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कविता

कोरोना वीरो को नमन
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कोरोना वीरो को नमन

चन्द्रेश टेलर पुर (भीलवाडा़) राजस्थान  ******************** जहाँ गली गली चौराहो पर, घर के द्वारे द्वारे खड़ी आलिंगन करने को, मृत्यु का उत्सव मनाता है, वह भारत देश कहलाता है।। लड़ने को तैयार हर नागरिक, बनकर योद्धा देश का, इक्कीस दिन लॉकडाउन होकर, कोरोना को दूर भगाता है, वह भारत देश कहलाता है।। थाली बजाकर, नाद सुनाकर, हर घर की छत से, राष्ट्र के एक आह्वान मात्र से, कोरोना वीरो का सम्मान करके, नव उत्साह उमंग जगाता है, वह भारत देश कहलाता है।। पल पल संकट से जुझता देश, ना ही डरता ना ही घबराता है, निराशा के बादलो मे भी, जिस देश का हर नागरिक, आशा के दीप जलाता है, वह भारत देश कहलाता है वह भारत देश कहलाता है।। परिचय :- चन्द्रेश टेलर शिक्षा : एम.कॉम( लेखा शास्त्र), एम.ए (राजनीति विज्ञान) बी.एड सम्प्रति : व्याख्याता लेखाशास्त्र, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, कारोई (भीलवाडा़) राजस्थान निवासी : ...
बाल-श्रम
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बाल-श्रम

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मेहनत कर करता गुजारा। जीवन का कर्म एक सहारा। किस्मत ने किया जिसे वरण , बाल-श्रम की व्यथा मर्म-मर्म। हर कोई है दुत्कार जाता। कोई प्यार से कभी पास बुलाता। छोटे हाथों के बड़े कर्म, बाल-श्रम की व्यथा शर्म-शर्म। जीवन के संघर्ष से लड़ता। अपने फर्जो को पूरा करता। बचपन खेल के बस रहे भरम। बाल-श्रम उन्मूलन हो धर्म-धर्म। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अ...
परम
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परम

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** तप्त जीवन पर डाल कर तूने जल लेकर शरण मे अपनी पी लिया मेरा गरल मैं था व हूँ एकल तू ही समग्र तू ही सकल। सत्य और विश्वास पर तूने कहा चला चल पहले न था जीवन इतना पावन और निर्मल खिल उठा मन का कमल तू ही समग्र तू ही सकल। कण कण में दिखता है तेरा ही प्रतिबिंब देखु जो मन के दर्पण में दिखे तेरा ही बिंब जगत को कर दिया विमल तू ही समग्र तू ही सकल। नही रहा मन पर दुख चिंता का भार मुझ अकिंचन को सुख दे दिया अपार मन महकाये तेरा परिमल तू ही समग्र तू ही सकल। क्षमा, संयम के साथ है नूतन दृष्टी कर निर्मल, नभ थल जल है नूतन सृष्टी सब पर तेरा उपकार तू मंगल तू परोपकार तू आज तू कल तू कल का कल तू ही समग्र तू ही सकल। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप न...
भोर
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भोर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कालिमा गुम हो गई है आ गई है भोर देखो! लालिमा सूरज की भू पर छा गई हर ओर देखो! प्राकृतिक सौन्दर्य की गुंजित हैं मनमोही कथाएं चारू चलचित्रों से शोभित हो गया हर छोर देखो! गीत हैं विहगों के मुख पर या प्रशंसा ईश की नृत्यरत अब तो लगे है मनुज का मन मोर देखो! जागरण अभियान छेड़ा भास्कर की रश्मियों ने बिस्तरों पर हो गई है नींद अब कमज़ोर देखो! कर्म ने कर से मिलाए कर हुए सक्रिय तन अब शून्य गतिविधियों की मानो कट गई है डोर देखो! क्या पता किस ओर नीरव ने किया प्रस्थान गुपचुप हो रहे हैं अब धरा पर निनादित श्रम शोर देखो! ए 'रशीद' आओ तुम्हारा कर्म भी प्रारंभ हो अब चेतना संग चपलता का आ गया है दौर देखो! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी...
मन सभी का
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मन सभी का

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** मन सभी का... लंबी सज़ा पा गया। ज़माना कहाँ था......कहाँ आ गया। जो दिखता नहीं, अजब दुश्मन हुआ। काम आती न मन्नत.....न कोई दुआ। बंद भगवान हैं,.....क़ैद पूरा जहां। वो कण कण में है तो..जाएं कहाँ। मास्क मुँह पर लगा, न चेहरा दिखे। पुलिस भी नहीं,......पर पहरा दिखे। इस चमन में आकर दिल भर गया। दुष्ट कोरोना क्या से क्या कर गया। पाव भाजी जलेबी..... न पोहे बिके। चाट चौपाटी चौपट... न कोई दिखे। चटोरा शहर, पर स्वाद फ़ीका लगे। घर में राशन भरा... मन रीता दिखे। बाहर निकला है बिजू,अच्छा लगा। प्रकृति प्रीति का साथ सच्चा लगा।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, मह...
भूल गया मैं ज़िन्दगी को
कविता

भूल गया मैं ज़िन्दगी को

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जीवन के करुण कथानक का प्रकाशन नहीं चाहता हूँ, पर क्या करूँ?? पैबन्दों के उजागर होने से ऐसा करने पर मजबूर हूँ। जन्म कहानी का कहूँ या कविता के छंद का। सिलसिला ऐसा ही है हर एक पैबन्द को। पैबन्दों का हर टाँका जीवित करता जाता है, जैसे पात्रों का खाका। इसलिये बहुत बेफ़िक्री से फटे भागों को सी रहा हूँ। पैबन्दों को ही जी रहा हूँ। पैबन्द दंभ से इतराकर, रह रह मुझको चिढ़ा रहा है। मेरी हर पहचान मिटाता, अपना कद वह बढ़ा रहा है। कई रंगों के पैबन्द देखकर दुनिया मुझे रंगीला कहती है मगर मैं तो कब से कहता ही यही हूँ रंगीन होकर भी मैं रंगीला नहीं हूँ। चीथड़ों पर टिकी हैं सभी की निगाहें, इनसे ही रिश्ता कुछ ऐसे जुड़ा है। भूल गया मैं ज़िन्दगी को, पैबन्दों को जी रहा हूँ ! पैबन्दों को जी रहा हूँ ! . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक...
प्रदूषण हमने फैलाई
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प्रदूषण हमने फैलाई

श्रीमती राखी टी सिंह मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कहीं पे कचरा फेंका कही पे वृक्षों की की अंधाधुन्द कटाई हे मानव तूने कहें ये मौत का है खेल रचाई आस-पास जीवन के अपने तूने क्यो इतनी बिमारी है फैलाई सौ बीमारी के इस कारण को तूने है प्रदूषण के अंश से जन्माई एक बार कभी तुमने सोचा इससे क्या तूने पाया है माल क्यों ना सोचा मौत का अपने तूने ही रचा ये सब है जाल पर्यावरण का जीवन में तू बोल कैसे करेगा भरपाई तेरे कारण तेरे बच्चों के कल पर कही ना शामत है आजाई सोच जरा क्या बचा है तेरे पास धरनी कहती क्या जीवन में तेरे हाथ तेरे बैल का बैल तो गया हाथ नौ हाथ पगहा तूने गवाया उसीके साथ परिचय :-श्रीमती राखी टी सिंह निवासी : मुंबई महाराष्ट्र आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
महामारी
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महामारी

