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कविता

तू कापुरुषों का पूत नहीं
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तू कापुरुषों का पूत नहीं

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** चलने से पहले तय कर ले, दुर्गम पथ है अँधियारों का। हे वीर व्रती ! तब बढ़ा चरण, होगा रण भीषण वारों का।। यह भी तय है तू जीतेगा, शासन होगा उजियारों का। तू कापुरुषों का पूत नहीं, वंशज है अग्निकुमारों का।। नदियाँ लावे की बहती थीं, जिनकी शुचि रक्त शिराओं में। जो हर युग में गणनीय रहे, धू-धू करती ज्वालाओं में।। तू उन अमरों का अमर पूत, आर्यों की अमर निशानी है। तेरी नस-नस में तप्त रक्त, पानीदारों का पानी है।। हे सूर्य अंश अब दिखा कला, कर सिद्ध शौर्य टंकारों का। दुनिया बोलेगी जयकारे, दिल दहल उठेगा रारों का।। तू कापुरुषों का पूत नहीं, वंशज है अग्निकुमारों का।। तेरी जननी की हरी कोख, करुणा की तरल पिटारी से। अवतरण हुआ है हे कृशानु! तेरा बुझती चिनगारी से।। हे हुताशनी पावक सपूत! बलधर अकूत...
सपनों का महल
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सपनों का महल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैंने कभी संजोए सपने सपनों में खो, खो कर कई महल ढहाये मैंने सपनों में बना-बना कर। आया कोई दूर गगन से तारांगणो का व्युह करो आंगन को दीप्त मेरे समा गया पुनः सपनों में। भर-भर पूंज उलिचा मैने सपनों के दोनों से गति प्रकाश की देखी मैंने कोसो, मिलो थी जो दूर मन बावरा उड़-उड़ जाता गवर्नर क्षितिज से दूर। यह पर्वतों की हरियाली वृक्षों की ऐ छाया शाख-शाख पर क्यों पुकारे पी-पी पपीहा गान। सपनों में जो मंजर देखा देखा स्वयं को चहकते हुए आंखें खुली तो न था पर्वत न हीं उलिचा गया कोई पुंज। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ले...
संकल्प
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संकल्प

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तपस्विनी की सुता भला, तप में विश्राम क्या पाऊंगी। प्रतिदिन नव कोपल सम ही मैं, आगे बढ़ती ही जाऊंगी। हरक्षण जो कष्ट लिए उर में, मैं उस वसुधा की जाई हूं। हो आदि पुरुष भी नतमस्तक, ऐसी शक्ति बन आई हूं। क्यों लक्ष्य नहीं मैं पाऊंगी, ना पीछे कदम हटाऊंगी। बाधाओं से लड़ जाऊंगी, निज स्वत: ढाल हो जाऊंगी। गर मार्ग बिना कंटक के हों, मंजिल में प्रीत न पाऊंगी। बिन बाधाओं के प्राप्त हुआ, वह लक्ष्य नहीं अभिशाप हुआ। जितनी ही असफलता आए, उतना ही कदम बढ़ाऊंगी। हरगिज भी ना अकुलाऊंगी, एक दिन मंजिल पा जाऊंगी। परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
हारते हुए मन को समझना
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हारते हुए मन को समझना

काजल कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** ये जिंदगी है मेरे दोस्त, बहुत आजमाएगी। जो चाहा नहीं कभी, वो भी करवाएगी ।। पर मतलब नहीं इसका, हम हारकर बैठ जाएं। कोशिशें छोड़ दें, खुद को समझाकर बैठ जाएं ।। अभी तो सफर लंबा है, बहुत दूर जाना है। जो रूठे हैं रास्ते उनको भी मनाना है ।। मत सुना करो उनकी जो रास नहीं आते । इंतजार उनका कैसा ..... जो इंतजार का अर्थ नही जानते ।। हर कोई हमें प्यार करे ये हमारे बस में नहीं । पर हम सबको प्यार दें, बेशक हमारे बस में है ।। हां, टूटी चीजें चुभती हैं, बहुत सताती हैं। मन की उदासी का बवंडर ले आती है ।। घुट-घुट के हम खुद में सिमट से जाते हैं । चाहकर भी इससे निकल नही पाते हैं ।। इसलिए खुद को ऐसा बनने मत देना । बेवजह आसुओं को बाहर निकलने मत देना ।। कह दे कोई खुदगर्ज तो चुपचाप सुनना । पर हमदर्द हमेश...
ज़िम्मेदार कौन
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ज़िम्मेदार कौन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कहीं ट्रक से ट्रक टकराता है, कहीं कोई बिना ब्रेक की गाड़ी दौड़ाता है इनका परिणाम हादसा होता है इनका ज़िम्मेदार कौन होता है? कहीं शराबी ड्राइवर ट्रक चलाता है कहीं बिना लाइसेंस के वैन भगाता है कभी स्कूल बस अनफ़िट होती है ये सब हादसों के शिकार होते हैं इनका ज़िम्मेदार कौन होता है कभी ८० की रफ़्तार मासूमों की जान लेती है कभी ओवरलोडेड ट्रक पलट जाता है कहीं गड्ढे गाड़ी उछालते हैं प्रति दिन हज़ारों जानें जाती हैं कोई मोबाइल के चलते गाड़ी चलाता है कोई असावधान हो जाता है लगातार गाड़ी चलाचला कर किसी की नींद पूरी नहीं होती ये सब कइयों की मौत से खेल जाते हैं इन सबका ज़िम्मेदार कौन होता है? ज़रा सोचें, ज़रा समझें, इनमें से कोई कारणों के ज़िम्मेदार हम स्वयं होते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : ...
हे ! महावीर
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हे ! महावीर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** महावीर कल्याणक तुमने दिया अहिंसा-गीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। राजपाठ तुमने सब त्यागा, करने जग कल्याण। हिंसा और को मारा, अधरम को नित वाण।। जितीन्द्रिय तुम नीति-प्रणेता, तुम करुणा की जीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। कठिन साधना तुमने साधी, तुम पाया था ज्ञान। नवल चेतना, उजियारे से, किया पाप-अवसान।। तुमने चोखा साधक बनकर, दिया हमें नवनीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। नीति, रीति का मार्ग दिखाया, सत्य सार बतलाया। मानवता के तु हो प्रहरी, रूप हमें है भाया।। त्यागी तुम-सा और न देखा, खोजा बहुत अतीत। तुम हो मानवता के वाहक, सच्चाई के मीत।। भटक रहा था मनुज निरंतर, तुमने उसको साधा, महावीर तुम, इंद्रिय-विजेता, परे भोग की बाधा।। कर्म सिखाया, सदाचार भी, तुम हो भावातीत। तुम हो म...
दूर कहीं अब चल
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दूर कहीं अब चल

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** राहत के दो पल आँखों से ओझल। रोज लड़े हम तुम निकला कोई हल ? न्यौता देतीं नित दो आँखें चंचल। झेल नहीं पाए हम अपनों के छल। भीड़ भरे जग से दूर कहीं अब चल। मौन तुझे पाकर चुप है कोलाहल। कितने गहरे हैं रिश्तों के दलदल। है आस मिलेंगे ही आज नहीं तो कल। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...
सम्राट अशोक
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सम्राट अशोक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बिंदुसार के पुत्र आपने एकछत्र साम्राज्य बनाया था, देश तो देश विदेशों में भी अपना लोहा मनवाया था, देख लहू की धार, अपने मन को विचलित पाया था, मन की शांति पाने खातिर बुद्धत्व को अपनाया था, लाखों स्तूप और शिलालेख धम्म के लिए बनाया था, हिंसा त्यागा अहिंसा अपनाया, खुद का मन निर्मल बनाया, आपने ही अथक प्रयत्न कर बुद्ध राह सहेजा था, पुत्र महेंद्र पुत्री संघमित्रा को समुद्र पार तभी तो भेजा था, शिक्षा लेने दुनियाभर से हर वर्ष हजारों आते थे, शिक्षा के संग शासन सुमता की बातें लेकर जाते थे, अशोक चक्र और चार शेर चिन्ह को देश ने यूं ही नहीं अपनाया है, विदेशियों ने अपने ग्रंथों में महान अशोक के निर्भीक शासनकाल का गुण गाया है, लड़ना नहीं है हमको अब तो मिलकर एक हो जाना है, अपना राज लाकर फिर से प्रियदर्शी का ...
जीत-जीत सोच तू जीत जायेगा
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जीत-जीत सोच तू जीत जायेगा

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जीत-जीत सोच तू जीत जायेगा। हार से कभी न फिर घबरायेगा। अकेला चल राह में कदमों को बढ़ा, एक दिन तेरा ये मेहनत रंग लायेगा।। कुरुक्षेत्र के मैदान में जंग है जारी। जी जान लगा अपनी कर तैयारी। धनुर्धारी अर्जुन बन संशय में न घिर, कृष्ण की तरह दिखा विराट अवतारी।। मंजिल की आंखों में पहले आंखें तो मिला। लक्ष्य पाने मनबाग में कुसुम तो खिला। नित कर्म ही तेरा भाग्य है वीर मनुज, रुकना नहीं चाहिए अभ्यास का सिलसिला।। आयेंगी चुनौतियां तेरी लेने परीक्षा। दृढ़ पर्वत के समान खड़ा कर प्रतीक्षा। साहस भरके मन में सामना तो कर, मिलेगी सफलता पूरी होगी हर इच्छा।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित। घोषणा पत्र : मैं ...
दामिनी की आवाज
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दामिनी की आवाज

श्रीमती निर्मला वर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लगता है पौरुष की परिभाषा बदल रही है बहन बेटी की रक्षा और दुलार की जगह हवस की भावना पनप रही है लगता है पौरुष की परिभाषा बदल रही है क्या वक्त, क्या जगह, क्या उम्र, क्या ब्याहता, कुमारी कन्या या वृद्धा सभी पर वासना कहर ढा रही हैं लगता है पौरुष की परिभाषा बदल रही है एक "शक्ति" का प्रतीक पर छः छह दानवों ने अपनी घिनौनी ताकत दिखाई पुरुष होने की क्रूर से क्रूरतम हैवानियत दिखाई नारी की सुरक्षा खतरे में दिख रही है लगता है पौरुष की परिभाषा बदल रही है उन दरिंदों के लिए अबला असहाय होने लगी, किंतु उसकी "कराह" सिहिनी की गर्जना बनी दामिनी नाम दिया है उसकी आह को क्योंकि दामिनी जब कड़कती है गरजती है तो आसमान से धरती को हिला देती है आज इस धरती की "दामिनी" ने हिला दिया है देश को क्षण भर की ...
उनको जब यह अहम हो गया हो गया
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उनको जब यह अहम हो गया हो गया

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** यह उनको जब यह अहम हो गया हो गया, हर कार्य होगा उनसे ही उनको यह बहम हो गया। मुर्गे के बाग देने के पहले ही भोर का सूर्य उदय हो गया।। यह उनको जब यह अहम हो गया हो गया। हर कार्य होगा उनसे ही उनको यह बहम हो गया। हर कार्य सफल होता है सब के सहयोग से वर्चस्व की लड़ाई से बना बनाया काम विफल हो गया।। यह उनको जब यह अहम हो गया हो गया, काम उनसे ‌ही होगा उनको यह बहम हो गया। कहे "अरविंद" सबका साथ-सबका सहयोग होगा तो आपका हर काम सफल हो गया। यह उनको जब यह अहम हो गया हो गया, काम उनसे ‌ही होगा उनको यह बहम हो गया। परिचय :-  अरविन्द सिंह गौर जन्म तिथि : १७ सितम्बर १९७९ निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) लेखन विधा : कविता, शायरी व समसामयिक सम्प्रति : वाणिज्य कर इंदौर संभाग सहायक ग्रेड तीन के पद में कार्यरत घोषणा पत्र :...
जरा होश में तो आओ
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जरा होश में तो आओ

डोमन निषाद डेविल डुंडा, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) ******************** रिश्वत का बजार क्यों है? हमें कोई कारण बताओ। कारण खुद के अंदर है, रिश्वत में ताला लगाओ। अधिकार का नारे बहुत हैं, हमें कोई कारण बताओ। कारण खुद के अंदर है, संविधान के पाठ पढा़ओ। भ्रूण हत्या क्यों हो रहे हैं, हमें कोई कारण बताओ। कारण खुद के अंदर हैं, बेटी को सम्मान दिलाओ। ये गरीबी कारण क्या है? हमें तो कारण बताओ। कारण खुद के अंदर हैं, शिक्षा की ज्योति जलाओ। हम दुःखी क्यों रहते हैं, हमें कोई कारण बताओ। कारण खुद के अंदर है, जरा होश में तो आओ। परिचय :- डोमन निषाद डेविल निवासी : डुंडा जिला बेमेतरा (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
गौरी की रक्षा…
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गौरी की रक्षा…

