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कविता

नदी पर पाँच मुक्तक
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नदी पर पाँच मुक्तक

नदी पर पाँच मुक्तक ================================================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख सरी, लहरी, प्रवाहिनी, सरिता उसके नाम। उपकृत वह सबको करे, नगर, उपनगर, ग्राम। नदी किनारे कीजिए, शीतल नीर-स्नान। पावन सुख यूं दीजिए, तन-मन को श्रीमान। सरिता-तट पर बैठकर, कैसे पंहुचे पार। आवश्यक है आपको, नौका का आधार। नदी प्रदूषित हो गई, हुए प्रदूषित कूल! कहाँ हुई है सोच ले, मानव तुझसे भूल! सरिता नाला बन गई, सूख गए हैं ताल। जलाभाव संसार में, हुआ आज विकराल।   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्र...
पल पल हर पल
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पल पल हर पल

पल पल हर पल ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  पल पल हर पल पारदर्शी गुलाब सी काया जो महके हर पल झील में धूप सी हंसी जो चहके हर पल चांद के साथ चांदनी सी जो रहे संग हर पल समंदर में नदी सा मिलन                           जो मिले जिंदगी हर पल दामन में हो खुशियां ही खुशियां जो   खुशनुमा हो जाए हर पल काजल सा नैनों में समा जाए जैसे जीवन का हर पल तुम्हारी यादों से मेरी याद जोड़ता जाए जो यादनुमा हो जाए हर पल दीप के प्रकाश से आलोकित होता रहे जीवन का हर पल जीवन का हर पल लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं ...
रिश्ते
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रिश्ते

रिश्ते ======================================================= रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित बांध कर रखो तो,, फिसल जाते हैं। बंद मुठ्ठी से अक़्सर निकल जाते हैं। खुशी ग़म दोनों हों तो खिलते हैं रिश्ते। दिल में जगह हो,,,, तो मिलते हैं रिश्ते। जुदाई मिलन ,,,केवल मन का बहम है। होते ख़तम ग़र,,,,,,,,,,,मन में अहम है। कछुए के माफ़िक़ ,,कभी ये सिमटते। कभी दूर तक ये ,,,,,,,बस यूं ही चलते। तेज़ी मंदी भी आती ,,,,,,कभी जोर से। कभी सांझ लगते ये ,,,,,कभी भोर से। धैर्य मन में हो ग़र,, तो फलते हैं रिश्ते। लोभ लालच रहा तो,,,जलते हैं रिश्ते। बिन रिश्तों के जीवन चला कब चलेगा? सूर्य सर पर रहे तो,,,,, इक दिन ढ़लेगा। नाज़ करता है बिजू,फ़क्र रिश्तों पर है। यकीं है खुद पर,,,,,,,न फरिश्तों पर है।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण क...
ॐ सदृश्य माँ
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ॐ सदृश्य माँ

ॐ सदृश्य माँ  ============================================= रचयिता : डॉ सुनीता श्रीवास्तव ॐ का जब जब उच्चारण होता हैं मृत जीवन में प्राणों का संचार होता हैं माँ तो ॐ के समान शाश्वत हैं स्वर्ग सिधार गई पर प्रतीक स्वरूप हम भाई बहनों को छोड़ गई माँ ना होती तो क्या हम होते पता नही किस लोक में होते जब जन्म हुआ तो माँ की कोख से धरती पर पाया पर माँ धरती तो आज भी है पर तू क्षितिज से धरती तक कहा है ..... अंतर्मन "चीत्कारता" हैं माँ तो रोम रोम में "व्याप्त" हैं तेरा वजूद माँ की देन है मन करता है माँ तुझे पर्वत की संज्ञा दे डालू पर तू तो दया का "सागर" है फिर क्या तुझे समुद्र कहूं? नही तू तो उससे भी गहरी है माँ तू तो भगवान है? पर भगवान तो महसूस किये जाते हैं ,माँ तू ईश से बढ़कर हैं? नही माँ केवल तू माँ हैं कोई संज्ञा तेरी नही हो सकती तू तो विशेषण है। रातो में तारों में माँ क...
माँ
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माँ

माँ रचयिता : विजयसिंह चौहान =========================================== जीवन की इस आपाधापी में , "मैं ".कहां खो गया माँ, मैं क्यों बड़ा हो गया काश ! मैं फिर से बच्चा बन जाऊं तेरी गोद में सिर रखकर सो जाऊं भूखा रहता हूं' मैं दिन भर दो निवाले, फिर खिला दो ना मां अपनी गोद में फिर सुला लो ना, मां नहीं चाहिए ये दुनिया, चमक भरी मुझे फिर से अपने "आंचल" में, छुपा लो ना, मां मन का दर्द कह भी नहीं सकता, आंख भर रो भी नहीं सकता, अपनी पनाह में ले लो ना मां तेरी भोली सी मुस्कान से, मैं दुनिया के सारे दर्द भूल जाता हूं एक बार छू कर निहाल कर दो, ना मां। लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० जन्मस्थान इन्दौर (मध्यप्रदेश) है, इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की, आप सामाजिक क्षेत्र म...
मेरा सारा जीवन माँ तुम
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मेरा सारा जीवन माँ तुम

मेरा सारा जीवन माँ तुम ======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" तुम मेरे जीवन के नौका की खेवनहार हो, तुम ही मेरा रब हो और जीने का आधार हो, तुम ही मेरा जग हो और तुम ही सच्चा प्यार हो, माँ तुमने जब भी मुझको अपने सीने से लगाया है, अद्भुत,अप्रतिम,वो पल मैनें आज भी नही भुलाया है, उँगली पकड़ के मेरी तुमने मुझको चलना सिखाया था, लोरी गा-गाकर के तूने मुझको रोज सुलाया था, तेरी ममता के आँचल में बेफ़िक्री सो जाता था, तू जब भी पुचकारे मैं झट से चुप हो जाता था, मेरी दुनिया तुमसे तुम ही तो मेरा जहान हो, मेरे जीवन का तुम उपहार तुम्हीं वरदान हो, तुम हो तो मैं हूँ माँ तुमसे मेरी पहचान है, तेरे खातिर मेरा ये सारा जीवन कुर्बान है, क्या कितना मैं लिक्खू तुझ पर अब मेरी माई, शब्दों का सैलाब लिखूँ या तुझ पर रोज किताब लिखूँ, तुझ पर मैं जितना भी लि...
माँ की पिटारी
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माँ की पिटारी

माँ की पिटारी रचयिता : अर्चना मंडलोई ================================================= याद बहुत आती है, माँ की वो पिटारी कहने को माँ का घर पूरा अपना था पर माँ का पूरा संसार उस पिटारी में बसता था जाने कहाँ से, कैसे कभी रूमाल में लिपटे कभी कुचले,मुडे नोट, पिटारी की तह में पडे सिक्के कभी चुडियाँ बिंदी तो कभी दवाईयों की पन्नी और न जाने क्या-क्या मेरे पहूँचते ही वो आतुर हो उठती स्हेह और ममता का वो पिटारा खुल जाता और फिर तह में छुपे नोट तो कभी सुन्दर चुडियाँ मीठी नमकीन मठरी लगता है, जैसे अक्षय पात्र मे हाथ डालती माँ बिना तोल मोल के ना किसी जोड घटाव के सारा हिसाब अपनी ममता से लगा लेती और डाल देती मेरी झोली में माँ तुम दुर्गा और लक्ष्मी ही नहीं अन्नपूर्णा भी थी। माँ तुम बाँटने दुलार फिर आ जाती माँ याद बहुत आती है। लेखिका परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका ...
मां
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मां

मां =========================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका मां तेरी महक पसरी है जीवन दात्री जीवन दायिनी कोख का तेरा कर्ज कब चुका सका कोई तू जागी  रात मे, में सोई घना अंधकार  जीवन मे  सदा प्रकाश पुंज बन आई गोदी तेरी अद्भुत  देव समाई विलग नही होती बेटियां कभी मां अंतर्मन छबी बसी जननी की नदी की कलकल ध्वनि माता झरनों का मधुर संगीत मन के सुमधुर गीत ईश्वर का उपहार सृष्टि का है आधार जननी नमन करूं वंदन चरणों में प्रणाम तुझे मां। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावली पान्डेय पति - मालवेन्द्र बधेका जन्म - ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश शिक्षा - एम• ए• अर्थशास्त्र शौक - संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति लेखन - चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजर...
माँ
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माँ

माँ =================================================== रचयिता : कुमुद दुबे माँ तुम तो" माँ" हो और "माँ " की कोई उप मां हो ही नहीं सकती । १ वर्ष का विछोह वह ममता वह हिम-शीतल वात्सल्य । सारी थकन, क्लांति और चिंताओं को निचोड लेने वाली तुम्हारी गोद.. अब स्मृतियों में बसती है। सच माँ इन बारह माहों से ये थकन भरी क्लान्त आँखे खोज रहीं हैं तुम्हें .... लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची। इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका। विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१०...
मै तो धन्य हो गया माॅ
कविता

मै तो धन्य हो गया माॅ

मै तो धन्य हो गया माॅ ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  कोख से तेरी जनम लेकर मै तो धन्य हो गया माॅ गोदी मे तुने मुझे बिठाया माॅ गोदी तेरी पाकर मै तो धन्य हो गया माॅ आँचल से तुने मुझे लगाया माँ आँचल तेरा पाकर मै तो धन्य हो गया माँ अँगूली पकडकर तुने मुझे चलना सिखाया माँ अँगूली तेरी थामकर मै तो धन्य हो गया माँ माँ माँ पा पा कहकर बोलना तुने सिखाया माँ वाणी कण्ठ से पाकर मै तो धन्य हो गया माँ दुनिया का सारा प्यार तुने दिया माँ ममता तेरी पाकर मै तो धन्य हो गया माँ कोख से तेरी जनम लेकर मै तो धन्य हो गया माॅ कोख से तेरी जनम लेकर मै तो धन्य हो गया माॅ लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा ...
मातृ पद महान
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मातृ पद महान

मातृ पद महान ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी माँ का पद है जगत में , सब से क्षेष्ठ महान ।  न्याय प्रेम निस्वार्थता , जग को किया प्रदान । उच्च मातृ पद ने दिया , नैसर्गिक उपदान , अधिकारिक निःस्वार्थता , आधिकाधिक बलिदान । माताओँ मे प्रेम  का ,  कीर्तिमान  निर्धार , किया वहीं है वस्तुतः ,  जग जीवन आधार । माँ की ममता आंव कुऐं सी झर झर झरती जायें , कभी छोर न पाये । हर दिन हर पल  हम , मातृ दिवस मनाऐं लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। र...
हे पत्नी देवी
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हे पत्नी देवी

हास्य दिवस  रचयिता : शशांक शेखर ============================================================= हे पत्नी देवी मनोरागिनी सकल सुख दोहिनि तू मरकट मछर सी गुंजन कारिनी रक्त पिपासिनी आनंद कुन्द विराट रूप धारिणी तुम मायका क्या बैठ गयी चार दिन की चाँदनी क्या सॅंट गयी रोम रोम मोरा नृत्यांगिनी रोग-हीन भई काया सोए भाग जागे जो लक्ष्मी रूपा तू मोर ससुरा घर गामिनी | हे पत्नी देवी मनोरागिनी सकल सुख दोहिनि आनंद कुन्द विराट रूप धारिणी मगर हे प्रिया विशाल हृदय वाहिनी अब लौट आओ की घर है कुरेदान विकराल संगिनी कपड़ों की स्त्री है भँजिनी दारू पार्टी से बजेट मोर है अन्बैलेन्सिनि | हे पत्नी देवी मनोरागिनी सकल सुख दोहिनि आनंद कुन्द विराट रूप धारिणी | हे देवी चाहे धरो तुम रूप रति का चाहे बनो काली साक्षातिनी अपने जन को क्षमा करो कब से तुम्हे पुकार रहे हम रख लो लाज हमारी हे मोर भाग्या...
मच्छर और मैं
कविता

मच्छर और मैं

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** खाली बैठा घर में खुद से हो दो चार रहा था जाने क्यूँ गुस्सा मेरा आसमाँ सातवें पार रहा था। इलेक्ट्रिक मॉस्किटो बेट से घर के मच्छर मार रहा था। या यूँ कह लो उन तुच्छ प्राणियों को इस भव सागर से तार रहा था। कलयुगी वैतरणी पार करके उनको खुद को कृष्ण मान रहा था। तभी एक छोटा मच्छर मेरे कान में धीरे धीरे सरकने लगा। माथा ठनका मन घबराया दिल जोरों से धड़कने लगा। वो जोरों से दहाड़ा कान में मेरे मेरा सर मानो फटने लगा। उसने जो काटा कान में मेरे सर चकराया बाँयां बाजू फड़कने लगा। फिर जादू क्या हुआ परमात्मा जाने मैं मच्छर भाषा समझने लगा। अब मैं बैठा था घर के कोने मच्छर भी थे ओने - पोने पर आ गए अचानक सैंकड़ों मच्छर। मुझे समझाने लगे की सुन बे ओ खच्छर। हम दुश्मन नहीं सोश्यलिस्ट हैं। देश में समानता लाने में बस हमीं फिट हैं। अमीरों -और गरीबों में हम फर...
हास्य दिवस 
कविता

हास्य दिवस 

हास्य दिवस  रचयिता : शशांक शेखर ============================================================= एक काव्य समूह का मैं बना हिस्सा उसमें हुआ बड़ा अजीब एक क़िस्सा किसी कवि ने कहा इस बार पूर्व संध्या पाँच मई की है अंधेरी काली अमावस्या शनिचरी की तभी समूह कर्ता ने टिप्पणी दे डाली पाँच मई है विश्व हास्य दिवस है कह डाली आगे लिखा था शनिशचरी अमावस्या पीछे हास्य दिवस उपरोक्त पर काव्य की हो रचना मैं अलबेला शब्दों में फँस गया जानकारी ही बचाव है के चक्कर में धँस गया मैंने छूटते पूछा उपरोक्त विषय के क्या मतलब है कविता शनिचर पर है की अमावस्या पर ग़ौरतलब है समूह कर्ता ने पूनः शब्दों को पढ़ने की सलाह दे डाली मैंने भी कई बार पढ़ा मेरा समय था बहुत ख़ाली मैंने उपरोक्त का संधि विच्छेद किया ऊपर उक्त से शनिचरी अमावस्या को विषय मान लिया पाँच मई ही है कविता का विषय किसी ने समझाया इस भागते ज़माने मे...
क्योंकि वो बस एक मजदूर है
कविता

क्योंकि वो बस एक मजदूर है

क्योंकि वो बस एक मजदूर है ======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" पसीने से तर-बतर, घर से निकल दोपहर, जा रहा है.. उसका क्या कसूर है? क्योंकि वो बस एक मजदूर है, बस यहीं उसका कसूर है, भूखा-प्यासा रात-दिन, जेब खाली पैसों बिन, वो करता जा रहा है काम, एक पल न कर आराम, सतत स्वेद से तन उसका भरपूर है, क्योंकि वो बस एक मजदूर है, बच्चों को है पालता, परिवार को संभालता, हर बला को टालता, तकलीफों से है वास्ता, उसका दुखभरा है रास्ता, कड़ी मेहनत करने पर वह मजबूर है, क्योंकि वो बस एक मजदूर है, सुनता है वो जमाने के ताने, न सुनता उसकी कोई न उसकी कोई माने, न समझे उसको कोई न कोई उसको पहचाने, मेहनत ईमानदारी से करता न कोई बहाने, बच्चों को पढ़ाता, न मेहनत करवाता, उन्हें पढ़ा लिखा अच्छा ऑफ़िसर बनाता, खुद भरी धूप में रिक्शा चलाता, जख्म कितने सहता न किसी ...
इन दिनों
कविता

इन दिनों

इन दिनों =========================================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी इन दिनों लोग परेशान फ़िज़ूल होने लगे है। वो अपनी ज़मीन पर बबूल बौने लगे है। जिसने कीचड़ उछाला है हम पर बहोत, अब हाथ उसके भी सड़ने लगे है। तुफानो का कोई कुसूर नही है जनाब, कश्तियां खुद नाखुदा ही डुबोने लगे है। मौका परस्त है जहाँ में सभी लोग, बहती गंगा में हाथ धोने लगे है। नाम लेकर दवा का जहर दे रहे, यू हकीमो के धंधे  चलने लगे है। वैद्य खुद ही परेशान है बीमारी से, रोग जाएगा कैसे यू कहने लगे है। खा रही है खेत, खुद ही जो बागड़ यहाँ , अपने कर्मो से वो खुद ही मरने लगे है। जब से पूजा अजाने बड़ी है बहुत, धर्म को छोड़कर लोग बढ़ने लगे है। सूर्य का तेज फीका हुवा आजकल। चाँद, तारे भी दिन में निकलने लगे है। प्यासी प्यासी लगे अब तो नदिया सभी, ये समंदर भी खुद में सिमटने लगे है। ज़िंदगी के हर एक ...
विरह
कविता

विरह

विरह =================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' गर्मियो में प्रेम का विरह सर्दियो की अपेक्षा अधिक क्यों सताता है शिवम अन्तापुरिया होकर चूर तेरी बाहो में मुझे सजना सवरना आता है खुदा से पूछता हूँ कौन हो तुम तो बस वो मुस्कुराता है मोहब्बत के सफ़र में हम तुम्हें यूँ मिल ही जाते हैं सफर अंजाम तक पहुँचे यही बस गुनगुनानते हैं हमारा हाल क्या है यारों ये मुझसे न तुम पूछो मोहब्बत के सफ़र में हम तुम्हें यूँ मिल ही जाते हैं सफर अंजाम तक पहुँचे यही बस गुनगुनानते हैं हमारा हाल क्या है यारों ये मुझसे न तुम पूछो मोहब्बत से सज़ी महफ़िल में वो नफ़रत दिखाते हैं लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि...
माँ का ऋण
कविता

माँ का ऋण

माँ का ऋण =================================================== रचयिता : कुमुद दुबे थी प्रेम और ममता की मूरत तुम सहनशीलता धैर्य की प्रतिमूर्ति तुम हीमपर्वत-सी छटा तुम्हारी चट्टान-सी थी दृढता तुम्हारी कर्तव्यों को शिखर पर रखती शक्ति बन पिता की दुविधा हरती पल-पल जीवन सार्थक करती। हम बच्चों की थी गुरू तुम सत्य-पथ प्रशस्त करती तुम्हीं तो पूरी पाठशाला थी धर्म बल और तेज लिये सबको स्वावलम्बी बनाती अपना सर्वस्व जीवन वात्सल्य हृदय से लुटाती। अंत समय तक चलती रही, अविरल धारा-सी तुम जीवनभर आराम से दूर अंतिम पडाव पर भी शांत-चित्त तेजस्वी मुख ना था कोई अवसाद माँ सदा की तरह जयश्रीकृष्ण कह चीर निंन्द्रा को आत्मसात कर गई। मां, इस ऋण से हम कभी न होंगे उऋण कभी न होंगे उऋण... लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम...
कोई ढुंढ कर ला दो 
कविता

कोई ढुंढ कर ला दो 

कोई ढुंढ कर ला दो  ============================================ रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव कोई ढुंढ कर ला दो कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है जमाने के इस शोर मे, औद्योगीक जगत के दौर मे, वो मन को हर्षाती जिवनधारा वर्षाती, खेतों मे लहलहाती वो हरियाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस आतंकी कहर मे, नफरतों के जहर मे, मन को लुभाती, मन को मन से मिलाती, अँधकार को भगाती वो दिवाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है निरक्षरता के अंधकार मे, रुढिवादियों कि तलवार मे, संसार को जगाती, अपने प्रकास से ज्ञान के दिपक को जलाती, वो सुरज कि लाली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस जाती-धर्म के खेल मे, खुनी खेलों के खेल मे, हमारी एकता अखण्डता को दर्शाती, हमारे संस्कारो को बढाती, पूर्वजों से मिली वो आशिर्वाद कि थैली। कोई ढुंढ कर ला दो- गुम हो गया है इस नोटों के खेल मे,...
गुबार और कारवां
कविता

गुबार और कारवां

बुढ़ापा ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  गुबार देखता रह गया जमाना कारवां को दूर है जाना , उनको गुजरे नहीं हुए दो पल देखते ही देखते हो गए ओझल l गुबार देखता रह गया जमाना कारवां को दूर है जाना , नहीं जाता उनके साथ जमाना क्यों? क्योंकि उन्हें है विश्वास एक दिन फिर लौट कर आएगा कारवा देखेगा फिर जमाना गुबार II लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बा...
आदर्श
कविता

आदर्श

आदर्श ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी भिन्न भिन्न नर जातियां , भिन्न भिन्न संस्कार, हम न किसी आदर्श का, कर सकते  प्रतिकार। हर नर का कर्तव्य है, हर्दय ग्राह्म  आदर्श, जीवन में लेकर चले, हेतु प्रगति उत्कर्ष। व्यवहारिक होता नहीं, बिना विचार  विमर्ष, मतान्धता  धर्माधन्ता, पर निर्मित  आदर्श। मन स्वाधीन रहे सदा, रहे उच्च आदर्श, फलीपूत होगा तभी, यह जीवन संघर्ष। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान औ...
मजबूर मजदूर
कविता

मजबूर मजदूर

मजबूर मजदूर =============================================== रचयिता : किशनू झा "तूफान" तन से बहता रोज पसीना, हर दिन होता दुर्लभ जीना। खाने की तो बातें छोडो़, मुश्किल जिसको पानी पीना। मन में जिसके टूटे सपने, हर उम्मीद अधूरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। सत्ता लाखों वादे करती, उनसे अपनी जेबें भरती। निर्धन मजदूरों के घर की, मजबूरी से रात गुजरती। पेट पालने की ख़ातिर, मजदूरी बहुत जरुरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। दिल्ली से सब गावों में, मजदूरों को पैसे आते। सड़क लैटरिंग पैसे सारे, पहले नेता जी खा जाते। मजदूरो को कुछ न मिलता, मजदूरी मजबूरी है । मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। लेखक परिचय : - नाम - किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती अंजना झा निवासी - ग्राम बानौली,(दतिया) सम्प्रति - बी. एससी. ...
श्रमिक
कविता

श्रमिक

श्रमिक ================================== रचयिता : राम शर्मा "परिंदा" जिनके दम पर निर्मित हुए राजमार्ग - उपवन - प्रासाद आओ उन श्रमिकों को आज करें हम याद जाने किस फौलाद से बनता है इनका सीना सिर पर बोझ ढो-कर जो बहाते है पसीना गर्मी-सर्दी कुछ ना देखे कर्म करें बारहों महीना धर्म -जाति में भेद ना करते रामू - राबर्ट या हो सकीना श्रमिक ही है इस धरा का बहुमूल्य सु़ंदर नगीना जिनके श्रम से सफल हुआ वैभवशाली अपना जीना जिनके दम पर हम सुखी करते मौज से खाना-पीना आओ इनका तिलक करें राजू - मोहन - रीना जिनसे रौशन जग सारा जिनसे जग हुआ आबाद आओ उन श्रमिकों को आज करे हम याद। लेखक परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह...
उधार जिंदगी………
कविता

उधार जिंदगी………

उधार जिंदगी......... ======================================== रचयिता : दिलीप कुमार पाठक मैं हार जाता हूँ अक्सर,फिर भी जीता हूँ भूला नहीं हूँ अक्सर कभी - कभी पीता हूँ तेरी जीत मेरी हार नहीं, फिर भी रोता हूँ परिहास करे ज़िंदगी मेरा, इसलिए जीता हूँ...... खनकते नगमें जिंदगी, ऐसे बजा रही है अर्थी में लिटाने मुझको ऐसे सजा रही है मिलना चाहे मुझसे, खुद को मिला रही है परमदशा को आतुर ऐसे मिलवा रही है.......... अपारिहार्य है सबको नितांत नहीं है, मिटना पंचत्तत्व में सबको नित मिलना ही मिलना मुझमें क्या अनोखा है, तेरा है, ताना - बाना सैलाब, उमड़ में मिला ले करवा मेरा नज़राना..... डर नहीं था जिद थी, तुझसे नहीं मिलेंगे भूले गए थे किरदार नहीं हैं हम नहीं जलेंगे माया में उलझे थे, माया लोक नहीं तजेंगे समझ में सब है आया हँस कर हम जलेंग ........................... ..हँस कर हम जलेंगे ........
मैं शहंशाह हूँ
कविता

मैं शहंशाह हूँ

मैं शहंशाह हूँ =============================== रचयिता : परवेज़ इक़बाल मेरे अश्कों से गुज़र कर बच्चों को खुशी मिलती है मैं रोज़ मरता हूँ तब घरवालों को ज़िन्दगी मिलती है... सोचता हूँ, मेरे लिए महंगा नहीं है सौदा सबको इस दाम भी कहाँ ज़िन्दगी मिलती है... यह महल, ये चौबारे मेरी मेहनत के गवाह सारे सब मे शामिल मेरा पसीना सबने सीखा मुझसे जीना फिर भी खैरात सी मुझको मजदूरी मिलती है... मैं रोज़ मरता हूँ तब घरवालों को ज़िन्दगी मिलती है... मिले हैं सबको, मेरे सदके में चमक और उजियारे लेकिन मेरे नसीब में आये हैं सारे ही अंधियारे लाल किले की ऊंची दीवार के कंगूरे पर लटकी है कहीं मेरी मजदूरी ताजमहल की बुनियादों को सींचा है मैंने, अपने लहू से और पाए हैं ईनाम में अपने ही कटे हाथ... पाई शोहरत तुमने, उसका नहीं है गम मेरे हिस्से में कियूं कर दीं रुसवाईयाँ तुमने... ये किले, ये मीनारें ताने किसने ? ऊंचे-ऊंचे ये महल बना...