सावन
डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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मेघ आच्छादित नभ क्षितिज तक,
झर- झर बरसती काली घटाएं,
मन विकल करती शीतल बूंदें,
हिय को झकझोरती चंचल पुरवाई।
यह सावन भी बड़ा बेदर्दी है,
खेलता है कभी पलकों से,
अल्हड़ फुहारें जला देती है
तन से मन तक उदासी की अगन।
भरी बरसात में दहन उठता है
अलाव उनकी यादों का,
नीम की डाल पर तड़प रहा है
झूला आंगन में, मेरे साजन का।
हुई थी बात कल रात सैनिक से,
बाढ़ राहत शिविर में लगा हूं,
बोलें थे बड़े रुआंसे होकर...
यह सावन बड़ा बेइमान है।
बरसते हैं बादल जी भरकर,
प्रति वर्ष सजीले सावन में,
बहती है यौवन से परिपूर्ण नदी,
लेकिन मिटती नहीं मन की प्यास।
अधूरी रह गई गत वर्ष की भांति,
इस वर्ष भी चाह झूला झूलने की
चल पड़ी गांव के पोखर पर चादर,
आत्मा फिर भी प्यासी की प्यासी।
परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्य...