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कविता

पुरानी बातें
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पुरानी बातें

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** कागज़ के एक टुकड़े पर, कुछ लिखी पुरानी बातें हैं। जो स्वर्णिम आखर सी अंकित, नटखटी-नटखटी यादें हैं। जिसमें है उल्लेख वही। अखियां जिसमें देख वही। उस से ही, आखर, शब्द बना, हाँ-हाँ, पूरा है आलेख वही। उसका रूठा, उसका पूछा, वो हंसती, गाती रातें हैं। कागज़ के एक टुकड़े पर, कुछ लिखी पुरानी बातें हैं। उसकी हया, अदाएं हैं। वो फूल सी नाज़ुक बांहें हैं। वो नज़्म मोहब्बती गानों का, जो मिलकर गुन-गुनाएं है। वो चुपके-चुपके मिलने का, अधुरी मुलाकातें हैं।। कागज़ के एक टुकड़े पर, कुछ लिखी पुरानी बातें हैं। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
एकता में शक्ति है
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एकता में शक्ति है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सदा संगठन में जो रहते, ताकतवर हो जाते। चूहे अगर एक हो जायें, बिल्ली को धमकाते। आधी सदा एक की ताकत, दो की होती चार गुना। मिल जाते दस बीस साथ में, होती तभी हजार गुना। एक अकेला थक जाएगा, मिलकर हाथ बढ़ायें। जो दुर्बल हैं उन्हें सहारा, देकर शिखर चढ़ायें। करें एकता का जो पोषण, उनको कौन डराता। ताकतवर दुश्मन भी उनको, कभी हरा ना पाता। जब भी कोइ अकेला होता, साहस घट जाता है। जैसे कोइ अकेला कागज, झट से फट जाता है। बूंदें भी नदिया में बहकर, हैं सागर बन जाती । फसीं, जाल में मिलकर, चिड़ियाँ, जाल सहित उड़ जातीं। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, सब इस की संताने। बन जाते भारत की ताकत, सारी दुनिया जाने। रहें एकता में सब मिलकर, हिंदुस्तान हमारा। गर्व करें अपने भारत पर, है प्राणों से प्यारा। परिचय :...
जीवन संरक्षण
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जीवन संरक्षण

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** ये अविष्कार या फिर विकार? सुविधा में कितनी दुविधा है। संचार दूर, संग्राम बिना क्यों? तड़प मर रही चिड़िया हैं?? ये जितना बढ़ता जाएगा उतना कोहराम मचाएगा.. अभी पक्षी मगर कल मानव भी इसका शिकार बन जाएगा। विष कम हो या फिर ज्यादा हो पर असर अवश्य दिखाएगा जीवों के जीवन से खेला इंसान सजा तो पाएगा.... ये 4जी, 5जी बन्द करो जीने दो उनको जीने दो सुन्दर सृष्टि की मधुर छटा का जीवन अमृत पीने दो.... आख़िर क्यों उनसे छिनी जा रही प्रेम-दया की छैयां है? चुन-चुन दाना नहीं खिलाती दिखती नहीं गौरैया है? निर्दोष तुम्हारा क्या लेते?? बस कलवर गान सुनाते हैं वनस्पति के बीज भूमि पर पक्षी मित्र बिखराते हैं... कर्जदार तो नहीं हैं वो जो देकर जान चुकाते हैं... मासूम दण्ड किस बात वो अब मृत्युदण्ड से पाते हैं?? परिचय :- अर्चना पाण्डेय ग...
दो चाँद उतरे मेरे अंगने
कविता

