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कविता

प्रकृति की देन
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प्रकृति की देन

संजय जैन मुंबई ******************** नदिया न पिये, कभी अपना जल। वृक्ष न खाए, कभी अपना फल। सभी को देते रहते, सदा ही वो फल और जल। नदिया न पिये कभी...।। न वो देखे जात पात, और न देखे छोटा बड़ा। न करते वो भेद भाव, और न देखे अमीरी गरीबी। सदा ही रखते समान भाव, और करते सब पर उपकार। नदिया पिये कभी.....।। निरंतर बहती रहती, चारो दिशाओं में नदियां। हर मौसम के फल देते, वृक्ष हमें सदा यहां। तभी तो प्रकृति की देन कहते, हम सब लोग उन्हें सदा। नदिया न पिये कभी...।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का ज...
अपनापन
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अपनापन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अपनापन कितना कटु सत्य है, शायद हम सभी मानते हैं। मानवीयता की कसौटी पर, इससे तौल सकते हैं। जब हम जीवन की प्रतियोगी बन, सफली भूत होते हैं, तो यह अपनापन कितना मनभावन लगता है। क्या सही मायने में हम, इसे अपनापन कहते हैं। जब मजबूरी के क्षण में, यह अपनापन टूटने लगता है। तो वास्तविकता के सही मायने, सामने आने लगता है। क्या इस कटु सत्य को, अपनापन सही मायने में कहते हैं। जो हर एक क्षण सांत्वना देता हो, विपत्तियों के छन में भी, दिल को चूम लेता हो। नए उत्साह और स्फूर्ति, फिर से भर देता हो। सही मायने में इसे, हम अपनापन कहते हैं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते...
काश अगर मैं पंछी होता
कविता

काश अगर मैं पंछी होता

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** खुला आसमां मेरा होता, सुखमय रैन बसेरा होता । चूमें ऊँचे पेड़ गगन को, शाखाओं पर डेरा होता ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... मनमौजी बन मन की करता, तजकर दिल से रंज व रंजिश। न कोई होती हद व सरहद, न कोई बाधा, बंधन, बंदिश ।। काश ! अगर मैं पंछी होता है..... प्रकृति की गोद में खेलूँ, लूँ मनोहर , मोहक नजारा । आकर्षक आवाज लुभानी, सुंदरता का करूँ इशारा ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... पनपे नहीं प्रेम से पीड़ा, लेकर देश, धर्म, जाति को । एक जैसा सबको चाहता, जितना संबंधी, नाती को ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... बस मेहनत बलबूता होता, लगाम कभी न लगे लगन पे । उड़ता पंखों को फैलाकर, राज करूँ मैं नील गगन पर ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... चिंता मुक्त चेतना चित में, उर आजाद करे नभ विचरण । हिला-हिलाकर पंख बुलाता, मुक्त प्यार का करता वितरण।। ...
मेरे सोये प्राण जगाये
कविता

मेरे सोये प्राण जगाये

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मेरे इन अधरों ने, फिर से, गीत प्रीत के गाये। किसने आकर फिर से मेरे सोये प्राण जगायें। मुझे याद हैं सदियों पहले, जब मैं गाता गीत था, क्योंकि मेरे साथ जगत में मन भावन सा मीत था। मेरे सांसो की वीणा को, जिसनें सदा सम्हाला, केवल उसके कारण स्वर में जादू सा संगीत था। मेरे इन नयनों में फिर से, ज्योति किरण मुस्काये, किसने आकर फिर से मेरे बुझते दीप जलायें। चलते चलते बीच राह में जब भी थक्कर हारा, मिली प्रेरणा चलने की, बस उसने मुझे पुकारा। पथ में मुझको मिले फूल, शूल अंगारे, लेकिन उसके गीतों ने दे, सम्बल मुझे दुलारा। मेरे पथ में चीर तिमिर को अब उजियारे छायें, किसने आकर फिर से नभ में अनगित चाँद सजाये। किसने आकर फिर से मेरे सोये प्राण जगायें। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु...
चंदा को धरती पर लाऊँ
कविता

चंदा को धरती पर लाऊँ

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कभी दिल करे आसमां के पंछी के संग दौड़ लगाऊँ कभी गर्मी मे मटके मे घुस कर मै भी ठंढ़ा हो जाऊँ तारों के संग मै जी भर आँख मिचौली खेलूँ कभी सूरज के ऊपर चढ़ कर चादर ओढ़ कुछ देर सो लूँ कभी दिल करे तितली के पीठ पर बैठ कर आसमान की सैर लगाऊँ कभी हाँथी को चुटकी मे ले कर मै भी उससे आँख लड़ाऊँ कभी दिल करे दोस्तो के संग मै नदी के ऊपर करुँ पढ़ाई चार मंजिले इमारत पर भी मै बिन सीढ़ी करुँ चढ़ाई कभी दिल करे टेलीविजन मे घुस कर सारे चाकलेट मै ही खा लूँ कभी रेडियो मे घुस कर मै बन्दर मामा गाना गा लूँ कभी दिल करे गर्मी की छुट्टियों मे चंदा मामा के घर उड़ कर जाऊँ मम्मी पापा से मिलवाने चंदा मामा को धरती पर लाऊँ . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
पिंजरा
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पिंजरा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** प्यार का सोने का पिंजरा, पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का, उसमें रहते हम और तुम, खाते पीते मस्ती करते, जीवन का सुख हर पल पाते, पर पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का! संगीत है जो जीवन में, तुम में गुण है कमाने का, हम में प्यार लुटाने का, दोनों की चाहत बढ़ाने का, पर पिंजरा तो एक पिंजरा है, वो हो बेशक सोने का, खुले आसमान में उड़ना है, चांद तारों से बात करना है, कदम से कदम मिलाना है, तेरा हमसफर बन जीना है, पर पिंजरे में नहीं रहना है, तुझे पसंद हो ना हो, अब तो बाहर आना है, पिंजरा तो एक पिंजरा है, वह हो बेशक सोने का!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहान...
सर्दी की बात
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सर्दी की बात

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** कट-कट-कट-कट बज़ते दाँत करने न देते हैं बात ये तो है भाई सर्दी की बात अब तो हैं सर्दी के राज़ इनसे लड़ने की न करना बात कहीं मचा न दे ये उत्पात कहीं कोहरा का है बवाल कहीं है जनजीवन बेहाल गाँव-शहर के गलियारों में चलती बस सर्दी की बात ऊनी और मखमली कपड़े देते हैं सर्दी को दाद भैया ये तो है सर्दी की बात . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिच...
मोहब्बत
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मोहब्बत

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किताबों से आती ख़ुशबू वही.... पन्नों को रखा था यूँ मोड़कर। कुछ गुलाबों की कलियाँ अधूरी नज़्म, उन्हें देखिये तुम फ़िर जोड़कर। चाँदनी चाँद की न फ़ीकी पड़े, चमक मोतियों की सलामत रहे। एहसास केवल रहे प्यार का, दिल में न कोई अदाबत रहे। जिस मोड़ पर हम मिले थे कभी, याद करके सफ़र सुहाना हुआ। आया ताज़ी हवा का झोंका कोई, ऐसा लगा दिल दिवाना हुआ। आओ चमन में चलें टहलने .... फूल खिलकर गुलाबी गुलाबी हुये। बोलिये न किंचित इक़ शब्द भी, मन के बादल घुमड़ कर शराबी हुये।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध...
आधुनिकता निगल गई
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आधुनिकता निगल गई

