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कविता

वो क्यों है?
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वो क्यों है?

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जो वर्तमान है, वो क्यों है? हम बने जिम्मेदार कायरता तो जैसे हमारे ख़ून में थी और इन्तज़ार करना हमारा जीवन था। प्रार्थना पत्रों और निवेदनों की भाषा हमें घुट्टी में पिलायी गयी थी और मामूली लोगों के प्रति थोड़ी दया और कृपालुता ही हमारी प्रगतिशीलता थी। हमारी दुनियादारी को लोग भलमनसाहत समझते थे। संगदिली हमारी उतनी ही थी जितनी कि तंगदिली। अत्याचार और मूर्खता से उतने भी दूर नहीं थे हम जितना कि दिखाई देते थे और दिखलाते थे। जब ज़ुल्म की बारिश हो रही हो और कुछ भी बोलना जान जोखिम में डालना हो तो हम चालाकी से अराजनीतिक हो जाते थे या कला और सौन्दर्य के अतिशय आग्रही, या प्रेम, करुणा, अहिंसा, मानवीय पीड़ा, ख़ुद को बदलने आदि की बातें करने लगते थे। और लोग इसे हमारी सादगी और भोलापन समझते थे...
संगति भी शृंगार है
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संगति भी शृंगार है

नवनीत सेमवाल सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) ******************** हूॅं तो अदृश्य मगर होती महसूस बहुत हूॅं शृंगार हूॅं मैं, संस्कार हूॅं सु-शील द्वारा आहूत हूॅं छाप मेरी ज़ोरदार है क्योंकि सदाचरण मेरा शृंगार है।। हूॅं बीजांकुर, बीजाक्षर हूॅं होगी वाटिका किसी की सीरत उगने में थोड़ी होगी जटिलता उगकर तेरी खिलेगी नीयत छाप मेरी ज़ोरदार है क्योंकि सदाचरण मेरा शृंगार है।। हूॅं आँचल से व्यापक मैं लीन है मुझमें सोलह संस्कार होगा प्रभाव मेरा धीरे-धीरे तुम अपनाना पहली बार छाप मेरी ज़ोरदार है क्योंकि सदाचरण मेरा शृंगार है।। हूॅं अतिथि अनाहूत हूॅं मैं करना कोशिश बुलाने की प्रयासरत हूॅं तुम्हारे मन में सद्वृति की लहरें उठाने की छाप मेरी ज़ोरदार है क्योंकि सदाचरण मेरा शृंगार है।। परिचय :-  नवनीत सेमवाल निवास : सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) घोषणा पत्र ...
मावठा
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मावठा

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सर्दी की पहली बरसात उपवन में छाई महीनों के बाद बाहर। छाई हरियाली खेतों में और छिटकी सूर्य की पहली लाल किरण बागों में। दूर वनों में पसरा गहरा कोहरा और घरों में गर्माहट कर रहा काला कोयला। हिमपात हो रहा पहाड़ों पर और बह रहा शीतल स्वच्छ जल नदी नलों में। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
भोर आई अलबेली
कविता

भोर आई अलबेली

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** रोज सुबह अलबेली भोर होती है। आधी दुनिया तब तक सोती है। ******* चिड़ियों का चहचहाना चारों तरफ मस्त हवाएं। लगता है ऐसे कि हम किसी नयी दुनियां में आये। ******* चारों तरफ शांति का वास होता है। हर व्यक्ति प्रकृति के पास होता है। ******* गुनगुनी धूप में बहुत मजा आता है और साथ में कोई हो साथी तो आनंद छा जाता है। ******** भोर में भ्रमण का अलग ही मजा है। पेड़ की टहनी पर जैसे गुलाब सजा है। ******* सुबह भोर में उठकर करें प्रतिदिन व्यायाम योग,साधना कर अपना जीवन बनाए आसान। ******** जो रोज उठकर भोर को देखता है। वह कभी जिंदगी में डॉक्टर को नहीं देखता है। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौ...
धर्म को खतरा
कविता

