स्वतंत्रता
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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हम सोचे थे हमारे आहूत
महान आत्मा सोचे थे।
हमारा राष्ट्र कितना प्यारा होगा
वह क्षन जब सभी स्वतंत्र होंगे।
वे सभी लक्षय उनकी चिर अभिलाषाओ को
बेधकर जोक और मच्छरों के बेसुमार।
झुंड सा बेगुनाह निरीह बेसहारा भारतीयों का
नर पिसाच सा चतुर बहुरूपिया।
रक्त चूस रहा है राष्ट्र का युवा मौन
इन प्रताडनओ का दंश झेल रहा है।
क्या यही स्वतंत्रता है
जहा इनसानीयत नही हो भेद भाव की
सिर्फ स्वार्थ भरी कूटनीति हो।
जो हैम सभी का प्रतिनिधित्व करते है।
इनसानीयत को भूल जातिवाद
अलगाववाद की कुचक्र रचते है।
सजग होना होगा हम सभी भारतीयों को
बेरोजगारी भुखमरी स्थाई
समाधान ढूंढना होगा।
डपोरशंखी घोसणाओ को समझना होगा
माँ भारती की बाली वेदी पर
जो सपूत आहूत होगए उन्हें नमन करना होगा।
रोजगार परक शिक्षा को सत प्रतिशत लाना होगा
हर भारतीयों के घर मे खुशियाली हो
ऐसा हमारा नीतिन...