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** किसानों का यह असली साथी हर फुर्सत है इसके उपयोगी पीते हम गोरी का गोरस शरीर अपना बनाते मक्खन, छाछ, दही जैसे और कई मिठाइयां हम खाते गोबर से खाद बनता उपयोग इसका खेत में होता हरि घास से ये खाती है सूखे खाने में रह लेती है कभी न कोई इसकी शिकायत होती हर पल, हर समय यह शांत रहती ग्रामों में लोग शौक से पालते शहरों में इसके लिए कोई घर नहीं गौशाला का निर्माण करवाओ माता रूपी गाय की सेवा करो और तुम रक्षा करो परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
सुख और दुख
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सुख और दुख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अनुभव और ज्ञान मनुष्य के सुख दुख का कारण है, अब बताइए इसका क्या निवारण है, बंदर को कह दो हाथी, दुखी नहीं होगा उनका कोई साथी, हाथी को कह दो गधा, बिगड़ेगा नहीं चाल रहेगा सधा का सधा, शेर को कह दो सियार, नहीं बदलेगा वो खूंखार, खरगोश को कह दो चीता वो घास ही खायेगा, नहीं कोई खुशी मनाएगा, इन सारे जानवरों को बिल्कुल नहीं पता उनका नाम क्या है, पर इतना जरूर जानते हैं कि उनका काम क्या है, किसी को अपना नाम ज्ञात नहीं, नाम तो इंसानों की देन है, अपने अनुसार खेलता मानवी गेम है, ज्ञान और अनुभव के बिना वो अपनी दुनिया में खुश है, मगर सब कुछ जान कर मोह माया, स्वार्थ में डूबा आदमी नाखुश है, हर जीव जंतु अपने काम से जाने जाते हैं, केवल मनुष्य ही है जो नाम से जाने जाते हैं, तो मनुष्यों दुखी हो जाओ या सुख...
हे राम जी! मेरी गुहार सुनो
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हे राम जी! मेरी गुहार सुनो

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हे राम जी! मेरी पुकार सुनो एक बार फिर धरा पर आ जाओ धनुष उठाओ प्रत्यंचा चढ़ाओ कलयुग के अपराधियों आतताइयों, भ्रष्टाचारियों पर एक बार फिर से प्रहार करो। उस जमाने में एक ही रावण और उसका ही कुनबा था जो कुल, वंश भी राक्षस का था फिर भी अपने उसूलों पर अडिग था, पर आज तो जहां-तहां रावण ही रावण घूम रहे हैं जाने कितने रावण के कुनबे फलते-फूलते वातावरण दूषित कर रहे हैं। इंसानी आवरण में जाने कितने राक्षस बहुरुपिए बन धरा पर आज स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं समाज सेवा का दंभ भर रहे हैं सिद्धांतों की दुहाई गला फाड़कर दे रहे हैं भ्रष्टाचार, अनाचार अत्याचार ही नहीं दंगा फसाद भी खुशी से कर रहे हैं दहशत का जगह-जगह बाजार सजा रहे हैं। जाति धर्म की आड़ में अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं अकूत धन संपत्ति से ...
नारी शक्ति
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नारी शक्ति

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** युग कोई भी आ जाए, क्यों नारी छली ही जाती है। कभी सिया कभी मीरा राधा, बन वह कष्ट उठाती है। अग्नि परीक्षा देकर भी, क्यों वन को भेजी जाती है। कभी सिया कभी मीरा राधा बन वो कष्ट उठाती है। अब तो रघुवर आ जाओ, सीता का कष्ट मिटा जाओ। उस युग में ना सही मगर, इस युग में न्याय दिला जाओ। विरह कलह सतवार सहन कर, हरगिज़ ना अकुल आती है। प्रचंड ज्वार हर बार प्रहार को, छलनी करती जाती है। कभी सिया कभी मीरा राधा, बन वह कष्ट उठाते हैं। परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र ...
बसन्ती महक उठी
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बसन्ती महक उठी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बासन्ती, महक उठी ! चंचल-प्रकृति-बीच- कोयल बहक उठी ! गुलमोहर की डालों-पे गिलहरी-लहराई ! अढ़उल की शाखों पे- गौरैया-शरमाई ! सेमल-पलास बीच दिशाऍ लहक उठी ! पीपल पे हरी-हरी बदली छिटक उठी...! पाकड़ पे 'उजास' फूटा, बरगद पे ठिठका ! मौसम का ठौर-ठौर वृक्षों पे अटका ! महुआ के गुंचो में रसना समा रही ! अमरइया की मंजरी- किसको न भा रही ! मोरों को लय-ताल तीतर समझा रहा.. कपोत कुछ आगे फिर- पीछे-को जा रहा.. ! नीम के कोतड़ में तोते आनन्द-भरें... कठफोड़वा के श्रम पे ना जरा भी गौर करें..! जामुन के फूलों पे- भवरी-लहराई ! छींट-सारी पहनाई! शिरीष की शाखों-पे कर्णफूल लटक रहे ! अमलताश अब भी- पीताभ को तरस रहे! अर्जुन ने देखो, नव-किसलय है पाया! गूलर का फूल कहॉ सबको नजर आया! अन्दर ही अन्दर 'प्रकृति', रचना अप...
निर्बल संगम
कविता

निर्बल संगम

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** व्यक्ति व्यक्ति का निर्बल संगम कर रहा मानवता को कायर बोल रही आज अमानवता कर रहे मानवता में दानवता। सत्य, स्फुरति, स्पंदन उड़ गया मानवता से जागे आज अनेक रावण करवाते नित नए क्रंदन एक पुरुष का पौरूष जागे करें क्या एक अकेला। इस नर्तन में। रक्त देख रक्त खोलता था शिराएं थी तन जाती। वर्तमनु, मनुष्य नहीं है मांगना केवल अपनी ख्याति में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती है...
शत शत नमन सभी माँओं को
कविता

शत शत नमन सभी माँओं को

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तीनों माँयें पूजनीय हैं, जिननें ऐसे लाल जने। हुए शहीद युवावस्था में, पर भारत की ढाल बने। वैदेही वन गमन हुआ जब, तब जन-जन रोया था, धैर्य देख लो उन माँओं का, जिनका सुत खोया था। धन्य धरा है, धन्य देश है, जिसमें थे तीनों जनमें। हैं सतवार धन्य माताएं, निज सुत भेजे थे रण में। भगत सिंह सुखदेव राजगुरु, तीनों की थी तरुणाई। भारत माता की रक्षा हित, ली,तीनों ने अँगड़ाई। खट्टे दाँत किये दुश्मन के, कोई पास न आता था। हर अँग्रेजी सैनिक डर से, नाकों चने चबाता था। सिंह गर्जना सुन तीनों की, गोरे भी थर्राते थे। चाँद सितारे भरी दोपहर, नजर उन्हें भी आते थे। भीषण अत्याचार किया था, गोरों ने ही झाँसी पर। माँ का फटा कलेजा होगा, लाल चढ़े जब फाँसी पर। चूमा था तीनों ने फंदा, हो बुलंद हँसते-हँसते। जैसे शाही ...
सबको हंसा दो
कविता

सबको हंसा दो

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** सबका जीवन भरा कष्टों से पर हंसकर पार करो तुम माना धन की कमी है सभी को पर दिल से रहीश बनो तुम । आज अकेले कर परिश्रम दिखा दो ताकत सभी को तुम । करके जरूरतें कम अपनी खुशियों को बढ़ा लो तुम । आज पैदल कल साइकिल से चल गाड़ी में बैठ जाना एक दिन तुम बड़ों का आदर छोटों से प्यार सबके दिलों पर राज करो तुम गम में होके सरीक सभी के दुखों को कम कर दो ना तुम मुरझाए चेहरे हैं चारों तरफ बोल मीठे बोल खिलखिला दो तुम अपनी चाहतों को फैला कर रोते को सीमा हंसा दो ना तुम परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल...
माँ  कृपा
कविता

माँ कृपा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ कृपा बड़ी निराली है करो समर्पण फिर जिंदगी में खुशहाली है भले ही माँ भूखी रह जाती है मुझे आई तृप्ति की डकार से माँ संतुष्ट हो जाती है। संसार में माँ ही शक्तिशाली है बिन माँ के दुनिया की बदहाली है माँ रातो को लोरिया सुनाती है नींद में मीठे सपनो को बुलाती है। कभी नींद में हँसाती गालो में गड्डे बनाती है जब जब माँ की याद आती है सुबह मीठी आवाज में उठाती है। माथे को चुम कर बालो को सहलाती है स्वर्ग धरा पर बनाती है माँ का कृपा बड़ी निराली है करो समर्पण फिर जिंदगी में खुशहाली है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निर...
माँ भारती शर्मसार हो गई
कविता

माँ भारती शर्मसार हो गई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पाशविक दहलाती करतूतें हदों से ही गुज़र गई दरिंदों की दारुण बेहयाई अब सीमा पार हो गई नैतिक मूल्यों की वो बातें कहाँ बिखर बिसर गई अमानवि दुःशासिनी हरकतें अब तो कारगार हो गई देवियों से पूजित बेटियों की चुनरी क्यूँ तार तार हो गई ये मासूम अधखिली कलियाँ अब दर्द से बेज़ार हो गई नोची खसोटी गई कई गोरियाँ अनब्याही ही आज रह गई ख़्वाबों की सुरमई गलियों से बदनाम बस्तियाँ बन गई शिवानी एलीना आसिफ़ा सी निर्भया दामिनी चली गई हाथरस में मनीषा की हड्डियां हथौड़े से चूर चूर हो गई ना रहा भय महामारी का इन्हें दुर्दांत कहानी मशहूर हो गई रक्तरंजित गूंज रही कराहों से यम- ड्योढ़ी तरबतर हो गई लक्ष्मी दुर्गा पद्मिनी के देश में माँ भारती शर्मसार हो गई परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ह...
नारी का समर्पण
कविता

नारी का समर्पण

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** देखो-देखो नारी समर्पण, इस जग में सबसे न्यारा और प्यारा। इतिहास भी साक्षी है, हर नारी बोले, हर पुरुष नारी तोले, बिन बात पति बोले, पत्नी से हौले-हौले, तुम सारा दिन करती ही क्या हो ? प्रश्न सुन पत्नी का क्रोध खौलें, पत्नी कहे मत दिखाओ, नयनों के गोले, तुम कितने हो भोले, ऐसी कटु वाणी से रिश्ते हो जाते पोले। तुम सब पुरुष पहन लो मानवता के चोल़े, हर्ष से भर लो अपने-अपने झोले। जीवन नैया तुम्हारी क्यों डोले ? यह जानो और समझो। तुम बजाओ शहनाई, और सुंदर जीवन संगीत के ढोलक-ढोले। अपने-अपने अंतस भरे अहंकार कालिमा धौले। हटाओ घृणा, द्वेष, ईर्ष्या के फफोले। समझो नारी समर्पण का मोल, भस्म करो पंच विकार ज्ञान यज्ञों की अग्नि में, मत करो नारी से अति अपेक्षा का लोभ। अब जान भी जाओ और मान भी जाओ। न...
नव वर्ष संकल्प करें
कविता

नव वर्ष संकल्प करें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ इस नववर्ष संकल्प करें बीते कल का आभार करें, नव संवत्सर का सत्कार करें उज्जवल भविष्य की सोच लिए अपनी मंजिल की ओर बढ़ें तमस मिटा अंतर्मन का, हर भेद भाव को दूर करें नई उमंग नई चाह लिए जीवन में नया प्रवाह भरें भूल गए जिन कर्तव्यों को संपूर्ण उन्हें इस वर्ष करें हर जीव को सम्मान मिले, जीने का अधिकार मिले, हर चेहरे पर मुस्कान खिले, हौसला ये रख हर कदम बढ़ें क्यों भूल गया मानव इनको, धरती माता के लाल हैं ये निर्बल, असहाय, कमजोर मगर ईश्वर का प्रतिरूप हैं ये ले दृढ़ प्रतिज्ञ इनके हक़ में इनका मार्ग प्रशस्त बनाना है सृष्टि के उपहार हैं ये इसका कर्ज चुकाना है ये धरा-गगन कल कल नदियां, हर जीवन का आधार हैं ये वन का मूल्य पहचान हमें इनका अस्तित्व बचाना है ले प्रण हर जीवन के संरक्षण का धरती का सौंदर...
ये ख्वाब हमारे
कविता

ये ख्वाब हमारे

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** जब देश की आजादी के १०० वर्ष पूरे होंगे आजादी के अमृत काल तक भारतीय शिक्षा नीति सारी दुनिया को दिशा देने वाले दिन होंगे ये ख्वाब हमारे संकल्प सामर्थ्य से पूरे होंगे अमृत काल में हिंदुस्तान की शिक्षा नीति की विश्व प्रशंसा करे, यहां ज्ञान लेने आएं, ऐसा हमारा गौरव हों, विश्व कल्याण की भूमिका निर्वहन करने में भारत समर्थ होंगे राष्ट्रीय शिक्षा नीति को शिक्षकों प्रशासकों ने गंभीरता से अमल में लाना है शिक्षा क्षेत्र में भारत को विश्वगुरु बनाना है भारतीय युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं बस गंभीरता से उसे पहचानना है शिक्षण को स्वांदात्मक बहुआयामी आनंदमयी अनुभव बनाना है छात्रों में मूल्यों को विकसित करने शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित करनाहै छात्रों के आचरण को सुधारने विपरीत परिस्थितियों का स...