तुम, बर्षा में खिलते रहना | और सहन कर शीतलहर तुम, बसंत में खिलते रहना || गृह वाटिका.... गृह वाटिका के पुष्प तुम, ऐसे ही खिलते रहना | मेरे जीवन का सार तुम, ऐसे ही दिखते रहना || गृह वाटिका..... परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आचार्य, बीएड टीजीटी (संस्कृत) दिल्ली प्रशासन निवासी : विनोद नगर (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वर...
पूनम की सर्द रात
कविता

पूनम की सर्द रात

श्रीमती राधा दुबे जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँदनी की छाँव तले जगमग-जगमग दीप जले पूनम की सर्द रात का एहसास अँधेरे में उजाले का उजास क्यों बैठे हो उदास यह तो है प्रेम का एहसास यही उजाला जगाता मन में विश्वास बाँधे हुए रेशम की डोर झूमे-नाचे मन मोर आओ कुछ दूर साथ चलें जगमग-जगमग दीप जले कार्तिक की पवित्र पूर्णिमा गीत गाती नारियाँ डुबकी लेते भक्त अपार श्रद्धा का है यह त्योहार सजे हुए हैं घाट, मेला लगा विराट यह तीज-त्योहार हैं भारत की पहचान यहाँ नदियाँ करती मोक्ष प्रदान जगमग-जगमग दीप जले परिचय :-  श्रीमती राधा दुबे सम्प्रति : पत्रकार, साहित्यकार, समाजसेवी निवास : जबलपुर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
होली
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होली

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** रणघोष हुआ, आगाज हुआ, देखो आया फागुन का महीना, लाया खुशियो की बोहार, देखो-देखो आया होली का त्योहार, आई सबके होठो पे मुस्कान। कोई पिचकारी लाया, तो कोई ले आया गुलाल, क्या खुब लगी गुलाल, सबके चहरे हुए लाल, देखो-देखो आया होली का त्योहार। सभी रंगे एक दूजे के रंग मे, क्या सुन्दर दृश्य हुआ रंगो के रंग मे, देखो -देखो आया रंगो का त्योहार, लाया खुशियो की बोहार। रणघोष हुआ, आगाज हुआ होली है ... होली है ... परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
होली का रंग
कविता

होली का रंग

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** सोनू रंग भरी लंबी पिचकारी लिए घर के बाहर अकेला उतावला होकर खड़ा प्रतीक्षा कर रहा था कि कोई दोस्त या जान-पहचान वाला पास से निकले तो वह उन्हें रंग दे। उसी समय एक बुजुर्ग अंकल को आते देख उसने अपनी पिचकारी नीचे कर दी। अंकल ने प्यार से पूछा, "क्यों बेटा, अभी तक तुमने किसी के साथ रंग नहीं खेला?" "नहीं अंकल", सोनू ने मासूमियत से सिर को हिला दिया। "आओ बेटे, मेरे ऊपर रंग डाल दो," अंकल ने पुचकार कर कहा। "नहीं अंकल, मैं आपको जानता नहीं हूं, आपके ऊपर रंग डालूंगा तो आप बुरा मान जाएंगे," सोनू बोलकर दुविधा में पड़ गया। उसे परेशान देखकर अंकल बोले, "बेटा, होली है, आज कोई अजनबी नहीं होता है, तुम मेरे ऊपर जी भरकर रंग डाल दो।" सोनू ने खुश होकर, पिचकारी को तानकर अंकल के साफ कपड़ों को रंग से सराबोर कर दिया। अंकल सोनू के सिर पर आशीर्वाद का हाथ र...