सर्व-दीपक जला हम उजाला किए…
बृजेश आनन्द राय
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
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सर्व-दीपक जला हम उजाला किए,
दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा।
दीप की संस्कृति आज उज्ज्वल हुई,
अब चली जा रही है गहनतम अमा।
हर नगर हर निलय आज रौशन हुआ,
हर जगह आज दीपित है एक शमा।
मन हर्षित हुआ, तन है पुलकित हुआ,
सप्तरंग सजी है दीया अरु दशा।
सर्व-दीपक जला हम उजाला किए,
दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा।।
'राग-दीपक' अलापित कहीं हो रहा,
ये हृदय आज स्वर में कहीं खो रहा!
उठ रही है चहक आज हर द्वार पे,
जैसे बाती-दीया का प्रणय हो रहा !
गीत-माला हृदय की महकने लगी,
अरु बहकने लगी है हर एक दिशा।
सर्व-दीपक जला हम उजाला किए,
दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा।।
ये 'प्रकट-बाह्य-अन्तर-की' ज्योति जली,
जो मन-उत्सवी का सद्व्यवहार है।
है सदा ही सृजन जिस मनुज के हृदय,
ऐसे हर्षे-रसिक का व्यापार है।
समशीतोष्ण-जलवायु प्रकृति ...