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** इशारों की रंगत खो क्यूँ गई चूड़ियों की खनक और खांसी के इशारे को शायद मोबाईल खा गया घूँघट की ओट से निहारना ठंडी हवाओं से उड़ न जाए कपडा दाँतों में दबाना काजल का आँखियों में लगाना क्यूँ छूटता जा रहा व्यर्थ की भागदौड़ में श्रृंगार में गजरें, वेणी रास्ता भूले बालों का प्रिय का सीधा नाम बोलने की बातें कुछ खाने पीने के लिए बच्चों के हाथ भेजना साड़ी-उपहार छुपाकर देने की आदते ऑन लाइन शॉपिंग निगल गई हमारे पुराने ख्यालात में प्रेम मनुहार छुपा था नए ख्यालातों को दिखावा निगल गया बैठ कर खाने, पार्को में पिकनिक मनाने के समय को शायद इलेक्ट्रानिक बाजार निगल गया इंसान तो है मगर समय बदल गया या तो समय के साथ हम बदल गए सुख चैन अब कौन सी दुकान पर मिलता हमे जरा बताओं तो सही दिखावा और बेवजह की मृगतृष्णा सी दौड़ में हमारी आँखों से आंसू भाप बनकर चेहरे पर मुस्कान...
जल पर कलम
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जल पर कलम

अलका जैन (इंदौर) ******************** प्यास बुझाने को व्याकुल सावन की बुंदे समंदर में जज्बा कहा प्यास बुझाने का यार रिश्तेदारो बुंदे बुंदे बारिश की बूंदों बूंदों को बदोलत जीवन की सोगात पाई हमने ज़मीं पर जल जीवन लिया यार रिश्तेदारो आस्मां के बुलावे पर जब जब श्वेत वस्त्र धारण कर उपर पहुची दुनिया पूकार उठी बादल बादल याद सताने लगी यार की बुंदों को मशाल जला तब देखा बुंदों ने निचे चोंच खोल पक्षी तलाश रहे बुंदों को पशू भटक रहे बुंदों की खोज में और जब देखा बूंदों ने हाय किसान अपने आश्को से खेत सींचने का असफल प्रयास करते हुए रोते छोड़ साथ आसमान का दोडी भागी धरा पर आ पहुंची बुंदे बुन्दे बुंदे सावन की बुंदे बरसी समंदर बनो ना बनो यार दोस्तों आपकी मर्जी या आपकी किस्मत बुंद बनना मत बिसार देना अपने परायो की प्यास बुझाना यार अंजुली में भर कर जब बुंदे मारी सजनी पर साजन ने अमर प्रेम की तब उपजी बहुतेरी जमा...
अश्रु क्यों बहा रहे हो …
कविता

अश्रु क्यों बहा रहे हो …

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** होटलों में मस्त खाना खा रहे हो। नाच रहे फूहड़, कुछ भी गा रहे हो ।।... आज कुपोषण से गृसित है बालपन, तुम सुरा में मस्त डूबे जा रहे हो।।... अबोध बच्चों से कराते काम हो, हाय, ऐसा जुल्म क्यों तुम ढा रहे हो।।.. नग्न होकर नाचना, ताली बजाना, कौनसा, कैसा जमाना ला रहे हो।।.. तुम गरीबों के वसन को नोचकर, कुबेर का सारा खजाना पा रहे हो।।... दीन दुखियों के आंसू रूक पोंछ दे, अनंत सुख पाने में क्यों शरमा रहे हो।।.. कृष्ण बनना है तो प्रेम को सीख लो, कंस के नाम अश्रु क्यों बहा रहे हो।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता र...
मही हो स्वर्ग सी मेरी
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मही हो स्वर्ग सी मेरी

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** मही हो स्वर्ग सी मेरी, यही बस कामना दिल मे महक बिखरे सदा यू ही, यही बस भावना दिल मे। लडी मोती की न टूटे, यही बस है मेरी ख्वाहिश न जीते न कोई हारे, प्यार ही प्यार हो जग मे।। उत्तर में हिमालयसे, समन्दर तक ये बोलेगा सुनो ऐ दुनिया वालों तुम, तेरे आखों को खोलेगा। राज्य हो राम के जैसा, नहीं हो दीन अब कोई धरा का जर्रा जर्रा फिर, वसुधैव कुटुम्बकम बोलेगा।। नहीं हो फिर कोई हिटलर, नहीं मूसोलिनी जैसा जगत के मूल में न हो, कभी रुपया और पैसा। मिले दिल एक दूजे से, न हो कोई गिला शिकवा बनाये आओ मिलकर के, हमारा विश्व एक ऐसा।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाश...
नसीब अपना –अपना
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नसीब अपना –अपना

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** नसीब अपना हो या अपनों का कभी एक सा नहीं होता कभी किसी कि ख्वाइशें पूरी होती हैं तो कभी बस जरूरतें किसी के हसरतों में बच्चों की किलकारियां होती हैं तो किसी के आँखों में बच्चों के लिए अश्रु वह अश्रु दुःख, सुख के नहीं बल्कि बच्चों के दो जून की रोटी के लिए होते हैं किसी के सपनों की हकीकत में मखमली सेज होती हैं तो किसी के समूचे जीवन की हकीकत नीले आसमां की चादर होती हैं कोई आधुनिकता में फटे कपड़े पहनता हैं तो कोई अपनी गरीबी में कोई शानों-शौंकत में हरी घास की चप्पल पहनता हैं तो कोई नियति मान हरें पत्तों से तन को ढकता हैं ये नसीब आया उस दिन जीवन में, जिस दिन पैदा हुए सभी उससे पहले भी एक से थे दिखतें भी एक से थे ख्वाइशें भी एक सी थी मां का गर्भ भी एक सा था पैदा होते ही बदल गए नसीब अपना–अपना लें मरेंगे जिस दिन वह दिन भी एक सा होगा रा...
सपनों का पंछी
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सपनों का पंछी

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** ख्वाब करना है वो पूरे, आँखों में अब तक जो थे अधूरे। पलकों की दबिश में, चाहतो ने जोर मारा, उड गई नीदें हमारी, चैन भी खोया हमारा। मंजिलें हमको बुलाती, डालने को है बसेरा। तोड़ दो सब बंधनो को, आगे खडा है नया सवेरा। करो कुछ ऐसे जतन, हो ख्वाब पूरे अपने अधूरे.... ख्वाब करना है वो पूरे, आँखों में अब तक जो थे अधूरे।। . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...
सपनीली दुनिया
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सपनीली दुनिया

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** सपनीली दुनिया, होती है यह पल सपनों में बसर। ख्याली पुलाव, सपनों का तड़का बस इस उम्र में सपना ही सपना होता है। थर्टीन से नाइनटीन सुहाने सुहाने सपने संजोग ने के दिन होते हैं। किसी को तलाश करती यह नजर बस जिंदगी बड़ी प्यारी लगती है फिर लड़कों को नमक तेल लकड़ी (गैस) लड़कियों की चावल दाल सब्जी जिंदगी इसी में सिमट के रह जाती हैं। जीवन का वसंत तो जवानी है। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद...
लब चुप थे
कविता

लब चुप थे

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** लब चुप थे, आँखों ने कहना सिख लिया लौ ने, तेज हवाओं को सहना सिख लिया धड़कने उम्र भर वक़्त के इंतजार में बैठी रही बेशर्म सांसो ने जज्बातों को कहना सिख लिया हर उम्र को गुज़रते देखा है आँगन ने मेरे इन बच्चों ने कहीं और हि बहना सिख लिया दुनिया ने ही दुनिया बिगाड़ रखी है हमने अपने घरों में रहना सिख लिया उसे गरूर है कि यहाँ कि हवाऐं वो चलाता है लोगो ने भी धुंध में रहना सिख लिया . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनियरिंग - सिविल डिपार्टमेंट) भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, सेलम हवाईअड्डे पर पदस्थ शिक्षा : बी.ई. (सिविल इंजीनियरिंग) २०१६, एम .टेक - (Geotechnical Engineering ) २०१८ भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगल...
हौसलें बुलंद हो तो…
कविता

हौसलें बुलंद हो तो…

संजय जैन मुंबई ******************** चलते चले जा रहे, कुछ पाने के लिए। मंजिल का पता नहीं, फिर भी चले जा रहे है। सोच कर की कभी तो, हमे मंजिल मिलेगी। और इसी आशा में, जिंदगी जिये जा रहे हैं।। जीवन का लक्ष्य हम, एक दिन जरूर पाएंगे। कहने से पहले, कर के दिखाएंगे। और अपने जीवन को, सार्थक बनाएंगे। और हम अपने, कामों से जाने जायेंगे।। बिना आधार वालो ने भी, दुनियां में नाम कमाया है। जिन्हें मूर्ख समझा था, बाद में वो ही महाकवि, आकालिदास कहलाये है। दिल में चुभ जाती है, जब कोई बात। तो फिर सब बदल जाता है, और फिर जो भी होता है। वो इतिहास के पन्नो में हमें पढ़ने को मिलता है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचन...
लालिमा
कविता

लालिमा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सूर्य की लालिमा पूरब से आई। सुबह में अचानक शबनम मुस्कुराई। आंखों में चमक पैदा करने लालिमा पूरब से आई। पोखर नदी के किनारे पानी की सतह पर। लाल सुर्ख सी साड़ी पहने बन दुल्हन मुस्कुराए शरमाई। ओठ फड़फड़ाए अचानक प्रदायिनी वायु कि थपेड़ों से। सूर्य की लालिमा पूरब से आई चिड़ियों की चहक से गूंज गई आमराई। निंद्रा रानी की गहन निश्चिंता के बाद। सुबह की धड़कन लिए अचानक लालिमा आई। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...
नूतन पुरवाई
कविता

नूतन पुरवाई

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पत्थर ने चोंट दी या खाई है उत्तर के लिए बुद्धि भरमाई है पत्थर किसी के पास जाता नही आँखे होते क्यो ठोकर खाई है चल रही देश मे नूतन पुरवाई है। नोंच रहे अपने अपने तरीके से दलों के दलदल ले डूबे देश को चिंतातुर दिखने की होड़ लगी है कौन उबारे अब डूबे देश को सभी ने झूठी कसमें जो खाई है चल रही देश मे नूतन पुरवाई है है अरज तुझे माँ भारती घर अच्छे से क्यो नही बुहारती स्थान नही जाफर जयचंदो का घर अच्छे से क्यो नही संवारती अब बलिदानों पे आँच आई है चल रही देश मे नूतन पुरवाई है लगा देंगे हम प्राणों की बाजी है लिपटा ने हमें तिरंगा राजी माँ तेरा आँचल न होगा तार तार मरेगा गद्दार कितना ही हो गाजी अस्मिता पर अब बन आई है चल रही देश मे नूतन पुरवाई है . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. ...
अस्तित्व खोकर
कविता

अस्तित्व खोकर

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** अस्तित्व खोकर सब, गुमनाम जीवन जी रहे हैं। अनमोल मिला जीवन, अब अंधेरे में ढो रहे हैं।। कर गुनाह सब यहाँ, गुमनाम बन जी रहे हैं। जहर घोल जीवन में, अब कर्मों पर रो रहे हैं।। रिश्तो को बिखेर, यहाँ सभी अधूरे लग रहे हैं। एकांकी जीवन जीने, मजबूर अब हो रहे हैं।। बरसों लगे मुकाम पाने में, पल में गिर रहे हैं। पहचान छुपा सबसे, ऐसे वो जीवन जी रहे हैं।। जैसा बोया वैसा ही, अपनों संग काट रहे हैं । गलत कार्य गलत नतीजा, देखो वो पा रहे हैं ।। राह मालूम नहीं, गुमनाम राहों पर जा रहे हैं । फस रहे दलदल, क्यों रोका नहीं कह रहे हैं।। दूध जले छाछ भी, फूंक-फूंक अब पी रहे हैं। शेष जीवन उजाले में, वो इस तरह जी रहे हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन...
जीवन का यथार्थ
कविता

