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कविता

जय किसान
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जय किसान

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** जग निर्माता, भाग्य विधाता मतृ भूमि का लाल है वो वीर किसान। जिसकी छमता का गुण गाता सारा हिन्दुस्तान है वो वीर किसान। बंजर धरती को उपजाउ, लोहे को भी सोना करदे है माने ये विज्ञान ऐसा वीर किसान। उसके घर में चक्की रोती भूखी बूढ़ी औरत सोती फिर भी करता अन्नदान ऐसा वीर किसान। चाहे हो सतयुग, द्वापर या हो त्रेता, कलयुग धरती का प्राणी चाहे पहुँचे बादल पार पर भूख मिटाता बस वो इन्सान जो है वीर किसान जय किसान, जय हिन्दुस्तान परिचय :- रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
बचपन
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बचपन

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** सबसे अनोखी ये अवस्था ना कुछ करना ना कुछ पड़ना गलियोंमें गुमते ग्याला बनते खेल -खेल में जो लेते मजा कभी ना हम दिल में चुभाते दोस्ती में ना भेदभाव का चलन........ ऐसा था हम सब का बचपन... माँ -पिता के साथ जो रहते बारिश का हमको खुभ लुभाना, मिट्टी से जो घर बनाना दादी से कहानियां सुनते ननिहाल के लिए हम तो रोते, छोटी सी मुस्कान से आंगन मेरा भर जाता गलती जब हम करते, माँ के आँचल मे जा छिपते माँ की ममता का तब होता मिलन..... ऐसा था हम सब का बचपन... पता नहीं ये कोनसा युग है छुपा है बचपन को लेकर आई एक तकनीक एसी सपनों में होते जेसे घूम, हो गयें उस तकनीक में बूम चलो कुछ एसा करते, जिसका कभी ना आदि-अन्त करना हमको ऐसा प्रचलन.... ऐसा था हम सब का बचपन.. परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी( राजसमंद)...
वक्त के साथ
कविता

वक्त के साथ

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** वो गलिया, वो दरवाज़े बदल जाते है। बचपन के चाव, जवानी आते-आते ठहर जाते है। कहाँ ढूँढे कोई, यादों के घरों को, यह तो चेहरे -दर-चेहरे वक्त के साथ बदल जाते है। हर एक का, हर एक से, निश्चित है समय। बीते वक्त में, अब जा के कही कोई मिलता है कहाँ वो दोस्त मेरे, वो भाई मेरा, वो छोटी बहनें एक छोटा -सा घर मेरा। एक सपना था मेरा। मां-बाप तक ही, यहाँ सारी, दुनिया सिमट जाती थी। मेरे घर से छोटी -सी सड़क शहर तक भी जाती थी। वक्त गुजरा, सब बदल गया। कोई मोल न था, जिन लम्हों का आज लगता है कि, सब वे-मोल गया। मैं बदला, सब बदल गया। मैं हूँ वही, पर अब वो सब। वो नहीं कहीं। वो गलिया, वो दरवाज़े, अब बुलाते नही। वक्त के साथ, उन से मैं, मुझसे वो अनजान सही। क्योंकि वो चेहरे पुराने अब कहीं नज़र आते नही। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन...
भूली बिसरी यादें
कविता

भूली बिसरी यादें

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** जब हम सब शाला जाते थे, तब पानी बाबा भी आते थे। वो जुलाई की पहली तारीख, तब झूम-झूम होती बारिश। पानी बाबा आया रे और ककड़ी भुट्टा फिर लाया रे। छप-छप चलते जाते थे, हम जोर-जोर से गाते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। वो नई-नई कॉपी किताब, वो नया-नया होता लिबाज़। वो प्रार्थना सभा की पंक्ति में, वंदेमातरम का छिड़ता राग। फिर निश्चिन्त हो जाते थे, हम गा-गाकर इतराते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। रोशनी शिक्षा की आ जाती, वह गाँव-गाँव मे छा जाती। खुली दीवारों सी पुस्तक पर फिर सुंदर चित्र सजाते थे। जब कागज की नाव बनकर, पोखर में चला कर आते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। ना वो सावन के झूले न्यारे, न कजरी-तान, न अमिया-डारे। बदल गए परिवेश, पढ़ाई से, अब बदल गई सब शालाएँ। खेल-खेल में गुरुजी पढ़ते थे, ह...
प्रीत की पाती
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प्रीत की पाती

