संवाद
माधुरी व्यास "नवपमा"
इंदौर (म.प्र.)
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पाटल कहे अलि से...........
मुस्कुराता था मैं अपनी,
खुबसूरती पे इतराता था।
मधुर गुंजार पर मैं तेरी,
झूम-झूम फिर जाता था।
रे अलि ये क्या किया?
आस-पासआकर जो तू,
जब इतना मुझे रिझाता था।
प्रेम भरी धुन पर मैं तेरी,
मचल-मचल जाता था।
रे अलि ये क्या किया?
ओ! भ्रमर तूने मुझे फिर,
चेत में रहने ना दिया।
चित्त-चैन चुराकर तूने,
विचलित, उद्विग्न फिर मुझे किया।
रे अलि ये क्या किया?
मधुर गीत गा-गाकर तेरे,
पास आने के प्रयास ने।
सुंदर-कोमल पंखुड़ियों को, मेरी
भेद-भेद विदीर्ण कर दिया।
रे अलि ये क्या किया?
अंतर में उमड़े प्रेम को,
प्राप्त तूने भी ना किया।
शांत सरोवर के भीतर तूने,
तरंगों-सा कंपन दे दिया।
रे अलि ये क्या किया?
अब अलि पाटल से कहे.....
तुझ पर सम्मोहित हो मैने,
घावों का परिणाम सहा।
चेतनता को जब पाया तो,
मन को घायल मैने किया।
रे पाटल ये...