दो चाँद उतरे मेरे अंगने

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज दो चाँद उतरेंगे मेरे अंगने शारदीय सुधा बरसने की बेला करवाचौथ की मैं बाट जोहूँ अंगना सजाऊँ व चौक पुराऊँ सखियाँ बुलाऊँ, बधाई बटाऊँ महावर लगाऊँ मैं मेहँदी रचाऊ लाल चूनर में अब सितारे जड़ाऊँ घेरदार लहंगा नई चोली मँगाऊँ टीको बिंदी नथनी झुमके मंगाऊँ मंगलसूत्र में मेरे हीरे मोती जड़ाऊँ सोने के भुजबंद करधूनि लटकाऊँ गोरे गोरे हाथों में चूड़ियाँ खनकाऊँ मुंदरी पे बलमा का नाम लिखाऊँ रुनझुन पायल बिछिया झमकाऊँ ऊँची अटारी पर बैठके इतराऊँ इंद्रधनुषी करवे माटी के मंगाऊँ मेवा बतासा से पूरे ही भराऊँ चाँदी की चलन खूब सजाऊँ हलवा पूरी भोग थाल सजाऊँ निर्जल रह पी की उमर बढ़ाऊँ सौलह श्रृंगार कर वारी जाऊँ हँसी ठिठौली, घड़ियाँ बिताऊँ साजन के रंग में मैं रंग जाऊँ पूजन थाल मगन हो सजाऊँ दीए में प्रेम की बाती जलाऊँ चलनी में पि...
सदा सुहागन रहो
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सदा सुहागन रहो

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** रहो सुहागन बहनों तुम देते रहे आशीष सभी तुम्हें भर के मांग, लगा के बिंदी लगा के टीका, लगा के मेहंदी पहन के नथ, पहन के बिछिया छनका के पायल, बजा के कंगना नैनो में लगा काजल, कर सोलह श्रृंगार रख व्रत करवा का, पति की खातिर सुन कहानी, करके दान-दक्षिणा शिव-पार्वती की कर पूजा करके नमन बड़ों को, ले आशीष उनसे सदा सुहागन का, पति की लंबी उम्र रहो सदा सुहागन बहनों तुम देते रहे से सभी आशीष तुम्हें परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्कर से रक्तदान प्रशंसा पत्र, सावित्...
यूँ ना बदला करो
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यूँ ना बदला करो

डॉ. दीपा कैमवाल दिल्ली ******************** मौसम की तरह आप यूँ ना बदला करो आ जाओ लौटकर अब यूँ ज़िद्द ना करो।। हो रही देर अब यूँ न रुसवा करो मुँह से कुछ तो कहो चाहे शिक़वा करो। मुखातिब हूँ मैं तेरी मजबूरियों से ना चाहकर भी हैं दरमियाँ जो उन दूरियों से। काली ज़ुल्फ़ों में बिखर आई है अब चांदनी जाने से पहले हाले बयां कुछ करो। दे जाए सुकूं ऐसा कुछ तो कहो आती-जाती सांसों से छल अब ना करो। इम्तिहां हो गयी अब तो आके मिलो दिल-ए-नाचीज़ से आज कुछ तो कहो। जो दिया था कभी तुम्हे वक़्त उसकी कद्र कुछ तो करो मौसम की तरह यूँ ना बदला करो..... छोड़ो जाओ हमे बात करनी नहीं आपका होना नहीं आपमें जीना नहीं अब मुलाक़ात की आरज़ू करनी नहीं। है बदल जो गया उसमें खोना नहीं उसमें जीना नहीं उसमें मरना नहीं भूलकर भी उसे याद करना नहीं। प्रेम पर लिख दिए चं...
दिल चाहता है
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दिल चाहता है

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** वक्त है जीवन संघर्ष का, हर हाल में साथ दूँ। कदम बढ़ा के आगे, तेरे हाथों में हाथ दूँ।। दिल चाहता है.... चाहे पीता रहूँ दर्द का घूँट, चाहे हो पीड़ा घनीभूत।। हरपल देखूँ तेरी मुस्कराता चेहरा, मेरी हर धड़कन में हो तेरा पहरा दिल चाहता है... तू चले कहीं तो बनके साया तेरे साथ चलूँ। रंग जाऊँ तेरे रंग में, लेके हाथों में हाथ चलूँ।। दिल चाहता है... तू छूले बुलंदी आसमां की, तुम्हें थामने तेरे पास रहूँ। सुन ले आवाज दिल की, तुझमें बनके एहसास रहूँ।। दिल चाहता है.. तेरी हर फिक्र की फिक्र करूं, तेरी उलझनों से वाकिफ रहूँ। तेरी हर दर्द को सीने से लगा, हर गम का बोझ सहता रहूँ।। दिल चाहता है... परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह र...
स्पर्धा
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स्पर्धा

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर कोई शख्स अपनों से स्पर्धा कर रहा है, सुकून छोड़ चिंता से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। जिंदगी की दौड़ में आगे निकल जाऊं, कमाने की होड़ में सबको पीछे छोड़ आऊं, स्वयं आगे हो कैसे उसे पीछे खींच लाउं।। कमाल है ना , हर कोई शख्स अपनों से स्पर्धा कर रहा है। ये सारी दुनिया बहुत सतरंगी है जनाब, सभी अपनों ने पहने हुए हैं बेहिसाब नकाब, आप नहीं कर सकते उनसे सवाल जवाब, कमाल है ना, हर कोई शख्स अपनों से स्पर्धा कर रहा है। आप शामिल हो गए अनभिज्ञ किसी स्पर्धा में, पता न चलेगा रहोगे अनजान इसी दुविधा में, प्रतिस्पर्धी बन जाओगे अनचाही प्रतिस्पर्धा में, कमाल है ना, हर कोई शख्स अपनों से स्पर्धा कर रहा है, सुकून छोड़ चिंता से प्रतिस्पर्धा कर रहा है।। परिचय :- दीप्ता मनोज नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्...
नारी का महत्व
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नारी का महत्व

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** जब मैंने जनम लिया, वहां एक *नारी* थी। जिसने मुझे थाम लिया, वो *जननी महतारी* थी।। जैसे-जैसे मैं बढ़ा हुआ, वहां भी एक *नारी* थी। खेली कूदी और मदद की, वो मेरी *बहन* प्यारी थी।। बड़ा हो करके शाला गया, वहां भी एक *नारी* थी। पढ़ाई लिखाई खूब करायी, *शिक्षिका* भविष्य सॅंवारी थी।। जब भी मैं निराश हुआ, वहां भी एक *नारी* थी। जीवन से मैं कभी ना हारा, *महिला मित्र* न्यारी थी।। प्रेम की आवश्यकता पड़ी, वहां भी एक *नारी* थी। हमेशा जीवन साथी रही, *धर्म पत्नी* परम प्यारी थी।। जब भी गोद में हलचल हुई, वहां भी एक *नारी* थी। मेरे व्यवहार को नरम किया, वो मेरी *बेटी* दुलारी थी।। नौ दिन में नौ रुप उजियारे, वहां भी एक *नारी* थी। नौ रात्रि में नौ स्वरुप सॅंवारे, *दुर्गा* शेर पे सवारी थी।। जीवन की कला...
हवाओं में बिखरने दो
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हवाओं में बिखरने दो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे हवाओं में बिखरने दो मुझे हवाओं की नजाकतोंमेंं घुले विष को निगलने दो। इन गमगीन सी बयारों से नीरस अहसासों को समेटने दो, फिर सुमन का सुमधुर इत्र बनकर मुझे हवाओं मेंं महकने दो । मुझे हवाओं में बिखरने दो। तपती गर्मी के ताप से झुलसती लूओं के झोकों मेंं चंद्रमा की शीतलता बनकर मुझे चांदनी बिखरने दो। मुझे हवाओं में बिखरने दो। हाड़ चीरते शीत मेंं सूर्य की ऊष्मा बनकर मुझे (जीवन को) राहत भरी सांस लेने दो मुझे हवाओं में बिखरने दो। आसुरी प्रवृत्तियों के प्रदूषण से आत्मशुद्धीकरण हेतु पंचतत्त्व से निर्मित देह को नभ-जल-थल, पावक-पवन के हवन कुंड में मुझे आहुति बनकर बिखरने दो। मुझे हवाओं मेंं बिखरने दो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र ब...
बापू के प्रति
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बापू के प्रति

