आओ खाएँ चूड़ा-लाई…
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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आओ खाएँ चूड़ा लाई
'चाऊ-माऊ', खिचड़ी आई
मुन्ना आओ, मुन्नी आओ
झुन्ना-टुन्ना, तुम भी आओ
आओ सारे बच्चे आओ
सब पुआल पर बैठें आओ
गजहर पर सभी सज जाओ
कुरई अदल-बदल कर खाओ
बैठो, बोर-चटाई लेकर
गुड़-तिल और चबैना लेकर
देखो, धूप सुहानी निकली
लगता निज-घर लौटी बदली
बहु-दिनों से छायी हुई थी
सबसे खार खाई हुई थी
दादा जी को खूब सताया
'झुनझुन-मुनझुन' को रिसियाया
सुन्दर बाछा-बाछी हैं ये
द्वार-दौड़ के साझी हैं ये
बारिश-मड़या में रहते थे
टाटी से झाँका करते थे
आज जब पगहा है निकला
देखो, कैसे दौड़े अगला!
श्वानों के शिशु खेल रहे हैं
पटका-पटकी मेल रहे हैं
कूँ-कूँ कभी काँय-काँय करते
कभी ये-वो भारी पड़ते
रानू-चीकू, पतंग उड़ाते
एक दूजे से पेंच लड़ाते,
जब 'कोई-जन' पतंग उड़ाए
काट दिये पर क्यों पछताए
पतंग खेल भैय्या लोगों का
नहीं खेल छ...