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कविता

वीर सपूतों
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वीर सपूतों

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** भारत मां के वीर सपूतों करो स्वीकार मेरा नमन देश की रक्षा के खातिर सीने पर खाते हो गोली तिरंगे का रखते हो मान सरहद पर देते हो जान हर बाधा को कर के पार देश का करते हो ना म भारत मां के वीर सपूत करो स्वीकार मेरा नमन बांधकर सर पर कफ़न सरहद पर खड़े होते हो भगत आजाद सुभाष जैसे वीर बन जाते हो मातृभूमि की रक्षा खातिर शहादत हासिल करते हो भारत मां के वीर सपूतों करो स्वीकार मेरा नमन देश की रक्षा के खातिर खाई है सीने पर गोली सीमा पर मौजूद तुम्हीं से बनती देश में होली दिवाली भारत मां के वीर सपूतों करो स्वीकार मेरा नमन।। परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा उपनाम : साहित्यिक उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य :...
माँ
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माँ

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** सीने का खून पिलाती माँ रूठो कों रोज़ मनाती माँ कितने भी गम में होगी माँ पर देख मुझे मुस्काती माँ माँ कों देख मेरा दुःख भागे मैं सोउ मेरी माँ जागे मुझको नेक बनाने में मेरी माँ हैं सबसे आगे खुद भूखी सो जाती हैं पर मुझको दूध पिलाती हैं मैं पढ़-लिख कर बड़ा बनूँ वो मझदूरी पर जाती हैं उस माँ पर में मरता हूँ बिन माँ के मैं डरता हूँ मेरी माँ केसी भी हो मैं माँ से मोहोब्बत करता हूँ। किस्मत उसकी बड़ी नेक हैं जिसके हिस्से माँ आई हैं धन्य हुआ हैं (विमल) जो उसनें माँ (मेहताब) सी पाई हैं परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्ता...
किरणों का स्पर्श
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किरणों का स्पर्श

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रवि किरणों का स्पर्श मिला, नवजीवन धरा के अंतर में अकुलाया है। वसुधा के उर में निश्चिंत पड़ा, दिनकर ने फिर स्नेहभाव से सहलाया है। नभ में विचरण करती बदली ने, ममत्व भाव से उस पर स्नेह नीर बरसाया है। स्नेह सिक्त कोमल भाव है आधार, धरणी के आंचल में जीवन पुलका इठलाया है। कोंपल फूटी प्रस्फुटित हुआ वह मानव का मित्र बना वृक्ष वही कहलाया है। . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजि...
पर्यावरण
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पर्यावरण

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** धवल शुभ्र तुंग से निखर, रवि किरणें पड़ती जब धरा। खिल उठे वन उपवन सारे, जीव जगत में तब हो उजियारा।। खेतों में लहलहायें जब फसलें, ओढ़े वसुधा तब धानी चुनरिया। कल कल कर जब सरिता बहती। छलकाए प्रकृति तब प्रेम गगरिया।। कानों मे रस घोले कोयल प्यारी, करे, मदमाये आम्र कुंजो में विचरण। कानन,कानन तब बाजे झांझ मृदंगा, सुरभित मुखरित हो हमारा पर्यावरण।। सौंदर्य प्रकृति की और निखर जाती, करते जब हम सब इसका संरक्षण। विकसित पथ चल करता मानव प्रहार, कराहती विचलित सृष्टि का होता क्षरण।। करे मानुष जब नियति से छेड़छाड़, और धरती पर बढ़े जब अत्याचार। अकुलाती धरा तब न धरती धीर जरा, आते हैं तब ही वसुधा पर प्रलय भयंकरा।। रोपित करें चलो आज बीज एक, आयेंगे तब कल उनमें पक्षी अपार। खिल उठेगा अपना भी मन उपवन, स्वच्छ सुरभित जब चलेगी बयार।। . परिचय :- अन्नपूर्णा...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

संजय जैन मुंबई ******************** मेरे भी दिल मे अभी, उम्मीदे बहुत बाकी है। बस सभी का साथ चाहिए। पर्यावरण को बचाने के लिए। इंसानों का साथ चाहिए। जो हर मोड़ पर साथ दे, इसे बचने के लिए।। तप्ती हुई इस धूप में, शीतल सी छाया चाहिए। जो हाल गर्मी से हो रहा है । उसे शीतल करने एक, ठंडी सी लहर चाहिए।। बिना वृक्षो के कारण ही, यह हाल है गर्मी का। उससे बचने के लिए, वृक्षारोपन करना चाहिए। तभी इन गर्म हवाओं को, शीतल हम कर पाएंगे। और अपने देश का, पर्यवरण को बचा पाएंगे।। इस लक्ष्य को पाने के लिए। पर्यवरणको बचाने के लिए। एक जूनून हर देशवासियो के, दिलमें बस भरपूर चाहिए। और सभी का साथ चाहिए।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय है...
प्रीत की पाती
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प्रीत की पाती

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) मीत हो तुम मन के मेरे ना कोई और दिल में सिवा तेरे कुछ बोल सुनना चाहें दीप तुम्हारे माझी बन कर चलू संग तिहारे री सजनी ले चल नदियां किनारे पोर पोर में  रहो बसी हमारे रच बस जाऊ संग तिहारे वादी हो हरी भरी या कांटो भरी लड़खड़ा कर भी चलू संग   तिहारे री सजनी लिख दी प्रीत की पाती नाम तुम्हारे परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
विमान का सफर
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विमान का सफर

वचन मेघ चरली, जालोर (राजस्थान) ******************** कोरोना जैसे संकट में। जब गरीब था विकट में। पड़ा था खाने पीने के झंझट में। तब उड़ रहा था नीलाबंर में, आ रहें थें अर्थशास्त्री भारत में, शायद अर्थव्यवस्था संभालने, मजदूर गरीब की मदद को। जब वे चल रहें थें, भूखे नंगे पैर। उन्होंने देखी हवाई जहाज, खुश होकर, एक आशा के साथ। उनके बच्चें ताली पिटने लगें थे। उन्हें साफ दिखाई दे रहे थे, कई हाथ हवा में टाटा करते हुए, अंगुलियों से V दिखाते हुए। अब विश्वास हो गया उन्हें, शायद सुचारू होगा यातायात। सरकार हमारी भी सुनेगी बात। इसी आशा से चलतें रहे, धूप घाम में जलते रहे। ऊपर से विमान गुजरते रहें। बिचारे मर गए ट्रेनों के चक्कर में। मरते भी जो चलने लगे थे, विमान के टक्कर में। होठ सूख गयें थें प्यास से। चल रहे थें जिंदा लाश-से। फिर भी बता रहे थें अपने बेटे को, आरामदायक यात्रा है विमान की, होता सफर मिनटों...
वंशीधर
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वंशीधर

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** माना मान लिया कि आज वंशीधर का पैदा होना मुश्किल है पर असंभव तो नहीं कठिनाइयाँ हो सकती हैं हो सकती हैं क्या हैं पर इससे वंशीधर का पैदा होना तो नहीं रुक सकता सारा संसार पंडित अलोपीदीन के चरणों में तो नहीं झुक सकता कहीं-न-कहीं पंडित को हारना ही है अंत में उसे स्नेह से वंशीधर को गले लगाना ही है और 'नमक का दारोगा' के पिता के मन से ग्लानि का भाव भगाना ही है 'सच का सूरज' उगता है पर उसके उगने के पहले वंशीधरों की इतनी परीक्षा हो जाती है कि कई वंशीधर वंशीधर रह ही नहीं पाते हैं झूठ के अंधेरे में वे इस तरह खो जाते हैं कि कभी वे वंशीधर थे कहना वंशीधर का अपमान है उस वंशीधर का जिसका अपना स्वाभिमान है और जिसके सामने दुनिया की सारी दौलत व्यर्थ है क्योंकि वंशीधर अपने स्वाभिमान की कीमत चाहे वह कितनी ही क्यों न हो चुकाने में समर्थ है समर्थ है। . ...
संयममय जीवन
कविता

संयममय जीवन

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संयममय जीवन सुरक्षित वतन करोना तो हैं, बिन बुलाया मेहमान। बड़ा जिद्दी और जानलेवा इसका तूफान।। यमराज का कार्य हैं इसने बढ़ाया। बिन यात्रा दसवे-तेरहवे पहुंच जाता इंसान, सीधे वैकुण्ठधाम।। सम्पूर्ण जगत को चूभ रहा इसका आंतरिक शूल। अच्छे-अच्छे को चटा दी इसने प्राणांतिक धूल।। बिना ढोलबाजे डीजे और बिना पंगत। आ रही लाड़ी घर में लेकर नई रंगत।। जीवन जीने का इसने, बदल दिया दृष्टिकोण। मास्क ग्लव्ज़ सह दूर से ही करो सबका नमन।। जून का खुशनुमा पवन लॉकडाउन का थोड़ा परिवर्तन नित सेनिटाइजेशन, हस्तप्रक्षालन संयमित जीवन सुरक्षित वतन।। .परिचय :- माधवी तारे निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
आत्महत्या
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आत्महत्या

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** घने जंगलों कलकल कर बहते झरनों पक्षियों का कलरव शेर की दहाड़ इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं सोचता था अपने खेतों के लिए खलियानों के लिए अपने मकानों के लिए मुझे गर्व था अपनी शक्ति पर बुद्धि पर अपने सामर्थ्य पर। धराशाई किये गगनचुंबी वृक्ष अगणित घोंसले टूटे होंगे , मेरा मकान बनाने के लिए, इसके बारे में मैंने कभी सोचा न था। सुनहरी गेंहू की बालियों के लिए मोती से मक्के के लिए लहकती सरसो के लिए कितने पीपल, पलाश कितने बरगद, अमलताश खो दिए इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं इठलाया हाथी दांत का कंगन पहन मैं इठलाया कस्तूरी की सुगंध से मैं इठलाया बघनखा देख मेरे इठलाने की क़ीमत कितने प्राणों ने चुकाई इसके बारे में मैंने सोचा न था। सूखती नदिया जंगलों के नाम पर कुछ कटीली झाड़ियां चूहे ,मच्छर, विषाणुओं की फौज और धूल भरी आँधिया इनके बारे में मैंने स...
पर्यावरण सुरक्षा
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पर्यावरण सुरक्षा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** असमय मरण नहीं हो,अ समय क्षरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! पर्वत हो अथवा समतल सब जल ज़मीन जंगल रखने हैं नित्य निर्मल करने हैं यत्न अविरल भू पर कहीं भी बोझिल वातावरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! विषहीन हों हवाएं नकली न हों दवाएं जन चेतना अधिक हो आए न आपदाएं हो जो भी जन विरोधी उसका वरण नही हो!! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! शोभित सभी हों उपवन उजड़े न कोई कानन पथ-पथ हो वृक्षारोपण वंचित रहें नआँगन सौन्दर्य पर धरा के कोई ग्रहण नही हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! सर सरित् अथवा सागर पावन रहें निरन्तर मानक हो इनके स्तर पीड़ित नहीं हों जलचर जल में अशुद्धियों को कोई शरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! हो शोर पर नियंत्रण सीमित हों सभी भाषण हो क्षीण नाद विसरण ...
जीवन अनमोल
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जीवन अनमोल

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश ******************** सर्वभवन्तु सुखिन:सर्व सन्तु निरामया: काम काज को अब शुरू करना है, हम सबको घर से निकालना है। सबको ये वादा निभाना है, कोरोना को दूर भागना है। ये आपदा को मिलकर हारना है, पूरे भारत को निरोग रखना है। जन जन को राष्ट्रीय धर्म निभाना है, देश के विकास में आगे आना है। घर-घर ये अलख जगाना है, पूरे भारत को विश्व गुरु बनाना है। वायरस ये बड़ा दुशमन है हमारा, गोली बारूद से नही मरने वाला। समाजिक दुरी से इसको भगाना है, संक्रमण की चेन बनने नही देना है। अफवाहो को नहीं फेलाना है, पूरे भारत को स्वस्थ रखना है। जीवन बड़ा अनमोल हमारा है, जान बूझ कर ना सबको गवाना है। अंध विश्वासों से सबको बचना है, महामारी से देश को उबरना है। मास्क पहनकर बाहर निकलना है, गाईड लाईन का पालन करना है। सबको विजय को प्राप्त करना है, मानवता को अब साथ लेना है। . परि...
डमरू के स्वर
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डमरू के स्वर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। कर फिर से तू नव नर्तन संघार करो तू दानवता की। फिर से तू रच नव सृस्टि को। मानवता की धर्म ध्वज को अडिग करो हे नागेश्वर। डमरू के स्वर बूंदो में भर पावस फुहार बन फिर बरसो। मुरझाई इस बसुधा में फिर से हरियाली आयी। सुखी नदिया ताल तलैया नव उमंग की लहर हिलोरे। ले रही सब अंगराई रूखी बसुधा फिर नवसिंगार कर नव दुल्हन बन कर मुस्काई । डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। आज अडिग यह भारत भू हो फिर सरहद पर है संकट आई । खोलो त्रिनेत्र है प्रलयंकर भस्म करो तुम सत्रु दल को। डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक...
पर्यावरण रक्षक कोरोना
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पर्यावरण रक्षक कोरोना

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानव पर्यावरण संरक्षण के नारे लगाता था । हर साल ५ जून को पर्यावरण दिवस मनाता था। जल प्रदूषण, गाड़ियों का, फैक्ट्रियों का धुआं कम करें। घटते वन्य जीवन और जैवीय दुष्प्रभावों का कुछ मनन करें। जनसंख्या विश्व की अगर इसी तरह बढ़ेगी । विश्व वृद्धि से पर्यावरण की गति घटेगी। मानव बस नाटकीय सोपान पर चिल्लाता रहा । पर्यावरण का गला घोट जीव-जंतुओं को खाता रहा। अधिनियम बनाता रहा। प्रदूषण के नाम पर पर्यावरण सरंक्षण को भक्षक बन खााता रहा। कोरोना रक्षक बनकर आया।पर्यावरण को दूषित मुक्त बनाया। सारे प्रदूषण साफ कर दिए।मानव को घर में कैद कराया। कोरोना तो सचमुच पर्यावरण का रक्षक बनकर आया। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
सुबह के उजले प्यार से
कविता

सुबह के उजले प्यार से

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सुबह के इन्तज़ार में तारे भी गिनना सीख गया और रात के अंधियारे में गुनता रहा आवाज़, जो पुकारती सी आयी थी नदिया के उस पार से। हर कदम, हर राह पर कर्तव्य का निर्वाह कर, बस मौन से दो बात कर मैं इन्तज़ार करता रहा मेरी भी आँखें खुल जायें सुबह के उजले प्यार से। चटखी थी जूही की कली वही नरगिसी ख्वाब बनी, आस लिये, नयी चाह लिये फिर पुरवाई की राह तकी मन उपवन अब महक उठे शेफाली से,चंदन बयार से। सुबह के उजले प्यार से ........ . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समब...
जीवन का खेला बहुत ही अलबेला है
कविता

जीवन का खेला बहुत ही अलबेला है

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** प्यारे-प्यारे लोगों का लगता इस जग में मेला है, देख तमाशा जीवन का, ये खेला ही अलबेला है। ये खेला ही अलबेला हैं। शदियों की बात पुरानी है, ना मानो तो ये कहानी है । मिला है जो कुछ भी हमकों, सब अपनो की मेहरबानी है। पहन मुखवटा धर्म का, सबने किया झमेला है, देख तमाशा जीवन का, ये खेला ही अलबेला है। ये खेला ही अलबेला हैं। दोष नहीं है वेद पुराण की, जब कमी हुई गुणगान की। ये गजब लीला भगवान की, क्यों कद्र नहीं इंसान की। दूर होगा अब अंधियारा कैसे, इस जग का दीपक अकेला हैं। देख तमाशा जीवन का, ये खेला ही अलबेला है। ये खेला ही अलबेला हैं। अपनी कीमत खुद से पूछो, पानी की कीमत प्यासे से। बन जाओगे शिकार कभी, बच के रहना झूठी झांसे से। कंकड़, पत्थर रास्ते में आये, मंजिल तक आते ढेला है। देख तमाशा जीवन का, ये खेला ही अलबेला है। ये खेला ही अलबेला हैं। &nbs...
आईना ऐसा बना दे
कविता

आईना ऐसा बना दे

वीणा वैष्णव "रागिनी"  कांकरोली ******************** हे प्रभु,एक आइना, अब तू कुछ ऐसा बना दे। उसमें सूरत नहीं, सिर्फ उनकी सीरत दिखा दे। लोगों को पहचानना, थोड़ा आसान बना दे। या पहचानू उनको, ऐसा हुनर मुझे सीखा दे। मुंह राम बगल में छुरी, लिए घूम रहे हैं सब। कैसे करूं परख, पारखी नजर मुझको दे दे। बहुत मुश्किल है, किसी पर विश्वास करना। उनको बेनकाब कर, हकीकत अब दिखा दे। ना कोई राग द्वेष हो, तू सिर्फ इंसान बना दे। हैवानियत का पर्दा हटा, प्रेम रहना सिखा दे। भूला हुआ चेहरा, उन्हें आईने में तू दिखा दे। हो जाए कभी गुनाह, तो नेक राह तू ला दे। आईना देख, अपने चेहरे नकाब खुद हटा दे। ज्यादा नहीं, बस थोड़ा मन विश्वास जगा दे। कहती वीणा, हे प्रभु अब कोई राह दिखा दे। अपनी बनाई दुनिया फिर से, जन्नत बना दे। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव "रागिनी" वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा मे...
कागज की नाव
कविता

कागज की नाव

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बारिश में पानी भरे गड्ढों में कागज की नाव चलाने को मन बहुत करता हम बड़े जरूर हुए ख्यालात तो वो ही है हुजूर रिश्तों के पेचीदा गणित में उलझ जाकर पहचान भूल जाते घर आंगन जो बुहारे गए धूल भरी आंधी सूखे पत्तो संग कागज के टुकड़ों को बिखेर जाती तूफानी हवा सूने आंगन में सोचता हूं कागज की नाव बना लू. गढढो में पानी को ढूंढता हूं किंतु पानी तो बोतलों में बंद बरसात की राह ताकते नजरें थक सी गई जल की कमी से नाव भी अनशन पर जा बैठी जल का महत्व केवट और किसान ज्यादा जानते बचपन में कागज की नाव चलाते और लोग बाग कागजों पर ही नाव चला देते ख़ैर, जल बचाएंगे तभी सब की नाव सही तरीके से चलेगी आने वाली पीढ़ी जल की उपलब्ता से नाव बनाना और चलाना सीख ही जाएगी। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :-...
कमाल कर दिया
कविता

कमाल कर दिया

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** बिखरे परिवार को तुने एकता की माला से पिरो कर घर की मर्यादा को तुने पल भर में ज्ञात करा दिया समाजिक दुरी की महत्ता हम सबको बता दिया वह ! रे कोरोना तुने कमाल कर दिया... युवा पीढ़ी को मंदिरापान से दूर कर निशा मुक्त समाज का मार्ग प्रशस्त कर दिया... वह ! रे कोरोना तुने कमाल कर दिया... मानव की बेवजह ईच्छाओ में पाबंद कर जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक रोटी , कपड़ा और मकान की महत्ता हम सबको बता दिया वह ! रे कोरोना तुने कमाल कर दिया... अंधविश्वास भेदभाव घटा कर विज्ञान चिकित्सा के प्रति विश्र्वाश कायम कर दिया धैर्यवान आपसी तालमेल संतोष पूर्वक जीवन जीने की नई राह दिखा दिया वह ! रे कोरोना तुने कमाल कर... किसान, सैनिक, चिकित्सकों के प्रति सम्मान का भाव जगा दिया पडौ़स संगा संबंधी आमजन में आपसी भाईचारे की भावना बढ़ा दिया दानवीरता की भावना बढ़ा ...
सत्य बानी
कविता

सत्य बानी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा मन अटका जा किली से, ते बच गया दो पाटन झमेले से, जब रँग लिया खुद तेरे निर्मल रँग, ते क्यो कर भागें मन रँगरेज से... *** क्या सँग तेरे आया इस जग में, ते ले जायेगा क्या सँग इस जग से, बिन पट आया तू किया रुदन बहुत, ते काहे मोह राखे तू इस मलमल से... *** ये चंद लम्हों की ही कहानी हैं, ते पढ़ ले मन भर फिर रवानी हैं, जब मसि घुल जायेगी दृगजल से, ते बन्द पौथी अपनो ने सजानी हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
अन्तर्मन
कविता

अन्तर्मन

जितेन्द्र गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संभल जाती है वो जब भी आती है कोई चिट्ठी, या आता है कोई फोन। सिमट जाती है वो जब भी..... हंसते सब हैं घर में... या बनते हैं पकवान.…. समझ जाती है वो फिर कोई आयेगा..... सपना दिखाया जायेगा.. नये जीवन का.. उम्मीद का संवारी जाती है वो.. सजायी जाती है वो... बेजान पुतलों सी... फिर होगी नापतौल.. मोल तोल...। सहम जाती है वो... सिहर जाती है वो... अगले पल को सोच फिर.... फिर.... फिर... होती है नापसंद और बिखर जाती है वो... और फिर शुरू हो जाता है.. इंतजार....... इंतजार... बस इंतजार..!!!!!! . परिचय :- जितेन्द्र गुप्ता निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
दो जून रोटी खातिर
कविता

दो जून रोटी खातिर

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** दो जून रोटी की खातिर,जान बाजी लगा रहा। यह दुनिया एक रंगमंच,वह करतब दिखा रहा। अपनों की परवाह उसे,दर-दर ठोकर खा रहा। आएंगे शायद अच्छे दिन,इसी उम्मीद जी रहा। दो जून रोटी खातिर................. बड़े-बड़े बंगले देख,वो मन ही मन खुश हो रहा। कितना सुकून होगा उसमें, वो नादान सोच रहा। तभी किसी ने आवाज लगाई, काम करोगे क्या। मीठे सपनों से जागा,जी आया हुकुम कह रहा। दो जून रोटी की खातिर............. दो जून रोटी के खातिर, वह कितना तरस रहा। रोटी चीज नहीं है छोटी,महत्व अब समझ रहा। अपने बच्चों के आंसू देख,वो खून आंसू रो रहा। गरीब होने की सजा,देखो बहुत ज्यादा पा रहा। दो जून रोटी खातिर ............... अपना देश छोड़, रोटी तलाश विदेश जा रहा। लाखों व्यर्थ लूटा देंगे, गरीब न कोई सुन रहा। सारे गुनाह इसी के पीछे, वह मासूम कर रहा। कहे वीणा दो जून रोटी लिए,जहा भटक रहा...
नई पारी
कविता

नई पारी

खुल जाएंगे आज शहर खुल जाएंगी गलियां सारी खुल जाएगा उजियारा छंट जाएगी अंधियारी क्या खुल जाएगी सोच वही जो लेकर हम सब बंद हुए थे ? क्या खुल जाएगी सोच वही जो जिससे चेहरे मंद हुए थे ? खुल जाएगी किस्मत क्या उस बुढ़िया चेहरे की लाठी ? खुल जाएगी बचपन की वो खेल खिलौनों की काठी ? या फिर से बंद हो जाएगा अंधियारा इस तूफान का क्या जुड़ पाएगा दूरियों में नाता फिर इंसान का ? क्या खुशियां फिर से खेलेंगी या ग़म के बादल छाएंगे ? जो बिछड़ गए हैं अपनों से क्या फिर से वो मिल पाएंगे ? अब समय नहीं है बंद सोच का, बस वही बदलने की बारी। लेकर आशाओं के दीप शुभम, हम खेलेंगे अब नई पारी। हम खेलेंगे अब नई पारी।   परिचय :- दीपक कानोड़िया निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
कान्हा बनाम खान नदी
कविता

कान्हा बनाम खान नदी

मोहब्बत को ही इंसानियत की शान कहते हैं अध्यापक हूं शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का गुरान में मुझे "आशु कवि" के.पी. चौहान कहते है कान्हा नदी का उद्गम स्थान है इंदौर जिले का मुंडी गांव जीसे आज लोग खान कहते हैं राजवाड़ा इंदौर की कृष्णपुरा छत्री पर संगम हुआ सरस्वती नदी से और त्रिवेणी में शिप्रा नदी मैं हुआ संगम जिसे शनि मंदिर पर त्रिवेणी का घाट महान कहते हैं कान्हा नदी कहूं तुझे या खान क्या कहकर करूं मां सरिता तेरा गुणगान तट पर बैठा हूं तेरे और कविता की पंक्तियों में लिख रहा हूं मां तेरा बखान मेरे गांव को कहते हैं गुरान निश दीन कल-कल करती स्वच्छ और निर्मल जल की धारा बहा करती थी जो तेरी महानता की कहानी कहा करती थी तेरे ही तट पर अपना बचपन जिया मैंने जिसका पानी कई बार पिया मैंने अब देख कर दुर्गति इस अमृत जैसे दूषित जल की भूल गया हूं मैं वह नदी बीते हुए कल की आज मैं कैसे तेरा गुणगान करूं अब कैस...
अबतो मंदिर खोलदो
कविता

अबतो मंदिर खोलदो

अबतो मंदिर खोलदो....केवल उसका सहारा है। बहुत हो गए दूर उससे अब होता नही गुज़ारा है। क्या मालिक को पता नही हमसब उसके बन्दे है। उजड़ गए कइयों के घर......बन्द पड़े सब धंधे है। देखने दो उसको भी थोड़ा बाहर कैसा नज़ारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। डॉक्टर है भगवान... हमारी संस्कृति बतलाती है। दवा से ज्यादा दुआ हमे.....ज्यादा काम आती है। धर्म, आस्था, संतो का..भारत ही एक ठिकाना है। इन्ही तीन के दम पर इस महामारी को भगाना है। करता हूँ करबद्ध निवेदन..... ये कर्तव्य हमारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। कहीं बाढ़, भूकंप कहीं तो बमबारी हो जाती है। दुष्कर्म, हत्याएं अक्सर कई सवाल कर जाती है। कुप्रथा और दहेज की बलि बेटियां चढ़ जाती है। कहीं भुखमरी और तंगी से आफत बढ़ जाती है। कुछ तो हुआ अनर्थ आपसे प्रकृति का इशारा है। अबतो मंदिर खोलदो...केवल उसका सहारा है। देशव्यापी महामारी का पहले भ...