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कविता

आओ खाएँ चूड़ा-लाई…
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आओ खाएँ चूड़ा-लाई…

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ खाएँ चूड़ा लाई 'चाऊ-माऊ', खिचड़ी आई मुन्ना आओ, मुन्नी आओ झुन्ना-टुन्ना, तुम भी आओ आओ सारे बच्चे आओ सब पुआल पर बैठें आओ गजहर पर सभी सज जाओ कुरई अदल-बदल कर खाओ बैठो, बोर-चटाई लेकर गुड़-तिल और चबैना लेकर देखो, धूप सुहानी निकली लगता निज-घर लौटी बदली बहु-दिनों से छायी हुई थी सबसे खार खाई हुई थी दादा जी को खूब सताया 'झुनझुन-मुनझुन' को रिसियाया सुन्दर बाछा-बाछी हैं ये द्वार-दौड़ के साझी हैं ये बारिश-मड़या में रहते थे टाटी से झाँका करते थे आज जब पगहा है निकला देखो, कैसे दौड़े अगला! श्वानों के शिशु खेल रहे हैं पटका-पटकी मेल रहे हैं कूँ-कूँ कभी काँय-काँय करते कभी ये-वो भारी पड़ते रानू-चीकू, पतंग उड़ाते एक दूजे से पेंच लड़ाते, जब 'कोई-जन' पतंग उड़ाए काट दिये पर क्यों पछताए पतंग खेल भैय्या लोगों का नहीं खेल छ...
बेरोजगार हूँ साहब
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बेरोजगार हूँ साहब

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** बेरोजगार हूँ साहब! मै बेईमान तो नहीं दिल में मेरे हजारों अरमान तो नहीं..!! नौकरी सबूत नहीं है अच्छे इंसान होने का इंसान हूँ मैं इंसानों से अलग तो नहीं..!! अपनी जिंदगी कि मैं लड़ाई लड़ रहा हूँ सपनों के लिए बस आशियाना बुन रहा हूँ..!! अपनों से गीला नहीं गैरो से शिकवा नहीं रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहा हूँ..!! भविष्य की चिंता मुझे सताती है हरपल जख्म मेरे रोज़ नए हो जाते है पल पल..!! सहम सा जाता हूँ लोगों का सवाल सुनकर ना पूछा कर क्या कर रहा है आज कल ? ना देश लूट रहा हूँ, ना देश चला रहा हूँ ना हत्या कर रहा हूँ, ना फरेब कर रहा हूँ..!! ना कोई गुनाह किया हूँ, ना गुनहगार हूँ रोजगार की तलाश करता मैं बेरोजगार हूँ..!! आखिर ये सवाल क्यों पूछते है लोग मुझसे क्या रिश्ता है जमाने में उनका और मुझसे..!! ...
वो लड़का
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वो लड़का

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** सरकार चलाने वालों क्या, तुमने ये सोचा है कभी? वो लड़का कैसे जीता होगा, जिसके सपने मर जाते हैं। गाँव से आकर शहर बीच, इक छोटे कमरे में रहता है। सपनों को पूरा करने को, वह रात - रात भर पढ़ता है। फीस वो कोचिंग कालेज की, जब भी भरने को जाता है। मजदूरी से लौटे पापा का, उसे चेहरा याद आ जाता है। टीचर क्लास से बाहर करते, जब पापा फीस नही भर पाते हैं। वो लड़का कैसे जीता होगा, जिसके सपने मर जाते हैं। आते समय गाँव से मम्मी, रख देती रोटी संग सपने। पढ़ जायेगा जिसदिन बेटा , आयेंगे अच्छे दिन अपने। जब बनकर अफसर आयेगा, तब नई खरीदूंगी साड़ी। मुखिया के जैसी ही मैं भी, ले लूंगी एक मोटर गाड़ी। सब सपने पूरे करने को, दिन रात एक कर जाते हैं। वो लड़का कैसे जीता होगा, जिसके सपने मर जाते हैं। पापा की लाठी बन पाए, ...
मैं सोये सिंह जगाने आया हूँ..
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मैं सोये सिंह जगाने आया हूँ..

नितिन मिश्रा 'निश्छल' रजौरी सीतापुर (उत्तर प्रदेश) ******************** फिर कोशिश है सोये सिंह जगाने की.. हृदयों में फिर राष्ट्र प्रेम धधकाने की.. देखो पूरा भारत सोया-सोया है.. न जाने ये किन सपनों में खोया है.. इक छोटा सा घाव दिखाने आया हूँ.. हाँ मैं सोये सिंह जगाने आया हूँ.. रावण छुट्टा हैं जेलों से बेलों पर.. देखो तो भगवान बिक रहे ठेलों पर.. जिधर नजर डालो दहशत की आंधी है.. बन बैठा हर कोई महत्मा गांधी है.. कोई ऊधम सिंह नजर न आता है.. जनरल डायर फिर से हुक्म सुनाता है.. फिर से जलियांवाला बाग बनायेगा.. कहता है फिर खूनी फाग मनायेगा.. कौवे गाते हैं कोयल शर्माती है.. और गुलों से गंध विषैली आती है.. देखो फूलों को खारों ने घेरा है.. प्रातःकाल में छाया हुआ अंधेरा है.. चूहा सिंहों को चाटा दे जाता है.. उल्लू गरुड़ों को घाटा दे जाता है.. सूरज बंदी पड़ा जुगुनुओं के घर में.. क...
ये सांसें अनमोल हैं
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ये सांसें अनमोल हैं

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ये सांसें बहुत अनमोल हैं देह के भीतर जाती है बहुत पीड़ा पाती है। पीड़ा पाकर ही यह आतीं हैं। जब सांसे अहंकार से मुलाकात कर बैठी तो जीवन में दुःख ही पाती है। ये सांसें गिनती की मिली हैं ये सांसें अनमोल हैं। इस धरा पर आयें हैं इसका ध्यान रखना है। एक-एक सांस का हिसाब रखना है। इससे पहले देह का इनसे नाता छूटे, इन सांसों का हिसाब रखना है। ये सांसें अनमोल हैं। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अ...
जोशीमठ की त्रासदी
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जोशीमठ की त्रासदी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** तपस्थली रहा है जो महात्माओं की, ऐसा है आस्था और भक्ति का ये स्थान, राजधानी रहा है कत्यूरी राजाओं की, ऐसा खुबसूरत है ये पावन स्थान, छः ऋतुएं बन जाती हो दिन में जहां, ऋतुंभरा के नाम से जाना जाता है ये स्थान, इन्सान की चकाचौंध वाली जिंदगी से, हार गया है अब ये पावन स्थान, लाखों लोगों को जीवन दिया जिसने, आज जमींदोज हो रहा है ये स्थान, जिसकी धरती कांप रही हो, सिसक रहा हो सीना जिसका, अब प्रकृति की त्रासदी, दिखा रहा है ये स्थान, जंगलों को जी भर कर काटा, जल की है धारा बदली हमने, उसी नादानी के कारण अब, रौद्र रूप दिखा रहा ये स्थान, रो रहे पशु पक्षी मानुष, उजड़ रहा बसैरा जिनका, जीवन गुज़र बसर के लिए, मदद की गुहार लगा रहा ये स्थान, आज त्रासदी भारी झेल रहा, लेकर अपने सीने पर, जोशीमठ देवभूमि उत्तराखंड का, ये पावन प...
दर्द होता है तो होने दो
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दर्द होता है तो होने दो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** दर्द होता है सीने में तो होने दो। देकर मोहब्बत भी कोई करता है नफरत तो करने दो। देखकर दूसरों के जीवन में उल्लास कोई मरता है तो मरने दो। देकर मान-सम्मान भी कोई गिरता है नजरों से तो गिरने दो। देकर प्रेम, लगाव और एहसास भी कोई जीवन से जाता है तो जाने दो। ईमानदारी सच्चाई की राह पर चलते हुए कोई छोड़कर जाता है तो जाने दो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय...
ऐसी समझ कहाँ
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ऐसी समझ कहाँ

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** लोग आपको समझ सके ऐसी समझ कहाँ अनजाने राहों पर अनजाने लोगों से, अनकही बातों को जो समझ सके ऐसी समझ कहाँ मैं नहीं तुम तुम नहीं आप आप नहीं हम ऐसी समझ कहाँ ... परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर...
जीत होगी
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जीत होगी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** हार से हार कर बैठे हो तुम। मन को मार कर बैठे हो तुम।। जीत के लिए छोड़ दिए तैयारी। तोड़ दी पुस्तकों से अपनी यारी।। अनमना रहना अच्छा लगता है। बीती हुई बातें अच्छी लगती है।। मैं क्यों हारा इसका शोध कर? किये हुए गलती का बोध कर।। मन को एकाग्र कर साहस भरकर। लक्ष्य की ओर जाना है दौड़ कर।। फिर शुरू कर अध्ययन जीत की। प्रेरणा लेते चल ज्ञान अतीत की।। जाग जा युवा समय के संग चल। दुःख की बदली को सुख में बदल।। कर्म राह में आयेगी जो चुनौतियां। ज़िद के सामने दूर होगी पनौतियां।। कठोर परिश्रम से दक्षता हासिल कर। तब मंजिल राह देखेगी चुनेगी वर।। झूम के नाचोगे मन में खुशी होगी। अंतिम में जय होगी, विजय होगी।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शि...
कैसे श्रीराम लिखूं
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कैसे श्रीराम लिखूं

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** सब दंभ भरा दिखावा रहे गया जहा उस जमाने का कैसे गूणगाण लिखूं यहा रोज हरण होती मानवता फिर कैसे श्रीराम लिखूं। ना नारी मे अब सीता दिखती ना नर मे कहीं राम दिखे जहाँ टुकड़े-टुकड़े हो श्रध्दाये बिखरी वहा कैसे राधेश्याम लिखूं। जलता समाज दहेज की आग मे बिकता दुल्हा मंडी मे जहाँ रोज सती की जाती दुल्हन वहां कैसे सियाराम लिखूं। जहाँ महिला आरक्षण की धूम मची और गर्भ मे भी नहीं सुरक्षित बेटियां इस जमाने मे अब माँ के दिल का क्या हाल लिखूं। जहाँ गली-गली रावण, दुःशासनों की भरभार भरी और दिखे नहीं द्रौपदी का घनश्याम कहीं वहाँ कैसे नारी को निर्भया लिखूं। जहाँ शिक्षा व्यवस्था की मंडी लग गयी और परीक्षाएं बेमानी हो गयी जो सिर्फ कमाई का पाठ पढ़े उसको को क्या विद्यावान लिखूं। बेरोजगार और बेकार युवा यहा मारे-मारे फिरते है सिर...
युद्ध और जीव
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युद्ध और जीव

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दिन माह बरस बीत रहे, युद्ध की विभीषिका अभी शेष है हवाओं की सरसराहट, क्रंदन सी प्रतीत हो रही है पर्वतों के शिखर चीख-चीख कर आतंक की गवाही दे रहे हैं पक्षियों की चहचहाहट रुदन में बदल रही है इन जीवों की कराह से धरती भी सिसक रही है युद्द ने जीवो के हृदय को छला है जीव जंतुओं का रक्त सुखी पत्तियों सा पड़ा है प्रकृति उसी क्षण बुढ़ी लगने लगी है मानो उसके रंग पिघलने लगे हैं घरों के उजड़ने का क्रम थमा नहीं है अभी ना ही आंसुओ का सैलाब रुका है युद्ध मासूम जीवों को निगल रहा है शनैः शनैः कोई रास्ता शेष नहीं दिख रहा जीवन का हे मनुष्य!! मासूम जीवों को दम तोड़ते-छटपटाते पीड़ा को क्या तिरस्कृत कर दिया है तुमने? क्या इनकी मौत पर शोक मनाने को इन्सानियत जिंदा नहीं रही? क्या अपराध है इन असहाय अबोध सहचर...
मां की ममता
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मां की ममता

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मां की ममता धरा पर अमर हो गई, बात वर्षों पुरानी बहुत हो गई, मां के आंचल में मुझको पता न चला, दिन ये कब ढल गया रात कब खो गई। युग से चलती चली आ रही ये पृथा, मां ही हरती है बेटे की हर दुख व्यथा, त्रेता युग की कहानी सुनाता हूं मैं, राम के प्रेम की है ये सारी कथा। राम के जन्म से लोग हर्षित हुए, राम के चरणों में सब समर्पित हुए, माई कौशल्या मन में करें कल्पना, प्रभु श्री राम के पाद अर्पित हुए। दिन ये ढलने लगे राम हो गए बड़े, मझली मां के सदन भाग होते खड़े, देखकर स्वप्न में मातु कैकेई को, जाना है रात में अपनी जिद पर अड़े। कुहुकनी ले तेरा ये कुहुक है जगा, देख कर स्वप्न तेरा भवन से जगा, राम को छोड़ कर बहन के द्वार पर, राम के प्रेम में मां भिगोती धरा। बात द्वापर की जब याद आती मुझे, मां यशोदा की ममता लुभाती मुझे...
प्रेमिल मधुमास
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प्रेमिल मधुमास

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चंचल मन आह्लादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री। बहे पवन शीतल पावन भी, कुसुमित फूल पलास सखी री।। ऋतु बसंत मदमाती आयी, नव पल्लव पेड़ो पर छाए। झूम रहे भौरे मतवाले, अल्हड़ अमराई मुस्काए।। पीली चूनर ओढ़े धरती, हिय में रख उल्लास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। उन्मादित नभ धरती आकुल, यौवन का मौसम रसवंती। महुआ पुष्पित गदराया है, सरसों का रँग हुआ बसंती।। नाच रही है कंचन काया, हिय अनंग का वास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। हुआ सुवासित तन गोरी का अंग अंग लेता अँगड़ाई। हृदय कुंज में मधुऋतु आयी, भली लगे प्रिय की परछाई।। मधुर यामिनी देख मिलन की, सभी सुखद आभास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्ध...
दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं
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दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अब जिंदगी मे कुछ भाता नहीं रात ऐसी, जैसे सुबह आता नहीं कोइ आता नहीं कोइ जाता नहीं दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं मखमली बिस्तर, पर नींद नहीं प्यार है उनका, पर साथ नहीं संघर्ष मे कोई साथ आता नहीं दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं जीवन की अनोखी सौगात है पल मे बदलती जैसे हालात है ख़्यालात यूँही तो बदलता नही दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं उम्र दराज मे ही हम तुम मिले है अरमानों के दिल में फूल खिले है उसके सिवा अब कुछ भाता नहीं दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं हमको मिलाना उसकी मेहर है याद आना अब आठों पहर है दिल में कसक यूँही उठाता नहीं दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शि...
न करो हिन्दी की चिन्दी
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न करो हिन्दी की चिन्दी

वीणा मुजुमदार इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लिखो हिन्दी पढो हिन्दी सुनो हिन्दी कहो हिन्दी गुनो हिन्दी समझो हिन्दी भाषाओँ के माथे की बिंदी हिन्दी- दिवस मनाते हो दिनों बाद भूल जाते हो कहते हो राष्ट्रभाषा है हिंग्लिश में घुस जाते हो प्रांत अनेकों भाषाओं के ये एक राष्ट्र है हिन्दुस्तान नानाविध भाषाईयों की एक राष्ट्रभाषा है जान सरल सहज मीठी बोली लगती हमको प्यारी है भाव सभी अभिव्यक्त करती मनभाती शान हमारी है देश-विदेश में मान बढाती भाषा गौरव देती सम्मान हम हिन्दी के हिन्दी हमारी हिन्दी हमारी है पहचान छिद्रान्वेषी न बनकर करो हिन्दी का सम्मान मातृभाषा ये राष्ट्रभाषा ये दे दो इसको इसका सम्मान। परिचय : वीणा मुजुमदार निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
नवनीत
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नवनीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** समरसता के पथ पर रोपे, छल ने बेर बबूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। जले पंख सपनों के सम्मुख, नैन हुए रीते। शाकाहारी के जीवन में, छोड़ दिए चीते।। चलता है अब लाठी से ही, इस जंगल का रूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। ऊँची चिमनी ने वैचारिक, धुआँ बहुत उगला। पर्यावरण प्रदूषित करके, समझा हुआ भला।। भूख प्यास की कर दी उसने, सच में ढीली चूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। धुँधले नभ में अंतर्मन के, दृष्टि दोष जागे। खाई खोदी गई जिधर को, पाँव उधर भागे।। समझ रही है आज तर्जनी,कल की थी जो भूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
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डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** नो दाग, नो धब्बे के, चाहे कितने ऐड बना लो कन्या-जीवन पर लगे दाग को, हरगिज़ नहीं मिटा सकते। चाहे कितने ए.सी., कूलर और बना लो जब तक नन्हीं कलियों की दुर्गति होगी बाला की अंतर्ज्वाला को, हरगिज़ शांत नहीं कर सकते। चाहे कितनी सीमेंट बना लो, मन के टूटे तारों में भग्न संवेदना की धारों में, न तुम जोड़ लगा सकते। चाहे भौतिकता की कितनी डोर बढ़ा लो नैतिकता का पुष्प सुखाकर, आध्यात्म का बीज मिटाकर मन का उद्वेलन, हरगिज़ खामोश नहीं कर सकते। भारत की पावन संस्कृति, नन्हीं आहों से तपती है कितने ही फुव्वारे लगवा लो, बच्ची के तप्त ह्रदय को मन के तपते अंगारों को, हरगिज़ शांत नहीं कर सकते। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापो...
हमारी हिन्दी
कविता

हमारी हिन्दी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हिन्दी गौरव है, सम्मान है, है हमारी संस्कृति....! जैसे पाकर वर्षा को मुस्कुराती है प्रकृति....!! हिन्दी ज्ञान है, मान है, है हमारी सम्पत्ति....! जैसे संविधान में सभी को समानता है होती....!! हिन्दी सभ्यता है, प्रमाण है, है हमारी प्रगति....! जैसे किसी नेत्रहीन के आंखों में नयी ज्योति....!! हिन्दी भाग्य है, सौभाग्य है, है हमारी कृति....! जैसे हरी निर्मल बत्तियों पर ओस के मोती....!! हिन्दी शान है, अभिमान है, है हमारी प्रवृत्ति....! जैसे हर हिंदू के मुख पर आशा के बीज है होती....!! हिन्दी प्रेम है, समर्पण की भाषा है, है प्रभु की "आरति"....! जैसे "नील" गगन में नारायण की बनी हो आकृति....!! हिन्दी सार है, विस्तार है, है हमारी कोटि....! जैसे निर्धन के हाथों में एक रोज की रोटी....!! परिचय :- कु. आरती सुधा...
मधुमास की चांदनी
कविता

मधुमास की चांदनी

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** था मधुमास का मौसम पड़ा था उल्टा अम्बर न जाने थी थाल भरी मोतियों आंगन में फैले दूध के झाग आकाश था या आंगन विभावरी थी चांदनी उजास था दीपक टिमटिमाते दुध के झाग आया है नवजीवन बालक मुस्कुराहट भरी जिंदगी था मधुमास का मौसम परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने क...
जुर्म-ए-अजी़म कर लिया है मैने
कविता

जुर्म-ए-अजी़म कर लिया है मैने

शुभम गोस्वामी 'मलंग' देवास (मध्य प्रदेश) ******************** कोइ जुर्म-ए-अजी़म कर लिया है मैने। ईक बेवफा पर यकीन कर लिया है मैने। उसका लौट कर आना मंजूर नहीं मुझको, उसके जाने पर यकीन कर लिया है मैने। उसकी आंंखो को नज्म, होंठो से गजल पड़ता हूं, दिल का माजरा कतई संगीन कर लिया है मैने। कोई सरहद क्यो नही बनाता गम-ए-हिज़्रा में, हंसी लूट गई है खुद को गमगीन कर लिया है मैने। तूफान कैसे कैसे उमड़ते होंगे दिल-ए-सहरा में, खुद को आईने में देख मुतमइन कर लिया है मैने। सर पीटेंगे ये कमसिन जवानी से भरे लड़के, जो एक बार फिर से इश्क हसीन कर लिया है मैने। परिचय :- शुभम गोस्वामी 'मलंग' निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय...
माँ तेरी गोदी में सो जावाँ
कविता

माँ तेरी गोदी में सो जावाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी जननी जनमदाता जन्मभूमि दूजी माता माँ नदिया मेरी जलदाता ये स्वर्ग मुझे नहीं भाता तीनों माओं पे मैं सदके जावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... माँ सिंधु हिन्द का नाम दिया गंगा यमुना संगम कहलाया नर्मदा की अपनी अलग माया नीर नदियों का मैं बन जावाँ नीली चूनर माँ की मैं लहरावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... नदी किनारे जन्मी गाथाएं भारत की कई सभ्यताएं जन जन की कोटि भाषाएं वंदेमातरम हाँ मैं गुनगुनावाँ नारा जयहिंद का जग में फैलावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... तेरे घाटों पे तीरथधाम उद्योगधन्धों के कई काम व्यापार का विश्व को दे पैगाम तेरे नाम जीवन मैं कर जावाँ परचम प्रगति का दुनिया में फ़हरावाँ तेरी ...गोदी में माँ ... इन नदियों ने मुझे नहलाया मेरे बचपन को बहलाया मेरे सपनों को सहलाया उम्मीदों को मेरी है महकाया माँ...
कहाँ गई अब चिट्ठी प्यारी
कविता

कहाँ गई अब चिट्ठी प्यारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बीत गए अब चिट्ठी के दिन। सीख लिया जीना चिट्ठी बिन। सभी लोग लिखते थे चिट्ठी। होती थी वह खट्टी मीठी। चिट्ठी सभी खबर लाती थी। हाल सभी के बतलाती थी। अच्छी बुरी खबर सब लाती। दुख में सबका मन बहलाती। अगर नौकरी लग जाती थी। खोज खबर चिट्ठी लाती थी। पोस्टमैन घर घर जाते थे। डाकिया बाबू कहलाते थे। बुरी खबर जब भी लाते थे। उन पर ही सब झल्लाते थे। धीरजवान डाकिया बाबू। खुद पर वे रखते थे काबू। पलट जवाब नहीं देते थे। बातें सबकी सह लेते थे। खबर नौकरी की लाते थे। मन वांछित इनाम पाते थे। बाहर खड़े बुलाते रहते। बरसा जाड़ा गर्मी सहते। लिखती थी बिरहन मन बातें। दिन कटता कटती ना रातें। चिट्ठी पाते ही आ जाना। साजन अब ना देर लगाना। चिट्ठी माँ लिखती लल्ला को। रोज देखती हूँ बल्ला को। रोज खेलने तू जाता था। लौट...
क्या भर पायेगा सुराख
कविता

क्या भर पायेगा सुराख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पैदा होते ही कराया गया अहसास, कहीं न कहीं है बहुत बड़ा सुराख, उनके हर प्रमुख मौके पर नाचते हम, हमारे मौकों पर कहां से ले आते वे गम, छूने से, घूरने से, परछाई पड़ने से, वैचारिक लड़ाई लड़ने से, वे खड़े रहते हैं भृकुटि ताने, आंख मूंदकर सिर्फ उनकी मानें, गालियां हमें भी सिखाया जाता है हम खामोश रहते हैं, पर वे गाली दे जाते हैं हमें जाति के नाम पर, सदा चोट पहुंचाते हैं हमारे सम्मान पर, क्या हम या हमारी जाति सचमुच घृणा के लायक हैं? या खुद के अहम को संतुष्ट करने हमें मान लेते खलनायक है? कुएं में, घाट में, चक्की में, तरक्की में, विद्यालय में, औषधालय में, कहां नहीं अहसास कराया जाता है छोटे बड़े सुराख? जबकि हम आदी हैं प्रेम बांटने के, सुराख पाटने के। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी ...
स्वामी विवेकानंद
कविता

स्वामी विवेकानंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वामी विवेकानंद जी के पावन अवतरण-दिवस की ढ़ेरों बधाईयाँ व शुभकामनाएं ! ॐ तत्सत ॐ तत्सत ॐ तत्सत ॐ तत्सत। है इसी में विश्वपूरित ॐ तत्सत ॐ तत्सत।। भुनेश्वरी मां उदर जाये विश्वेश्वर नरेंदर कहाये पाया परमहंसी कृपा जब स्वामी विवेकानंद जताये भूख ईश्वर प्राप्त की दीन दुखियों संग उपगत ... ॐ तत्सत.... शिकागो शहर में धर्म-चर्चा अमेरिका गये बिना पर्चा भाइयों बहनों कहा जब प्यार पाया बिना खर्चा "वसुधैव कुटुंब" है बताया भारत का मत ... ॐ तत्सत ... कर्म और धर्म का संग भी संजों के रखना सभ्यता व संस्कृति ध्वजा फहरा के रखना देश का स्वाभिमान जागे साथ वैभव-यश बढ़े जन-जन के मानस पटल पे भाव ऐसा भर के रखना ए ही संदेशा दे गए हैं यही सच्चाई है सास्वत ... ॐ तत्सत ... संवेदना मन मे जगे साथ सेवा...
अकेली
कविता

अकेली

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक शाम गुजारी एक शाम गुजारी पिया तेरे नाम, तेरे नाम नीले अंबर तले तेरा साथ न था मैं मायूस रही एक शाम। काली घटाएं थी दामिनी के साथ ठंडी हवाएं थी हरे पत्तों के साथ वृक्षों के साथ थी लचीली लताएं हर कोई था साथ साथ एक मै थी उदास एक शाम। अंधियारे के साथी तारों के हिलमिल अवनी के साथी दीपक की बाती। हर कोई तो साथ था अपने ही संसार में मैं अकेली अकेली थी एक शाम। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौ...