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कविता

देखता रहता हूँ मैं छत से तुम्हें देर तलक
कविता

देखता रहता हूँ मैं छत से तुम्हें देर तलक

========================== रचयिता : मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी याद आजाए तो एक बार बता भी देना शहर तो देख लिया दिल का पता भी देना मेरी आँखों ने तुम्हें देख लिया है यारा पास अजाऊँ तो आवाज़ सुना भी देना देखता रहता हूँ मैं छत से तुम्हें देर तलक ऐसे मौक़ों पे कभी हाथ हिला भी देना ये बड़ा काम है इसका भी अजर पाओगे रह चलते हुए पत्थर को हटा भी देना बेज़बाँ को भी शजर याद तो आता होगा यार पिंजरे से परिंदो को उड़ा भी देना हर घरी चुप नही रहना ज़रा मूनीब सुनो ज़ुल्म होता हो तो आवाज़ उठा भी देना लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर न...
बांध लिए पग में घुंघरू
कविता

बांध लिए पग में घुंघरू

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर मैंने बांध लिए पग में घुंघरू, ये सारा जहां ही बहका रे । जब याद में तेरे नाच उठी, सारा ही गुलिस्तां महका रे।।... मेरे अंतर्मन के तारों में, प्रिय, तूने छेड़ा राग नया । धड़कन कुछ गति तेज हुई, अनुराग  सिहर फिर जाग गया।। चाहत का पंछी निकल पड़ा, सारी रात का आलम चहका रे...। मैंने बांध लिए पग में घुंघरू .. ये सारा जहां ही बहका रे...।। मैंने अधरों पर नाम लिया, वीणा से स्वर  सप्तक फूटे। मेरी मांग सजाने को आतुर, अंबर से तारे आ  टूटे ।। तेरी याद में टपके जब आंसू, सारा मधुबन ही दहका रे... । मैंने बांध लिए पग में घुंघरू .. ये सारा जहां ही बहका रे...।। परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी...
सफर
कविता

सफर

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर गर! सफर में साथ हो अपनो का, तो सफर आसां हो ही जाता है। तलाश हो गर! सही मंजिल की, तो कारवाँ बन ही जाता है। वादियां खिली-खिली सी हो। गर! ना हो दोस्त साथ तो। चमन भी, चुभ ही जाता है। गर! साथ हो दोस्त, परिवार तो। विराना! चमन हो ही जाता है। मुक़द्दर सभी का अपना-अपना। लेकिन! कोई मंजिल तो होगी। जहाँ में! जहाँ, हमसाथ हो ही जाता है। मत कर! तलाश बिखरे पन्नो की। कसूर पन्नो का नही। गर! वक्त साथ ना हो तो। हवा का रुख बदल ही जाता है। चलते रहो, मुस्कुराते रहो। सफर में! धूप-छावं तो होगी। गर! सफर हो साथ अपनो का तो। सफर आसां हो ही जाता है।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्...
साहित्य और समाज
कविता

साहित्य और समाज

********** रचयिता : रूपेश कुमार हम सभी जानते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है ! साहित्य के बिना समाज की कल्पना करना निरर्थक है ! साहित्य से ही समाज का निर्माण होता है एवं समाज की कुरीतियों का विनाश न  होता अगर साहित्य न होता , तो समाज की कुरीति राजनीतिक कुरीति का विनाश भी नहीं होता ! साहित्य समाज को रास्ता दिखाता है किस रास्ते से समाज को चलना चाहिए ! राजनीतिक को भी गिरने से साहित्य ही बचाता है वरना साहित्य नहीं होता तो आज की राजनीतिक और कचरा हो गई होती ! साहित्य के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है ! वर्तमान में समाज में जितने  कुरीतियां हो रही है वह साहित्य के अनदेखा मे ही हो रहा है समाज से ही साहित्य का उदय होता है और साहित्य से ही समाज का उदय होता क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण है मेरी कविता ~~~ समाज को साहित्य का मिला है सहारा , भला उनको कचड़े से बचाओगे कब तक ? जो मिलते हृध्य...
बंद आँखों से सितारों का जहाँ देख रहे हो
कविता

बंद आँखों से सितारों का जहाँ देख रहे हो

=================================== रचयिता : मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी यहाँ से तुम खड़े हो कर के कहाँ देख रहे हो पता है किसने दी नज़रें जो जहाँ देख रहे हो बज़मे जाना में जो बैठोगे तो खाओगे ज़ख़्म ये सही है के वहीं देखो जहाँ देख रहे हो इस तरह खोए हुए हो कहाँ आकाश में तुम बंद आँखों से सितारों का जहाँ देख रहे हो तुम बहुत देर से कोशिश में हो पढलो मुझको क्या नजूमि हो,मेरा दर्द ए नहाँ देख रहे हो वो नज़र फेर रहा है अजीब तुम हो मगर तुम यहाँ देख रहे हो के वहाँ देख रहे हो लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड आने व...
दर्द लिखते हैं
कविता

दर्द लिखते हैं

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' हम तो आवाम का दर्द लिखते हैं, दुनियां जिसको भूलती है हम उसका नाम लिखते हैं, सारी खताओ को माफ़ करो मेरी, हम ऐसा इस दुनियां को पैगाम लिखते हैं... ममता रूपी समुन्दर में डुबा सबको देती है लेकिन साहब ये माँ की ममता ही है जिसमें डूबते तो हैं लोग मगर मरते नहीं हैं दुनिया में मानव का सच्चा साथ तो सिर्फ "आँशू" देते हैं... बाकी तो सब दिखावा मात्र होते हैं... मोहब्बत में मेरी आकर वो सियासत भूल जाती है मोहब्बत इश्क की जन्ज़ीर है जो एक दिन टूट जाती है मेरे खिलाफ़ तेरा बड़े से बड़ा सुबूत भी काम नहीं आयेगा... क्योंकि तूने मोहब्बत की है जिसे करने तेरा भाईजान नहीं आयेगा... एक घर जला है गर तो दूसरा जलाने की तुम कोशिश न करो कारण भी हो फ़िर भी किसी को विद्रोह की आग में झोंकने की कोशिश न करो लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप...
आलोक प्रखर होता है
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आलोक प्रखर होता है

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर अंबर से टकराकर। रविरश्मि कुछ गाकर। वैभव नभ के लाकर। प्रकाश अमर होता है।।... आलोक प्रखर होता है ।।... बचपन में स्वप्न संजोना । धैर्य युवा में खोना। देख बुढापा रोना। जीवन नश्वर होता है।।... आलोक प्रखर होता है ।।... वंशी मधुर बजाना। स्वर साधक बन पाना। चित्त में राग सजाना। मनमोह असर होता है।।... आलोक प्रखर होता है ।। परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके ह...
बहक जाता था
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बहक जाता था

============================= रचयिता : आशीष तिवारी "निर्मल" खिलता गुलाब थी, तू खिलता गुलाब है सूरत तेरी लाजवाब थी, लाजवाब है। तुझे देख के अक्सर बहक जाता था मैं मेरी आदत खराब थी, आदत खराब है। तू मीठे शहद सी थी, मीठे शहद सी है तेरी कीमत बेहिसाब थी बेहिसाब है। नशा छा जाता है जो तू पास से गुजरे मनमोहक अदाएँ शराब थी शराब है। कोई नही है मिसाल तेरी, बेमिसाल है तू सच में माहताब थी, और माहताब है। यूँ तुझको पाना है द्विवास्वप्न के जैसा तुम एक ख्वाब थी और एक ख्वाब है। रिश्ता सदा पाकीजा था हम दोनों का सब खुली किताब थी खुली किताब है। लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाण...
अपना सा
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अपना सा

==================== रचयिता : माधुरी शुक्ला एक दोस्त की तरह नायाब हीरा है जिनकी  चमक से चेहरे पर उजाला भर जाये।। बातो के जादूगर है यो मीठे बोल भी मिश्री सी मिठास घोल देती । जब भी आते है कुछ नया रंग नए रूप में आते है जैसे भी आते है उमंग से भरपूर नजर आते हैं।। काश की, काश कि पहले आ जाते तो थोड़ा हम भी आशिकी कर जाते, तो थोड़ा सा सही रुमानियत से हो जाते। वजूद और कद से बहुत बड़े है हम अदने से होकर आपके लिए क्या कहे, नाचीज जो हूँ।। लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति - योगेश शुक्ला शिक्षा - एम .एस .सी.( गणित) बी .एड. कार्य - शिक्षक निवास - कोटा (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने ...
जय श्री गणेश
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जय श्री गणेश

================================= रचयिता :  राम शर्मा "परिंदा" इनकी पूजा पहले करें ये दाता विशेष। जय श्री गणेश ------ जय श्री गणेश।। हरी -हरी  दूब सिंदूर  चढ़ाओ और मोदक का भोग लगाओ पीत रंग इन्हें पसंद धरते जिसका वेश। जय श्री गणेश ------  जय श्री गणेश।। सब कहे इन्हें मंगल मूर्ति गजब की है इनमें स्फूर्ति अपने बुद्धिबल से जीते हर इक रेस। जय श्री गणेश ------ जय श्री गणेश।। गण देवों के ये है स्वामी सब जाने ये अन्तरयामी दस दिवस गणेश रंग में झूमे मेरा देश। जय श्री गणेश ------- जय श्री गणेश। परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन...
कुछ भी हो
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कुछ भी हो

=================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' मेरे हर प्यार पर वो प्यार को सहने वाले चलो हम साथ चल रहे अपनी जिंदगी से    डरने वाले हक़ीक़त कुछ भी हो   मगर हम नहीं हैं इस दुनियां से डरने वाले कोई अल्फ़ाज़ में अपने    मेरी बातों को    लाकर रख दे चाहें कितना भी कटु हो      मेरा वो सच फ़िर भी नहीं हम उससे    पीछे हटने वाले लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां,...
यह है जिन्दगी
कविता

यह है जिन्दगी

==================== रचयिता : मनोरमा जोशी प्यास की दास है जिन्दगी तल्ख आभास है जिन्दगी। दर्द की गीत गाती हुई जिन्दगी। एक अभ्यास है जिन्दगी, भाष्य में व्याकरण की तरह, वाक्य विन्यास है जिन्दगी। मन विधा के लिये सर्वदा, स्वच्छ आकाश है जिन्दगी। द्धन्द को मत समर्पित करो, एक महाराज है जिन्दगी। हमको लगती है सायास ये, कब अनायास है जिन्दगी। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उ...
जिंदगी की बेरूखी से
कविता

जिंदगी की बेरूखी से

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर जिंदगी की बेरूखी से ऊब चले हम। सांझ ढले गिरे मगर, खूब चले हम।।.... जो मिला उसीने प्यार इस कदर किया। मेरी चाहतों को लूट दर्द भर दिया।। रूसवाई के भंवर में गहरे डूब चले हम।।.. जिंदगी की बेरूखी से ऊब चले हम। सांझ ढले गिरे मगर, खूब चले हम।।.... सोचा चांद को तो सिर्फ हमसे प्यार है। क्या पता उसके तो आशिक हजार हैं।। आसमां के तारे जैसे टूट चले हम ।।.. जिंदगी की बेरूखी से ऊब चले हम। सांझ ढले गिरे मगर, खूब चले हम।।.... गीत विरह में कभी गाया नहीं था।। प्रेम का बसंत जब आया नहीं था। हरी-भरी साख थे, सूख चले हम।।... जिंदगी की बेरूखी से ऊब चले हम। सांझ ढले गिरे मगर, खूब चले हम।।.... परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिक...
पत्थर
कविता

पत्थर

========================== रचयिता : विनीता सिंह चौहान ज़माने ने जो पत्थर मारे, समेटकर कल्पनाओं में सजा लिया। दोस्तों मैं तो बेआसरा थी, उन पत्थरों से आशियाना बना लिया। ज़माने ने जो पत्थर मारे, जोड़कर हद ए दायरा बना लिया। अपनी तन्हाइयों व ज़माने के लिए, उन पत्थरों से दीवारें दरम्याना बना लिया। ज़माने ने जो पत्थर मारे, इकट्ठे कर करीने से जमा लिया। दिल ए इबादत व ख़ुदा के बीच, उन पत्थरों से पुल दरम्याना बना लिया। ज़माने ने जो पत्थर मारे, तराशकर उनसे मुज़स्समा बना लिया। श्रद्धा से मंदिर में उसे विराजा, भक्तों को मैंने पत्थरों का दीवाना बना दिया। लेखिका परिचय :-  नाम :- विनीता सिंह चौहान पति का नाम :- डॉ ए पी एस चौहान पिता का नाम :- जय कुमार सिंह माता का नाम :-  श्रीमती केतकी सिंह शैक्षणिक योग्यता :- एम.एससी. (प्राणीशास्त्र) , बी.एड. जन्मतिथि :- ०८/०२/१९७४ जन्मभूमि :- भिलाई (छत्तीसगढ़ ) ...
मर्म
कविता

मर्म

========================== रचयिता : भारत भूषण पाठक मृत्यु शय्या पर लेटी। है  करूणा की गाथा।। कहती वो मनुज-मनुज से। निर्मोही निर्मम से कर दो दया अब मुझपर। मेरे बहते इन अश्रुपर।। थी जब जीवन से पूरण। है मुझको वो सब स्मरण।। रहती थी घर में अपने। थे कितने मेरे सपने।। बिखर गए वो सपने। जैसे फँसता कोई है मधुकर। पीते हुए जब वो पुष्परस।। मृत्यु शय्या पर लेटी। है करूणा की गाथा।। कभी मैं थी मासूम सी गुड़िया। अपने बाबुल की चिड़िया।। रहती थी मस्त मलंग में। हो कर बाबुल के संग में।। है तुमने जब से तोड़ा। मेरा अस्तित्व झिंझोड़ा।। तब से प्राण विहीन में। कर दो दया अब मुझ पर। अब तो छिन्न-भिन्न में। मृत्यु शय्या पर लेटी। है करूणा की गाथा।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र :- आई.एस.डी., सरैयाहाट मे...
विराम
कविता

विराम

========================== रचयिता : संगीता केस्वानी सदियों पुरानी रीत है बदली, एक तरफा ये जीत है बदली, है विराम मेरी बेबसी का, है लगाम तेरी नाइंसाफी का,, न पर्दे से इनकार है, ना संस्कारो से तक़रार है, अब अपने फैसलों का मुझे भी अधिकार है, रौंद सके मेरे जीवन को तुझे अब न ये इख्तियार है,, अब ना अश्क-ऐ-आबशार होगा, ना हर पल डर का विचार होगा, सुखी -नुष्चिन्त हर परिवार होगा, मेरे भी हक़ में ये बयार होगा,, सायरा, गुलशन इशरत,आफरीन, आतिया का संघर्ष रंग लाया, मजबूरी से मज़बूती की जंग का सुखद परिणाम आया,, ना हूँ केवल वोट-बैंक या ज़ाती मिलकीयत, अब जाके पाई मैंने भी अपनी अहमियत,, तुम सरताज तो मैं शरीके-हयात, पाख ये रिश्ता-ऐ-निकाह ना होगा तल्ख तलाक से तबाह, न तलाक-ऐ-बिददत, ना तलाक-ऐ-मुग़लज़ाह, कर पायेगा इस रूह-ऐ-पाख का रिश्ता तबाह, सो मेरी जीत मैं तुम्हारी जीत, और तुम्हारी जीत में मेरी शान।। लेखिका परिच...
कटू सत्य
कविता

कटू सत्य

========================== रचयिता : संगीता केस्वानी पिता का घर "मायका", पति का घर "ससुराल", मेरा घर है कहाँ?, भाई का घर भाभी ने लिया, बेटे का घर बहू ने लिया, मैं हूँ कहाँ?, जीजा करे बहन से आनाकानी, बिटिया के यहाँ दामाद को परेशानी, मेरी अहमियत किसने पहचानी, मंदिर में पुजारी का डेरा, आश्रम में भी ना मिले बसेरा, कहने को सब अपने, पर कौन यहां मेरा?? ये कैसी विडंबना........ सृष्टि की सिर्जनकर्ता का अपना कोई स्थायी पता ही नही?????? लेखिका परिचय :- संगीता केस्वानी आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www....
मेरे गिरधर
कविता

मेरे गिरधर

================== रचयिता : रीतु देवी मेरे गिरधर, मेरे गोपाल मुरली मनोहर , नंद के लाल तेरी मुरली की धुन सुन बजती है पायल रूनझुन। दर्शन करूँ तेरी छवि निराली, नित्य गाऊँ भजन सजाकर थाली। मोर मुकुट शोभे तोहे शिश, रम जाऊँ तुझमें ,माँगू न भीख मुरली मनोहर रखे हस्त मेरे शिश सदा, भक्त रहूँ केशव तेरा सर्वदा।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीज...
रोटी
कविता, छंद

रोटी

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सायली छन्द की कविता रोटी तुम हो छोटी मोटी पतली भूख तुम्ही मिटाती। *** कही घी चुपड़ी कही सूखी रहती तृप्ताति आत्मा माँ। *** तुम्हारे हाथों भाती गर्म रोटी जीवन सन्देश सिखलाती। *** भूख तृष्णा तुम्ही ज्वाला पेट की बुझती तुम भाति।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,  कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि। प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन सम्मान : "भाषा सहोदरी" दिल्ली द्वारा आप भी अपनी क...
पिता और बेटा
कविता

पिता और बेटा

======================= रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर मजदूरी करके भी हमको उसने पढ़ाया है। कचौड़ी के बदले उसने सूखी रोटी खाया है। हम पढ़-लिखकर इन्सान बनेंगे, यह उम्मीद उसने खुद में जगाया है। जब पिया सिगरेट बेटा, देख वह शरमाया है। उसने नशा का मूँह ना देखा, बेटे ने शिखर आज चबाया है। उसकी उम्मीदों का आज गला घोंट, पता नही बेटे ने आज क्या पाया है। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन - १७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान-हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत्र, सास्वत रत्न, साहित्य रत्न, स्टार हिंदी बेस्ट राइटर अवार्ड - २०१९ इत्यादी। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फ...
हे कान्हा
कविता

हे कान्हा

======================== रचयिता : रुचिता नीमा हे कान्हा!!!!!! कैसे परिभाषित करु मैं अपने प्रेम को,,,,,, तेरा प्रेम मेरे लिये जैसे, बारिश की वो पहली बूंद,, जिससे महक उठे माटी।।।। वो रेत की तपिश में मिला एक बर्फ का टुकड़ा,,,, जो दे असीम सी ठंडक।।।।। तेरे प्रेम का अहसास है इतना शीतल की कड़ी धूप में मिल गया कोई शीतल झरना।।।। ऐसा लगा ही नही की हम एक नहीं, तू साथ नहीं, पर तू मुझसे जुदा भी नहीं,,,।।। हे राधिके!!!! मत दो हमारे प्रेम को कोई भी आकार,, और न ही यह है किसी रिश्ते का मोहताज एक रूह के दो रूप है हम,,, एक दूजे के बिन अपूर्ण है हम।।।।। निःशब्द, निर्विकार, निराकार सब सीमाओं से परे असीमित, अनन्त, अव्यक्त से हम....... राधे कृष्ण राधे कृष्ण राधे कृष्ण लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम....
कच्चे चूल्हे
कविता

कच्चे चूल्हे

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर कच्चे चूल्हे भूले, भूले सावन के झूले ।। प्रीत भी भूल चले है, दीवारो के छांव तले हैं। किससे क्या आश करें। किस पर विश्वास करें।। जिससे प्रीत बढ़ाई। वो भी है हरजाई।। ये जग नहीं अपनापन का, दुख कौन हरेगा मन का । सब मतलब के नाते। दिग्भ्रमित हमें कर जाते।। चेतनता हर जाती। सब शून्य नजर ही आती। मैं सोच रहा हूँ कैसे ? इस प्रीत से छुटकारा हो ना मोह रहे बंधन का, ना कोई जग प्यारा हो।। ह्रदय से एक आह निकले, और चाह मिटे पाने की। में मतवाला पागल बस, एक धुन हो कुछ गाने की।। वो दिवस शीघ्र आऐगा, जो मुझको तरसाते हैं। वो खुद एक दिन तरसेंगे, आंसू बन जो आते हैं।। अभी हृदय पावस है। मेघ सहज बन जाता। तेरी यादों में आकर, नेह सजल बरषाता ।। पतझर जिस दिन ये होगा। तुम तरसोगे सावन को, किंतु नहीं पाओगे, पुण्य प्रीत पावन को।। प्रकृति का है नियम सखे, परिवर्तन सब कुछ होता ...
बोलता कश्मीर
कविता

बोलता कश्मीर

======================= रचयिता : परवेज़ इक़बाल -नज़्म- बोलती हैं सलाखों पे भिंची गर्म मुट्ठियाँ सुने पड़े डाकखानों में लगे लिफाफों के ढ़ेर. और मोबाइल के इनबॉक्स में पड़ी लाखों चिट्ठियां... क्या सच में आज़ाद हूँ मैं....? सन्नाटे के शोर से फटती हैं कानों के रगें खामोश लब और सुर्ख आंखें धधकते सीने पस्त बांहें... सर्द हवा में भी है एक अजीब सी तपिश सवाल करती है चीखते दिल से यह खामोश सी खलिश क्या सच में आज़ाद हूँ मैं....? पूछती है बर्फ, चिनारों को अपनी सफेदी दिखा कर मुझे रोंद्ता नहीं कियूं कोई अब पहाड़ पर आकर... कहते हैं थपेड़े पानी के डल के किनारों से जाकर.. कोई तो खामोशी तोड़ो शिकारों से गीत गाकर... उतारो पानी मे सूखी पड़ी पतवारों को कोई तो आबाद करो इन सूने शिकारों को.... हाँ आज अफसोस नहीं तुम्हें मेरे हाल का लेकिन देना पड़ेगा जवाब कभी तुम्हें भी मेरे सवाल का ये नफरत हरगिज़ न खीर का ज़ायका बढ़ाएगी... दूध प...
वन्दे मातरम् गाते रहेंगे
कविता

वन्दे मातरम् गाते रहेंगे

============================== रचयिता : रीतु देवी वीर रस गीत वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। हम संतान हैं वीरांगनाएं माताओं की मुँह तोड़ जवाब देगें शत्रुओं की गोलियों की चिंगारी बन हम राख कर देंगे हर कैम्प दुश्मनों के बुरी नजर फोड़ मुस्कान लाऐंगे होठों माँ-बहनों के वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। हर प्रहार सहेंगे भारतभूमि शान वास्ते हँसते-हँसते आँच न कभी आने देंगे माँ भारती पर सस्ते-सस्ते निकल बाहर आऐंगे रिपुओं के चक्रव्यूह तोड़कर जश्न मनाऐंगे बुरे मंसूबों पर पानी फेरकर वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। याद दिलाकर छठी का दूध धूल चटा देंगे युद्ध मैदान में सबक सिखाकर थर -थर रूह कंपा देंगे शैतान के मौत की नींद सुला दें...
मोड़ आया तो
कविता

मोड़ आया तो

=================== रचयिता : सतीश राठी मोड़ आया तो जुदा होने का मौका आया सीप से मोती विदा होने का मौका आया वह कली खिल गई और फूल बनी तो उसकी खुशबू में नहाने का है मौका आया जो जगह वह पा न सका फकीर बन कर बना इंसान तो खुदा होने का मौका आया गलतियों के खिलाफ जब उठेंगे हाथ सभी यह समझ लेना गदा होने का मौका आया पीठ पर धूप को लादे हुए जाएं कब तक झुकी है शाम तो विदा होने का मौका आया   लेखक परिचय :-  नाम : सतीश राठी जन्म : २३ फरवरी १९५६ इंदौर शिक्षा : एम काम, एल.एल.बी लेखन : लघुकथा, कविता, हाइकु, तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन। देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। सम्पादन : क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी 'क्षितिज' का वर्ष १९८३ से निरंतर संपादन। इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए 'सरोकार' एवं 'लकीर' पत्...