अकेला
धैर्यशील येवले
इंदौर (म.प्र.)
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मेरी ये रचना भारत के सभी पुलिस कर्मी यो को समर्पित है
निर्धनता में जन्मा वो
सपने लिए बड़ा हुआ
रोटी, कपड़ा, मकान
की तलाश में
आ पोहचा ऐसी जगह
जो मायावी थी
वहा भ्रम हो जाता है
शक्तिशाली होने का।
शक्ति से साथ मिलेगा
रोटी, कपड़ा, मकान
इसी लालसा में
घुस गया चक्रव्यूव में।
धसता चला गया
धसता चला गया
सारे भेद खुलते गये
जिसे शक्ति समझा था,
वो तो बेबसी लाचारी निकली
निकलना चाहा
चक्रव्यूव से
परंतु अनुभव
अभिमन्यु सा।
जिसने चाहा उसने मारा
जिसने चाही उसने
उतारी इज्ज़त
जीने की चाह में
रोज मरता रहा।
पर दुसरो की
रखवाली करता रहा।
बड़ी आस से अपने
श्रेष्ठी जन को
मदद के लिए
याचक की नज़रों से
देखता रहा।
श्रेष्ठी भी क्या करता
वो खुद ही है
निराधार।
कैसे उठाये तेरा भार।
कौन करे तेरा उद्धार
इस प्रश्न का कोई उत्तर नही
तू शापित है
शापित रहेगा
दुसरो की रखवाली में
ते...