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) लिखती हूँ पाती नैनन से, आ जाओ अब मेरे मोहन। बहुत बर्ष बीत गए हैं अब, याद बहुत सताती हैं। दो दिन तक कह कर गये थे तुम, अब तक सावरे तुम नही आये। ये प्रीत की पाती लिख लिख कर, नैनन से अश्क बहाती हूँ मोहन। आ जाओ अब मेरे दिलवर, तेरी याद बहुत तडपाती है। जब चिड़िया करलव करती है, नदिया जब कल कल बहती है। तब याद तुम्हारी आती मोहन। आ जाओ अब मेरे मोहन, तेरी याद बहुत तडपाती है। मैं प्रीत की पाती लिख लिख कर, मनमीत तुम्हे भेजवाती हूँ। हृदय वेदना लिख कर, नाथ तुम्हे बुलाती हूँ। नैनन से नीर बरसता हैं, आ जाओ अब मेरे मोहन। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्ष...
गाँव में
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गाँव में

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** झेलता हूँ गाँव को। खेलता हूँ गाँव को। खेलना सरल नहीं। गाँव है तरल नहीं। उलझनों की बाढ़ है। संकट बड़ा ही गाढ़ है। मित्र शत्रु बन रहे। षड़्यंत्र में मगन रहे। रहा न गाँव गाँव है। स्नेहहीन छाँव है। चलता रहा मैं धूप में। जलता रहा मैं धूप में। छाले पड़े हैं पाँव में। रहना कठिन है गाँव में। रहना कठिन है गाँव में। परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास - मुज्जफरपुर शिक्षा - एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी. उपलब्धियां - कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन अप्रकाशित रचनाएं - यज्ञ सैनी (प्रबंध काव्य), भारत की बेटी (गीति नाटिका), आग है उसमें (कविता संग्रह), श्रवण कुमार (उपन्यास), परानपुर (उपन्यास), अथ मोबाइल कथा (व्यंग-रचना) आप भी ...
अभिमान क्यों करूँ मैं
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अभिमान क्यों करूँ मैं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** तत्वों के संगठन पर अभिमान क्यों करूँ मै? माटी के तन-बदन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? थम जाएँ कब, कहाँ पर मुझको ख़बर नहीं है गिनती के कुछ श्वसन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? बिजली है, आंधियाँ हैं, तूफ़ान है, ख़िज़ा है हंसते हुए चमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? कल के महल-हवेली अब हो गए हैं खंडहर अपने किसी भवन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? आएगी जब क़यामत, हो जाएंगे फ़ना सब नश्वर धरा-गगन पर अभिमान क्यों करूँ मै? ओढ़े हुए कफ़न जब रहना है क़ब्र में तो अपने रहन-सहन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? मुरझाएगा कभी तो, उड़ जाएगा कहीं पर सुन्दर सुखद सुमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? टिकता नहीं है जो भी आता है इस जगत में ख़ुशियों के आगमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? जाना 'रशीद' जग से है ख़ाली हाथ आख़िर फिर माल और धन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? परिचय -  रशीद अहमद शेख ...
सन ६२ का काल नही
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सन ६२ का काल नही

राकेश कुमार साह अण्डाल, (पश्चिम बंगाल) ******************** भारत-चीन ना कभी हो सकता भाई-भाई, सरकार हमारी, करे अब इसपर कड़ी करवाई। सन ६२ का काल नही अब, सरकार हमारी बेकार नही अब। आँख झुकाना बहुत हुआ, आँख मिला कर बात करो अब। वक़्त बुरा था, कमजोड़ थें हम, फिर भी हिम्मत ना हारे थें। अब तो है देश समृद्ध हमारा, मातृभूमि हमे है सबसे प्यारा। विश्व पटल पर हिन्दूस्तान के वीर गाथाओं की धूम मची है। देश की रक्षा में, बेटे क्या, बेटियाँ भी सीमा पर खड़ी है। हम कसम लें खुद से, चीन के सामानो का बहिष्कार करेंगे। मिल कर पुरे देश में स्वदेशी का प्रचार और प्रसार करेंगे। भले हमारी संसकृति की पहचान सौहार्द्र और शान्ति है। परन्तु देश के सम्प्रभुता की माँग, फिर एक स्वदेशी क्रांति है। परिचय :-राकेश कुमार साह निवासी : अण्डाल, पश्चिम बंगाल घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी...
आती जाती रहेगी बाधा
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आती जाती रहेगी बाधा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** बाधाओं पर आती बाधा, इधर उधर से आती बाधा। हुआ थकन से चूर चूर तन, शूल डगर में और भी ज्यादा। अँधियारी घनघोर घटायें, कितना भी लहराकर आयें। बहलायें या फिर धमकायें, फुसलायें, पथ से भटकायें। लक्ष्य के पथ पर सजग रहो, खुद मंज़िल परवान चढ़ेगी। अम्बर को छूकर आने की पंछी को वही उड़ान मिलेगी। इच्छाशक्ति विश्वास प्रबल हो, सफल ही होगा अटल इरादा। ओढ़, छोड़कर सभी लबादा, आती जाती रहेगी बाधा। परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
खटखटाने दो
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खटखटाने दो

डाॅ. राज सेन भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** खटखटाने दो द्वार दुःखो को हम खुशियों में चूर रहे। व्यस्त रहकर सदा सद् कर्मों में हम बुराइयों से दूर रहे।। ईश्वर देखकर लिख रहा हरपल कर्मों का खाता हमारा जरूरी नहीं कि हम दुनिया के दिलों में भी मशहूर रहे। चल रहे हैं यदि सबसे अलग हटकर सद् मार्ग में हम तो मिलेगा कम औरों से पर होगा सुखद याद ये जरूर रहे। सौंप दिया जब स्वयं को प्यारे प्रभु के हाथों में विश्वास कर तो उसके दिये फूल और हमारे उगाऎ काँटें मंजूर रहे। बदला न लें बदल कर दिखाऎं‌ अंश मात्र भी जो बुरा है किसी का किरदार ही बुरा हैं तो हम भी क्यों क्रूर रहे। ना रख उम्मीद जमीं के रहने वालों से स्वर्गिक सुख लेने की उड़े हल्का होकर दिव्य गुणों की खुशबू से भरपूर रहे। रहना हैं तो 'राज़' खुशियाँ बाँटे बस यही राह श्रेष्ठ है दुःख देने वाले को भी दे दुआ हमारा तो यही दस्तूर रहे।। परिचय : डाॅ. राज...
मेरे पापा
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मेरे पापा

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे पापा मैं मुस्कुराऊ तो खुद मुस्कुराते, मैं रोऊ तो खुद भी रोने लग जाते, मेरी खुशी में खुश होते, मेरे गमों में मुझे समझाते ऐसे मेरे पापा..... अभी तो मैंने पापा बोलना भी नहीं सीखा, लेकिन जब बोलूंगी, तो जो खुशी से झूमेंगे और मुझे अपनी बाहों में ले लेंगे ऐसे मेरे पापा... जिनकी उंगली पकड़कर में चलना सिंखुगी जिनके आवाज लगाते दौड़ी चली आऊंगी बिना मेरे कुछ मांगे जो मुझे दिला दे जो मेरी हर इच्छा पूरी करवा दे ऐसे मेरे पापा... मैं ही उनकी दुनिया उनकी दुजी ना कोई इच्छा बस हमेशा मेरे लिए प्यार ऐसे मेरे पापा.... परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
उनकी इस महफ़िल में
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उनकी इस महफ़िल में

मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव बिजनौर, लखनऊ ******************** रौनक भरी उनकी इस महफ़िल में, उनके लिए मेरा मन क्यों उदास है? खड़ें हैं सामने उनके सभी भीड़ में, नहीं वो क्यों मेरे पास हैं? चारों ओर शोर ठहाका नजारों में, पर होंठ क्यों मेरे चुपचाप हैं? सभी व्यस्त इधर उधर की बातों में, हम बतियाते क्यों अपने आप हैं? मुंह फेर कोई बात ना करे हमसे, हमें फिर क्यों उनका इंतजार है? हर कोई दोस्तों से घिरा, मगर अकलेपन में हमें क्यों उनकी तलाश है? न बात करते हों मुझसे वो अब, फिर मुझे क्यों उनसे ये आस है? उनके बेरुखे व्यवहार में किस्सा कोई जरूर है, मगर कसूर क्या मेरा, मसरूफियत क्यों मुझसे है? बेशक रूठकर मुझसे दूर वो चलें जायें, दूर होकर भी मुझे क्यों उनसे हीं फरियाद है? उनके लिए मेरा मन क्यों उदास है? . परिचय :-  मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव निवासी : बिजनौर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश घो...
वर्षा आई
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वर्षा आई

राम शर्मा "परिंदा" मनावर (धार) ******************** रिमझिम-रिमझिम वर्षा आई चिड़िया रानी खूब नहाई। कभी धूल में लोट लगाती फिर पानी में लौट आती शेम्पू--साबुन नहीं लगाई चिड़िया रानी खूब नहाई। चीं-चीं कर चिड़िया गाती गाती जैसे प्रेम की पाती मौसम आया बड़ा सुखदाई चिड़िया रानी खूब नहाई। पानी में ही दौड़ लगाती दाना भी पानी में खाती आज खुशी उसने है पाई चिड़िया रानी खूब नहाई। परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कवि सम्मेलन में संचालन भी करते हैं। आपके साहित्य चुनने का कारण - भ...
हमारी पहचान
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हमारी पहचान

प्रेमचन्द ठाकुर बोकारो (झारखण्ड) ******************** सिमट जाती हैं हमारी आत्माएँ कहीं कोने में वेदना की प्रहार से, निशब्द हो जाते हैं हमारे चेहरे पितृसत्ता के समक्ष, सजल हो जाते हैं हमारे नयन परिजनो की निश्छलता के कारण। कभी हम अभिमान बन जाते हैं तो कभी अपमान, हमारी न कोई पहचान। दहलीज़ हमारे बदल जाते हैं माथे पर सिन्दुर लगते ही, प्रथा है शायद हम अबलाओं के लिए। हमें हर क्षण सहिष्णुता का स्वयंसेवक बनाया जाता है और यही हमारी पहचान। हमें किस-किस रूप में और दिखाएँ जाएंगे कभी रावण की कैद में "सीता", तो कभी कौरवों के अपशब्दों की झोली में "द्रोपदी", तो कभी प्रणय पावन की अभिशाप में "शकुन्तला" और आज दरिन्दो की बुरी निगाहों में "कठपुतली"। परिचय :- प्रेमचन्द ठाकुर निवासी :  बिरनी, जिला-बोकारो, झारखण्ड घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
जिंदगी एक बार तो बता देती
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जिंदगी एक बार तो बता देती

प्रवीण कुमार बहल ******************** वह कौन है जो मुझसे नफरत करता है क्यों मेरे बगीचे में उसका हल्ला चलता रहता है उसे ना तो कयामत का डर को नफरत थी मुझसे मैं तो उसकी तमन्ना पूरी करता रहता तकल्लुफ.. क्यों करते मैं तो रोज ही आकर कह देता अपने दरबार में रोज बुला लेता ताकि तुम चंद लोगों के आगे मेरी हसरतों का जनाजा ना पीटते मुझे देखना था.. वह कौन है जो मेरे से नफरत करता है मेरे पास आता.. मैं तुम्हें खुद आंखों पर बिठा लेता मैं तो सामने आने वालों से प्यार करता हूं जिंदगी एक बार तो बता दे..वह कौन है जो मुझसे नफरत करता है परिचय :- प्रवीण कुमार बहल जन्म : ११-१०-१९४९ पिता : डॉ. मदनलाल बहल व्यवसाय : सेवानिवृत- मैनेजर, इंडियन ओविसीज बैंक निवासी : गुरुग्राम (हरियाणा) उपन्मास : रिश्ता, ठुकराती राहें काव्य संकलन : खामोशी, दिशा, चिराग जलते रहें, आंसू बहते रहे, आदि १० पुस्तकों का प्रकाशन। पुरस्कार ...
माता अहिल्या
कविता

माता अहिल्या

सुषमा शुक्ला इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माता देवी अहिल्या मालव प्रांत की महारानी, न्याय की प्रतिमूर्ति और जीवनदायिनी प्रशासनिक मामलों में रुचि दिखाई और इतिहास में जगमगाई देवी अहिल्या ने युद्ध का नेतृत्व किया, वे साहसी योद्धा थी और तीरंदाज भी। हाथी की पीठ पर चढ़कर लड़ती थी, और प्रजा राज्य को सुरक्षित रखती थी रानी ने पवित्र महेश्वर में अहिल्या महल बनवाया, पवित्र नर्मदा के किनारे डेरा जमाया एक बुद्धिमान तीक्ष्ण सोच की शासक थी, जो प्रजा के हृदय में जीती थी इंदौर को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभाई न्याय की प्रतिमूर्ति बनकर सामने आई शत शत कोटि प्रणाम ऐसी माता को धन्य है ऐसी इंदौर की धाता को परिचय :- सुषमा शुक्ला निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी ...
अहसास हार का…
कविता

अहसास हार का…

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** फलक तक आकर न लौट ए खुशी हम दीदार की आस लगाकर बैठे हैं। गम के सायों से जरा दूर रह ए खुशी इंतजार में आंसू बहाकर बैठे है। छलछलाती आखों से विदा किया था। तेरे शब्दों के कसीदे पे भरोसा किया था। जब अपने ही पराये से होने लगे, जजबातों से खिलवाड़ करने लगे होता रहे अहसास हार का रिश्तों में इशारों इशारों में किस्से लिखने लगे . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें...
जन्मदाता पिता-माता
कविता

जन्मदाता पिता-माता

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** जग के प्यारे दो इंसान देते हमको जीवन दान एक है ममतामई मा और दूजे पिता महान प्रेम करना हमे मां सिखलाती पिता परिस्थितियों का सामना मा से हम निर्मलता पाते पिता से जीवन ज्ञान एक है ममतामई मां.... ऊपर से तो सख्त ही रहते बच्चे उनके हिय में बसते अपने कवच बने रहते जो पिता सुधरढ चट्टान एक है ममतामई मां.... पिता हमारे संबल होते मनोबल अपना बढ़ाते रहते उनके दम पर ही हम पाते जग के सुख आराम एक है ममतामई मां.... जग के प्यारे दो इंसान जिनसे मिली हमको पहचान एक है ममतामई मां और दूजे पिता महान परिचय :-  शुभा शुक्ला 'निशा' जन्म - २५-६-१९६६ पति - शरद शुक्ला पिता - श्री जे एन तिवारी माता - श्रीमती श्यामा तिवारी निवासी - रायपुर (छत्तीसगढ़) शिक्षा - बी.काम,एम.ए. हिन्दी साहित्य ,पी.जी.डिप्लोमा इन कंप्यूटर साइंस संप्रति - विश्व मैत्र...
क्या याद है तुम्हें
कविता

क्या याद है तुम्हें

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** आओ ना कुछ देर हमारे पास बैठो, पुरानी बातें याद करते हैं, मेरे हाथों को हाथों में लेकर , बातें करना, दुनिया से छुप छुप कर मिलना, और आंखों में डूब जाना, क्या याद है तुम्हें.... घंटों घर के बाहर घूमना, रातों को जागना, चांद को ताकना, आसमान के तारे गिनना, क्या याद है तुम्हें..... आओ ना कुछ देर हमारे पास बैठो, पुरानी बातें याद करते हैं....... दोस्तों में हो कर भी तुममें खोए रहना, वो कॉलेज बदलना वो रास्ता बदलना, क्या याद है तुम्हें..... किताबों में छिपाकर तेरा फोटो रखना, लबों पर तेरा नाम आना, अचानक किसी का आवाज लगाना, जल्दी से किताब छुपाना, क्या याद है तुम्हें..... आओ ना कुछ देर हमारे पास बैठो, पुरानी बातें याद करते हैं,...... वो तेरा दुल्हन बनना किसी और के रंग में रंगना, किसी और का होना उसके नाम की मेहंदी रचाना, तुम्हारी शादी में अप...
अजातशत्रु
कविता

अजातशत्रु

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पुराने शहर के बगीचे में सजावट के लिए वह तोप रखी है, पता नही उसे अपने इतिहास पर गर्व है या शर्मिंदगी। पास की क्यारियों में उगे फूलों के पौधे तोप से डरते नही है, कई बार वे अपनी सुखी पत्तियों को तोप पर उछाल देते है, हवा के साथ शरारत करते हुए। एक बालक रोज आकर खेलता है तोप के साथ उसे तोप को घोड़ा बना कर उसकी सवारी करना अच्छा लगता है। उसने अपनी चॉक से कई कपोत बना दिये है, तोप पर। कभी कभी वह गाते गुनगुनाते फूल तोड़ कर भर देता है, तोप के मुँह में। फिर दूर खड़ा होकर मुस्कुराते निहारता है तोप को, उसे पिता की कही बात याद आती है, ये तोप उगलती थी आग के गोले शत्रुओं पर। वो सोचता है अब ये कैसे उगलेगी आग के गोले, मैंने तो इसका मुँह भर दिया है फूलों से। एक प्रश्न उसे बेचैन किये हुए है। क्या होता है ??? शत्रु। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९...
बाप के बारे में
कविता

बाप के बारे में

आकाश प्रजापति अरवल्ली (गुजरात) ******************** आज मां बाप के बारे में कुछ कहना है। सब कुछ मां बाप ने दिया तो आज उनसे क्यों दूर रहना है। चिलचिलाती धूप में पसीना बहाते देखा है पिताजी को, दूसरो के घर में गंदे बरतन साफ करते देखा है मां को, इन दोनों की छाँह में तू बढ़ा हुआ है, तो फिर आज तू उनसे क्यों दूर है।। आज मां बाप के बारे में……. बचपन में तुझे आंसू न आए इसका वो कितना ख्याल रखते थे, तेरे खाने से लेकर तेरे सोने की हर चीज का वो ध्यान रखते थे, तू उनकी परवाह करे या ना करे उन्हें तेरी परवाह हैं, वो तेरे भगवान है फिर तू आज उनसे क्यों दूर हैं।। आज मां बाप के बारे में…….. तू आज भले ही मां बाप से रिश्ता तोड़ ले पर वो तुझे कभी नहीं छोड़ेंगे, तू जब भी मुसीबत में होगा तब मां बाप ही तेरे काम आयेंगे, अभी भी वक्त है तू समझ जा, उनसे प्यार कर, उनका ख्याल रख...
ओ जी कोई ना
कविता

ओ जी कोई ना

डॉ. रुचि गौतम पंत फ़रीदाबाद, (हरियाणा) ******************** ये दूर तलक पसरे मोहल्ले, ये हर चप्पे पे छायी खामोशी, सब घरों में क़ैद ज़रूर हैं, पर थमी नहीं है ज़िंदगी, इसे मजबूरी मत समझना, ये मजबूती है मेरे लोगों की, यहाँ एक एक बच्चा भी शेर सा पला है, तेरा तो पता नहीं कोरोना मेरा हिंदुस्तान जीतने वाला है। यहाँ बजती है घंटियाँ, सुबह शाम अज़ान भी है, यहाँ हर घर में बसता है भगवान, और हर इंसान को खुद पे ग़ुमान भी है, तेरा पता ग़लत है कोरोना, तू आया मेरे हिंदुस्तान में है। यहाँ बाँधती हैं बहनें, कलाइयों पे राखी, हर कलाई सिर्फ़ प्यार से चुनी है यहाँ धर्म कर्म की लड़ियों ने, हम सबके के बीच एक तार बुनी है। यहाँ अगर होली वाले हैं दिन, तो मुबारक बक़रीद की शामें भी हैं, यहाँ कोई कारण नहीं पूछता, माहोल-ए-जश्न ज़रा आम सा है। तेरा पता ग़लत है कोरोना, तू आया मेरे हिं...
एक पैगाम जिंदगी के नाम
कविता

एक पैगाम जिंदगी के नाम

अनिता शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी की दौड़ में ऊँचाइयों की होड़ में रफ्तार में तार तार गुमनाम जब हर बार तो राही की पहचान के लिए एक नाम जरूरी होता है.. जीवन के संचार में खूबियों के भंडार में उड़ने को आकाश में निरन्तरता की आस में जज़्बे को दिशा देने के लिए हाँ थोड़ा विराम जरूरी होता है... कुछ आकलन जीवन में कुछ संकलन चितवन में सृजन के पल संजोए लम्हे को माला में पिरोए कुछ सुकूँ पलों के लिए मन पर लगाम जरूरी होता है... भागती सी जिंदगी ओर सपने सतरंगी कुछ पाने की उमंगे थी विचलित मन की तरंगे थी हाँ ठोकरों पर मलहम के लिए, थोड़ा सा आराम जरूरी होता है... चलकर रुकना रुककर चलना बिना चले तो जीवन तन्हा क्या ठहराव क्या है बहाव नियति की चाल वक्त का प्रवाह इन सबको समझने के लिए क्या ऐसा अंजाम जरूरी होता है.... परिचय :- श्रीमती अनिता शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प...
विरह मिलन की तैयारी
कविता

विरह मिलन की तैयारी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज साजन मेरे द्वारे आए मै विरह अगन की मारी रे। बचपन ब्याह रचा दी बाबुल अब बढ़ हुई सयानी रे विरह मिलन की भूख है कैसी ठीक समय पर आए बराती डोली लाए सवारी रे सोलह सिंगर सजा मेरी सखियाँ गजरा बाँध संवारी रे। कजरा नयन भरो मेरी सखियाँ ओढ़ा दे सोना जडल चुनरिया रे। सुसक सुसक मोरे बाबुल रोए भइया बैठी दुआरी रे। बाह पकड़ कर मैया रोयी भाभी अंक भर वारी रे अब धैर्य रखो मोरे बाबुल बेटी जात बिरानी रे। एक दिन रोती छोड़ सभी को चल देती ससुराली रे। छढे मंजिल पर एक कोठरिया तामे एक दुआरी रे। अहनद घहरद शहनाई जलता दिप हजारी रे। विरह मिलन में चली अकेली लगी प्रीतम की छतिया रे। निज अस्तित्व गवा मै बैठी। विरह मिलन की तैयारी रे। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindiraks...
आगे बढ़ता चल
कविता

आगे बढ़ता चल

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** राही आगे बढ़ता चल। ना हो परेशान, ना हो हताश, मेहनत संग आगे बढ़ता। राही आगे बढ़ता चल। निराशा दूर कर आस संजोए, विश्वास संग आगे बढ़ता चल। राही आगे बढ़ता चल। उम्मीद की नई किरण जलाए, आत्मविश्वास संग आगे बढ़ता चल। राही आगे बढ़ता चल। मंजिल तेरी राह देख रही, हौसलो संग आगे बढ़ता चल। राही आगे बढ़ता चल। अपने लक्ष्य पर डटे रह, संयम संग आगे बढ़ता चल। राही आगे बढ़ता चल। मुश्किलों को संघर्ष से दबा के, दृढ़ संकल्प संग आगे बढ़ता चल। परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में...