मो. नाज़िम नई देहली (सुल्तानपुर) ******************** वाबा.....! झिझक भी निकलेगी, मन के दरवाजों से। इंसान भी निकलेगा अपने मकानों से कुछ डर है जो बरकरार बना हुआ है। तुच्छ वाबा ने नाक में दम करा हुआ है अब चीटियों की चाल जब चलने लगा है इंसान निकलता है घर से डर डरा के जब भूख से मरने लगा है।। दरवाजे कपाट सब हाथ रोककर खुले हैं, जो समझते हैं, बुद्धिजीवी खुद को सियासत की चाटुकारिता से भारे है।। मस्जिदों में इबादत, गंगा घाट की भजन संध्या दोनों में... भक्तों का मेला ईका दुका.. बारिश की बूंदों की तरह लगने लगा है, इंसान परेशान है वाबा से, अपने आराध्यओ के सामने फिर झुकने लगा।। भले ही राहत मिली हो, पर संख्या बढ़ी है। छूने से डरता हूं अपनों को हर तरफ वाबा जो पड़ी है। मेरे परिचय में, ना किसी ने कांधा दिया है ना दफनाया गया है। रो तो रहे हैं, अश्कों को बहा कर... पर नज़रों में गिरे पिछड़े लोगों ने कंधा ...
स्पर्श
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स्पर्श

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** जब तेरे हाथो का स्पर्श मिला... नयना बिन सावन बरस गये... बरसा मेह झमाझम पर... लव पानी को तरस गये.... सन्ध्या के आबारा मौसम मे... पल पल यह नयना लरज गये.... कितनी पीडा है इस जीवन मे.... पल भर चैना को तरस गये.... सावन बरसा जब, मयूरा नाच उठा वन मे.... मन मयूरा के थिरके कदम, फिर ठिठक गये... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
मैं निसर्ग नैसर्गिक हूॅं
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मैं निसर्ग नैसर्गिक हूॅं

दीपक कानोड़िया इंदौर मध्य प्रदेश ******************** मैं निसर्ग नैसर्गिक हूॅं क्यों मुझसे, तुम भय खाते हो ? तुम हो मानव बलशाली क्यों मुझको पीठ दिखाते हो ? जिस आरी से छलनी करते हो वृक्षों को, नदियों को | भवन बनाते हो वन में, अब लाज कॅंहा आती तुमको ? गज का वध करके भी अब तुम, हाथी दांत दिखाते हो। मैं निसर्ग नैसर्गिक हूॅं क्यों मुझसे, तुम भय खाते हो ? छोड़ कहां रक्खा है तुमने धरती का बस एक कोना ? बीज ज़हर का बोकर कैसे धरती उगलेगी सोना ? ख़ुद का कचरा मुझको देकर नज़रें क्यों चुराते हो ? मैं निसर्ग नैसर्गिक हूॅं क्यों मुझसे, तुम भय खाते हो ? जो सुनामी के जाने पर फिर से नगर बसाओगे क्या फिर तुम कुछ पेड़ों को, कुछ नदियों को बचाओगे ? दलदल जंगल वापस करके मुझ पर जो दया बरसाते हो मैं निसर्ग नैसर्गिक हूॅं क्यों मुझसे तुम भय खाते हो ? तुम हो मानव बलशाली क्यों मुझको पीठ दिखाते हो ? मैं निसर्ग नैस...
रोटी से पटरी तक
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रोटी से पटरी तक

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** रोटी के लिए ही जन्म पाया रोटी को ही जीवन भर कमाय। वो घड़ी आ गई थी जब , रोटी को छोड़ मौत ने बुलाया। रोटी से रेल की पटरी तक क्या सारा प्रबंधन ही जर्जर है ? आ गई थी यह कैसी घड़ी मौत का ये कैसा मंजर है ? जिसने रोटी के लिए तड़प कर इस पटरी को देश , जनता और सरकारों के लिए बनाया है। इसी पटरी ने उन्हें आज मौत की गोद में सुलाया है । धिक्कार है ऐसी सत्ता पर जो मजदूरों को उनके घर न पहुँचा सकी, उनकी मौत के बाद ही केवल तमाम सबूतों और गवाहों में जुटी। ए खुदा , तेरी यह कैसी खुदाई है किस फैसले की सजा तुमने उन्हें सुनाई है ? फटे किसी के सिर और कटे किसी के हाथ परिवार और जिंदगी से छोटा सबका साथ। क्या खता थी उनकी जिसने शैशव भी नहीं देखा था ? माँ के दूध और आँचल को ठीक से नहीं निरेखा था। पत्नी के हाथ में हाथ धरे तुम मृत्यु की गोद में चले गए क्यों ...
हुनर रखता हूँ
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हुनर रखता हूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हंसते हंसाते गंभीर होने का हुनर रखता हूँ मसखरे से पलभर में कबीर होने का हुनर रखता हूँ! साधारण कपड़े,लंबी दाढ़ी,लंबी चोटी रखकर सभी को दंडवत होके नजीर होने का हुनर रखता हूँ! दुख दर्द समेटे श्रोता आते हैं सुनने सदा हमको सबको हंसाकर यार मैं फकीर होने का हुनर रखता हूँ! काम कुछ ऐसा करने की कोशिश करता हूँ मैं सभी लकीरों से बड़ी लकीर होने का हुनर रखता हूँ! माँ शारदा भवानी के आशीर्वाद से ही निर्मल मैं भी तो किसी की तकदीर होने का हुनर रखता हूँ! परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीय...
एक मजदूर की जुबानी
कविता

एक मजदूर की जुबानी

यशवंती तिवारी देवगढ़ जिला राजसमंद ******************** बना मजदूरों की बेबसी को बातो का हथियार नेताजी बस कर रहे है एक दूजे पर वार मै मिलो तक पैदल चला चप्पले घिसी,छाले हुए पर उफ्फ न निकला बाहर वो चन्द बसे लगाकर देखो जता रहे उपकार नेताजी बस कर रहे है एक दूजे पर वार नन्हें बच्चे भूख से बिलखे तपती सड़को पर पाँव है झुलसे वो दो दो केले दे कर देखों फ़ोटो खींचा रहे दस बार नेताजी बस कर रहे एक दूजे पर वार गर्भ में पल रहे नन्हे के संग रह रह कर थक जाती माँ कर रही मीलो का सफर वो झूठा दिखावा,दिलासा दे कर जैसे बन रहे तारणहार नेताजी बस कर रहे एक दुजे पर वार निकला जितनो के संग कुछ कट गए, कुछ मिट गए कुछ भूख प्यास कुछ गर्मी से वो मौत के संग चले गए बेबस आंखों में अश्रुधार रह गया मै बस निहार नेताजी बस कर रहे एक दुजे पर वार वो बना कठपुतली हमको चाहे जैसे हमे नचाकर राजनीति के मंच से देखो बन रहे है सूत्रधार नेताजी...
तू ही
कविता

तू ही

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हाँ ! तू है बसी, अंतर्मन की गहराईयों में, श्वेत-धवल-पारदर्शी, पावन रुप में... हाँ, तू ही है, आत्मा स्वरूप धारण कर, छेड़ देती मन के तार, दैवीय राग मे... हाँ ! वो तू ही है, भटकता, ढूंढता जिसे, अंधेरो के पार बसती हैं, रब स्वरुप में... हाँ! तु ही तो है, "मैं" को तज "हम" में समाई, प्रकाशपुंज सदृश्य, सत्य मूर्त रुप मे... हाँ! तेरा ये तेज मुझे, बाँधता हैं माया इंद्रजाल में, विलीन हो जाता, मैं ! नीर सम "निर्मल" रूह रँग में..... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
लाडो
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लाडो

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** निंचि निंचि पयजन बोले झंझनाय लाग अंगना बिजुरी कस लाग चमकै किलकारी से अंगना मनवा भा मयूर मोर झुमय लाग अंगना समय सुदिनि आयो ता महकि गयो अंगना लक्ष्मी कस मूरति लखि मात पित मेछराय लाग अंगना बिटिया के आवत ही माँ बनी बिटिया बिटिया से बिटिया का मेर मेर नाता पैदाइश बिटिया के खुलय लाग रिस्तन के खाता पिता के मान घर के सम्मान सृष्टि कै आधार आय बिटिया तीज अऊ त्यौहार कै शोभा आय बिटिया दुनिया कै हर क्षेत्र मा लाडो तोर प्रभाव एक नही दुइ घरन के ताक्यो लाडो लाज एक तरफ मा बाप है दूजै सासुर द्वार पै बेटी तू हैधन्य मधु रस बहै फुहार परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी ...
अनिश्चित हूं
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अनिश्चित हूं

मानसी भाटी राजगढ (चुरू) ******************** अनिश्चित हूं अपरिमित हूं.. कभी शून्य सी कभी गर्वित हूं.. कभी व्याकुल हूं कभी पुलकित हूं.. कभी विस्तृत हूं कभी सीमित हूं.. किन्तु फिर भी क्या जीवित हूं? कभी कुण्ठित मैं कभी विलगित हूं.. कभी तृप्ति कभी पिपासित हूं.. कभी यौवन हूं कभी बचपन हूं.. कभी शीतल सुखद सुगंधित हूं.. यूँ सब के लिए समर्पित हूं.. किन्तु फिर भी क्या जीवित हूं? कभी वंचित मैं कभी सिंचित हूं.. हूं वर्णन फिर भी किंचित हूं.. कभी समुचित कभी विभाजित हूं.. कभी नैतिक कभी दुस्साहित हूं.. हूं जटिल ज़रा पर सरल भी हूं.. किन्तु फिर भी क्या जीवित हूं? है जीजिविषाएं मेरी भी.. कुछ अभिलाषाएं मेरी भी.. परिकल्पित हूं आकारित हूं.. मेरे स्वप्न हैं जिनसे उद्धृत हूं.. कुछ चिंतित हूं.. हाँ विचलित हूं.. किन्तु फिर भी यूँ जीवित हूं.. किन्तु फिर भी यूँ जीवित हूं.. परिचय...
मैं भी तो माँ हूँ
कविता

मैं भी तो माँ हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** कभी कभी पूजी जाती हूँ, पर्व त्यौहारों में सजाई जाती हूँ। इधर उधर बेमन से घुमाई जाती हूँ, लोग मनोरंजन का साधन समझते है, शांत चित्त मैं सब कुछ करती जाती हूँ। मेरे भी अहसास हैं, सुख के, दुख दर्द के मेरा भी परिवार बसता है। इन सुन्दर कल कल करती नदियों के किनारे हरियाली से भरा मेरा घर जो बहुत सुन्दर था, अब वो उजड़ने लगा है । मेरा तो किसी से बैर नहीं फिर भी हम ना जाने क्यों सताये जाते हैं? आज मैं तड़प रही हूँ, मेरा परिवार भी दुखी है। कभी भूख , कभी बेइंतहा दर्द की मार से कभी मानव के राक्षसी अत्याचार से। इन सबकी अनदेखी से ही मेरे वंशजों की मौत हो रही है। मेरे बच्चे को 'मेरी कोख में ही' मार दिया। दर्द से छटपटाती,कराहती, चीत्कारती भटक रही हूँ इधर उधर मैं। कहाँ हैं वो लोग जो मेरी पूजा करते थे? कहाँ हैं...
करके तन्हा मुझे
कविता

करके तन्हा मुझे

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। मुड़के देखोगे जो पीछे तो मुझे पाओगे। क्या मेरा साथ तुझे नापसन्द आया था। तू तो कहती थी कि मैं तेरा ही साया था। २ क्या तुम्हें गैर की बातों ने मुझसे दूर किया, कसूर इसमें भी तुम मेरा ही बताओगे... करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। तुम्हारे अपने ही मुझे तुमसे दूर करते थे। हमतो इस बात को भी कहने से डरते थे। मैं तुम्हे कहीं खो ना दूं ये फिकर सताती थी। तुम्हारा हाल तुम्हारी ही सहेलियां बताती थी। २ हुए बदनाम हम कई बार तुझको बचाने में, नाम इसमें भी तुम मेरा ही लगाओगे... करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। बिगड़ता कुछ नही बस तुम मुझे समझ जाती। जाने से पहले एक बार कुछ तो बता जाती। वजह क्या थी मुझे इस तरह छोड़ जाने की। क्या तुम्हें चाह थी... कुछ और पाने की। २ जानता हूँ तुम नही छोड़ोगे ज़िद अपनी, भला मुझे नह...
मिजाज मौसम का बदल रहा है
कविता

मिजाज मौसम का बदल रहा है

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** देख यह कैसा है छाया, विलक्षण परिवर्तन लिए मौसम है आया। बर्फबारी हो रही है भुकंप आ रहा है, समुचे भू- पटल पर विनाश का काला बादल छा रहा है। दृश्य देख यह ख्याल आ रहा है, मिजाज मौसम का बदल रहा है। वध्वंस होकर प्रकृति, अपनी स्वरुप दिखलाया। कड़ाके की गर्मी में, शीत के कहर है छाया। वृक्ष के उपकार को, अंधा मानव समझ न पाया। देव तुल्य पीपल का भी, कुल्हाड़ी से काट गिराया। दिखावा के दौर में, मनी प्लांट के पौधे घर में लगाए। देख तेरी मुर्खता, तुलसी माता लज्जा से सिर अपनी झुकाए। निशा काल में शीतल वायु न दे पाए, वह ये ! मानव तुने कैसा पथ अपनाया? प्रकृति का श्रृंगार मिटाकर, नव निर्मित उद्योग कल कारखाना है लगाए। देख तेरे इन हरकतों से, मिजाज मौसम का बदल रहा है। मानव तुम कितनी प्रगति कर भी, सक्षम हो जाओ फिर भी, प्रकृति के समक्ष खुद पेश...
रोको मत आगे बढ़ने दो
कविता

रोको मत आगे बढ़ने दो

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** कुछ पाना है कुछ करना है, बस उसी राह पर चलना है। चलते चलते जब गिरना है, तो उठकर खुद संभलना है। मंजिल की सीढ़ी चढ़ता हूँ, तूम चढ़ने दो, अब चढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो। अब ऐसी राह पर जाऊंगा ना बुजदिल मैं कहलाऊंगा। रख हौसला बढूंगा आगे, मंजिल खुद पा जाऊंगा। मैं अपने भविष्य को पढ़ रहा हूँ, अब पढ़ने दो, तुम पढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो। ना कहना है, ना सहना है नाही कोई और बहाना है। ना रुकना है ना झुकना है, जो ठानी है, वो पानी है । कुछ लोग भी हमसे जलते हैं, अब जलने दो, तुम जलने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिं...
क्षमा नही करने वाली
कविता

क्षमा नही करने वाली

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** केरल में देखो ऐसा अवसर भी आया है, शिव के पुत्र गजराज ने भी स्वयं को निर्बल पाया है। माँ की ममता,भूख की ज्वाला सबकुछ उसके अंदर थी, मानव से भोजन की आशा, उसके अंतर मन थी। देख कर कुछ युवक भोजन के साथ आये है, क्या पता था उस गज गामिनी को मौत साथ लाये है। स्वादिष्ट फल समझकर उसने जैसे ही मुंह मे दबाया होगा, आभार ईश्वर का करने सूंड को थोड़ा हिलाया होगा। फट पड़ा मुंह में स्वाद अंदर भी ना ले पायी थी। जबड़े टूट गए 3 दिन कुछ नही खा पाई थी। निष्तेज होकर उसने नदी में मुहं चलाया था, जलन, रक्त, घाव धोकर मन को समझाया था। नही था पता भूख का ऐसा दान मिलेगा, थोड़े भोजन के लालच में मौत का सामान मिलेगा। स्वयं तो हंसकर मर जाती, अपने आँचल पर रोइ थी। क्योंकि एक छोटी सी जिंदगी, उसके पेट में सोई थी।। अंतिम स्वास तक भी प्रभु से, यही आशीष लिया होगा। चाह...
सन्देश
कविता

सन्देश

राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव सीहोर, (म.प्र.) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) ठहरो ऐ बहती हवाओं, हदय ऑंगन में बिखरी, कलियॉं चुन लूँ, मदिरा मयी खुशबू, लेते जाना-प्रतिक्षित प्रिय पर प्रदान करना। ठहरो ऐ उड़ते बादल, मन मस्तिष्क में उभरी, शीतलता। को भर लॅूं; आगोश में, वर्षा देना-प्रेम, प्यार-प्रणय की फुहार, ठहरो ऐ चमकते चॉंद-तारे, मुख-मंडल व अन्त: में, उदित दीप्ति की छटा भर लूँ, लेते जाना- प्रदीप्त कर देना अर्न्तरमन....... परिचय :- राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव जन्‍म :- ०४ नवम्‍बर १९५७ शिक्षा :- बी.ए. निवासी :- भोपाल रोड, जिला-सीहोर, (म.प्र.) प्रकाशन :- कहानियॉं, कविताएँ, स्‍थानीय, एवं अखिल भारतीय प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में समय-समय पर यदा-कदा छपती रही हैं। सम्‍प्रति :- म.प्र.पुलिस (नवम्‍बर २०१७) से सेवानिवृत के...
नयनो की मस्ती
कविता

नयनो की मस्ती

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** नयनो की मस्ती चाहता हूँ हैं जन्नत की दरकार नही है याद अभी पहली चितवन चिर गयी दिल किया वार नही नयनो की ,,,,, घुट घुट कर याद में घुटता हु पग पग पैर मचलता हैं महज स्नेह आकांक्षी हु आरति कुछ और दिलदार नही नयनो की मस्ती चाहता हु है जन्नत की दरकार नही चांदनी कुछ कह जाती हैं समीर सन्देशा लाती हैं पिकी पंचम स्वर के गाती है पर उसमे तुम जैसे प्यार नही नयनो की मस्ती चाहता हु है जन्नत की दरकार नही सरिता सागर में मिल जाती हैं कोकिला गीत मधुर गाती है पपीहे की विरह लिए मैं प्रिय श सकता ऐसा वॉर नही नयनो की मस्ती चाहता हु हैं जन्नत की दरकार नही है रूखे शब्द प्रसूनो की माला बह सकी इसमे रस धार नही टी के हृदय की तड़पन ये है कोरी शब्द गुहार नही नयनो की मस्ती चाहता हु हैं जन्नत की दरकार नही परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व...
क्रूर नियति
कविता

क्रूर नियति

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** विहंस उठी नव किसलय अन्तर्मन के मरुस्थल में, रोम रोम पुलकित हो झूमा स्वप्न सजे अन्तस्तल में चमक उठी चन्द्र चांदनी, वरण कर रही प्रियतम का, झीगुर की झंकार से सहसा, मिटा ताप ज्यूं अन्स्तल का। रुनझुन रुनझुन मन ललचाया बज उठी पयलिया पांवों की। विहंस उठा हर तार हृदय का, बजी रागिनी अरमानों की। सहसा आये इक पवन झोंके ने बिखरा दिए इन दृगों के सपने। फिर बनी यह साथी तन्हाई, फिर क्रूर नियति न शरमाई। परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
मां
कविता

मां

परमानंद निषाद छत्तीसगढ, जिला बलौदा बाज़ार ******************** ममता की मूरत है मां। भगवान की सूरत है मां। तेरी आंचल में सारा जहां है। मेरी प्यारी और न्यारी मां। खुशियों का भंडार है मां। तेरे बिना जीवन बेकार है मां। मां की ममता है महान। कैसे करूं तेरा गुणगान मां। तुम ही दुर्गा,तुम ही काली। तु चमकती आसमां की लाली। दया,त्याग की मूरत है मां। प्रेम की तु पूरक है मां। भगवान का दिया हुआ। अनमोल उपहार है मां। मां के कदमों में स्वर्ग बसा। मां से मिलता जीवन हमको। इस जग में मां का स्थान। सबसे प्यारी व ऊँचा होती है। घर में मां भी बहु कहलाती है। सौंदर्य से सारे जहां को जीत लाती है। मां को नाराज करना हमारी भूल है। मां के कदमों की मिट्टी जन्नत की धूल है। परिचय :-परमानंद निषाद निवासी - छत्तीसगढ, जिला - बलौदा बाज़ार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...