Saturday, November 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

कितनी प्रतिलिपियाँ
कविता

कितनी प्रतिलिपियाँ

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' =========================================================================================================== कितनी प्रतिलिपियाँ इस जिंदगी में बहुत     घटनाएँ घटी हैं मेरे यार  कितनी और सत्य   प्रतिलिपियाँ    भेजूँ तुम्हें मेरे यार   जिंदगी की जंग में अकेला लङता रहा हूँ         खुद से क्योंकि समस्या मेरी थी तुम्हें साथ कैसे ले      सकता था मेरे यार  कुछ यादों से भरी हैं कुछ घटनाओं से बनीं हैं ये जिंदगी की प्रतिलिपियाँ        हैं इन्हें कैसे जला दूँ     मेरे यार लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्...
हमारी वसुंधरा
कविता

हमारी वसुंधरा

रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर =========================================================================================== हमारी वसुंधरा सम्मान करो,तुम वसुंधरा का। जिसने हमको जीवन दान दिया है। मत भूलो तुम उसके ऋण को। जिसने वायु प्राण दिया है। सम्मान करो.....। जल रही अंगारो से यह। अब इसे बचाना हैं। अपनी सुन्दर वसुंधरा को। फिर से हरा बनाना है। सम्मान करो.....। इसी पावन वसुंधरा पर। नानक,गौतम, राम हुए हैं। लाखो वीर कुर्बान हुए है। युगों,युगों के इतिहासों के। बलिदानो को इसने देखा है। ना जाने कितनों सपूतो को।  अपने आँचल में समेटा हैं। सम्मान करो......। वसुन्धरा के कण-कण में।  उपजे हीरे-मोती हैं। धन-धान्य के भंडारो से लहलहाती खेती है। अपनी इसी वंसुधरा को। मिलकर हमे बचाना है। सम्मान करो.......। दिन-प्रतिदिन सूख रही। वसुंधरा मानव अत्याचारों से। जाग उठो अब दुनियॉ वालो। अ...
करके आजाद हमको वतन दे गये
कविता

करके आजाद हमको वतन दे गये

रचयिता : किशनू झा "तूफान" =========================================================================================== करके आजाद हमको वतन दे गये तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। उनके भी शौंक थे दिल जवानी भी थी, उनके भाई भी बहनें भी मां बाप थे। सोचा न एक पल दे दी कुर्बानियां, देशभक्ति के उनमें भी क्या जाप थे। देश के बाग में सींचकर  के लहू, फूलते फलते हमको  सुमन दे गये। तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। क्या हुआ नींद आयी जो वो सो गये, नींद दुश्मन के घर की उड़ाकर गये। गर जरुरत पड़ी सिर कटाने की भी, शान से शीश अपने कटाकर गये। जान को अपनी देकर वतन के लिए, वो बचाकर वतन को वतन दे गये। तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। मैं सदा उन शहीदों को करता नमन, जिनके कारण वतन मेरा आजाद है। हिन्दू मुस्लिम मिट...
हनुमान जी
कविता, धार्मिक

हनुमान जी

रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" ************************************************************************************************************************************************************ हनुमान जी सर्वप्रथम  प्रणाम  करुं राम  दूत  हनुमान  को । कलम से लिपिबद्ध करुं पवनपुत्र यशगान को ।। खेल में समन्दर लांघा समर के आव्हान को । सीता का पता लगाया बढ़ाया प्रभु मुस्कान को ।। ज्ञानियों में अग्रगण्य तुम बढ़ाओ मेरे ज्ञान को । अध्यात्मपथ का गामी हूं आतुर अमृत पान को ।। अतुल बल के धाम तुम मारो षडरिपु शैतान को । पाऊं  मैं राम  दरबार में भक्त  सम  सम्मान  को ।। लेखक परिचय : -  लेखक परिचय : -  नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन क...
दुनिया
कविता

दुनिया

रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" =========================================================================================================== दुनिया अजीब-अजीब हालात दिखाती है दुनिया । डर गये तो जीवनभर डराती है दुनिया  । जीवन में हमेशा मुस्कुराते रहो , गर रो दिये तो फिर रुलाती है दुनिया । जिंदो के हालात कोई न पूछे , मुर्दो को कंधे पर उठाती है दुनिया । गरीबों को रोटी भी सूखी मिल रही , पत्थरों को घी- दूध से नहलाती है दुनिया । कहने को तो शिक्षा का प्रसार हो गया , फिर भी अंधविश्वासों में खो जाती है दुनिया । जीवनभर जलें दुश्मनों की आहों से , फिर भी मरने के बाद जलाती है दुनिया । पत्थरों पर भी रस्सी के निशान हो गये , 'परिंदा' की बातें समझ न पाती है दुनिया । लेखक परिचय : -  नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा...
मैं जला हूँ दीप बन कर
कविता

मैं जला हूँ दीप बन कर

रचयिता : रामनारायण सोनी =========================================================================================== मैं जला हूँ दीप बन कर मैं तमिस्रा में जला हूँ दीप बन कर तैल की इक बूँद भी ना शेष होगी गंध बुझती बातियों की जब लगे प्रिय तुम्हारी प्रीत ही अवशेष होगीअंक में ज्वाला समेटे उम्र भर से जो तिरोहित हो रही नित रश्मियाँ पन्थ में तेरे बिछी है आस बन कर प्रस्तरों के भार सहती संधियाँ सांझ से ही चिर प्रतीक्षा जागती है हर निशा तो व्यंजना लेकर खड़ी है भोर तक है साध में यह लौ अकंपित भग्न अधरों पर पिपासा हर घड़ी है प्राण में हर पल निरे निःश्वास ही है जिन्दगी कण-कण तिमिर में घुल रही बंधनाएँ वर्जनाएँ बस प्राण की है थाम कर इन धड़कनों को चल रहीं परिचय :- नाम - रामनारायण सोनी निवासी :-  इन्दौर शिक्षा :-  बीई इलेकिट्रकल प्रकाशित पुस्तकें :- "जीवन संजीवनी" "पिंजर प्रेम प्रका...
मेरा साया
कविता

मेरा साया

रचयिता : रुचिता नीमा ===========================================================================================मेरा साया आज जब आईने में खुद को देखा तो यकीन ही नही हुआ,,, गाड़ी , बंगला सबकुछ था , पर जिसे होना था पास मेरे।।। वो न जाने कहा खो गया था, घिरा हुआ था दूसरों के साये से खुद मेरा साया ही नही था।।। बहुत खोजा उसे लेकिन वो अंत तक नहीं मिला, इस दुनिया की दौड़ में मेने खुद को ही खो दिया।।। अब पाना है बस खुद को छोड़कर बाहर की जंग जीतना है खुद से ही करकर खुद को बुलंद लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म 2 जुलाई 1982 आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपन...
मैं करूँ तुझसे क्या गिला
कविता

मैं करूँ तुझसे क्या गिला

रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर =========================================================================================================== मैं करूँ तुझसे क्या गिला मैं करूँ तुझसे क्या गिला, तौबा । तुझसा कोई नही मिला, तौबा ।।... मैंने सोचा कि तू अब हां कर देगी, ढा दिया तूने मुहब्बत का किला तौबा ।। तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... मैंने सोचा पर तू नहीं आई, किससे करूँ में गिला, तौबा ।। तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... पहले वो साईकिल से आते थे, अब विमानों का काफिला तौबा ॥ तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... ना दिन को चैन ना रात में सुकूँ, तू ही दे कुछ मशविरा, तौवा।। तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... वो कहीं जाते है तो बताते हैं, मेरी सल्तनत का ये जिला तौबा ।।... तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।... परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा सा...
कलम कारवाँ
कविता

कलम कारवाँ

 रचयिता : डॉ सुनीता श्रीवास्तव ============================================= कलम कारवाँ रूके ना कभी कलम मुझसे बढ़ता रहे विचारों का कारवां, एक बार चली जो कलम, रच दे कागज पर इबारत जहां तक फैला हो नीला आसमां। थके ना हम, पथ पर चलते रहे बना दे चहकते हुये विचारों का घरौंदा, उड़े सप्न-पाखी पंख पसारे नील आसमा में , उड़े कोई परिंदा। खत्म ना होकलम की काली स्याही चित्रित करे तूलिका से, रंग बिरंगे जीवन की कहानी, मिटे ना जो सदियों तक पृष्ठों से चढ़े रंग जैसी अमावस रजनी। लिखे एक सुनहरा ऐसा इतिहास प्रवाह उसकी बहे निरंतर चिरंतन, पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़े वह गाथा अमर हो जाए 'मेरा चिंतन'।   परिचय :-  नाम :- डॉ सुनीता श्रीवास्तव शेक्षणिक योग्यता - एम. एस .सी .,बी. एड.,पत्रकारिता डिप्लोमा ,साहित्य रत्न जन्म दिनांक - 3।7।59 जन्म स्थान - राजगढ़ (ब्यावरा)म.प्र. कार्य अनुभव - सांझ लोकस...
युगों के बाद कोई महावीर होता है!
कविता

युगों के बाद कोई महावीर होता है!

रचयिता : रशीद अहमद शेख =========================================================================================================== युगों के बाद कोई महावीर होता है! हर एक देश में हर युग में वीर होता है! युगों के बाद कोई महावीर होता है! जगत में छाती है जब-जब अधर्म की बदली! ज़मीं पे गिरती है रह-रह के ज़ुल्म की बिजली! जब आदमी को सताती है गुनाहों की उमस, अंधेरे दौर में आती है रोशनी उजली! जब आसमान की आंखों में नीर होता है! युगों के बाद ••••••••••••• महापुरुष तो ज़माने में आते-जाते हैं! भटकने वालों को रस्ता सही दिखाते हैं! प्रयत्न करते हैं कल्याण हेतु आजीवन, महान कर्म से इतिहास वे बनाते हैं! कभी-कभी ही कोई बेनज़ीर होता है! युगों के बाद •••••••••••••••• बस एक अवधि तक ही भूमि पाप ढोती है! फिर इसके बाद सिसकती है खूब रोती है! दशों दिशाओं में मचता है हाहाकार बहुत, मनुज को देख दुख...
लाचार हैं
कविता

लाचार हैं

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ============================ लाचार हैं खूब हैं लपटे जलाती  हम साधारण लोगों को  रिश्वत की अंधेरी रात में,    कब बीत जाती हैं  सारी उम्रे समझ ही     नहीं पाते ... बस खुद्दारी की तलाश में,   दिल तो तब रो उठता है  जब घर में बेटी पूछती है        पापा से ... कब तक जिएँगें जिंदा  लाश बनकर इस दुनियाँ में  न आने वाले अच्छे दिन       की तलाश में ... लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ...
कर्ण का पश्चाताप
कविता

कर्ण का पश्चाताप

रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी =============================== कर्ण का पश्चाताप ममता की शाख से टूटा हुआ एक पर्ण हूँ, 'वसुसेन' भी, 'राधेय' भी, मैं सूर्यपुत्र कर्ण हूँ। सन्तभक्त एक स्त्री को ऋषि दुर्वासा का वरदान मिला, जिज्ञासावश शुद्ध संकल्प से मुझको प्रादुर्भाव मिला। लोकलाज वश निष्ठुर ममता मुझको ना अपना पाई, शापित शैशव करके मेरा गंगा में अर्पण कर आई। मिले अधिरथ राधा मैया, मुझको 'वसुसेन' नाम दिया, पितृ-प्रेम और ममता से, मृत जीवन को मेरे प्राण दिया । दिव्य देह संग उपहार मिले, मुझको स्वर्ण कवच कुण्डल, आकर्षित करता था प्रतिपल, सूर्यदेव का आभामंडल । विद्यार्जन की अभिलाषा से मैं, पहुँचा गुरु द्रोण के पास, लेकिन क्षत्रिय ना होने से पूरी हुई न मेरी आस । पर आशा न खोई मैंने, परशुराम के पास गया, झूठ बोलकर "मैं ब्राह्मण हूँ" विद्या का उपहार लिया । लेकिन विधान विधि का, इतना भी नहीं ...
नारी
कविता

नारी

रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे ================================== नारी उलाहने पैदा होते ही सहकर बडी होती सहती रहती ता उम्र पुत्री के रूप मे बहू के रूप में सहना और जीना देखकर देखते देखते काश सहना आ जाये सभी को और सहज हो जाय जीवन् लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची। इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका। विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...
चंदन
कविता

