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कविता

कोरोना से कर्मयुद्ध
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कोरोना से कर्मयुद्ध

मुकेश सिंह राँची (झारखंड) ******************** माना हालात अभी प्रतिकूल है, रास्तों पर बिछे महामारी के शूल हैं, घर पर बैठे-बैठे रिश्तों पर जम गई धूल है, पर ये युद्धकाल है, तू इसमें अवरोध न डाल, तू योद्धा है, चिंता न कर, होगी जीत न होंगे विफल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। माना आशाओं का सूरज डूबा, अंधकार का रेला है, ना डर अँधेरी रात से तू, आने वाली प्रभात की बेला है, तुझसे बँधी हैं उम्मीदें सबकी, सोच मत तू अकेला है, तू खुद अपना विहान बन, कर दे दस अँधेरे को विफल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। इस विपदा से जीत बस एकमात्र तेरा लक्ष्य हो, संकल्प कर, अपने मन का धीरज तू कभी न खो, रण छोड़ने वाले होते हैं कायर, तू तो परमवीर है, मास्क, सेनिटाइजर, हाथों की धुलाई और सामाजिक दूरी, ये तुम्हारे तरकश के चार तीर हैं, युद्ध कर तू है सबल, तू बस अपना कर्म कर, घर से बाहर न निकल। हम...
घर
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घर

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** बचपन की मस्ती की यादों का घर। दादा के पैरो की जन्नत हैं ये घर।। कुछ वक्त मिला हैं अनजाने में। बीता दो ये वक्त, इतिहासो में ।। वर्षो की कशमकश में क्या पाया क्या खोया। इसमें अपनो की पहचान भर दो।। सीख लो हर पहलू जीवन का। जहाँ भूल वही से सुधार करो।। घर में उल्लास, उमंग, उत्साह भर दो। कुछ दिन साथ घर में ही रह लो।। कुछ दिन घर में उत्सव समझ लो। कुटिया हो, या हो महल ---------।। जमकर इसमें रंग भर दो। अपनी अलग पहचान कर दो।। अधरों पर मुस्कान भर दो। घर को अपने रोशन कर दो।। . परिचय :- नाम : गोरधन भटनागर निवासी : खारडा जिला-पाली (राजस्थान) जन्म तारीख : १५/०९/१९९७ पिता : खेतारामजी माता : सीता देवी स्नातक : जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
सत्य
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सत्य

डॉ. स्वाति सिंह इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक धोबी के प्रश्न से, सीता मैली हो नहीं सकती। किसी के मन के मैल को सीता, धो नहीं सकती। सीता सत्य है, सीता सत है, विश्वास यह, खो नहीं सकती। सीता राम है, राममय है, वर्चस्व अपना यह खो नही सकती। सलाखों के अंदर गैलेलीयो को रखने से पृथ्वी का आकार बदल नहीं सकता, पृथ्वी गोल है, पृथ्वी गोल है, इसमें कुछ बदल हो नहीं सकता। सूली पर चढ़ाने से यीशु का, ईश कम नहीं हो सकता। मानव का मसीहा अमर है, गौरव, उसका कम हो नहीं सकता। यहां तो तोहमत से महरूम नहीं न युसुफ, न मरियमl वक़्त का तकाज़ा है बाकी कुछ नहीं। सत्य, सत्य है अंधेरा होने से, उजाला उसका, कम हो नहीं सकता। धुंध में कुंद हो नहीं सकताl सत्य परेशान हो सकता है, पराजित हो नहीं सकता। . परिचय :- डॉ. स्वाति सिंह निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी विभाग) सें...
जला दिए हैं
कविता

जला दिए हैं

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** जला दिए हैं ९ दिये ठीक रात ९ बजे ९ मिनिट तक, हमने सोचा था की भाग जायगा कोरोना, जैसे भाग जाते है गधे के सिर से सिंग ...!! भागा ही नही वो तो अभी भी है कायम, गलती से भी अब यारो मत बतियाना, और मत बैठना किसी के भी ढिग ..!! रहना होगा अभी हमको घरों में ही, त्रासदी भयंकर है भारी,कर दी अगर, जरा सी चूक तो लग जायँगे लाशो के ढिंग .!! वैर-भाव को छोड़ो अब तो हे धर्मधुरंधरो, देश बचा लो अब तो, इंसानियत को धारो, तुम्हारा तो कुछ भी गया न फिटकरी न हींग .!! लानत है, जिल्लत है, चायना वालो तुम पर, फैला दी पूरे विश्व मे ये कैसी महामारी, हाय लगेगी तुम्हे और मरेंगे तुम्हारे भी जिंग-पिंग .!! तुम क्या समझो वायरस हमला करके, पल में बन जाउंगा विश्व - किंग .!! इस मुगालते में मत रहना भूलकर भी, खोल त्रिनेत्र जाग गया अगर इस सृष्टी...
हे दीपज्योति नमन
कविता

हे दीपज्योति नमन

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** तिमिर नाशिनी दीपज्योति नमन! पाप शमनी हे सत्यज्योति नमन! सन्मार्ग दर्शिनी मार्गदर्शिका नमन! आत्म बोधिनी बोधशक्ति नमन! काल नाशिनी सर्वशक्ति नमन! ज्ञान प्रदायिनी ज्ञानशक्ति नमन! सद्भाव प्रवाहिनी प्रवाहशक्ति नमन! सत्यदर्शिनी हे सत्यशक्ति नमन! सिद्धि प्रदायिनी सिद्धिशक्ति नमन! . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने प...
ये दो जल बिंदु
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ये दो जल बिंदु

किरण बाला ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब) ******************** ये दो जल बिंदु, न जाने कब और क्यों छलक पड़ते हैं ! अस्थिर से मुझको क्यों कभी-कभी ये लगते हैं। ये सिर्फ अश्रु धारा ही हैं या फिर हैं कुछ और क्या हैं ये पीड़ा के उद्भव ! या फिर हैं चिर-शान्त मौन। ये तो हैं दर्द का कोमल अहसास ले आता है बीते दिन भी पास युगों-युगों से चिर-स्थाई सा दे जाता है सुख की आस। नहीं सिर्फ पीड़ा के साथी उन्माद में भी छलक पड़ते हैं कभी-कभी बन जीवन के प्रेरक नियत मंजिल तक ले चलते हैं। कमजोर नहीं तुम इनको समझो प्रलयकारी भी हो सकते हैं कहीं बनते हैं घावों के मलहम कहीं चिंगारी भी बन सकते हैं। यदि न होते ये अश्रु तो जीवन भाव-शून्य हो जाता रंग न होता कोई जीवन में बेजान सा ये जग होता। फिर भी सोचती हूं, न जाने कौन से उद्गम से निकल पड़ते हैं ये दो जल बिंदु, न जाने कब और क्यों छलक पड़ते हैं .... (पूर्व में प्रक...
नव संकल्प
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नव संकल्प

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जला कर.... एक दीया विश्वास का, हमें मानव सभ्यता में, विजयी उद्घोष जगाना है। हम हैं भारत की संतान मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर दूसरा ... .दीया प्रेम का हमें आपसी भाईचारा लाना है। धर्म से ऊपर है ....मानवता। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर तीसरा ....दीया देश हित में लगे, असंख्य जनों के प्रति, कृतज्ञ हो जाना है। जो लड़ रहे कोरोना से, दिन-रात उनके लिए, दुआ में हाथ उठाना है। जलाकर चौथा .....दीया देश हित का हमें, देश का मान बढ़ाना है। कोरोना से उपजे अंधकार को, विजयी प्रकाश के, दीयों से जगमगाना है। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर पांचवा..... दीया कुदरत का उपकार मनाना है। बहुत गलतियां कर चुके, हम कुदरत के साथ, अब समस्त भूले सुधारना है। मिलकर कोरोना को हराना है। जलाकर छठा .....दीया स्वच्छता का वचन निभाना है। हम रोकेंगे गंदगी के...
संक्रमण का अंधेरा
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संक्रमण का अंधेरा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** रोशनी से जागती उम्मीदों की किरण अंधेरों को होती उजालों की फिक्र सूरज है चाँद है बिजली है इनमें स्वयं का प्रकाश होता ये स्वयं जलते दिये में रोशनी होती मगर जलाना पड़ता सब मिलकर दीप जलाएंगे धरती पर करोड़ो दीप जगमगाएंगे औऱ ये बताएंगे संक्रमण के अंधेरों को एकता के उजाले से दूर करके स्वस्थ जीवन को दूरियां बनाकर देखा जा सकता पाया जा सकता। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता...
कॅरोना जनित पलायन
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कॅरोना जनित पलायन

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** पूरी दुनिया आतंकित है फैला रोग कॅरोना किया चीन ने देखिये कितना काम घिनौना काल के गाल में हुए समाहित हज़्ज़ारो इंसान भाग रहे घर द्वार छोड़ कर बचेगी कैसे जान शुरू कॅरोना जनित पलायन भाग रहे नर नारी खुद को झोंक रहे आफत में फेल व्यवस्था सारी सामाजिक दूरी का फतवा हो गया हवा हवाई हारेगा फिर कैसे कॅरोना हम हार रहे हैं लड़ाई दहल गया है देश समूचा पर कुछ हैं बेफिक्र नादानी में लोग कर रहे हरकत बहुत विचित्र हार गया गर देश कॅरोना से फिर बोलो क्या होगा शहर गांव में मचेगा क्रंदन मरघट का मंजर होगा दुख के बादल छंट जाएंगे थोड़ा धैर्य धरो ना साहिल सारा देश तुम्हारा हारेगा ये कॅरोना . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि :...
कलम का सिपाही
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कलम का सिपाही

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** देश के जन सेवकों को मैं जय हिंद कहता हूं कलम का सिपाही हूं मैं सत्य कहता हूं।। लोग तो सिर्फ वादा करते हैं और मैं लिख कर देता हूं देश की जनता के लिए जो अपनी त्याग -तपस्या मेहनत -लगन और परिश्रम के बल पर छोड़कर अपना घर- परिवार जनता की सुरक्षा के लिए खड़े हो जाते हैं बनकर दीवार चाहे कोरोना महामारी हो या फिर आ जाए बाल बच्चों सहित उसकी पत्नी हंता हमारे देश के जन -सेवकों के साथ खड़ी हे देश की जनता धन्य है वह लोग जो दिन -रात करते हैं जन सेवा चाहे भारी वर्षा बाढ़ आंधी या अन्य प्राकृतिक आपदा औरआजाए चाहे तूफान करोना जैसी महामारी मैं भी लगा दी अपनी दिलों जान मानते हैं अपनी ड्यूटी को सर्वोपरि परिवार से भी महान फिर वह चाहे सुरक्षाकर्मी डॉक्टर-जनसेवक समाजसेवी संस्थाओं देश के सैनिकों और पुलिस के जवानों को शिक्षक -के .पी .चौहान का शत -शत नम...
गांधी हैं एक बहाना
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गांधी हैं एक बहाना

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** उत्सव देता हमें न रोटी, देता गेहूँ दाना। प्रचार स्वयं का करते हो, गांधी हैं एक बहाना। "भूखे भजन न होहिं गोपाला", कह गए हैं पहले पुरखे। कैसे उत्सव देखें (?), जब हैं पेट हमारे भूखे। पहले गेहूँ , तब गुलाब, यह बात है एकदम सच्ची। पहले दो तुम रोटी हमको, फिर कहना बातें अच्छी। गांधी-पथ है कठिन बहुत, बस स्वांग ही रच सकते हो। समझ रहे हैं तुम्हें खूब, हमसे ना बच सकते हो। छोड़ो बाकी बातें, बस तुम कृषकों को ही ले लो। उनकी उपजायी फसलों का उचित मूल्य तो दे दो। 'भितिहरवा' में जाकर देखो कृषकों की बदहाली। जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में करते फसलों की रखवाली। शीत घाम दोनों सहते हैं बिना निकाले आह। देख रहे हैं, करते कितना तुम उनकी परवाह। बड़ी-बड़ी बातें करते हो मंचों पर बस जाकर। जीयेंगे क्या कृषक तुम्हारी बातों को ही खाकर? गांधी ने जो कहा, उसे था जीव...
खौफ
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खौफ

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** भाग दौड़ की जिंदगी में ठहराव सा आ गया, ऐसा लग रहा जैसे नया युग आ गया। गली चौबारा शांत सा दिलों पे तूफ़ान सा आ गया, रह रहकर इंसान भय पे अपने पर आ गया। न किसी की निंदा न कोई पर चिंता, दूरियां बना रहा मानव घर को बनाकर पिंजरा। सोना, चांदी, धन कोई काम नहीं आ रहा, थोड़े में गुजारा करने की हुनर सा आ रहा। अनहोनी आशंका से घिरता हुआ मन, अब जीवन पाने कि आस में मर रहा है इंसान। खूबसूरत जिंदगी के सपनों के झरोंखे ने प्रकृति ने भी क्या खूब नजारे दिखाए है। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak1...
बादलों के उस पार
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बादलों के उस पार

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बादलों के उस पार जो उजाला है वो मुझे चाहिए घिर गई है मेरी बस्ती गहन अंधकार में। कतरा कतरा रोशनी मुझे चाहिए। जो प्रज्वलित है भीतर हमारे वो ज्योतिर्मय भाव मुझे चाहिए। झर रही नयनो से आशा की किरणें स्पंदन सांसो में होता रहे जगमगाता जीवनदीप मुझे चाहिए। घर की देहरी पर खिंच रखी है लक्षमण रेखा उस जीवन रेखा के ऊपर प्रकाशपुंज रूप "दीपक" मुझे चाहिए। मुझे चाहिए। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
स्वर्णिम अतीत
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स्वर्णिम अतीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सुखी थे घर-घर सब परिवार! लुटाते थे आपस में प्यार! नहीं थी मध्य उच्च दीवार! जुड़े था संबंधों के तार! प्रदूषण मुक्त सभी आवास! दूर होकर थे कितने पास! उरों मैं थी आलोकित आस! हमेशा रहता था विश्वास! शान्ति शाला के थे सब छात्र! मनुज थे सब आदर के पात्र! परिश्रम करते थे दिन-रात्र! बुरे व्यक्ति थे कुछ ही मात्र! घरों में पशुपालन था आम! बहुत कम करते थे आराम! शुद्ध थे दूध-दही हर ग्राम! नहीं था मिलावटों का काम! लगे अब सब सपनों-सी बात! कहाँ हैं वे स्वर्णिम दिन-रात! बहुत बदले से है हालात! समय लाया है झंझावात! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•...
कसक
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कसक

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** अन्जान डगर थी स्याह था अन्धेरा, यह कदम लड़खडा़ते बढ़ते चले गये। लगती रही ठोकरे पाव घायल हो गये, अन्जानी तलाश मे खोते चले गये। मृगमरीचिका के जैसे बजे ख्वाव अक्सर, बढ़े जो कदम तो खोते चले गये। सजी न कोई महफ़िल बजे न साथ कोई, बिन साथ के ही मदहोश होते चले गये। पग में बंधे न नूपुर ने गीत गुनगुनाया , अनजाने में पांव यूं ही थिरकते चले गये। मिलन की ललक थी अतृप्त सी तृषा थी, मिट न सकी तृषा, हम मिटते चले गये . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपन...
राम तुम्हारे नाम
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राम तुम्हारे नाम

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं। तुम्हें बुलाने को हम आतुर, मंत्र उच्चारे हैं।। रावण से ज्यादा बलशाली दानव आया है, इससे कौन लड़ेगा प्रभु जी, आप सहारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... अदृश्य शक्ति का भेदन कैसे हम कर पायेंगे, इसके आगे कैद हुये हम बड़े बेचारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।.. देखो कैद में आज अयोध्या का जन मानस है। रोती अंखियां राम तुम्हारी राह निहारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... ऐसे निर्मोही बने रहोगे कौन पुकारेगा, प्रकटो हे श्रीराम भक्त जन तुम्हें पुकारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्...
एक दिया जलाएंगे
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एक दिया जलाएंगे

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** भारत को कोरोना मुक्त बनाएंगे, हम भारत वासी हर घर मे दिया जलाएंगे, हर भारत वासियो को सलामत रखना सिखायेंगे, हर क्षण को देश के नाम जीवन देंगे, हम सभी सामाजिक दूरियों का पालन करेंगे, जीवन को महामारी से स्वयं एव समाज को बचाएंगे, समाज मे जागरुकता एव ज्ञान का दिपक जलाएंगे, बिमारियों से सभी से दूर भगायेंगे, विश्व मे अपना भारत का नाम ऊचाँ करायेंगे, कोरोना से जीत कर हम विश्व को दिखलायेंगे, हम सभी भारत के सेना, पुलिस, डॉक्टर साथ-साथ हाथ बढ़ाएँगे, जीवन को कोरोना मुक्त स्वयं एव समाज से करायेंगे, घर मे रहकर लॉक डाउन का पालन जी-जान से करेंगे, ना घर से निकलेंगे और ना समाज को घर से निकलने देंगे ! . परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्य...
शांतिदूत बन जायेंगे
कविता

