क्षमा वीररस्य भूषणम्
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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दुख देने से दुख बढ़ेगा, फिर क्यों दुख देते हैं।
अमन प्रेम विस्तार कर, चहुँओर यश पाते हैं।।
बरसे हृदय से करुणा, ऐसा काम सब करते हैं।
हो जाए भूल वश गलती, उनको क्षमा करते हैं।।
द्वंद अगर हो जाए तो, थोड़ी दूरी रख लेते हैं।
मन वचन अगर क्लैश हो, माफी वो मांगते हैं।।
आगे जीवन क्लेस मुक्त हो, प्रयास करते हैं।
बड़े हैं, क्षमा करने से बड़े ही सदा बनते हैं।।
कोई नहीं दोषी, अनजाने में गुनाह सब होते हैं।
इस चक्रव्यूह से, क्षमा मांग ही सब बचते हैं ।।
स्वयं करता नहीं कोई, कर्मों का ताना-बाना है।
सब इस जग में रह, कर्मों का कर्ज चुकाते हैं।।
क्षमा वीररस्य भूषणम, अपना महान बनते हैं।
क्षमा दान देकर ही, वह अहंकार को हरते हैं।।
कहती वीणा उत्तम क्षमा, क्यूं अवसर गवांते हैं।
एक क्षमा शब्द से, कितने जीवन संवर जाते हैं।।
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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्...