श्रम जल से उपजा कण हूँ
लोकेश अथक
बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश)
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संरक्षण कर संवर्धन कर
संरक्षण कर संवर्धन कर
कण कण का संयोजन कर
संरक्षण कर संवर्धन कर
धरती को जीवित रखने का
कोई तो कर प्रबंधन कर
ढेरों में भी परिवर्तित हो
अन्न कण कण संवर्धित हो
जीवन का अटल सूत्र है ये
जीवन हित इसका अर्जन कर
संरक्षण कर संवर्धन कर
संरक्षण कर संवर्धन कर
ग्रह वातावरण मधुरतम हो
मन से मन का अनुबंध रहे
श्रम जल को करता नमन कोटि
मेहनतकस का आबंध रहे
वसुधा के आंचल से उपजे
कण का संचित आवर्धन कर
संरक्षण कर संवर्धन कर
संरक्षण कर संवर्धन कर
दिनकर की तीव्र तपन सहकर
हठकर बाकी है कहता
अल्पित मन भावों में वहकर
नीचे संघर्षों में रहता है
अंतस में है जो कृषक हेतु
उन त्रुटियों का परिमार्जन कर
संरक्षण कर संवर्धन कर
संरक्षण कर संवर्धन कर
सिरमौर रहे हर ठौर रहे
धन धान्य धन्य तो मान्य रहे
जीवन यापन में लिप्त रहे
अल्पित धन जन सामान्य रहे
प...