नए-नए संस्कार
रामेश्वर पाल
बड़वाह (मध्य प्रदेश)
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प्रकृति और संस्कृति मे
नए-नए संस्कार आने लगे हैं
पनघट की रौनक और
महिलाओं के घुंघट
गायब होने लगे हैं।
आ गई है नई संस्कृति
नए-नए नजारे आने लगे हैं
पहले मनाते थे होली दिवाली
अब वैलेंटाइन डे मनाने लगे हैं।
होती थी रोनक घरों में
त्योहारों के आने से लोग
अब होटलों में जाने लगे हैं
भूल गए गुजिया मालपुआ को
बर्गर पिज़्ज़ा खाने लगे हैं।
बच्चे भूल गए बुआ फूफा को
ताऊ जी अंकल कहलाने लगे हैं
खाते थे साथ बैठकर खाना
अब टेबल कुर्सी सजाने लगे हैं।
रहते थे साथ में दादा दादी
भूल गए दादा दादी को
पापा भी संडे संडे घर
आने लगे हैं।
परिचय :- रामेश्वर पाल
निवासी : बड़वाह (मध्य प्रदेश)
विधा : कविता हास्य श्रृंगार व्यंग आदि।
प्रकाशित काव्य पुस्तक : पाल की चांदनी।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सु...