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कविता

क्षमा वीररस्य भूषणम्
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क्षमा वीररस्य भूषणम्

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** दुख देने से दुख बढ़ेगा, फिर क्यों दुख देते हैं। अमन प्रेम विस्तार कर, चहुँओर यश पाते हैं।। बरसे हृदय से करुणा, ऐसा काम सब करते हैं। हो जाए भूल वश गलती, उनको क्षमा करते हैं।। द्वंद अगर हो जाए तो, थोड़ी दूरी रख लेते हैं। मन वचन अगर क्लैश हो, माफी वो मांगते हैं।। आगे जीवन क्लेस मुक्त हो, प्रयास करते हैं। बड़े हैं, क्षमा करने से बड़े ही सदा बनते हैं।। कोई नहीं दोषी, अनजाने में गुनाह सब होते हैं। इस चक्रव्यूह से, क्षमा मांग ही सब बचते हैं ।। स्वयं करता नहीं कोई, कर्मों का ताना-बाना है। सब इस जग में रह, कर्मों का कर्ज चुकाते हैं।। क्षमा वीररस्य भूषणम, अपना महान बनते हैं। क्षमा दान देकर ही, वह अहंकार को हरते हैं।। कहती वीणा उत्तम क्षमा, क्यूं अवसर गवांते हैं। एक क्षमा शब्द से, कितने जीवन संवर जाते हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्...
सवाल दर सवाल है
कविता

सवाल दर सवाल है

मिर्जा आबिद बेग मन्दसौर मध्यप्रदेश ******************** सवाल दर सवाल है, सबका एक जैसा हाल है। रिश्ते आजकल वहां बनते जिसके पास माल है। सरकार कैसे चली गई, सब पूछ रहे हैं ये सवाल है। उससे तुम्हें हो गई मोहब्बत, क्या उसे इसका ख्याल है। माँ-बाप का साथ जरूरी है, उनके बिना बुरा हाल है। समझ ना सके वहां मुझे आबीद, बस इस बात का मलाल है। . परिचय :- ११ मई १९६५ को मंदसौर में जन्मे मिर्जा आबिद बेग के पिता स्वर्गीय मिर्जा मोहम्मद बेग एक श्रमजीवी पत्रकार थे। पिताश्री ने १५ अगस्त १९७६ से मंदसौर मध्यप्रदेश से हिंदी में मन्दसौर प्रहरी नामक समाचार पत्र प्रकाशन शुरू किया। पिता के सानिध्य में रहते हुए मिर्जा आबिद बेग ने कम उम्र में ही प्रिंटिंग प्रेस की बारीकियो को समझते हुए अखबार जगत कि बारीकियों को कम उम्र में ही समझ लिया और देखते-देखते इस क्षेत्र में निपुणता हासिल कर मात्र २१ वर्ष की ...
चांदनी
कविता

चांदनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** एक रात यूं ही नील गगन में' नीलकमल सी चांदनी ने। मुस्कुराई थी अचानक़़ थोड़ी सीहर कर चांदनी ने, अचानक दर्द छेड़ थोड़ी सी पवन सिसक कर बिखर गई। मरमराती रात में सुनहली सी चांदनी। इस पूर्णता की विछोह में, अपूर्णता की भ्रांति टिमटिमाती जुगनू की, गूंज रही थी क्रांति। इस धरा की सरहदों पर, बिखेर दी थी क्रांति। घटाटोप अंधकार में, जंगली गुफाओं में, समुंद्री गर्जनाओ मे, होगी अनेकों क्रांति अंधकार में प्रकाश की, होगी महाआरती। स्वर्ण युग आएगी गुनगुनाती चांदनी। सभी हंसेगे साथ-साथ। मुस्कुराती चांदनी। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
हाँ मैं वही सिपाही हूँ
कविता, छंद

हाँ मैं वही सिपाही हूँ

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** मैं ध्रुव तारे सा अचल, अटल, सदियों से खड़ा स्थाई हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। घर,परिवार व प्यार त्याग मैं, सरहद पर तैनात खड़ा हूँ। करुँ मौत से मस्ती हरदम, खतरों से सौ बार लड़ा हूँ। हिंद नाम लिखा जिसने हिम पर, मैं उसी रक्त की स्याही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। है धरती सा धीरज मुझमें, व आसमान सा ओहदा है। हिम्मत हिमालय सी रखता, सदा किया मौत से सौदा है। अपनों पर जान गँवाता हूँ, दुश्मन के लिए तबाही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। बाहों में सिसके दर्द सदा, आँखों में निंदिया रोती है। सपनों में दिखता दुश्मन को, चिंता मुझको ना खोती है। मैं लक्ष्य हेतु जितना थकता, होता उतना उत्साही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हू...
शीत
कविता

शीत

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** शीत बड़ी.....!!!! क्यों चीख पड़ी ? क्या दुखद घड़ी..? ना, ...... मेघों की दड़ी। बारिश की झड़ी। बूंदों के संग-संग, हिम तुहिन लड़ी।। कैसा भय है...? कुछ नव क्षय है...? सदियों से ही, प्रकृति लय है।। इस बार सजन, घबराये मन । धक-धक धड़कन, अंग-अंग जकड़न।। पावक ना दहक, बर्फीली महक। नस-नस में चहक, बहे रक्त बहक।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता
कविता

सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ। मैं तुम्हारी सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता हूँ, मुझे पहचानो। अब मैं वृद्ध और रुग्ण हो चला हूँ, मुझे संभालो। मैं विलाप करता हूँ अपनी वर्तमान स्थिति पर, मुझे सँवारो। मैं रेत में पड़ा ठंडा हुआ राख हूँ, मुझे फिर जला लो। जिस तरह मिलते हो अपने बच्चे से, मुझे भी गले लगा लो। शरीर सारा जलता हैं ग्रीष्म में मेरा, मुझे आँचल में छुपा लो। मेरे हृदय के कमल कुम्भलाने लगे हैं, प्यास तुम बुझा दो। मैं ठूँठ सा मंज़िल हुआ पड़ा हूँ, राह तुम बना लो। मैंने सदियाँ दी हैं सौगात में तुम्हें, मेरा भी अस्तित्व जिला दो। महावीर ने निर्वाण लिया मेरे ही प्रांगण में, उसकी तो लाज बचा लो। मैं पावापुरी का जैन मंदिर हूँ, तुमसे गुहार लगाता हूँ- मेरा भी सिंचन करो, मेरी भी सम्मान करो। मैं तुमसे वादा करता हूँ, बिहार को मस्तक पर धरता हूँ, आलौकिक इतिह...
हंगामा है…
कविता

हंगामा है…

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** हंगामा मचाया है..... सियासत के झमेले में। ज़रा तुम पूँछ लो भाई, खुद से खुद अकेले में। बना कानून संसद में, तब मैदान छोड़ा क्यों? महज़ नाटक किया करते, काम अच्छे में रोड़ा क्यों? बिन पेंदी के लोटे हैं, उन्हें साथी बनाया क्यों? माया और शिवसेना? भरोसा यूँ जताया क्यों? लगाकर आग खुश हो तुम, संपत्ति बाप की है क्या? गंदी सोच और तिकड़म मंशा आपकी है क्या? सारे काम कर डाले (मोदी जी ने) जो जितने जरूरी थे। ठोकर ख़ाकर ना सुधरे (राहुल जी) गुरूरी हो गुरूरी थे। अमन और चैन की भाषा, तुम्हें शायद पता है क्या? सोचते क्यों नहीं प्यारे, जलाकर यूँ नफ़ा है क्या? बिजू बहुत अच्छे हैं..... वो सच्चे पथ के अनुगामी। (मोदी,शाह) सपा, बसपा और पंजे की, समझ न आती नादानी। गद्दारों से देश घिरा है, भृम जो भी थे टूट गये। है श्रंगार भाव ना दिल में, इक़ झटके में भूल गये। बिंद...
गुलाबी धूप
कविता

गुलाबी धूप

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** गुलाबी सुबह की गुलाबी धूप में पलकें जब नींद से जाग जाती हैं तुम्हारे खयाल सिरहाने आकर सो जाते हैं और मैं तलाशती रहती हूं तुम्हारी यादों को सुबह के झीने कोहरे में डरता है मन कहीं तुम खो न जाओ रोशनी के धुंधले साए में लेकिन फिर चांदनी रात मेरे ख्वाबों की देहलीज़ पर हौले से दस्तक दे जाती है और तुम्हारे खयाल आकर फिरसे पलकों पर ठहर जाते हैं . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ सम्मान ४५ पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित रंजन कलश, इंदौर अध्यक्ष वामा साहित्य मंच, इंदौर उपाध्यक्ष निवास : इंदौर (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
रिश्ता बेच दिया
कविता

रिश्ता बेच दिया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** देखो ना मुझे रिश्ता बेच गया, खुशी बताकर दर्द बेच गया, पराया था फिर भी अपना बना कर, मेरे जज्बात बेच गया, जर्रे जर्रे में तुझको सोचा, तूने हर बार नया रिश्ता बेच दिया, तकलीफों को जब भी भूला, तूने हर बार दर्द का नया रिश्ता बेच दिया, नमजों में सर झुका कर, दुआ हर बार नहीं मांगी, तूने रूह तक कपाकर, मेरा विश्वास हर बार बेच दिया, मिलता है मुझे वो अपनों की तरह, करता है वही कत्ल मेरे दिल का सरेआम, लाती हैं हवाएं भी मेरी जान, मेरी जान में, उसने बहारों से लाकर, मेरा चमन बेच दिया, आए वो मेरे घर पर, किस्मत तो मेरी देखो, ऐसे वक्त पर लाकर, मेरी मुरादों को बेच दिया, रखती हूं सलामत उसे, हर बला से आज भी, देखो तो जालिम ने हमें, दुआओं में बेच दिया, झुकते थे हम क्योंकि, हमें रिश्ता निभाना था, देखो ना... ज़ालिम ने हमें, गलत बताकर बेच दिया....!! . ...
सलाह
कविता

सलाह

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** बुजुर्ग से सलाह ले, तू निश्चय मंजिल पाएगा। अनुभव उनके पास बहु,तू सफल हो जाएगा।। छोटी सोच त्याग, निर्मल जीवन बन जाएगा। कल किसने देखा, तू आज को जी पाएगा ।। सुख घड़ी गुजर गई, दुख भी ठहर न पाएगा । सुख दुख तो आने जाने, पर तू निखर जाएगा।। नेक सलाह लें, काम जो नित करता जाएगा। कठिन परिश्रम कर, राह आसान बनाएगा ।। जैसी सोच रखेगा, फल उसी अनुरूप पाएगा। बोया पेड़ बबूल का, तोआम कहाँ से आएगा।। अहम दीवार बीच आई, तो रिश्ता टूट जाएगा। फासला इतना ना बढ़ा, फिर मिल ना पाएगा।। मन भेद जो रखा, तो देख मनमुटाव बढ़ जाएगा। समझौते का फिर कोई, द्वार नजर ना आएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी र...
एक विकृत सोच
कविता

एक विकृत सोच

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अबॉर्शन....... एक विकृत सोच का....? समाज में, अपनी, विकृत मानसिकता को। छुपाने के लिए, अबॉर्शन करवाते हैं। कभी बेटों के लिए, कभी जायज- नाजायज, संबंधों के लिए, मानववादी सोच का, अपहरण तक कर आते हैं। वे लोग..........? अपनी ऐसी विकृत सोच का अबॉर्शन क्यों.....नहीं कराते हैं? देश की अर्थव्यवस्था की, जो धज्जियां उड़ाते हैं। अपने मतलब के लिए, षडयंत्र रचाते हैं। भ्रष्टाचार फैला कर, देश को ही खा जाते हैं। धर्मों के नाम पर, लड़ा जात- पात फैलाते हैं। मजबूर बेसहारों पे जुल्म ढाते हैं। झूठ -फरेब से बाज नहीं आते हैं। ऐसी सोच का, अबॉर्शन क्यों .......नहीं कराते हैं? समाज और देश के, वे लोग ....….......? जो सभ्यता को, लज्जित कर जाते हैं। ना समाज का, ना देश का भला कर पाते हैं। अपनी विकृत सोच से नकारात्मकता बढ़ाते हैं। सत्य को हराकर झ...
नैतिक बल
कविता, नैतिक शिक्षा, संस्कार

नैतिक बल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** शारिरिक बल, बुद्धिबल, से बलशाली नीति, नैतिक बल के सामने, टिकती नहीं अनिती। व्यक्ति जाति या राष्ट्र हो, होता उसका नाश, जो अनिती पथ पकड़ता, है साक्षी इतिहास। नैतिक बल से आत्म बल है संवद्ध घनिष्ठ, टका एक दो पृष्ठ है, किसे कहें मुख पृष्ठ। है यदि सच्ची नीति तो, वहीं धर्म आधार, ठहर न सकता धर्म है, जहां न नीति विचार। सब धर्मों को देख कर, गोर करें यदि आप, तो पायेंगे नीति का, सब मे अधिक मिलाप। अचल नियम है नीति के, अचल न चक्र विचार, मत विचार है बदलते, नीति धर्म आधार। निर्भर करता नियत पर, नीति अनिती कलाप, शुद्ध हर्द्रय सदभावना, मूल्यांकन का माप। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्...
पतंग
कविता

पतंग

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश में उड़ती रंगबिरंगी पतंगे करती न कभी किसी से भेद भाव जब उड़ नहीं पाती किसी की पतंगे देते मौन हवाओं को अकारण भरा दोष मायूस होकर बदल देते दूसरी पतंग भरोसा कहा रह गया पतंग क्या चीज बस हवा के भरोसे जिंदगी हो इंसान की आकाश और जमींन के अंतराल को पतंग से अभिमान भरी निगाहों से नापता इंसान और खेलता होड़ के दाव पेज धागों से कटती डोर दुखता मन पतंग किससे कहे उलझे हुए जिंदगी के धागे सुलझने में उम्र बीत जाती निगाहे कमजोर हो जाती कटी पतंग लेती फिर से इम्तहान जो कट के आ जाती पास होंसला देने हवा और तुम से ही मै रहती जीवित उडाओं मुझे ? मै पतंग हूँ उड़ना जानती तुम्हारे कापते हाथों से नई उमंग के साथ तुमने मुझे आशाओं की डोर से बाँध रखा दुनिया को उचाईयों का अंतर बताने उड़ रही हूँ खुले आकाश में क्योकि एक पतंग जो हूँ जो कभी भी कट सकती तुम्हारे हौसला ...
मरने के बाद
कविता

मरने के बाद

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** लोग कहते हैं मरने के बाद, मुक्ति मिल जाती है, अपनों का एहसास नहीं होता, अपनों की याद नहीं आती, कोई हमसे तो पूछें, मुक्ति के बाद एक-एक पल हमने कैसे गुजारा, हमें जलने से डर लगा, पर चले हम, हमें दूर होने से डर लगा, पर दूर हुए हम, मरने के बाद क्यों रहते हैं हम, अपनों के आसपास ही, अपनों ने ही जलाया हमें, अपनों ने ही भुलाया हमें, हमें भी दर्द हुआ था जलने में, खाक ऐ सुपुर्द होने में, हम सब को देखते हैं, हमें कोई नहीं देखता, हम सबको याद करते हैं पर, हमें कोई याद नहीं करता, क्यों मर कर भी, तिल तिल मरते हैं हम, अपनों के लिए..... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं...
जमाना जालिम है
कविता

जमाना जालिम है

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बचकर रहना यार, जमाना जालिम है हो जाओ होशियार, जमाना जालिम है। अपनापन, भाईचारा खत्म हो चुका है है रिश्तों में व्यापार, जमाना जालिम है। दिन प्रति दिन देखो क्या खूब बढ़े हैं लुच्चे, टुच्चे, झपटमार, जमाना जालिम है। नारी सुरक्षा के दावे भी खोखले साबित होती तेजाबी बौछार, जमाना जालिम है। रपट लिखाने कभी जो जाओ थाने रिश्वत मांगे थानेदार, जमाना जालिम है। न्याय, सत्य, निष्ठा, ईमान हुआ है बौना भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार, जमाना जालिम है। हो जरूरत यदि कभी धर्म रक्षा के लिए लो हाथ में तलवार, जमाना जालिम है।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में...
पंख बदलने से
कविता

पंख बदलने से

रामनारायण सोनी इंदौर म.प्र. ******************** पंख बदलने से आकाश नही बदलता सूरज भी तो वही है जहाज बदलने से सागर नहीं बदलता जल भी तो वही है सूरत बदलने से सीरत नही बदलती आदमी भी तो वही है शरीर बदलने से चोला बदलता है रूह तो वही है   परिचय :-  रामनारायण सोनी साहित्यिक उपनाम - सहज जन्मतिथि - ०८/११/१९४८ जन्म स्थान - ग्राम मकोड़ी, जिला शाजापुर (म•प्र•) भाषा ज्ञान - हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत शिक्षा - बी. ई. इलेक्ट्रिकल कार्यक्षेत्र - सेवानिवृत यंत्री म.प्र.विद्युत मण्डल सामाजिक गतिविधि - समाजसेवा लेखन विधा - कविता, गीत, मुक्तक, आलेख आदि। प्रकाशन - दो गद्य और एक काव्य संग्रह तथा अब तक कई पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार - "तुलसी अलंकरण", "साहित्य मनीषि", "साहित्य साधना" व विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा कुछ सम्मान प्राप्त। विशेष उपलब्ध...
पूरबा बयार से
कविता

पूरबा बयार से

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** ग्रामो मे मेरे पूरबा बयार से बसवारीयो की खूँटे टकराती है। चरमर-चरमर की आवाजे भैरवी की राग सुनाती है। कराहती है गरीबी बेदर्द बन झोपड़ियों में- जहां दिन में सूर्य की रोशनी रातें में चांदनी झांकती है जहां दीपक के नाम पर चंद देर तक का ही सही अचानक चांदनी टिमटिमाती है। अंधकार की नीरवता में पवित्र निश्चल हृदय पुचकारती है। पावस की फुहार, में जहां दूधिया चांदनी में मजबूरियों की हाहाकार में नई विवाहिता बालाए सिकुड़कर नहलाती है। गाती है उनकी माताए ग्रामीण वृद्धाए खुशी की गीत । घुंंघट के नीचे निःसंकोच शर्माती है। राजनीति से दूर, सुदूर पश्चिम मे पेड़ो की टहनियों पर बैठ कर चिड़िया चहकती है। महकती है बागे जब आम् मंजर खिलती है। गाँवो की पोखर मे कमल की फूल भ्रमर की गुनगुनाहट सुन अचानक सहम जाती है। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...
सच्चाई
कविता

सच्चाई

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** मीठे बोल राह भटकाएंगे, मान यही सच्चाई है। बुजुर्गों ने समझाया, बात कहा समझ आई है।। शब्दों में कठोरता, राह नेक उसने दिखाई है। संग सदा वह खड़ा रहा, जैसे तेरी परछाई है ।। सच्चाई जग में, सबने सदा ऐसे ही बिसराई है। अपनी गलती को मनु, तूने नित ही दोहराई है।। नापाक मंशा मुकम्मल, कभी नहीं हो पाई है। झूठी राह अपना, हकीकत जिसने बिसराई है।। झूठ फरेब नकाब लगा, हकीकत छुपाई है। प्रभु पारखी नजर से, नहीं बचा कोई भाई है।। कह रही वीणा, यह दुनिया बहुत तमाशाई है। झूठ दौड़ रहा, सच्चाई की नहीं सुनवाई है।। सच्चाई पर अड़े रहे, हंसकर जान गवाई है। मर कर अमरता, कुछ बिरलो ने ही पाई है।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, क...
भ्रष्टाचारी नेता
कविता

भ्रष्टाचारी नेता

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** ठूस-ठूस  कर खाते हैं जनता का पैसा भाषण देते हैं भरपूर! जो ना करें जनता की सेवा दिल से ऐसे नेता से रहना दूर! भ्रष्टाचारी नेता जीतने से पहले जनता के आगे सर झुकाते हैं! चुनाव जीतने के बाद यह नेता फोन तक भी नहीं उठाते हैं! नाली खरंजा विधवा पेंशन राशन कार्ड का कोटा खा जाते हैं! भ्रष्टाचार से पेट फूल गया है इनका अकड़ उल्टा दिखाते हैं! गलती हमारी ही थी क्योंकि हमने इन्हें वोट देकर जिताया है! नहीं करते काम जनता का बिना लिए दिए यह परिणाम आया है! जनता ने अब ठाना है भ्रष्टाचारी नेता को चुनाव नहीं जिताना है! नेता होना चाहिए ऐसा की जनता हित में अच्छा काम करें! भ्रष्टाचारी मुक्त हो दामन उसका देश में अच्छा नाम करें .....! . लेखक परिचय :- अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गाजियाबाद आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हि...
अफवाएं
कविता

अफवाएं

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** हर साल दिसम्बर माह में धरती के ख़त्म होने अफवाह दूसरे देशो से उड़ाई जाती है। दिसंबर २०१२ पर तो फिल्म भी बन चुकी है। क्षुद्र ग्रह, पृथ्वी से टकराने की बाते ज्यादा उड़ाई जाती रही। ग्रह पृथ्वी की कक्षा आते ही जल जाते है। खगोलीय घटनाओं को पकड़ने वैज्ञानिक पहले से सतर्कता बरतते है। कुछ लोगो का काम ही अफवाएं फैलाना है। अफवाओं पर ध्यान न दे कर खगोलीय विधा रूचि लेवे तो ये ज्ञान -विज्ञानं में वृद्धि में करेगा ...।   अफवाएं भी उडती/उड़ाई जाती है जैसे जुगनुओं ने मिलकर जंगल मे आग लगाई तो कोई उठे कोहरे को उठी आग का धुंआ बता रहा तरुणा लिए शाखों पर उग रहे आमों के बोरों के बीच छुप कर बेठी कोयल जैसे पुकार कर कह रही हो बुझालों उडती अफवाओं की आग मेरी मिठास सी कुहू-कुहू पर ना जाओं ध्यान दो उडती अफवाओं पर सच तो ये है की अफवाओं से उम्मीदों के दीये नहीं...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

श्रीमती श्वेता कानूनगो, जोशी इंदौर मध्य प्रदेश ******************** जब चाँद रात में तारों कि बारात में, धीमी थी रोशनी आधी रात में देखकर तारों को छूने का मन करता, उस चमक को महसूस कर बहकने का दिल करता। सवेरा होने पर सूर्य कि अरूणिमा, धीमी-धीमी सी लालिमा मन को भानेलगती। सूरज की तेज रोशनी में आँखों पर, तेज धूप से एक चेहरा सा छा जाता। दिन होने पर गर्मी मे चिड़ियों और, कोयल की आवाज मन को तड़पाने लगती है। शाम आते ही प्यारी सी धीमी सी हवा में, सूर्य का अस्त होना आकाश को लाल करके धीमी सी रोशनी बना देता है। चाँद रात में तारों कि बारात में, धीमी थी रोशनी आधी रात में .... . परिचय :-  श्रीमती श्वेता कानूनगो, जोशी निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश जन्मतिथि - २० सितंबर १९९४ शिक्षा - बीएससी (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया), एमएससी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, विशेषज्ञता - टेलिविजन प्रोडक्शन कार्यक्षेत्र - वर्तमान मैं रेनेसा...
पहला प्यार
कविता

पहला प्यार

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** खून के खत से शेर चार लिखा था। मैंने पहला-पहला प्यार लिखा था।। रात को जब सोया था जी भर कर। तेरे चेहरे पर मेरा इजहार लिखा था।। छत पर तेरा आना और मुस्कराना। दिल पर तेरा मैंने इंतज़ार लिखा था। भुला नहीं पाया मैं पहली मुलाकात। जब अजनबी पर एतबार लिखा था।। न जाने कौन सा शुभ वक़्त था दोस्त। राजेश का रब ने मुक्कदर लिखा था।। . लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७...
सच्चा दोस्त
कविता

सच्चा दोस्त

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर सच्चा दोस्त मिलना बहुत मुश्किल है, हाथ तो सभी बढ़ा देंगेआगे, मगर मुसीबत में हाथ थामने वाले बहुत कम है, वादा करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर वादा निभाने वाले बहुत कम है, जज्बातों से खेलने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर जज्बातों को समझने वाले बहुत कम है, दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर दोस्ती की कद्र करने वाले बहुत कम है, कदम आगे बढ़ाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर ठोकर लगने पर संभालने वाले बहुत कम है, दोस्त और दोस्ती करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, मगर सही मायनों में, दोस्ती का अर्थ, समझने वाले बहुत कम है, दोस्त बहुत मिल जाएंगे इस दुनिया में, मगर सच्चा दोस्त मिलना बहुत मुश्किल है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग म...
मैं आज हु और कल भी रहूंगा
कविता

मैं आज हु और कल भी रहूंगा

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** मैं कल था में आज हु और कल भी रहूंगा लहु हु में कलम से, किताब पर बहुंगा रात के अँधेरो में जो जागती है रातें उन रातों को अंधेरों के राज में कहुँगा उन लंबे रास्तों में जो, भटका रहीं है राहें उन रास्तों में पैरों कि आवाज़ में करूंगा गुनाह की जो जंजीरें, पैरों बस बंधी है उन जंजीरों के फैसलें हिसाब में करूंगा उन सड़कों पर, रातों में जो सो रही हैं सांसें उन धड़कनों कि बेबसी हालात में कहुँगा हवाओं का रूख आज, जिस तरफ हो चाहें उन कागजों कि नाव का भी रुख, में उस तरफ करूंगा एक शोर जो चारों तरफ़ बढ़ता ही जा रहा है उन बहरें कानों कि तरफ, आवाज़ में करूंगा मैं कल था में आज हु और कल भी रहूंगा लहु हूँ में कलम से, किताब पर बहुंगा . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) ...
मन मेरा
कविता

मन मेरा

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** आज झूम उठा मन मेरा है, वारिश की ठन्डी बूँदो मे, लहर लहर लहराया मन मेरा है आज झूम उठा मन मेरा है। काली बदरिया ने झाँका था मुझे, मदमस्त आँखो से निहारा था मुझे, बोली थी क्यो है इतराई सी, मै बोली कुछ लजाई सी शरमाई सी आज विहॅस उठा  मन मेरा है, वंशी ध्वनि से झूम उठा मन मेरा है, आज झूम उठा मन मेरा है। पपिहा ने लगाई टेर दूर कही झुरमुट में, आज फिर छुपा चाँद घूँघट मे, मेरा मन तड़पा है चन्दा की चाह मे, तू है अपने कान्हा की वाँह मे, आज तुझसे जलता मन मेरा है, आज झूम उठा मन मेरा है। विहँस उठी राधा सुन पपिहा की बातों को, कब से जगी हूँ मै ओ बाबरे रातो को, कान्हा के मिलन से आज, पुलकित मन मेरा है। आज झूम उठा मन मेरा है। आज झूम ...........।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.क...