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** जनक थे भारत के मोहन दास भारती माता के, सतत कर्म से करमचंद तुम राष्ट्र गीत गा गांधी थे। दिला आजादी भारत भू को स्वयं की आंखें मूंद ली, जिन्ना ने बंटवारा कर थी मझधार में कश्ती डाली। तुम तो चले गए हो बापू अपने कर्म से जग के पार, फट रहे हैं आज बारूद तेरे पूत हैं विकट द्वार। गांधी ! भारत त्रस्त था तुमने पथ प्रशस्त किया, अहिंसा की अद्भुत लाठी से फिरंगी को आगाह किया। सत्य ,अहिंसा, लोकसेवा तीन ध्येय थे रत्न तेरे, मांस मदिरा बिना स्पर्श के मातृ आज्ञा पालन की रे। वकालत को वृत्ति बनाकर दक्षिण अफ्रीका गमन किया, बीस वर्ष तक लड़ते-लड़ते जातिवाद बहु विरोध किया। भारत वापस आकर तुमने अहिंसा बल का प्रयोग किया, हिंदी संपर्क सूत्र बनाकर आजादी का बिगुल बजा दिया। तुमने हमें सूत्र दिया नमक बनवा चरखा कतवाया...
नई मोहब्बत
कविता

नई मोहब्बत

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जो चेहरे पर नकाब लिए फिरते हैं अक्सर वही मोहब्बत के आसार लिए फिरते हैं। बोलना है तो कुछ बोलिए जनाब क्यों ऐसे चेहरे पर मुस्कान लिए फिरते हैं। लबों से लब जोड़ ही लिए हैं तो बोलिए कुछ जनाब क्यों आंखों के इशारे किए फिरते हैं। लिखना है तो लिखिए हमें अपनी पलकों पर जनाब क्यों निगाहों से हमें चीर दिया करते हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
खुश रहो चहेरे से अपने यहाँ
कविता

खुश रहो चहेरे से अपने यहाँ

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** मेरे होंसलो को यों कम ना कर, मैं चल रहा हूंँ दिल में तूफान लिए, बदल जाए जीवन का ढ़ग सारा, बढ़ रहा हूंँ दिल में अरमान लिए, रूकावटें तो रास्तों पर बहुत आयी मेरे, कर रहा हूंँ इंतजाम मंजिल पर पहुंँचने के लिए, ख़ामोश रहकर गुज़र जाए ये दिन, गमों को सीने से लगा लिया है ज़िन्दगी के लिए, खुश रहो चेहरे से अपने यहांँ दुनियाँ में, अंदर कौन ज़ख्म देखता है किसके लिए, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
मुस्कान सौंदर्य
कविता

मुस्कान सौंदर्य

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** अंग सौंदर्य आभा हीरक दिव्यमान। सुरलोक की अप्सरा मेरी मुस्कान।। काले कुंतल कमर झूले वृहद रेशमी। लट मुख शोभित घुंघराले लुभावनी।। सुरम्य मुख चंद्रमा की सोलह कलाएं। निशा की प्रहर जगमग करती लीलाएं।। कनिष्ठ कर्णफूल लटक कर टिमटिमाते। लाल भाल बिंदिया प्रिय देख शरमाते।। ग्रीवा शोभित मोती जड़ित नौलखा हार। प्रियतम दृश्य अंकित छवि झलका प्यार।। हस्त कोमल साजन नाम मेहंदी चित्रकारी। विश्व सुंदरी, मोहिनी लगती हो बड़ी प्यारी।। मानसरोवर हंसिनी सदृश कृश कमरिया। मोंगरा, चमेली की खुशबू लेता सांवरिया।। चंचल चाल मृगी चलती बन मिस इंडिया। मैं छूलूं तुझे और पालूं तब आए निंदिया।। जिस दिन जब छुओगी आसमान की बुलंदी। तब मिलेगी सुख,शांति, अशोक, गर्व, आनंदी।। आपके जीवन में सदा खुशियों की बहार हो। चारों दिशाओं में तुम्हारी ही जय-जयकार ...
रोना
कविता

रोना

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** रोने में कोई बंदिश नहीं रोने में कोई मनाही नहीं रोने में टैक्स नही लगता रोने को कोई नहीं रोकता। जब इच्छा हुई रोलो रोना व्यक्तिगत भावना है आंसू हमारी संपत्ति है रोलो हल्के हो जाओ। सारी समस्याओं का हल रोना किसी को इससे आपत्ति नही रुंधे गले से रो, हिचकियां ले रो अविरल रो, सिसक के रो। आर्तनाद करो, चीख के रो छुपके रो, असहाय हो तो रो छाती पीट के रो, रुदाली बनो बेतहाशा, फफक के रो। रोना एक ऐसी कुंजी है जो हर विपदा से बचने हेतु राहत का ताला खोलती है रोना आंखों को धोता है रोना मन को निर्मल करता है। अश्रुसिक्त नयन सौन्दर्य सूचक, मनमोहक आकर्षण के द्योतक कमल नयन, मृगनयन रोने के पश्चात, मन में उत्साह, उम्मीद के संचारक आंसू, पुनः हंसी और मिलन का स्वागत करते हैं । परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवा...
दशहरा
कविता

दशहरा

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दस विकारो को जीत बढ़ चले प्रगति पथ पर जीत सार्थक तब, जब अछून्न रह सके जीत पर जब मरे विचारों का रावण तब दशहरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा संकल्प लेंगे नहीं हटेंगे अच्छाई की राह से दूर ही रहेंगे काम, क्रोध व लालच की चाह से पवित्र हो विचार तो स्वाभिमान जाग जायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा सत्कर्म की राह पर चलकर पायेंगे लक्ष्य को कर्म करके बताएँगे, जीवन के सब साक्ष्य को कर्मो से ही जीवन मे नित नया सवेरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा मन के गलियारे मे सज्जनता का होगा बसेरा अरमानो का नित होता हो जहाँ सुखद सवेरा ऐसे नर ही जग मे लक्ष्मी नारायण बन पायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा राम बनना है तो राम सा चरित्र बनाना होगा भीतर के रावण को खुद ही हमें मिटाना हो...
नवरात्रि और नारी
कविता, स्तुति

नवरात्रि और नारी

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** नारी जिससे देवता भी हारे काली जिससे स्वयं शंभु हारे द्रौपदी जिससे पांडव कौरव हारे वो स्वयं किल्ला कंकालिन तो आदि दुरगहीन माँ चण्डिका है कभी नरसिंह अवतार की भगिनी रतनपुर की माँ महामाया है राजा कामदल की आशापुरा वो डोंगरगढ़ बमलाई है वो बाबा बर्फानी की आरध्या नंदगहिन माँ पाताल भैरवी है वो बस्तर की माई महतारी देवी दंतेश्वरी शक्ति स्वरूपा है कोरबा की मंगल धारणी सर्वमंगला देवी स्वरूप है वो झलमाल गंगा मइया जैसे शीतल गांव-गांव की शीतला महारानी है। दुर्गम राक्षस मर्दानी देवी दुर्गा चण्ड मुण्ड संघारणी महिसासुरमर्दिनि है शशि शीश धारणी, त्रिनेत्र शोभनी वो त्रि देव पूजनीय माँ शक्ति है नारी है वो जग अवतारी वो सृष्टि की महतारी है। जिससे रावण, पांडव, राम, कृष्ण, विष्णु, स्वयं शंभु भी हारे है वो नारी है जिससे देवता...
जिद
कविता

जिद

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** वो जिद में अड़े रहे कि घर में लक्ष्मी आयी है, कुछ के मन में था कि खुशियां लायी है, पर उनके मन में था मुसीबत आयी है, पता नहीं किन मनहूसों ने कब से ये भ्रांतियां फैलायी है, वो जिद पर अड़े रहे लड़की है सिर्फ चूल्हा फूंकेगी, वो चूल्हा फूंकती रही, क़िताबों से हवा देते चूल्हे को, अक्षरों के भंडार लूटती रही, पर वह भी जिद पर थी अज्ञानता, निरक्षरता को चूल्हे में आग के हवाले निरंतर करती रही, फिर चुपके से सायकल चलायी, स्कूटी चलायी, कार चलायी, ट्रेन चलायी, एरोप्लेन चलायी, पर वो पुराने खयालात वाले का जिद अभी भी है लड़की चूल्हा फूंकेगी, जनाब अब तो अपने भंवर से बाहर आकर देख, तुम्हारे कलुषित अरमानों की धज्जियां उड़ाते हुए वो देश भी बखूबी चला लेती है, तुम्हारे दूषित संस्कार, ढकोसले, पाखण्डों को मटियामेट करती हुई, सार...
दो अक्टूबर दो पुष्प
कविता

दो अक्टूबर दो पुष्प

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** भारत-भू पर दो अक्टूबर। दो पुष्प अवतरित हो। भारत उपवन में खिले। पहले लाल बहादुर शास्त्री। दूजे महात्मा गांधी। दोनों पावन आत्माएं। भारत-भू पर श्रेष्ठ कर्म। करने आई, दोनों महान। विभूतियां दोनों का व्यक्तित्व। अद्भुत गुणों की खान। लाल बहादुर शास्त्री। विनम्र स्वभाव धनी। गुदड़ी के लाल। जय जवान जय किसान। नारा लगा दोनों का सम्मान। सदा किया। गांधीजी चले सत्य। अहिंसा मार्ग बापू कहलाए। करो या मरो नारा अपना। मौन रह सत्याग्रह कर। भारत स्वतंत्र करावाएं। अंग्रेजों की गुलामी से। अंग्रेजों को भारत से बाहर। खदेड़ भारत बापू बन गए। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
साथिया
कविता

साथिया

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** जीवन के विकट मोड़ पर , जब थाम लिया तूने मेरा हाथ .......!! सफर रहा मुश्किलो में भी, अपना हर मौसम में साथ-साथ .....!! बेदर्द जमाना लगाए बैठा था घात, सहते रहे हम दिलो पर आघात .....!! दिल करता हैं, चीर दू , अपने जिस्म के ज़खीरे को ...........!! और डाल के भीतर हाथ, मुट्ठी में भींच कर निकाल लूं .........!! उसे खींचकर बाहर औऱ , जोर से उछाल कर फेंक दू .........!! तुम्हारे पद - पंकजो में , फिर  तो यकीन होगा मुझ पर .......!! कि मुझे  तुमसे  बेइंतहा , मुहब्बत है जन्म -जन्मान्तर से ......!!! परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं म...
क्या है समाज…?
कविता

क्या है समाज…?

उषा बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** क्या है समाज...? मैं पूछती हु क्या है समाज ? लड़का- लड़की में भेदभाव करता है समाज... लड़को को आजादी और लड़की को बंधन में बाँधता है समाज...। मुँह पर तारीफ और पीठ- पीछे हीन बाते करता है समाज...। इक्कीस मी सदी के लोग यह कैसा जीवन जीते है ...... हर-पल समाज-समाज की रट लगाते रहते है...। मैं मानती हुँ... ! हर इंसान समाज के आधीन होता है... समाज क्या कहेगा यह सवाल सब के दिल में होता है...। अपनी इस सोच को मिलकर बदलते है...... एक आधुनिक एवं नवीन विचारशील समाज की रचना करते हैं...। परिचय :- उषा बेन मांना भाई खांट निवासी : वालीनाथ ना मुवाडा, जिला- अरवल्ली (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ की रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
ठहाके जनकपुर में
कविता

ठहाके जनकपुर में

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** जनकपुरी में सखी करें मजाक, राम लखन से करें तकरार। दशरथ के घर एक अचंभा? बिना पिता के भये संतान, खीर खाए पैदा बेटा भये, एक नहीं चार चार महाराज।। सखी सहेली करे ठिठोली, गजब खीर से हुए हैं पुत्र रत्न, दशरथ घर भयी संतान। हंसी मस्करी कर लक्ष्मण मुस्काने, गजब अचंभा जनक के घर का, हमरे तो माता के भय ललना, तुमरे जनक में नहीं माता-पिता से, पैदा भयी देखो संतान।। तुम्हारे यहां तो धरती उपजे है, खेती कर निबजे संतान। ले ठहाका लक्ष्मण मुस्काने, राम लला मंद-मंद मुसकाने, सखियों के चेहरे कुमलाने, सखी राम सब करें मजाक, जनकपुर में गारी खावे हे राम। "किरण विजय" कहे जनक सखी यू, हंसी-खुशी रहे युगल जोड़ी सरकार।। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं य...
सुन्दर कहानी
कविता

सुन्दर कहानी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बचपन की सुन्दर कहानी, एक राजा एक रानी और होते थे राजकुमार एवं राजकुमारी, कहानियाँ मासूम और प्यारी थी, उनका संदेश अर्थ पूर्ण होता था. निश्छल किरदार होते थे, कुछ ही बेकार होते थे, समय के साथ कहानियां बदली, उनके मायने बदले कहानी के कलाकार भी बदल गए ! अब तो है राग द्वेष की कहानी, अमीर गरीब की कहानी मरने मारने की कहानी, ऊंच नीच की कहानी इन कहानियों में गुम हो गई सच्चे जीवन की कहानी बाकी बची सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ की कहानी!! हर एक की है अलग और अपनी कहानी, पर कौन सुने किसी और की कहानी सभी हैँ अपने में उलझे से और अभिमानी, किसी को किसी की परवाह कहाँ, इंसान को इंसान से प्यार कहाँ काश हम लौट पाते उन्हीं पुरानी कहानियो और किरदारों में जिनमें डूब कर जीवन संवार लेते कुछ पल ही सही वापस बचपन को...
स्मृति
कविता

स्मृति

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** स्मृति के पथ पर तुमको खोज पाना थोड़ा कठिन था। फिर भी तुमको खोज पाया मैं स्वयं की आत्म अनुभूति में। स्मृति के पथ पर जो शेष रह गया था वो सब धुंधला-धुंधला सा ही था। फिर भी तुम को खोज पाया मैं स्वयं के आत्ममंथन में। स्मृति के पंथ पर तुमको भूल जाना नामुमकिन था फिर भी भूल कर भी न भूल पाया अंतर्मन में तुमको। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
क्या लिखूँ
कविता

क्या लिखूँ

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** काली कजरारी तेरी आंखों को लिखूँ। या फना होता तुम पे अपनी हालातों को लिखूँ। क्या लिखूँ? लटकती कानों में बाली को लिखूँ। या रसभरी होंठों की लाली को लिखूँ। क्या लिखूँ? मेहंदी से सजे खूबसूरत हाथों को लिखूँ। या कोयल सी मीठी बातों को लिखूँ। क्या लिखूँ? पहाड़ियों में बसा तुम्हारा गांव लिखूँ। या तेरी घनी बिखरी बालों का छांव लिखूँ। क्या लिखूँ? छन-छन करती तेरी पायल की झनकार लिखूँ। या तीर नजरों से घायल सीने के आर-पार लिखूँ। क्या लिखूँ? चाहता हूँ दिल की अपनी हर बात लिखूँ। सपनों के सागर में डूबा अपना जज्बात लिखूँ।। और क्या लिखूँ? दे दो हाथों में हाथ फिर एक नया आगाज लिखता हूँ। मिला दो सुर में सुर फिर एक नई आवाज लिखता हूँ।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह...