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कविता

यह नदी अभिशप्त सी है
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यह नदी अभिशप्त सी है

========================= रचयिता : रामनारायण सोनी यह नदी अभिशप्त सी है जल नही बहता यहाँ यह लगभग सुप्त सी है घाट सब मरघट बड़़े है प्यास पीते जीव जन्तु धार, लहरें लुप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है पालती थी सभ्यताएँ धर्ममय और तीर्थमय हो संस्कृति विक्षिप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है खेत बनती थी उपजती तरबूज, खरबूज ककड़ियाँ अब रेत केवल तप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है प्राण उसके पी गई लोलुपी जन की पिपासा वासनाएँ लिप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है हम विकासों के कथानक तान कर सीना दिखाते सब शिराएँ रिक्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है बस बाढ़ ही ढोती रहेगी शेष दिन निःश्वास होंगे जिन्दगी संक्षिप्त सी है यह नदी अभिशप्त सी है   परिचय :- नाम - रामनारायण सोनी निवासी :-  इन्दौर शिक्षा :-  बीई इलेकिट्रकल प्रकाशित पुस्तकें :- "जीवन संजीवनी" "पिंजर प्रेम प्रकासिया", जिन्दगी के कैनवास लेखन :- गद्य, पद्य ...
तेरे बिन दर्पण लगता झूठा
कविता

तेरे बिन दर्पण लगता झूठा

============================== रचयिता : रीतु देवी झूठ को सच बयां करता दर्पण, सारे भाव हम अपना करते अर्पण, फिर भी तेरे बिन झूठा लगता दर्पन, हूँ बाबड़ी करूँ मुखमंडल तेरे नयनों में दर्शन। देख तेरे चक्षुओं में अपना मुख, प्राप्त होती मुझे सांसारिक अलौकिक सुख। गाऐं तू श्रृंगार रस , करूँ मोहिनी श्रवण तुझ बिन नीरस है जीवन करके श्रृंगार न देखूँ दर्पण, आ जाओ सनम करूँ तहे दिल अर्चन। दर्पण दिखा सब करते मेरे सौंदर्य का व   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … औ...
रे माधो
कविता

रे माधो

रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" ================================================ रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. मन की तनिक लगाम खींच, फिर सोई आत्मा जागे। रे माधो सुख है दुख के आगे।.. मन तुरंग पर चढ रावण ने सीता जाय चुराई। हनुमत संग सुग्रीव लिए श्री राम ने करी चढ़ाई। देख सामने मौत दुष्ट को नहीं समझ में आई। फिर राम लखन ने जा लंका की ईंट से ईंट बजाई। लंका भस्म हुई सारी सब छोड़ निशाचर भागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. बाली ने कर घात भ्रात से पाप किया था भारा। भाई की घरवाली छीनी नाम सुमति था तारा। गदा युद्ध प्रवीण बालि सुग्रीव बिचारा हारा। राम सहायक बने तुरत पापी को जाय संहारा। बड़े बड़े बलवान सूरमा काल के गाल समागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।. भक्ति में हो लीन 'ध्रुव' तारा बन नभ में छाये। शबरी की भक्ति वश झूठे बेर राम ने खाए। भागीरथ तप घोर किया गंगा धरती पर लाये। दानव सुत प...
प्रकृति
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प्रकृति

====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा सूखते खेत खलिहानों से बंजर पड़े भूमि से बर्वाद होते जंगल से बेजार होते पेड़ पौधे से। पूछो उनकी अभिलाषा देखो बदलते परिभाषा । सुनो उनकी स्पंदन करते हुए क्रंदन। एक बूंद पानी की आस में ह्रास होते सम्बेदना के त्रास में। देख रही प्रकृति रोती बिलखती चीत्कार करती। भूल गया है तू अपना मानविय कर्तब्य पालना और सुरक्षा का फर्ज। खुदगर्ज हुआ है तू मानव समेटने में लगा है दानव । अब नही समझोगे तो कब मिटने वाला है तेरा अस्तित्व । प्रकृति प्रदत्त उपहार को बचाने के लिए अग्रसर होना पड़ेगा तुम्हे जीवन सँवारने के लिए। बचाना होगा पानी और पेड़ जंगल तय होगा तब जीवन मे सुकून और सम्बल। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं...
जीत
कविता

जीत

============================== रचयिता : रीतु देवी अरमानों की ख्यालों में लगा पंख, सीढियाँ दर सिढियाँ चढ फूंक विजयी शंख, देखकर अस्ताचल-उदयमान रवि , अहर्निश पग बढा खिला छवि, सहस्त्रों बार चींटी भाँति गिर-गिरकर, प्रयास करते रहना न पीछे पलटकर। फंसना न कभी राहों के जाल में सागरों की झंझावतों से निकलते रहना हर हाल में कठोर तपस्या के लगाकर आसन, अपने चमन के गगन का बढाना शान, स्मरण कर कन्हैया संग मिश्री -माखन, थामे रहना प्रतिपल श्रेष्ठजनों का दामन।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर...
तो फिर क्यों आ रहे हो
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तो फिर क्यों आ रहे हो

======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" मुझे क्यों आजमाने आ रहे हो, बताओं क्या जताने आ रहे हो, तुम्हीं ने मुझको ठुकराया था एक दिन, तो फिर क्यों अब मुझे वापिस मनाने आ रहे हो, क्यों पिंजरें में रखा था तुमने अब तक कैद करके, क्यों पिंजरें से मुझे अब तुम छुड़ानें आ रहे हो, गिराया था मुझे तुमने कभी नीचा दिखाकर, तो फिर क्यों आज तुम ऊँचा उठाने आ रहे हो, तुम्हीं ने था रुलाया मुझको पहले जख़्म देकर, तो अब क्यों जख़्म में मरहम लगाने आ रहे हो, तुम्हीं ने तो कहा था तुम न कोई काम के हो, तो फिर क्यों आज मेरी उपलब्धियाँ गिनानें आ रहे हो, मैं मतलब से नहीं मिलता न मतलब से मेरा रिश्ता, तुम्हीं थे मतलबी जो हाथ मुझसे फिर मिलाने आ रहे हो,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवा...
जल हम सब की जीवन रेखा है
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जल हम सब की जीवन रेखा है

================================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा मैंने पानी से रिश्ते बनते देखे हैं, मैंने पानी से रूठे मनते देखे हैं। मैंने देखा है पानी का मीठा कडवा खारा होना, मैंने देखा है इस का सबमें सबके जैसा हो जाना। घुलने मिलने आकार बदलने का गुण है, कोई नहीं ऐसा जो इसके बिना मौन या चुप है। यह हम सब की जीवन रेखा है, क्या इस का भविष्य हमने कभी सोचा है। क्यों नहीं दे पाते इसे कोई भाव, क्यों नहीं रखते इसे बचाने का भाव। एक दिन नहीं होने पर गृहयुद्ध छिड़ जाता है, इस से हम सब का गहरा नाता है। जल संरक्षण की बात प्रबल करनी होगी, जल संवर्धन की तकनीक अमल करनी होगी। तभी भविष्य- सुख सरल तरल हो पाएगा यह जल का नहीं अपना भविष्य बनाएगा। जो आज किया परिणाम वही फिर पाना है, वरना पानी की बर्बादी पर पानी पानी हो जाना है। बिन पानी क्या जीवन सम्भव हो पाना है  नई पीढ़ी के सम्मुख क...
हे मोदी!
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हे मोदी!

================================================== रचयिता : भारत भूषण पाठक हे मोदी ज्ञान पयोधि तुम्हारा अभिनन्दन । है नरेन्द्र माँ भारती के मृगेन्द्र। तुम्हारा वन्दन माँ भारती के मान का करने वर्धन।। है विकासपुरुष ।स्वीकार हो स्नेहपुष्पगुच्छ।। धन्य हो पंकज संरक्षक।भयाक्रान्त रहते तुमसे आतंकपोषक।। धन्य हो तुम है महात्मन।भारत भक्ति को भारत करता है तेरे नमन।। है मोदी स्थापित रहे तेरा कीर्तिमान । बस अब और शहीद न हों रखना इतना सा ध्यान।। धन्य है तुम्हारी नेतृत्त्व शक्ति। स्वीकार हो शुभकामना भारत को बनाने विश्वशक्ति।। धन्य है तुम्हारी ओजस्विता ।धन्य तेरी दूरदर्शिता।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र :- आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठ...
माँ तुम मेरा जहान
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माँ तुम मेरा जहान

======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" रास्ता तुम्हीं हो और तुम्हीं हो मेरा सफ़र, वास्ता तुम्हारा है हर घड़ी और हर पहर, तुम ही मेरे जीवन की सबसे मजबूत कड़ी, तुम ही मुश्किलों में सिर्फ मेरे साथ खड़ी, मुझको धूप से बचाने बनके आती छांव हो, तुम ही मेरा शहर और तुम ही मेरा गाँव हो, मेरी सारी उलझनों का एक सिर्फ तुम ही हल, मेरी जिंदगी की दुआ और तुम ही मेरा बल, मेरे सारे मर्जो का तुम ही माँ इलाज़ हो, तुम ही घर की लक्ष्मी जो रखती घर की लाज हो, मेरी जिंदगी का तुम सबसे बड़ा ईनाम हो, तुमसे ही मेरा जीवन माँ तुम ही तो चारोंधाम हो,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म.प्र.) है। वर्तमा...
संन्यास
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संन्यास

संन्यास =================================== रचयिता : राम शर्मा "परिंदा"  तुम्हें मुबारक धन-दौलत मैं भगतसिंह-सुभाष ले लूं । उथल-पुथल मची जग में अभी कैसे संन्यास ले लूं ।। भावों को शुद्ध करना है अपनो से युद्ध करना है जो है विकारों  से  युक्त जगा उन्हें बुद्ध करना है भूखों के लिए अन्न मांगू स्वयं हेतु उपवास ले लूं । उथल-पुथल मची जग में अभी कैसे संन्यास ले लूं ।। धर्मो में ठेकेदार आ गये करने को  प्रचार आ गये खुद धर्म का मर्म न जाने करने को सुधार आ  गये गीदड़ों को गले लगा कर शेरों के लिए घास ले लूं  ? उथल-पुथल मची जग में अभी कैसे संन्यास ले लूं ।। परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा , २- उड़ा...
रिश्ते
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रिश्ते

रिश्ते ====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा बाग के हम फूल अलग अलग एक धागे में पिरोए है गुलशन हुआ चमन और हम कितने सलीके से मुस्कुराएं है। डूबती जा रही थी कस्तियाँ तूफानों में हर इंसान अकेला है रिश्तों के मेले में ज्यादा समझदारियाँ देना नही भगवान घटते अपनापन की अहसास होगा रिश्ते की नूर मासूमियत से ही है सदा अपनों की छांव से सीतलता का अनुभव होगा जीवन के अंधेरे और उजाले में हमने कई रिश्ते टूटते देखा इस उम्मीद पे दुनिया कायम है रात के बाद दिन आएगा परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर कॉ...
बस अपने काम से काम रखों
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बस अपने काम से काम रखों

बस अपने काम से काम रखों ======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" आँखो में अक्सर अपने तूफान रखों, यहाँ सिर्फ अपने काम से काम रखों, दिल से नफरतें बाहर निकाल फेंको, तुम दिल में प्यार मोहब्बत तमाम रखों, कोशिशें करते रहों आखिरी साँस तक, गिर कर उठना हरबार है ये जान रखों, ये मत सोचों चार लोग क्या सोचेगें, अपनी सोच को खुलकर सरेआम रखों, खुद में खुद को जिंदा रक्खों, दोस्त कम मगर चुनिंदा रक्खों, एक ना एक दिन दुनिया में सबको मरना है, सर पे बांध कफन साथ मौत का सामान रखों, तुम काबिल हो,कर सकते हो हर लक्ष्य फतह, बस खुद पर करके यकीन कायम पहचान रखों,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म...
अमर
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अमर

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" वृक्ष के तले  चौपाल जहाँ बैठकर पायल की रुनझुन बहक जाता था दिल दिल जवां हो जाता था इश्क आज उसी वृक्ष तले चौपाल पर इश्क खोजते विकास के नए आयाम में खुद चुकी चौपाल वृक्ष नदारद धुंधलाई आँखों से घूम हुए का पता पूछते लोग कहते क्या पता? समय बदला घूम हुई पायल की रुनझुन इश्क हुआ घूम पास की टाल में लकड़ी का ढेर कटे  पेड़ की लकड़ी गूंगी हुई लकड़ी निहार रही लकड़ी के टाल से मौत आई उसी इश्क की लकड़ी से जलाया मुझे रूह तृप्त हुई हुआ स्वर्ग नसीब इश्क ऐसे हुआ अमर परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति...
सूने मकान 
कविता

सूने मकान 

सूने मकान  ========================================================= रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी बड़े-बड़े घर के, रोशनदान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? "सूने मकान' हो गए हैं । गलीचे हैं, खिलोने हैं, करीने से सजे हुए, घर में रहने वाले भी अब मेहमान हो गए हैं । घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं। न सलवटें हैं बिस्तर पर, न बिछी कोई चटाई है, न रामायण-गीता पढ़ता कोई, न लगी कोई चारपाई है, बाहर से बुलवाये माली ही, अब बगिया के बाग़बान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं । न आती है कोई चिट्ठी अब, न बचा है दौर "बुलावों" का, बहन-बेटियां हो गईं दूर, दर्शन भी दुर्लभ उनके पावों का, हंसी-ठिठोली, गपशप करना, अब केवल अरमान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं । बड़ी-बड़ी हैं टेबलें, आसन पर कोई नहीं बैठता, खाने से पहले अब, भगवान् को कोई नहीं पूछता, किसी को नमक हैं ...
ये इश्क है इश्क 
कविता

ये इश्क है इश्क 

ये इश्क है इश्क  =================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' साहब!  ये इश्क है इश्क  इसे दिशा निर्देश भी करना होगा,  अब मैं ही गवाही क्या दूँ  या खुद को खाली कमरा कर दूँ   साहब!  खून में जरा उबाल रखा करो √ साथ में जो हो उसका ख्याल रखा करो √ प्रेम का पौधा अक्रिय और सक्रिय दोनों रूप में मिलता है....  साहब!  जब भी पानी डालोगे तब ही वो हरा भरा हो जाएगा    हमने किया है क्या क्या किया है  मत पूछो  मेरे दिल ने क्या क्या सहा है  सोचना होगा मेरे दिल ने क्या  क्या सहा है  अब इसे भी हुकूमत कहोगे क्या जनाब  कि मेरी आँखो ने क्या क्या देखा है    हम गर्जी जिंदगी नहीं जीते है      गर्ज तुम्हारी होगी  हम तो हुकूमत भरी जिंदगी जिएगे  हुकूमत हमारी होगी    इन्शानियत की राह हमे निकालनी होगी  हम तुम्हारे जैसे नहीं हैं  साहब!  जो गर्ज पर गधे को ...
 वोट करो, भाई वोट करो
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 वोट करो, भाई वोट करो

 वोट करो, भाई वोट करो ============================== रचयिता : इंजी. शिवेन्द्र शर्मा फर्ज देश का अदा करो, वोट करो भाई वोट करो। लोकतंत्र का महा पर्व है, महिमा इसकी जानो। सरकार बनेगी तुमसे ही, कीमत अपनी पहचानो। करो,डंके की चोट करो वोट करो भाई.......... है चुनाव यह बड़ा बहुत, दिल्ली सरकार बनानी है। पूरे देश की जनता को, मत की शक्ति लगानी है। देश के संग न खोट करो वोट करो भाई.......... लंबी प्रतीक्षा होने पर ही मिलता है ऐंसा मौका नहीं चूकना है, तुमको इस बार लगाना है,चौका। माहौल अब तुम हॉट करो। वोट करो भाई......... मज़बूरी चाहे जो भी हो, नहीं चूकना है कतई। मतदान है, महादान, रविवार उन्नीस मई। दिल, दिमाक में नोट करो वोट करो भाई, वोट करो।   लेखक परिचय :-  नाम - इंजी. शिवेन्द्र शर्मा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा...
मैं आजाद हूँ
कविता

मैं आजाद हूँ

मैं आजाद हूँ ============================== रचयिता : रीतु देवी पंछी बन मैं डाल-डाल उड़ती हूँ , प्रगति रथ पर चढ अग्रसर होती हूँ, जमाने की बंदिशें रोक न सकती, पिंजरे में कैद हो न सकती, हिन्दुस्तान देश की मैं नाज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। नील गगन को चूमने चली हूँ , ऊँचे शिखर चढने चली हूँ , अनंत शक्ति है मेरे बाँहों में रोड़ें हटाकर आगे बढूँ राहों में घर-आँगन संगीत की मैं साज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। करती रहती हूँ नव-क्रांति की आगाज, संग मेरे है अरबों भारतीयों की बुलंद आवाज, शिक्षा की पाठ पढ लौ जलाने चली हूँ , इंसानियत की पाठ पढने -पढाने चली हूँ , मिली है मुझे तीव्र गति मैं बाज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। विचार अभिव्यक्ति करने की मिली है स्वतंत्रता, फूल से अंगार बन करूँगी दमन सभी परतंत्रता , कार्य करने की है मुझमें असीम उर्जा , बनना है मुझे राष्ट...
आज का  युग 
कविता

आज का  युग 

आज का  युग  ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी हर जनों मे भ्रष्टाचार का वास हो गया है कलियुग मे सत्य बेईमानी का दास हो गया है। कट गई  इंसानियत, की पूरी  फसल, चारों और  स्वार्थ का घास  हो गया है। रिशवत के पैर जमे, न्यालय  मे  भी, न्याय  का  पन्ना  झूठ, का  भंडार  हो गया है। गीता  बाईबल  कुराण पड़े  कोने  मे, कर्म  चलती  फिरती, लाश  हो  गया  हैं। दिन  रैन  के  सांक्षी, चंन्द्र  सूर्य  होने  पर  भी, हैं ऊपर  के  मालिक, अभी  तक न्याय नहीं किया बेहतर  होगा  कि जमीन पर, वीर हनुमान आ जाये, लंका  जैसी  दुष्टों  की, नगरी  जला  जाये। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत ...
बेटियां
कविता

बेटियां

बेटियां =========================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका दरिंदों से अगर बचा सको तो, बचा लो बेटियां। बाहर नहीं है, घर में भी कहां सुरक्षित  बेटियां। करते हैं बातें बड़ी बड़ी, जमाने के लोग भली। इनकी ही छाया में देखो, कैसे झुलसती है बेटियां। मां के लिए फूल गुलाब है, पिता के लिए नन्ही कली। दहेज की बली चढ़ गई, उनकी प्यारी प्यारी बेटियां। बाप दादा की दौलत पर, शाही जिनकी जिंदगी चली। ऐसे दहेजी लालचीयों के, हाथों रोज मरती है बेटियां। माता पिता के घर आंगन में, जो बड़े  नाजों से पली। लोभियों के घर दहेज का तांडव, त्रास झेलती  बेटियां। नारी शक्ति है, साहस, है देवी है, गुड़ की मीठी डली। फिर क्यों कड़वे नीम सी, यहां थूक दी जाती बेटियां। भ्रुण हत्या, बलात्कार, दरिंदगी की शिकार गली गली। कैसे महिषासुरों से जग मे, अब बच पायेगी बेटियां। कोई दिन बाकी न बचे हैं अब ऐसे...
घनश्याम
कविता

घनश्याम

घनश्याम रचयिता : शशांक शेखर ============================================================= करूँ कहाँ से पवित्र सुंदर सत्य न्योच्छावर तुमपर घनश्याम जग की थाती में लिपटा मेरा जीवन मलीन घनश्याम । करो स्वीकार इसे के हो जाए चीत लीन तुझमें घनश्याम किस मंदिर जाऊँ मैं पूजूँ कौन से विग्रह रूप घनश्याम । दुखियों के दुःख हरनेवाले को छोड़ सुख कहाँ मैं पाऊँ भगवान करूँ कहाँ से पवित्र सुंदर सत्य न्योछावर तुम पर घनश्याम । तुम्हारे नाम पर धरती पर खड़े मंदिर कितने आलीशान कहो कब भरते है हृदय की पीड़ा किसकी ये, घनश्याम मैं पापी दुर्भागी किस मुँह से माँगूँ मोक्ष प्रभू मैं तो माँगूँ बस सत्य के ही दर्शन प्रभू ना मैं अर्जुन ना हस्तिनापुर का हठी दुर्योधन ना रावण ना विभीषण पाप पुण्य में उलझा मैं हूँ तुच्छ सा इंसान मुझको अंधकार से निकलो घनश्याम करूँ कहाँ से पवित्र   लेखक परिचय :- आपका नाम शशांक ...
ये साँसे उड़ना चाहती है
कविता

ये साँसे उड़ना चाहती है

ये साँसे उड़ना चाहती है। ============================================ रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव ये साँसे उड़ना चाहती है। कोई तो बताए फ़ितूर को ये सफ़र और कितना लंबा है, और क्या-क्या झोंकु इस लड़ाई में जो अब तक जिंदा है, ठिठुर गया हुँ तेरे दहशत से ऐ जिंदगी अब तो मुझे माफ़ कर , ये सांसे उड़ना चाहती है जो तेरे पिंजरे का परिंदा है। एक कहानी इस दरख़्त का जो लब पे आते-आते रेह जाता है, वो यादों का कारवाँ जो गुजरता है उल्फत के राहों से,अब कहाँ मुझे सुलाता है, ये लब जब से सिले हैं कैसे बताऊं तुझे की हम कैसे जिंदा हैं, ये सांसे उड़ना चाहती है जो तेरे पिंजरे का परिन्दा है। ये धर धरा पर शून्य शिथिल जब हो जाता है, मिठी नींदों में कोई दुःस्वप्न बो जाता है, कुछ बातें अब भी बाकी है जो शायद इन बयारों को मालूम है, सदियों से भी लम्बे इन लमहों में न जाने क्यों कोई अब तक जिंदा है, ये ...
नदी
कविता

नदी

नदी ============================== रचयिता : रीतु देवी कलकल बहती है निरंतर नदी, पावन नव संदेशा दे होती अग्रसर नदी। स्वार्थहीन दिशा में बहती रहती, अपने तट स्वर्ण फसल दे निहाल करती रहती। कराती रहती पूजनीया मधुर संगीत श्रवण, मनोकामनाएं पूर्ण कर लेते करके तट किनारे अर्चन। सिख लेकर नेक राह बढाए कदम, अपनी जिंदगी सेवाभाव में अर्पित करें हम। रखें पवित्रता का ख्याल इसकी हरदम, हाथ में हाथ मिला न होने दे जीवनदायी अक्षुण्णता कम।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर कॉल करके ...
नदी पर पाँच मुक्तक
कविता

नदी पर पाँच मुक्तक

नदी पर पाँच मुक्तक ================================================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख सरी, लहरी, प्रवाहिनी, सरिता उसके नाम। उपकृत वह सबको करे, नगर, उपनगर, ग्राम। नदी किनारे कीजिए, शीतल नीर-स्नान। पावन सुख यूं दीजिए, तन-मन को श्रीमान। सरिता-तट पर बैठकर, कैसे पंहुचे पार। आवश्यक है आपको, नौका का आधार। नदी प्रदूषित हो गई, हुए प्रदूषित कूल! कहाँ हुई है सोच ले, मानव तुझसे भूल! सरिता नाला बन गई, सूख गए हैं ताल। जलाभाव संसार में, हुआ आज विकराल।   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्र...
पल पल हर पल
कविता

पल पल हर पल

पल पल हर पल ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  पल पल हर पल पारदर्शी गुलाब सी काया जो महके हर पल झील में धूप सी हंसी जो चहके हर पल चांद के साथ चांदनी सी जो रहे संग हर पल समंदर में नदी सा मिलन                           जो मिले जिंदगी हर पल दामन में हो खुशियां ही खुशियां जो   खुशनुमा हो जाए हर पल काजल सा नैनों में समा जाए जैसे जीवन का हर पल तुम्हारी यादों से मेरी याद जोड़ता जाए जो यादनुमा हो जाए हर पल दीप के प्रकाश से आलोकित होता रहे जीवन का हर पल जीवन का हर पल लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं ...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

रिश्ते ======================================================= रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित बांध कर रखो तो,, फिसल जाते हैं। बंद मुठ्ठी से अक़्सर निकल जाते हैं। खुशी ग़म दोनों हों तो खिलते हैं रिश्ते। दिल में जगह हो,,,, तो मिलते हैं रिश्ते। जुदाई मिलन ,,,केवल मन का बहम है। होते ख़तम ग़र,,,,,,,,,,,मन में अहम है। कछुए के माफ़िक़ ,,कभी ये सिमटते। कभी दूर तक ये ,,,,,,,बस यूं ही चलते। तेज़ी मंदी भी आती ,,,,,,कभी जोर से। कभी सांझ लगते ये ,,,,,कभी भोर से। धैर्य मन में हो ग़र,, तो फलते हैं रिश्ते। लोभ लालच रहा तो,,,जलते हैं रिश्ते। बिन रिश्तों के जीवन चला कब चलेगा? सूर्य सर पर रहे तो,,,,, इक दिन ढ़लेगा। नाज़ करता है बिजू,फ़क्र रिश्तों पर है। यकीं है खुद पर,,,,,,,न फरिश्तों पर है।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण क...