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कविता

बैरी जग में
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बैरी जग में

बैरी जग में रचयिता : मित्रा शर्मा ===================================================================================================================== बैरी जग में आने के बाद कौन भला देखेगा तुम्हे, नियति है यह समझे नही तुम आने को ब्याकुल हो गए। दुनिया की रीत यही है रोते देख और रुलाना रस्म यही सोचकर अपने मनको समझाना। जब खबर लगेगी दुनिया को टूट चुके हो भीतर से ओर तोड़ेंगे चोट करेंगे वॉर करेंगे शिद्दत से। सच की नाव हिलती पर कभी डूबती नही है यह सोचकर अपने मनको समझाना रोना नही है परिचय :- मित्रा शर्मा महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० ...
बिना बेटियों के
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बिना बेटियों के

============================ डॉ. बी.के. दीक्षित बिना बेटियों के घर सूना तो होता है। उत्साह हमारा देख इन्हें,दूना होता है। रूह तलक ठंडी ठंडी है,,,,,,,बेटी की बातों से। सो जाऊँगा आज बेफिकर,जगा हुआ हूँ रातों से। रीति पुरानी सदियों की,क्यों कमतर बेटी मानी जाती? जिम्मेदारी में हर बेटी,,,,,,इक़ तरुवर सी जानी जाती। नहीं सुधार हुआ दुनिया में,महिलादिवस मनाते क्यों? हक़ होना बेटी पर कितना,कुछ लोग हमें समझाते क्यों? संस्कार ,व्योहार ,प्यार और अदब ज्ञान की खूबी है। खुशियों भरा खज़ाना बेटी,वाकी दुनिया झूठी है।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के ...
मेरे अधूरे स्वप्न
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मेरे अधूरे स्वप्न

मेरे अधूरे स्वप्न रचयिता : रुचिता नीमा ===================================================================================================================== कैसे बया करु मैं अपने उन जज्बातों को जो तूफानो से उठा करते है हरदम कुछ कर दिखाने को, और फिर सब अंतर्मन को ध्वस्त करके वही शांत हो जाते हैं जब भीतर जाकर के देखा तो पाया कुछ अनकहे, कुछ ख्वाब मे ही, कुछ अधूरे , कुछ खाक से ही दफन हो गए कई मेरे अरमान अकसर और हम सम्हल ही न पाए कि खुद को दे सके कोई अवसर, डूब ही गए कई दिवा स्वप्न मन के तूफानों की गहराई में, जो सँजोये थे हमने भी कभी आशाओं की अंगड़ाई में, अबकि जो तूफान थम गया , नए स्वप्न उदित होने लगे, मेरे मन की डाली पर फिर से नव कोपल उगने लगे अब फिर से नव पुष्प खिलेंगे नव स्वप्नों से महक उठेंगे मेरे मन की बगिया में आशा की कोयल चहकेगी नव जीवन की बेला महकेगी लेकिन नव त...
कैसे बांटोगे ?
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कैसे बांटोगे ?

कैसे बांटोगे ? रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" ===================================================================================================================== जमीं बांट लिये-आसमान कैसे बांटोगे ? धर्म बांट लिये - भगवान कैसे बांटोगे ? ग्रंथ बांट लिये - अरमान कैसे बांटोगे ? घर बांट लिये - मेहमान  कैसे बांटोगे ? डिग्री बांट लिये- सम्मान कैसे बांटोगे ? संतान बांट लिये - श्मशान कैसे बांटोगे ? शब्द बांट लिये- जबान कैसे बांटोगे ? वस्त्र बांट लिये -गिरेबान कैसे बांटोगे ? नाम बांट लिये- पहचान कैसे बांटोगे ? जख्म बांट लिये -निशान कैसे बांटोगे ? पानी बांट लिया - तूफान कैसे बांटोगे ? परिवार बांट लिया-दिलोजान कैसे बांटोगे? साज बांट लिये - स्वरगान कैसे बांटोगे ? परिंदे बांट लिये - उड़ान कैसे बांटोगे ? लेखक परिचय : -  नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा ...
दबी आवाजे
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दबी आवाजे

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" कौन उठाए आवाज समस्याओं के दलदल  भरे हर जगह रोटी कपडा मकान का पुराना रोना रोने के गीत वर्षो से गा रहे गुहार की राग में भूखे रहकर उपवास की उपमा ऊपर वाला भी देखता तमाशे दुनिया की जध्धो जहद जो उलझी मकड़ी के जाले में फंसी ऐसे जीव की हालत जिसे निचे वाला भले ही पद बड़ा हो सुलझा न सका वो ऊपर वाले से वेदना के स्वर की अर्जी प्रार्थना के रूप में देता आया अपने आराध्य को धरा पर कौन सुने गुहार जैसे श्मशान में मुर्दे को ले जाकर उसकी गाथाएं भी श्मशान के दायरे में हो जाती सिमित भूल जाते इंसानी काया की तरह हर समस्या का निदान करना परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- 2-5-1962 (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व ...
वाह क्या नजारा था
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वाह क्या नजारा था

वाह क्या नजारा था रचयिता : वंदना शर्मा एक दिन घर से निकलते ही दिखा वाह क्या नजारा था? एक आदमी एक हाथ में खंजर लिए दूसरे को काट रहा था |  पहले तो देखकर कुछ समझ नहीं आया | फिर सोचा कि शायद कोई पागल है या कोई जादूगर, क्योंकि एेसा अचम्भा जीवन में पहली बार देखा था | देखकर रहा नहीं गया, जाने लगी उसे रोकने तो सहेली ने मुझे रोक दिया कि रहने दो क्यों व्यर्थ के पचड़े में  पड़ती हो | पर समस्या गम्भीर है स्त्री स्वभाव और कवि हृदय पूछना आवश्यक हो गया था | नहीं पूछें तो पेट दर्द | मुझसे रहा नहीं गया | पास जाकर बोली , कि चाचाजी क्या कर रहे हो? अपने ही हाथों स्वंय अपने ही हाथ क्यों काट रहें है ? आप शक्ल से पागल भी तो नहीं लगते तो ये पागलपन क्यों? त्यौरियाँ  चढ़ाते हुए उन्होने मुझे घूरा|  क्षण भर ठहर कर फिर कहा, कि बिटिया  बात तो समझ की करती हो| पर  ये नहीं  दे...
डाॅ. हीरा इन्दौरी के दोहे
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डाॅ. हीरा इन्दौरी के दोहे

डाॅ. हीरा इन्दौरी के दोहे रचयिता : डाॅ. हीरा इन्दौरी प्राईम मिनिस्टर होय वो , या भारत के प्यून । मिलती भ्रष्टाचार से , यहाँ सभी की ट्यून ।। ---~~~~ धारा सत्तर तीन सौ , भूले मन्दिर राम । जब सत्ता ही मिल गई , तो इनसे क्या काम ।। ~~~~ सब दल सत्तासीन है , जनता ढोती भार । नेताजी करते यहाँ , कुर्सी का बेपार ।। ~~~~ चोरों का सरदार वो , बनता वो साहूकार जनता भी यकीन करे , डूबा भारत यार ।। ~~~~~ देश पङे जब आपदा , काल जलजला बाढ । नेता अफसर के घरों , लक्ष्मी छप्पर फाड़ ।। संयासन मंत्री बनी , ~~~~~ खेला लव का खेल । दीवानी गोविन्द से , ना कर पाई मेल ।। ~~~~ मूँछ मरोङे जेल में , नेता अफसर दोइ । सिद्ध अदालत में करे , दाग हमारे कोई ।। ~~~~ बागी दागी सूरमा , चले चुनावी चाल । जो दे टिकट चुनाव का , वो घण्टा घङियाल ।। परिचय :- नाम : डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  प्रचलित नाम डाॅ....
उसूल
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उसूल

रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित कौन रोक सकता है खुशियाँ, अग़र याद का कोषालय हो। मन नहीं घबड़ाता है बिल्कुल,,,,दिल जब एक शिवालय हो। जीवन सदा पुष्प सा खिलता,ख़ुश्बू सराबोर कर देती। छोटे छोटे दांत दिखाकर,बेटी जब खुल कर हंस देती। मन बृन्दावन,तन है मथुरा,पर प्रीति उन्हीं से कर पाता हूँ। कहने को वो अपने हैं,पर अपनों से ही डर जाता हूँ। रिश्तों की मंहगी मंडी में,मोल भाव कर बिकते रिश्ते। बोली लगती है रिश्तों की,मंहगे कहीं और कहीं सस्ते। अपनी दुनिया अपना रुतबा,सख़्त उसूल भूल ना जाना। जहाँ मिले ना नेह प्रीति,उस घर बिजू कभी न जाना। परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहि...
रणवाँकुणे
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रणवाँकुणे

रचयिता : शिवम यादव ''आशा''  वो तो रणवीर वाँकुणे थे,  जिनको राणा कहते थे लाखों दुश्मन से लङने की, अकेले हिम्मत रखते थे तूफान सा तेज चेतक में था उनके हर वार पे दुश्मन मरता था तीव्र तेज था भाले का, जिससे दुश्मन का सीना, मस्तक फटता था था चेतक में अदम्य साहस जिससे दुश्मन भय खाता था रण में चेतक जहाँ ठहरता था वहाँ सून सान हो जाता था...-2 वीर राणा प्रताप वीर राणा के भाले से, दुश्मन मात खाते थे वही राणा के वंशज आज भी भारत भूमि पे जिंदा हैं... जरा तू होश आ दुश्मन नहीं मिट्टी मिला देंगे हम राणा के वंशज है तुम्हें मरना सिखा देंगे लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म 07 जुलाई सन् 1998 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमख...
ये राह नहीं है आसान
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ये राह नहीं है आसान

रचयिता : शशांक शेखर ये राह नहीं है आसान उन्नीस है जिसका नाम || देशभक्ति सुरक्षा सैनिक, पांच सालों की कार्य शैली, सब पर भारी है बहत्तर हज़ार, आदायगी का बस नाम || तुम किस मुँह से दुत्कारोगे, कैसे मुफ्तखोरी नहीं है जायज़, अब और कहोगे , बांटे हैं तुमने भी बहुतेरे चीज़ तमाम. || ये राह नहीं है आसान उन्नीस है जिसका नाम. || जहाँ एक ओर बैठे हैं ठेगेरे बहुतायत आम वहीं तुम्हारे तालाब में भी मछलियाँ हो रही हैं खराब. अब कदम बस इतना उठा दो नोटबन्दी की भांति एक रात से सारे नेताओं की सुविधाओं पर एक सर्जिकल स्ट्राइक करा दो. कहते हो मेरा देश मेरे दल, परिवार और मुझसे आगे है तो फिर मोह को तोड़ दो और कलंकितों को संसद विहीन कर दो ना आए पुनः सरकार तुम्हारी गम नहीं वादे नहीं हुए पुरे गम नहीं दुर्गतरेते की तरह सड़क से संसद तक कोई न हो दागी भ्रष्टाचारी दूर हो भारत से यह बीमारी फिर हम कहें ...
कहां गए वो दिन
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कहां गए वो दिन

कहां गए वो दिन ====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा दिल की किताब को खोलूं कैसे। रूह में बसी बचपन की याद को भूलूं कैसे। गर्मी की छुट्टी का रहता था इंतजार। प्यारा लगता था पगडंडी वाला मामा का घर। गिल्ली डंडा ,चोर सिपाही सबसे बड़े खेल होते थे। मोजे की गेंदों से दिनभर मारपीट में ढेर होते थे। वह चारपाई या खाट गोदड़ी के बिछोने। हक जमाते भाई बहनों पर मिट्टी के खिलौने। पिपरमेंट और हाजमोला खास हुआ करते थे । इमली बेर कच्ची केरी के ढेर हुआ करते थे। कहां आरो और वाटर कूलर मीठा लगता था प्याऊ का पानी । कहां टीवी और मोबाइल प्यारे लगते थे नाना नानी परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindi...
समय बड़ा बलवान
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समय बड़ा बलवान

समय बड़ा बलवान =========================================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी समय बड़ा ही बलवान है, वो कहाँ का पहलवान है, कई आये और गए यहाँ, न कोई टिका धनवान है। हम हिफाज़त अब करते है वह कौन सा दरबान है।। यहाँ हर कोई कलाकार है, सब तीसमारखाँ सलमान है अपना चमन खुद उजाड़े , आज का ऐसा बागवान है शिद्दत से किये कार्य व्यर्थ है दिखावे में सारा जहान है। ये देख हैरान है, इक़बाल इंसा खुद बन बैठा,भगवान है। परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, कुवैत, इजराइल आदि देशों का भ्रमण दायित्व :- संरक्षक - पत्र लेखन संघ सदस्य :- फिल्म राइटर एसोसिएशन मुंबई, टेलीविजन स्क्रीन राइटर एसोसिएशन मुंबई प्रतिनिधित्व :- विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल ...
प्रजातंत्र बोलेगा
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प्रजातंत्र बोलेगा

रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर आये हैँ चुनाव, लगे दिल पर घाव अब प्रजातंत्र बोलेगा । जनसेवक होशियार तू रहना, सिंहासन डोलेगा।।. .. . पाँच बर्ष तक मनमानी की, नेताजी झूठे तुम। भोली जनता को छल बल से, कई बरस लूटे तुम।। कई योजना बनी तुम्हारी सार्थक एक नहीं । जहां से गिनती शुरू हुई थी , पहुंचे आज वही ।। दंगे और फसादों को अब, जन - जन तौलेगा ।। जनसेवक होशियार तू रहना, सिंहासन डोलेगा ।।. ... राम का मंदिर बना नहीं, कसमें झूठी तुम खाए । राम लला तंबू में रोवे, माँ सीता घबराये।। बेशर्मी की हद होती है, किंतु लांघ तुम पार गये। सत्ता के मद में सब भूले, वादे, स्वर्ग सिधार गये।। आने वाला कल पापों की, गठरी खोलेगा।।.... जनसेवक होशियार तू रहना, सिंहासन डोलेगा ।।. ... वर्ण व्यवस्था छिन्न-भिन्न कर, आपस में लड़वाते । न्यायपालिका के आंगन, अन्याय का वृक्ष लगाते।। स्वर्ण-दलित आंदोलित होकर...
छोटा- सा जीवन
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छोटा- सा जीवन

छोटा- सा जीवन रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी छोटा- सा जीवन है ये, तो मस्त रहे हर हाल में। गाड़ी का क्यो रस्ता देखे , मस्त रहे पदचाल में।। हर पल मुस्काते ही बोले , आंसू में क्यो दुबे हम, जीवन सुंदर मौज मनाये ,मस्त रहे हर काल मे।। ऊंचे ख्वाब तसव्वुर झूठे, लगते सब बेमानी ये, क्यो पनीर के ख्वाब सजाये, मस्त रहे घर-दाल में।। जीवन है तो नित चुनौतियां ,आएंगी ही सदा यहाँ, करे सामना डटकर इनका, मस्त रहे हर ताल में।। कौन करोड़ीमल, कौन अरबपति हो,इससे क्या, फटेहाल' इक़बाल' ठीक है, मस्त रहे निज माल में।।   परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, कुवैत, इजराइल आदि देशों का भ्रमण दायित्व :- संरक्षक - पत्र लेखन संघ सदस्य :- फिल्म राइटर एसोसिएशन...
परीक्षाव्रत
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परीक्षाव्रत

परीक्षाव्रत रचयिता : भारत भूषण पाठक दोहा - परीक्षापुरी के घाट पर भई परीक्षाव्रती के भीर।           परीक्षार्थी कलम घिसै ध्यान देत परीक्षक बलबीर।। सुन्दर पावन पुनीत बेला । चहुँओर दृश्य अलबेला।। कभी अधिगम कभी समागम। और मध्य में बार-बार फूटता बम।। कलरव का था लगा समाहार । हर तरफ केवल एक प्रश्न की गुहार।। प्रतीत था होता हाहाकार । उस पर प्रचण्ड गर्मी का प्रहार।। चल रहा था विषय पर्यावरण। था निर्मित अद्भुत वातावरण ।। था हो रहा हर तरफ पूछताछ का अधिगम । और परीक्षक फूट रहे  थे बन कर बम।। मेरी दशा को देखकर। कहा परीक्षक ने तनिक सोचकर।। आप भी  कुछ जुगाड़ बिठाइए । तभी मैंने कहा मैं शाकाहारी हूँ ...... इसलिए मुहतरमा आप मुझसे परे हो जाइये।। उसने पुन: कहा मैं समझी नहीं । मैंने तब उन्हें समझाया ।। मुहतरमा आज अपन का उपवास है। संग अपने पर पूर्ण विश्वास है। इतने में आने को हुए ...
पर्यावरण दिवस 
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पर्यावरण दिवस 

पर्यावरण दिवस  रचयिता : मनोरमा जोशी हरे भरे उपवन का बन जाये, हर घटक राष्ट्र का माली। क्लेश काल का बने ग्रास नित, काल निशा हो कभी न काली। लेकर के संकल्प आज हम, ऐक ऐक पेड़ लगाएं, पर्यावरण बचाएं। वन जब घटा हैं बड़ा है प्रदूषण, जन जन में फैली है बीमारी भीषण। यह संताप मिटाएं। आओ ऐक पेड़ लगाएं। पर्यावरण बिन सूना जग सारा, इसी से है जीवन सारा, इससें ही हैं सब गतिमान, हम सब रक्खे इसका ध्यान , स्वस्थय सुखी संसार बसायें। आओ हम एक पेड़ लगायें। अपना देश बचायें। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का...
गिरकर उठना
कविता

गिरकर उठना

गिरकर उठना रचयिता : मनोरमा जोशी गिरकर उठना, उठकर चलना यह काम है संसार का। कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। जो भी होता है घटना क्रम, रचता स्यंम विधाता है। आज लगे जो दंड वहीं पुरस्कार बन जाता हैं। निशिचत होगा प्रबल समर्थन, अपने सत्य विचार का, कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। कर्मो का रोना रोने से, कभी न कोई जीता है, जो विष धारण कर सकता है, वह अमृत को भी पी लेता है। संबल यह विश्वास ही है, अपने दृढ़ आघार का। कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र...
फिर इस बार होली पर वो …
कविता

फिर इस बार होली पर वो …

फिर इस बार होली पर वो ... पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** फिर इस बार होली पर वो, सच कितना इठलाई होगी.. सत रंगों की बारिश में वो, छककर खूब नहाईं होगी….। भूले से भी मन में उसके, याद जो मेरी आई होगी.. होली में उसने नफरत अपनी, शायद आज जलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! ये क्या हुआ जो बहने लगी, मंद गति शीतल सी ‘पवन’.. याद में मेरी शायद उसने, फिर से ली अंगड़ाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! कैसी है ये अनजान महक, चारों तरफ फैली है जो.. मुझे रंगने को शायद उसने, कैसर हाथों से मिलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! पीले,लाल, गुलाबी रंग की, मेहँदी उसने रचाई होगी.. आएगा कोई मुझसे खेलने होली, उसने आस लगाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! डबडबाई आँखों से उसने, मेरी राह निहारी होगी..। पूर्णिमा के चाँद पे जैसे, आज चकोर बलिहारी होगी….। फिर इस बार होली...