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कविता

मैं शून्य हूँ
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मैं शून्य हूँ

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मै शून्य हूँ अपूर्ण हूँ पूर्ण होने की कोई चाह भी नहीं मेरा ख़ुद का कोई वजूद नही कोई अहंकार नहीं कोई आग्रह भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं है कोई चाहत भी नहीं है मै तनहाई में भी अकेला नहीं होता और भरी महफिल में भी मेला नहीं होता मेरा कोई मोल नहीं है मै सत्ता के गलियारों मे नहीं मिलता मैं दुनिया के बाजारों मे नहीं मिलता मैं तपस्वी के मन मे मिल सकता हूँ मै निर्जन वन मे मिल सकता हूँ मैं आकाश के सुनेपन में मिल सकता हूं मै किसी के अकेलेपन मे मिल सकता हूँ तुम शून्य को अपने मे से घटा भी दोगो तो तुममे कुछ कम नहीं होगा हाँ तुम चाहो तो मुझे अपने में मिला सकते हो कुछ मै तुम में जुड़ जाऊंगा कुछ तुम मुझ में जुड़ जाना। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत ...
मोर की गुहार
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मोर की गुहार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मोर पंख मोर जैसे नहीं होने से मोरनी अपने पंख से नहीं ढाक पाती अपना तन ढक लेता है मोर अपने पंखों से अपना तन। ना घर ,ना घोसला मुंडेरो और कुछ बचे पेड़ों पर बैठकर मोर ये सोच रहे ? इंसानों को रहने के लिए कुछ तो है जंगलों के कम होने से क्या हमारे लिए कुछ भी नहीं मेरे इस बचे खुचे जंगल मे। पिहू -पिहू बोल के बुद्धिजीवी इंसानों से कह रहा हो जैसे इंसानों के हितों के साथ हमारे हितों का भी ध्यान रखो क्योंकि हम राष्ट्रीय पक्षी है। नहीं तो कहते रह जाएंगे जंगल मे मोर नाचा किसने देखा? और यह सवाल अनुतरित बन रह जायेगा महज किताबों में। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग...
ठौर नहीं होगा
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ठौर नहीं होगा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** यलगार करने के लिए कोई वक्त मुक़र्रर नहीं होता, हर समय किया जा सकता है, वो दौर और था कि महिलाएं, बच्चे, दलित, आदिवासी, खामोश रह सब सहा करते थे, डर कहें या अमानवीय नियम ये हद से ज्यादा हद में रहा करते थे, पर आज का दौर और है, हर जगह इनका हक़ व ठौर है, ये हक़ हमें संविधान ने दिया है, जिनकी रक्षा का हमने प्रण लिया है, वो संविधान जो सबको सम मानता है, अधिकारों को छीनना अक्षम्य मानता है, एक स्त्री को घर तक सीमित क्यों रखना? वह किसी पुरूष से कम नहीं, उसके बाद भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी को दमित करना, किसी का हक़ मारना, जान कर जातिय दुर्व्यवहार उभारना, कुछ कुंठितों का शगल है, मगर वे मत भूलें कि ये सब यदि अपने पर उतर आए, तो मुंह छिपाने के लिए कहीं भी सुरक्षित ठौर नहीं होगा। ...
आया पतझड़ में बसंत
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आया पतझड़ में बसंत

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** धरती पर यौवनता उमड़ी, मदहोश हुआ दिग्दिगंत, कली-कली कौमार्य दहके, आया पतझड़ में बसंत! नैन मिलाके खोया चैन, उड़ गई निदियां रातों की, तन-वदन में लगी आग, पुलकित बगिया बातों की! मन-मधुकर मदहोश हुआ, पा पावन स्नेह मकरंद, हो उठा प्रण पूर्ण प्रियतम, जुड़ा ह्रदय का अनुबंध! बदल ना जाना मौसम-सा, रहना बन परछाई तुम, बहल ना जाना कलियों संग, बनकर हरजाई तुम! परिमल-से पल प्यार के, कर रहे प्रमुदित पोर-पोर तेरी यादों में कटती शामें, तेरे ख्वाबों में होती भोर! भाया ना सिवा तेरे कोई, ये सांसें तेरे ही नाम की स्वीकार ख़ुशी-ओ-गम, नही फ़िक्र है इल्जाम की! गुजरे ज़िंदगी सारी, प्रिय! अब तेरी ही पनाहों में होना ना दूर आँखों से, मांगा मैंने तुम्हें दुआओं में! परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" ...
समर्पित
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समर्पित

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कभी झाँककर देखा तुमने, मात पिता के जीवन को, ठंडा बासी खाकर के पाला है अपने लालन को। नही महँगे कपडे हे पहने, नही ऐश का जीवन वो, कंधे पर बोझा हे ढोकर, पैदल ही वह चलते जो, पैसो की कीमत वह जाने, बूँद-बूँद वह भरते है, ठंड गर्मी बारिश नही समझे, वह मौसम को सहते है, त्याग और बलिदान समर्पण, हे नींव गहरी जीवन की, शिखर तो जब ही हे चमकता त्याग के आँसू सिंचे वो, (बच्चे) कंचन भी तपकर तभी दमकता, अंगारों पर चलते हे वो, ज्ञान विवेक संस्कार धैर्य को जीवन्त ह्रदय मै रखते जो, कितने काँटे भाटे रोडे आये, पर विचलित नहीं होते हे वो, दृढ़ संकल्प मन मै हे रखकर, मंजिल को छू (पा) जाते हे वो। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस ...
आत्ममंथन
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आत्ममंथन

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** क्या खोया, क्या पाया, क्या अपनों से पाना है, जो भी है मुट्ठी में है, यहीं छोड़ कर उठ जाना है I परिन्दे पर निकलते ही घोंसला छोड़ चले जाते हैं, फिर कभी वे लौटकर घोंसला में नहीं आते हैं I जीवन की तो अब एक-एक साँस नित्य प्रति घटी, विघ्न बाधाएँ जीवन के हर मोड़ पर डटी I कल-कल करते, आज हाथ से आरजू निकले सारे, भूत भविष्यत् की चिंता में वर्तमान की बाज़ी हारेI पहरा कोई काम न आया, रसघट रीत चला, कालचक्र के वशीभूत, बस जीवन बीत चला I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
खुद की खोज कर
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खुद की खोज कर

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** दुनियां दारी के चक्कर में हमने खुद को भुलाया है। हम कौन हैं ये आज तक कोई समझ नहीं पाया है। ******* सारे जमाने की खबर हमें होती है। पर हम कौन है? यह जानने की कोशिश हमसे नही होती है। ******* सबसे पहिले आप खुद पर दे ध्यान । जब आप स्वास्थ्य रहेंगे तो ही सब पर दे पायेंगे ध्यान। ****** जिसने खुद को समझा है उसने खुदा को पाया है। बाकी ने तो अपना जीवन व्यर्थ में गावायां है। ******* में कौन हूं? दुनियां में क्यों आया हूं? इन प्रश्नों को जिसने हल किया है। वास्तव में जिंदगी जीने का मजा उसने लिया है। ****** भले करें चिंता जमाने की परन्तु खुद का भी ध्यान रखें। सबके साथ चलते रहें पर खुद का भी ध्यान रखें । परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शप...
वसंत पंचमी
कविता

वसंत पंचमी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** वसंत पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, ज्ञान की देवी सरस्वती और धन की देवी लक्ष्मी का अवतरण दिवस भी वसंत पंचमी को हुआ था, इस दिन ज्ञान की देवी माता सरस्वती का कलश स्थापन‌ कर पूजन, आरती किया जाता है, वसंत पंचमी पर वाणी की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती की पूजा, प्रार्थना का विशेष महत्व है। शास्त्रानुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और देवताओं की प्रतिनिधि विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी हैं, माता सरस्वती की पूजा आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित है, माता के रहस्योद्घाटन का दिन भी वसंत पंचमी को ही माना जाता है। ये दिवस सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, माता सरस्वती को वागेश्वरी, भगवती, शारद...
मनभावन ऋतु है बसन्त
कविता

मनभावन ऋतु है बसन्त

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** बसन्त ऋतु का मौसम है कितना सुनहरा जिधर देखो दिखे प्रकृति का रूप सुनहरा सुहावना प्यारा मौसम खिलता हरा भरा अनुपम मनोरम दिखे नजारा हरा भरा वृक्ष होतेहरेभरे चढ़े लता रँगभरे फूल पत्ते प्रकृति का मनवभावन खिलता नजारा प्रकृति पर अनोखी चढ़ती है लालिमा नया नया रूप सुनहरा वादियों में मनोरमा जब आता है ऋतुओं का महीना फागुन उत्साह ऊर्जा यौवन ऋतु बसन्त की धुन खिलखिलाती है प्रकृति, महकता है मन मनमोहकता मस्ती में रहता ऋतु बसन्त चढ़ाता है प्रकृति में अपरिसीम उमंग तरंग कुदरत की फैलती हर कोने में खुशबू खुशियों की बहार में उमंग तरंग संग करती है बसन्त ऋतु मन ह्रदय प्रसन्न बसन्तपँचमी का आये शुभ मंगल दिन बीणापाणी के साधक करते आराधना मांशारदे तनमन से करते पूजा और वंदन सरस्वती पूजा में साहित्य सँगीत साधक लगाते ध्यान करते विनती दे दो...
बचपन
कविता

बचपन

सुमन मीना "अदिति" दिल्ली ******************** वो छोटी-छोटी शरारतें वो मस्तियां, वो नादानियां वो परियों वाली कहानियां वो कलियां, वो तितलियां वो खिलौनों वाली दुनियां वो गुड्डे गुड़ियां का खेल वो आंचल में जा छिप जाना वो थपकियां, वो लोरियां वो हर बात पर जिद्द करना वो लाड़ प्यार, वो दुलार वो बारिश बूंदों की रिमझिम वो पैरों की छप छप वो बारिश का पानी वो कागज़ नांव की कश्तियां वो मासूमियत भरी मुस्कान वो धूल मिट्टी, वो शोर वो कच्ची आम की कैरियां वो पगडंडियां, वो खुशियां वो सुनहरे सपनों से सजी रातें वो सुकुनियत, वो बेफिक्री वो सीधा सरल जीवन वो नासमझी, वो निश्छलता। “कीमत जो भी होगी चुका दूंगी..., गर कोई लौटा देगा बचपन के इन दिनों को।” परिचय - सुमन मीना "अदिति" निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
तो समझो बसंत आया है
कविता

तो समझो बसंत आया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** पलाश भी अब झूम उठे नव कोपल भी खिल उठे पत्ता और डाली हर्षाया है तो समझो बसंत आया है कोयल की राग है नियारी सबकी लगती अति प्यारी सुन्दर राग भी तो गाया है तो समझो बसंत आया है करवट बदलती है फिज़ा सबसे अलग और है जुदा प्रकृति में खुमार आया है तो समझो बसंत आया है तन प्रफुल्लित हो जाये मन प्रफुल्लित हो जाये प्रीत मन में गर समाया है तो समझो बसंत आया है फिज़ा में निखार है आई मदमस्त बाहर भी है छाई भंवरों का मन ललचाया है तो समझो बसंत आया है जीवन में नव-नव हर्ष देने सौन्दर्य का सहज स्पर्श देने हरियाली से जग सजाया है तो समझो बसंत आया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(ब...
आगे बसंत
आंचलिक बोली, कविता

आगे बसंत

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** पियर-पियर सरसो फूले, पियर उड़े पतंग, पियर पगड़ी पहिर के, आगे ऋतु राज बसंत। अमरय्या मा आमा मयुरे कारी, कोयली कुहुकत हे, लाली-पियुरी परसा फूले, सबों के मन हा पुलकत हे। सरर-सरर चले पुरवाही, मन मयुर झूमें नाचे, फागुन के फाग संग, सुग्घर डोल नगारा बाजे। पातर-कवर गांव के गोरी, झुले कान के बाली, मया-पिरीत के बांधे, डोरी हंसी अऊ ठिठोली। मन भावन उत्साह, अऊ उमंग ज्ञानी, गुनी ,संत, मन मा खुशी गजब, सुग्घर लागे आगे बसंत। कतिक करव बखान, तोर हे ऋतु राज बसंत, तोर महीमा ल बताइन, दिनकर, वर्मा अऊ पंत। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
वसन्त जब आये
कविता

वसन्त जब आये

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** आम्र वृक्ष पर बौर आए, पलास खिलकर मुस्कुराए, कोयल मीठे तराने गाये, वसन्त आये, वसन्त आये। अमलताश मन को है भाये, पतझड़ से क्यों घबराए, परिवर्तन का उत्सव मनाये, वसन्त आये, वसन्त आये। शीत ऋतु लौट के जाये, खुशनुमा मौसम हो जाये, झरबेरी के बेर ललचाये, वसन्त आये, वसन्त आये। विविधरंगी पुष्प खिले, पीतवर्णी सरसों फूले, सुरभित सी पवन बहे, वसन्त आये ये कहे । वसन्त ऋतुराज कहाये, शोभा इसकी बरनी न जाये, उर में है आनंद समाये, वसन्त आये, वसन्त आये। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र...
बसंत
कविता

बसंत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** अधरों पर मंद स्मित सजाएं, बसंत पूरब से लालिमा लिए। सुरभित सुमन रजनीगंधा के, आ गया पात पात आनंद किए। पीत वसन मुख चांदनी सा, शीतल मन्द समीर लिए। हरी दूब से शबनम चुनता, हलधर दौड़े बसंत लिए। कली फूल चितचोर बने, लता यौवन मकरंद लिए। घर आंगन में उतर गया, ऋतुराज आंखें चार किए। सज स्नेहिल हरित वसुधा, नेह मिलन की आस लिए। फागुन में गौरी बाठ निहारे, यादों की खुशबू पास लिए। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकत...
हूँ …मैं
कविता

हूँ …मैं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । जीने की हर कोशिश में बहुत -बार मरा हूं मैं। सैकड़ों बार टूट -टूट के फिर उन टुकड़ों को जोड़ कर जुड़ा हूँ.. मैं। अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । अपनों ने ही खींचे थे पाँव। सैकड़ो बार गिरकर लड़खड़ाते हुए फिर भी खड़ा हूँ ..मैं। मिले तो थे हाथ साथ मगर। जिंदगी की राह पर फिर भी अकेला चला हूँ.. मैं। अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । सवाल बन के क्यों... रह गई जिंदगी। हर उस जवाब की तलाश में अब चला हूँ...मैं। उम्मीदों से छुड़ाकर हाथ अपना। आज आपने साथ पहली बार चला हूँ...मैं। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
रामरस
कविता

रामरस

माधवी तारे लंदन ******************** ये क्या हुआ कब हुआ, क्यों हुआ जब हुआ, तब हुआ ओ छोड़ो, ये न सोचो हम क्यों शिकवा करें झूठा जो हुआ वो अच्छा हुआ सपना पुराना था मोदी जी ने पूरा किया फिर क्या हुआ? हमने तो सुना था, जाना था मामला पांच सौ साल पुराना था, नेताओं ने भी उस पर चुनावी जामा चढ़ाया, रामलला को भी उन्होंने टेंट में बिठा दिया था... फिर क्या हुआ? न्यायविदों ने जब न्याय का आदेश दिया तब जा के बाईस जनवरी का शुभ-दिन आया फिर क्या हुआ? मंदिर बन के तैयार हुआ रामलला को भी विधि से मंदिर में बिठा दिया फिर क्या हुआ? देश सारा राम रस में डूबता चला गया दीवाली जैसा माहौल विश्व में फैल गया विश्व में फैल गया... परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
ऋतुराज वसंत
कविता