जीवन का यथार्थ

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं, तेरी ही देहरीयो में हम अब तो धरना धरे है। कल वो आये थे मिलने को हमसे, हमने कह दिया है, उनसे हम तो रस में है, डूबे हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। बादलों की ओट से रोशनी खोजा है हमने, मन की मंदिर में बसी है, पंखुडी की एक कली। छोटी सी नन्ही सी हैं वो देखना पडता है उसको। हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। ताड़े बैठे है, जी भौरा, कब खिलेगी कलियाँ ये, नन्ही सी कलियों को हमनें पल्को में छिपा लिया है। हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। तेरी ही देहरीयो में हम अब तो धरना धरे हैं।। . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, ...
दिवा स्वप्न
कविता

दिवा स्वप्न

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** बिना पंख उड़ जाये गगन मे, होड़ लगायें पंछी संग, देखे सपने ऊँचे ऊँचे, अलग हकीकत का है रंग! लगें चाँद तारे मुट्ठी में, चाहें जब भी खेलें संग, उतरे चाँद मेरे आंगन में, कण कण में भर देता रंग! आता है वह सांझ सकारे, हो जाती हूँ मैं गुम सुम! सुबहा बेवफा हो हो जाता है उषा के आँचल मे गुम! . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अ...
समय की सहेज
कविता

समय की सहेज

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** समय की चलायमान गति में मैं बहता गया, क्योंकि समय की सहेज, एक निश्चित प्रक्रिया है अपने साथ मानव को, मंत्रमुग्ध सा मानव को सहेज लेता है। क्षणभंगुर कामनाओं को, मटिया मेट कर देता है। दिखा देता है अपनी असीम शक्तियों को, मैं कितना सहेज मान हूं। तुम कैसे मेरे गति से उत्पन्न थीरकनो पर, धीरे-धीरे थिरक रहे हो, क्योंकि यह सांसारिक सत्य है मैं कितना सहेजवान हूं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक...
अपनी नज़र में
कविता

अपनी नज़र में

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** बड़ा मानने के लिए खुद को अपनी नज़र में नहीं करने पड़ते कोई खास जतन कोई छोटी-सी उपलब्धि हासिल होती है और हो जाते हैं हम बड़े कानो में चारो तरफ से सुनाई देने लगती है विरुदावलियाँ जय घोष, प्रशंसा भरी निगाहे सुख शैया सी लगती है खुद को विनीत खड़े देखते हैं मंच पर कब लोग शुरू करें तारीफों की बौछार कब विनम्रता की शाल ओढ़े करे हम इसका स्वीकार कर्र ... कर्र ... कर्र ... कर्कश घंटी अलार्म की सुबह के स्वप्न की असमय हत्या करती है और एक आह के साथ पूरे दिन की यात्रा शुरू होती है तसल्ली देते हैं मन को बीच में कुछ समय निकाल कर उतनी बड़ी बात नहीं होती लोगों की नज़रों में बड़ा होना जितना अपनी ही नज़र में छोटा रह जाना लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में...
फूलों से भी नाजुक
कविता

फूलों से भी नाजुक

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... तू जो बोले तो कोयल भी शरमाती है। बलखाके चले वो तो कहर ढाती है। पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा, तलबगार तेरा।।... फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... तेरी हर शोख अदा का हूं, में दीवाना। तेरे आने से हो जाता हूँ में अंजाना।। याद रहता है एक चेहरा, बस यार तेरा।।... फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...