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कविता

अवगुण धोती शिक्षा
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अवगुण धोती शिक्षा

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** बहुत जरूरी होती शिक्षा, सारे अवगुण धोती शिक्षा। चाहे जितना पढ़ ले हम पर, कभी न पूरी होती शिक्षा। शिक्षा पाकर ही बनते है, नेता, अफसर, शिक्षक। वैज्ञानिक, मंत्री, व्यापारी, और साधारण रक्षक। कर्तव्यों का बोध कराती, अधिकारों का ज्ञान। शिक्षा से ही मिल सकता है, सर्वोपरि सम्मान। बुद्धिहीन को बुद्धि देती, अज्ञानी को ज्ञान। शिक्षा से ही बन सकता है, भारत देश महान।। परिचय : कार्तिक शर्मा पिता : शुक्राचार्य शर्मा शिक्षा : बी.एड, एम.ए. निवासी : मुरडावा पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
राधा की लालसा
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राधा की लालसा

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** जीवन में तुम आओ न आओ, पर इस मन में समाये रहना। उठें घटाएं काली काली, झूम उठे हर डाली डाली, हर तरु की हर डाली पर, झूमें कोयलिया हो मतबाली, मन प्रांगण में छाओ न छाओ, इन अंखियन में कजरा बन रहना।। पपिहा की ध्वनि लागे सुहानी, पुलके तन मन सुधि बिसरानी, सखियन के संग बैठ बैठ के, उन्हें सुनाऊं कुछ कथा पुरानी, स्वाति बूंद बन बरसो न बरसो, पपिहा की प्यास बने तुम रहना।। जमें महफिलें नित ही दर पर, बजे शहनाई तन की वीणा पर, झूम झूम के नाचे राधा, सुन के बोल तेरी वंशी पर, महफ़िल में तुम आओ न आओ, मन वीणा में समाये रहना।। अक्षर अक्षर जोडूं पल पल, दिल करता गाऊं मैं हर पल, प्रीत डोर बना बना के, कविता रूप संबारूं हर पल, निकलें शब्द भले न मुख से, तन वीणा में स्वर भरते रहना।। छाई बदरिया आसमान में, टप टप बरसे घर आंगन में, कब बरसोगे बन के बदरा, हर पल आस रहे यह मन में...
मानव श्रृंगार की बात करो
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मानव श्रृंगार की बात करो

पूनम धीरज राजसमंद, (राजस्थान) ******************** ना सम्मान की बात करो ना अपमान की बात करो ना किसी अस्तित्व की छेड़ो धुन बस तुम प्यार की बात करो सम्मान मिले ना अपनों से सम्मान मिले ना सपनों से सम्मान मिले स्व कर्मों से अपने कर्तव्य की बात करो अपमान से दिल पर चोट लगे अपमान से तन पर खोट लगे अपमान से अविचलित रह कर अपने स्वाभिमान की बात करो अस्तित्व तुम्हारा खोकर भी तुम मैं खुद को पा जाएगा आदर्श बनो अपने ही लिए अपने आत्माभिराम की बात करो चाहो तो स्नेह सदा चाहो पालो तुम प्यार का पूरा ज्ञान हो सर्व समर्पित प्रेम प्रति मानव श्रृंगार की बात करो परिचय : पूनम धीरज जन्म : १८ जून १९८३ निवासी : राजसमंद, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के...
सवेरा
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सवेरा

संजय सिंह मीणा करौली (राजस्थान) ******************** निशा नाश की नीव लगी तब, समझो उदित हुआ उजियारा। दैत्य प्रसंग विलुप्त भए तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा।। हुई यामिनी, लुप्त बिलख कर, तारे चांद को निद्रा आई। भोर की प्रीत, पड़ी अंबर से, शीतल मंद, पवन उठ आई। पीत रंग, में रंगा दिवाकर, जगा, जगत का पालनहारा, दैत्य प्रसंग, विलुप्त भये तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा.... खग, नभ में भये प्रसन्न चित्त तब, कृषक, वृषभ ले चला सुखियारा। पनघट, रंग बिरंग भयो तब, पुष्प प्रतीक भए किलकारा। बजी पुण्य आवाज शंख की, शुरू हुए आदर सत्कारा,, दैत्य प्रसंग विलुप्त हुए तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा.... विघ्न विनाशक मंगल दायक, नवरत्न, पूरक गणनायक। नित उम्मीद जगे नवज्योति, तमस को, भोर भयो खलनायक। विश्व, निशा से मुक्त भयो तब, ज्योति अलख जगाए सवेरा, दैत्य प्रसंग विलुप्त भये तब, किरणों ने, धरा पर, पैर पसारा।। परिचय : स...
दोहरे किरदार
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दोहरे किरदार

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बाहर से खुश हैं अंदर गमों का बाजार लेके चलते हैं लोग चेहरे पे चेहरे और दोहरे किरदार लेके चलते हैं। रोटी,धोती,मकान की महती पूर्ति के लिए ही तो यहाँ हम अपने कंधों पे दुनिया भर का भार लेके चलते हैं। दिल में है हसरत स्वंय लिए बस फूल पाने की मगर दूसरों की खातिर निज हाथों में खार लेके चलते हैं। परहित में काम कोई किया ना फूटी कौड़ी का मगर दिखावे के लिए सिर्फ जुबानी रफ्तार लेके चलते हैं। पछुआ हवा का असर उनपर इस तरह हावी हुआ है अब कहाँ वो अपनी संस्कृति,संस्कार लेके चलते हैं। वो क्या जमाने का भला कर पाएंगे तुम सोचो निर्मल जो औरों के लिए केवल दिल में गुबार लेके चलते हैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली...
बेटियाँ
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बेटियाँ

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** ईश्वर की सौगात, खुशियों की बरसात हैं बेटियाँ। आँगन की चिड़ियाँ, पापा की गुड़िया हैं बेटियाँ। हर घर की खुशहाली, आंगन की हरियाली हैं बेटियाँ। तारों की शीतल छाँव, दिल का लगाव हैं बेटियाँ। फूलों की सुन्दर क्यारी, सबसे प्यारी न्यारी है बेटियाँ। समुद्र सी विशाल, गंगा सी निर्मल हैं बेटियाँ। औैस की बूँद सी, शंख की गूंज सी हैं बेटियाँ। घर की न्यारी रौनक, खुशियों की दौलत है बेटियाँ। अपने पापा की जान, माँ की पहचान होती हैं बेटियां। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
देश मेरा
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देश मेरा

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** सीमा पर तैनात है जवान जो, सर्दी, गर्मी व बरसात सहन कर लेते हैं। ऐच्छिक सेना बनकर पीछे कभी ना हटते, दुश्मनों को कभी ना भीतर आने देते हैं। सबसे प्यारे जवान हमारे सबसे प्यारा देश मेरा... दुनिया के पवन रूपी में सुप्रसिद्ध हुआ भारत जो, तरह-तरह की संस्कृति, तरह तरह का वेश। भाषा है जो अनेक, तीर्थ स्थल है यहां अनेक, जगतगुरु व स्वर्ण चिड़िया कहलाया भारत देश। कितना सुंदर कितना निराला भारत देश मेरा..... हर क्षेत्र में ना कभी पीछे हटता भारत, खेल में सबसे आगे रहता है जो। प्रथम प्रयास पर मंगल पर पहुंचता है भारत, संकट में जात पात धर्म भूल जाता है। हर मुसीबत में साथ निभाता है भारत, चार धाम है जहां पर वो भारत देश मेरा.... परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाण...
यह कैसी आजादी है
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यह कैसी आजादी है

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** सीमा पर सिपाही गोलियां झेल रहा है देश में नागरिक समाज-समाज खेल रहा है इस महान देश में,यह हो क्या रहा है। यह कैसी आजादी है। किसान गरीबी से तड़प रहे है मजदूर रोजगार के लिए तरस रहे है देश के युवा बेरोजगार घुम रहे हैं नसीब नहीं दो वक्त की रोटी,खुदखुशी कर रहे है। यह कैसी आजादी है। बेटियाँ देश की अकेली सफर करने से डरती है यदि रात में गलती से भी चली जाती है तो वह लौटकर कभी नहीं आ पाती है। यह कैसी आजादी है। अस्पताल तो सैकड़ों यहां है मगर स्वास्थ्य का कोई वजूद नहीं है सड़कों पर रोगियों की, कई जानें जाती है। यह कैसी आजादी है। मुल्क के लोग बड़ी चाह से जिसे चुनते है वही तो अपना रुख बदल लेते हैं सरकारें बदलती है, योजनाएं वहीं है विकास की किसी में,जगी भावनाएं नहीं है। यह कैसी आजादी है। आस जगी थी,सदियों की गुलामी के बाद एक ज्योत जली थी, कई ...
प्रेम
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प्रेम

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** प्रेम पावन गंगा, प्रेम में शक्ति अपार। प्रेम उत्तंग हिमालय, प्रेम है उपहार। प्रेम वेद ऋचा, प्रेम अनन्त रसधार। प्रेम गीता ज्ञान, प्रेम सावन की बौछार। प्रेम मानस की चौपाई, प्रेम फागुन की बौछार। प्रेम समर्पण, प्रेम बंधन, प्रेम पैनी तलवार। प्रेम वात्सल्य, प्रेम भाग्य, प्रेम अनन्त उदगार। प्रेम भाव, प्रेम भाषा, प्रेम सकल संसार। प्रेम संस्कृति, प्रेम सभ्यता, प्रेम संस्कार। प्रेम मंदिर, प्रेम पूजा, प्रेम प्रकृति उपहार। प्रेम चंदा, प्रेम दिनकर, प्रेम आत्म वरदान। प्रेम नवरंग, प्रेम सौंदर्य, प्रेम पारावार। प्रेम मोक्ष दाता, प्रेम ईश साकार। प्रेम पावन गंगा, प्रेम में शक्ति अपार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह ...
राम भारत का स्वाभिमान
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राम भारत का स्वाभिमान

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ******************** भगवान राम से है भारत की पहचान शुरू हो गया रामजन्म स्थल निर्माण राम मंदिर हम सभी भारतीयों का स्वाभिमान राम सभी के, सभी राम के ये हमारी शान संस्कृति ओर संस्कारों पर हमें हो अभिमान सर्वें भवन्तु सुखीन: परिपाटी करें सब का सम्मान त्याग, बलिदान, साहस, धैर्य की थी वह मूर्ती तभी सारे विश्व में है आज सियाराम जी की कीर्ति वानर सेना ने दिखाई प्रभु राम जी में भक्ति तभी समुद्र पर पुल बनाने की उन्हें मिली शक्ति रावण जैसे बलशाली राक्षस को मार समझाई, बुराई पर अच्छाई की जीत चारों भाई सगे न होने पर भी रिश्तों को साथ रखने की सीख अपने आराध्य के चरणों में बिन संदेह समर्पित होना तभी मोक्ष और जन्म मरण से छुटकारा पाना विनम्र आचरण से बड़ों का सम्मान, मानों छोटों का आभार उम्र, लिंग भेदभाव बावजूद समान करो व्यवहार युगों से न हो सका अब हो रहा साकार वर्षों ...
संसार का बदलता स्वरूप
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संसार का बदलता स्वरूप

काकोली बिश्वास सिमुलतला (बिहार) ******************** संसार का बदलता स्वरूप हो रहा कुत्सित, बड़ा कुरूप मर्यादा रहती ताखों पर, और बड़े-बुजुर्ग हैं, खामोश और चुप! युवाओं का मन डोल रहा संस्कारों की कमी बोल रहा बोले इनका असंयमित मन धैर्य का हुआ अब वक्त खतम! बनना था इन्हें हमारा कल ये हैं अटूट-अडिग-अचल ये कहते चाहे जो हो जाए न बनेंगे हम भारत का बल न बनेंगे हम भारत का कल! हम अपनी धुन पर चलते चले हमें दुनिया की परवाह कहाँ, हमारा अपना जहाँ वहां.... सुख-समृद्धि-कुकृत्य जहाँ! नशा जुर्म हमसे हैं फलते अपने पास है वक्त कहां!! ईश्वर के हम अद्भुत सृष्टि मानव का ऊर्जामय रूप पर इस ऊर्जा की बर्बादी पर देश की जनता क्यूँ है चुप??? क्यों नहीं ये आवाज उठाती इन्हें सही राह पर लाती... 'बिगड़ा युवा, बिगड़ेगा देश' क्यों आखिर ये समझ न आती? शेष है अब भी वक्त है थोड़ा लोहा है गर्म मारो हथौड़ा... न जाने किस करवट बदले द...
आजादी
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आजादी

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** खुली हवा में चैन की सांस ले रहे हैं हम सभी जान गवाई उन वीरों ने जो थे पिंजरे में कैद कभी अपने वतन पर फिदा वो इस कदर की जान से प्यारी उन्हें आजादी लगी नमन है मेरा उन वीरों को जिनके कारण आजाद है हम अभी परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंद...
शिक्षा का मन्दिर
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शिक्षा का मन्दिर

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जहा में ज्ञान दिया करती थी, वहा में बेसहारों को साहारा देती रही। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जो चावल में अपने लाडलो को ना खिला सकी, वो मैने बेसाहरो को खिलाया है। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जो शिक्षा के गुरु कहलाते थे, वो कोरोना योद्धा बने अपने लिए नहीं, अपने देश वासियों के लिए। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। मैने अपना कर्तव्य छोड़ा, इस कोरोना को हराने के लिए। तुम भी अपना कर्तव्य निभाओ, इस कोरोना को हराने के लिए। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जहां मैं जंजीरों से बंधी हुई थी, फिर भी में अपने लाडलो को ऑनलाइन शिक्षा देती रही। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी।...
नन्हा बीज
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नन्हा बीज

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** एक छोटा सा नन्हा सा बीज वो प्यारा सा बीज कभी मिट्टी में बोया था मैंने,,, सोचा नहीं था कि अनन्त सम्भावनाएं है उसमें पहले उससे अंकुर निकला, नई जड़े जमीन को पकड़ने लगी,, फिर नव कोपल आये फिर तना, शाखा, फूल फल और वो बढ़ता ही चला आकाश की ओर बस थोड़ी सी मिट्टी मांगकर,,, और फिर वो देता ही चला कभी छांव, कभी फल, कभी आश्रय और भी बहुत कुछ और एक हम है जो उस मुठ्ठी भर मिट्टी के बदले लिये जा रहे उससे , उसका सबकुछ रोज कुछ न कुछ लेते जा रहे उससे,,,, लेकिन वो आज भी मुस्कराकर, सर झुकाकर देता ही जा रहा हम जैसे स्वार्थी लोगो को वो जड़ होकर भी चुका रहा कर्ज उस माटी का और इंसानो को देखो अपना तो ठीक, लेकिन दुसरो का भी हक़ खा रहा समझ नही आ रहा कि जड़ वृक्ष है या इंसान जो प्रकृति के करीब होकर भी उसे समझ नही पा रहा परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रह...
मै एक अकिंचन हूं
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मै एक अकिंचन हूं

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** माँ भवानी मै एक अकिंचन हूं तेरी कृपा दृष्टि की भिखरी। माँ मै न मंत्र जानता हूं न कोई तंत्र जानता माँ भवानी न आवाहन जानता तेरी। न अस्तुति याद मुझे न अस्तोत्र सारी सब प्राणियों का उद्धार करने वाली। तुम्ही हो कल्याणमयी, ममतामयी माँ भवानी समस्त दुख विपत्तियो को हरने वाली इस करोना काल मे फेल रही है विपति भारी। करोंना विषाणु की महामारी तू संघार कर माँ इस विषाणु का जो बड़ा ही है क्षयकारी कष्टकारी। तू सब का उद्धार करने वाली हो माँ भवानी न मै तेरी पूजा विधि जनता न वैभव है सारी। केवल एक मै एक भिखरी माँ भिक्षा तू मुझे दे तू भर दे मानवता की भिक्षा पात्र सारि। मै सभाव से आलसी हु लोभ है सारी न तेरी पूजा ध्यान तप कर पाता। तू करुणा की सिंधु हो माँ भावनी तेरी कृपा दृष्टि का हु एक भिखरी। जब अंतिम क्षण माँ आए मेरी तो मेरे कन्ठ से निकले माँ भवानी माँ भवानी...
टीस उभरती है
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टीस उभरती है

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** अंखुवाये सपने मरते, मन ऊसर, परती है। रह रहकर चुभती है कोई टीस उभरती है।। सदियों का नदियों-सा नाता सुविधाओं से है, बढ़ी चाहतों का रिश्ता सौ दुविधाओं से है; जाने क्या-क्या सह जाती भावों की धरती है।। रह-रहकर चुभती है, कोई टीस उभरती है।। प्रकृति अछूती कन्या जैसी, छेड़े पाप करे, सौ आपदा निमंत्रित करके अपने आप मरे। बादल में सागर-तल की ही पीर उबरती है ।। रह-रहकर चुभती है कोई टीस उभरती है।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित ...
देश के नौजवान
कविता

देश के नौजवान

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** तुम देश के नौजवान हो, इस जगत की शान हो। तेरे दम पे बना यह, देश महान है। पाट दो जमीन पर, नफरतों की खाईयां, दूर हो समाज की, सारी वह बुराईयां, होसलें पे तेरे सारे, विश्व को गुमान है तुम तो नौजवान हो। जात पात तोड़ दो, वैमनस्य छोड़ दो, शांन्ति के समुद्र से, राह जग की जोड़ दो। एक नवीन विश्व का, तू बना निशान है। इस पवित्र भूमि पर, स्वर्ग है उतारना, इस के रुप को, है तुम्हें संवारना। तू ही देश की शान है तुझसे रौशन जहाँन है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है।...
सोचता हूँ…क्यों लिखूँ?
कविता

सोचता हूँ…क्यों लिखूँ?

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** सोचता हूँ... क्या लिखूँ? क्यों लिखूँ? किसलिए लिखूँ? आज पढ़ता कौन है? क्या इसलिए लिखूँ? कि लोगो की निगाहों में कवि दिखूँ! क्या इसलिए लिखूँ? कि किसी साहित्य नामा समूह में वाहवाही लूट सकूँ? या इसलिए कि किसी खबरनामा में, अपना स्वयं प्रसार-प्रचार कर सकूँ? आज देश और समाज में पीड़ित की पीडा़ को पढ़ता कौन हैं? सब लिखने वाले हैं! कवि है! अपने भाव समझता कौन हैं? निष्पक्ष लिखने का दम किसमें हैं? आज देश के जन-जन में, फैले नफरती माहौल को देख लगता हैं, कि कहीं न कहीं आज के इस माहौल की जिम्मेदार, साम्प्रदायिक बनी कलम हैं। वो कलम कहां है? जिसे प्रेमचंद ने चलायी, पंत, निराला ने चलायी, महादेवी वर्मा, नागार्जुन की तो कलम ही खो गयी। शायद! आज के कवियों ने इन्हें पढा़ नहीं होगा, समझा नहीं होगा। या पढा़ और समझा भी हैं तो आज के कवियों व लेखकों म...
मेरे कान्हा
कविता

मेरे कान्हा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ये बांसुरी है सौतन मेरी‌, लो इसको मैंने अलग किया, आलिंगन में भर लो कान्हा, मैंने तुम को समर्पण किया। नैनो को ना मिलाओ तुम, इसमें कजरे की धार नहीं, हृदय में बसा कर मैंने तुमको, है प्रेम की नई सौगात दी। मन मंदिर में बसाकर तुमको, वो राधा तेरे नाम हुई, अब तो संभालो सांवरिया, राधा प्रेम में बेहाल हुई। अधरों पर बांसुरी सा रख लो, क्यों ह्रदय में अब हलचल हुई, वादा कर लो कान्हा मुझसे, तू मेरा श्याम और मैं तेरी राधा हुई। आलिंगन में भर के मुझको अंजुली सा मेरा साथ बनो, तुम बिन राधा बिल्कुल अकेले, तुम धड़कन मेरे नाम करो। चित चोर बने हो तुम कान्हा हमको भी अपने सम भाग करो आलिंगन में लेकर हमको, मेरे अब तो घनश्याम बनो।। परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा उपनाम : साहित्यिक उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेग...
मुझे अपनी शरण में ले
कविता

मुझे अपनी शरण में ले

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** भाद्र मास तिथि को अष्टमी लिया नर अवतार! अर्धरात्रि आलोकित हो उठा कारागार!! खुलीं बेड़ियाँ मात-पितु की सो गए प्रहरी! खुल गए सब बंद द्वार, हुआ विचित्र चमत्कार!! चले वसुदेव गोकुल को, थमा जमुना ज्वार!! जन्मदाता देवकी वसु, नंद-यशु पालनहार! बाललीला लख अतुल, नंद यशु बलि बलि जाएँ!! पाएँ स्वर्ग सुख: गृहांगण संग गोकुल गुंजार!! प्राण खींच पूतना के किया पवित्र अमियधार!! किया वकासुर वध संग बच्चन के मार हुलार! क्रीड़ा कर कालिया दह किया यमुना उद्धार!! गिरि को उंगली पर उठा मर्दित इंद्र अहंकार! निर्भय किया जन को गिरि प्रकृति महत्व साकार!! चरवाहा बन गउओं के बने पालनहार! बांस की बंसी के सुलभ मन रंजन सृजनहार!! गौ गोपी ग्वाल डूबे प्रेम: सुन वंशी स्वर! गोपी राधा संग रास कर प्रेम भक्ति संचार !! दधि माखन रोक मथुरा हित, विरोध आचार! कर से पूर्व दें बालकों को पौष्...
व्यवहारिक कुशलता
कविता

व्यवहारिक कुशलता

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बड़ी बहुत जिंदगी बड़ा बहुत संसार, जिंदगी बेकार बने, सीखा न व्यवहार, व्यवहार कुशल होना, होती बड़ी बात, इससे जीवन मोल है, जन्मभर दे साथ। दो प्रकार के लोग, मिलते इस संसार, बुद्धिमान को लोग, करे जमकर प्यार, एक तो वो ज्ञानी, कहलाते जगत में, दूजे जो है पागल, मिलते कई हजार। पागल उनको जानिये, न जाने व्यवहार, मार पीटकर दम ले, नहीं माने वो हार, बुद्धिमान वो कहलाते, कुशल व्यवहार, हर काम को पूरा करे, जन से हो प्यार। व्यवहार कुशल जो, इस जहान में हो, व्यवहारिक कुशलता का जिनको ज्ञान, ऐसे जन सदा सफल हो हर जगह पर, अच्छे बुरे की मिलती उसको पहचान। भूख मरेगा वो जग, कुशल न व्यवहार, पैसे लेकर लौटाये ना, करता ऐसे कार, एक बार तो दे देंगे, धन, वस्तु व्यापार, भूले से फिर ना मिले, लोगों का प्यार। गरीब वहीं कहलाते, जाने ना व्यापार, या फिर उनका, कुशल नही...
इक अफसाने को याद कर
कविता

इक अफसाने को याद कर

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** मेरी आज इक अफसाने को याद कर रात गुज़रेगी सनम जो कल मुझसे मिले थे उनकी याद कर रात गुजरेगी सनम दो पल ठहरे थे कि उनसे मुलाकात हुई थी हमसे बस लब्जो के बाण जो चले आज वो याद कर रात गुजरेगी सनम उन लम्हों में मुझे अपनापन सा मिला था जीवन का मुहोब्बत हो चली है मुझे वो बातें याद कर रात गुजरेगी सनम मेरे हर गम, जख्म, दर्द को तथा जज्बातों को समझा था उन्होंने मेरी आँखों से जो खुशी छलकी थी वो याद कर रात गुजरेगी समन जिन्दगी का वो हसीन महीना, दिन, तरीख आज ही तो है क्योंकि उन्होंने मेरा आज ही हाथ थामा है वक्त याद कर रात गगुजरेगी सनम कभी भी मुझ संग तुम दगा, दिल्लगी ना करना और बेवफाई क्योंकि आज तुम्हारी वो हर कसमें याद कर रात गुजरेगी सनम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
हृदयतंत्र से
कविता

