नज़रिया
विवेक सावरीकर मृदुल
(कानपुर)
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झाड़ू बुहारते गृहणी
इतनी मगन है
इतनी मगन
मानो चेहरा चमकाती हो
ब्रांडेड स्क्रब क्रीम से
तुम्हें मगर शिकायत रही हमेशा
ठीक से सजती नहीं वो
कि पूरा मेकप किट
दिलाया है उसे पिछली दिवाली पर
इसलिए फर्ज़ है उसका
कि सजे वो और अहसास माने
जिंदगी भर
समय मिले तो झांक लेना
उसी किट में
फाउंडेशन सूख गया कबका
लिपस्टिक हो गई चिपचिपी
आई शैडो का बॉक्स
फैंसी ड्रेस कम्पीटीशन को
तैयार होते समय
भूल आई स्कूल में तुम्हारी
आठवी कक्षा में पढ़ती बेटी
ले देकर बची केवल
एक काजल पेंसिल
लगाती है वो
तुम तो इतना भी नहीं जानते होगे
कि लिप्स्टिक की बिंदी
लगाती है वो जब
तुम खुद चिपचिपाते हुए
बैठ जाते हो उसके माथे पर
जैसे रह गया तुम्हारे से उसके
संबंध का
यही एक ज़रिया
नहीं, मेकप किट नहीं
बदलना है तो बदलो
अपना नज़रिया
लेखक परिचय :- विवेक सावरीकर मृदुल
जन्म :१९६५ (कान...