नर्स
जनार्दन शर्मा
इंदौर (म.प्र.)
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वर्षो से देखा सबने, सुदंर
सफेद परिधानों से सज्जित,
सदा अपने अधरो पर लिये,
मधुर मुस्कान, वो तरूणाई ।
सदा सेवाओ में तत्पर रहती,
जो किसी ने आवाज लगाई।
सीस्टर कहा किसी ने, तो कहा
किसी ने नर्स, कोई कहता नर्स बाई,
वात्सल्य, सेवा, त्याग की, मूरत,
सदा करती हैं सब कि भलाई।
जो रक्त देख के रहे निडर, जन्म,
मृत्यु देख न कभी हो घबराई।
मां सी ममता उड़ेल, जन्म से,
रोते बच्चों की बन जाती आई।
मन, मे प्रेम, कोमलता, दया के,
भाव लिये सदा ही वो मुस्कुराई।
प्रेम दिया किसी ने तो किसी ने,
उसका कही अपमान भी किया।
पर अपनी सेवा में कोई कमी न रख,
हर मरीज को ठीक कर, मुस्कुराई
हर मरीज के मर्ज से रिश्ता जोड़,
वो मीठे से सुईया चुभाती हैं।
कभी प्यार से तो कभी डांट के,
वो कड़वी दवा भी खिलाती हैं।
जिसका दिल है दयावान, सेवा भाव से
सदा सबकी सेवा करती आई है,
अपने दर्द को...