हृदयतंत्र से

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** तेरे इस भवसागर में, खेले तूने कितने कितने खेल। मेरी नन्ही डूबती नैया, जब टकराती थी पर्वत शैल। जल तरंग से मेरी नैया, डगमग जब हिलौरे खाती। सन्नाटे में कभी-कभी, मैं बेचैनी से घबराती। कभी भँवर में घिर जाती, कभी लहरों से वो टकराती। तेरे होते बेफ़िक्री से, कैसी थी मैं इतराती। जब अचानक उमड़ घुमड़ कर, घनघोर घटाएँ छा जाती। नज़र घुमाकर देखूँ तो, तब कहीं नहीं तुझको पाती। तेरी उस अदृश्य छवि में, महफ़ूज कहीं मैं हो जाती। फिर चैन की सांसे लेकर , तुझको अपने मन में पाती। अब तू ही बता हे! प्रभु, कब तक ये जंजाल चलेगा। तेरे इस भवसागर में, मेरा कब प्रारब्ध कटेगा। तेरे अंतर में "मैं" पूरी हूँ, मेरे अंतर में "तेरा" कण। दया बस अब इतनी करना, रहे स्मरण तेरा हर क्षण। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में क...
आजादी का जश्न
कविता

आजादी का जश्न

मिर्जा आबिद बेग मन्दसौर मध्यप्रदेश ******************** चाहे चीन हो या पाकिस्तान हमसे भीडा तो बना देंगे कब्रस्तान.. आजादी का जश्न आज हम मना रहे, आपसी प्रेम, प्यार, सद्भाव बना रहे, बर्दाश्त न करेगे अब हम अपमान.. हम चाहते हैं बना रहे यह सम्मान .. चाहे चीन हो या पाकिस्तान.. तुम्हारे आंतक और भय से डरते नहीं है हम, आंख अगर दोनों ने दिखाई तो ले लेगे दम, चाहे चीन हो या पाकिस्तान.. किसी से कम नहीं है हमारा हिन्दूस्तान.. हरा, सफेद, केसरिया तिरंगा है हमारा, जो हम सबको जान है प्यारा, तिरंगा हम सब की है जान... चाहे चीन हो या पाकिस्तान.. तुम न दो एक दूसरे को सहारा, और समझलो हमारा ईशारा, तुम दोनों से लडने का हमें है अभिमान.. चाहे चीन हो या पाकिस्तान,, आजादी के लिए हम लडे थे और लडेगे आबिद चाहे चली जाए हमारी जान.. चाहे चीन हो या पाकिस्तान. परिचय :- ११ मई १९६५ को मंदसौर में जन्मे मि...
राष्ट्र का स्वाभिमान तिरंगा
कविता

राष्ट्र का स्वाभिमान तिरंगा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** जो तिरंगा लहराया स्वतंत्रता दिवस को.... बड़े ही मान से और कितनी शान से! देश के हर्षित नीलाभ आसमान में!! बच्चों की नन्ही-नन्ही हथेलियों में... मारे गर्व और खुशी के इठला रहा था!!! बड़ी ही शान और गर्वित अभिमान से! सबके सीने पर जो नूर सा टँका था! हाथों में सुंदर सा रिबन बन बँधा था!! दमकती सी टोपी बन सिर पर चढ़ा था! अभिनव वंदनवार बन चहुँओर सजा था!! और तो और, देखो कैसे करता था... तरुणियों के कपोलों का दीर्घ चुंबन!! और माथे पर भी बिंदिया सा लगा था!! बीता दिवस उछाह का, निबहे सब रीत!! सुखद सपनों में खोई बीत गई रात! सच का रंग ले सामने आया प्रभात : सड़कों पर देखो इधर-उधर चहुँओर... हा! धूल धूसरित वतन की आबरु है!! चारों तरफ बिखरे हुए नन्हे तिरंगे!! पैरों से रौंदे और कुचलाए हुए! गिरे-पडे़- फँसे-अटके औ कहीं टँगे!! बंदनवारों में फटे-चिटे-रोते तिरंगे! झ...