कलम कारवाँ
रचयिता : डॉ सुनीता श्रीवास्तव
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कलम कारवाँ
रूके ना कभी कलम मुझसे
बढ़ता रहे विचारों का कारवां,
एक बार चली जो कलम,
रच दे कागज पर इबारत
जहां तक फैला हो नीला आसमां।
थके ना हम, पथ पर चलते रहे
बना दे चहकते हुये
विचारों का घरौंदा,
उड़े सप्न-पाखी पंख पसारे
नील आसमा में , उड़े कोई परिंदा।
खत्म ना होकलम की काली स्याही
चित्रित करे तूलिका से,
रंग बिरंगे जीवन की कहानी,
मिटे ना जो सदियों तक पृष्ठों से
चढ़े रंग जैसी अमावस रजनी।
लिखे एक सुनहरा ऐसा इतिहास
प्रवाह उसकी बहे निरंतर चिरंतन,
पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़े वह गाथा
अमर हो जाए 'मेरा चिंतन'।
परिचय :- नाम :- डॉ सुनीता श्रीवास्तव
शेक्षणिक योग्यता - एम. एस .सी .,बी. एड.,पत्रकारिता डिप्लोमा ,साहित्य रत्न
जन्म दिनांक - 3।7।59
जन्म स्थान - राजगढ़ (ब्यावरा)म.प्र.
कार्य अनुभव - सांझ लोकस...