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कविता

जब होगी सम्पूर्ण ताकत हमारी …
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जब होगी सम्पूर्ण ताकत हमारी …

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आप छोड़ दो साहब हमारी फिक्र करना, आपके फिक्र करने से हमें पड़ जाता है फिक्र करना, हमें पता है आप जिस तरह से हमारी चिंता करते हैं, तब तब हमारे लोग दुख तकलीफ और यातनाओं से पल पल गुजरते हैं, पता नहीं हमारे बारे में आपकी सोच सकारात्मक है या नकारात्मक, बढ़ जाती है हमेशा हम पर जुल्म आप हो जाते हो जातिवादी व हिंसात्मक, हमारा कसूर क्या है? यहीं न कि हम आपके अतार्किक और अमानवीय व्यवस्था में निचले पायदान पर पहुंचा दिये गए हैं, लेकिन यह मत भूलिये आपके हर गलत कार्यों का हमारी हर पीढ़ी ने विरोध किया है, तुम्हारे हर मंसूबों पर चोट दिया है, भले ही ताकत पाने के लिए दिखना चाहते हो हमारा रहबर, ताकि ताकत का इस्तेमाल कर सको हमीं पर रह रह कर, ये भी पता है कि चंद टुकड़ों के लिए हमारे ही लोग समाज से ...
महिला दिवस पर स्लोगन
कविता

महिला दिवस पर स्लोगन

माधवी तारे लंदन ******************** १. तुलसी बिना आंगन सूना, नारी बिना नर जीवन सूना। २. त्रिभुवन की ही संजीवन शक्ति, एक ही है महिला शक्ति। ३. गृहस्थाश्रम के नभाकाश की, है स्त्री शीतल चांदनी प्रसंग पड़ता जब बांका, बन जाती है वह शेरनी। ४. है स्त्री दैवी ही धर्मज्योति, गृहस्थाश्रम की अमोल शक्ति बिना उसके नहीं मिलती, प्रपंच-रथचक्र को गति। ५. वो गुणवान संस्कारी वह निडर करारी. परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अप...
दीपक
कविता

दीपक

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब माँ अपनी बेटी को बचपन से ही सिखाती दीपक कैसे प्रज्वलित करना बेटियाँ इसे महज छोटा काम समझती किन्तु बड़ी होने पर जब वो ससुराल में लगाती तुलसी की क्यारी पर दीपक। श्रद्धा, आस्था, प्रेम, कर्तव्य की भावना दीप की लो के संग ज्यादा प्रकाशवान दिखाई देती जो माँ ने सिखाई थी बचपन में मुझे जब माँ की याद आती तो पाती हूँ तुलसी की क्यारी में माँ की प्यारी सी झलक। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्या...
मैं ना होती तो …
कविता

मैं ना होती तो …

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** किसी के होनें न होने से दुनियां नहीं रुकती है। सीटे खाली होती हैं तभी तो भरती है। ******* उनके न होने से कुछ फर्क नही पड़ेगा। सूरज पूरब से उगता है वही से उगेगा। ****** यह हमारा वहम है कि मेरे न रहने पर क्या होगा? वही होगा जो कि भगवान को मंजूर होगा। ******* "मैं" शब्द अहंकार का प्रतीक है इसे अपनी ज़िंदगी से हटाए। और अपनी जिंदगी को अच्छे से आगे बढ़ाए। ******* मैं ना होती तो जरूर और कोई आयेगा। शायद मुझसे अच्छा कर जायेगा। ******* हम तो बस यही दुआ करते रहें। हम रहे या न रहें बाकी सब सलामत रहें। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
बुलडोजर का राग
कविता

बुलडोजर का राग

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चींख रहा है अब कानों में, बुलडोजर का राग। गूंगे को गुड़-सा रस देता, सत्ता का मृदु पाग।। मौन खड़ी संसद के भीतर, प्रश्नों की बंदूक। थाम रखी हाथों ने खाली, उत्तर की संदूक।। गरल हुआ फूलों के दिल में, संचित हुआ पराग।। दुखड़ों के जंगल में बदले,सुख-सुविधा के कोष। पनप रहा बंजर आँखों में, चंबल का जल रोष।। धो न सका साबुन सत्ता का, लगे सियासी दाग।। सीना फाड़ दिखाये श्रद्धा,बहुमत का अन्याय। जंगी ताले में बैठी हैं....आशाएँ निरुपाय।। फैल गई है गली-गली तक, तानाशाही आग।। सेवक पंजे करते पग-पग, अब खूनी तकरार। स्वप्न भूख के थके दौड़कर, पीछे छोड़ गुबार।। हवा बसंती भूल गई है, सद्भावों के फाग।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
कोई रास्ता भी नहीं बताता है …
कविता

कोई रास्ता भी नहीं बताता है …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मझधार मे तो फंसी है नैया मिल जाये कोई तो खेवैया उलझन समझ नहीं आता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है किस तरह से साथ निभाये कैसे दिल को अब समझाये दांव मे सब कुछ लग जाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है जीवन भी तो जैसे व्यर्थ हो कंही कोई ना अब अर्थ हो निर्वाह का ही डर सताता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है अब करें क्या और कैसे-कैसे उम्र बीत जाये बस जैसे तैसे उम्मीद कुछ हाथ नहीं आता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है उलझा हुआ यहाँ हर आदमी है स्व संघर्ष मे मशगुल हर कोई है कौन किसका साथ निभाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है कुछ करें जतन अब तो मन से शेष है जीवन जो तन मन से शायद यही साथ -२ जाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवा...
रसों की रानी है हिन्दी
कविता

रसों की रानी है हिन्दी

कु. मेघा मसानिया होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** रसों की रानी है हिन्दी संस्कृत की सहेली है हिन्दी अलंकारों से अलंकृत है हिन्दी छंदों की छाया है हिन्दी संधि-समास का संगम है हिन्दी गद्य-पद्य का‌ मेल है हिन्दी हृदय‌ की अभिव्यक्ति है हिन्दी मेरी प्रिय भाषा है हिन्दी "तू गुरुर हैं मेरा, तुझसे ही इस देश की शान है। तुझको मेरा, साष्टांग दंडवत प्रणाम है।।" परिचय : कु. मेघा मसानिया (सहायक प्राध्यापक) निवासी : ग्वालटोली, नर्मदापुरम, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) शैक्षणिक योग्यता : बीएससी, एमएससी, नेट, एमपी सेट रुचि : हिंदी लेखन, किताबें पढ़ना और पढ़ाना।  घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो
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लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो, करो प्रगति पथ प्रस्थान !! खिलते अदभुत ज्ञान पुष्प होती सुरभित गली-गली। रहते स्नेहाक्त भाषा-बचन, खिले क्षमा की कली-कली आदर-अनुनय औ आदर्श, पाते कदम-कदम मान ! लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो, करो प्रगति पथ प्रस्थान !! सत्य-अहिंसा, न्याय-प्रेम की मिलती है शिक्षा से ही सीख। जहां मिले, जिससे से मिले लेना, मांग ज्ञान की तू भीख। शिक्षित हो, करना सब शिक्षित, रहे न शेष अज्ञान ! लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो, करो प्रगति पथ प्रस्थान !! शिक्षा है दुध शेरनी का, जिसने भी पिया दहाड़ा है। शिक्षित मानव ने ही धरा से अनीति-अधर्म पछाड़ा है। अधिकारों औऱ कर्तव्यों के साथ जगाना स्वाभिमान ! लिखो पढ़ो, आगे बढ़ो, करो प्रगति पथ प्रस्थान !! जाओ मेरे आंखों के तारे, पढ़ लिखके रोशन नाम करो। कर ह्रदयंगम मानव धर्म तुम, मान...
मेला
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मेला

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** यह संसार एक अद्भुत विशाल मेला है, अनेक सम्बन्धों का अनुपम यहाॅं रेला है। रेले में जब अपनों से हाथ छूट जाते हैं, नेह के सभी धागे जब टूट जाते हैं। जब व्यक्ति हो जाता बिल्कुल अकेला है, तब जीवन यह लगता सबको झमेला है। जहाॅं देखें वहीं दिखाई दे रहा है खेल , कहीं झूला, कहीं गाड़ी, तो कहीं ‌है रेल । चटपटे व्यञ्जनों का यहाॅं होता बोलबाला है, जो सभी उम्र वालों को करता मतवाला है। दुकानों को सजाकर सभी बैठे विक्रेता हैं, खुद सज सॅंवरकर निकले सभी क्रेता हैं। कहीं मृत्यु का कूप कहीं जीवन का दृश्य है, ध्वनि विस्तारक यंत्रों से शांति अदृश्य है। पल-पल बदलता यहाॅं जीवन का परिदृश्य है, यहाॅं नहीं कोई कभी बिल्कुल अस्पृश्य है। सभी रङ्ग सभी रूप सभी जाति सभी धर्म यहाॅं, जीवन की सच्चाई का दिखता है मर्म यहाॅ...
प्यार
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प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** उम्र गुजर जाए हम कहा तुम कहा अब ढूंढते है तुम्हारे जैसे चेहरे वो बगिया वो मकान वो गलियां मिलो भी तो पहचान मुश्किल झुर्रियों भरे चेहरे हो मगर प्यार का रिचार्ज ता उम्र का जो यादों की मिस कॉल मारता हरदम जब तक तब तक न निकले दम बहुत देर कर दी प्यार के दो शब्द कहने में मै करता हूं प्यार तुमसे। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में...
समर्पित चौथा स्तंभ
कविता

समर्पित चौथा स्तंभ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** गोरों के शासनकाल में पत्रकार खूब लिखते बोलते थे, हुकूमत के अत्याचार से तनिक नहीं डोलते थे, खैर अंग्रेज गए अंग्रेजों का शासन गया, आ गया देश में स्वशासन नया, सत्ता के छोटी सी गलती के खिलाफ ये हुंकार ले चिल्लाते थे, इनकी जागरूकता देख सरकार व विपक्ष दोनों घबराते थे, समर्पित चौथा स्तंभ ये खुद को साबित करते थे, लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये नहीं किसी से डरते थे, समय बदला शासन बदला बदल गए पत्रकार, पक्षपात में इतना डूबे भूल चुका अपना अधिकार, सत्ता से सवाल पूछते मुंह सूख जाता है, प्रश्न दागने वालों को सत्ताई तलवा अब सुहाता है, सत्ता का डर इतना बैठा विपक्ष से सवाल दागता है, सूखी हड्डी के लिए श्वान मालिक की ओर ही ताकता है, जनता के मुद्दे मुद्दे नहीं उन्हें अब मीडिया वाले बहकाते हैं, रात दिन भौं ...
पुकार
कविता

पुकार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यह आवाज कहां से आई सोने की चिड़िया से यहां बच्चें भुख से तड़प कर चिल्ला रहें हैं। या गगन चुम्बी प्रसादों ने अट्टहास हैं किया या मलय पवन ने झकझोर दिया। या यह इन्द्र देव का परिहास है। अरे, नहीं यह तो करुण हृदय की पुकार है। क्या, क्या कहा करुण हृदय की पुकार,। और सोने की चिड़िया में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़...
पीली-पीली सरसों फूली
कविता

पीली-पीली सरसों फूली

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** भटकी बयार राहें भूली, कुंजन-कलिन बहारों में। पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।। कभी कुहासों में पालों की, बूँदे टप-टप गिरती हैं कभी सुबह सूरज की किरणें, साक सुनहला करती हैं आलू हरे-भरे खेतों से, हरियाली महकी जाए चमकीली अलसी पुष्पों से, रँग लतरी में भर आए लहराते अरहर को देखो, बांगर-खेत खदारों में। पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।। शिशिर झूम के हवा उठाए, तृण-तृण में कंपन आए चना-मटर अरु बरसीमों की, खेती सुख से लहराए गेहूंँ के उठते सुगन्ध से, आस जगे सबके मन की गन्ने के खेतों में देखो, पोर-पोर बरसे रस की गाजर मूली लहसुन लहके, छोटे-छोटे क्यारों में । पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।। धुंँधले-बादल बैठन चाहें, धरती की अकवारी में टप-टप बूँदे बरसन चाहें अमवा अरु महुआरी में सू...
घर की रौनक
कविता

घर की रौनक

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माँ के मन का भाव जो जाने, दिल का हर अरमान वो जाने, खुशी के पल देती वो हर क्षण, कीमत पहचाने वो हर पल, घड़ी समय पल को पहचाने, दुख सुख की परवाह वो करती, आदर्श चरित्र बेटी वो होती। गम को कोसो दूर है रखती, बिन बेटी के आँगन है सुना, बिन बेटी के त्यौहार भी सुना, खुशीयाँ आये आने से द्वार, शुभ मंगल होवे सब काज। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
“स्त्री : नर की जीवनधारा”
कविता

“स्त्री : नर की जीवनधारा”

राम बहादुर शर्मा "राम" बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) ******************** महिला अबला का पर्याय पर शक्तिरूप अभिव्यक्ति है म मनुष्य का प्रथमाक्षर म से ही मनुज उतपत्ति है हि मे हिमालय सा हिय विराट ममता वात्सल्य और भक्ति है ला है लाखो स्वरूप का द्योतक यह एक रूप में स्त्री है यह जननी है, यह भगिनी है. पत्नी, पुत्री, और प्रेयसी है। है नमन आज शत बार उसे जो हर मानव की शक्ति है जब मैं एक पिंड अजन्मा था नव मास कोख में ढोया था जब जन्म लिया तब प्रथमबार जिस पावन कुक्षि में रोया था वह पीड़ा में भी मुसकायी ममता परिपूर्ण आहलादित थी वह जननी भी एक महिला थी वात्सल्य पूर्ण आच्छादित थी बचपन में खेला जिसके संग जिसने लाड़-दूलार दिया अपने से बढकर जिसने मुझको चाहा, पुचकारा, प्यार किया । वह भगिनी थी जिसके हिस्से का भी प्यार मुझे भरपूर मिला वह भी तो एक महिला थी छोड़ा अधिका...
भारत की नारी
कविता

भारत की नारी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नारी सदा स्वयंसिद्धा है, कर्म निभाता नारी जीवन। देकर घर भर को उजियारा, क्यों मुरझाता नारी जीवन।। कर्म निभाती है वो तत्पर, हर मुश्किल से लड़ जाती। गहन निराशा का मौसम हो, तो भी आगे बढ़ जाती।। पत्नी, माँ के रूप में सेवा, तो क्यों खलता नारी जीवन। देकर घर भर को उजियारा, क्यों मुरझाता नारी जीवन।। संस्कार सब उससे चलते, धर्म नित्य ही उससे खिलते। तीज-पर्व नारी से पोषित, नीति-मूल्य सब उसमें मिलते।। आशा और निराशा लेकर, नित ही पलता नारी जीवन। देकर घर भर को उजियारा, क्यों मुरझाता नारी जीवन।। वैसे तो हैं दो घर उसके, पर सब लगता यह बेमानी। फर्ज़ और कर्मों से पूरित, नारी होती सदा सुहानी।। त्याग और नित धैर्य, नम्रता, संघर्षों में नारी जीवन। देकर घर भर को उजियारा, क्यों मुरझाता नारी जीवन।। कभी न हि...
ओ चंद्रयान
कविता

ओ चंद्रयान

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** चल चल चला चल हमारी पहचान करता जा। चांद की जमीं को... तू हिंदुस्तान करता जा।। है अमर गाथा अब दूर न कोई ग्रह होगा.. देखना धीरे धीरे एक दिन नया भोर उदय होगा .. आंचल में शामिल तू आसमान करता जा।। क्या मुश्किलें क्या रूकावट? सब पर भारी पड़ेंगे.. देखना एक दिन... स्वर्णाक्षरों में इतिहास गढ़ेंगे.. चांद की जमीं पर अपना निशान करता जा।। धन्य! इसरो, धन्य देश हुआ.. हर गिरते हुए को... एक नया संदेश हुआ.. हार न मानना कभी, सफल.. हर इम्तिहान करता जा। हे ! टूटते 'मुसाफिर' स्वयं को चंद्रयान करता जा।। चल चल चला चल चांद की जमीं को हिन्दुस्तान करता जा।। परिचय :- रोहताश वर्मा "मुसाफिर" निवासी : गांव- खरसंडी, तह.- नोहर हनुमानगढ़ (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
याचक
कविता

याचक

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** यह हार नहीं क्षणिक विराम है क्योंकि जीवन कुरुक्षेत्र का महासंग्राम है बुरे कर्म बुरे शब्द अब नहीं ग्रहण करूंगा बहुत हुआ खुद से विमुख होना दया की भीख अब नहीं मांगूंगा वरदान लूँगा, चाहे वो तमस हो, चाहे हो ताप , जान चुका हूँ सम्मान के बिना कोई अस्तित्व ही नहीं मनुष्य बन धर्म की संपूर्ण कला से विकसित करूंगा स्वयं को मुक्त आए थे जीवों का जीवन बदलने का संकल्प लिए, है सृष्टि का कर्ज इस जन्म मे मेरे लिए बार-बार आना पडे इस कर्तव्य पथ पर फिर भी, भागुंगा नहीं विक्षिप्त होकर बार-बार ही सही मुक्त आया हूँ मुक्त ही जाऊँगा, अनवरत अनन्त काल तक!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र,...
मृदुल वाणी
कविता

मृदुल वाणी

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** हमारी वाणी ही हमारी पहिचान हैं। बिना वाणी के हमारा शरीर बेजान है। ****** वाणी मधुर हो तो सुनने में आनंद आता है। और कठोर हो तो मन खराब हो जाता है। ******* मीठी वाणी बोलने वाला तीखे मिर्च भी बेच देता है। कठोर वाणी बोलने वाला मिठाई भी नहीं बेच पता है। ******* नफरत करते है सभी कठोर वाणी बोलने वाले से। प्यार करते है सभी मृदुल वाणी बोलने वालों से। ******* मीठी वाणी से पराये भी अपने हो जाते हैं। कड़वा बोलने से अपने भी दूर हो जाते है। ******* कोई गीत गाता है कोई भाषण देता है। जब उनकी भाषा होती है मृदुल तो सुनने में आनंद आता है। ******* मधुर वाणी हमें तरक्की के रास्ते पर ले जाती है। कठोर वाणी हमें ऊपर से नीचे गिरती है। ******* यदि आप चाहते है जिंदगी में आगे बढ़ना। तो हमेशा अपनी वाणी ...
काश दिख जाये
कविता

काश दिख जाये

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि अपनी मौत कैसे देखूं, हां देखना है यार मुझे बनिस्पत इसके कि कोई मेरा अपना मुझे दिखाये, मुझे व्यवहार या चाल सिखाये, वैसे थोड़ा-थोड़ा जा रहा हूं उसी अनचाहे रास्तों की ओर जहां नहीं चाहता कोई स्वेच्छा से जाना, सभी चाहते हैं फर्ज निभाना, हर कर्ज़ चुकाना, लेकिन फंस जाता है भंवर में, जज्बातों के, हालातों के, जो करने की कोशिश करता है कि इसे कब और कैसे कमजोर करूं, इनके सिर पर कब पांव धरुं, दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो बुरे या आफत के वक्त में आपको सम्बल दे, हर रिश्ते से लेकर हर मित्र मंडली तक तैयार बैठे हैं शायद आपके मौत के इंतजार में, चाल,चरित्र,चेहरा मेरा स्थिर था है और रहेगा, अभी तक किसी को भी अपनी मौत देखने को नहीं मिला, काश दिख जाये, जब भी आये। ...
सूरज न अभिमान दिखाता
कविता

सूरज न अभिमान दिखाता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ‌हाथी ही पहाड़ के नीचे नही आता दिनपति भी बादलों में छुप जाता है रवि को जब ढक लेते हैं मेघा तो वह भी अपनी सीमा जान जाता है तभी तो रवि गर्व नहीं करता उसे अहंकार नही ढक पाता आओ मानव मुझे मनाओ कह, वह सिर न उठाता। सूर्य ऊर्जा, प्रकाश का दाता सारे जग का जीवन दाता उस बिन अस्तित्व नही जग का फिर भी न अभिमान दिखाता। जल, वायु सबको देता सबका मान सम दृष्टि से सबका करता सम्मान नही कभी एहसान जताता हर कण पर पूरा प्यार लुटाता। इस गुण से ही दिनकर पाता सबमें सम्मान नही कोई बैरी उसका ब्रह्मंड में सर्वोच्च स्थान। बच्चों तुम सूरज बन जाओ। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज...
मातृशक्ति
कविता

मातृशक्ति

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** "रोज ही मातृ दिवस मनाओ, झुझती वह हर रोज है, हर पल पग-पग देती परीक्षा, कभी माँ बन कभी सासु वो" कितनी भी रणचंडी बन ले, प्रेम झलकता आंखों में, कभी हाथों में तलवार है उसके, कभी हाथों में बेटा है। कभी घोड़े पर असवार है होती, कभी घोड़ा बन जाती वो, कभी रक्त से तलवार है धोती, कभी कलम चलाती वो। कभी सिंहासन राज है करती, कभी वन वन में डोले वो, कभी बेटे का बलिदान है करती, कभी पन्नाधाय बन जाती वो। एक आंख में आंसू उसके, एक में प्रेम झलकाती वो , एक पल में रोना है उसका, एक पल में हंस जाती वो। कितना त्याग बलिदान है उसका, कभी चण्डी कभी दुर्गा वो, कभी जनक दुलारी सीता बनती, कभी वन देवी बन जाती वो। कभी हल से वह पैदा होती, कभी-कभी अग्नि परीक्षा देती वो, कभी धरती फट समा वह जाती, वह भारत की बेटी जो। ...
इन्तजार कब तक
कविता

इन्तजार कब तक

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यूँ ही दिल जलाया हमने किसी को अपना बना के यूं ही इन्तजार किया हमने किसी को आज भुलाके। यू ही पथ पर बिछाई आंखें किसी से आंख मिलाके तारों के झुरमुट में खोजा खोजा चांद की चांदनी में। तुम छुपतीं रही ओ सुरमई सन्ध्या थानी चुनरिया ओढकर के फूलो में लताओं में छुपते देखा और देखा हैं, शाम तुम्हें पहाड़ों की चोटियों को सुनहरी करते। मैं इन्तजार कब तक करतीं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसा...
मधुमास
कविता

मधुमास

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** बसंत ऋतु के आगमन पर छाया हुआ हैं मधुमास बिहंग कलरव करते मधुर प्रिय की करते सब आस।। रूप अलौकिक राधिका का, कृष्ण करें जब श्रृंगार फागुन मैं होरी खेलन को कान्हा लियो मोहे पुकार।। नवयौवन, लावण्यता, जैसे नवीन ही आई हो बाहर खिल उठी देखो वसुंधरा, मधुमास छाया हैं अपार।। पीली पीली सरसों के फूलों से छाई बहार रही मैं माप अंबर तक दिखती रौनक, जैसे सूर्य का बड़ गया ताप।। आनंदित है यह दसों दिशाएं, देखकर मधुर ये मधुमास प्रियतम से मिलने जाए सखी, प्रिय से मिलन की आस।। फागुन को आता देख कर वसंत ऋतु में छाया मधुमास, कोयल कुके हर डाली पर, पुलकित विहंग करें प्रेम रास।। खेत खलियान सब फल फूल रहें, बोराया हुआ फिर आम, नव पल्लवित पुष्पित जीवन, यही तो हैं मधुर मधुमास।। परिचय :-  श्रीमती प...
इंतजार के पल …
कविता

इंतजार के पल …

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** इंतजार के पल भी बहुत होते हैं कठिन, इंतजार किया माता रुक्मणी ने, प्रभु पति पाये गोपाल नारद के मुख से कहानी सुनी ! कृष्ण चंद्र महाराज, पति रूप स्वीकार किया माता देखो आज, पाती (पत्र) भेजी कृष्ण को ले जाओ दीनानाथ, नहीं तो शिशुपाल दुष्ट आपकी दासी ले जाएगा साथ (आपका हक)। पाती पढ़कर है प्रभु कुंदनपुर में आए, रूखमणि को रथ में बैठा करके, ले जाए प्रभु साथ, इंतजार के पल खत्म हुए वर पाया गोपाल, पटरानी रुक्मणी बनी राजा हे नंदलाल। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. ...