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कविता

नफरत की तोड़ दीवारें
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नफरत की तोड़ दीवारें

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** नफरत की तोड़ दीवारें, प्रेम को अपनाएंगे। सबके दिलों में हम, एकता भाव जगाएंगे।। बहुत लड़े हैं अब तक, अब न इसे दोहराएंगे। हंसी-खुशी साथ रह, हम भेदभाव भुलाएंगे।। एकता के दीप, हर घर में अब जगमगाएंगे। प्यार का महत्व बता, दिलों को जोड़ आएंगे।। पैसों के लालच में आ, अब न भ्रष्टाचार फैलाएंगे। भूखे प्यासे रहकर भी, एक साथ जीवन बिताएंगे।। बुजुर्गों का सम्मान कर, आशीष हम पाएंगे। उनके ही आशीष से, सफलता ओर जाएंगे ।। विविधता में एकता, देश की पहचान बताएंगे। हम हमारे देश को, विश्व में महान बनाएंगे।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
स्त्री
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स्त्री

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** आना मेरा दुनिया मे नागवार गुजरा अपनो को सहती रही पलती रही शिकवा न किया जिंदगी घर मे ही मिला दुजभाव पैरो में थी अदृश्य बेड़िया हर पल मन ममोस्ति रही शिकवा न किया जिंदगी अपने घर की थी पराई जब आई अपने पराये घर बातों में उलाहने सहती रही शिकवा न किया जिंदगी मुझे बोझ समझते थे मुझ पर बोझ बन गए सब का बोझ उठाती रही शिकवा न किया जिंदगी जब दुनिया मे आ ही गई क्यो कर तुझसे हार मानु तुझसे हरपल लढती रही शिकवा न किया जिंदगी आज भी हार नही मानूँगी तुझे पाल अपने भीतर वसुधा सा भार उठाती रही शिकवा न किया जिंदगी। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविता...
आखिर तू है क्या
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आखिर तू है क्या

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** ऐ जिन्दगी! जिन्दगी निकल रही है, पर न जान सकी, ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या। तू गुल का गुलिस्ताँ है, या गम की गजल है को, ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या। तू रात्रि का गहन अन्धेरा है, या दिन का चमकता उजाला है, ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या। तू खुशनुमा फूलों की महक है, या नुकीले काँटो की गहन पीडा़ है, ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या। कोकिल की कूक पपिहा की रटन है, या अन्जान कर्णभेदी कर्कश ध्वनि है, ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या। तू चन्दा की शीतल चाँदनी है, या सूर्य की तपती दुपहरी है, ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या। तू सपनो मे छायी खुशनुमा खुमारी है, या डरी सहमी रात अन्धेरी है ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या। अब तक न जान सकी, ऐ जिन्दगी! तू ह बता तू है क्या। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थ...
सोचो जब जमी पर
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सोचो जब जमी पर

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** पानी.. जरा सोचो जब जमी पर एक दिन ऐसा होगा धरा सब रेत होगी सन्नाटा यू पसरा हुआ होगा नहीं होगी हरी घासें न दीखेगी हरी बासें न नदियां कल कलायेंगी न चिडियाँ चह चहायेंगी न फसलें लह लहायेंगी न बिजली चम चमायेंगी धरित्री माँ का ये धानी चुनर जब जल रहा होगा धरा सब.........।। जब तक ये पानी है,जवानी है सभी किस्सा कहानी है सुनो उपदेश रहिमन की यही उनकीभी बानी है सून सब कुछ है, बिन पानी सँवारो आने वाला कल बचा एक बूँद पानी को नहीं चेता अगर अब भी भयानक कल बडा होगा धरा सब..।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
प्यार की कहानी
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प्यार की कहानी

संजय जैन मुंबई ******************** कैसे होती है यारो, प्यार की शुरुआत। सुनाता हूँ तुम्हे आज। दिल की लगी से, दिल मचलता है। आंखों का आंखों से, मिलना काफी होता है। किसी से रोज मिलना, कोई इत्तफाक नही होता। दिल में दोनों के कुछ तो, चल रहा होता है। तभी तो एक दूसरे की आंखे, यहां से वहां चलती है। और वो उसे भीड़ में भी, आसानी से खोज लेता है। जिसे सुबह से शाम और, शाम से रात मे ढूंढता है। और उसी के सपनो में, डूबा सा रहता है। और एक नई प्यार की, कहानी लिख रहा होता है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुक...
अर्थ नहीं समझ वो …
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अर्थ नहीं समझ वो …

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** अर्थ नहीं समझ, वो गलत अर्थ लगाते हैं। सोच के अनुरूप, अपना दिमाग चलाते हैं।। अर्थ बिना सब व्यर्थ, समझ नहीं पाते हैं। बिन कही बात का भी, अर्थ वो लगाते हैं।। राग द्वेष सब, इसी वजहसे पैदा होते हैं। अर्थ का अनर्थ कर, अपनों से दूर जाते हैं।। अर्थ गागर में सागर भर, यश को पाते हैं। समझदार ही, इस भाषा को समझ पाते हैं।। बाकी सब विवेकानुसार, अर्थ लगाते हैं। मन मोती संग, इच्छानुसार माला पिरोते हैं।। सकारात्मक सोच अपना, सही अर्थ लगाते हैं। इंसान वास्तव में, वही पूज्य बन जाते हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ह...
मिलना बहुत जरूरी है
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मिलना बहुत जरूरी है

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** मिलने की बेचैनी को वो, समझ रहे मजबूरी है। माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।। येआलम बेताबी का हम बिल्कुल भी ना सह सकते। कौन बताएगा उनको कि हम उन बिन ना रह सकते।। तड़प रहे हैं ऐसे जैसे, मृग चाहत कस्तूरी है। माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।। जब तक उनको देख न लें, आँखें मुरझायी रहती हैं। बिन मुस्कां के छींटों के, सूरत झुलसाई रहती हैं।। जख्म जिगर अब सह ना पाए, चोट बनी नासूरी है। माना मोहब्बत इक तरफी, मिलना बहुत जरूरी है।। रस्सी के प्रयासों से, इक दिन पत्थर घिस जाता है। चसक चने के चक्कर में चक्की में घुन पीस जाता है।। पिसकर घुन की तरह चने संग, मुझे मरना मंजूरी है। माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।। पास हमेशा देख हमें वो, इतना क्यों घबराते हैं? दुनिया क्या सोचेगी शायद, सोच ये ही शरमाते हैं।। हमने भी है...
लौट आई
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लौट आई

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** लौट आई चेहरे की हंसी दिल की खुशी कुछ पल तेरे पास आकर रुकी हाले-ए-दिल सुनाया, फिर.... चेहरे की हंसी दिल की खुशी कुछ पल तेरे पास आकर रुकी बेचैन होकर डर कर जुदाई से लौट आई दरवाजे पर आहट के साथ तेरे पास! चेहरे की हंसी दिल की खुशी कुछ पल तेरे पास आकर रुकी...! आगे बढ़ चली . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान :...
हे धरती माता के रक्षक
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हे धरती माता के रक्षक

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हे धरती माता के रक्षक क्यों बनते हो खुद का भक्षक दुनिया के पेटो को भरने को खुद का पेट जलाते हो पर शस्यश्यामला धरती के सीने में आग लगाते हो। जिसके खूनो को चूस-चूस अनगिन फसलों हे धरती माता के रक्षक क्यों बनते हो खुद का भक्षक दुनिया के पेटो को भरने को खुद का पेट जलाते हो पर शस्यश्यामला धरती के सीने में आग लगाते हो। जिसके खूनो को चूस-चूस अनगिन फसलों को लहकाया जिसकी करुणा से घर आँगन फूलों से तूने महकाया अब उसी धरित्री माता के आँचल को स्वयं जलाते हो। जिन पुत्रों को पाला तुमने उनका ही दुश्मन बन बैठे तेरे इन जले पराली से सांसे उनकी कैसे पैठे हे आवश्यकता के आविष्कारक तृण से क्यो क्यों हारे बैठे हो। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के सा...
प्रतिध्वनि
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प्रतिध्वनि

मुनव्वर अली ताज उज्जैन म.प्र. ******************** मैं वो नहीं हूँ जो मैं हूँ मैं हूँ इक झूठ एक दिवास्वप्न फिर भी, आपको मुझ में कुछ अच्छा दिखाई देता है, तो, वो है मेरा आडम्बर और आपकी नज़रों का फरेब फिर छला किसने और छला गया कौन हो सकेगा न फैसला कोई क्योंकि, आदमी का आदमी दर्पण नहीं है . लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो स...
मेरा हमदम
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मेरा हमदम

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** क्या लिक्खा हैं? राज़ इक गहरा। क्या देखा है? उसका चेहरा। गाते क्या हो? उसका नजारा। क्या बजता है? उसका इकतारा। धड़कन क्या है? उसकी इबादत। सांसें क्या है? उसकी अमानत। उसकी अदाएं? लगती क़यामत। दीदार उसका? एक जियारत। मर जाओगे? हो गर इजाजत। जी लोगे क्या? हो गर जमानत। दिल में क्या है? उसकी धड़कन। और धड़कन में? उसकी तड़फन। याद क्या है? उसकी छुअन। भूलें क्या हो? उसका दामन। जीना क्या है? उसका मुस्काना। और मरना? उसका खफाना। क्या पाया है? पागल का तमगा। क्या खोया है? दिल अपना। वहम क्या है? वो अपना हैं। और हकीकत? ये सपना है। वो कहां है? मेरे दिल में। कहां नहीं है? मुस्तकबिल में। उसका होना? रब का होना। उसको खोना? सब को खोना। नाम तुम्हारा? उसका दीवाना। काम तुम्हारा? इश्क़ निभाना। उसकी झुल्फे? काली घटाएं। उसकी आंखे? नूर ...
रंग बिरंगी दुनिया में
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रंग बिरंगी दुनिया में

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** शहर की रंग बिरंगी दुनिया में, खो गए हैं सब बहुत मुश्किल बयां करना, पराए हो गए है सब। बाहर से उजले, अंदर से काले हो गए हैं सब। अपनत्व खत्म कर, रंगीनियों में खो गए हैं सब।। दर्द एहसास नहीं, दिखावटी प्यार जताते हैं सब। एक कमरे में रहकर भी, कोना ढूंढते हैं सब।। अपने होकर भी, गैरों की तरह मिल रहे हैं सब। रंग बिरंगी दुनिया में, कितने बदल गए हैं सब।। पैसे बहुत है, दिल से गरीब हो गए हैं सब। झूठी मुस्कुराहट चेहरे पर, लिए फिर रहे हैं सब।। झूठी रंग बिरंगी दुनिया, क्यों खो रहे हैं सब। हकीकत बिसरा, अनजान बन रहे हैं सब।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर ...
दिल के करीब
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दिल के करीब

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** कुछ रिश्ते बहुत अजीब होते हैं जो दिल के बहुत ही करीब होते हैं कभी उनसे दूर नहीं रहा जा सकता साथ रहने वाले खुशनसीब होते हैं जिंदगी हमसफ़र बनकर यूँ ही निकल पड़ती है कोई साथ दे या न दे वो अकेले ही अपने लक्ष्य को भेद सकती है न सफर तय था न मंजिल पता थी वो रिश्तों की डोरी से बँधा था न इसकी खबर थी . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
न जाने क्यों
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न जाने क्यों

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** न जाने क्यों आज दिल मचल उठा, न जाने क्यों आज मन तड़प उठा। रोका था न जाने कब से नयनों के अन्दर, न जाने क्यों आज अश्रु वह फिसल उठा। बड़े जतन से दबाया था हर दर्द को सीने में, न जाने क्यों आज हर दर्द कसक उठा सोये नही है रात रात जागे है हम, न जाने क्यों आज चिर निद्रा को मन ललक उठा। छोड़ दी थी वह अतीत की डायरी कब से, न जाने क्यों आज उसे पढ़ने का मन कर उठा। दबा दिया था जिस अन्धेरे को गर्त में, न जाने क्यों आज वह अन्धेरा जाग उठा। आ जाओ कान्हा ले लो आगोश मे अपने, न जाने क्यो आज यह दिल तेरे दीदार को तरस उठा। जाने न देगा मुझे कंटीले जाल मे विश्वास है मुझे, न जाने क्यों आज न देख तुझे अश्रु झिलमिला उठा। यह अश्रु झिलमिला उठा।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की ...
खुद को तबाह मत करना
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खुद को तबाह मत करना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** मोहब्बत यदि गुनाह है तो गुनाह मत करना किसी के वास्ते खुद को तबाह मत करना। तुम उसको चाहो भले, वो तुम को भी चाहे भूलकर कभी भी तुम ऐसी चाह मत करना। जानकर यदि अंजान है वो तुम्हारे एहसासों से दर्द सह लेना मगर, मुंह से आह मत करना। आदत है उस पर हक जताना तो जताते रहना पर नजरों में खुद की नीची निगाह मत करना। तुम मुठ्ठियों में छिपा सकते हो चांद सूरज को टूटकर कभी अपने हौसले का दाह मत करना। मोहब्बत करने से बेहतर है दीन दुखियों की सेवा मतलबी, झूठे, लालची लोगों से निबाह मत करना।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आक...
लूटा तो में हूँ
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लूटा तो में हूँ

संजय जैन मुंबई ******************** कभी अपनो ने लूटा कभी गैरो ने लूटा। पर में लुटता ही रहा। इस सभ्य समाज में।। किससे लगाये हम गुहार, जो मेरा दर्द समझ सके। मेरे जख्मो पर, मलहम लगा सके। और अपनी इंसानियत, को दिखा सके। और मुझे एक, इंसान समझ सके।। कभी दोस्ती के नाम पर, तो कभी रिश्तेदारी के नाम पर। लोगो मुझे बहुत कुछ दिया है। जो में लौटा नही सकता। क्योंकि में उन जैसा, गिर नही सकता। और अपने संस्कारो को, भूल नही सकता। इसलिए में उन जैसा, कभी बन नही सकता।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इ...
जय मध्य प्रदेश …
कविता

जय मध्य प्रदेश …

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश... जय मध्य प्रदेश... बुंदेल, बघेली राजस्थानी। छत्तीसगड़ी, चंबल दा पानी।। अजब मालवा का, परिवेश.... जय मध्य प्रदेश... दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... जनापाव पावन मन भावन, तीर्थंकर ओमकार सुहावन। सतपुड़ा का सुवन स्वदेश.... जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... सिंध, पार्वती नर्मद हर। चंबल बहती, कल-कल कर।। महाकाल, महादेव सर्वेश.... जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के ...
हम तो आज़ाद हैं
कविता

हम तो आज़ाद हैं

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैंं...... बंदिशों से सदा उनकी लाचार हैं उनको लगता सदा हम तो बेकार हैं छोड़ दी हमने अब तलवार है बन गई अब कलम मेरी पतवार है हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं..... लिखते लिखते नहीं हाथ थकते मेरे देश पर मेरा लिखने का अधिकार है हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं..... देखकर लोग कहते हैं आवारा है ये तो आवारा है, ये तो क्वाँरा है धड़कने उनके दिल की हैं बढ़ने लगीं फिर से कहने लगे वो तो बेचारा है वो तो बेचारा है वो तो बेचारा है हम तो आज़ाद हैं हम तो आज़ाद हैं..... . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता ...
आवारापन
कविता

आवारापन

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** स्याह रात में हज़ारो ख्वाइशें लिए मैं अज़नबी शहर में भटक रहा था। बादलो से हारे सितारें न जाने कहा जा छुपे थे। जुगनुओं की बस्ती में भी कोई हादसा हो गया था कोई नज़र नही आ रहा था। इस स्याह रात में मैं बे साया मंज़िल की ज़ुस्तज़ु में बद हवास भटक रहा था। अजीब हैं ,ये शहर रौशनी से डरा हुआ, सन्नाटा हाथ मे नश्तर लिए हर आवाज़ को चाक कर रहा था दिल और जेहन के बीच घमासान छिड़ा था दोनों के दरमियाँ मैं बेबस खड़ा था। किसकी सुनु, न सुनु कश्मकश में था। ये ज़ुस्तजू ये जद्दोजहद किसके लिए मैं समझ नही पा रहा था मेरा आवारापन ले आया मुझे शहर के उस छोर पर जहा जिंदगी ही हद खत्म होती है। और शुरू होता है एक नया सफर जो मंज़िल का मोहताज़ नही। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बै...
लकीर
कविता

लकीर

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** हाथ की लकीर बदल दीजिए छठ मैया, बीच मजधार से पार लगा दीजिए मेरी नैया। रैन दिवस बहते हैं मेरे अश्रुधारा, आप ही है मेरी जीवन की सच्ची सहारा। लगन लगी है आपके चरणों की हरण कीजिए सब मेरे कष्टों की रहूँ मैया आपकी उपासक जन्म -जन्म तक, नव लकीर बना दीजिए आशीष खुशियों की वर्षों तलक, जय, जय छठ मैया हमारी है अनुपम, लकीरों की गाथा बदल बरसा दीजिए पुष्प सुन्दरम   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने...
वसंत
कविता

वसंत

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** खिल उठा है बसँत, फूल उठी है अमराई, खुशगवार मौसम नेँ, जीने की उम्मीद, जगाई, वन प्राँतरोँ मेँ खिला,टेसू, और सेमल जैसे कहीँ पर, आग किसी ने है,लगाई, होली के सप्त रँगो ने, रिश्तोँ मेँ, गरमाहट की, नई अलख है जगाई, बजते ढोल, उडता गुलाल, रँगीन पानी की बोछारेँ, सबके नज़र मेँ हैँ, आईँ, हसतेँ चेहरोँ के बीच, फिर, भाँग की मस्ती है छाई, ज़माने भर के दुखडोँ से, एक दिन के लिये ही सही, ह्मेँ पूर्ण मुक्ती दिलाई . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्...
नज़रिया
कविता

नज़रिया

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** झाड़ू बुहारते गृहणी इतनी मगन  है इतनी मगन मानो चेहरा चमकाती हो ब्रांडेड  स्क्रब क्रीम से तुम्हें मगर शिकायत रही हमेशा ठीक से सजती नहीं वो कि पूरा मेकप किट दिलाया है उसे पिछली दिवाली पर इसलिए फर्ज़ है उसका कि सजे वो और अहसास माने जिंदगी भर समय मिले तो झांक लेना उसी किट में फाउंडेशन सूख गया कबका लिपस्टिक  हो गई चिपचिपी आई शैडो का बॉक्स फैंसी ड्रेस कम्पीटीशन को तैयार होते समय भूल आई स्कूल में तुम्हारी आठवी कक्षा में पढ़ती बेटी ले देकर बची केवल एक काजल पेंसिल लगाती है वो तुम तो इतना भी नहीं जानते होगे कि  लिप्स्टिक की बिंदी लगाती है वो जब तुम खुद चिपचिपाते हुए बैठ जाते हो उसके माथे पर जैसे रह गया तुम्हारे से उसके संबंध का यही एक ज़रिया नहीं, मेकप किट नहीं बदलना है तो बदलो अपना नज़रिया   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कान...
वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है
कविता

वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** वो कौन है जो मेरे गुनाहों पर पर्दा डाल देता है और मेरे गुनहगार होने का डर निकाल देता है बताओ, कैसे आदतें ये अपनी काबू में आएँगीं वो तो रोज़ कोई नया सिक्का उछाल देता है मैं कोशिश में हूँ कि कोई तो मीनार बच जाए हवा जब चले तेज़ तो हाथ में वो मशाल देता है अगर मिले मुझे जवाब तो मैं शान्त हो जाऊँ वो मज़िल के करीब लाकर नया सवाल देता है मैं उस की गली में जाना कब का छोड़ देता वो मेरी आँखों को तराशा हुआ जमाल देता है . लेखक परिचय :-  सलिल सरोज कार्यकारी अधिकारी लोक सभा सचिवालय नई दिल्ली आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...
जय श्री राधे
कविता

जय श्री राधे

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** श्याम बिनु राधा कैसी, राधा बिनु कैसे श्याम। बोलो मन जय राधे नाम, बोलो मन जय श्रीराधे श्याम। मुरली बजा जियू हर लीन्हों, ये तेने कैसो जादू किन्हों। कह रयो गोपी संग नंदग्राम, बोलो मन जय श्रीराधे श्याम। ब्रज की माटी उछल-उछल कर, बता रयो कान्हा जी आयो। यमुनाजी भी मस्त हो रयो, लता-बेल आजु है गा रयो। आयो कान्हा फेरू है नंदग्राम, बोलो मन जय श्रीराधे श्याम। . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। ...
अश्रुबाँध
कविता

अश्रुबाँध

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** जाने कब का बँधा अश्रुबाँध, आज दरकने लगा है, अश्रु सैलाव आज बढ़ने लगा है। दिन का चैन नीद निशा की बहाने लगा है। लाख रोका न आये सैलाब ऐसा, पर हर बार सैलाब उमड़ने लगा है। हारी नही थी अपनी बदहबासियो से, भयावह भँबर मे नाव डगमगाने लगी है। सहसा ही अदृश्य हाथ सम्मुख था मेरे, कश्ती मेरी तट पर बढ़ने लगी है, डुबाना न कश्ती कसम है तुम्हे अब, अन्तिम समय तक न होना जुदा अब कान्हा मेरे अब स्वयं मे समाना, मन्जिल कठिन है पर आगे ही बढाना। झेले बहुत दर्द हर गम को पिया है, शायद न अब कुछ बाकी रहा है, आकर के अब जो लगालो गले से, सह जायेगे सब जो हमको मिला है। सह जायेगे सब ...... . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलन...