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कविता

समय
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समय

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** दूर सुदूर आकाश के उस छोर को ताकता, या कहे शून्य निहारता मैं, हा मैं साथ होगा भी कौन, मैं तो है ही, शाश्वत अकेला, नितांत अकेला। एक भ्रम होता है, हम, होने का वही बुनता है, भ्रमजाल मायाजाल मै, उलझता है उलझता जाता है, महसूस करता है अपने, चहु और, अपने जागती आंखे दिखती है सपने। खो जाता है, मै, भूल कर मै। दौड़ता है, कस्तूरी मृग सा मरुस्थल में। दौड़ खत्म नही होती, भ्रम सिर्फ भ्रम समय, शिकारी सा बाट जोहता, दिखाई नही देता। और जब तक मैं ये जान जाता मृगतृष्णा, शून्य से ताकता समय त्रुटि नही करता। वो जनता है, वो शिकारी है और हैं सामने शिकार। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर...
चापलूसी नहीं हुई मुझसे
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चापलूसी नहीं हुई मुझसे

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** चापलूसी नहीं हुई मुझसे, सो हूं पीछे मैं इस जमाने में। मयकशी चीज़ है खराब बहुत, तुम न जाना शराबखाने में। कामयाबी नहीं मिली मुझको, आज तक साथ तेरा पाने में। क्या दिखाऊंगा राह में तुझको, मैं तो नाकाम हूं जमाने में। मैंने घर पर बुलाया है उसको, वो है मजबूर आज आने में। जिसकी फुरकत में जान दी मैंने, था वो सबसे अलग ज़माने में। लेखक परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख...
अरे कब समझेंगे ये लोग
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अरे कब समझेंगे ये लोग

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** अरे कब समझेंगे ये लोग। क्यों जानकर हैं लगवा रहे ये अपना काल को भोग।। जब भी अखबार खोली जाती है। एक न एक मौत की खबर दिख जाती है।। मानता हूँ होना है सो होना है । पर थोड़ा तो अपना रक्षा का सोचना है। मुझको है ये नहीं समझ आता। है हेलमेट पहनने से इनका क्या है चला जाता।। आखिर क्यों नहीं समझते ये लोग। घर पर इन्तजार कर रहा है कोई इनका। एक छोटी सी भूल। और बिखर जाता है सब कुछ बनके तिनका -तिनका। क्या कर लेते हैं ये लोग। इतनी तेज रफ्तार का लगाकर यूँ रोग।। अन्त में क्या कहा जा सकता है इनसे। यूँ जान गँवाना है। तो जाकर सरहद पे गँवाओ। अब ऐसे माँ बाप को न तरशाओ।। वैसे जाओगे तो गर्व होगा देश को तुम पर। ऐसे जाओगे तो। सोचेंगे लोग पल भर।। माँ बाप ने बड़े प्यार से है पाला। मत बनो यों मतवाला। कितनी बार बताएंगे तुमको। हेलमेट पहनने पुलिस कहती है। सुरक्षित करने को...
प्यार किया मैने भी
कविता

प्यार किया मैने भी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** प्यार किया मैने भी सखी, कजरारी आँखो बाले से, घुँघराले बालों बाले से, प्यार किया मैने भी सखी। नित आता मेरे सपनो में, मीठी मीठी बाते करता सपनो में, मै उसके नयनों में खोती हूँ, वह मेरे नयनों मे खोता है, मै आँख मूंद लेती जब जब, वह मुझे निहारा करता है, ऐसे स्नेह सिग्ध मतबाले से, प्यार किया मैने भी सखी। वह सबके दिल को है चुराता, वह चैन लूटता वह नीद चुराता, पल मे आता पल मे जाता, पर प्यार को वह समझ न पाता, ऐसे नटखट और लुटेरे से, प्यार किया मैने भी सखी। कुछ पल रहा वह पास मेरे, फिर दूर देश वह चला गया, वादा करके आउँगा मै जल्दी, वह अब तक लौट नही पाया, ऐसे परदेशी निर्मोही से, प्यार किया मैने भी सखी। पर यादो मे वह हर पल रहता, इस दिल मे बास उसी का है, वह भी उदास होगा मुझ बिन, यह भी अहसास मुझे रहता, उस चितचोर मनभावन से, प्यार किया मैने भी सखी प्यार किया ....
ये माटी के दीपक धरा रोशन कर दे
कविता

ये माटी के दीपक धरा रोशन कर दे

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** तिमिर को जीत कर आलोक कर दे। ये माटी के दीपक धरा रोशन कर दे।। तू तूफानों से घबराया न कभी भी रे। तू अज्ञान को अंतर्मन से दूर कर दे।। खिला दे रोशनी में मुरझे चेहरों को। तू खिलखिलाता अब चेहरा कर दे।। उदास है जो युवा खोए खोए से हैं। उनकी ज़िंदगी मे अब उजाले कर दे।। तेरी रोशनी में पतंगें दौड़े चले आते। उन पतंगों के परों में जरा जान भर दें।। उजालों की सबको चाह है यहाँ बेशक। तू अमावस को भी धवल निशा कर दे।। जो बड़ी आस कर हाथों में तुम्हें थामें। उन हाथों की लकीरों को रोशन कर दें।। . लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...
दीप बन जाएं
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दीप बन जाएं

श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' इंदौर म. प्र. ******************** आओ हम आज दीप बन जाए आओ हम आज मिलके जल जाएं दीप से दीप हजारों जलते हैं साथ चलने की हम कसम खाएं बनके जुगनू अंधेरी रातों में ज़र्रा ज़र्रा में हम बिखर जाएं हो गए जो पतझड़ में गुमसुम उन चिरागों को रोशन कर डालें टूटकर जो बिखरे 'अवनि' पर उनके पंखों को आसमां दे दें बनकर कुंदन तिलक बन जाएं आओ जल जल के 'जल' बन जाए . लेखिका परिचय :- नाम - श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शिक्षा - एम.ए.अर्थशास्त्र, डिप्लोमा इन संस्कृत, एन सी सी कैडेट कोर सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय दार्शनिक शिक्षा - जैन दर्शन के प्रथम से चतुर्थ भाग सामान्य एवं जयपुर के उत्तीर्ण छहढाला, रत्नकरंड - श्रावकाचार, मोक्ष शास्त्र की विधिवत परीक्षाएं उत्तीर्ण अन्य शास्त्र अध्ययन अन्य प्रशिक्षण - फैशन डिजाइनिंग टेक्सटाइल प्रिंटिंग, हैंडीक्राफ्ट ब्यूटीशियन, बेकरी प्रशिक्षण आद...
स्नेह की ज्योति
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स्नेह की ज्योति

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** प्रिये लेकर दिया यूं चले आओ तुम पिय के हिय को पावन बनाना तुम्हें। पिय के हिय से तिमिर कि छाया हटा हिय में स्नेह कि दीपक जलाना तुम्हें। यह दीपो का उत्सव अनोखा प्रिये आओ बाती सा हिय को नाजुक करें। मन में बैठे पतंगें जो द्वेशों के है। आओ मिलकर उन्हें भी भावुक करें। चक्षु दिपे जो डूबी हुई है घृत से बन बाती उजाला है करना प्रिये। इस बार दिवाली मे नये ढंग से हम दोनों को साथ है चलना प्रिये। चलो स्नेह कि ज्योति जलाते है अब तिमिर द्वेश कि छायी है सारे धरा पे। चलो पहले तो अपना ही द्वेश जलाए फिर स्नेह फैलाते है सारे धरा पे। . लेखक परिचय :-  प्रिन्शु लोकेश तिवारी पिता - श्री कमलापति तिवारी स्थान- रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
प्रेम की रचना
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प्रेम की रचना

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** मुझे हल्के में लेने से, तुम्हारा फ़ायदा ही क्या चलता रेत पर हूँ मैं, तुम्हें अन्दाज़ा है इसका क्या शराफ़त से भरी महफ़िल में, रहना शौक है मेरा वरना है दुनियां से, मुझे लेना ही देना क्या किसी के प्यार के आँसू, किसी के पाप के आँसू बहते आँसुओं से है, तुमने जान पाया क्या हमारी याद में जलकर, उसने खुद को राख कर डाला मुझको न पता था कुछ, इसमें दोष मेरा क्या हजारों की सज़ी महफ़िल में, मेरा कोई दुश्मन है न मैंने खोज पाया है, उसमें दोष उसका क्या मेरे दिल की चौखट पर, प्यार ने दस्तक दे डाली मैंने गेट न खोला, इसमें उससे बुराई क्या ... लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़ल...
नटखट बच्चा
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नटखट बच्चा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** एक नटखट बच्चा रोज मन के द्वारे आकर बैठ जाता है, यादों की किताबो को उलट पलट देता है, कुछ पन्ने फाड़ देता है, मेरी डांट से उन्हें जैसे तैसे चिपका देता है। आज तो उसने हद कर दी बाहर खेलने का बोला तो आवारा घूमता रहा शाम को लौटा तो कही से सुरमई धूप के टुकड़े, कुछ हवा के रंग धूसर, लाल, पिले, निले महकती रात की कुछ उजली किरणे, कुछ फूलो से झरे मोती, नदी के गजरे के बासी फूल चांद का गर्म दुशाला, एक बड़ी बिंदी चांदनी की चंपा चमेली की चूड़ी के टुकड़े सपनो का टूटा फूटा इत्रदान, सुबह की कान का एक बाला शाम की पायजेब का टूटा घुँघरू और न जाने क्या क्या बिन कर मन की कोठरी में ले आया है, इन चीजों से उसके लिए एक सपनो की झालर बुन दु, इसके लिए मुझ से जिद कर रहा है। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर ...
फिर से मोहब्बत का दिया जला दें
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फिर से मोहब्बत का दिया जला दें

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** आओ हम आपसी रंजिश मिटा दे। फिर से मोहब्बत का दिया जला दें।। पाक रहे हम गंगाजल की तरह से। रगों में सिर्फ अपने भारत बसा दें।। सरहदें यूँ ही कायम रहे सदियों से। सारे हिन्दुस्तान को जन्नत बना दें।। गाँधी कलाम का वतन है प्यारा ये। आओ इसे रोशन कर जगमगा दें।। मजहबी फसाद से तबाही है होती। अब इंसानियत को मजहब बना दें।। . लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०...
वजह तुम ही हो
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वजह तुम ही हो

माधुरी शुक्ला कोटा ******************** जिंदगी तू ही बता, क्यों इस कदर उदास है। तन्हाइयो में भी यूं ही कभी क्यों खुद की तालाश है। आईना जब भी देखुं कभी, खुद का अक्स नज़र आये गमों के बादल भी मुझसे छिटककर दूर चले जाएं।। एक पल को ही सही, मुस्कराने की कोई तो वजह फिर से मिल जाय फिर से तेरा साथ मिल जाये। इतनी बेरुखी सी क्यो हो क्या ख़ता हुई मुझसे, हमारे दर्मिया दूरिया क्यो, फिर से पास आजाओ तेरा साथ मिल जाये।। तन्हाइयों का हर लम्हा, चुभता है मुझे,कब कोई अपना आये ओर फिर से, मुस्कराने की वजह बन जाए।। . लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति - योगेश शुक्ला शिक्षा - एम .एस .सी.( गणित) बी .एड. कार्य - शिक्षक निवास - कोटा (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, ...
आता ही नहीं लिखना मुझे
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आता ही नहीं लिखना मुझे

********** भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) आता ही नहीं लिखना मुझे क्या लिखूँ मैं ??? शब्द सौष्ठव का नहीं ज्ञान मुझे कैसे अलंकृत करूँ अब मैं ! दर्द को एक आवाज दे लेना आता नहीं मुझको अपने मनोभाव को कैसे उकेरा जाए इसका भी भान नहीं मुझको . . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रक...
स्वप्न दीप
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स्वप्न दीप

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** दीप जला एक सपने में, वह सपना चंचल भोला था मृग नयनों ने जब पाला तो, मृदु अधरों ने भी बोला था। पंख ना तो तुम इसको रश्मि, इसे अम्बर तक अभी जाना हैं फिर संध्या हुई साँझ की रंगमयी, साँझ हुई सन्ध्या की करुणा। बना व्योम की पावन बेला, जुगनू से राह सजाना था उड़ते खग– मृग पुलकित होते, अपनी सुध– बुध में थे डूबे। स्नेह बना अम्बर से जब तो, तारों ने भी स्वीकार किया ये थी मेरी स्वप्न व्यथा जिसने उज्जवल अक्षर जीवन पाया। बिखरी थीं जो स्मृती क्षार–क्षार, तब एक दीपक ने मुझको अजर–अमर बनाया, फिर स्नेह–स्नेह हमने पहचाना। लिया संकल्प अब लौं बन जाना हैं, दीप जला एक सपने में।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करव...
गुरु वंदना
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गुरु वंदना

शंकर गोयल (छत्तीसगढ़) ******************** गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। राग द्वेष के भाव मिटाएं, प्रेम भाव सद्भाव बढ़ाएं। अंतर्मन की गहराई से, करते तुमको वंदन हैं। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। मुश्किलों में राह दिखाएं, संघर्ष पथ को सहज बनायें। दुर्व्यसन की लत छुड़वाए, भक्तों के दुख कष्ट मिटाए। चरण धूलि गुरुदेव आपकी, मेरे लिए तो चंदन हैं। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। मन की बातें किसे सुनाएं, नैया कैसे पार लगाएं। मंजिल तक कैसे पहुंचे हम, गुरुवर हमको राह बताए। अब तो मन में आपके लिए, भक्ति भाव का बंधन है। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। . लेखक परिचय :-  शंकर गोयल, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी र...
रोशनी बन जगमगाओ
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रोशनी बन जगमगाओ

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** प्यार का दीपक ज़लाओ इस अंधेरे मे, रुप का जलवा दिखाओ इस अंधेरे मे, दिलो का मिलना दिवाली का ये पैगाम, दुरिया दिल का मीटाओ इस अंधेरे मे ! अजननी है भटक न ज़ाए कही मंजिल, रास्ता उसको सुझाओ इस अंधेरे मे, ज़िन्दगी का सफर है मुश्किल इसलिए, कोई हमसफर हमदम बनाओ इस अंधेरे मे ! हाथ को न हाथ सुझे आज का ये दौर, रोशनी बन जगमगाओ इस अंधेरे मे, अंध विश्वासो के इस मन्दिर मजारो मे, सत्य की शमा ज़लाओ इस अंधेरे मे ! रोशनी बन जगमगाओ इस अंधेरे मे....! लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशि...
जामुन का वृक्ष
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जामुन का वृक्ष

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरे घर के आंगन में लगा नन्हा सा जामुन का पौधा बाल अवस्था में तेज बारिश व हवा से डर जाता था तीखी धूप में सहमा सहमा रहता था। धीरे धीरे वो किशोर हुआ कुछ अनाड़ी, अल्हड़ सा हवा के साथ नाचने लगा बारिश के साथ झूमने लगा तपते सूरज का मुंह चिढ़ाने लगा अब तो वो युवा हो कर ढिड सा घर की खिड़कियों से भीतर झांकने लगा है, अपनी शाखों से दरवाज़े पर दस्तक देता है, दरवाज़ा खोलते ही अपनी पत्तियों से गालों को छू कर मंद मंद मुस्कुराता है, अपनी पीठ पीछे रसीले फल व सुन्दर पक्षियों की भेंट छुपा कर। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हि...
जन्मभूमि
कविता

जन्मभूमि

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। माँ के गर्भ में कदम ताल से । जन्मभूमि का एहसास हुआ ।। जन्मभूमि पर कदम बढ़ाए । जननी जन्मभूमि मुस्कुराए ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। कैसे भूल जाऊ जन्मभूमि । जन्मभूमि पर पला बढ़ा ।। जन्मभूमि तुम्हें देखकर। यादें सजी सपने साकार ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। जिंदगी की भाग दौड़ में । दौड़ लगाई कर्मभूमि में ।। कर्मभूमि से पहुचे जन्मभूमि । जननी जन्मभूमि मुस्कुराए ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। इंसान भरा स्वार्थ ईर्ष्या से । अश्रु बहने लगे जन्मभूमि से ।। जब उड़ गए प्राण पंखेरू । तन मिल जाए जन्मभूमि में ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि स...
सुर्य के प्रताप से
कविता

सुर्य के प्रताप से

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** मंडप प्रभा जाल से धरा गोद बाल से कभी हथेली चूमती कभी खिले सुर्यमुखी विधाता ये अजीब सा उद्भ्ट प्राण गीत सा पथिक के पाश बँध कर कविता या छन्द कर किसी के मुख चूम कर विश्व पूर्ण घूम कर डरा नही घटा नही क्षेत्र मे बँटा नही जग हुआ महान मुग्ध आसमान सुर्य के प्रताप से तिमिर तेज ताप से . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या ...
रजस्वला
कविता

रजस्वला

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** रजस्वलाओं की सुबह अब अलग नहीं होती वे बोरा लिए कोने में अस्पृश्य सी नहीं सोतीं सुबह उठकर घर आपके बर्तन मांजने आती है या आपके छौने को स्कूल छोड़ने जाती है प्रयास पूरा करती है ना प्रवेश करे पूजाघर में दूर रहती है आरती,पूजन और प्रसाद ग्रहण से रास्ते के मंदिर के पास पांव आदतन ठिठकते हैं बस वो मौन प्रार्थना कर दूर निकल जाती है ।। मगर नहीं चाहती वो कि कोई माने बताए उसे शुचिता का कि सिखाने लगे उसे पाठ पवित्रता का क्योंकि देवी है वो अगर तो देवियां कभी नहीं होती रजस्वला रहती हैं सदा वत्सला।।   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित म...
नारी पर प्रताड़ना
कविता

नारी पर प्रताड़ना

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ कब तक सहूँगी प्रताड़ना, कभी तो पूरी करो मेरी कामना। चीख-चीखकर रो रही हूँ मै, कभी तो मान लो मेरी कहना। मत करो तुम मेरी अवमानना, नही तो बाद में प पछताना। नारी शक्ती बन कर तैयार हूँ मै, अभी कभी मत मुझसे टकराना। मत करो तुम किसी पर प्रताड़ना, दहेज के लिए बहुओं को मत जलाना। नही तो नारी चंडी बन जाएगी। फिर मुश्किल हो जाएगा तुम्हारा जीना। अब नही करना तुम किसी से प्रताड़ना, अब तो है पूरा जागरुक जमाना। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन -१७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान-हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत्र, सास्वत ...
मगहर में
कविता

मगहर में

मृत्युंजय उपाध्याय नवल सिरसिया (कुशीनगर-गोरखपुर) ******************** मगहर में कबीर की समाधि पर हमने चढाए थे फूल वहीं तुमने पढाया था मुझे ढाई आखर प्रेम का मै पढता चला गया हलाँकि मुझे पढकर कोई पण्डित नही बनना था मैं तो सिर्फ महसूस करना चाहता था प्रेम को जिना चाहता था प्रेम को आमी में झाँकते हुए मैने देखी थी मेरी परछाईं को ढकती तुम्हारी परछाईं को साखी, सबद, रमैनी भी आमी के उठते जल तरंगो पर तुमने गाया था प्रेम गीत अब तुम कहती हो ये बातें सिर्फ किताबी है सच कहती हो प्रेम तो कबीर है कबीर सिर्फ किताबो में और हम कबीर से बहुत दूर हैं। . लेखक परिचय :- नाम - मृत्युंजय उपाध्याय नवल निवासी - सिरसिया नम्बर जिला - कुशीनगर शिक्षा - एम.कॉम., एम.ए. (अर्थशास्त्र, शिक्षाशास्त्र), बी.एड.,पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (एम.जे.) सम्प्रति - आकाशवाणी उद्घोषक, आकाशवाणी गोरखपुर पत्र-पत्रिका - कथा क्रम, आजकल, ...
हम कह ना पाए
कविता

हम कह ना पाए

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लग रहा है जैसे तू मुझसे दूर जा रही है, तेरी यादें मुझमें एक डर सा जगा रही है। बीते लम्हों की बेचैनी मुझे रुला सी रही है, दिल की हर धड़कन तुझे बुला सी रही है। तेरे प्यार से यह दिल मेरा यूँ वंचित सा है, फिर क्यों तेरे लिए ही दिल चिंतित सा है। मैं समझा समझ लोगे मगर समझ ना पाए, दोष तुम्हारा क्या दूं जब हम कह ना पाए। मुझे छोड़ कर तुम ना हो पाए जमाने के, पहले ढूंढ़ तो लेते बहाने कुछ ठिकाने के।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानि...
क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी
कविता

क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** “वही जिन्दगी क्यों? कभी अनजानी कभी अनचाही कभी अनमने ढंग से वही क्यों? जीनी पड़ रही हैं जिंदगी कभी उलझनों में कभी संघर्षों में कभी अपनों के कटु वचनों के बीच क्यों ? फकतनुमा जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी हर पल की टेंशन में कल्पना की प्रवृत्ति में कभी आर्थिक क्रांति में उलझी संस्कार और कौमार्य के टकराव में क्यों ? विवशतापूर्ण जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी जायज कभी नाजायज द्वंद्व में! कभी विरुप अनुभवों के बीच तो कभी सामाजिक मुखौटों के बीच क्यों? यायावर जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं कभी तन्हाइयों में तनावों से गुजरकर स्थिर खुशनुमा जिन्दगी की तलाश में क्यों? मानसिक संघर्षों के बीच जीनी पड़ रही हैं जिंदगी क्यों? आहिस्ता आहिस्ता वहीं जिन्दगी जीनी पड़ रही हैं।.." . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी...
वीणा नाम मुझे दिया
कविता

वीणा नाम मुझे दिया

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** कितने प्यार से माँ ने, वीणा नाम मुझे दिया। शारदे ने गोद धारण कर, नाम सार्थक कर दिया।। नाम के अनुरूप ही, काम सदा मैंने किया । ना लजाया माँ गोद, नाम अनुरूप काम किया।। बन निडर, हर मुसीबत का सामना किया। धरती माँ की गोद को, सदा हरा भरा किया।। जन्नत सुख माँ की गोद मैं, सदा मैंने पाया। रुखा सुखा जो भी था, माँ के हाथ से खाया।। यही सुख पाने को, कान्हा देखो धरती आया। मचा धूम गोकुल, बहू आनंद संग ग्वाल पाया।। जन्म देवकी दिया, गोद जसोदा सुलाया। दो माँ की गोद पा, कान्हा फुला ना समाया।। कहती वीणा माँ गोद, कोई कभी न बिसराया। चहुँधाम आनंद, सब ने मांँ गोद में पाया।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
कैसे उद्गम होत कवित का
कविता

कैसे उद्गम होत कवित का

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** कैसे उद्गम होत कवित का, कैसे उमड़े उर से धारा ? कैसे बहे भाव भंवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा।। जब सब जागे सो जाते हैं, तब चुपचाप ख्वाब आता है। उमड़-घुमड़कर, डूब-डूबकर, झूम-झूमकर मन गाता है।। पागल दिल को कुछ ना सूझे अपनी धुन में नाचे गाए। कल्पनाओं के तार समेटे, तब मनआंगन कवित समाए।। सब सुख फीके पड़ जाते हैं, बजता जब तेरा इकतारा। कैसे बहे भाव भँवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा ।। तेरे आने की आहट से, मन आनंदित हो जाता है । हँसकर हृदय हाव-भाव के, बीज कलम से बो जाता है।। कलम पकड़ बैठा हो जाता, छोड़ नींद अक्सर रातों में। करे सुबह स्वागत सूरज, बीते रात बातों-बातों में ।। रोम-रोम में रमे रोशनी, मिट जाता मन का अंधियारा। कैसे बहे भाव भँवर बन, अधर भेद सब खोलें सारा ।। कलम कदम से चित पे चढ़के, मन की बात जुबां पे लाए। कहीं ज्ञान की गंग...