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कविता

संघर्ष
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संघर्ष

*********** मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी" (राजकोट गुजरात) बनी    राहें   मेरी    कंटक   भरी। जो   कभी  सपनों  सी  थीं  सजी।। . विष प्याले बने सभी अमृत कलश। जीवन  प्यास   विषधर  सी  डसी।। . अंजुलि  में  सपने  लिये   चली  मैं। ज्वाला   अगन   सी   राहें   जली।। . नजर  देखे  जहाँ  तम  ही तम था। संघर्ष   में    ज़िन्दगी   थी   कटी।। . सोचा   हर   लुंगी   सारे  कष्ट  मैं। ज़िन्दगी    इम्तहान    सी    बनी।। . जूझती  रही   मैं  हर   संकट  से। दुनिया   भी  तंज  कसती   रही।। . मन्नत मंदिर की चौखट पर करी। फिर भी न  टली  मौत की घड़ी।। . जीत लिया सारा जहाँ जब देखा। मौत   दरवाज़े   पर   थी   खड़ी।। . क्षत - विक्षत   सी   बिखर  गयी। कभी कोमल कली सी थी खिली।। . लेखक परिचय :-  मीनाकुमारी शुक्ला साहित्यिक उपनाम - मीनू "रागिनी " निवास - राजकोट गुजरात आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंद...
पार होती हदें
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पार होती हदें

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) जिसका खाना खाने में   कलेज़ा दुख रहा हो सोचो वो अन्दर ही अन्दर    कितना रोया होगा, .  जिस पुत्र को उसका ही      पिता मर जाने की सलाह दे चुका हो और वो    अभी तक जी रहा हो सोचो उसका हाल कैसा होगा, . जो पुत्र पिता की तेल मालिश करते-करते पसीने से नहा चुका हो सोचो उसका    परिणाम कैसा होगा, . वो कैसा पुत्र है जिसे अपने आप को प्रयोग करने तक का अधिकार न हो और दूसरों के काम और मदद के लिए सदा तत्पर्य हो सोचो उसका साहस कैसा होगा, . जो कभी पिता को लौटकर जवाब न देना चाहता हो उसे कठिन यातनाओं के साथ पाला जा रहा हो सोचो उस पर क्या बीत रहा होगा, वो इतनी यातना भरा जीवन जी रहा है कि उसकी हैसियत घर में नौकर से भी बदतर है सोचो उसके दिल पर कितनी आवाजों का बोझ होगा, कितनी और हदें पार होगीं . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्...
तर्पण
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तर्पण

********** वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) पित्रौ को सुखी देखना चाहते है। पित्रौ का कनागत करना चाहते है। जीते जी उनका सम्मान करे। जीते जी आदर प्रेम करे। मरने पर आत्माएं दूसरी, योनियों में विलीन हो जाती। जीते जी अपने,पराये समझ आते। मरने पर पितृ विलीन हो जाते। सिर्फ चित्र-चरित्र याद रह जाते। भवनाओं से अपनो को अपना ले। चाहे फिर पित्रौ का श्राद्ध करे ना करे। उनके दिलों को दर्द ना दे। सुख का भोग जीते जी अर्पण करे। मन से भावो से प्रेम का तर्पण करे। जीते जी प्रेम अपर्ण करे। मारने पर भाव भीनी श्रद्धांजलि समर्पण करे। दिखावे का तर्पण ना करे। जीते जी पित्रौ को प्रेम अर्पण करे। प्रेम अर्पण करे। . लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलत...
आनंदमयी प्रेम
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आनंदमयी प्रेम

*********** भारती कुमारी (बिहार) फूलों-सा सम्पूर्ण हो गयी रोम-रोम में उमड़ गयी प्रेम प्रेममयी झंकार की मधुर तरंग . अरूपमयी होकर भी मृदुल मधुर रूप में परिवर्तित हो गयी सुनहली प्रेममयी छवि सहसा . ह्रदय में प्रेममयी स्नेह भर गयी दीप्त ज्योति-सी प्रेममयी ह्रदय प्रदीप्त होकर प्रेममयी संगम में पड़ी . स्वर्णिम नीली प्रेममयी प्रकाश अनहद नाद की कम्पन में खोई छल नहीं सकती कभी-भी प्रेम . रंगी है प्रेममयी परिणत मन से संगम है मधुर प्रेममयी स्नेह का श्यामल तन की कोमल अनुभूति . प्रेममयी सहानुभूति संदेश जो भेजी सहसा ह्रदय पुष्प - सी खिल गयी पुलकित-सी ह्रदय विह्वल आनंद भर जाती . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
कड़वा सच
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कड़वा सच

********** रचियता : विकास गंगराड़े जब फैली हो चारो और बुराई, तो अच्छाई को जगह कहां  मिलेगी | इस बेमतलब की झूठी दुनिया मै, सच्चाई को जगह कहां  मिलेगी || . एक सच्चे इंसान को जिंदगी गुजारने के लिए, चाहिए  सुख  शांति की जगह | मगर इस खून-खराबे-आतंकवाद की दुनिया मै, जिंदगी को भी जगह कहां मिलेगी || . अपनी इच्छाओ को पूरा करने के लिए इंसान, जा रहा है अंधकार गहरे कुऐं मै | जहां पर एक कतरा रोशनी नहीं, वहां उजाले को जगह कहां मिलेगी || . आज दोस्त-दोस्त से भाई-भाई से बेटा-माँ से पिता खुद की लड़की से कर रहा है खिलवाड़ | अगर मन और आत्मा को ही तुम बना लोगे हैवान, तो भगवान को भी जगह कहां मिलेगी || . कहता हूँ मै कड़वी बातें, क्यूकि सच तो हमेशा कड़वा ही लगता है | बदल लो तुम आज  अभी अपने विचार, क्यूकि दोबारा जिंदगी तुम्हें भी कहां मिलेगी || . लेखक परिचय :-  नाम - विकास गंगराड़े निवास - इंदौर मध्यप्रदेश ...
हिंदी की महिमा
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हिंदी की महिमा

********** रचयिता : श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' संस्कृत की संतति है संस्कारों की यह धानी  इतिहास बताता है इसकी स्वर्णमयी कहानी . अलंकार से युक्त अप्सरा जब बन कर ये आती वशीकरण कर लेती इसकी शब्दावली निराली . वेदों और पुराणों की बनी यही  दृष्टा सृष्टा राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत ये राष्ट्रगीत की भाषा . हिंदी के हैं गीत निराले सारा जग है गाता युग परिवर्तन करने वाली यह है चिंतन धारा . ममता प्यार की मीठी सोंधी ,गंध इसी में आती संवाद कड़ी, मां की लोरी, यह दादी की कहानी . सूर तुलसी मीरा कबीर की यह है मधुर वाणी चुनौतियां आ जाएं, पर इसका नहीं कोई सानी . महिमा जो इसकी पहचाने बन जाए वो ज्ञानी लाज जिसे आती है वह है कैसा स्वाभिमानी . नदी किनारे बैठा प्यासा मांगे पानी पानी हिंद देश का हिंदी न जाने  वो कैसा हिंदुस्तानी . हर प्रदेश की बोली अपनी पाती रहे सम्मान पर अनिवार्य हो हिंदी पढ़ना सबको एक समान . हिंदी...
याद आती है बहुत आपकी
कविता

याद आती है बहुत आपकी

********* दीपक्रांति पांडेय याद आती है बहुत मुझे आज कल आपकी, आप भी तो कभी मुझे याद कर लिया करो, . मजबूरियों ने थामा है मेरा दामन जाने कब से, ज़रा कभी आप भी मजबूरियाँ समझा करो, . फोन करूं जब भी,बात मुझसे करो ना करो, अपने होने का एहसास तो करा दिया करो, . याद आती है बहुत मुझे आज कल आपकी, आप भी तो कभी मुझे याद कर लिया करो, . बोलना बहुत कुछ था आपसे,जो बोल नहीं पाती! कभी खामोशियों की ज़ुबा भी तो  समझा करो, . ग़में उल्फ़त हीं,दामन में छोड़ गए हो,ऐसा क्यों? कहते हो सदा,आकेले हैं,तो आधे हैं तुम बिन, अब कुछ तो ग़म हमारा तुम साझा किया करो, . याद आती है बहुत मुझे आज कल आपकी, आप भी तो कभी मुझे याद कर लिया करो, . लेखिका परिचय :-  दीपक्रांति पांडेय रीवा मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी...
प्रेम का विस्तार
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प्रेम का विस्तार

*********** भारती कुमारी प्रेम का विस्तार ह्रदय जिसमें विलीन हो गयी ओस की बूँद-सी झरी मेरे ह्रदय से रंग-बिरंगी . अदृश्य मधुमय चाँदनी मेरी सुहानी स्वप्न क्षण-क्षण में अलस-सी हो जाती एक मुठ्ठी प्रेम . विभिन्न आकृतियाँ में बदलती हुई यहाँ-वहाँ बिखरती जाती धीरे-धीरे फिर से मधुर प्रेम कुदेरी प्रेममयी आकृतियाँ थोड़ी हलचल-सी . जग में विस्तार करती शीतलता मन में हलचल भरती संयोग-सा हुआ मधुर रस-संचार अकल्पित में कल्पित रूप धरी . अभिसिंचित प्रेम सहसा उमड़ी . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ...
पिता का होना
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पिता का होना

********* रचयिता : विवेक सावरीकर मृदुल हो सकता है कि किसी एक दिन याद करने से ज्यादा मिलता हो पुण्य अधिक मिलती हो लोकप्रियता बढ़ जाती हो बहुत फैन फॉलोइंग मगर पिता!  तुमको याद करने को तुम गये कब मेरे वजूद से याद है!  जब जामुनी बाटीक की चादर ओढ़कर सो गये थे तुम जमीन पर अनायास कितने आए,कितने रोये,कितने मनाये न हुए टस से मस ऐसे हठी .  देह तुम्हारी अग्निलोक में और तुम विदेह इसी लोक मे तबसे लगातार रहते हो मेरे संग उठते,बैठते,सोते जागते रोते गाते और लड़ते हुए सदैव इक जंग  तुम मिलते रहते हो और मेरे अंदर सूखते साहस को दुगुना भरते रहते हो . अब नहीं देनी पड़ती तुमको दवाईयां न जाना पड़ता है लेकर डॉक्टर के पास न क्रिकेट का जोश भरा कोलाहल घर में मचाता है हलचल न कोई हमें टोकता और समझाता है पल पल . फर्क इतना सा हुआ है कि इन दिनों तुम जब निहारते हो तस्वीर में से  हम नहीं कह पाते अब खीजकर थोड़ा तो लेने दिय...
बारिश लगातार
कविता

बारिश लगातार

********** रचयिता : सतीश राठी बारिश लगातार रेशम के धागे सी तार तार कभी भेड़ाघाट सी धुआंधार बारिश लगातार मौसम घर आंगन में छा गया बादल समूचा कमरे में आ गया प्राणों तक हो गई गीली दीवार बारिश लगातार हरियाली छा गई पोर पोर मनवा में नाच उठे कई मोर देह में सुलगे आग बार-बार बारिश लगातार . लेखक परिचय :-  सतीश राठी जन्म : २३ फरवरी १९५६ इंदौर शिक्षा : एम काम, एल.एल.बी लेखन : लघुकथा, कविता, हाइकु, तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन। देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। सम्पादन : क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी 'क्षितिज' का वर्ष १९८३ से निरंतर संपादन। इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए 'सरोकार' एवं 'लकीर' पत्रिका का        संपादन। प्रकाशन : पुस्तकें शब्द साक्षी हैं (निजी लघुकथा संग्रह), पिघलती आंखों का सच (निजी कवित...
मेरा जवाब
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मेरा जवाब

********** रचयिता : मित्रा शर्मा सवाल क्या करते हो मेरे गहराई को भीगते पलकों ने खोल दिए जज्बात को । . नही भाता कुछ और तेरे सिवा दस्तूर बना है कि सिर्फ तुझे याद करूँ खामोश रहूं  तेरे साथ ओ खुदा तुझ में ही मेरी सबकुछ पूरी करूँ . होठों से जिक्र न करूं पर अस्कों से तुझे पुकारूँ लाख छुपालुं तेरी मोहब्बत पर हर स्याही पर तेरे नाम करूँ . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.h...
दो अजनबी
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दो अजनबी

********** रचयिता : कंचन प्रभा मैं नही जानती कि तुम कौन हो ? कौन हो जिससे मेरे जीवन की डोर बन्धेगी पर तुम कहीं हो यह मैं जानती हूँ एक प्रतिबिम्ब सा तुम भी यही सोचते होगे वो कौन है कौन है जिसके पाश में मैं बँध जाऊंगा पर वो कही है यह मै जानता हूँ एक परछाइ सी हम दोनो नही जानतें कि मेरे 'तुम' और तुम्हारी 'वो' कौन है और कहाँ है पर हम दोनो जानते है कि मेरे 'तुम' तुम हो और तुम्हारी 'वो' मैं हूँ फिर भी हम अजनबी हैं . . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के ...
कर्ज़ा चुकाना है
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कर्ज़ा चुकाना है

********** शिवम यादव ''आशा'' कभी बारिश की बूँदों में  मेरा दिल भीग जाता है   तन्हाई में तेरी यादों से बगीचा सिंच सा जाता है .  तेरी यादों ही यादों में सफ़र भी थम सा जाता है अकेला टूटता कब तक ये दिल गमों के साथ रहता है . रखा है क्या जमाने में बचा है क्या फ़साने में बचा है इश्क़ का कर्जा उसी को बस चुकाना है . . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी...
मेरी तमन्ना
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मेरी तमन्ना

********** रुचिता नीमा तमन्नाओं की महफ़िल सजाए बैठे है हम सबसे हाल ए दिल छिपाए बैठे है शिकवा करें भी तो किस से करे ए जिंदगी हम खुद से ही बेवजह दिल लगाए बैठे है . बहुत कुछ पाया है तुझसे ये जिंदगी, फिर भी खुद को लुटाए बैठे है।।। हम सबकुछ पाकर के भी,, कई ठोकर खाये बैठे है।।।। अब शिकवा करें भी तो किससे करें ए जिंदगी हम खुद से ही बेवजह दिल लगाए बैठे है।।।। . ये तमन्नाएँ भी हमारी ही थी ,, और हम ही इनसे हार खाकर बैठे है।।। जानते हुए कि सब कुछ नहीं मिला किसी को भी इस जहा में,,, फिर भी उम्मीदों की महफ़िल सजाए बैठे है।।।। अब कैसे समझाए इस दिल को कि हम गलत अरमान जगाए बैठे है।।।। . बस एक उम्मीद का दीपक रोशन है,, जो अंधेरे को दबाए बैठे है हम उस दीपक से ही सूरज की आस लगाए बैठे है।।। अब शिकवा करें भी तो किससे करें ये जिंदगी हम खुद से ही दिल लगाए बैठे है।।।।। . .लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई...
दिल है तो लगेगा ही
कविता

दिल है तो लगेगा ही

********** रचयिता : संजय जैन दिल रब ने दिया है तो। किसी न किसी से तो मिलेगा। प्यार की कश्ती में ये दिल बैठेगा। तभी तो दो दिलो का मिलन होगा।। . दिलो की बात दिलवाले समझते है। प्यार करना परवाने जानते है। मिलती है जब किसी से नजरे। तभी तो ये दिल धड़कता है।। . गलत फेमी के कारण, मोहब्बत रुठ जाती है। जुड़े हुए दिल टूट जाते है। मोहब्ब्त की दुनिंया उजड़ जाती है। दो जवा दिल, तन्हा हो जाते है।। . तन्हा में हम सोचते है कि, टूटे हुए दिल कभी तो खिलेंगे। बिछड़े हुए दिल कभी तो मिलेंगे। हो रहा है अहसास गलतियों का, तो किसी को झुकना पड़ेगा। तभी दिलो का मिलन हो पायेगा। और प्यार के रिश्तों को बचा पायेगा।। . .लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन मे...
बचपन की यादें
कविता

बचपन की यादें

*********** रचियता : डॉ. शीतल पाण्डेय बच्चों को हँसते देखा जब बारिश की बूंदों में। यादें हो गई ताजा बालमन की, सोइ पड़ी थी जो कोने में।। . कितने खुश होते थे हम भी बरसता था जब पानी। कही छपा छप होती थी कही चलती नाव मस्तानी।। . डाट माँ की खाते हो जाते जब भी बीमार। रहता था फिर भी हमे पहली बारिश का इंतजार।। . भीनी भीनी गंध माटी की मन को बहुत लुभाये। छोड़ उदासी बगियाँ में फूल भी मुस्काये।। . माँ के हाथ के गरम पकोड़े सब मिल कर जब खाते। बारिश की बूंदों के साथ मन के मेल धूल जाते।। . जीवन की आपाधापी में टूट गई सब लड़ियाँ। यादे बन कर रह गई बचपन की वो खुशियाँ।। . लेखक परिचय :- डॉ. शीतल पाण्डेय ... पी. एच डी - हिन्दी साहित्य निवासी : इंदौर (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ...
रह गयी…
कविता

रह गयी…

*********** मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी" (राजकोट गुजरात) चाहा  मैंने  जिसे न मिला वो ही। अधूरी ख्वाहिश दिल में रह गयी।। न थी इश्क में हमारे कोई दीवार। कैसे दिलों में हो दरार फिर गयी।। रातों  को  बनाये  जो आशियाने। इमारत  सुबह  रेत सी  ढह गयी।। पुकारा  बहुत  मैने रुके  ही नहीं। आँखों  से  मेरे बेबसी  बह गयी।। अलविदा कर तुम जहाँ तक दिखे। निगाहें  वहीं  पर  रुकी  रह  गयी।। तुम तो थे  मेरे  दिल  की इबादत। पूजा  में  कहाँ  पर  कमी रह गई ।। हसरत  तुम्हीं  हो  बता  न  सकी। इक आह!  दिल में दबी रह गयी।।   लेखक परिचय :-  मीनाकुमारी शुक्ला साहित्यिक उपनाम - मीनू "रागिनी " निवास - राजकोट गुजरात आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अप...
मैं जलता हूं… मेरे नाम…
कविता

मैं जलता हूं… मेरे नाम…

********** रचियता : कुलदीप पवार मैं जलता हूं, मेरे नाम से कुलदीप।  पर पूरा प्रयास करता हूं कि किसी का दिल न जले मेरे काम से।। . अदम्य साहस शक्ति और प्रकाश है मुझमें, आपके विश्वास से। मैं इसी तरह जलता रहूंगा, अपने नाम से।। . पूछता है हर कोई ये मुझसे बड़े आराम से। क्या मोहब्बत हवा से है! जो जलते तो इतनी शान से।। . मैं फिर मुस्कुरा कर इतराते कह दिया करता हूं, मैं जलता हूं अपने नाम से। रही बात मोहब्बत की तो, दिल लगाया भी है  इस कुलदीप ने उस राधे नाम से।। दुनिया चलती हैं जिसके नाम से।। . मैं जलता भी हूं, उसकी मोहब्बत में बड़ी शान से। ग़ुरूर है मुझें उसका, वाकिफ़ भी हूं जिंदगी के हर इम्तिहान से।। . मैं कुलदीप जलता भी हूं तो अपने नाम से।। . लेखक परिचय :-  नाम - कुलदीप पवार निवास - इंदौर मध्यप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
हिंदी मेरी भाषा
कविता

हिंदी मेरी भाषा

********** रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) हिंदी मेरी मातृभाषा, हिंदी मेरी जान ! . हिंदी के हम कर्मयोगी, हिंदी मेरी पहचान, हिंदी मेरी जन्मभूमि, हिंदी हमारी मान, हम हिंदी कि सेवा करते है, हम जान उसी पे लुटाते है, . हिंदी हमारी मातृभाषा, हिंदी हमारी जान! . है वतन हम हिंदुस्ता के, भारत मेरी शान, हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा, हिंदी हमारी एकता, हिंदी में हम बस्ते है, हिंदी मेरी माता, . हिंदी है हमारी मातृभाषा, हिंदी मेरी जान! . हिंदी मेरी वाणी , हिंदी मेरा गीत , ग़ज़ल, हिंदी के हम राही, हिंदी के हम सूत्रधार, हिंदी मेरी विश्व गुर , हिंदी मेरी धरती माता, . हिंदी है हमारी मातृभाषा, हिंदी मेरी जान! . लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियो...
दीप्तिवान हिन्दी
कविता

दीप्तिवान हिन्दी

*********** रचयिता : भारती कुमारी हिन्दी अगम अनुपम सत्य रूप-सी हिन्दी अभेदमयी अखंड स्वरूप-सी हिन्दी आनंद अनुभव तेजमयी रूप-सी हिन्दी वास्तविक चेतना मधुमय-सी हिन्दी विजय सिद्धि सौभाग्य-सी हिन्दी विश्व विजय स्वर्णिम प्रकाश-सी हिन्दी रहस्यमयी ब्राह्मानंद ज्ञान-सी हिन्दी सत्य ज्योतिर्मय ऊर्जावान-सी हिन्दी शान्ति-समता गौरवमयी पहचान-सी हिन्दी सम्पूर्ण भारत की स्वाभिमान-सी हिन्दी विश्व विजय भारत माता की अरमान-सी हिन्दी अनेकता में एकता की पहचान-सी हिन्दी प्रेममयी रूपाश्रित भाषा दीप्तिवान-सी हिन्दी प्रत्येक जन की मधुर वाणी-सी हिन्दी विस्मित,विभोर विश्व विजयिनी-सी हिन्दी सम्मिलित ज्योति शिखा स्वरूप-सी हिन्दी परमोज्ज्वल सौंदर्य चंचल प्रदीप्त-सी हिन्दी उल्लास तन्मय निष्काम कर्म-धारा-सी हिन्दी अमृतमय शुभाशुभ भाव रस धार-सी . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार ...
मातृस्वरूपा माँ हिन्दी की आरती
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मातृस्वरूपा माँ हिन्दी की आरती

********** रचियता : भारत भूषण पाठक ॐ जय हिन्दी माता, मैया जय हिन्दी माता। तुमको निशदिन ध्यावत, हर भाषा विज्ञाता।। ॐ जय हिन्दी माता --------------- ज्ञान, मान, वाणी, तुम ही बल-दाता। धरा, अम्बर ध्यावत, खग- मृग गाता।। तुम अज्ञान-निवारिणी, यश-बुद्धि दाता। जो कोई तुमको ध्यावत, निश्चय-शुभ-फल पाता।। ॐ जय हिन्दी माता -------------------- तुम संस्कृत की बेटी, ममतामयी माता। जो जन तुमको ध्याता, चहुँओर सुख पाता ।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। ...
स्वर्ग भूमि काश्मीर – (धारा ३७० के पहले)
कविता

स्वर्ग भूमि काश्मीर – (धारा ३७० के पहले)

********** रचयिता : श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' काश्मीर ऋषियों के तप से, बना निराला है लेकिन घाटी के आंसू, अब बने आग का प्याला हैं, झेलम का पानी भी बरसों खून के आंसू रोया है काश्मीर के बागानों में अब, फूल बने अंगारे हैं जहां पंडितों के घर में रमजान पढ़ाई जाती हैं राज सिंहासन की कुर्सी पर, गद्दार बिठाए जाते हैं वो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते है दुश्मन से चुपके चुपके वो हाथ मिलाया करते हैं आतंकों से स्वर्ग भूमि सन्नाटों से घिर जाती है केसर की क्यारी में चलते बंदूकों के गोले हैं दुश्मन के कायर  मंसूबे जहां बार पीठ पर करते हैं गीदड़ भभकी से जो शेरों को ललकारा करते हैं लातों के भूत क्या कभी, बातों से माना करते हैं इसीलिए सपूत भारत के, घर में घुसकर मारा करते हैं जरा समझ लो पत्थरबाजों, देशद्रोही कहलाओगे इधर के हो ना पाओगे, उधर भी मारे जाओगे कस्तूरी थी  मृग में लेकिन, भूले भटक...
ये मुझे क्या पता
कविता

ये मुझे क्या पता

********** रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' कोई चल रहा है   ये मुझे क्या पता    मैं भी चल रहा हूँ    ये मुझे क्या पता   जिन्दगी भी वसंत बनकर खिलखिला रही है    ये मुझे क्या पता .   ओह जिन्दगी तेरे    पास आ रहा हूँ   मेरा भी साथ देना   बता कर आ रहा हूँ   अब तुम न कहना    ये मुझे क्या पता .   कुछ हाल सही  कुछ हाल बेहाल सुनाऊ जिन्दगी के अब तुम्हें क्या हाल सब कुछ बेहाल है ये मुझे क्या पता . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
चंचल लहरें
कविता

चंचल लहरें

********** रचयिता : मनोरमा जोशी मचल उठे चंचल लहरों के साथ कगारे। माझी के अधरों ने, नूतन गान संवारे। . ज्वार उठा सागर में, अनगिन घन मंडरायें , लहर लहर सागर में, ताडंव नृत्य दिखाये। . घिर घिर आता अंबर, मे घोर अंधेरा, ज्वार उठा  सागर में, मांझी दूर सवेरा। . भीषण लहरों पर तिरती, आशा की कश्ती, कर मे माझी ने ली, आशा की कश्ती कर मे ली माझी ने, बाँध प्रलय की मस्ती, गर्जन तर्जन  में माझी, मंजिल रहा निहारे। मांझी के अघरों ने, नूतन गान संवारे। . बिन्दु बिन्दु ने आज, सिन्घु मे विष फैलाया, करना है विष पान, सोच मांझी मुस्काया, दुःख प्रलय ने अपनी, भाषा मे कुछ बोला, सुन मांझी ने अपने, मन मे साहस तौला, मांझी को पहचान प्रलय, फिर तुम कुछ  बोलो, मांझी है घरती का बेटा, संग मे होलो, प्रलय तुम्हारी लहरें, तट धरती के सारे। मांझी के अधरों ने, नूतन गान संवारे। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का...
स्वाभिमान
कविता

स्वाभिमान

*********** रचयिता : भारती कुमारी मेरी शीतलता से मत खेलो मुझे अंधकार में मत धकेलो मैं स्वर्णिम प्रकाश में खोती पहचान मेरी सुप्रभात से होती . श्यामल नील - सी रंग में बहती अंजान - सी मैं पहचान बनाती निशा  में  विजय दीप जलाती शत - सहस्त्र शैलाब से घिरती . फिर भी व्योम प्रवाही धारा बनती सत्य प्रतिज्ञा  में  जीवन बिताती नभ- चुम्बी तरूण सपनें बुन जाती मधुर शीतलता में जीवन बिताती . पाप - बोझ अत्याचार में जो दबती गर्जन करती तेजमयी रूद्र रूप-सी रंग - बिरंगी से जीवन को सजाती सुगंधित जीवन को मधुमय-सा बनाती . नारी जज्बातों से जो कोई खेलता चिन्ह उभड़ती ह्रदय में प्रलयकारी रूप धरी चंडी सत्य विस्तार करती स्वाभिमान की शंखनाद करती . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित क...