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कविता

श्रम जल से उपजा कण हूँ
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श्रम जल से उपजा कण हूँ

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर कण कण का संयोजन कर संरक्षण कर संवर्धन कर धरती को जीवित रखने का कोई तो कर प्रबंधन कर ढेरों में भी परिवर्तित हो अन्न कण कण संवर्धित हो जीवन का अटल सूत्र है ये जीवन हित इसका अर्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर ग्रह वातावरण मधुरतम हो मन से मन का अनुबंध रहे श्रम जल को करता नमन कोटि मेहनतकस का आबंध रहे वसुधा के आंचल से उपजे कण का संचित आवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर दिनकर की तीव्र तपन सहकर हठकर बाकी है कहता अल्पित मन भावों में वहकर नीचे संघर्षों में रहता है अंतस में है जो कृषक हेतु उन त्रुटियों का परिमार्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर सिरमौर रहे हर ठौर रहे धन धान्य धन्य तो मान्य रहे जीवन यापन में लिप्त रहे अल्पित धन जन सामान्य रहे प...
नूर का दरिया
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नूर का दरिया

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** नज़रों ने तेरा चेहरा देखा, नूर का दरिया गहरा देखा। चलते फिरते एक चांद पे, घनी घटा का पहरा देखा। कारवां मासूम दिलों का, तेरी बस्ती में ठहरा देखा। तेरी गलियों में आते जाते, होता दिल आवारा देखा। झील सी नीली आंखों में, घुलता एक इशारा देखा। सुर्ख लाल गुलाब खिलाते, गुलशन का नजारा देखा। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अ...
चाँदनी
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चाँदनी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** शरद चाँदनी के जैंसी तुम हर रोज चमकती हो पगली उसकी किरणों की आभा सी तुम रोज दमकती हो पगली तुम हर रोज चाँद सी लगती हो अनुपम अपनी काया ले करवा चौथ का चाँद देख तुम जो मेरी उम्र बढ़ाती हो राज की बात बताऊं तुमको सच तो यह हैं! साथ तुम्हारा पाकर पगली मेरी उम्र हर रोज हैं बढ़ती चाँद रश्मि के जैंसी तुम खीर की जैंसी मीठी तुम शरद चाँदनी के जैंसी जो हर रोज चमकती हो पगली जो हर रोज चमकती हो पगली ।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मे...
क्यों भूल जाते हो, “पालनहार” को
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क्यों भूल जाते हो, “पालनहार” को

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** जिनके नाम का इस जगत में देख हुवा उजाला है , क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। भले ही आगे बढ़ जायेगा दुनिया के व्यापार में , नहीं मिलेगी वो खुशी जो मिलती इनके प्यार में । कुछ नही मिलने वाला इस कलयुग के बाजार में , आज़ा फिर से लौटकर उन खुशियों के संसार में । छोड़ दिया वो दामन कैसे जो जनन्त से निराला है , क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। जैसे जैसे तू बड़ा हुवा, उनका भी सपना खड़ा, लेकिन वो सपना टूट गया , जब साथ तुम्हरा छूट गया ढूढं रहे हो जो तुम वो अब आएगा ना हाथ मे , भूल गये वो दिन कैसे जो गुजरे उनके साथ में दर दर ठोकर खाओगे वो दिन अब आने वाला है । क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। तेरी खुशी देखकर जिन्होंने दुःख झे...
सुप्रभात
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सुप्रभात

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** ”निशा के गर्भ से हो गया है, आज़ सुप्रभात का श्रीगणेश, भास्कर की किरणोँ से, नहीँ अब, अँधकार का अवशेष, पँछीयोँ के मधुर गान से, गुँजायमान है, सारा परिवेश, प्राणियोँ मेँ स्फूर्त हुआ, ऊर्जा का नवीनतम, समावेश, भजन गातीँ प्रभात फेरीयाँ, देती ह्मेँ यह सुखद सँदेश, जागो ऊठो, दूर करो, तनमन से आलस का, शेष, बागोँ, खेतोँ मेँ बिखरी है, बसँत की नव बहार, नये कार्योँ का श्री गणेश करो, नव शक्ती की है, यही पुकार, देवी सरस्वती का ध्यान करेँ, पायेँ उनसे सदबुद्धी का उपहार." . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
घर की शान बेटियां
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घर की शान बेटियां

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** निकालिये अपने मन से हर एक बुराई को, आजसे ही बनिये एक जासूस बिना तन्खा के, नौकरी करिए साहब इन बेटीयो को बचाने की। नौबत ना आये इनको भूखा सुलाने की, नौबत ना आये इनको ज़िंदा जलाने की।। ये बेटियां बुढ़ापे तक साथ देती है। मांगती केवल लाड़ प्यार आपका, इसके सिवा भला और क्या लेती है? ये बेटियां आपके घर से निकलकर, दुसरो के घर को खुशहाल बनाती है। खुद तकलीफ सहकर सबको हंसाती है, मगर अपना दर्द किसी को नही बताती है।। कभी कूड़े के ढेर में मिलती है, तो कभी दहेज की पीड़ा सहती है। मां, बहन, बेटियां, बहु ही है जो देश मे, आपके नाम को बढ़ाने में सबसे आगे रहती है।। घर की शौभा, घर का रूतबा घर की शान होती है बेटियां। मजबूर पिता गरीब परिवार का, एक अभिमान होती है बेटियां। बहु-रूपी बेटियों से चलता है वंश आपका, गांव नही, कस्बा नही, नगर नही, शहर नही। अरे ...
शरद पूनम का चाँद हो
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शरद पूनम का चाँद हो

********** रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. शरद पूनम का चाँद हो नदी का किनारा हो हाथों में हाथ सिर्फ तुम्हारा हो कितना मधुर वो साथ प्यारा हो न गम का कहीं भी इशारा हो चाँदनी से महक रहा जहान सारा हो शीतल किरणों सा जगमगा रहा प्यार हमारा हो तो कितना मधुर वो साथ प्यारा हो कि खो जाए हम एक दूसरे में ही कही इस दुनिया से बेखबर संसार हमारा हो... जहाँ सिर्फ मुहब्बत ही मुहब्बत हो, और गम का न कहीं सहारा हो तो कितना मधुर वो संसार प्यारा हो आओ बसाए वो सपनों का जहान... जहाँ हर पल शरद पूनम का उजास हो उस शीतल चाँदनी में फिर राधा कृष्ण का रास हो,, गोपियों का विश्वास हो, और मधुर मिलन की आस हो... और ऐसा प्यारा वो संसार हमारा हो... . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्न...
मेरी राह देखना तुम
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मेरी राह देखना तुम

********** रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम तुमको ही पूरा माना है, तुम ही मेरे मन में हो तुम मेरे हर क्षण में हो ,तुम मेरी सांसों में हो तुम ही प्राणप्रिया हो मेरी, यही याद कर राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। तुम्हीं भाग्य गए हो, तुम्हीं कर्म हो तुम्हीं बुद्धि हो, तुम्हीं सिद्धि हो तुम्हीं हो मेरे, सुख-दुख की रानी तुम्हीं मेरे सपनों की, शहजादी यादों में भी गर्व कर, मेरी राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। जानती हूॅ॑ न लौटेंगे कभी, हृदय उनका निष्ठुर हुआ हैं त्याग कर मेरा समर्पंण तो, मातृभूमि को किया हैं प्रेम में त्याग एक का, दूसरे पर स्वयं बलिदान हो गए रोता हुआ छोड़ कर मुझे, स्वयं जाते-जाते कह गए आएंगे हर रोज सपनों में तेरे, मेरी राह देखना तुम जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम।। . परिचय :- नाम : रेशमा ...
माँ है जो मकान को घर करती है
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माँ है जो मकान को घर करती है

********** जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) मुझसे ज्यादा मेरी फिकर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है धूप मे जब जब में निकलता हु पलकों की छाव मेरे सर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है कभी गिरने नही देती मुझे कहीं उसकी दुआ इतना लंबा तय, सफर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है जब जब भी कभी बिमार होता हूं उसकी यादों की दवा हि बस मुझ पर असर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है लोग चेहरों पर नक़ाब लिए रखते हैं सभी के सारे हिसाब लिए रखते हैं में मेरी तकदीर लिए चलता हूं ज्यादा कुछ नहीं, माँ कि तसवीर लिए चलता हूं उसकी दुआ मेरे साथ साथ सारे, सफर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनि...
तुम लौट आओगे
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तुम लौट आओगे

********** ज्योति शुक्ला औरैया (उत्तर प्रदेश) ग़म जुदाई के सताएंगे तो तुम लौट आओगे आंख में अश्क आएंगे तो तुम लौट आओगे टूटी नाव के सहारे ना लग पाओगे पार तुम तो लहर संग तूफान आएंगे तो तुम लौट आओगे याद रखना कोई आसान नहीं है जमाने में दर्दे दिल रोज़ सताएंगे तो तुम लौट आओगे। पूंछ-पूंछ कर मेरे बारे में तुम से जमाने के लोग बागवां दिल का जलाएंगे तो तुम लौट आओगे। मुझ से खफा हो के जाने वाले रखना याद ख्वाब मेरे जब आएंगे तो तुम लौट आओगे। . परिचय :- कवयित्री ज्योति शुक्ला का जन्म १५ जुलाई सन् १९८८ को जिला औरैया उत्तर प्रदेश में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा औरैया एवं उच्च शिक्षा कानपुर विश्व विद्यालय से प्राप्त किया। ज्योति शुक्ला एक कुशल गृहिणी होने के साथ ही वर्तमान समय में चिकित्सा क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही हैं।समाजिक विद्रुपताओं, सामाजिक विसंगतियों, मानवीय संवेदना से परिपूर्ण काव्य लेखन के...
तेरी सोहबत का असर
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तेरी सोहबत का असर

********** आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश बड़ी मुश्किल है ये प्यार की डगर आई नहीं तुम आने का वादा कर खुश रहने की ख्वाहिश भी बची नही ख़ुदा जाने क्यों उदासी है इस क़दर। प्यास जगाई तूने,उसमें झुलसता रहा मैं तुझे पता ही नही कहाँ खोई है तू मगर सबकी नजरों में खुश ही दिखता हूँ मैं ये सब तेरी ही सोहबत का है असर। अब ना भटको चुपचाप चली आओ तुम दिल में प्यार की अब भी है वही लहर।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन मे...
नजदीक
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नजदीक

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) यूँ लब थरथराने लगे तुम जो मेरे नजदीक आए महकती खुशबू जो महका गई तुम जो मेरे नजदीक आए नजरें ढूंढती रही हर दम तुम्हे तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम को बोल भी न बोल पाए तुम जो मेरे नजदीक आए इजहार तो हो न सका प्रेम का तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम के ढाई अक्षर हुए मौन तुम जो मेरे नजदीक आए कागज में अंकित शब्द खो से गए तुम जो मेरे नजदीक आए नींद भी अपना रास्ता भूल गई तुम जो मेरे नजदीक आए कोहरे में छुपा चेहरा जब देखा तुम जो मेरे नजदीक आए अंधेरों ने माँगा उजाला रौशनी देने तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम रोग की दवा देने तुम जो मेरे नजदीक आए . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाच...
नेह तुमसे लगाऐं
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नेह तुमसे लगाऐं

********** विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) नेह तुमसे लगाऐं, तुम ना स्वीकारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... असर अब कुछ हुआ है। दिखे खाई कुआ है। प्रीत में हार बैठे सब, खेला ऐसा जुआ है । हम दर्द से बिलखें, नजर तुम ना बुहारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... अजब हलचल हुई थी। टाट, मल-मल हुई थी।। तुम्हारे प्रेम बंधन में, देह शतदल हुई थी।। आज दल-दल फंसे हैं, देखकर ना उबारो ? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... भला अनुराग पाला। मन घुली हाय हाला।। अधेरों से हुयी यारी, लगे बैरी उजाला ।। तिमिर की स्याह में डूबे, दीप फिर भी ना जारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि ...
आसमान के तारें
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आसमान के तारें

********* कुमार संदीप ग्राम सिमरा, मुजफ्फरपुर (बिहार) आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में टिमटिमाते हुये तारों को, ऐसा लगता है कि ये तारें सपरिवार स्नेह और प्रेम से रहते हैं मिलजुलकर एक साथ। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में, जुगनू की तरह तारों को चमकते ऐसा लगता है कि ये तारें एक साथ हँसते हैं मुस्कुराते हैं, तारों की चमक आँखों को देती है सुकून। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में, तारों को कुछ समय के लिए ओझल होते ऐसा लगता है कि ये तारें भी क्रंदन करते हैं दीन दुखी के दुःख देखकर, ये तारें देखते हैं आसमां से इंसानों के कुकर्मों को। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में असंख्य तारें, ऐसा लगता है कि ये तारें सभी एक जैसे ही हैं, इन तारों में इंसानों की तरह न तो रंग का भेदभाव है, न ही धर्म, जाती का बंधन। . लेखक परिचय :-  नाम : कुमार संदीप पिता : स्वर्गीय ब्रज ...
जाड़े की दस्तक
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जाड़े की दस्तक

********** कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) जाड़े की धूप खिलने लगी है। जाड़े की धुँध उठने लगी है। छत पर रजाईयाँ सजने लगी है। आँगन में चटाईयाँ बिछ्ने लगी है। रंग बिरंगे फूल खिलने लगी है। तितली फूलों पर उड़ने लगी है। पत्तों पर ओस चमकने लगी है। सिंगरहार पेड़ों पर सजन लगी है। आँगन में आचार सूखने लगी है। दरवाजे दरीचे खलने लगे हैं। माँ भाभियाँ स्वेटर बुनने लगी हैं। शायद जाड़ें की दस्तक मिलने लगी है। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूच...
छत की कवेलु में
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छत की कवेलु में

********** जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) "इन इमारतों में ये जो हाथ लगे हैं कई भुखे प्यासों के जज़्बात लगे है हर एक पत्थर में दर्द बहुत गहरा है किसी की मजबूरी और हालात लगे है जेब मे बच्चों की भूख रखी है कंधों पर माँ बाप के हाथ लगे है मिट्टी की चादर, चाँद का सिरहाना रख छत की कवेलु में अमरनाथ लगे हैं" परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनियरिंग - सिविल डिपार्टमेंट) भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, सेलम हवाईअड्डे पर पदस्थ शिक्षा : बी.ई. (सिविल इंजीनियरिंग) २०१६, एम .टेक - (Geotechnical Engineering ) २०१८ भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर से आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंद...
अच्छा होता मैं तेरी न होती
कविता

अच्छा होता मैं तेरी न होती

********** रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश तुम्हारे ही होठों की मुस्कान थी तुमने छीन लिया तुम्हारे ही ह्रदय की अनुराग थी तुमने द्वेष भर दिया तुम्हारी ही संवेदना थी तुमने वेदना से भर दिया तुम्हारे ही जिस्म की मधुशाला थी तुमने धिक्कार दिया तुम्हारे ही नयन की लव थी तुमने बुझा दिया तुम्हारी आत्मा थी तुमने अपमान किया क्या? दोष था मेरा जो इतना अपमान दिया जब– जब प्यार से पुकारा तो मुस्कुरा दिया जब हृदय से लगाया तो समर्पण भी कर दिया फिर क्यों? इतना वेदना से भर दिया आज धिक्कारती हूं खुद को क्यों? तुमसे प्यार किया क्यों? वह निष्ठुर अपमान सही अच्छा होता वैसी होती, जैसी तेरी संकल्पना थी तब तू शायद मेरा होता, औ मैं तेरी न होती रिश्ते भी फिर नीभ जाते इस तथाकथित समाज में।।" . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
हिम्मत
कविता

हिम्मत

************ सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार तुम कुछ कर सकते हो तुम आगे बढ़ सकते हो। तुममे है बहुत हिम्मत तुम जग को बदल सकते हो। तुम खुद से हिम्मत नही हारना। कभी खुद का भरोसा मत हारना। तुम झूठ का मार्ग छोड़ सच्चाई के रास्ते पर चलते रहना। मुसीबत बहुत आते हैं जीवन में बस डट कर सामना करना। तुम ही देश के भविष्य हो यह बात हमेशा याद रखना। आत्मविश्वास बनाए रखो तुम हर कार्य पूरा कर पाओगे अपनी प्रयास तुम जारी रखो एक दिन जरुर सफल हो जाओगे। तुम करना कुछ ऐसा की, सारी दुनिया तुम्हारे गुण गाए। तुम बनना ऐसा की महानों की, महानता भी कम पड़ जाए। तुम रखना हिम्मत इतना की, वीर योद्धा की तलवार भी झुक जाए। तुम बनना इतना सच्चा की हरीशचंद्र के बाद तुम्हारा नाम लिया जाए . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का ...
मेहरबाँ बनता गया
कविता

मेहरबाँ बनता गया

************ मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी जिस ज़मीं पर पाँव रखा आस्माँ बनता गया जिस ने मेहनत की हमेशा कामरां बनता गया चाँद एक बादल के टुकरे में छुपा बैठा रहा दिल का मेरे दर्द सब दर्द ए निहाँ बनता गया सब के सब मानूस थे बारिश हवा या धूप हो उसने जिस को भी कहा सब साइबाँ बनता गया जो भी अपने थे मेरे सब छोड़ के जाने लगे सब से कट कट के मेरा अपना जहाँ बनता गया क्या हुनर थे मुझमे हाँ मैं जंग कैसे जीत ता खेल क़िस्मत का हमेशा मेहरबाँ बनता गया लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड आने वाली किताबें :- १: माँ और मौसी (उर...
स्मृतिया
कविता

स्मृतिया

********** सुरेश चंद्र भंडारी धार म.प्र. आओ याद करे कुछ यादें खट्टी मीठी सी मनमौजी रीती इठलाती अलबेली जैसी।। जो तन मन जीवन अंतर्मन महकाती है, चुपके से कानो में कुछ कह जाती है।। यादें जब निकल चली गलियारों में, खिला हुआ बचपन चौतरफा राहो में। यादगार पल मिल जाते भावनाओ में, हकीकत गुजर जाती है उलाहनों में।। ये समय तो हरपल चलता रहता है उषा और संध्या में तो उगता ढलता है। मन भी तो पंख लगाकर उड़ जाता है, जो कुछ यूं ही पल दर पल छलता है।। वक्त जो बीत गया फिर नहीं आएगा, अतित तो स्मृतियों में ही रह जायेगा। मुड़कर देखोगे जब पीछे कह जायेगा। हाँ मन तो तब व्याकुल हो पछतायेगा।। हम स्मृतियों में यूँ क्यों खो जाते है, वर्तमान पर यूँ क्यों सिसक जाते है। भाग्य भरोसे यूँ क्यों स्वयं को भूल जाते है। प्रबल पुरुषार्थ पर यूँ क्यों रोते जाते है।। स्मृति के स्वर्णिम पल आंखे खोलो देखो, करो अंगीकार सुखद सलोने वर्त...
छाते में गुज़रे …
कविता

छाते में गुज़रे …

********** डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर म.प्र. छाते में गुज़रे दिनों की कहानी। सारा शहर, हो गया पानी पानी। जाती नहीं, है डटी कब से वर्षा। सूरज के दर्शन को, हर कोई तरसा। ज्यों ही कदम को बाहर निकालें। खुद, कपड़े और क्या क्या संभालें। छायी है काई, दीवालों और दर पे। कीचड़ दिखे है आंगन और घर पे। कहीं डोम गिरते, कहीं लोग मरते। अफ़सोस दिल से करें डरते डरते। हरक़त बढ़ाता ,,,,,,,, दुश्मन हरामी। कटोरे में भूचाल उसका सुनामी। मिटकर ,,मिटाने के नारे लगाता। पाक बेहूदा है,,,,, नहीं शरमाता। चुनावों में मस्ती,कहीं नज़र नहीं आवे। कोई, मम्मी, राहुल को, आंखें दिखावे। सुशासन दिखे ना, ना दिखे कोई रुतबा। डूब कर प्रलय बिच,,,,, करे तौबा तौबा। परेशां बिहारी,,,,,,,,, है परेशान जनता। बिगड़े सभी काम, हर कोई हाथ मलता। करो बंद टोंटी, अब न बरसाओ पानी। बिजू कहे,,,,,,,, जी हो गई बहुत हानी।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्...
मैं ही राम, मैं ही रावण
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मैं ही राम, मैं ही रावण

********** जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) हां रावण हूं मैं रावण हूं, धर्मशास्त्र का परमज्ञाता, शिव उपासक ब्राह्मण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। कुटिल नहीं मैं सरल हूं, अमी की धारा अविरल हूं, नहीं अपना मैं हित साधता, शिव को ही मैं श्रेष्ठ मानता, अनुशासन की मूरत अटल, परम धर्म परायण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। मैं हूं चार वेदों का ज्ञाता, तांडव स्तोत्र का रचयिता, मेरा बल मेरी ही शक्ति, प्रिय शंकर को मेरी भक्ति, मैं साहसी, मैं पराक्रमी, शास्त्र शस्त्र का मैं दर्पण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। मेरा राज था मेरी ही लंका, चहुंओर था मेरा ही डंका, फिर भी सीता का कभी, किया नहीं चरित्र कलंका, स्वयं की मुक्ति के हित में, राम को युद्ध निमंत्रण हूं, हां रावण हूं मैं रावण हूं। बार बार न मुझे बनाओ, बार बार न मुझे जलाओ, अगर राम तुम बन न पाओ, रावण ही बनकर दिखलाओ, संयम मुझ सा बरत बताओ, फिर...
फिर आओ राम…
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फिर आओ राम…

********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ज्ञान का ध्वज फहराओ राम, ले अवतार पुनः इस जग में, धर्म पाठ सिखलाओ राम, धरा पाप में डूबी जाए, ज्ञान, दीप, बुझता जाए, चारों दिशा पाप मंडराए, कलह बसा, सभी के मन में, मग्न हुए सब डीजे धुन में, सत्य मार्ग दिखलाओ राम, प्रेम राग सिखलाओ राम, ज्ञान का ध्वज फहराओ राम, ले अवतार पुनः इस जग में, एक बार फिर आओ राम...फिर आओ राम...फिर आओ राम... लेखिका परिचय :- नाम - क्रांति पाण्डेय, साहित्यिक नाम - दीपक्रांति पाण्डेय जन्मतिथि - ०६/०६/१९९४ माता स्वर्गीय - श्रीमती चंद्र कली पांडेय, पिता - श्री उपेंद्र कुमार पांडेय शैक्षणिक योग्यता - बी.ए.,एम ए.,एवं एम.फिल.(हिन्दी), माखनलाल यूनिवर्सिटी से पी.जी.डी.सी.ए. 2017 में, पी.एच.डी. अभी आरंभ हुई है। शा.विज्ञापन. महाविद्यालय रीवा से २०१६ में एन.सी.सी. पूर्ण। उपलब्धियां - आकाशवाणी रीवा द्वारा २०१३ एवं २०१४ से ...
धरा सी मैं
कविता

धरा सी मैं

********** प्रेक्षा दुबे उज्जैन ( म. प्र.) इस धरती सा हृदय लिए कुछ इस जैसी मैं जीती हूँ बाहर हो गर बारिश भी फ़िर भी अंदर से जलती हूँ कोई मेरा नहीं जहां मे सबकी अपनी सी लगती हूँ जो धूप सभी को मिल जाए तो सूरज से मैं तपती हूँ मेरे रहस्य हैं जग से परे इतिहास सभी का रखती हूँ सुख दुख त्याग सभी मैं अपना कष्ट मैं सारे सहति हूँ ना आम कोई ना खास मुझे सब पर ममता मैं रखती हूँ पर पाप जहाँ में जब भी बढ़े तो प्रलय रूप मे धरती हूँ कोमल सा मैं मर्म लिए स्त्री स्वरूप मैं पृथ्वी हूँ लेखिका का परिचय :- प्रेक्षा दुबे निवासी - उज्जैन ( म. प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksh...
जिंदगी क्या है….
कविता

जिंदगी क्या है….

********** संजय जैन मुंबई फूल बनकर मुस्कराना जिन्दगी हैl मुस्कारे के गम भूलाना जिन्दगी हैl मिलकर लोग खुश होते है तो क्या हुआl बिना मिले दोस्ती निभाना भी जिन्दगी हैl। जिंदगी जिंदा दिलो की आस होती है। मुर्दा दिल क्या खाक जीते है जिंदगी। मिलना बिछुड़ जाना तो लगा रहता है । जीते जी मिलते रहना ही जिंदगी है।। जिंदगी को जब तक जिये शान से जीये। अपनी बातो पर अटल रहकर जीये। बोलकर मुकर जाने वाले बहुत मिलते है। क्योकि जमाना ही आज कल ऐसे लोगो का है।। मेहनत से खुद की पहचान बनाकर, जीने वाले कम ही मिलते है । प्यार से जिंदगी जीने वाले भी कम मिलते है। वर्तमान को जीने वाले ही जिन्दा दिल होते है।। प्यार से जो जिंदगी को जीते है। गम होते हुए भी खुशी से जीते है। ऐसे ही लोगो की जीने की कला को। हम लोग जिंदा दिली कहते है।।   लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मु...