धर्म को खतरा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** धर्म के नाम पर... क्यों अधर्मी हो जाता है। मेरे भारत में रहने वाला ....हर धर्म क्यों बात-बात पर खतरें में हो जाता है। धर्म के नाम पर... क्यों अधर्मी हो जाता है। लहू का रंग जिन्हें नज़र नहीं आता है। कट्टरता के नाम पर जो कहीं गोली तो कहीं पत्थर चलवाता है। क्यों उन्हें इन्सानियत में, एक रब नहीं नज़र आता है। धर्म के नाम पर... क्यों अधर्मी हो जाता है। देश-देश धर्मों की आग में जलता है। कहीं बम कही मिसाइल गिर जाता है। यह कौन से धर्म है। जो नफरतों से एक दूसरे को काट खाता है। इन्सानियत को भूल कर धर्मों में बंट जाता है। बात-बात पर मरने-मारने को तैयार हो जाता है। आज़ाद भारत में गुलाम सोच से क्यों निकल नहीं पाता है। धर्म के नाम पर... क्यों अधर्मी हो जाता है। क्यों बात-बात पर हर धर्म खतरें में हो ज...
भारत के भारतरत्न
कविता

भारत के भारतरत्न

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** हे भारत के भारतरत्न, जिनका युग स्वर्ण युग कहलाया, जिनका युग कवियुग कहलाया, जिनके जीवन में कोई मतभेद नहीं, वही व्यक्ति भारतरत्न कहलाया। हे भारत के भारतरत्न, जिनके युग मे विरोधी हुये अपने, जिनके कदमों पर सारा जग चलता था, जिनके आगे विरोधी भी पस्त हो गए वो व्यक्ति भारतरत्न कहलाया। हे भारत के भारतरत्न, जिन्होंने जीवन भर राष्ट्रधर्म अपनाया, जिन्होंने भारत का मान-सम्मान बढ़ाया, जिसने जीवन मृत्यु को सत्य माना, वही व्यक्ति भारतरत्न कहलाया। परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास : चैनपुर, सीवान बिहार सचिव : राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्...
गगन
कविता

गगन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गगन भी नमन करता है उनको जो माटी से सोना उगाते हैं नमन करता है गगन उनको जो सीमा पर रक्षा करतें हैं सियाचिन का बर्फ हो या। रेगिस्तान की गर्मी का कहर दृढ़ है, डटे हैं, निर्भयता से खड़े हैं दुष्ट दलन के लियै। नमन करता है गगन ऊनको तो बोझा ढोकर गगन चुम्बी भवनों का निर्माण करतें हैं गगन भी नमन करता है उसको मानव सेवा के वृति है निस्वार्थ अनवरत लगे रहते हैं। नमन करता है गगन थरा को जो धैर्य से, अडिग खड़ी हैं खनन, उत्खनन, ज्वालामुखी का ताप सहती है। मानव समाज के लिए प्रकृति के रुप में खड़ी हे दृढ़ निश्यी होकर तभी तो, तभी तो गगन उत्सुक होता है धरा से मिलने के लिये सन्ध्या की प्रतीक्षा करता है क्षितिज पर धरा से मिलने के लिए परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श...
जंगल म चुनाव
आंचलिक बोली, कविता

जंगल म चुनाव

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता पाँच बछर बीतगे संगवारी हो, फेर होही जंगल म चुनाव। आबेदन भराय ल चालू होगे, लिखव फारम म अपन नाँव।। बेंदरा मन बने हें कोटवार, हाथ म धरे दफड़ा ल बजाथें। ए पेड़ ले ओ पेड़ म कूदके, हाँका पार-पार के बलाथें।। काली पहाड़ी म बईठक होही, सुन सियान मन सुंतियागें। हमू बनबो सरपंच कहिके, जानवर मन जम्मों जुरियागें।। शेर कहिथे-मँय जंगल के राजा आँव, अकेल्ला होहूँ खड़ा। कोन लिही मोर से टक्कर, काखर म दम हे गोल्लर सड़वा।। हाथी कहिथे-तोर कानून नई चलय, जनता के अब राज हे। जेला चुनही जनता, जीतही चुनाव, तेखर मूड़ी म ताज हे।। लेह-देह म मानगे शेर, कोन-कोन खड़ा होहव ए बतावव। का-का करहू बिकास तुमन, अपन घोसना पत्र सुनावव।। शेर छाप म शेर खड़ा होही, कोलिहा छाप म कोलिहा ह। हाथी छाप म हाथी खड़ा होही, बिघवा छाप ...
सिर्फ मौन रह जाता है
कविता

सिर्फ मौन रह जाता है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हृदय की पीड़ा भीतर ही दबी रह जाती है चेहरे की रेखाएं सब सच कह जाती हैं सत्य वदन कारण, रिश्ते हो जाते हैं तितर-बितर, भाव सोख लेता है हृदय, संवाद नहीं करता सिर्फ मौन रह जाता है ... भ्रांतियां-झूठ, भ्रम-भटकन, हृदय करने लगता है आत्मचिंतन भावनायें विलुप्त हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं सिसकियाँ, एक विरोध- प्रतिरोध उभरता है, स्मृतियों के पुलिंदे से, द्रवित मन सूकून ढूंढता है अकेला प्रतीक्षारत किन्तु बस केवल मौन रह जाता है ... परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "जीवदया अंत...
रेत का केक
कविता

रेत का केक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अर्द्ध छुट्टी के समय बच्चे विद्यालय के खेल मैदान में खेल रहे थे, होली की खुशियां मन में रख एक दूसरे पर धूल उड़ेल रहे थे, सभी बच्चों ने एक दूजे को निमंत्रण भिजवाया, जन्मदिन मनाने के लिए रेत का केक बनाया, बालू पर उकेर तोरण बांध रहे थे, बालमन नहीं कोई सीमा लांघ रहे थे, एक स्वर में सब कोई हैप्पी बर्थडे टू यू गा रहे थे, रेत का केक काटे जा रहे थे, केक का टुकड़ा काट-काट सबको प्यार से बांटा गया, दिख रहा था सब में नाता नया, बड़े ही चाव से सब केक खा रहे थे, खाने का अभिनय कर मुंह बजा रहे थे, सबसे मिलने के लिए बर्थडे गर्ल ने अपनी सुविधानुसार बना लिए शिफ्ट, सारे बच्चे अपनी क्षमतानुसार उन्हें थमा रहे थे फूल पत्ते से बना गिफ्ट, इस तरह से बच्चों का आज दिन बन गया, हुआ छुट्टी का सदुपयोग और मिला उन्ह...
सर्दी का मौसम
कविता

सर्दी का मौसम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** धुंध छाई, लुप्त सूरज, शीत का वातावरण, आदमी का ठंड का बदला हुआ है आचरण। बर्फ में भी खेल है, बच्चों में दिखतीं मस्तियाँ, मौसमों ने कर लिया है पर्यटन का आहरण।। बर्फ का अधिराज्य है, चाँदी का ज्यों भंडार हो, शीत ने मानो किया उन्मुक्तता अन-आवरण।। रेल धीमी, मंद जीवन, सुस्त हर इक जीव है, है ढके इंसान को ऊनी लबादा आवरण। धुंध ने कब्जा किया, सड़कों पे, नापे रास्ते, ज़िन्दगी कम्बल में लिपटी लड़खड़ाया है चरण। पास जिनके है रईसी, उनको ना कोई फिकर, जो पड़े फुटपाथ पर, उनका तो होना है मरण। जो ठिठुरते रात सारी राह देखें भोर की, बैठ सूरज धूप में गर्मी का वे करते वरण। धुंध ने मजदूरी खाली, खा लिया है चैन को, ये कहाँ से आ गया जाड़ा, करे जीवन-क्षरण। ज़िन्दगी में धुंध है, बाहर भी छाई धुंध है, ठंड बन रावण करे सुख ...
अटल जी अद्भुत सरलता
कविता

अटल जी अद्भुत सरलता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सरलता से जीना थाजीवन का सपना नितनियमधर्म का संयम पालन रखना अनुशासन सकुशलता से कार्य करना कड़वा विचार त्याग, मुस्कुराते रहना ।१। अनर्गल शब्द वाणी को विराम देते बोलने में गहरे, शब्दों में तोल देते फिजूल विषयों के उलझनों से बचते कर्मठता रखे, जंजाल में नहीं फंसते ।२। विचारों और भावनाओ को ह्रदय से खुलकर अपनी मधुरवाणी में कहते बात वही रखते जिनका मूल्यांकन सम्बोधन की भाषा में, गहरे रचते ।३। कविता की पंक्तियों को रुक रुक कर मीठे मीठे रसीले मधुरवाणी में कहते अंतहीन गहराई की कविताओं में अटल जी ह्रदय से बखूबी सटीक रचते ।४। उच्चतम विचारों में जीने की इछाओ में सीखे जीवन में उच्च कर्म करना बढ़ना अहंकार की भाषाओं में बातें न करना सदा सरलता में सीधे विचारों को रखना ।५। राजनीति जीवन में उतार चढ़ाव के मोड़ वे तनिक ...
शीशा और भविष्य
कविता

शीशा और भविष्य

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** शीशा कोई भविष्य नहीं दिखाता है। शीशा केवल हमारी सूरत दिखाता हैं। ******* हम जैसे होते है शीशा वैसा दर्शाता है। भविष्य से तो उसका दूर दूर न कोई नाता है। ****** हमारा भविष्य हमारे कार्य पर निर्भर होता है। जैसे कार्य करते है वैसा परिणाम होता है। ******* भविष्य जानने के चक्कर में अपनी जिंदगी बर्बाद न करें। जिंदगी का एक लक्ष्य बना उसपर कार्य करें। ****** यदि ज्योतिषी भविष्य जानते तो अपना क्यों नहीं देखता है। व्यर्थ की दुकानदारी चलाकर भोले लोगों को नोचते है। ****** आने वाले अच्छे कल के लिए अपना आज मत गंवाओ बिना किसी चिंता या डर के अपना वक्त बिताओ। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक...
विजय अभियान
कविता

विजय अभियान

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जागो! सफलता की राह है दुर्गम और कठिन। सुबह का सूरज शंखनाद कर रहा है प्रतिदिन।। निद्रा की देवी कोई स्वप्न दिखा रही काल्पनिक। जीवन उद्देश्य से भटका रही करके दिग्भ्रमित।। प्रेम पाश में बांध तुम्हें, मधुर प्रेम गीत गवाएगी‌। विरान बगिया में सुन्दर, सुवास फूल खिलाएगी।। निकलना होगा रहस्यमयी सपनों की दुनिया से। स्वयं की आवाज सुन, घबराओ मत दुविधा से।। विश्वास का डोर पड़कर, लक्ष्य पर्वत पर चढ़ना है। धीरे-धीरे ही होगी तैयारी, नित दिन आगे बढ़ना है।। पढ़ता चल ज्ञान ग्रंथ को, समय का थामकर हाथ। ध्यान और एकाग्रचित से स्वयं मंथन कर हर बात।। मन के घोड़े सजाकर, कर्मरथ में हो जाओ सवार। अस्त्र-शस्त्र कलम और पुस्तक, कर वार-पे-वार।। जीत मिलेगी भव्य जब समर्पण का दोगे बलिदान। ज्ञान युद्ध के लिए छेड़ तू निरंतर विजय अभियान।। पर...
गौ माता
कविता

गौ माता

पूनम ’प्रियश्री’ प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ’गौमाता’ एक प्यारा सा शब्द एक अटूट सा रिश्ता पर हो जाता व्यथित मन देख इनकी दुर्दशा । एक गहरा ज़ख्म एक रिसते घाव घूमती गली–गली होकर लाचार । देती थी जब दूध तो पाती लाड दुलार अब देखो खाती कितनों की ही मार। माना किसान का करती फसल नुकसान पर उसकी ऐसी सजा तूं जानवर है या इंसान । माना कि नहीं हैं सब एक से पर होनी चाहिए गौ रक्षा देश से । ’गाय बचाओ’ का जब गूंजेगा संदेश तभी मिटेगा गौ माता का क्लेश। परिचय :-  पूनम ’प्रियश्री’ निवासी : प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) सम्प्रति : प्रधानाध्यापिका काव्य विशेषता : काव्य में स्त्री प्रधानता और प्रेम की प्रगाढ़ता। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
सब जग शीश झुकाता है
कविता

सब जग शीश झुकाता है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तब चूमेगी कदम सफलता, जब प्रयास होगा मन से। खुशियाँ आएंगी दामन में, दुख जाएगा जीवन से। उन्हें सफलता हरदम मिलती, जो मन से प्रयास करते। जो हर पल प्रयासरत रहते, खुशियाँ जीवन में भरते। स्वाद सफलता का चखना हो, श्रमरत भी रहना होगा। दुख हो भले पहाड़ों जैसा, उसको भी सहना होगा। उनको सदा सफलता मिलती, जो निज काम सदा करते। कर्मों के बल पर जो खुशियाँ, अपने दामन में भरते। सदा सफलता वे पाते जो, गागर में सागर भरते। उनके कदम चूमती मंजिल, जो मन से प्रयास करते। मंजिल तक तुमको जाना हो, नहीं राह में रुक जाना। नहीं आपदाओं के सम्मुख, कभी हार कर झुक जाना। श्रमरत रहने वाला मानव, जगवंदित हो जाता है। सृजनशील श्रमरत मानव को, सब जग शीश झुकाता है। कदमों में नतमस्तक होकर, सदा सफलता आएगी। कामयाब मानव ...
हमसफ़र
कविता

हमसफ़र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी खुशियाँ हो तुम्हीं, हो मेरा उल्लास। तुमसे ही जीवन सुखद, लब पर खेले हास।। जीवन का आनंद तुम, शुभ-मंगल का गान। सच, तुमने रक्खी सदा, मेरी हरदम आन।। ऐ मेरे प्रिय हमसफ़र! तुम लगते सौगात। तुमसे दिन लगते मुझे, चोखी लगतीं रात।। हर मुश्किल में साथ तुम, लेते हो कर थाम। तुमसे ही हर पर्व है, और ललित आयाम।। संग तुम्हारा चेतना, देता मुझे विवेक। मेरे हर पल हो रहे, तुमसे प्रियवर नेक।। तुमको पाकर हो गया, मैं सचमुच बड़भाग। तुम सुर, लय तुम गीत हो, हो मेरा अनुराग।। तुम ही जीवन-सार हो, हो मेरा अहसास। और नहीं आता मुझे, किंचित भी तो रास।। तुमने आकर हे ! प्रिये, जीवन दिया सँवार। तुम तो प्रियवर, प्रियतमा, प्यार-प्यार बस प्यार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) ...
खोदिए …रुकिए मत
कविता

खोदिए …रुकिए मत

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* खोदिए! मस्जिद के नीचे खोदिए मिलेंगी मूर्तियां यक्ष, किन्नर, गंधर्व, देवों देवियों की मूर्तियां उसकी भी जिसका मंदिर ऊपर नहीं है. मूर्तियों के नीचे खोदिए मिलेंगे मिट्टी के बर्तन खिलौने उसके नीचे खोदिए पत्थर के औज़ार बर्तन और हथियार भी सिर्फ़ पत्थर के. उसके भी नीचे खोदिए अस्थियां खोपड़ी ठठरियां बचे-खुचे दांत मिलेंगे. उसके भी नीचे खोदिए रुकिए मत अभी भी आपके नीचे उतरने की ख़त्म नहीं हुई है संभावना. हालांकि ज़िंदगी की शर्त थी ऊपर उठने की कींच में धंसने की नहीं फिर भी जितना नीचे गिर सकते हैं गिरिए और खोदिए. अब मिलेंगे फ़ॉसिल्स उन पेड़-पौधों जीव-जंतुओं के जिनकी कब्र पर इस वक्त खड़े हो तुम. तुम्हारी सभ्यता तुम्हारे मंदिर-मस्जिद गिरजे ख़ानकाह सब खड़े हैं गर्व से जबकि शर...
वो थे इसलिए….
कविता

वो थे इसलिए….

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकृति ने पैदा किया इस धरती में जरूर, इंसान होकर भी इंसान नहीं बन पाये क्योंकि कुछ लोगों को था जाति का सुरूर, था उस सनक में इतना ज्यादा घमंड, अमानवीय अत्याचार करते थे प्रचंड, वो रहने को तो मुट्ठी भर थे, पर अपने लाभ के लिए सदा प्रखर थे, जिनके लिए जरूरी था साम, दाम, दंड, भेद, हत्या जैसे अपराध पर थे नहीं जताते खेद, था सबके लिए जरुरी उनकी हंसी, सब त्याग देते थे मन में उमड़ी खुशी, ऐसा नहीं है कि किसी ने उनकी करतूत किसी को बताया नहीं, जाल में उलझे लोगों ने जिसे समझ पाया नहीं, उनका प्रमुख काम था स्वयं पढ़ना, उलझाये रखने के लिए कथाएं गढ़ना, सब पड़े थे जैसे हो आदिमानव, मिथकों को तोड़ने आया एक महामानव, सारे विरोधों के बाद भी जिसने भरपूर पढ़ा, मानवता के लिए जिसने संविधान गढ़ा, महाग्रंथ में जिसने लिख डाले इंसा...
काल्पनिक स्त्री
कविता

काल्पनिक स्त्री

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक काल्पनिक सी स्त्री, जो सदैव नवीन होती, नए नए रूप धरती, कभी ना उम्मीद ना होती! काम काज में निपुण होती पाक कला में सिद्ध हस्त होती, सबके नाज़ो नखरे सहती हर कुछ परिपूर्ण करती! फ़ूलों की खुशबु की तरह हरदम तरोताजा रहती अपने प्राणों को मुट्ठी में दबा कर जीती बटोर कर हर टुकड़ों को, संजोकर रखती विवश हो, खामोशी से सबकी चाहतों को पूरा करती उसे नहीं पता स्वयं के सूकून-दर्द-और सपनो की परिभाषा नहीं मालूम गहरे कुएं के तल से बाहर आकाश देखना वो है एक काल्पनिक स्त्री जिसकी चाहत सभी को होती!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम...
भारत तीर्थ मेरा
कविता

भारत तीर्थ मेरा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** भारत तीर्थ मेरा मेरा मन और कहां जाए मेरे बचपन की स्मृतियां बालपने की वो सखियां भारत की वो गलियां सपनों की वो रतियां भाई बहन की गलबहियां खेले धूप-छांव-पहाड़ और नदियां छुटाई खूब पटाके की लड़ियां भारत तीर्थ मेरा। मेरा सपना हो गया पूरा सबको घर भोजन पानी बिजली मनाए भारत का हर रहवासी ईद, दिवाली, होली, संक्रांति, लोहड़ी गिद्दा, भंगडा, गरबा, कुचीपुड़ी तिल-लड्डू, पोंगल-खिचड़ी गुड़ी-पड़वा पर पूरन पोली भारत तीर्थ मेरा। सबके मन हों वेद उपनिषद् सबके हाथों कंप्यूटर आंध्र कर्नाटक तेलंगाना केरल तमिलनाडू के देवालय सबका हो अपना शोधालय, सत्संग की महिमा और मैत्री त्याग भावना रामायण सी सबके मानस में गीता सभी समस्याएं मिट जाएंगी न हो जीवन रीता-रीता भारत तीर्थ मेरा। गंगासागर असम, जगन्नाथ पुरी मिजोरम नागधरा ...
समय
कविता

समय

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहते हैं समय बदलता है करवट लेता है समय बहता है सरिता सा समय दौड़ता है रवि की भांति पल, क्षण समय की शाखाएं बांट जोहतीं हैं मानव की कि शायद मानव क्षण को पकड़ ले जकड़ ले और सोपानों पर चढ़ कर शिखर को छू लें पर, पर क्षण की भंगुरता ने मानव को पिछे छोड़ आगे चल दिया। हंसते हुए कि मानव को समय महत्व समझाना कठिन हैं क्यों कि उसकी उलझनों, झंझटों के जाल में छटपटा हैं समय बित जाने के बाद। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती...
मेरी पहचान
कविता

मेरी पहचान

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्मी सी मेरी पहचान। देता देव और इंसान।। भ्रमित कर स्वयं को हर लेता इक दिन प्राण।। मेरी ही कोख से निकल.... पलता वो वक्ष स्थल से.... खोट भर नैनों में फिर... दामन भरता अश्रुजल से।। कभी अग्नि में स्वाह तो कभी पत्थर होना पड़ा ।। कभी टुकड़े हुए हज़ार, तो कभी बेघर होना पड़ा।। क्रोध करूं या हास्य करूं। या स्वयं का परिहास करूं।। निर्णय तो करना होगा.... मौन रहूं या विनाश करूं।। सोचती हूं उठा लूं कोरा कागज़, दिखा दूं अपनी कलम की ताकत। ताकि जन्में, जब-जब "कविता".. "दिनकर" आकर छंदों से करें स्वागत।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि चन्दन एक ग्रहणी का दायित्व निभाते हुए अपने अनछुए अनसुलझे एहसासों को अपनी लेखनी के माध्यम से स्याह रंग कोरे कागज़ पर उतारतीं हैं, जो उन्ह...
एतबार नहीं इस जीवन का
कविता

एतबार नहीं इस जीवन का

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** कर ले लाख दिखावा सब अपना होने का जीवन के पल मे साथ हँसने और रोने का जख्म अपनो का दिया अब भरता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं दो दिन का है यहाँ रिस्तेदारों का जमघट जाना पड़ता है सभी को अकेले ही मरघट मरना अकेले ही कोई साथ मरता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं क्या रखा है महज इस मिट्टी की काया मे बना रखा है रिस्ते नाते मोह और माया मे दिल के दरवाजे तक कोई पहुँचता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं जाना अकेले है तो अकेले ही जीना सीखे जीवन के अनुभव चाहे खट्टे हो या हो मीठे बिना अनुभव जीवन सफर चलता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ही नहीं जीवन सफर है तो अब इसका मजा लेते है इसके हर पल मे जीवन की नई सदा लेते है जीवन सफऱ बिना संघर्ष के चलता ही नहीं एतबार भी अपनेपन का मै करता ...
प्रथम सभ्यता
कविता

प्रथम सभ्यता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** प्रथम सभ्यता इसी धरा पर इसके सीने पर हुई हलचल इस धरती पर पग रखा प्रथम मनु ने साक्षी बनकर। प्रथम वांग्मय इसी धरा पर वेदों की वाणी बनी धरोहर उपनिषदों ने की इनकी व्याख्या गाईं पुराणों ने गाथाएं मनोहर। कैस्पियन सागर और इर्दगिर्द वर्तमान लेबनान के राजा बलि फैली थी मानव संस्कृति जनक थे इसके कश्यप ऋषि। इस विकसित संस्कृति के रहवासी आर्य यहां कहलाए नाम धरा का आर्यावर्त था विष्णुभक्त प्रहलाद ईरान (आज का) का राजा था। अवतरित आदि तीर्थंकर ऋषभदेव जी श्रीराम के ६७ वें पूर्वज ऋषिराजा उनके ग्रंथों में दर्शन जो आज है केल्ट सभ्यता। पूज्य ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती नरेश महा यशस्वी राज्य चहुं दिशि फैलाया 'भारतवर्ष' देश यह कहलाया। (वर्ष का अर्थ है भूमि अर्थात् भरत की भूमि)। हुए यशस्वी राजा दुष्यंत ...