शांतिदूत बन जायेंगे

डाॅ. सुधा चैहान ‘‘राज’’ इंदौर (म.प्र.) ******************** भारत के दो वीरों ने..... नया इतिहास रच डाला देश की एकता तोड़ रही, उस धारा को बदल डाला।। अब भी स्वार्थ की डाली पर, कुछ विषधर ऐसे लिपटे हैं जो अपने विषदंतों से, हरदम जहर उगलते हैं।। देश की एकता अखंडता उनको रास नहीं आई सीमा पर जब हुई शांति उनकी तबीयत घबराई।। राजनीति की रोटियां अब, वो किस तंदूर में सेंकेंगे भोली-भाली जनता पर अब कैसे दंगा थोपेंगे।। केशर की क्यारी में देखो अमन चैन लहराये है अब अच्छे दिन आयेंगे, ये नैना स्वप्न दिखाये है।। धरती का स्वर्ग कश्मीर हमारी सचमुच जन्नत बन जायेगी डल के पानी में कश्ती अब गीत विकास के गायेगी।। हर बच्चे को शिक्षा होगी, हर घर में रोटी होगी जन जन को न्याय मिलेगा, नहीं आतंकी गोली होगी।। तीनों रंग तिरंगे के अब शांति संदेश सुनायेंगे कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक बतायेंगे।। धर्म निरपेक्षता ना...
हे मां शेरावाली
कविता

हे मां शेरावाली

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** काल के फंदे से हमको छुडाओ हे मां शेरावाली।। करोना के पंजे से हमको बचालो हे वैष्णव महारानी मां...... हे शारदे किरपा करो महामाई बचा लो मैंया छुडा लो भैया चरणों में तेरी जयकार जयकार रे... हे शारदे... धरती पे कैसा वाइरस आया मौत का खतरा छाया मुंह फैला कर मासूमों को अपना ग्रास बनाया तुझपे सबकी है श्रद्धा अपार बचालो मैया छुड़ा लो मैया चरणों में तेरे जयकार जयकार रे... हे शारदे... वैसे तो इंसा ने खुद अपने पाव कुल्हाड़ी दे मारी जैसी उसकी करनी थी तो ये सजा भी कम ही है माई सबका जीवन हुआ दुश्वार बचा लो मैया छुड़ा लो मैया चरणों में तेरी जयकार जयकार रे... हे शारदे... तुम हो हमारी प्यारी माता भक्तो की दुख हरता जिसका नहीं गर कोई जगत में तेरे प्रेम से भरता अपने बच्चो को तू ही सम्हाल ओ शेरा वाली, पहाड़ा वाली चरणों में तेरी जयकार जयकार री हे...
जाने क्यों
कविता

जाने क्यों

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लोग ना जाने क्यों घरों से बाहर जा रहें है। और निकलते ही पुलिस के डंडे खा रहे है। पता है की दूरी बनाने के आदेश आ रहे है। फिर इकट्ठे होकर क्यों तमाशा बना रहे है। कुनकुना पानी पीना है, साबुन से हाथ धोना है। स्वच्छता बनाना है, घरों में लॉकडाउन होना है। खुदतो नियम पालते नही दूसरों को बता रहे है। इसीलिए तो रोज़ाना पुलिस के डंडे खा रहे है। मोदी जी प्रणाम करना सबको सिखा रहे है। संयम से रहना अबतो टीवी पर दिखा रहे है। २२ को घण्टी ०५ को दीपक भी जला रहे है। चौराहे पर प्रसाद के लिए साहब बुला रहे है। बुरे समय मे भी लगता है अच्छे दिन आ रहे है। तभी तो हंसते हंसते पुलिस के डंडे खा रहे है। सरकार की सख्ती प्रशासन को गलत बता रहे हैं। कुछ कहते है जनता को जबरजस्ती सता रहे है। स्वास्थकर्मी भी आपके लिए अब मार खा रहे है। खुद के परिवार को छोड़ आपक...
प्रकृति की शक्ति
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प्रकृति की शक्ति

सीमा रानी मिश्रा हिसार, (हरियाणा) ******************** दिल में कब से यही शोर है मचा हुआ, यह मानव-जाति किस ओर जा रहा? अपने ही हाथों खुद को बर्बाद कर रहा, गलती से खुद को खुदा समझ रहा। प्रकृति को दूषित करने पर तुला हुआ, शायद उस अदृश्य शक्ति को है़ भूला हुआ। पर जब भी मानव संतुलन बिगाड़ता है़, प्रकृति किसी न किसी रूप में सुधार लेती है़। हम उसका विनाश करते हैं जब भी, तो वो भी हमारी जान लेती है़। पशुओं के साथ पशु मत बनो, खाने के लिए अन्न-फल-सब्जियाँ हैं, उनसे ही अपना पोषण कर लो। जीने दो सबको और खुद भी जियो, कुदरत के हर संकेत को अब तो समझो। मानव हो मानवता के राह पर ही चलो, गलतियों से सीखो, जिंदगी हँस कर जी लो। . परिचय :- सीमा रानी मिश्रा पति : डाॅ. संतोष कुमार मिश्रा पता : हिसार, (हरियाणा) पद : शिक्षिका आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
कर्तव्य पटल पर
कविता

कर्तव्य पटल पर

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। कोई व्याधि आँधि प्रकृति तांडव। हिंसक उत्पात करे संभव। भूमि का दांव लगे वैभव। तब निडर प्रवर रण प्रबल पुलिस।। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। व्यभिचार कुठार हो क्रूर कर्म। आतंकवाद सब मेटे धर्म। ना समझे जन जब नीति मर्म। संकट मोचन ज्यों प्रखर पुलिस।। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। दारिद्र छुद्र डाका चोरी। वैमनस्य विवाद बहुत-थोरी। परिवार पृथक कहीं छेड़-छाड़। कुछ नियम तोड़ जब बनें ताड़। ना हो समाज से विलग पुलिस। हर समाधान कर सुफल पुलिस। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। करे कोई राष्ट्र से गद्दारी। बेईमानी हावी अरु मक्कारी। बढें विवादित उत्पाती। लाठी कर धर फिर संभल पुलिस। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पट...
जननी जन्मभूमि
कविता

जननी जन्मभूमि

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं तुम्हारी मातृभूमि, प्रिय वत्स! तुम मेरे हो स्नेह सिक्त स्पर्श लुटाया, ममता का आंचल ओढ़ाया, वात्सल्य से सींचा तुमको, गोद में अपनी पाला-पोसा... मृदु फलाहार कराया। पुष्पों की सुगंध से... जीवन तुम्हारा महकाया। गंगा के अमृत जल में अवगाहन करा, जीवन पुनीत बनाया। मैं तुम्हारी मातृ भूमि... प्रिय वत्स तुम मेरे हो। मैंने तुमको, वेदों का ज्ञान कराया, उपनिषदों का पाठ पढ़ाया। ऋषि मुनियों की तपश्चार्य से, जीवन तुम्हारा चमकाया। यहा 'धर्म' आधार जीवन का विचारों का संस्कारों का। मुझे छोड़ तू गया विदेश, मैं ताकती रही निर्निमेष। आज बर्बर देशों ने, असभ्यता के अवशेषों ने... विकट संकट में तुम्हें त्याग दिया, छोड़ सम्बल, तुमसे किनारा किया। यह देख मेरे हृदय पर कुठाराघात हुआ... जिजीविषा को देख तुम्हारी, परिजनों में भी दिखी लाचारी।। अन्न-धन अपा...
द्रोपदी की लाज
कविता

द्रोपदी की लाज

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** काश ! इंसान-इंसान की तरह जी सकता फटी वेदना की चादर को दर्जी सी सकता !! ना लुटती कहीं भी किसी द्रोपदी की लाज सुन सकते दीन, हीन, दुखियों की आवाज !! थम जाये रहजनी, डकैती, हत्याओं का दौर कोई निर्बल ना बने किसी सबल का कौर !! गरीबी, भुखमरी, ना रहे कुपोषण का साया लोकतंत्र को लूट सके ना कुबेर की माया !! लौट सकें फिर सुकून के दिन जो बीत गये हैं फिर बरसें वो बादल जो बरस के रीत गये हैं !!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आश...
पलायन से वापसी
कविता

पलायन से वापसी

दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) जावरा म.प्र. ******************** सब है अपने अपने घरों में अब कौन ले सुध इनकी ये कैसे हालात है ये कैसी बेबसी है ना कोई आशिया है ना कोई सहारा है जाए तो जाए कहां जाए तो जाए कैसे ना सड़क पर कोई वाहन ना ट्रेक पर कोई ट्रेन चले जा रहे है निराशाओं में निराशाओं का ना कोई पारावार है खाने पीने के है लाले पैरों में पड़ गए है छाले कंठ है सूखा पेट है भूखा हाथो में नौनिहाल सिर पर गठरी चले जा रहे है बेतहाशा बचाने को जान अपनी कोरोना का ये कैसा रोना है भूख प्यास से मर जाना है चले थे घर से पलायन कर कुछ रोजी रोटी कमाने को मा बाप को घर छोड़ कर आज ये कैसे हालात है चले जा रहे है बस चले जा रहे है पलायन वापसी पर। . परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉ...