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कविता

आओ हिन्दी अपनाए
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आओ हिन्दी अपनाए

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** माँ भारती के माथे की बिन्दी, ऐसी भाषा हमारी हिन्दी। सरस, सरल और प्राचीन, प्रमुख भाषाओं में नामचीन। संस्कृति संस्कारों को देती मान, हिन्दी भाषा हमारा अभिमान। परिपूर्णता की परिभाषा है, उज्जवल भविष्य की आशा है। हिन्दी सचमुच खास है, विदेशियों को भी इसका एहसास है। हिन्दी को मिली नई पहचान है, "नमस्ते भारत "कहना हमारी शान है। इससे झलकता है अपनापन, सहज बनाती है ये जीवन । काम काज में इसे अपनाए, हिन्दी का हम मान बढ़ाए। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
राष्ट्र का सम्मान है हिंदी
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राष्ट्र का सम्मान है हिंदी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** राष्ट्र का मान है सम्मान है हिंदी...! भारत की आन है पहचान है हिंदी...!! मीरा की कृष्ण के प्रति भक्ति है हिंदी...! सुरदास के सूर में शक्ति है हिंदी...!! निराशा में भी आशा की किरण है हिंदी...!! कभी शब्द तो कभी शब्दों का अर्थ है हिंदी...!! राधा कृष्ण के परिशुद्ध प्रेम की परिभाषा है हिंदी...! प्रकृति का मधुर स्वर है हिंदी..!! मानव की मानवता का अस्तित्व है हिंदी...! 'निराला' की कविताका रस है हिंदी...!! पवन की पुरवाई में समाई है हिंदी...! नभ की काली घटाओ में है हिंदी...!! माटी की खुशबू में महकती है हिंदी...! वीरों के लहू में धडकती है हिंदी...!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत माँ का अलंकार है हिंदी, भारत माँ का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। जन-गण मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नों की बोली है हिंदी, विद्वानों की विद्वता परिभाषित करती है हिंदी, जब जब संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकार की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती दिखती, भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी जन गण मन में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत माँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त...
आंखों की मर्जी
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आंखों की मर्जी

नरेंद्र शास्त्री कुरुक्षेत्र ******************** आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है। बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है।। सूरज ढला चांद निकला तारे चमके। दिन की तो बात छोड़िए ये आंखें अब रातों में भी जगी है।। पानी पिया शरबत पी चाय तक पी डाली। ये कैसी प्यास है जो अभी तक लगी है।। तेरे अल्हड़ स्वभाव में नादानियां बहुत हैं। तुझे समझाने में मुझे एक मुद्दत लगी है।। वक्त है सावन का और हवा भी ठंडी चली है। पता करो जंगल में यह बेवफाई की आग क्यों लगी है।। तेरा मिजाज भी मेरी हरकतों से मिलने लगा है। यह तेरी हंसी मेरी मुस्कुराहट से मिलने लगी है।। जिंदगी ने छीना मुझसे मेरा चैन मेरा सकुन मेरे सपने। यहां तक कि मेरी सांसे भी ठगी है।। आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है। बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है।। परिचय :- न...
बातें हैं
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बातें हैं

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** बातें हैं, बातों का क्या, बातें तो चूड़ी की तरह होती है, जो घूमकर फिर वही आ जाती है, बातें है, बातों का क्या। तुम जितना उसे समझना चाहोगें, जितना उन पर घोर करोगें, वो उतनी ही तुम्हें उलझती नजर आयेंगी, बातें हैं, बातों का क्या। बातें पेंच की तरह होती हैं, उसे जितना कसो वो कसती ही जाती हैं, उसे जितना मोड़ो वो मुड़ती ही जाती हैं, बातें हैं, बातों का क्या। बातें हैं, बातों का क्या। यें बातें ही तो, क्या कुछ करवाती हैं, किसको झुठा, किसको सच्चा बतलाती हैं, बातें हैं, बातों का क्या। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
क्या है हिन्दी …?
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क्या है हिन्दी …?

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** हमारी आत्माभिव्यक्ति की भाषा है हिंदी, मां की ममता, पिता की आशा है हिंदी, दिल की तार जो छेड़ दे वो मधुर गान है, मैत्री की, प्रीति की परिभाषा है हिंदी, सखी है, बहन है, माता है, प्रिया है, डूबा है इसमें वें जो इसको जिया है, हल्कू है, झूरी है, धनिया है, होरी है, सुहाग की साड़ी को मरती एक गोरी है, धनपत राय को मुंशी की पहचान है, ग्रामीण जीवन को दिखाता गोदान है, आँसू है, लहर हैं, झरना का पानी, विनाश में नवनिर्माण दिखाती कामायनी, प्रसाद है, पंत है, महादेवी की गान है, गद्य को आधार देते, भारतेंदु महान है, तिलस्मी अय्यारी है, चंद्रकांता प्यारी है, देवकीनंदन की करामाती, अलगू जुम्मन की यारी है, कुरुक्षेत्र की भूमि में पड़े पितामह अवधूत है, रश्मीरथी का कृष्ण सिखाते शान्ति दूत है, विषमता को दूर करने मुक्तिबोध उठाय...
हिंदी पखवाड़ा
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हिंदी पखवाड़ा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सितंबर का यह महीना लो फिर आ गया भाई हिंदी दिवस, खूब मनेगा फिर नई खुशी फिर छाई सबका होगा फिर जमकर जमावड़ा जमकर हिंदी का मनुहार होगा जमकर चलेगा पखवाडा विकसित करने को हिंदी कामयाब करेंगे पखवाडा दिवस हिंदी पर लगाया जाएगा समृद्ध करने का गहरा झाड़ा हिंदी के समृद्ध की गहराई तनमन से ढूंढी जायेगी खुशियां अन्तर्मन में खूब जोरों पर हिंदी को प्रचारित प्रसारित की लहरायेगी हिंदी की तरक्की में दिमागी कसरतें नई नई तरकीबें कागज कलम में पखवाड़े में लिपिबद्ध होती आएगी हिंदी दिवस मनाने की याद दिल में सबजन को सितंबर में अक्सर सताती है कार्यशाला गोष्ठी प्रतियोगिता खूब दिलचस्प कर दी जाती है जमकर होता है आयोजन हिंदी को मजबूत करो हिंदी विकसित करो बोलो हिंदी करो समृद्ध जमकर भाषण में सारी बातें सबजन उठाते है जन ...
जिन्दगी
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जिन्दगी

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सुख और दुख का डेरा है जिंदगी। उजाला तो कभी अंधेरा है जिंदगी।। छांव कहीं तपती धूप है जिंदगी। माथे चंदन कहीं धूल है जिंदगी।। मशहूर कहीं बदनाम है जिंदगी। सुबह तो कहीं शाम है जिंदगी।। टूटना हारना और है बिखरना जिंदगी। गिरकर खुद ही सम्भलना है जिंदगी।। कहीं छल-कपट से घिरी है जिंदगी।। दुश्मन कहीं अपनों से भिड़ी है जिंदगी।। झूठी आशाओं से उदास है जिंदगी। कहीं उम्मीदों की आवाज है जिंदगी।। खुशियाँ तो कहीं गमों का भंडार है जिंदगी। कड़वाहट तो कहीं मीठे रस की धार है जिंदगी।। माना कि हर कदम इम्तिहान है जिंदगी। पर फर्ज निभाते रहें तो आसान है जिंदगी।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आज तेरी बारी आई
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आज तेरी बारी आई

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** मान ले बात मात-पिता की आज बारी तेरी आई। पढ़ ले, निखार ले खुद को वक्त को जानने की बारी आई। उठ प्रातः कर मेहनत पूरा दिन समय का सदुपयोग की बारी आई। भूल जा मस्ती, शरारतें, त्याग निंद्रा उज्जवल भविष्य करने की बारी आई। कम वक्त है पास तुम्हारे नसीहतें मानने की बारी आई। नहीं रहेंगे तुझे कहने वाले एक दिन तड़पाएगा वक्त ,समझने की बारी आई। अकेला रह जाएगा इस दुनिया में आज संभलने की बारी आई। कहीं पछताता ना रह जाए सीमा आज वक्त को जानने की बारी आई। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से...
वीर का संदेश
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वीर का संदेश

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** जब तिरंगे में घर आऊं, ओ पापा धीरज मत खोना, आंसू जो आंखों में छलके, पलकों के भीतर में रखना। युद्ध भूमि में घायल हूं मैं, कुछ सांसों का साथ बचा है, पर तेरे बेटे से पापा, यहां पे हाहाकार मचा है। नहीं बचा सीमा पर दुश्मन, मां का आंचल स्वच्छ हुआ, अपने तिरंगे की रक्षा का, मेरा सपना पूर्ण हुआ। ओ पापा मैं फिर आऊंगा, जब जब देश पुकारेगा, सौगंध तुम्हे इस बेटे की, मैं अपना वचन निभाऊंगा। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : दो कहानी संग्रह प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत...
शिक्षा है अनमोल रत्न-सी
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शिक्षा है अनमोल रत्न-सी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सदा मुक्त करती बंधन से, शिक्षा ज्ञान बढ़ती। ज्ञानी-गुणी बना मानव को, जग में मान दिलाती। शिक्षा देना पुण्य कार्य है, जो भी देकर जाने। शिक्षा देने वाले गुरु को, जगत विधाता माने। शिक्षा पाकर ही हर मानव, शिक्षित है कहलाता। ज्ञान-चक्षु जब खुल जाते हैं, तब दीक्षित हो जाता। शिक्षा को व्यवसाय बनाकर, जो शिक्षा देते हैं। शैक्षणिक व्यवसाय समझ कर, ही भिक्षा देते हैं। शिक्षक की छवि, धूमिल होती, शिक्षा ज्ञान न देती। ऐसी शिक्षा बन जाती है, कम उत्पादक खेती। शिक्षा को, व्यवसाय बनाना, पाप कर्म है भारी। शिक्षा सहित, कलंकित खुद को, करने की तैयारी। और अधिक, पाने की चाहत, ही लालच कहलाती। लालच, तृष्णा ही मानव का, है ईमान गिराती। शिक्षा है अनमोल रत्न- सी, खुशियों भरा खजाना। सुचिता, सात्विकता से हमको, श...
मेहनत और किस्मत
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मेहनत और किस्मत

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेहनत कर प्यारे, किस्मत के भरोसे ना बैठ, रुतबा अपने पास ही रख, यूँ ना ऐंठ, मेहनत हमेशा सबको उबारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। परिश्रम कर, श्रमसीकर बहा, निठल्ला ना बैठ, तप कर कड़ी धूप में, यूँ चैन से ना बैठ, पेट की अगन सबको मारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। परिश्रम से लिख दो अपने किस्मत की लकीर, श्रम के बूँद से चमकाओ अपनी तकदीर, तकदीर बदलने के लिए मेहनत पुकारती है, मेहनत से हमेशा किस्मत हारती है।। पथरीली राहों में चाहते हो पर्वतों को लाँघ जाना बादलों को चीरकर चाहते हो ऊँची मंजिल पाना स्याह रात में भी जलाते रहो चिरागों की आरती मेहनत से हमेशा किस्मत है हारती।। खींच दो लकीर आसमां की बुलंदियों पर बना लो आशियाना चमकते हुए चांँद पर परिंदा भी पापी पेट खातिर चों...
जीवन  है परिवर्तन
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जीवन है परिवर्तन

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** शैशव को कर पार किशोरी की अरुणाई शनै शनै:तरुणाई में बदल गई। बालेपन की उन्मुक्त पवन सी चुनमुन चिड़िया की रफ्तार मीठी शहनाई में बदल गई। बचपन की एन .सी.सी.की ठक् ठक् करती कदमताल नूपुर की रुनझुन में बदल गई। दौड़ा करती भोली बिटिया जीवन संगिनी में बदल गई पायल की बेड़ी में बदल गई। नवपल्लव मृदुता को तज विशाल वृक्ष की काया बन शीतल छाया में बदल जाते हैं। ठुमक ठुमक नन्हें पग वृद्धि सिद्धि से हो उन्नत अपना कर्तव्य निभाते हैं। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्य...
उदित हुआ हूँ मैं
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उदित हुआ हूँ मैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** उदित हुआ हूँ पुनः अंधकार का सीना चीर कर मृत्यु का भय नहीं, ना कुछ खोने का डर है, अनंतर चल पड़ा हूँ अपने अग्निपथ पर संघर्षशील चुनौतियों का सामना करने! निर्मित हुआ हूँ, विकसित हुआ हूँ लौटा हूं प्रकाश पुंज बनकर दिए की लौ की भांति नहीं, दिवाकर का तेज लेकर, कर्मों के समीकरण से सुलझा सकता हूँ शतरंज की इस पारी को, जो विधाता ने बिछाई थी, किन्तु मैं अजेय होकर निखरा हूँ लिखूँगा अब जीवों का भाग्य मैं स्वयं ही, ना होगा उसमें कोई छल समझौता, ना ही असफलता की होगी कोई परिभाषा उजियारा बन छा जाऊंगा इस विशाल नभ और थल पर, पराजय कोई विकल्प नहीं, अब जीत के मंत्र की जीवनी लिखूँगा! माना कि जीवन संघर्ष का नाम है परंतु स्वयं के पुरुषार्थ से पुरुषोत्तम बनूँगा जीवों के लिए नहीं है शेष कोई उधार मेरे ...
हे प्राणप्रिय …
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हे प्राणप्रिय …

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जब-जब घर से जाना होता, बहुत दिनों पर आना होता, नत नयनों को नम करके, अंतिम दिन का खाना होता ! प्रिय से बोली प्राणप्रिया तब, बोझिल लगता कर्म क्रिया अब, अबकी लौट के ‌आना जल्दी, बिना आप के शून्य यहाॅं सब! बिना आप के मेरे आर्य, ठीक न लगता कोई कार्य, रजनी दिवस ‌स्वपन जागृत में, हो गये हैं आप अब अपरिहार्य! दो जिस्मों में एक है जान, सच कहती हूॅं झूठ न मान, तुम बिन मेरा अस्तित्व नहीं है, मेरी तो ‌केवल तुम शान ! बच्चों का भी यही है हाल, टिफिन बैग स्कूल बवाल, जाती हूॅं थक ताम झाम से, सब लगता जी का जंजाल! क्यों पढ़ना-लिखना छोड़ दिए, क्यों अपने मुंह को मोड़ लिए, पथ के कांटों को फूल बनाकर, क्यों अपनी राह को मोड़ लिए! नयन राह की ओर निहारे, सबकी आशा हो तुम प्यारे, ओ मेरे जीवन आधार, आ जाओ जी चाह पुकारे!! ...
राखी बनाम वचन पर्व
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राखी बनाम वचन पर्व

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** थाल सजाकर बहन कह रही, आज बँधालो राखी। इस राखी में छुपी हुई है, अरमानों की साखी।। चंदन रोरी अक्षत मिसरी, आकुल कच्चे-धागे। अगर नहीं आए तो समझो, हम हैं बहुत अभागे।। क्या सरहद से एक दिवस की, छुट्टी ना मिल पायी? अथवा कोई और वजह है, मुझे बता दो भाई ? अब आँखों को चैन नहीं है और न दिल को राहत। एक बार बस आकर भइया, पूरी कर दो चाहत।। अहा! परम सौभाग्य कई जन, इसी ओर हैं आते। रक्षाबंधन के अवसर पर, भारत की जय गाते।। और साथ में ओढ़ तिरंगा, मुस्काता है भाई। एक साथ मेरे सम्मुख हैं, लाखों बढ़ी कलाई।। बरस रहा आँखों से पानी, कुछ भी समझ न आये। किसको बाँधू, किसको छोड़ू, कोई राह बताए? उसी वक्त बहनों की टोली, आई मेरे द्वारे। सोया भाई गर्वित होकर, सबकी ओर निहारे।। अब राखी की कमी नहीं है और न कम हैं भाई...
जंगल में चुनाव
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जंगल में चुनाव

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुन चुनाव की बात समूचा जंगल ही हो उठा अधीर। माँस चीथनेवाले हिंसक खाने लगे महेरी खीर।। धर्म-कर्म का हुआ जागरण आलस उड़ कर हुआ कपूर। देने लगे दुहाई सत की असत हो उठा कोसों दूर।। बिकने लगे जनेऊ जमकर दिखने लगे तिलक तिरपुण्ड। जानवरों के मरियल नायक बन बैठे हैं सण्ड-मुसण्ड।। ऊपर से मतभेद भुलाकर भीतर भरे रखे मन भेद। तू-तू मैं-मैं करके सरके आसमान में करके छेद।। श्वान न्यौतने लगे बिल्लियाँ बिल्ली न्यौते मूषक राज। देखी दरियादिली चील की बुलबुल की कर उठी मसाज।। लूलों ने तलवार थाम ली लँगड़े चढ़ने लगे पहाड़। बूढ़े श्वान भूलकर भौं भौं बकने लगे दहाड़ दहाड़।। भालू भैंस भेड़िए गीदड़ गिद्ध तेंदुए चीते चील। बकरी बन्दर बाघिन बगुले साँवर गैंडे हिरन अबील।। एक दूसरे के सब दुश्मन हुए इकट्ठे वन में यार। चले...
आम सी लड़की
कविता

आम सी लड़की

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सुन कर मोहब्बत के अधूरे किस्से सहम जाती है आम सी लड़की। अजनबी लोगों को देख घबराकर छुप जाती है आम सी लड़की। माँ के आंचल को, पापा के कंधे को अपनी ढाल समझती हैं आम सी लड़की। इश्क़ तो दूर उसके नाम से भी डर जाती है आम सी लड़की। इश्क़ लिखती है, इश्क़ पढ़ती है मगर इश्क़ करने से डरती है आम सी लड़की। मिलती नहीं, दिखती नहीं कहीं भी आजकल आम सी लड़की। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...
छंदमुक्त – क्षणिकाएँ
कविता

छंदमुक्त – क्षणिकाएँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंदमुक्त - क्षणिकाएँ भूख- मासूमा खड़ी चौराहे पे हाथ में ले कटोरा एक साया खाना लिए ले गया अँधेरे में भरपेट खिलाया उसे सहलाया पुचकारा ख़ुद भी भूखा था जी भरकर मिटाई अपनी देह की भूख एक दीया- मत जलाना दीए किसी भी दिवाली पर न राहें या चौराहें न घर न बाहर न मंदिर या मस्ज़िद में न यहाँ न वहाँ व्यर्थ उजाले की न हो चाह याद से लगाना एक दीया सरहद के शहीदों के नाम क्या हो- प्रदूषित सृष्टि जल-थल-नभ अशुद्ध हरीतिमा विलुप्त मरुथल विस्तृत पशु संपदा संतप्त नदियाँ अतृप्त जल-जीव मृत दम घोटती मलय पंछी विहल बचे पर्यावरण क्या हो भवितव्य न से नः तक- न ना से नदी व नारी नि से निशदिन व्यस्त नी से नीयत शुद्ध नु से नुमाइश न करे नू से नूतन सदा ही ने से नेकी ही करे नै से नैतिकता निभाए नो ये कभी नहीं कहे नौ से नौनिहाल द...
चंचल लहरें
कविता

चंचल लहरें

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मचल उठे चंचल, लहरों के साथ कगारे। माझी के अधरों ने, नूतन गान सँवारे। ज्वार उठा सागर में, अनगिन घन मँडरायें। लहर लहर सागर में, ताँडव नृत्य दिखाये। घिर घिर कर आता, अम्बर में घोर अंधेरा, ज्वार उठा सागर में, मांझी दूर सवेरा। भीषण लहरों पर, तिरती आशा की कश्ती। कर में मांझी ने ली, बाँध प्रलय की मस्ती। गर्जन तर्जन में माँझी, मंजिल रहा निहारें। माँझी के अधरों ने, नूतन गान सँवारे। बिन्दु बिन्दु ने आज, सिंन्धु में विष फैलाया, करना है विषपान, सोच माँझी मुस्काया। देख प्रलय ने अपनी, भाषा में कुछ बोला, सुन माँझी ने अपने, मन में साहस तोला। प्रलय तुम्हारी लहरें, तट धरती के सारे। माँझी के अधरों ने, नूतन गान संवारे। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्...
मैं स्त्री
कविता

मैं स्त्री

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पिता पति दो तटबंधों के मध्य, आजीवन नदी बन बहती रहूं। मैं स्त्री हर कदम पर वर्जनाएं, जन्म से मरण तक सहती रहूं। क्यूं नर जन्म पर बजती थाली, और मैं पराया धन सुनती रहूं। मेरे ही जल से सिंचित जीवन, सदियों से अबला बनती रहूं। मैं जिस आंगन में पली बढ़ी, वो घर बाबुल का सुनती रहूं। ठुमकी मचली जिस देहरी में, कब चिड़िया बन उड़ती रहूं। फल फूल खुश्बू से सरोबार, मैं तरु माफ़िक फलती रहूं। पिता पति के घर को भला, कैसे! मैं अपना बुनती रहूं। पापा रोती होगी तेरी काया, जब मैं दूजे घर जलती रहूं। कोख सिसकती रही मां की, लाल जोड़े में लटकती रहूं। मैं प्रकृति को संवार कर भी, नर से जीवन भर छलती रहूं। सीता अहिल्या द्रोपदी बन, सदा हर युग में बुझती रहूं। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) ...
हम सहेलियाँ
कविता

हम सहेलियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सखियाँ, हम सहेलियाँ, हम हैं हमजोलियां, बात बहुत पुरानी है, पर प्यार, स्नेह, लगाव, परवाह अभी भी नया है जीवन की राह में मिलती हैं कई सखियाँ किन्तु कुछ ही प्रिय और अनमोल बन पाती हैं सहेलियाँ, हम भी हैं कुछ वैसी ही सलोनीयां बरसों साथ रहे, सुख दुख भी बांटे साथ-साथ बच्चे भी बन गए आपस में सहेलियाँ! कभी कहीं जाते कभी कहीं जाते, साथ थिरकते साथ गाते साथ ही साथ हर उत्सव मानते! कभी कोई रूठता कभी कोई टूटता, आपस में मिलकर उसे मनाते और फिर से जुड़ जाते गहरी सहेलियाँ! समय बीता, साल बीते, बच्चे बड़े हुए थोड़ा दूर निकल गए बालों में सफ़ेदी की चमक आई, चेहरे पर सिलवटें भी आ गयीं, थोड़ा कमर भी छुकी थोड़ा मध्यम हुए, जिम्मेदारी के बोझ तले कभी असहाय-लाचार भी हुईं हम सहेलियाँ, मगर सबको साथ लेक...
पंडित जी के मोक्ष
कविता

पंडित जी के मोक्ष

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** कंधे से कंधे मिला कर चलने वाला दोस्त, जब आपको कंधो पर बैठाकर समूचा बस्तर दशहरा दिखा दिया हो! एक ऐसा दोस्त जो हॉस्टल से घर जाने के बाद सेमेस्टर ब्रेक में भी आपको कॉल करता हो... और हर बार ये फोन लगाकर पूछता हो कि "कब आथस बे?" एक ऐसा दोस्त जिसे घर पहुँच कर बताना पड़े की "हां पहुँच गे हो बे" जो तुम्हें हॉस्टल आने की हर खबर सुनते ही बस स्टेशन पर हर बार लेने पहुँच जाए। वो हर एक दोस्त का बेस्ट फ्रेंड है पर उसके नज़र में हर एक दोस्त बेस्ट है। वो जंहा बैठे वंहा महफ़िल बन जाए मुझे वो कुछ इस तरह मिला गया जैसे देवभोग के खदान से हीरा बेस्ट सीआर, यारों का यार, सीनियरस का मान, कॉलेज की शान सभी के दिलों में राज करने वाला नाम है - मोक्ष परिचय :- उत्कर्ष सोनबोइर (विधार्थी) निवासी : खुर्सीपार भिला...
शिक्षक: एक भविष्य निर्माता
कविता

शिक्षक: एक भविष्य निर्माता

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** ज्ञान की पाठशाला में, जो सबको पढ़ाई करवाता है। वो शिक्षक ही तो है, जो बगिया में फूल खिलाता है।। सादे कोरे कागज में, शब्द लिखकर चित्र बनाता है। बच्चे कच्ची मिट्टी के समान, उन्हें आकार दे जाता है।। स्वयं चलता दुर्गम राह में, शिष्यों के लिए सुगम बनाने। स्वयं तपता है भट्टी में, कच्चे लोहे से औजार बनाने।। सड़क के जैसे पड़ा है, विद्यार्थी आते-जाते अनजाने। चले जा रहे रफ्तार से, मुसाफिर के मंजिल है सुहाने।। एक लक्ष्य, एक राह, मन में पैदा करता है सदा जुनून। हौसलों को बुलंद कर, अनुभव की चक्की से पीसे घुन।। शिक्षादूत, ज्ञानदीप, शिक्षाविद् ही दूर करता है अवगुन। जीत दिलाने अध्येता को, त्याग देता है चैन और सुकून।। कर्म औषधि जड़ी-बूटी को, अज्ञानियों को खिलाता है। ज्ञान गंगा प्रवाहित कर, ज्ञान अमृत सबको पिलाता है।...
शिक्षक ज्ञान का संसार …
कविता

शिक्षक ज्ञान का संसार …

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जब था हमारा विद्यार्थी जीवन विद्यालय जाने की चढ़ती धुन समय शिक्षक संग बिताते थे हम मित्रों और शिक्षको के संग कैसे हंसी खुशी बीत जाता बचपन कक्षा में बैठकर पढ़ने में लीन होने की धुन कभी नहीं होती थी हममें कम पढ़ने की चढ़ती थी उमंग तरंग कतार में खड़े होकर नियमित प्रार्थना गाते थे हम तनमन से शिक्षक के समक्ष कुर्सी पर बैठ जाते थे हम घण्टी बजते ही शिक्षक खाता लेकर कक्षा में आते आते ही सम्मान करते, खड़े हो जाते हम हाजरी वे सबसे पहले लगाते, अपनी उपस्थिति हम बताते बचपन में वो हमें अक्षर ज्ञान के पाठ सिखने को संग बिठाते, पढ़ाने में लीन कराते अन्तर्मन से अक्षर बचपन में खूब समझाते पढ़ने की हर जिज्ञासा को पल में अन्तर्मन में रमाते रटा रटा कर लिखना पढ़ना हम बच्चो को खूब सिखाते नए नए ज्ञान की नितप्रतिदिन जीवन घुं...