नारी व्यथा
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रचयिता : मीनाकुमारी शुक्ला - मीनू "रागिनी"
नारी तुम भावना हो संवेदना, हो इस धरा की माँ ।
बसाया तुमने प्यार-विश्वास और सरलता से जहाँ ।।
देव महापुरूष सम्राट सारे जहाँ की पालनहारी।
क्षमा दया प्रेम प्यार से जहाँ भर को तारणहारी।।
पर बदले में तुम्हें क्या मिला..............
कहीं कलंकित बना अहिल्या पत्थर सी जड़ दी गयी।
कहीं अग्नि परीक्षा बेगुनाह सीता की ले ली गयी।।
कहीं निःशब्द सी संग पति के सति बना जला दी गयी।
अनार कली सी बदले प्रेम के दीवारों में चुन दी गयी।।
समझ संपत्ति पति द्वारा कहीं जूए में हारी गयी।
भरी सभा निर्वस्त्र कर इज्जत कहीं हर ली गयी।।
बोझ पिता पर समझ भ्रूण हत्या तुम्हारी होती गयी।
दहेज लोभियों की लालच से जिन्दा तुम जलती गयी।।
वासना के भूखों से बेइन्तहाँ तुम सताई गयी।
लांछन कलंक बेबसी निःशब्द तुम सहती गयी।।
लेखक परिचय :- मीनाकुमारी शुक्ला
साहित्यिक उपनाम - मीनू...