चंदन

रचयिता : रीतु देवी ============================= चंदन लगाऊँ चंदन तुझे नित्य हे रघुवीर। बारम्बार करती अर्चना बना मुझे वतन वीर।। तुझ सा दृढ प्रतिज्ञ दृढनिश्चयी बन जाऊँ प्राण मातृभूमि सेवा में गवाऊँ लगाऊँ चंदन तुझे नित्य हे रघुवीर। शुभाशीष ले बढाऊँ मान शहीद राष्ट्र शूरवीर।। पद चिन्ह, दिव्य पथ पर चलकर राष्ट्र रक्षार्थ कदम बढाऊँ आगे बढकर लगाऊँ चंदन तुझे नित्य हे रघुवीर। तेरी भक्ति कर-कर के बनूँ प्रवीर।। माता-पिता,गुरूजनों चरणों शीश नवाऊँ तेरी महिमा हर पल गाऊँ लगाऊँ चंदन तुझे हे रघुवीर। सदा शरण देकर चरणों में बना धीर गंभीर।। लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप कर...
तुलसीदास जगत को भाए
कविता

तुलसीदास जगत को भाए

रचयिता : रशीद अहमद शेख ===================================================================================================================== तुलसीदास जगत को भाए! जब-जब झांकें मन के अन्दर, अनुभूति मानस पद गाए! तुलसीदास जगत को भाए! मर्यादा की सीमाओं में, सुन्दरता का शुभ निर्वाह! शब्द-शब्द से अमृत-वर्षा, भाषा का रसयुक्त प्रवाह! उर आह्लादित यही सुनाए! तुलसीदास जगत को भाए! विनयशील लहराता सागर, भक्ति भाव के ज्वार अनेक! केन्द्र बिन्दु श्रीरामचन्द्र पर, विविध रूप रसधार अनेक! मानस में क्या नहीं समाए! तुलसीदास जगत को भाए! आदर्शों के अगणित दीपक, विचलित को दिखलाते राह! सत्य-असत्य की विजय-पराजय, भक्तों में भरती उत्साह! क्षण-क्षण मुख पर यह पद आए! तुलसीदास जगत को भाए! लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्...
बाबुल का घर
कविता

बाबुल का घर

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" ======================== निहारती रहती हूँ बाबुल का घर कितना प्यारा है मेरा बाबुल का घर आँगन ,सखी,गलियों के सहारे बाबुल का घर लोरी, गीत ,कहानियों से भरा बाबुल का घर | बज रही शहनाई रो रहा था बाबुल का घर रिश्तों के आंसू बता रहे ये था बाबुल का घर छूटा जा रहा था जेसे मुझसे बाबुल का घर लगने लगा जेसे मध्यांतर था बाबुल का घर | बाबुल से जिद्दी फरमाइशे करती थी बाबुल के घर हिचकियों का संकेत अब याद दिलाता बाबुल का घर सब आशियानों से कितना प्यारा मेरा बाबुल का घर रित की तरह तो जाना है एक दिन, छोड़ बाबुल का घर | परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार...
मेरी माँ
कविता

मेरी माँ

मेरी माँ रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" ==================================== इस धरा का  अद्वितीय अनुपम वरदान है माँ, जन्मदात्री जगतपूज्या जग में सबसे महान है माँ, नौ महीने कोख में रख वह शिशु को जन्म देती, अथक पीड़ा सहन कर भी वह किसी से कुछ न लेती, दया,ममता,स्नेह की माँ अद्भुत अप्रतिम तस्वीर है, कितने रूपों को जीती लिखतीं कितनी तकदीर है, माँ है तो ये दुनिया है माँ से सारा जहान है, माँ है तो सारे सपने है माँ से ही मुस्कान है, माँ अगर है तभी बच्चों के पूरे होते है अरमान, माँ से ही ये है जमाना माँ से है सारी पहचान, बच्चों की खातिर करती अपने सारे सपने कुर्बान है, सच में माँ सम जग में न दूजा कोई भगवान है, माँ है मिलती प्रेरणा और माँ से मिलता ज्ञान है, माँ से मिलती जिंदगी और जग में मिलता मान है, लिखता हूँ मैं माँ पर सदा और सदा लिखता रहूँगा, माँ ही मेरी है कलम और ...
आँखों का भ्रम 
कविता

आँखों का भ्रम 

आँखों का भ्रम रचयिता : शशांक शेखर ===================================================================================================================== ये ज़रूर तुम्हारी आँखों का भ्रम होगा भागता साया किसी और का देखा होगा राह तकते तकते बीत गयी उम्र आधी तुमने भी लाचार क़दमों को घसीटा होगा पूष की ठिठुरती रात सन्नाटे काँपते हाथ रात का साया अलाव के क़रीब बैठा होगा तुम्हें सोचते सोचते और ज़िंदगी से सिखते मेरी आँखों में सो कर सुबह जागा होगा इंसान हैं हम तो शिकायतें तो होंगी ही मेरी शख़्सियत में भी वफ़ा और जफ़ा होगा ज़िंदगी क्या है आँख से बहता हुआ बेरंग दरिया तुमने हथेली में थामा होता तो रंगीन होता अब जब नहीं हो तुम तो आहट की उम्मीद है इसी का नाम शशांक तमन्ना-ए-इश्क़ होगा   लेखक परिचय :- आपका नाम शशांक शेखर है आप ग्राम लहुरी कौड़िया ज़िला सिवान बिहार के निवासी हैं आपकी रुचि ...
ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो मेरी मां के चरणों में
कविता

ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो मेरी मां के चरणों में

ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो मेरी मां के चरणों में रचयिता : किशनू झा "तूफान" ===================================================================================================================== झुक जाती हैं ताकत सारी, मातृशक्ति के शरणो में । ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो, मेरी मां के चरणों में । दुख दर्दो को सहकर मम्मी, हमको जीवन देती है। खून पसीना पसीना बहा बहाकर, मेहनत का धन देती हैं । सर्वश्रेष्ठ है ममता का रन्ग , दुनिया के सारे वर्णो में । ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो , मेरी मां के चरणों में आये कोई भी सन्कट , बच्चों को सदा बचाती है। गीले में सोकर के खुद , सूखे में उन्हें सुलाती है । रहें सुरक्षित हरदम बच्चे, मम्मी के आवरणो में। ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो , मेरी मां के चरणों में बचपन की वो यादें मा की, हमको बहुत सताती हैं , माँ का आँचल में सर हो, तो नींद स्वतः ही आती है...
आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है…
कविता

आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है…

आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है... रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव ===================================================================================================================== आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है... कॉलेज के गलियारे में बैठ ठिठोली करना चाहता हुँ, बिना पूछे दोस्त की टिफिन को चट करने का मन करता है, बेवजह झगड़ कर फिर माफी मांगने को जी करता है, क्लास की पहली बेंच पे अधिकार जमाने को जी करता है। आज पुराने दोस्तों से मिलने को मन करता है... सब व्यस्त होंगे अपने दो पल की जिंदगी में, छोटा सा लमहा खरीद कर बाँट दूँ उन दोस्तों को, जिसमें सब एक साथ मिलकर खिलखिलाए, ऐसे वख्त को बांधने को जी करता है। आज पुराने दोस्तों से मिलने को जी करता है... क्रिकेट के मैदान में कि मैं आज खेलूँगा या नही, ऐसे कोने में रूठ कर खड़ा होने को जी चाहता है, मैच हारने पर एक दूसरे...
क्या है मेरा दोष ?
कविता

क्या है मेरा दोष ?

क्या है मेरा दोष ? रचयिता : मनोरमा जोशी ===================================================================================================================== व्यथा से परिपूर्ण, श्वेत वस्त्रों में बंधी, एक असहनीय दुःख को उर मे समेटे, जी रही संसार में बस एक याद के सहारे, बच्चों के खातिर, एक रोटी के लिए, रहती हूँ सहमी, सास के द्धारे, है बढ़ा कठिन पल, क्या था कल, और आज क्या हो गया सब कुछ तो जल गया, कुछ बाकी न रहा। रह गयी तो बस  एक वीरान सी जिंन्दगी। करता हैं समाज मुझसे घृणा, इसमें क्या हैं मेरा दोष ? इस समाज में मेरा कोई अस्तित्व नहीं ,कोई पहचान नहीं। क्या है मेरा दोष ? लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्य...
जरा मरकर देखें
कविता

जरा मरकर देखें

जरा मरकर देखें रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ===================================================================================================================== अब जरा मरकर देख लेने दे मुझे कैसा लगता है अहसास कर लेने दे मुझे मैं भी तो जानूँ इंशानियत क्या है, मरने की इजाजत जरा सी दे दे मुझे, बनकर हवा आसमान में उङ लेने दे मुझे, नए जीवन में पिछले जन्म की कुछ तो यादें पास रखने दे मुझे, उस स्वर्ग की खबरें कुछ तो नर्क में बताने दे मुझे अब जरा मरकर देख लेने दे मुझे... लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग...
समंदर
कविता

समंदर

समंदर रचयिता : अर्चना मंडलोई ============================================================================================== क्या समां है, कि बन गया एक समंदर और। उभर आये जो आँसू तो ,पलको से बाँधा है, एक दरिया और। दोस्त मेरा जब सरे शाम रूठता है एक तूफान जनम लेता है ,मेरे अंदर और। घुटन फीक्र बेवक्त की आवाजे इसके अलावा होता नही अंदर मेरे कुछ और। सुबह की पहली किरण,बन जाए कब ख्वाब ये जिन्दगी का बसेरा है ,सहर कर ले रात भर और। तारीफ सुन जिन्दगी़ इठला गई ,मूझे देख कतरा सी गई , जिस नज़र से मैने उसे देखा,नजर आती गई दूर और। लेखिका परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका हैं आप एम.ए. हिन्दी साहित्य एवं आप एम.फिल. पी.एच.डी रजीस्टर्ड हैं, आपने विभिन्न विधाओं में लेखन, सामाजिक पत्रिका का संपादन व मालवी नाट्य मंचन किया है, आप अनेक सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं में सदस्य हैं व सामाजिक गतिविधि...
प्यार जब पास होता है …
कविता

प्यार जब पास होता है …

प्यार जब पास होता है रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) ===================================================================================================================== यही तो स्वर्ग होता है,फूलों से करें बातें। दिन में काम हों ज्यादा,बातों में कटें रातें। तीरथ सब लगें फ़ीके,प्रकृति के पास जाते हों। गीत में मीत रहता हो,सुनकर कुछ सुनातें हों। अंतिम बार जब भगवन मांगेगा हिसाबों को। थोड़ी देर पढ़ लेना मेरी ,,,,,,उन किताबों को। मोहब्बत के बिना जीवन, का कोई सार ना होता। कुछ भी बन न पाता मैं, अगर ये प्यार ना होता। तुम्हारे मुस्कराने से,बस ये अहसास होता है। लिखता ही रहे बिजू,प्यार जब पास होता है।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत 36 वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य ...
गणित संग मेरी वार्तालाप
कविता

गणित संग मेरी वार्तालाप

गणित संग मेरी वार्तालाप रचयिता : भारत भूषण पाठक ===================================================================================================================== हे गणित तू फिर आ गयी । काली घटा बन कर मुदित मन को आह्लादित करने।। परन्तु कोई बात नहीं आ ही गयी है तो मित्रवत ही रहना। था बचपन से अपन दोनों का एक दूसरे को मुश्किल सहना।। अब तो मेरे उम्र का लिहाज कर। शिक्षक हूँ मैं  आज अब तो कुछ समझा कर।। मत ला वो बड़े-बड़े सवालों का महासागर । करने में पार आती थी जिसमें समस्याएं अपरम्पार ।। ऐ गणित अब कितना रुलाएगी। क्या होगा ऐसा कोई दिन जब तूँ समझ आ जाएगी ।। अभी  भी  त्रिभुज के सर्वांगसम होने का भय बड़ा सताता है। ले यह जान और जान के खुश हो जा। मुँह मोड़ ले या प्रेयसी बन जा।। क्यों एक भयकारी पत्नी सम प्रतीत होती है। चाहता हूँ मनाता हूँ फिर भी  रुठती ही जाती है।। कहता ह...