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कविता

इम्तिहान
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इम्तिहान

बबीता कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** जीवन में कभी खत्म नहीं होता है इम्तिहान एक के बाद एक आता रहता है इम्तिहान वाकई जिन्दगी भरी हुई है इम्तिहानों से। यूजी के बाद हो पीजी सेट हो या हो नेट हमें देना पड़ता है इम्तिहान वकई जिंदगी भरी है इम्तिहानों से। जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए हमें पार करनी पड़ता है हर एक इम्तिहान सच के लिए तो कभी सच सामने लाने के लिए हमें गुजरना पड़ता है इम्तिहानों से वाकई जिंदगी भरी हुई है इम्तिहानों से। परिचय :- बबीता कुमारी निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
रिश्ते कारोबारों से…
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रिश्ते कारोबारों से…

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** हुनर नहीं, नहीं चरित्र नहीं। नहीं भावना विचारों से। अब रिश्ते होते देखें हैं, मैंने, कारोबारों से । कितना है? क्या ओहदा है ? सबका लेखा-जोखा है। छानबीन कर बात करेंगे, घर-घर में ये सौदा है । लगते हैं दामों पर दाम, जैसे, वस्तु खरीदें बजारों से, अब रिश्ते होते देखें हैं, मैंने, कारोबारों से । इल्म नहीं, गठबंधन क्या है ? कीकर क्या चन्दन क्या है ? अब तो है बस, शानो-शौकत, आखिर, रिश्तों का मंथन क्या ? किसको वक्त है? समझौते का, कौन लड रहा मझधारों से? अब रिश्ते होते देखें हैं, मैंने, कारोबारों से ।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
दोस्त
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दोस्त

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। कुछ दोस्त उसके। फरेबी चेहरों को वो जान ना पाया। मतलबी इरादों को भी भाप ना पाया। जिसने किसी ने भी चेहरा दिखाया। सच दोस्तों का उसे कभी ना नज़र आया। कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। बार-बार धोखों को नजरअंदाज करता रहा। सबको अपने जैसा समझ माफ करता रहा। सोचता था .... रब सब देखता है। फिर क्यों अच्छे लोगों की जिंदगी में बुरों को भेजता है। जिंदगी के सुख-चैन से इस तरह से आराम से खेलता है। कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। काश!!!!! वक्त रहते समझ जाता। झूठे चेहरों पे विश...
काव्य व्यथा
कविता

काव्य व्यथा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कविता की पंक्ति एक, कवि कोई लिखता है रख जेब में पेंट की, कवि भूल जाता है। धोबी घाट गया पेंट, कविता पंक्ति पाता है वो कविता की लाइन, आगे लिख जाता है। कवि अपने पेंट को, हाथ डालता जेब में भूली पर्ची पंक्ति अब, आगे लिखा पाता है। अज्ञात कवि जिक्र को, मित्र को सुनाए कवि बढ़ी पंक्ति लिखा कौन, याद नहीं आता है। कविता तो बढ़े आगे, लेखक ही अज्ञात है रचना नई पंक्ति की, फिक्र करे कवि सदा परेशान तो मित्र भी, पंक्ति रचनाकार को जाने कब याद आए, शीघ्र बताता नहीं। पहली दूसरी पंक्ति तो, कवि पहचान लाए एक शब्द भाव पूरा, बता ऐसे जाती है। कवि नाम प्यास देखी, मित्र इंतजार करे कविता चिंता फिक्र तो, कवि को सताती है। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साह...
रहने दो
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रहने दो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कुछ ख्वाब कुछ यादें मुझ में रहने दो न मिल सको तो न मिलो खुद को मुझ में ही रहने दो। बीता हुआ वक्त और बीती हुई बातें कभी लौट कर नहीं आती, मगर फिर भी उन यादों को मुझ में सिमटे रहने दो। जो भूल चुका है उसे भूलाने दो फिर भी तुम अतीत में बिखरी हुई भूली हुई यादों को मुझ ही में रहने दो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
अंधेरा अच्छा नहीं साहब
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अंधेरा अच्छा नहीं साहब

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ ******************** सदियों से अंधेरे में रहे हैं, पल पल तकलीफें सहे हैं, कभी किसी से कुछ नहीं कहे हैं, हमने कभी किसी का रक्त नहीं बहाया पर पग-पग हमारे रक्त बहे हैं, हम कोई रात्रिचर जंतु जानवर तो नहीं कि अंधेरा हमें पसंद हो, हमने कभी नहीं चाहा कि किसी के साथ हमारा द्वंद्व हो, अपने हिसाब से रहने की, अपने हिसाब से चलने की, इतराने की, मचलने की, हमारी भी इच्छा रही है, पर तब हम पर जबरन अंधेरा थोपा गया था, काले विधानों के जरिए हमारे पीठ में छुरा घोंपा गया था, अंग्रेजों से आजादी आप लोग पा गये, लेकिन हम तो वहीं के वहीं रह गये, आपका छप्पन भोग जारी है अपने हिस्से अभी भी अंधियारी है, इसके लिए आपकी वहीं पुरातन सोच जिम्मेदार है, आपके सोच बता रहे हैं कि अभी भी आप मानसिक बीमार हैं, चार दिनों तक इस थोपे गये अंधेरे में रहकर देखिये, तब आप ...
मेरे दादा (पिताजी)
कविता

मेरे दादा (पिताजी)

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दादा मेरे थे, मेरी जान से प्यारे, दुनिया से निराले, सपनों में कभी आते नहीं दूर एक गाँव में उनका निवास था खलिहान खेत रोज़ जाना उन्हें भाता मजदूरों से भी प्यार जताना उन्हें आता भूखा न किसी को कभी रखते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में सूरज से पहले उठना अच्छा उन्हें लगता रंभाती हुई गायों को दुहते थे सुबह शाम सहलाते हुए लाड़ जताते बहुत ही थे छोनों को खूब दूध पिलाते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में थाली में गरम दाल व ज्वार की रोटी हर चीज़ बड़े शौक से खाते सभी जगह ऊपर से उन्हें नमक नहीं चाहिए कभी नखरे नहीं खाने में दिखाते मेरे दादा ऐसे थे मेरे दादा.... सपनों में दुख दर्द दास्ताँ लिए सब लोग आते थे काँधे पे हाथ रखकर समझाते सभी को कचहरी भी रोज़ लगा करके बैठते कुछ चाय नाश्ता भी कराते मेरे दादा ऐसे थे मे...
द्वार-द्वार दीप जला लो
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द्वार-द्वार दीप जला लो

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** द्वार-द्वार में दीप जला लो। आगोश में आई खुशहाली।। घर-आंगन को महका लो। मिल के मना लो दीवाली।। हर सीने में प्रेम का साज लिए। हंसी खुशी का मन में राग लिए।। हर गली की दुकानें हैं सजने लगे। जगमगाते नए रंग में दिखने लगे।। टिमटिमाते बिजलियाँ फूल मालाएं, शोभा बढ़ गई है बाजारों की। आसमां से उतर आई हो जैसे, बारात चाँद-सितारों की।। चौमास कड़ी मेहनत खेतों में। आज खुशी से झूम रहे किसान।। बारहमास पेट की भूख मिटाने। धन-धान्य से भर रहे खलिहान।। अलबेलों की आतिशबाजियां, आकाश में गुंजायमान है। सर्वधर्म समभाव समाया, देखो मेरा भारत महान है।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
जय मध्यप्रदेश
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जय मध्यप्रदेश

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की। चंदन जैसी सौंधी पावन, माटी मध्यप्रदेश की।। विक्रम नगरी यहाँ भोज की, बहे सुधा रस धार है। दुर्गावती अहिल्या की भी, फैली कीर्ति अपार है।। आल्हा ऊदल अमर कथाओं, और विजय संदेश की क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की बुन्देलों की इस धरती पर, गौरव है अभिमान है। रूपमती का मांडू सुंदर, अमर प्रेम पहिचान है।। खजुराहो, साँची स्तूप से, ख्याति बढ़े निज देश की। क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की।। विंध्य सतपुड़ा पर्वत माला, जबलपुर धुँआधार है। तालों का भोपाल शहर है, कृषि उन्नत व्यापार है।। पशुपति नाथ सदा शिव शम्भू,नगरी है सोमेश की। क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की।। पुरातत्व की अमिट धरोहर, तानसेन की तान है। करता है जयगान सकल जग, अमिट निराली ...
सफलता की ज़िद
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सफलता की ज़िद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** ज़िद पर आओ,तभी विजय है, नित उजियार वरो। करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियार करो। करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है हार मिलेगी, तभी जीत की राहें मिल पाएँगी और सफलता की म...
निकलेगा सूरज
कविता

निकलेगा सूरज

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये रात ही तो है कब तक रहेगी निकलेगा सूरज फिर तो ढलेगी ।। उम्मीदों से भरा है आसमान, आशाओं पर टिकी है धरती । ऐ दुनिया तू छल ले, कब तक छलेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। एक सोच पर ही तो नहीं है पहरा, ना ही कोई, रोक-टोक है। सोच ऊंची रही है, ऊंची रहेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। आते हैं दु:ख-दर्द मुझको परखने, और जाते है बनाकर मजबूत मुझे । देख लो ध्यान से ये आंखें ना बही है ना बहेंगी । ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। दीवार होंसलों की हिला नहीं पाए कोई, पर्वत सी अटल और वज्र सी प्रबल हो । जीगर आग जब जली हो, किस तरह बुझेगी। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढ...
अमर रहेंगे सरदार पटेल
कविता

अमर रहेंगे सरदार पटेल

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** धन्य हुई धरा गर्वित हुआ नभ, ३१ अक्टूबर पटेल अवतरित हुए जब। माँ भारती के लाल ने किया वो कमाल, आजादी का आंदोलन, बढ़कर लिया सम्हाल। खेड़ा सत्याग्रह या असहयोग आंदोलन, सरदार उपाधि पायी, बारदोली अगुवा बन। फौलादों से मजबूत इरादे, लौहपुरूष कहाये, बापू जी का साथ दिया, देश आजाद कराये। स्वतंत्र भारत में गृहमंत्री का पद पाया, सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। बांधा देश को एकता की डोर से, अमर रहेंगे पटेल आवाज आती है चहुँओर से। सबसे ऊँची मूरत आपकी देश का मान बढ़ाती है, हर भारतवासी का आपके प्रति सम्मान दर्शाती है। जन्मदिन आपका, एकता दिवस के रूप में मनाएँ, हम कृतज्ञ देशवासी आपको श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
एक श्वान की आत्मकथा “जीवित हूँ जीना चाहता हूँ”
कविता

एक श्वान की आत्मकथा “जीवित हूँ जीना चाहता हूँ”

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** है अधिकार तुम पर मेरा भी मुझे दो स्वत्व धड़कन बन जीवित रहना चाहता हूँ तुम्हारे दिल में थोड़ा सा पनाह चाहता हूँ मन और आत्मा में तुम्हारे बसना चाहता हूँ मैं जीवित रहना चाहता हूँ!!!! सुख दुःख महसूस करता हूँ अकेलापन तुम्हारा बांटना चाहता हूँ अपने साथ रहने की अनुमति दो मुझे तुम्हारी घुटन, नाराजगी, शिकायतें मिटाना चाहता हूँ मैं जीवन जीना चाहता हूँ !! मैं भी पथिक हूँ उसी राह का संग संग तुम्हारे चलना चाहता हूँ वेदनाओं से सामना हो जब तुम्हारा, शीतल चाँदनी बनकर प्यार लुटाना चाहता हूँ अश्रु पूरित नेत्रों से मैं भी छुटकारा चाहता हूँ जीवन हूँ जीना चाहता हूँ!! बंधन से जकड़ा स्वप्न सा जीता हूं मैं ठिठुरन, अकड़न, सड़न, भूख से तरबतर रहता हूँ मैं घर में तुम्हारे थोड़ी सी पनाह चाहता हूँ स्वयं के...
वचनों को भी जानो भाई
कविता

वचनों को भी जानो भाई

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* जब भाषा में संंख्या पाते। तब वचनों की महिमा गाते।। जयजयजय वचन महाराजा। कम ज्यादा का बजता बाजा।। एक बहु अरू द्वि कहलाते। पर हिन्दी में दो ही आते।। दो प्रकार के होते वचना, हिन्दी में इनकी है रचना। एकवचन अरु बहु कहाते। भाषा में संख्या बतलाते।। एक वचन तो एक बताता। जैसे लड़का रोटी खाता।। बहूवचन तो बहुत बताते। जैसे लडकें रोटी खाते।। खेल खेलते कविता गाते नचते गाते खुशी मनाते।। शाला में दीदी समझाया। संख्या बोध तुरत कराया।। बच्चे ज्यादा दीदी एका। वचनों को हम गाकर सीखा।। हंसा बहिना ने बतलाया। हॅंसी-हॅंसी में हमें सिखाया।। परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है।...
जागो
कविता

जागो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जागो एक बार अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के लिए। जागो एक बार अपने हृदय में पनपत्ति अभिलाषाओं के लिए। जागो एक बार अपने अंतर्मन में छिपी सत्यनिष्ठा के लिए। जागो एक बार अपनी स्वतंत्रता की मर्यादा को कायम रखने के लिए। जागो एक बार स्वयं के अंतर्मन में छिपी अंतरात्मा को जगाने के लिए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
विश्व के प्रमुख फैशन हाउसों में
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विश्व के प्रमुख फैशन हाउसों में

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** विश्व के प्रमुख फैशन हाउसों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहिए अपने शिल्प और फैशन सामग्री को वैश्विक पटल पर आगे बढ़ाना चाहिए भारत को विश्व की फ़ैशन राजधानी बनना चाहिए भारत को अपने उत्पादों को विश्व के प्रमुख फ़ैशन हाउसों के साथ प्रदर्शन करना चाहिए प्रदर्शन में विश्व स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना चाहिए बिना किसी पूर्वाग्रह के राष्ट्र की प्रगति में सहयोग करना चाहिए परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निवासी : गोंदिया (महाराष्ट्र) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान
कविता

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा प्रणाम है सादर प्रणाम, इन्दौर नगरी को मेरा प्रणाम। मेरा प्रणाम...।। हिन्दी रक्षक डॉट कॉम, हिन्दी रक्षक मंच निर्माण। हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान, समीक्षा समिति का परिणाम। मेरा प्रणाम...।। दिव्यांग का सर्वांगीण उन्नयन, वेलफेयर सोसायटी दिव्योत्थान। साहित्यकार श्रेणी में सम्मेलन, राष्ट्रीय स्तर का वृहद आयोजन। मेरा प्रणाम...।। साहित्य जगत है एक वरदान, साहित्यकार है सदा ऊर्जावान। श्रेष्ठ भारत है श्रेष्ठ संविधान, हिन्दी रक्षक मंच सबसे महान। मेरा प्रणाम...।। परिचय :-  हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" निवासी : गंजबासौदा, जिला- विदिशा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
रोके ना रुके अखियाँ
कविता

रोके ना रुके अखियाँ

उषा बेन मांना भाई खांट अरवल्ली (गुजरात) ******************** रोके ना रुके अखियाँ बस तुमको ही देखना चाहें अखियाँ, तुमसे दूरी अखियों को काँटों की तराह चुभती हैं। तुम्हें किसी और के साथ देख के जलती हैं अखियाँ.....। मेरी आँखों मे तुम बसे हों मेरी सासो मे तुम ढले हो, मेरी आँखों को तुम्हें देखने की आदत है एक बात कहु ? क्या ईजाजत हैं ? मेसेज तुम करते नही, बात तुम करते नही , मेरे मेसेज का जवाब नही देते फिर कैसे कहते हो प्यार करता हु....। अपनी इस आदतो को सुधारों मेरी अखियों की शिकायतो को दूर करो प्यार करते हो तो प्यार को जताओ हमारे रिश्तें को अटूट बनाओ... अपनी अखियों में मुझको बसाओ बेपनाह प्यार जताओ मुझे अपने घर की लक्ष्मी बनाओ हमारा एक छोटा सा घर-संसार बसाओ मेरी खुली आँखों के सपने को पुरा करो बस यही चाहती हैं मेरी अखियाँ....। रोके ना रुके अखियाँ बस तुम...
एक धनुष एक बाण
कविता

एक धनुष एक बाण

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन युद्ध में लड़ अकेला, लेकर हथेली में अपनी प्राण। एक मौका मिलेगी जीत की, पास है एक धनुष एक बाण।। देर ना कर अब जाग जा वीर, निरंतर करता चल तू अभ्यास। मन को एकाग्र कर ध्यान लगा, रखना सीख खुद पर विश्वास।। तम गुफा में बंदी बनकर बैठा, घिर गया आतताईयों के बीच। मुझे दे रहे थे बिजली के झटके, रुकने का नाम नहीं लेते नीच।। कहा,क्यों नहीं पढ़ता ज्ञान ग्रंथ? समय को बर्बाद करता है व्यर्थ। झूठी शान और शौकत है तेरी, तुम्हारे जीवन का नहीं है अर्थ।। छोड़ दिए मुझे बोध बाण देकर, धनुष पोथी से करो लक्ष्य भेदन। मैं कर्म करूंगा अब तन्मयता से, जीत होगी आनंद का आस्वादन‌।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित...
शक्ति
कविता

शक्ति

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दुःख सुख के संग वो तुम्हारा मर्म जानती मगर कह नहीं पाती। विचारों से करती संघर्ष जैसे स्त्री ससुराल की उत्पीड़न की बात नहीं बताती बाबुल को। झूठी हंसी लिए खुश रहती उत्पीड़न का दर्द किस्से छिपाए। उत्पीड़न में मिलते सिर्फ वेदना के स्वर जो बाटें जाते एक कहानी के तरह। उत्पीड़न की पीड़ा को नए जमाने में ना छिपाओ। बताओं दुनिया को क्योकिं स्त्री सशक्तिकरण की शक्ति तुम्हारे अब जो साथ है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अ...
घर के दीप संभाल जरा…
कविता

घर के दीप संभाल जरा…

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। मन्द ताप, बाटी बनती, भट्टी में सेके, जल जाये, यात्रा, उडान, श्रम की थकान, अपने घर में ही उतरे, घर आंगन की तरुणाई ही, उर अन्तर की प्यास भरे, हाथी पागल हो जायें, पर पिल्लै साथ निभायेंगे, सांपों को दूध पिलाने वाले, सर्पदंश ही पायेंगे, देख भीड को बहको मत, कहीं खुद का बच्चा खो जाये, घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। भाई हो कमजोर कोई, यदि उनका भार उठायेंगे, वक्त पडे, किसी कठिन दौर में, वे ही साथ निभायेंगे, मेड का कूँचा ऊँचा हो तो, साख फसल सुख पाता है, वही श्मशान में खुद जलता, औरों की चिता जगाता है, कुश्ती है, कंधे टेको मत, कोई बाजी कब अपनी ले जाये, घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। रंगा सियार बन चहको मत, चेहरा कब असली दिख जाये, झूठे क...
गोवर्धन
कविता

गोवर्धन

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आज आया गोवर्धन पर्व। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष एकम तिथि। हम सबके उर आनंद उपजाया। संग अपने हर्ष अपार लाया। चहुंओर उल्लास छाया। हे!कृष्ण मुरारी तुम हो। गोकुल, मथुरा, ब्रज जन उद्धारी। तुमरो जो सुमिरन करे। वाके संकट इक क्षण में दूर करें। हे! कृष्ण मुरारी गोपाल गिरधारी। तुम्ही इंद्रदेव पूजन। जन-जन तै तजवाई। गोवर्धन पूजन शुभारंभ करवाई। इंद्रदेव अहंकार तजवाई। हे! कृष्ण मुरारी, कान्हा। एक कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा इंद्र की अतिवृष्टि से। लोगों को बचाय कै। तुम गोवर्धनधारी कहलाए। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
सोनपपड़ी सा प्यार
कविता

सोनपपड़ी सा प्यार

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा था, प्यार हमारा तब मोबाइल थे नही, खत जो लिखे पहुँचे ही नही। गए जब हम उनकी गली, मिले तब भी नही वो हमें। एक दिन फिर आया न्यौता, पता चला वो ब्याह कर चल दिए। मोहब्बत हमारी अधूरी रह गयी, क्या-क्या लिखा खत में बात अब पुरानी हो गयी। आज कल बाबू-सोना क्या-क्या खाया-पिया, घूमना -फिरना, मूवी, शॉपिंग आकर्षण के मुख्य केन्द्र है मन भर जाए तो ब्रेकअप आम है। प्यार आज कल दीवाली की सोनपपड़ी सा हो गया, जैसे अब लैला के साथ मजनूं आम हो गया। जब से मोबाइल आया प्यार का दायरा बढ़ गया अब बातो ही बातों में चांद पर घुमा लाते है, एक हम थे जो सिर्फ नजरे ही मिला पाए।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रक...
दफ़न चेहरा
कविता

दफ़न चेहरा

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** भला कैसे पढूं इन चेहरों को जिनके पिछे न जाने कितने राज दफ़न है। ये राज कहीं हक़ीक़त तो नहीं जो हर पल मेरे जेहन को टटोलती और बिना कुछ कहे हमेशा की तरह चली जाती। शायद कोई इत्तेफाक होगा आखें मूँद कर यह सोच लेता हूँ। कभी अपनों से तो कभी अपनेपन से। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें...
दिवाली वक्तव्य प्रकटीकरण
कविता

दिवाली वक्तव्य प्रकटीकरण

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। सत्ता संग खेला करते हैं नूरा कुश्ती आरोप अफवाह से भरा तमाशा है सता विपक्ष अंदर बाहर खेल कबड्डी मौका पाते ही भरपूर लगे तमाचा है काली गोरी चमड़ी सबका लोकतंत्र बेशर्म मोटी चमड़ी कुचक्र चलाती है। सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। संस्कार विकास कदमों की खातिर व्यक्तित्व प्रशिक्षण के विषय बनाए प्रभावी भाषण कला के बदले अब कुतर्क नजारा निरंतर दर्शाता जाए बड़े सफेदपोश की बोलियां सुनकर भाषण कला बेभाव जहां शर्माती है सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। खुद के निर्णय कथन का युग देखते सुनते ही रहिए बस आत्म प्रवंचना बड़बोले खुद अपना संसार हैं रचते श्रेष्ठतम मनवाने में वक्...