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कविता

थोड़ा कर आराम जिंदगी
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थोड़ा कर आराम जिंदगी

================================= रचयिता :  राम शर्मा "परिंदा" भागा-दौड़ी, काम जिंदगी । थोड़ा कर आराम  जिंदगी ।। नाम बड़ा तो  काम बढ़ेगा अच्छी है-गुमनाम जिंदगी ।। मन में जिसके शांति नहीं उसकी है कोहराम जिंदगी ।। सुख-दुख स्थाई नहीं होते देती रोज-पैगाम जिंदगी ।। गांव की चौपाल में  चर्चा कपास-मिर्च के दाम जिंदगी ।। शहर गया तो ये पता चला भीड़-भाड़-जाम जिंदगी ।। जन-जन से ही राष्ट्र बना है राष्ट्र की होती अवाम जिंदगी ।। ठहरता नहीं है वक्त 'परिंदा' गुजरे सुबह-शाम जिंदगी ।। परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता...
गर्मी
कविता

गर्मी

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' =================================== इस गर्मी में    सिर से बहकर पसीना जब गालों के रेगिस्तान      पर आता है थोड़ा सा ठिठक कर    फ़िसल जाता है । नुनखराहट के साथ     हल्की ठन्डक लेकर सीने रूपी समुंदर में     जा छुप जाता है ।।    हल्की ठंडक पाकर  दिल फिर मचल उठता है   बिछड़े प्रेमी रूपी (सर्दी)     की याद दिलाकर खुद शरीर रुपी    ज़मीन पर शहीद      हो जाता है ।।। लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं...
पेड़ हैं सेनापति
कविता

पेड़ हैं सेनापति

================================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा पेड़ हैं सजग प्रहरी, अविराम अपनी लड़ाई में संलग्न, एक कर्तव्यनिष्ठ सैनिक की भांति। पेड़ घबराते नहीं हैं, पतझड़ उनके पत्तों को झड़ा दे, या फूल तोड़ दे, पुनः असंख्य फूलों पत्तों के साथ, हरियाली क़ायम रखते हैं। पेड़ शान्त भाव से निरन्तर बढ़ते रहते हैं, एक मोर्चे पर हार भी जाएं, तो थोड़ा रुक कर कई मोर्चे खोल देते हैं। पेड़ कोई एक डाल तोड़ दे तो वे अनेक जगहों से, प्रस्फुटित हो जाते हैं। फूल समाप्त होने लगते हैं तो पेड़ फलों से लद जाते हैं। पेड़ सशक्त निष्ठावान सेनापति की तरह पेड़, हमारी रक्षा हेतु डटे रहते हैं। लेखिका परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजन...
उन्हें क्या ? वो तो राजनीति का खेल खेल रहे है…
कविता

उन्हें क्या ? वो तो राजनीति का खेल खेल रहे है…

=================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" आज हम आरक्षण का दंश झेल रहे है, उन्हें क्या ? वो तो राजनीति का खेल खेल रहे है, कुर्सी पर बैठ नचा रहे है जनता को, जो उठा रहा है हित के लिए आवाज़, उसको भेज जेल रहे है, उन्हें क्या ? वो तो राजनीति का खेल खेल रहे है, हर बार विकास के नाम पर वोट ले जाते है, फिर पांच सालों तक ना अपनी शक्लें दिखाते है, कभी राम मंदिर,कभी आरक्षण,कभी सेनाओं को मुद्दा बनाते है, हरबार जनता को मुद्दों के नाम पर कर ब्लैकमेल रहे है, उन्हें क्या ? वो तो राजनीति का खेल खेल रहे है, जनता को मिलता नहीं कुछ सिवाय झूठे वादों और आश्वासन के, भरते है सिर्फ अपनी जेबें अपने पांच सालों के शासन में, घोषणाएं लाखों करते अपने घोषणापत्रों और भाषण में, खुलेआम दंगे करा जनता को मौत के कुएं में ढकेल रहे है, उन्हें क्या ? वो तो राज...
पिता
कविता

पिता

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर पिता सार हैं, सृष्टि का आधार हैं। जीवन में हर कदम पर। एक सशक्त ढ़ाल है। उनकी कल्पना बिन, जीवन सुना विरह का जाल है। पिता कर्तव्यों की खान है। पिता का छत्र महान हैं। पिता आशा है, जीवन की परिभाषा है। पिता क्रोध है, त्याग है, खामोश एहसास है। पिता का स्नेह निष्छल अपार है। शिक्षा, सम्पन्नता का भरा- पूरा द्वार हैं। पिता से सजता हर त्यौहार है। पिता आँगन की खुशी, माँ की चूड़ी, रंगों की बहार हैं। पिता तो पिता हैं, घर के पालनहार हैं। पिता सुखों की, ममता की, प्रेम की बहार है। पिता को स्नेह वंदन बार-बार हैं। परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती श...
पिताजी आप याद आए
कविता

पिताजी आप याद आए

================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख घनी जब धूप गहराई परीक्षा की घड़ी आई कली आशा की मुरझाई समय ने जब सितम ढाए! पिताजी आप याद आए! लगी जब पांव में ठोकर उठा फिर रुआंसा होकर हुआ अवबोध कुछ खोकर प्रसंग मानस ने दुहराए! पिताजी आप याद आए! अकेला पड़ गया मैं जब विरोधी बन गए जब सब सजल आँखें हुईं डबडब पलक ने अश्रु छलकाए! पिताजी आप याद आए! आपके प्रेरणा-अक्षर सभी उत्साहवर्द्धक स्वर हैं अंकित आजतक उर पर चुनौती जब भी मुस्काए! पिताजी आप याद आए!   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचा...
पापा मेरे
कविता

पापा मेरे

========================================== रचयिता : श्रीमती मीना गौड़ "मीनू माणंक" पापा हर्ष मेरे, मैं खुशी पापा की ... पापा धड़कन मेरे, मैं जान पापा की ... पाप गुलिस्तान मेरे, मैं खुश्बू पापा की .. पापा सागर मेरे, मैं सीप का मोती पापा की ... पापा ज़ागीर मेरे, मैं ज़मीर पापा की ... पापा विश्वास मेरे, मैं उम्मीद पापा की ... पापा विशाल अंबर मेरे, मैं उड़ान पापा की ... पापा अटल पर्वत मेरे, मैं चोटी पर्वत की ... पापा ढाल मेरे, मैं दोधारी तलवार पापा की ... पापा समर्थन मेरे, मैं सहास पापा की ... पापा आँखें मेरी, मैं सपना पापा की ... पापा भगवान मेरे, मैं लक्ष्मी बिटीया पापा की .... पापा हर्ष मेरे, मैं खुशी पापा की ... बेटा हर्ष मेरा, खुशी पोती मेरी दौनों ही है जान मेरी ...।   लेखिका परिचय :-  नाम - श्रीमती मीना गौड़ "मीनू माणंक" सदस्य - ...
मेरे बाबूजी
कविता

मेरे बाबूजी

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे मुझे अपने बाबूजी पर घमंड करना आता है उन जैसा पिता जहाँ में नजर नहीं आता है जब मैं छोटी थी पर, छः बहनों में बड़ी थी फिर भी थी मैं उनकी लाड़ली सब याद है मुझे, उनका साईकिल पर बिठा बाजार ले जाना अपने साथ बिठा दूध रोटी खिलाना लड़ियाते हुए खाने से थाली में पानी ढुल जाना फिर मिठी-सी डाँट पडना सब याद है मुझे, सहैली के घर पढने जाना देर रात तक घर न लौटना उनका चिंता करना फिर चुपके-चुपके लेने आना, सब याद है मुझे, स्कूल की खेल प्रतियोगिता में भाग लेना बाबूजी का उत्साहवर्धन करना सब याद है मुझे, परीक्षा के दिनों में ऑफिस से छुट्टी लेकर आना परीक्षा हाॅल के सामने ग्लुकोज, संतरे, अंगूर लिये बैठना उनका इस तरह इंतजार करना सब याद है मुझे, शनिवार-रविवार की छुट्टी में किराना लेने शहर जाना देर होने पर चाचाजी के घर ठहरना फिर दूसरे दिन ...
पिता
कविता

पिता

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता का दाहसंस्कार कर घर के सामने खड़े होकर अपने पिता को पुकारने की प्रथा जो दाहसंस्कार में सम्मिलित होकर बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है उन्हें हाथ जोड़कर विदा करने की विनती भर जाती आँखों में पानी वो पानी बढ जाता गला रुँध जाता, तब जब तस्वीर पर चढ़ी हो माला और सामने जल रहा हो दीपक बचपन की स्मृतियाँ संग पिता आ जाती है मस्तिष्क पटल पर जो काम पिता कर लेते थे वो लोगो से पूछकर करना पड़ता होंसला अफजाई और परीक्षा में पास होने पर पीठ थपथपाई भी गुम सी गई अब में पास हुआ किंतु शाबासी की पीठ सूनी सी है और त्यौहार भी मुँह मोड़ चुके और रौशनी रास्ता भूल गई पकवान और नए कपडे कैद हो गए पेटियों में इंतजार है श्राद पक्ष का पिता आएंगे पूर्वजो के संग धरती पर अपने लोगो से मिलने जब श्राद में पूजन तर्पण और उन्हें याद...
आँखों के आंसू
कविता

आँखों के आंसू

=============================================== रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" बेटी के ससुराल में पिता के आने की खबर बेसब्री तोड़ देती बेटी की आँखे निहारती राहों को देर होने पर छलकने लगते आँसू दहलीज पर आवाज लगाती पिता की आवाज -बेटी रिश्तों, काम काज को छोड़ पग हिरणी सी चाल बने ऐसी निर्मल हवा सूखा देती आँखों के आंसू लिपट पड़ती अपने पिता से रोता - हँसता चेहरा बोल उठता पापा इतनी देर कैसे हो गई समय रिश्तों के पंख लगा उड़ने लगा मगर यादें वही रुकी रही मानो कह रही हो अब न आ सकूंगा मेरी बेटी मगर अब भी आँखे निहारती राहों को याद आने पर छलकने लगते आँसू दहलीज पर आवाज लगाती पिता की आवाज -बेटी अब न आ सकी पिता की राह निहारने के बजाय आकाश के तारों में ढूढ़ रही पापा कहते है की लोग मरने के बाद बन जाते है तारे आंसू ढुलक पड़ते रोज गालों पर और सुख जाते अपने आप क्योकि निर्मल हवा कभी सू...
ऐसे थे दासाब
कविता, स्मृति

ऐसे थे दासाब

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे प्रस्तुत रचना मैंने “पिता दिवस” पर अपने ससुर जी स्व.पं.नारायण राव जी दुबे, जिन्हें हम दासाब कहते थे, की स्मृति में लिखी है। मेरे ससुर जी मां दुर्गा के अनन्य भक्त रहे। उनका जन्म दुर्गा अष्टमी को हुआ और दुर्गा अष्टमी को ही वे इच्छा मृत्यु को प्राप्त हुए। इन्दौर, उज्जैन और देवास जिले के लगभग ४०-५० गांवों में वे कर्मकाण्ड के साथ जीवनपर्यन्त भागवत प्रवचन करते रहे। उनके जीवन से जुडे एवं इस रचना में समाहित, उन संस्मरणों को प्रत्यक्ष देखने समझने का अवसर तो मुझे नहीं मिला। लेकिन जो कुछ मुझे इस परिवार में आकर देखने-सुनने को मिला उसी के आधार पर यह कविता मेरी उनके प्रति स्वरचित श्रद्धांजली है। जब दासाब भागवत प्रवचन कर लौटते खादी का धोती कुर्ता पहने दिखते थे तालाब के पार हम पगडंडी-पगडंडी दौडते हो लेते थे उनके सा...
पिता
कविता

पिता

===================================================== रचयिता : संगीता केस्वानी निशब्द पर्दे की ओट से झांकते है पिता, नन्ही हथेलियाँ थाम बादलों के पार ले जाते है पिता, ना लोरी की थपकियों में, न रोटी के कोर में, ना इंतेज़ार की टकटकी में होते है पिता, की थाली के व्यंजनों को सजाने में व्यस्त होते है पिता, न आरती के दिये में, न रोली में, ना तावीज़ में होते है पिता, ना ममता में, ना वात्सल्य के स्पर्श में जुड़े होते है पिता, पहुंचाए मुझे अर्श पे इसके जिम्मेदार होते है पिता, तन कोख से जोड़े, लहू से सींचे है माँ, चिंता से परे, सोच -समझसे सींचे है पिता, ईंट-पत्थर के मकान की विशाल  अम्बर सी छत है पिता, गिद्दों की दुनिया में देखो सुरक्षा का वटवृक्ष है पिता, माना कठोर नारियल से होते है पिता, मगर नन्ही बिटिया के छूते ही भावुक होते है पिता, दामन में अश्कों को समेटे रहते है पिता, मगर बिटिय...
माँगे
कविता

माँगे

======================= रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर हक के लिए आवाज उठाया तो सही, आवाज में हमारे वजनदारी चाहिए। देश हमारा प्यारा, श्रेष्ठ और सच्चा है, बस देशवाशियों में भी ईमानदारी चाहिए। भ्रष्टाचार अभी चरम सीमा पर है, बस हमें सच्चे अधिकारी चाहिए। आरोपियों को कड़ी-से-कड़ी सजा मिले, जल्द-से-जल्द हमारी माँग पूरी चाहिए। आरोपियों को सजा दे सकें हम, हमे भी ये हिस्सेदारी चाहिए। सारे-के-सारे देशवासी एकजुट हो, अब नही हमें वो गद्दारी चाहिए। हम किस तरह सुरक्षित रह सकते हैं, इस बात की हमें समझदारी चाहिए। अपराधों को खत्म करते हुए, भारत माता हमे अब प्यारी चाहिए। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन - १७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प...
मसाज
कविता

मसाज

============================================================= रचयिता : शशांक शेखर तुम गए सुबह और दिन गए और हम ओस बन कर घास पर बिछ गए और हम आसमान से टपकते रहे आँसू बनकर और हम आज भी बारिश की बूँदे छतरी से टकराती हैं गीत कोई तुम्हारे नाम की गाती हैं और हम भागते हैं यहाँ से वहाँ तुम्हारी तलाश में और हम सायों को पकड़ते हैं जैसे चिढ़ा कर हमें तुम चुप गयी हो कहीं ओट में और हम उँगलियाँ शाम की थामे हुए पुकारते हैं तुम्हें मासूम का चेहरा तुम्हारा आवाज़ देता है हमें और दूर से धड़कन अपनी आप ही सुनते हैं और हम   लेखक परिचय :- आपका नाम शशांक शेखर है आप ग्राम लहुरी कौड़िया ज़िला सिवान बिहार के निवासी हैं आपकी रुचि कविताएँ आलेख पढ़ने और लिखने में है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
वो पालता है
कविता

वो पालता है

रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' =================================== कर्ज पर कर्ज लेकर बाप जिस औलाद को पालता है      वही पिता बनते ही  अपने पिता को दुतकारता है कितनी दुश्वारियाँ सहकर वो      उसे पालता है लेकिन बुढापा के समय वही बेटा बाप से मुहँ    क्यों मोड़ता है आज तक बाप से सीखने वाला    कल तक अन्जाना था वही आज़ लौटकर बाप को     ज्ञान बाँटता है कुछ औलादे पैरों पर   खड़े होते ही अपने माँ-बाप अशब्द     बोलते हैं वक्त के बिगड़ते ही (गर्ज़) बाप से रिश्ता जोड़ता है लेखक परिचय : नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता...
रंग बदलती दुनिया
कविता

रंग बदलती दुनिया

=================================================== रचयिता : रुचिता नीमा आज जब आईने में खुद को देखा तो यकीन ही नही हुआ,,, गाड़ी , बंगला सबकुछ था , पर जिसे होना था पास मेरे।।। वो न जाने कहा खो गया था, घिरा हुआ था दूसरों के साये से खुद मेरा साया ही नही था।।। बहुत खोजा उसे लेकिन वो अंत तक नहीं मिला, इस दुनिया की दौड़ में मेने खुद को ही खो दिया।।। अब पाना है बस खुद को छोड़कर बाहर की जंग जीतना है खुद से ही करकर खुद को बुलंद लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
चाँद से चेहरे
कविता

चाँद से चेहरे

============================== रचयिता : रीतु देवी न आए कभी शिकन चाँद से चेहरे पर, देख उसे अंग-अंग होता मेरा तर। मुसीबतें सारी निगल जाऊँ पल भर में बस जाऊँ उसके मन मन्दिर में वारती उस चाँद पर अपना सर्वस्व, बंध गया दिल उससे अपना स्वत्त्व। लगन लगी प्रीतम संग सुबह-शाम, होठों पर रहे सिर्फ उनका नाम, प्रेम रस पी रहे हर्षित हरदम, प्रेम गली मस्त रहे बनकर हमदम। जहां में जाए कहीं भी, सूरज की तपिश न सताए कभी।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कवि...
पेड़ लगाओ – जीवन बचाओ
कविता

पेड़ लगाओ – जीवन बचाओ

=================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" प्रकृति को सहेजने को अब सब मिलके तैयार हो, विनाश ना हो प्रकृति का यह प्रयास बार - बार हो, जागो सभी बचाओं अब इस सृष्टि के आधार को, पेड़ लगाओ और बचाओ जीवन और संसार को, पेड़ कट रहें है अंधाधुंध अब  तेजी  से   चहुंओर, जंगल करके साफ फैक्ट्रियां लगाने में दे रहे जोर, धुआं निकल रहा है जानलेवा सांस भी लेना है दूभर, पर्यावरण क्षरण की ओर अब  मानव जाएगा  किधर, जिंदगी में जहर घोल रहा प्रदूषण से  मानव  परेशान है, जनजीवन और लोग प्रभावित जंगल खाली सुनसान है, पर्यावरण बचाकर  हमको इस जग  को  बचाना है, वृक्षारोपण करके मानव जीवन को सुखी बनाना है,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म...
विश्व पर्यावरण दिवस
कविता

विश्व पर्यावरण दिवस

================================= रचयिता : मंजुला भूतड़ा पेड़ पौधों से हमारी श्वास, इन्हें बचाए रखने का करें प्रयास। प्रकृति का न हो शोषण-दोहन, मिलकर बचाना होगा पर्यावरण। नदी तालाब पोखर जलस्रोत, रखें स्वच्छ रखें ध्यान हर स्तर। अगर,न चिड़िया चहकेगी, न नदियां कल कल गान करेंगी। जीवन बोझ सा बन जाए, उससे पहले जागो। प्रकृति के प्रति कर्तव्य निभाओ, सौर ऊर्जा को अपनाओ। हरी भरी रहे धरा हमारी, जीवन में भी हो हरियाली। लेखिका परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्रिकाओं में ...
अपने हुए पराए
कविता

अपने हुए पराए

====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा किसको कहें दिल खोलकर सारा जमाना वीरान है जो अपने भी अपने न हुए खुद भी अकेले परेशान है। परेशान यूं ही कब तलक गुजर जाएंगे राहत की सांस आखिर कब तलक ले पाएंगे। बेजार जिंदगी से उम्मीद ही क्या करें पलके की ओट से आखिर कितना छुपाया करें। रुसवाई से से कब तक यूं ही घाव मिलते रहेंगे रुंधे गले से ऐसे ही बिरह के गीत गाते रहेंगे। हम सफाई देते कैसे अपने बेगुनाही के करते रहे भरोसा  अपने उम्मीद ओर खुदाई के। तुम्हारा विस्वास का डगर ही डगमगाता हुआ था पराए पन के अनुभूति ने हमे भी  तोड़ दिया था। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak1...
कल पेड़ आया था सपने में
कविता

कल पेड़ आया था सपने में

================================================== रचयिता : भारत भूषण पाठक कल पेड़ आया था सपने में एक मेरे आकर वो बोला यूँ मुझसे। मैं एक बात पूछता हूँ तुझसे।। बताना यह तुम सच-सच मुझको। आती कभी दया नहीं तुम सबको।। उखाड़ते हो अंग-प्रत्यंग सब हमारे। मन में आती नहीं यह बात तुम्हारे।। हैं प्राणयुक्त तुम सब की भांति हम सब भी। असहाय वेदना होती है हमें उखाड़ते हो जब भी।। सोचा कभी है तुमने हम हैं तभी तुम हो। गर हम नहीं तो तुम सब भी तो नहीं हो।। जीवित हैं जब हम रहते कितना सुख तुम्हें पहुँचाते। सोचो तुम ही न भला अन्न,जल,छाया कहाँ तुम पाते।। कहाँ बैठकर थककर भला यूँ सुस्ता तुम कभी पाते। बताओ न कहाँ बीतता बचपन तब तुम सबका। कहाँ से मिलते कुछ क्षण वो अति आनन्द का।। सोचो न जीवित थे तो तब भी जीते थे तुम्हारे लिए। आज मर रहे हेैं हम सब जब हरदिन तो तुम्हारे लिए।। वृक्ष लगाएं ..... जीवन बचाएं ..... लेखक ...
मैं आजाद हूँ
कविता

मैं आजाद हूँ

============================== रचयिता : रीतु देवी पंछी बन मैं डाल-डाल उड़ती हूँ , प्रगति रथ पर चढ अग्रसर होती हूँ, जमाने की बंदिशें रोक न सकती, पिंजरे में कैद हो न सकती, हिन्दुस्तान देश की मैं नाज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। नील गगन को चूमने चली हूँ , ऊँचे शिखर चढने चली हूँ , अनंत शक्ति है मेरे बाँहों में रोड़ें हटाकर आगे बढूँ राहों में घर-आँगन संगीत की मैं साज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। करती रहती हूँ नव-क्रांति की आगाज, संग मेरे है अरबों भारतीयों की बुलंद आवाज, शिक्षा की पाठ पढ लौ जलाने चली हूँ , इंसानियत की पाठ पढने -पढाने चली हूँ , मिली है मुझे तीव्र गति मैं बाज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। विचार अभिव्यक्ति करने की मिली है स्वतंत्रता, फूल से अंगार बन करूँगी दमन सभी परतंत्रता , कार्य करने की है मुझमें असीम उर्जा , बनना है मुझे राष्ट्र का नवीन सूर...
पर्यावरण दिवस पर तोहफा
कविता

पर्यावरण दिवस पर तोहफा

================================= रचयिता :  राम शर्मा "परिंदा" इक-दूजे से हौड़ की, खतम् करें यह रेस। पर्यावरण दिवस पर ये, तोहफा दे विशेष।। खाली पड़ी जमीन पर, रोपे इतने झाड़। हरा-भरा हो जायगा, मालवा औ निमाड़।। मानव इस प्रकार चले, जैसे चलते भेड़। एक लगाये पेड़ तो, सभी लगाये पेड़।। किसान से अपील यही, इतने रोपे पेड़। खेतों में छाया रहे, खाली न रहे मेढ़।। 'परिंदा' अब तो बचती, यही आखिरी आस। एक शख्स एक वृक्ष का, नियम बने यह खास।। परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव...
संगीत
कविता

संगीत

==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका जीवन एक मीठी धुन, मधुर संगीत है। प्यार का निर्झर झरना, अनुपम गीत हैं। आओं संवारे प्रेम से यह, फूलों की डलियां। चुन चुन कर इसमें लगाये, प्रेम की कलियां। मनुज जन्म उपहार ईश्वर का, यूं मिलता नहीं। नफरत,धोखे छल, कपट पर नेह की जीत है। जीवन एक मीठी धुन, मधुर संगीत है। प्यार का निर्झर झरना, अनुपम गीत हैं। बजने दो जीवन में, शहनाईयों का गान। भर दो झनकती, मीठी बांसुरी की तान। झूमे गगन, धरा झूमती फूलों की डालियां। अंबर से धरा तक पसरी, प्यार की रीत है। जीवन एक मीठी धुन, मधुर संगीत है। प्यार का निर्झर झरना, अनुपम गीत हैं। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावली पान्डेय पति - मालवेन्द्र बधेका जन्म - ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी)...
आओ बच्चों
कविता

आओ बच्चों

========================================== रचयिता : श्रीमती मीना गोड़ "मीनू माणंक" आओ बच्चो, तुम आज की खुशहाली। आने वाले कल का भविष्य हो।। आस लगाए, तकती तुम्हैं धरती। प्रकृति है, देखो बाहें पसारे।। किया है हमने खिलवाड़ पर्यावरण से। तुम दो सम्मान धरती को हरियाली फैला के।। ओ नौनिहालों, फूलों से करो प्यार। पौधे तुम लगाओ, बारम्बार।। रूठ गई है जो चिरैया हमारी, देख, फल-फूल से लदी डाली वो भी लोट अएगी।। कल-कल करती बहेगीं, जब नदियाँ बूझेगी, तब प्यास धरती की।। मद-मस्त बादल, गरज कर शंखनाद बजाएगें। झूम कर बदली, रिमझिम बूंदों से घूंघरू की झनकार सुनाएगी।। इंद्रधनुषी ये चुनरी सतरंगी। जब चारों ओर छा जायेगी।। रंग-बिरंगें इन फूलों से। वसुंधरा, दुल्हन सी सज जायेगी।। आओ बच्चों, तुम आज की खुशहाली। आने वाले कल का भविष्य हो।।   लेखिका परिचय :-  नाम...