ऋतुराज वसंत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ों की पत्तियां झड़ रही मद्धम हवा के झोकों से चिड़िया विस्मित चहक रही ऋतुराज वसंत धीमे से आरहा आमों पर मोर फूल की खुशबू संग हवा के संकेत देने लगी टेसू से हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए वो बता नहीं पा रहा पेड़ का दर्द लोग समझेंगे बेवजह राइ का पर्वत पहाड़ ने पेड़ो की पत्तियों को समझाया मै हूँ तो तुम हो तुम ही तो कर रही वसंत का अभिवादन गिरी नहीं तुम बिछ गई हो और आने वाली नव कोपलें जो है तुम्हारी वंशज कर रही वसंत के आने इंतजार कोयल के मीठी राग अलाप से लग रहा वादन हो जैसे शहनाई का गुंजायमान हो रही वादियाँ में गुम हुआ पहाड़ का दर्द जो खुद अपने सूनेपन को टेसू की चादर से ढाक रहा कुछ समय के लिए अपना तन। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि ...
मकड़ी का जाल
कविता

मकड़ी का जाल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जाल मकड़ी का बुना है, खो गयी संवेदनाएँ। द्वेष के फूटे पटाखे, जल रहीं हैं नित चिताएँ।। कर रहे क्रंदन सितारे, चाँद भी खामोश रहता। हर तरफ छाया तिमिर की, अब नहीं कुछ होश रहता।। आपदा की बलि चढ़े सब, चल रहीं पागल हवाएँ। शोक घर -घर हो रहा है, मौत की छाया पड़ी है। आँधियाँ सुनती नहीं कुछ, झोपड़ी सहमी खड़ी है।। छा रही है बस निराशा, टूटती सारी लताएँ। भूलती चिड़िया चहकना, साँस बिखरी कह रहीं अब, कौन सुरक्षित इस जग में, पीर अँखियाँ सह रहीं सब संत्रासों की माया है , छा गईं काली घटाएँ। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका ...
संवादहीन जो …
कविता

संवादहीन जो …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* संवादहीन जो मौन खड़ा है अंधियारे में ये कौन खड़ा है आकुल प्रश्न ये बहुत बड़ा है ये सत्य, जो स्वीकार नहीं है मत सोच ये तेरी हार नहीं है प्रयास रहे तो स्वर्ग धरा है पाप पुण्य का लेखा जोखा करो तुझको है किसने रोका तपे वही जो स्वर्ण खरा है पीड़ा का परिसीमन क्या है जीवन क्या है, मरण क्या है समयचक्र में सभी पड़ा है मृत्यु द्वार पर जीवन नाचे पाप पुण्य के किस्से बाँचे युग युग की यही परंपरा है विकट प्रश्न ये बहुत बड़ा है परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
कलम का हत्यारा
कविता

कलम का हत्यारा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब इसे कहूं तुम्हारी हताशा या लहू से हाथ रंगने का जुनून, बड़ी आसानी से बोल रहा है कि मैंने कर डाला कलम का खून, ऐसा करके तूने की है वाहियात कोशिश मिटाने की बुद्ध के विचारों को, कबीर, रैदास के विचारों को, ज्योतिबा,सावित्री के सरोकारों को, चुनौती देते पेरियार के दहकते अंगारों को, बाबा साहब के बोये संस्कारों को, जागरूक करते कांशी के पंद्रह-पच्चासी वाले बहुजन विचारों को, पर भूलना मत कि कत्ले-कलम से फिर पैदा होंगे अनगिनत कलम, उस काल्पनिक रक्तबीज की तरह, तब तू पड़ा रहेगा ताउम्र गाली खाते अपनों से, खुद से, क्या तुम्हें अब भी उम्मीद है कि कलम फिर से लिखेगा वो काल्पनिक बहकावे जिसके चपेट में तू आ गया। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्...
वीणापाणि
कविता

वीणापाणि

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मां सरस्वती की कृपा हे पाई, उनके मुख से कविता गई। जब भी उनकी वीणा बजती , मुख से कविता है यह बहती। वीणापाणि हे तु शारद, विद्या बुद्धि संगीत की दायक। गीत संगीत तुझसे हम पाते, तेरी वंदना नित्य हम गाते। हाथ में पुस्तक वीणा धारिणी, श्वेत वस्त्र हंस वाहिनी। गौ लोक मे वास तेरा, कृष्ण के अधरों पर तुम रहती। बंसी की हे तान सुरीली, सरस्वती उसमें है बहती। किरण पर आशीर्वाद है तेरा, कविता का हे गान में करती। उनके चरणों में शीश झुकाऊ, तेरा गान हमेशा गावु। तेरी भक्ति नित्य में पाऊं। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय श...
पारितोषिक
कविता

पारितोषिक

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे जाने के बाद, मेरा ये प्रेम ये स्नेह यादों मे सजाए रखना मैं वहीं पारितोषिक हूँ, जिसे पाने की चाहत में खो दिया तुमने बहुत कुछ खो रहे हो, समय, तन, मन धन और बहुत कुछ मैं तुम्हारी स्मृतियों में किसी पहाड़ी जीव की तरह कुलांचे भरता यहां वहां विचरण करता रहूँगा , मेरी उपस्थिति तुम्हें राहों में, गलियों,कूंचो में दिखाई देगी तुमने तो सजाया था मुझे अपने मुकुट के मान सा औरों को ना हो पाया कभी उसका भान सा मेरे आंसुओं को खारा पानी समझ झटका करते थे जो उनकी सोच में मेरे आंसुओं की मिठास बोओगे तुम सोचता रहा उम्र भर तरसता रहा प्रेम करुना, सम्मान को जिस, मधुकर रिश्ता बनाओगे, है विश्वास इस बात का ! जब मैं विदा लुंगी, लूँगा, महसूस करोगे मुझे किसी फूल सा, महाकाया जिसने था कभी कोई घर आँगन मेरी याद क...
कोशिश
कविता

कोशिश

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** कोशिश जब करते हैं मेहनत रंग ला जाती है हौसला गर कर गुजरने का पथ आसान हो जाती है दीपक स्वयं जलकर सब के जीवन को रौशन कर जाती है संघर्ष जितनी गहरी होती है परिणाम उतना ही शोर मचाती है कामयाबी जब मिलती है गुलशन में भी बहार आ जाते है ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksha...
तथागत
कविता

तथागत

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी पीड़ा को कभी समझ लो तथागत.... खुद को खुद से दुर करने में लगी हूँ मुझे खुद से कभी मिला दो तथागत.... संभलना नही आया मुझे अभी तक टुटने से पहले ही समेट लो तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी पीड़ा को कभी हर लो तथागत अंधेरी रातों से डर लगता है मुझे, तुम यूँ बिन बताएं घर से निकला न करों तथागत... राहें बहुत परेशानियों से भरी हुई है हाथ पकड़कर कांटों पर चलना सीखाओ तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... मेरी खामोशी को कभी सुन लो तथागत... अकेले जीवन गुजारना संभव नहीं बीतने से पहले हाथ थाम लो तथागत... मेरी गलियों से कभी तो गुजरों तथागत... यशोधरा राह तके अब घर लौट आओं तथागत... मेरी गलियों से कभी गुजरों तथागत... यशोधरा पुकारे कभी सुन लो तथागत... ...
अमर वीरों को भुला नहीं पाएंगे
कविता

अमर वीरों को भुला नहीं पाएंगे

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आजादी की लड़ाई में भेदभाव रहित देशवासी झलकाये अनेकताओं में एकता स्नेह प्यार समन्वय, विश्वास आपस में था सबका साथ मिलकर सब लड़ते गए लम्बी लड़ाई देशवासी अहिंसा से लड़ने की अपनी अहम विशेषता दिखलाई विदेशियों की हिंसात्मक योजनाएं देशवासियों की एकता में पड़ी खटाई में, जमीन पर आई थके नहीं देशवासी लड़े गए अहिंसा की लड़ाई अंत तक नहीं तोड़े धैर्य हिम्मत सफलता की सीढ़ी पर ऊंचाई सीना तान चढ़ आई देशवासी ने अपनी हिम्मत बढ़ाई गाँधीजी का था अग्रणी कुशल नेतृत्व परास्त करने का सबने किया था अटल ब्रत संघर्षों में चलाया आपसी विचार विमर्श अंत तक सबने रखा प्रेम स्नेह एकमत देशवासी जब स्वतः कूदे पड़े जंग में नेस्तनाबूत शिथिल पड़ी वर्षो की गुलामी भारतीयों के मन में चढ़ आया उत्साह, उमंग, तरंग असहयोग का देशभर में हो गया संग ख...