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कविता

मैं कहां हूं?
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मैं कहां हूं?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** सदियों से लेकर आज तक तुम्हारी व्यवस्था में बताओ मैं कहां हूं? सिसकते, दम तोड़ते, मायाजाल काटकर आज मैं यहां तक पहुंचा हूं, तुमने तो हमें पैदा ही पैरों से करवाया, हमें नीच, अधम, शुद्र बताया, व्यवस्था की कठोर लकीर खींच पग पग हमें तड़पाया, हांडी झाड़ू बांध हमारे तन से छाया, पदचिह्न तक को अपवित्र बताया, हम तब भी समझते थे और आज भी समझ रहे हैं कि तुमने हमें तन मन धन से तड़पाया, वो तो शुक्र है हमारे महापुरुषों का, जिन्होंने अलग अलग समय से हमें समझाते, जगाते आया, फिरंगियों के नेक पहल से हमने आंखें खोल देने वाला शिक्षा पाया, संविधान बनाया, हक़ अधिकार पाया, मगर फिर भी अपनी कुटिल चालों से हमें धर्म में उलझा हर शसक्त संस्थाओं पर कब्जा जमाया, अब राग अलाप रहे हो कि देश में सब कुछ ठीक है, कहते हर काम विधान नीत है तो बताओ आ...
सार्थक करें ये दीपावली
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सार्थक करें ये दीपावली

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घर की साफ़ सफाई संग करके दुर्गुणों की विदाई और मूल्यों के सतरंगों से जिंदगी की कर ले पुताई धनतेरस है धनधान्य भरे निज सेवकों का ध्यान रहे परम धरोहर सेहत अपनी इसकी कुंजी संभाल रखे रूपचतुर्दशी सँवारे जीवन नरकासुरों का संहार करें तन व मन दोनों हो सुंदर कुछ ऐसा ही प्रयास करें माटी के दीयों की जगमग अमावसी कालिमा को हरे खुशियों की फुलझड़ियाँ हो पर्यावरण का आव्हान करें गोवर्धन पूजा करते हैं हम पशुधन का परिपालन करें मीठा खाए व वैसा ही बोले बंधुता का अब श्रीगणेश करें भाईदूज पर तिलक लगे आत्मस्वरूप स्मरण करें महाभारती कलहों से परे रामायणी परंपरा शुरू करें दीप से दीप जलाएँ ऐसे मन का सब अंधकार हरे सब अच्छा, सब अच्छे हो आओ दिवाली सार्थक करें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं...
दीपावली की रंगोली
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दीपावली की रंगोली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मन के भाव कला बनकर जब, रंगोली बन जाते। रंगोली के विविध रंग तब, सबके मन को भाते। रंगोली की कला निखरती, कलाकार के कर से। रंगोली की छटा देख कर, जन-जन का मन हरसे। कई रंग से मिलकर बनता, इसका रूप निराला। सारे कौशल दिखलाता है, इसे बनाने वाला। अलग-अलग हैं भाव सभी के, अलग-अलग है बोली। अपने भावों को रँग देकर, बनती है रंगोली। कइ प्रकार बनती रंगोली, अलग अलग दिखती है, कोमलांगी अपने कर से, मनोभाव लिखती है। दीपोत्सव है पर्व अनोखा, मिलकर सभी मनाते। रंग बिरंगे दीप सजाकर, मोहक कला बनाते। सधे हुए हाथों से जब भी, रंगोली बनती है। हर कोने पर दिया सजाकर, दीवाली मनती है। दीप मालिका सजा, सजा कर, रोशन करते घर को। शांति संदेशा रंगोली का, गाँवों और शहर को। कइ वृक्षों के फूल बिखर कर, रंगोली बन जाती। ...
चैन से जीने की वो …
कविता

चैन से जीने की वो …

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** दौलत-शौहरत पास से सब, अब जाती रही, थी उम्मीद जिससे, वो उम्मीद भी अब जाती रही, गमगीन माहौल बना दिया, वक्त ने अब तो चारों और, तबीयत खराब रहने से, जीने की रोशनी भी अब जाती रही, दूर हो गये हैं सभी अपने,हालात देखकर अब यहांँ, आकर मिलने की उम्मीद, उनसे अब जाती रही, बनाई थी जो पहचान उम्र भर, ज़माने में यहाँ, वो पहचान भी पास से, दूर अब जाती रही, कभी हौंसला होता था, देखकर उनको भान, हालात देख उनके, मेरी हवा भी अब जाती रही, गम मुझे भी है ये सब हो गया, नज़रों के सामने, मेरे दिल की भी वो उमंग, अब जाती रही, ना कर्जदार बनाना, ए ख़ुदा ज़माने का कभी, चैन से जीने की वो फितरत भी, अब जाती रही, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
कुम्हार के दीये
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कुम्हार के दीये

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** पीढ़ियों से पुरुखों की विरासत बढाने। मिट्टी से बने दीये कंधों में सम्भाले।। सुख शांति की कामना लिए दीवाली में उमंग के पल। द्वार तेरे दीपों से सजाने, निकल पड़े हैं आजकल।। जगमगाती दीपों के पर्व में, उनके होंठों पे मुस्कान दे दो कुम्हार के दीये ले लो.. तामझाम रौनक बाजारों में, तुम्हें मिट्टी के दीये रास आ जाये। तुम्हारे महल की रोशनी से, उनके अंधेरे घरों में प्रकाश आ जाये।। खुशियों की आश लिए बाहों में, बैठ जाते हैं चौक-चौराहों में। आशाओं के दीप जलाकर, बैठे हैं तेरे इंतजार में। खुशियों की सौगात दे दो। कुम्हार के दीये ले लो.. परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताए...
जीवन के संघर्ष
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जीवन के संघर्ष

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जो जीवन संघर्ष रहित है, वो जीवन क्या जीना। वह तन भी क्या तन है जिससे, निकला नहीं पसीना। बिना परिश्रम के मिल जाता, जिनको चाँदी सोना। नहीं ठहरता वह जीवनभर, उसको पड़ता खोना। संघर्षों से जो घबराते, कायर कहलाते हैं। अवमूल्यन होता समाज में, मान नहीं पाते हैं। जो जीवन की बाधाओं को, लड़कर दूर भगाते। पाते वे सम्मान जगत में, सोया भाग्य जगाते। जीवन जीना सरल नहीं है, बाधायें पग पग हैं। साहस से जीवन की गलियाँ, रोशन हैं, जगमग हैं। करते हैं संघर्ष पखेरू, अंबर में उड़ जाते। मौसम चाहे भी जैसा हो, मधुर तराने गाते। छैनी और हथौड़े से जब, चोट बदन पर पड़ती। पत्थर बन जाता है मूरत, भोग प्रसादी चढ़ती। चढ़ते, चढ़ते गिरती चींटी, रुकती ना घबराती। करती जब संघर्ष अंत में, वह फिर से चढ़ जाती। पाँवों में ...
पर्व प्रकाश
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पर्व प्रकाश

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** झिलमिल-झिलमिल प्रकाश के पर्व पर जन-जन को हो बधाई। शुभकामना मेरी पहुंचे घर आंगन अमराई। शुभ संकेत स्वस्तिक निकले हर घर के आंगन में शुभ-लाभ का जोड़ा रचे हर घर की दीवारों में यही कामना मेरी हरदम आंगन-आंगन चंदन रोली।। नव वधु दीप थाल सजाए दीप ज्योति से भर जाए आंगन। बहना सजे, सजेें घर सारा और सजे मिताई रुनझुन, रुनझुन बाजे पैजनिया।। और बजे शहनाई।। शुभकामना मेरी पहुंचे घर आंगन अमराई। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही ...
आँखों की नमी
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आँखों की नमी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं आँखों के किनारों पर अटकी हुई नमी हूँ जो बाहर की दुनिया से अंजान हूं अन्दर सिमटना नहीं चाहती लेकिन भीतर के किनारों में कोई जगह अब बची नहीं खामोश हूँ कोई स्पन्दन नहीं मुझमे सारे रिश्ते नाते वहां जमा चुके हैं अपना डेरा आंसू इन रिश्तों की जकड़न से थरथरा रहे हैं दहलीज के दरवाजे बंद हो रहें हैं उस से जगह छोड़ने को कह रहे हैं बूँदों का अस्तित्व नमी में समा रहा है नयनों की नमी अब परिपूर्ण हो रही है.!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचना...
नाव
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नाव

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** घर आंगन जो बुहारे गए धूल भरी आंधी सूखे पत्तों संग कागज के टुकड़ों को बिखेर जाती पागल हवा। सूने आंगन में बुहार कर सोचता हूं कागज की नाव बना लू पानी से भरे गड्ढों को ढूंढता हूं। हम तो बच्चे थे तब कागज की नाव चलाते जल बचाएंगे तभी सब की नाव सही तरीके से चलेगी जल बचाएंगे तो ही आने वाली पीढ़ी के बच्चे नाव बनाना और चलाना भी सीख पाएंगे। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखन...
याद रखता है इंसा
कविता

याद रखता है इंसा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** स्याही और तासीर, वक्त की छाप अमिट है, मिलती रस धार जब, रंग जरूर बदलता है इंसा बधाई सोच की गली, बहुत तंग दिखती सदा, मजबूर सा वो किरदार, जुदा सा लगता है इंसा यूं तो सभी मानते, खुद को वक्त का सिकंदर, सराहे बिना और को, सिरमौर ही बनता है इंसा दुनिया एक सभी की, फिर भी कुछ अलग है, जरूरत मुताबिक ही, अब हाथ बढ़ाता है इंसा बोलने का रोग पले, और नशा ही बनता चले, वापस लौटता लफ्ज़ तो, परेशान करता है इंसा चाय चुस्की चाह सी, चहल चुहलबाज जिंदगी, ख्वाब हकीकत राह में, सुंदर पुल मांगता है इंसा खुदा की नेमत बीच, जिंदगी जायके का तड़का, तीखा कड़वा चटपटा मीठा, मर्जी चाहता है इंसा जिम्मेदारी पिंजरे से बाहर झांकने फुरसत नहीं, समझ और व्यवहार से, मुकाबला करता है इंसा लिख पढ़कर देख सुनकर कमाई जाती डिग्रियां, उम्रदराज सोच रहा, संस्क...
जगत मे कोई नहीं अब अपना
कविता

जगत मे कोई नहीं अब अपना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अपना-अपना जिसको है कहा जिसके बिन नहीं जाता है रहा निकला वह सब झूठा सपना जगत मे कोई नहीं अब अपना स्वार्थ के साथी बोले मीठे बोल स्वार्थ सिधते ही बोली अनमोल वो ही रुलाये माना जिसे अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना पुत्र-पुत्री, भगनी और नर-नारी आपतकाल मे कीजिये बिचारी धन दौलत के रहते सब अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना झूठा है जग झूठी इसकी माया खिलौना है यह माटी की काया हाड़-मांस मे प्राण तभी अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना बेमोल बिकते, ईमान और धरम मानवता नहीं हैवानियत है धरम रिश्तेदार मतलब तक ही अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी...
सिसकता इंसाफ़
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सिसकता इंसाफ़

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** सुबह से बैठे हैं आज साहब के इंतजार में, मेहनत छोड़कर आये थे वो समय गया बेकार में, घूम रहे जिम्मेदार लिए कैंची पद के धार में, विज्ञापनों में उपलब्धि गिना खुद को शाबाशी दे रहे हैं वो जो बैठे हैं सरकार में, साहब तनकर आ गया, मातहतों को चमका गया, भूखे लोगों के सामने ही लाये गये पकवान खा गया, पीड़ित लोगों ने अपना दुखड़ा सुनाया, सबको हड़काया, तुम सब शासन की योजनाओं के रोड़े हो, विरोध कर सारे नियमों को तोड़े हो, तुम्हारे सौ के एवज में एक-दो दे दे रहा हूं वो गनीमत है, यह दिया जा रहा सौगात तुम्हारे लिए खुशी तो हमारे लिए मुसीबत है, इस प्रकार से बैठक सम्पन्न होता है, रोते-रोते पीड़ित अपने श्याह पड़ चुके शरीर को बेमन से अपने घर तक ढोता है, पूरी की पूरी स्थिति साफ है, क्योंकि अब तो बुरी तरह से सिसक रहा इंसाफ है। ...
भोर
कविता

भोर

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** अहा! देखो खिड़की से बाहर। कितना सुंदर दृश्य गगन पूर्व दिशा। उदित सूरज अपनी लालिमा युक्त। किरणें फैला भोर होने का संदेशा लेकर आया। रवि निशा की विदाई करे। अरु उषा अभिनंदन करें। सारे संसार में अंतरिक्ष स्थित हो। धरा पर उजियाला फैलाने रवि आया। दिनकर ने हम सबको निंद्रा से जगाया। हम सबको जागृत कर। जीवन चक्रानुसार कर्म पथ पर। कर्म करने हम सबके उर उमंग। ऊर्जा भर जीवन पथ पर अग्रसर करने आया। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
जान पाओगे
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जान पाओगे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** नदी किनारे बैठकर देख रहा पानी को। उछल कूद करते हुए बहता जा रहा वो। देख दृश्य यह मानव समझ नहीं पा रहा। फिर भी अपने मन को क्यों विचला रहा।। आया जो भी यहाँ जाना उसे पड़ेगा। विधाता के चक्रव्यहू से उसे गुजरना पड़ेगा। भेद सके इसे तो खुशियाँ बहुत पाओगें। और उलझ गये इसमें तो बहुत दुख पाओगें।। खुद को जिंदा रखने कुछ तो तुम करोगें। फिर अपनी करनी का खुद फल पाओगें। और मानव मूल्यों को तुम समझ पाओगें। और अपने जन्म को स्वयं जान पाओगें।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्...
आसार
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आसार

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नफ़रत सोच समझकर करना मोहब्बत होने के आसार होते हैं। बात सोच समझकर करना इश्क से सब नासार होते हैं। दिल की बात सोच समझकर करना अपनों में भी कई गद्दार होते हैं। हमराही को हमसफर सोच समझकर बनाना धोखा मिलने के आसार होते हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां...
मिट्टी के दीप सजाओ
कविता

मिट्टी के दीप सजाओ

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** चाहता हूंँ सबके घर दीप जले, पर मेरे घर भी दीप जलाओ। इस मिट्टी के दीप बने जो, तुम अपने घर में सजाओ।। कितनी मेहनत से हमने, मिट्टी रौंदा चाक घुमाया। तपती धूप जली अंगारा, तन-मन हमने झुलसाया।। दीपक के न मोल लगाओ, पर मेरे घर भी दीप जलाओ। ममता भरी कहानी कहती, बेटी तुम मिट्टी के दीप बनाओ।। कुबेर घरों में सजेंगे लड़ियां, चका-चौंध की है दुनिया। इस मिट्टी के मोल हैं क्या, कहती है ये सारी दुनिया।। इसकी शुद्धता जो जाने, रोग रहित परिवेश हो मानें। आर्यावर्त संस्कृति दिखे, इस मिट्टी के दीप से मानें।। धर्म परंपरा में दिखे विज्ञान, दीपोत्सव में छुपे ज्ञान से। कहे कवि "राधे" मनसे, मिट्टी के दीप जलाओ मनसे।। चाहता हूंँ सबके घर दीप जले, पर मेरे घर भी दीप जलाओ। इस मिट्टी के दीप बने जो, तुम अपने घर में सजाओ।। पर...
बाल-विवाह
कविता

बाल-विवाह

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** बाल-विवाह है सामाजिक कुरीति, जड़ से इसे हमें मिटाना है, जला कर मशाल गांव-शहर में, सबको जागरूक बनाना है, बच्चियों के जीवन से, खिलवाड़ यहांँ पर होता है, छोटी उम्र में शादी के कारण, शारीरिक, मानसिक शोषण होता है, थे खेलने- पढ़ने के दिन जिनके, लाचार बना कर अब छोड़ा है, कम उम्र में कर शादी कर, बीमार बना कर छोड़ा है, अनगिनत लड़कियां यों ही, बेमौत ही मारी जाती है, है अभिशाप बाल- विवाह, इसकी भट्टी में जल जाती है, उठो जागो ए माताओं- बहनों, जागो मेरे देश के युवाओं, देश में अब अलख जगानी है, बाल -विवाह ना हो भारत में, इस पर मिलकर रोक लगानी है, लेकर दीये -मशाल हाथ में, संदेश घर-घर फैला दो, बाल- विवाह ना हो भारत में, इस पर अब रोक लगा दो परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्...
स्वयं की व्याकुलता
कविता

स्वयं की व्याकुलता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सोच सोच कर मन व्याकुल कितना हो गया। भेजा जिसने मुझको क्या वो ही पालेगा? प्रश्न बहुत जटिल है पर हल करना होगा। इसलिए विश्वास हमें उस पर रखना होगा।। बैठ दुनियाँ के मंच पर देख रहा दुनियाँ को। क्या क्या तेरे सामने आज कल हो रहा है? फिर भी मन तेरा नहीं पिघल रहा है। और खुद को तू मानव कैसे कह रहा?? बदलो खुद को तुम, तो दुनियाँ भी बदलेगी। जो कुछ तुम कहते हो खुदको करना होगा। देखेगा जो तुम को वो भी निश्चित बदलेगा। देखते ही देखते हमारा ये समाज बदलेगा।। परिभाषा मानव की क्या कोई समझायेगा? मानव का मानव से रिश्ता जोड़ पायेगा। या खुद ही इस प्रश्न का उत्तर बन जायेगा। तब जाकर शायद तू मानव परिभाषा बता पायेगा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से ...
तू शरद के चांद जैसी
कविता

तू शरद के चांद जैसी

शिव चौहान शिव रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** तू नदी की अविरल धारा मैं उथला-सा पोखर हूं तू प्रेम की क्लिष्ट भाषा मैं सरल-सी बोली हूं तू नयन में सपने बुनती मैं हकीक़त दर्पण हूं तू गगन में उड़ती रहती मैं पगडंडी विचरण हूं तू शरद के चांद जैसी मैं ग्रह में मंगल हूं तू प्रेम गंध महके जैसे मैं पसीने तर-तर हूं तू अनुराग है गीत भ्रमर-सी मैं कबीर की वाणी हूं। परिचय :-  शिव चौहान शिव निवासी : रतलाम (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कव...
दीपोत्सव
कविता

दीपोत्सव

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** किसी जगह पर दीप जले अरु कहीं अँधेरी रातें हों । नहीं दिवाली पूर्ण बनेगी, अगर भेद की बातें हों ।। ऐसे व्यंजन नहीं चाहिए, हक हो जिसमें औरों का । ऐसी नीति महानाशक है, नाश करे जो गैरों का ।। हम तो पंचशील अनुयायी, सबके सुख में जीते हैं । अगर प्रेम से मिले जहर भी, हँस करके ही पीेते हैं ।। चूल्हा जले पड़ोसी के घर, तब हम मोद मनाते हैं । श्मशान तक कंधा देकर, अन्तिम साथ निभाते हैं ।। किन्तु चोट हो स्वाभिमान पर, जिन्दा कभी ना छोड़ेंगे । दीप जलाकर किया उजाला, राख बनाकर छोड़ेंगे ।। दीपोत्सव का मतलब तो यह, सबके घर खुशहाली हो । दीन दुखी निर्बल के घर भी, भूख मिटाती थाली हो ।। प्रथम दीप के प्रथम रश्मि की, कसम सभी जन खायेंगे । दीप जलाकर सबके घर में, अपना दीप जलायेंगे ।। घर घर में जयकारा गूँजे, कण कण में खु...
भारत को सोने की चिड़िया बनानां हैं
कविता

भारत को सोने की चिड़िया बनानां हैं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** भारत को सोने की चिड़िया बनानां हैं भ्रष्टाचार को रोककर सुशासन को आखरी छोर तक ले जाना हैं हृदय में ऐसा जज्बा लाना है सरकारों को ऐसी नीतियां बनाना हैं साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाना हैं संकल्प लेकर सुशासन को आखिरी छोर तक ले जाना हैं भारत को परिवर्तनकारी पथ पर ले जाना हैं सबको परिवर्तन का सक्रिय धारक बनाना हैं न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन प्रणाली लाना हैं सुशासन को आखिरी छोर तक ले जाना हैं भारतीय लोक प्रशासन को ऐसी नीतियां बनाना हैं वितरण प्रणाली में भेदभाव क्षमता अंतराल को दूर करना हैं लोगों के जीवन की गुणवत्ता कौशलता विकास में सुधार करके सुखी आरामदायक बेहतर ख़ूबसूरत जीवन बनाना हैं सुविधाओं समस्यायों समाधानों की खाई पाटना हैं आम जनता की सुविधाओं को अधनुतिक तकनीकी से बढ़ाना हैं ...
करवा चौथ
कविता

करवा चौथ

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आई-आई करवा चौथ आई। संग चौथ माता आशीष देने आई। मैं तो चौथ माता से वरदान मांगू। अखंड सौभाग्य का। मैं तो चौथ माता की पूजन अर्चन करूं। मस्तक झुका अपना सर्वस्व अर्पण करूं। अपनी झोली वरदानो से भर पूर्ण करूं। मैं तो चौथ माता से वरदान मांगू। अखंड सौभाग्य का। मैं तो करवा चौथ पर सोलह सिंगार कर। सर्वस्व समर्पण कर सच्चे हृदय से वंदन करूं। चौथ माता को रिझाऊं अरू प्रसन्न। करने का प्रयत्न सर्वस्व करूं। मैं तो पति के दीर्घायु होने के लिए। निर्जला व्रत रखूं। रात्रि चंद्रोदय होने पर चंद्र को अधर्य दूं। पति को रोली, चंदन, अक्षत, टीका लगा वंदन करूं। पति से आशीष पाऊं। अरू पति नाम का टीका, सिंदूर, महावर, मेहंदी, बिंदी लगाऊं। पायल, बिछिया, चूड़ियां पति। नाम की पहनूं। सदा पहनने का आशीष पाऊं। ...
करवा चौथ का व्रत
कविता

करवा चौथ का व्रत

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** आज करवा चौथ का व्रत था, भुला दिया हो उसने सब कुछ, पर मुझे वो क्षण याद था। वो उसका फोन- “हेलो ! कैसे हो तुम? मैं बिलकुल ठीक हूँ। मेरी आवाज को सुनकर तुम दुखी मत होना, याद करके मेरी, अपने आप को मत खोना, आज करवा चौथ का व्रत है! तुम्हारी आवाज सुनानी थी, माँग कर मन्नत माँ से, अपनी तक़दीर बुननी थी। किसी को कुछ नहीं पता ! सुबह से पानी भी नहीं पिया है। तुम्हें पाने का सुरूर मेरी आत्मा में घुल गया है। अच्छा ! मम्मी आती है फोन रखती हूँ, बसाकर मनमंदिर में तुम्हारे लिए दुआ करती हूँ। पर अब!!!! फोन की घंटी नहीं बजती !! और तुम्हारी कोई उम्मीद अब मेरे लिए नहीं जगती। लेकिन मेरे कानों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है, तुमने न सही, मैंने छलनी से चाँद देखा था। कहीं नहीं था चाँद! छलनी के हर छेड़ से तुम्हें द...
उजाड़ दिये हैं बहुत सारे घर इस शराब ने
कविता

उजाड़ दिये हैं बहुत सारे घर इस शराब ने

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** उजाड़ दिये हैं बहुत सारे घर इस शराब ने मयखानों में खो गई  है जिंदगी अब तो उसकी, लाखों की पी गया जो अब तक शराब वो यहांँ, आता है हर रोज़ शराब के नशे में घर अपने वो, बच्चे- पत्नी रहते हैं डर के  साये में उसके यहांँ, खुद का  होश  ना उसे पता अपने शरीर का, लड़खड़ाते कदमों से चला आता है वो यहांँ, रहने को ढंग का घर नहीं बनाया उसने अब तक, फिर भी नशें से  दिल लगाता है वो हर दिन यहांँ, बना ना सका बच्चों के नहाने,शौच की जगह वो, बस पीने का ही ख़्याल  रहता है उसको तो यहांँ, जिंदगी नर्क बना ली अपनी व बच्चों की उसने, संगती में  रख रखे हैं  अपने जैसे दो- चार यहांँ, उजाड़  दिये  है  बहुत  सारे घर इस शराब ने, देखता है वो हर तरफ ना सोचता अपने बारे में यहांँ परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घो...
गोद
कविता

गोद

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** गोद सा सुंदर नहीं बिछौना, नहीं गोद सी आसंदी गोदी मात-पिता या प्रभु की, गोद सी न्यारी नहीं स्थिति नहीं गोद सी रक्षित डाली, गोद की नरमी सदा निराली निश्चिन्त भाव से लेटा बालक, करे किलोलें, माँ मतवाली गोद की महिमा उसकी अपनी, गोद की गरिमा उसकी अपनी गोद का हक़ भी उसका अपना, गोद का ऋण भी उसका अपना गोदी का सुख सबने पाया, कोटि जन्म लेकर वो आया पर गोदी का ऋण, उतार नहीं कोई पाया गोदी ने ध्रुव को दी छाया, उसे प्रभु की गोद बिठाया रक्षक बनी गोद होलिका की, जिसने प्रह्लाद बचाया नरसिंहप्रभु की गोदी में, मोक्ष हिरणकश्यपु ने पाया सम्मान गोद ने जग में, स्थान राजपद का भी पाया गोदी का मर्म शिशु ही जाने, उसकी ममता वो पहचाने उसकी गरमाहट बल उसका, खेल करे जाने अनजाने गोद का आसन बड़ा हि प्यारा, इसके नेह में डूबा ज...