संघर्ष
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मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी"
(राजकोट गुजरात)
बनी राहें मेरी कंटक भरी।
जो कभी सपनों सी थीं सजी।।
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विष प्याले बने सभी अमृत कलश।
जीवन प्यास विषधर सी डसी।।
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अंजुलि में सपने लिये चली मैं।
ज्वाला अगन सी राहें जली।।
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नजर देखे जहाँ तम ही तम था।
संघर्ष में ज़िन्दगी थी कटी।।
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सोचा हर लुंगी सारे कष्ट मैं।
ज़िन्दगी इम्तहान सी बनी।।
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जूझती रही मैं हर संकट से।
दुनिया भी तंज कसती रही।।
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मन्नत मंदिर की चौखट पर करी।
फिर भी न टली मौत की घड़ी।।
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जीत लिया सारा जहाँ जब देखा।
मौत दरवाज़े पर थी खड़ी।।
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क्षत - विक्षत सी बिखर गयी।
कभी कोमल कली सी थी खिली।।
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लेखक परिचय :- मीनाकुमारी शुक्ला
साहित्यिक उपनाम - मीनू "रागिनी "
निवास - राजकोट गुजरात
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