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कविता

नूतन वर्ष
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नूतन वर्ष

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जीवन है अनमोल मूल्यवान और अनमोल नेकविचार बनाये भेदभाव को दूर भगाएं समाज, देश कल्याण में बेजिझक मिलकर सब आगे आएं, वर्षभर के दिन, महीने और साल लौटकर वापस अब नहीं आयेंगे नववर्ष में आपस में वापस फिर हम मिलते चले जायेंगे करने को है बहुत कुछ समाज, देश जाति के प्रगति के काज जीवन सुख-दुख का सागर है सद्भाव और सुविचारों से अनमोल स्वच्छ विचार बनाएं सबको उठाएं सबको जगाएं सबको मिलकर बढ़ाये समस्त जनों की खातिर मंगल कल्याण का गीत एकसुर में मिलकर गाये निःस्वार्थ सेवाभावना से निर्धन ग़रीबों असहाय के हम मिलकर मददगार क्यों न सभी बन जाएं, इस महत सेवा के रास्ते में भरा है अनन्त असीम प्रेमप्रीतप्यार स्नेहता का खोलता है यह आपस में द्वार यही दीप मिलकर जलाएं सद्धविचार लाएं भेदभाव दूर भगाएं जीवन को भयमुक्त बनाएं नए सा...
मधु मोह कल्पना नश्वर है
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मधु मोह कल्पना नश्वर है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मैंने सोचा कल्पान्तर में तेरा- मेरा प्यार अमर है। तुमने जीवन में समझाया; 'मधु-मोह-कल्पना नश्वर है'।। ‌अद्भुत अनन्त आश्चर्य भरी जब प्रथम बार सम्मुख आई। मन ने चाहा बस तुम कह दो; 'हे प्राण! तुम्ही हो सुखदाई। मम-आत्मरूप, आरंभ-शुभम् जीवन की तुम अभिलाषा। तुम हो प्रेम-प्रणय का अम्बर; मैं धरा-लोक की परिभाषा।' कुछ दिन तो सब सच लगा मुझे: 'ना हम-तुममें कुछ अन्तर हैं।' तुमने जीवन में समझाया; 'मधु-मोह कल्पना नश्वर है'।। निषिद्ध किया ना तूने कभी; जो कुछ भी ईच्छा थी मेरी। रूप- रंजना अभिसारों में; हे समवय! सम- ईप्सा तेरी। प्रियं दर्शिनी, प्रियं भाषिणी गौर-वदन, नयना सुखकारी। तृप्ति-अमरता-आलिंगन-की; भू-लोक-विस्मृता आभा री! चन्द-वर्ष सब ऐसे बीता जैसे, 'बरसे पावस ईसर है'। तुमने जीवन में समझाया; 'मधु-मोह-कल्प...
नव वर्ष तुम आओ
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नव वर्ष तुम आओ

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है खुशियों को लाओ स्वागत तुम्हारा है। हर कद़म पर चुनौती और सबसे लड़ना है सबको साथ लेकर आगे भी बढ़ना है हमें हिम्मत बंधाओ स्वागत तुम्हारा है नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है। सबको मिले काम न रहे हाथ खाली न भूख न ग़रीब़ी न रहे तंगहाली सुख समृद्धि पहुंचाओ स्वागत तुम्हारा है नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है। है अब भी अंधेरा बस्ती में गलियों में उदासी छाई है हर मुरझाई कलियों में इनमें मुस्कुराहट लाओ स्वागत तुम्हारा है नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है। दुश्मनों से यह देश अपना घिरा है कोई है पागल तो कोई सिरफिरा है हमें इनसे बचाओ स्वागत तुम्हारा है नव वर्ष तुम आओ स्वागत तुम्हारा है। हिम्मत से फिर भी हम काम ले रहे हैं एकदूसरे का हाथ हम थाम ले रहे हैं देश को संपन...
इन्तजार
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इन्तजार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** राम नाम ही आधार, राम के मिलन का, राम ही तपस्या थी... शबरी के इंतजार का। भाव ही तो राम था, प्रबल भाव राम था, भाव ही तो भक्ति थी.... राम से अनुराग था। बैर मैं ही भेद था , जो राम से मिलान का, बैर ही बहाना था... राम से मिलान का। और सब बहाना था, बहाना भी मिलान का, शबरी के इन्तजार का... बस राम ही इन्तजार था। जीवन मै राम नाम का, इन्तजार ही तो राम था, इन्तजार जब खत्म हुआ...., दर्शन हुआ राम का। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना ...
जीवांत जीवन
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जीवांत जीवन

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बढो़गे जीवन में तो उड़ते रहोगे जीवांत पक्षी की तरह नहीं तो टूट कर बिखर जाओगे किसी शाख के मुझराये पत्ते की तरह। जीवांत हो तो जीना पड़ेगा सूर्य चांद की तरह नहीं तो पड़े रहोगे शमशान की जली बुझी हुई राख की तरह। जीवांत हो तो महकते रहोगे किसी सुगंधित फूलों की तरह नही तो मुरझा जाओगे किसी टूटे बिखरे फूल की तरह। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते...
तीज त्यौहार
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तीज त्यौहार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आ जाए जैसे तीज त्यौहार बढ़ जाये वाणिज्य व्यापार खरीद बिक्री बढ़ती जाए रहता कोई न बेरोजगार बढ़कर फैले कारोबार आर्थिक लेन देन धुंआधार कोई न रहता लाचार बढ़ती कमाई बढ़ता व्यापार जब आता है तीज त्यौहार कोई भलाई सेवा करता चार कोई जमकर करता व्यापार कोई चाहता मनाये सपरिवार सबको बुलाये मनाये त्यौहार कोई चाहता न रहे दीन दुखी फैले उनके घर खुशी हजार सेवा में उनकी होते तैयार मनाते उनके तीज त्यौहार कोई रद्दी चुनकर लाये कोई रद्दी समझ फिंकवाये कोई रद्दी से रोजगार बढ़ाये कोई उसी से खुशी मनाये कोई घर पर नए दीये लाये कोई पुराने कलात्मक बनाये बुद्धि वृद्वि करते तीज त्यौहार कलाकार वस्तएं बनाये कोई उसका आनंद उठाए दीपावली ऐसा है त्यौहार मनभावन बढ़ती साफ सफाई दीपोत्सव का है पावन त्यौहार बच्चों को रौशनी में होता प्यार ...
चपल चाँदनी
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चपल चाँदनी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम चंदा में चपल चाँदनी, रूप मनोहर प्यारा है। मधुर कल्पना प्रिय जीवन की, कंचन बदन निखारा है।। साँझ सलौना रूप निहारूँ, मन का भौंरा बौराता। काम देव सा रूप तुम्हारा, निरख-निरख मन मुस्काता ।। मधुशाला सी झूम रही मैं, तेरा सजन सहारा है। खिले फूल तन -मन में साजन, कजरा तुम्हें बुलाता है। पढ़ लो प्रियतम मन की भाषा, कंगन शोर मचाता है।। कटि करधनिया कहती साजन, मैंने तुम्हें पुकारा है। देख मिलन की मधुर यामिनी, अंग-अंग गदराया है। अधर रसीले राह देखते, प्रियतम क्यों शरमाया है।। सात जनम का बंधन अपना, कहता हिय-इकतारा है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. ...
महानायक बाबा साहब
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महानायक बाबा साहब

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बाबा साहब ने लिखा विश्व का सबसे बड़ा संविधान मानवता का अधिकार दिया सबको एक समान। अपनी कलम से सदियों तक अमिट इतिहास लिखा संविधान बनाते वक्त दूरदर्शिता का भी ध्यान रखा। क्या होती है कलम की ताकत दुनिया को दिखाया जाति-भेदभाव, छुआछूत को पलभर में मिटाया। जब बाबा साहब ने हक-अधिकार का कानून बनाया तब जाकर देश के गरीबों व मजदूरों को सूकुन आया। सदियों से दलितों को पढ़ने-लिखने का अधिकार न था आरक्षण दिया बाबा साहब ने इसके बिना उद्धार न था। मानवता की रक्षा के लिए धार्मिक राष्ट्र बनने न दिया बाबा साहब ने धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र का प्रस्ताव दिया। भारत को विश्व में सबसे ऊंचा, सबसे प्यारा महान बनाया विविधता से भरी देश में सबके हित के लिए विधान बनाया। किसानों को जंमीदारो के शोषण, अत्याचार से मुक्ति दिलाया ...
तो मत पूजो कन्या
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तो मत पूजो कन्या

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हम उस देश के बाशिंदे हैं जहां औरतों को देवी कहा जाता है, पर उन्हीं औरतों द्वारा इसी देश में सबसे ज्यादा अत्याचार सहा जाता है, घर में, परिवार में, समाज में, कार्यक्षेत्र में, हर जगह उनका शोषण किया जाता है, उनकी विश्वनीयता का बार-बार परीक्षण लिया जाता है, मनहूसियत का तमगा, हर बात पर ताना, साथ में दोगलापन इतना आराध्य मान गा रहे गाना, दहेज के नाम पर जहर, क्या गांव क्या शहर, सिर्फ कहर हो कहर, ऊपर से कन्या पूजन का ढोंग, छेड़छाड़, बलात्कार का दंश, क्षण क्षण सम्मान का विध्वंस, समाज किधर जा रहा, पुरूषत्व सोच तड़पा रहा, ये सब सहकर भी दे रही सुकून, मां के रूप में, पत्नि के रूप में, बेटी के रूप में, थेथरई लिए हुए हम इतने स्वार्थी क्यों? मूढ़ों कल्पना क्यों नहीं करते उनके बिना अपने होने का, गर यही है मं...
रिश्तों की परछाइयाँ…
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रिश्तों की परछाइयाँ…

शुभांगी चौहान लातूर (महाराष्ट्र) ******************** होती हैं ओस की बूंदों सी कभी नजर आती तो कभी ओझल सी रिश्तों की परछाइयाँ देखता हूँ मैं रोज एक दीपक जलता हुआ उस अनाथालय मे और अनायास ही खींचा चला जाता हूँ उस अनाथालय की ओर पुछा मैने उस अनाथ से सवाल क्यों जलाते हो यह दीपक यहाँ क्या देता हैं यह अनाथालय तुम्हें जवाब दिया उसने बुझी सी और बहुत ही धीमी आवाज में बोला साहब...! नही देखी मैने कभी माँ की गोद और पिता का साया इस पाषाण ह्रदय दुनियाँ ने भी कब अपनाया तब इसी निस्वार्थ प्रेम स्वरूपी अनाथालय ने ही मुझे पाला हैं हवा, बारिश तुफान से हमे बचाया हैं इसी ने दिखाया हैं माँ का रूप और पिता का स्वरूप भाई-बहनों सा दूलारा हैं इसी ने और मित्र का भरपूर प्रेम भी दिया हैं इसी अनाथालय ने जब बाहर की बनावटी, आभासी और झूठी दुनियाँ से थक जाता हैं हर सच्चा मन त...
नववर्ष
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नववर्ष

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अंतिम सप्ताह दिसंबर का एक जनवरी को यों तांक रहा विजय पताका सा व्यक्तित्व ज्यों झांक रहा अपने शैशव को, अपने यौवन की तरुणाई को खेल लड़कपन के, स्वप्न किशोरावस्था के चुनाव, तनाव, भटकाव जीवन के पतझड़ के पत्तों का झरण नव पल्लव का आगमन करते चलते लो आ गया अंतिम चरण शिथिल तन किंतु सुस्मित मन अब मुझको भी जाना है मेरे जीवन की अमराई को मेरी संतति को दोहराना है हर वर्ष ने स्वयं को दोहराया है नवजात शिशु की नन्ही चितवन सा जगमग करता मुस्काता सा नया वर्ष फिर आया है। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजरात...
दर्द का अहसास
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दर्द का अहसास

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सामान्य लड़की सभी लड़कियों से खास है जीवन दुभर पर जीने की बेशुमार आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उसकी मानसिकता लड़कियों से भी भिन्न है उसकी सोच माँ के गम से सर्वथा अभिन्न है जिसे माँ के अंदर करनी बाप की तलाश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उमड़ आते है आँख मे गम के आंसू अक्सर सोचती है क्या आयेगी खुशीयों के अवसर कितने गम है फिर भी नवजीवन की आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है अजीब-2 से सवाल उसके जेहन मे उठती है जवाब के तलाश मे खुद से भी तो रूठती है जवाब मिलने का उसे अब भी एक आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सब कुछ होकर कुछ भी तो नहीं होता है? ऐसा इत्तेफाक दुनिया मे क्योंकर होता है? तब से मुझे भी उसके उत्तर की तलाश है एक लड़की जिसे...
परिवार
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परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का ताना-बाना। चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मेला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना। मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत। जीने की जिजीविषा, यहां संघर्षों का रेला। सीख कसौटी, मीठी घुड़की, आंगन में मिलती। जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार। बहन- भाई का रिश्ता, मणियों की मीठी माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन। संबंधों में नैतिकता, परिवार पुनीत यज्ञ शाला। दादा - दादी की सीख, नाना - नानी की परवाह। चाचा-चाची, ताऊ-ताई, यूं रिश्तों की चित्रशाला। वैभवी गीता का ...
फिर भी चलते ही जाना है
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फिर भी चलते ही जाना है

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** संघर्षों की अमित कहानी जीवन की सच्चाई है पीड़ा और तंग हाली में भी जिंदगी ने खुशियां पाई है। कष्टों की परिभाषा क्या सोचो और विचार करो कठिन डगर पर भी तुम थोड़ा सुकून तलाश करो कितनों का घर तो देखो खुला आसमान बसेरा है सुख दुःख की क्या बात करें जीवन में कष्ट घनेरा है। फिर भी चलते ही जाना नियति है यह कुदरत की रुको नहीं तुम कर्म करो बदलो रेखा किस्मत की। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
गड्ढे की छलांग (ताटंक)
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गड्ढे की छलांग (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। साहस मेहनत छलांग धरो, अपनी क्षमता बढ़ जाती। बुरा दूसरों का किए बिना, लक्ष्य भेदना सिखलाती। अनुभव बिन उद्योग संचालन, नई राह में लीन हुए। अब शोख शर्मीला बच्चा कहे, दुनियादारी जीत गए। गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। गड्ढा खोदने में जो तल्लीन, उनके पास समय कम हो। बाधक बनने में खो देते, जो संस्कार जरूरी हो। उनके घर की कलह कहानी, यत्र-तत्र गम गीत नए। बचपन से रहे कलंक ग्रस्त, अब ज्यादा ही दीन हुए। गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। स्पर्धा कारोबार के स्वामी, भाग्य से बहुत कमाते। हमने सुने कुछ ऐसे बोल, वो सोना चना...
हम नेताओं पर छोड़ दो
कविता

हम नेताओं पर छोड़ दो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पहले तो बुदबुदाया, फिर नेताजी जोर से चिल्लाया, क्या जमाना आ गया दुनिया बन रही बुरे कर्मों की दीवानी, बढ़ रही है देखो मनमानी, मन से मनमानी तोड़ दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। हर विभाग वाले कर रहे भ्रष्टाचार, काम वे जिससे है आम जनता को सरोकार, युवा बैठे हैं बेकार, आह्वान है नई पीढ़ी से भ्रष्टता की दिशा मोड़ दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। गरीबी ऐसी कि नारी देह बेच रही, ऊंचे पद वाले गरीब देश की खुफिया जानकारी खेंच रहे, कुछ देश ही बेच रहे, भाइयों वतन बचाने पर जोर दो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। भारत के नेता किससे कमजोर है, हमारे मस्तिष्क का होता बहुत जोर है, भले ही हम नहीं सुधर सकते हैं, पर हम कुछ भी कर सकते हैं, हमारा समर्थन चहुंओर पुरजोर हो, कुछ काम हम नेताओं पर छोड़ दो। परिचय :...
मन नहीं करता
कविता

मन नहीं करता

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तमाशबीन इस जग में जीने का मन नहीं करता गड्ढे में सड़कें हैं चलने का मन न ही करता नक्शों में सड़कें दिख तो जातीं हैं उन्हें पगडंडी कहने का मन नहीं करता पेड़ों पर शाखें हैं जमीन में जड़ें हैं फूल तो दूर पत्तों को देखने का मन न ही होता। नदियों में पानी नहीं, धरतीं को छेद रहे पर धरती का सानी नहीं चुल्लू भर पानी में डूब मरने का मन करता। बड़ों के ठाट वही छोटो की बात वहीं। भूखे नगौ की बात कहां श्मशान में कफ़न जलाने का मन नहीं करता परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पी...
चाय
कविता

चाय

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चाय तो है अमृत का प्याला, ठंडी में जीवन का सहारा, भली कहो चाहे बुरी कहो, पर चाय से बनता हर कोई प्यारा, चाय के बिना आतिथ्य नहीं, अतिथि का सत्कार नहीं, चाय के बिना फीका सम्मान, चाय से सब सुस्ती मिटती, गरीबों को फुर्ती है मिलती, चाय के बिना जीवन बेकार, चाय के बिना आलस नहीं जाता, जीवन में सुस्ती है लाता, "किरण" को तो चाय से प्यार, पर स्वास्थ्य के लिए यह हे नुकसान। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंड...
बेटी
कविता

बेटी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बेटी होती विदा मन परेशान है घर होगा तेरे बिन सूना आँखे आज हैरान है। दिल का टुकड़ा छूटा आँगन बेजान है कोई आवाज आती नहीं दस्तक बेजान है। तेरे बिना बहते नयन मन अब उदास है पायल की आवाज आती नहीं अंगना भी उदास है परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज...
वल्लभभाई पटेल
कविता

वल्लभभाई पटेल

अभिषेक शुक्ला सीतापुर (उत्तर प्रदेश) ******************** 'सिंह सा गर्जन और हृदय मे कोमल भाव रखते थे, वल्लभभाई पटेल जी से तो सारे दुश्मन डरते थे। बारदौली सत्याग्रह का सफल नेतृत्व आपने किया, 'सरदार' की उपाधि वहाँ की जनता ने आपको दिया। एकता को वास्तविक स्वरूप भी आपने ही दे डाला, रियासतों का एकीकरण भी पल भर मे कर डाला। प्रयास से आपने सारी समस्याओं को हल कर दिया, सबने आपको भारत का 'लौह पुरुष' था मान लिया। देश का मानचित्र विश्व पटल पर बदल कर रख दिया, लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने कमाल कर दिया। ३१ अक्टूबर को हम सब भारतवासी 'राष्ट्रीय एकता दिवस' मनाते है, आपकी याद मे हम 'स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी' पर श्रद्धा सुमन चढ़ाते है।' परिचय : अभिषेक शुक्ला निवासी : सीतापुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित ए...
मतलबी दुनिया
कविता

मतलबी दुनिया

सुरभि शुक्ला इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** किसी को अपना मत समझ यहाॅं सब मतलब के साथी है कब तुझे गिरा कर आगे बढ़ जाऍं सारे जलाने वाले हाथ है यहाॅं होश में होकर भी बेहोश सारे यहाॅं ख़ुद को बचाने में मशगूल है तेरा रास्ता बंद कर कब मंज़िल में खड़े हो जाऍं सब अपना रास्ता बनाने में लगे है यहाॅं सब जुगाड़ू है यहाॅं हाथ सेंक कर तमाशा देखने वाले हज़ारों हैं यहाॅं तेरी ऑंख खुलेगी जब यहाॅं तो तू किनारे पड़ा होगा किसी और का महल खड़ा होगा यहाॅं बहुत हमदर्द है यहाॅं पीछे मुड़ा की तेरा राज़ खोलने वाले खड़े है यहाॅं मीठा बोल कर तूझे अपना बनाएंगे यहाॅं फिर तेरे पीछे तेरी ही हॅंसी उड़ाएंगे यहाॅं।। परिचय :-   सुरभि शुक्ला शिक्षा : एम.ए चित्रकला बी.लाइ. (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) जन्म स्थान : कानपुर (उत्तर प्रदेश) रूचि : ...
तुझसे आस लगाएं बैठी हूँ
कविता

तुझसे आस लगाएं बैठी हूँ

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं, तु आए तो, मैं अपना मन हल्का कर डालूं, कुछ अपने मन की, तो कुछ तेरे मन की, बात मैं कर डालूं, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं । तु तो चंचल मन की हठ वाली है, आधी राह से फिर मुड़ जाती है, मैं राही तेरी आस में वही रुक जाती हूँ, तुम मुझसे मिलने आओगी ना, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं , तु आए तो, मैं अपना मन हल्का कर डालूं। सारे जग में, मैं तेरी ही बात करती हूँ, फिर भी तुम मुझसे खफा हो जाती हो, मैं तुम्हें पूर्ण करना चाहूँ, तब तुम अधूरी सी रहती हो, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं। तुम अपनी मनमानी करती हो, मेरा मन जब अशांत हो, तो तुम अपनी हलचल करती हो, मुझसे अपने आप को, पूरा तुम करवाती हो, फिर मेरी पूर्ण कविता बन जाती हो, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं । परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए....
ऐ वीर जवान
कविता

ऐ वीर जवान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** ऐे सैनिक ! फौज़ी, जवान, है तेरा नितअभिनंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। गर्मी, जाड़े, बारिश में भी, तू सच्चा सेनानी अपनी माटी की रक्षा को, तेरी अमर जवानी तेरी देशभक्ति लखकर के, माथे तेरे चंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। आँधी-तूफाँ खाते हैं भय, हरदम माथ झुकाते रिपु तो तुझको देख सिहरता, घुसपैठी थर्राते सीमाओं के प्रहरी तू तो, वीर शिवा का नंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। तू सीमा पर डँटा हुआ पर, हम त्यौहार मनाते तू जगता, मौसम से लड़ता, हम नींदों में जाते तेरे कारण खुशहाली है, किंचित भी ना क्रंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर, तेरा है अभिवंदन।। मात-पिता, बहना-भाई सब, तेरे भी हैं नाते तू पति है, तो पुत्र भी चोखा, तुझको सभी सुहाते पर अपने इस मुल्क़ की ख़ातिर, छोड़े तू सब...
कश्मकश आम इन्सान की
कविता

कश्मकश आम इन्सान की

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* न जानवर हूँ न हैवान हूँ दुख है मैं इन्सान हूँ अर्थ बदल गया ईमान जल गया मैं पत्थर नही हूँ. इसलिए ठोकर खाता हूँ दिल है.. इसलिए टूट जाता हूँ. मैं सच बोलता हूँ तो साथ छोड़ता है इन्साफ वक्त का पाबंद हूँ मगर उपलब्धी का हकदार नही. कर्तव्य में विश्वास है मगर प्रशंसा का अधिकार नही दिखावे से जलता हूँ इज्ज़त पे मरता हूँ धोखे का भय है दोस्ती से डरता हूँ गली में टहलता हूँ हर दरवाजा़ आज बन्द है मतलब के लोग हैं इस बात का रंज है. दुख का साथी नही सुख का ढोल है बेटे का बाप से भाई का भाई से दौलत का खेल है बाप के मरनें तक रिश्तों में मेल है सच पे जी सकता नही झूठ सह सकता नही न ढल सका मैं कभी इसका मुझको खेद है बदल गया हर चीज़ क्यों इसमें कोई भेद है हर लोग आज़ हैवान हैं गम तो है इस ...
कुर्सी का खेल
कविता

कुर्सी का खेल

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जमीन पर बैठने वाले मानव, चटाई पर बैठने लगे हैं आज। छोटी सी तिपाई पर बैठने वाले, कुर्सी पर बैठे कर रहे हैं राज।। राजा जनता, प्रजा बन गयी, आज सेवक बन गया राजा। प्रजा तरस रही दाने-दाने को, राजा खा रहा पेट भर खाजा।। लोभ का लॉलीपॉप दिखाया है, स्वाद मीठा है या फिर नमकीन। सभी दौड़ रहे उनके पीछे-पीछे, कसमों, वादों पर करके यकीन।। देखते हैं नये सूरज की रोशनी, अंधेरा होगा या फैलेगा प्रकाश। वंचितों को मिलेगा उनका हक, जीत पाता है लोगों का विश्वास।। पहिए की कुर्सी घूमेगी किस ओर, कब तक सही पटरी पर चलेगी रेल। किसको मिलेगा कितना फायदा, कुर्सीधारी खेलेंगे कुर्सी का खेल।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग स...