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कविता

जीवन का खेल
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जीवन का खेल

रुमा राजपूत पटियाला पंजाब ******************** कुछ खोना है, कुछ पाना है। जीवन का खेल, पुराना है। जब तक सांस, चलेगी हम में, हम को चलते, ही जाना है। यह झूठ का, ज़माना है। यहां सच्च को, दबाया जाता है। जब तक सच्च, बोले तो हम को, मार ही खाना है। कुछ खोना है, कुछ पाना है। जीवन का खेल, पुराना है। यह मुकाबला का, ज़माना है। यहां हारना और, जीतना है। जब तक सांस, चलेगी हम को, संघर्ष करते रहना है। कुछ खोना है, कुछ पाना है। जीवन का खेल, पुराना है। यहां कुछ ऐसे, प्राणी मिलते हैं। जो प्रेम भाव, से रहते हैं। जब तक प्रेम, भाव रहेगा। नफ़रत खत्म, होते जाना है। कुछ खोना है, कुछ पाना है। जीवन का खेल, पुराना है। जब तक सांस, चलेगी हम में, हम को चलते, ही जाना है। परिचय :- रुमा राजपूत निवासी : पटियाला पंजाब घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बेटियाँ आती है
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बेटियाँ आती है

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बेटियाँ आती है पीहर इसी बहाने कोई इसे चाहे माने या ना माने जो खो गया बचपन उसे तलाशने जो छूट गया रिश्ता उसे निभाने स्नेह का बन्धन फिर से बांधने बेटियाँ आती है पीहर... देहरी पर फिर से दीपक जलाने रंगोली और अल्पना से आगंन सजाने वो रस्म और रिवाज निभाने बेटियाँ आती है पीहर... फिर से घर आगंन को महकाने भर-भरकर झोली ममता लुटाने फिर अल्हड़ सी वो राग सुनाने बेटियाँ आती है पीहर... माँ की गोद का सिरहाना बनाने पिता से अनदेखा प्यार जताने नोक झोंक में भाई से हार मनवाने बेटियाँ आती है पीहर... सखियों के संग फिर से बतियाने कुछ उनका सुनकर कुछ अपना सुनाने हो जाए मन हल्का इसी बहाने बेटियाँ आती है पीहर इसी बहाने कोई इसे चाहे माने या ना माने परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ...
विरह वेदना
कविता

विरह वेदना

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में सर्वश्रेठ रही कविता) दीप-बाती बन, जल रही मैं, तकती सूनी भीतो को, प्रीत-दीप, रौशन कर बैठी, तकती बरबस राहों को... विरह-अग्न में, तप रही, हुक उठती, हिय-विकल हैं, निर्झर-नैना, तोड़े बंध सारे, श्वासों का, आवेग प्रबल हैं... अस्त-बिंदु हैं, व्यस्त-वसन हैं, सुधि रही ना, तन मन की, उलझी अलकें, स्थिर पलकें, ताक रही,छवि साजन की... कैसे कह दु ? क्या तुम मेरे हो, बानी को मैं, तरस रही, तपता तन हैं, भीगा मन है, बिन सावन मैं, बरस रही... अरमानों की, सेज सजाएं, भूलि-बिसरी, महकाए रही, कंपित अधरों से, गीत मिलन के, होले से, बुदबुदाए रही... हर आहट पर, आस जगे हैं, तरसु भुज वलय, समाने को सुरभित-मुकलित, यौवनं चाहें, रंग "निर्मल" घुल जाने को... पल पल, हर पल,...
प्रियतम! अब तो आ जाओ
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प्रियतम! अब तो आ जाओ

श्रीमती विजया गुप्ता मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में तृतीय विजेता रही कविता) विरह व्यथा उग्र हुई मनोभूमि व्यग्र हुई छा जाओ मेघ बनकर प्रियतम!अब तो आ जाओ! दग्ध करता बहुत मनसिज खिलना चाहे नेह सरसिज प्रबल हुई पीर तन की बन जलधार बरस जाओ प्रियतम!अब तुम आ जाओ! स्मृति के मेघ घुमड़ते अश्रु बन फिर उमड़ते पंथ तकते ये नयन थके यह मिलन अमर कर जाओ प्रियतम! अब तुम आ जाओ ! राह निहारूं मैं पिय की किससे बात करूं हिय की आकुल मन अति घबराए हृदय कमल खिला जाओ प्रियतम! अब तो आ जाओ ! परिचय :- विवेक श्रीमती विजया गुप्ता जन्म दिनांक : २३/१०/४६ निवासी : मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
का, सजना अब तुम बिन सावन
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का, सजना अब तुम बिन सावन

सतीशचंद्र श्रीवास्तव भानपुरा- भोपाल (म.प्र.) ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में द्वितीय विजेता रही कविता) का, सजना अब तुम बिन सावन मन तड़पत, तरसत हैं अँखियाँ, नहिं भातीं अब मुझको सखियाँ पलक बिछीं हैं राहन... का सजना अब तुम बिन सावन! हूक उठे जियरा में रतिया अधरा फरकें करन को बतिया दादुर. लागे राग सुनावे, मेघा बरसे आँगन... का, सजना अब तुम बिन सावन नाचे मोर, पपीहा बोले, पर आपन मनवा न डोले तुम्हरी बाट में ऐसी खोयी झींगुर लागे मोह रिगावन... का, सजना अब तुम बिन सावन! चारों तरफ हरियाली फैली, सूखे की हालत हो गयी मैली मन का माझी राह निहारे कब आओगे तुम घर साजन... का, सजना अब तुम बिन सावन! परिचय :- सतीशचंद्र श्रीवास्तव निवासी : भानपुरा- भोपाल म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
विरह वेदना
कविता

विरह वेदना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में प्रथम विजेता रही कविता) गाल हथेली पर रख के मैं तनहा सी बैठी रहती, उस पर भी खामोशी जाने क्यों मुझसे रूठी रहती। याद तुम्हारी तो तन मन में कस्तूरी सी बसती है, तुम तो होते पास नहीं हर रात विरह की डसती है। धीर रखती हूँ बहुत पर नीर पलकों से छलकते, दर्द कातर हो उजागर कांपने लगते फलक से। जब मिलन के गीत कोई झुरमुटों के पार गाता, पीर के अतिरेक में फिर आह निकलती हलक से। अब नहीं अभ्यर्थना में मेघ बनकर दूत आते, गर्जना घनघोर करते और रह रह कर डराते। चांद की भी क्या कहूं ऐसे तिल तिल कर जलाये, ज्यों सुहानी रात हो फिर भी कुमुदिनी खिल न पाये। अब किसी टहनी के दिल से फूल मैं ना तोड़ सकती, वेदना क्या है विरह की अब बिछुड़ कर मैं समझती। अपने साजन के बिना सचमुच मुझे कु...
पाखंड
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पाखंड

डॉ. उपासना दीक्षित गाजियाबाद उ.प्र. ******************** सदियों से अपरिभाषित न कोई आकार न कोई प्रकार बेढंगे साँचों में पोषित और साकार अव्यक्त चीत्कारों में चहकता पाखंड कलुषता की भट्टी में दहकता पाखंड। व्यक्ति अनेकों खड़े चेहरों पर परत चढ़े कुटिल मुस्कानों की चमक लिए आगे बढ़े सादगी के चोले में छिपा हुआ पाखंड बात की सहजता का दंभ भरता पाखंड। काया की उन्मुक्तता भावों की गम्भीरता पाप का संसार और घृणित घोर कामना बहुरंगी माया का जाल बना पाखंड। जिधर देखो, उधर दिखे प्रेम का पाखंड सत्य का पाखंड संस्कारी पाखंड व्यभिचारी पाखंड ममता का पाखंड गुरूता का पाखंड आदर का पाखंड लज्जा का पाखंड मित्रता का पाखंड शब्दों की कमी भले पर बहुआयामी पाखंड कलियुगी माया में और चिरन्तन काया में फलता-फूलता और बढ़ता बहुमुखी पाखंड। परिचय :- डॉ. उपासना दीक्षित जन्म - ३० दिसंबर १९७८ पिता - स्व. ब्रजनन्दन लाल मिश्रा मात...
सख्त पत्थर
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सख्त पत्थर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सख्त पत्थर को गला पानी बनाकर दम लिया। जब हठीले बनगए महफिल सजाकर दम लिया।। हारते कैसे बताओ जंग नाहक से ठनी। जान दे दी हमने अपनी सिर कटाकर दम लिया।। जिद यही थी के सरापा तम हमें भी घेर ले। किन्तु हमने डूबता सूरज उगाकर दम लिया।। लब रहे प्यासे भले मैदान में टूटे न हम। प्यास को भी तो वहां दासी बनाकर दम लिया।। लाख आए जलजले तूफान लेकिन क्या हुआ। हकपरस्तों ने शमा हक की जलाकर दम लिया।। फूलती फलती भला कैसे यजीदी भावना। लुट गया इब्नेअली लेकिन मिटाकर दम लिया।। ताकयामत हक न हारेगा भरोसा रखा "अनन्त"। हकसदा कायमरहा सिक्का चलाकर दम लिया।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...
मेरा कल्पवृक्ष
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मेरा कल्पवृक्ष

राशिका शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** भैय्या मेरा कल्पवृक्ष है छाया उसकी उदार मेरे लिए वही है मेरा सारा संसार जब कभी मुश्किल में पड़ती हूँ उसकी दिखाई रहो पर चलती हूँ भैय्या मेरा सर्वश्रेष्ठ है बाकी पराया देश है गंगा मां सा पुजनीय है वह बड़ा अनमोल है सत्य और न्याय प्रिय उसके मिठे बोल है बस आरजु यही है मेरी ख्वाहिश हर एक हो जाए तेरी पूरी परिचय :- राशिका शर्मा पिता : सुदामा शर्मा माता : मंजुला शर्मा निवासी : इंदौर म.प्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) क...
मजदूर की व्यथा
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मजदूर की व्यथा

शिवांकित तिवारी "शिवा" सतना मध्य प्रदेश ******************** पैदल चलकर नाप रहे ख़ुद सड़कों की लंबाई, भूखें प्यासे बच्चों के संग मज़बूरी में भाई, नंगे सूजे पैर जल रहे, बिना रुके दिन रात चल रहे, भूख की खातिर छोड़ा था घर, गांव छोड़ आये थे वो शहर, भूख के कारण अब उनकी है पेट से स्वयं लड़ाई, रक्तरंजित सड़के और पटरियां, चल रहें पैदल ही लेकर गठरियां, पटरियों पर है पड़ी रह गई भूख, रोटियां भी गई पटरियों पर सूख, पैदल चलते - चलते उनके पांव में फटी बिवाई, खून के आंसू रोते चलते, बच्चों को कंधों पर टांगे, सड़को को आंसू से धोते, घर को निकले सभी अभागे, घर पर बैठा आस लगाये बूढ़ा बाबा बूढ़ी माई, क्या करते शहरों में रहकर, चूल्हा कैसे उनका जलता, नहीं कोई रोजगार बचा जब, फिर पेट सभी का कैसे पलता, कोई भी सरकार नहीं कर पाई जख़्मों की भरपाई, नहीं कोई सरकार सहायक, सिस्टम से सबके सब हारे, बिखर गये सबके सपने अब, भ...
बंद पिंजरा
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बंद पिंजरा

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** मन दुखी हैं और तन्हाईयों में हूं कैद क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता नित खुले आसमान में विचरण हैं मेरा काम क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता वृक्षों और पेड़ों पर हैं मेरा प्यारा सा धाम क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता सांझ-सवेरे मधुर चहकता मेरा गान क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता चुन-चुन कर तिनकों से भी नीड़ न बनाने से दुखी हूं क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता मुझे इस "पिंजरे में से आजाद" कर दो क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता परिचय :- राजेश चौहान (शिक्षक) निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
बुढ़ापा
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बुढ़ापा

संजय जैन मुंबई ******************** न जीत हूँ न मरता हूँ न ही कोई काम का हूँ। बोझ बन कर उनके घर में पड़ा रहता हूँ। हर आते जाते पर नजर थोड़ी रखता हूँ। पर कह नही सकता कुछ भी घरवालो को। और अपनी बेबसी पर खुद ही हंसता रहता हूँ।। बहुत जुल्म ढया है हमने लगता उनकी नजरो में। सब कुछ अपना लूटकर बनाया उच्चाधिकारी हमने। तभी तो भाग रही दुनियाँ उनके आगे पीछे। और हम हो गये उनको एक बेगानो की तरह। गुनाह यही हमारा है की उनकी खातिर छोड़े रिश्तेनाते। इसलिए अब अपनी बेबसी पर खुद ही हंस रहा हूँ।। खुदको सीमित कर लिया था अपने बच्चों की खातिर। और तोड़ दिया थे रिश्तेनाते सब अपनो से। पर किया था जिनकी खातिर वो ही छोड़ दिये हमको। पड़ा हुआ हूँ उनकी घर में एक अंजान की तरह से। और भोग रहा हूँ अब अपनी करनी के फलों को। तभी तो खुद हंस रहा हूँ अपनी बेबसी पर लोगो।। न जीत हूँ न मरता हूँ न ही कोई काम का हूँ। बोझ बन कर उनके घर में प...
फौजी का दर्द
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फौजी का दर्द

संजय सिंह मीणा करौली (राजस्थान) ********************                  (गोली लगने के बाद) गोली लगते ही वीरा को माता की याद सताई है बीवी का प्यार भी याद आया बच्चे की हंसी खुदाई है भाई की यादों में भाई जब अश्क बहाने लगता है बहना प्यारी सी चिडिया है ये सोच सोच के रोता है। उड गया पंक्षी लुट गया मेला कुछ देर सांस बस अटकी है अपशकुन हो गया बीवी को जब फूटी कोरी मटकी है माता की आंखों का तारा पलभर में छलनी कर डाला बापू का पत्थर जैसा दिल भी आंशू रूपी भर डाला। जब खबर गांव मे पहुंची है वीरा ने देह त्यागी है माता बहना बेहोश गिरी बवी भी बाहर भागी है कहाँ गया छोड के ओ साथी तूने धोका मुझसे कर डाला जीना मरना था साथ अकेले केसे छोड चला जारा। बापू की छाती फ़टी निकल गई गंगा रूपी जलधारा बहना चिल्लाई ओ भैया अब तुने ये क्या कर डाला माता जी पागल हुई पडी बेटा बेटा चिल्लाती है छोटी सी अनजानी बच्ची पापा-पापा बिलखाती ...
देश मेरा प्यारा
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देश मेरा प्यारा

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** देश मेरा प्यारा, दुनिया से न्यारा धरती पे जैसे स्वर्ग उतारा।। ऊँचे पहाड़ों में फूलों की घाटी। प्यारे पठारों में खनिजों की बाटी।। हरे-भरे खेतों में सरगम बजाएँ। नदियों के पानी में चाहूँ मैं तरना।। मन ये गगन में उड़े रे। ऐसे ये जी से जुड़े रे।। दूर मेरा देश ये गाँवों में बसता। मुझको पुकारे है हर एक रस्ता।। पैठा पवन मेरे पाँव में। आना जी तू भी मेरे गाँव में।। देश मेरा प्यारा, दुनिया से न्यारा।। परिचय : कार्तिक शर्मा पिता : शुक्राचार्य शर्मा शिक्षा : बी.एड, एम.ए. निवासी : मुरडावा पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक म...
में इतिहास हूं
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में इतिहास हूं

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। मैने शूरवीरों के रक्त से, सिचा है इस इतिहास को। में अफवाहों का पुंज नहीं, सत्य घटनाओं का कुंज हूं। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। में उन पड़ावों ओर कोरवो की गाथा का बखान करता हूं। में उन यशोदा के लाल की गीता का बखान करता हूं। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। मैने महान शासक चंद्रगुप्त मौर्य को, राज सिहासन पर बैठते हुए देखा है। मैने सिकंदर को, शुरवीरो की धरती से, वापस लौटते हुए देखा है। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, मे इतिहास हूं। मैने मेवाड़ के शेर से, अकबर को धूल चाटते हुए देखा है। मैने रानी पद्मिनी की चतुराई से, अलाउद्दीन खिलजी की मूर्खता को देखा है। मुझे ऐसे ही नहीं किया जाता, में इतिहास हूं। आजाद की गोली से, गौरो को डरते हुए देखा है। मैने गांधीजी की लाठी...
परिंदे
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परिंदे

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** उड़ने दो मासूम परिंदो को खुले आसमां में फैलाने दो अपने पंख इन्हें विशाल गगन में इनके कर्म से है बुलंदी इस जहान की ईश्वर भी सिर झुकाए इनके दर पर फड़फड़ाने दो इनके पंख स्वछंद हवाओं में छू लेने दो आकाश की बुलंदियों को इन्हीं से है रोशन हर घर का अंधेरा मत तोड़ो इनकी ऊंचाइयों की डोर मत मसलों इन्हें, मत दफन करो, सुरों के सारे संगीत बसते हैं इनकी चहचहाट में शून्य रह जाएगा ये जहान इनके बगैर क्योंकि,ये "बेटियां" हैं, जिनसे है रोशन जहां सारा। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उ.प्र.) विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों ...
गजानन सुनलो हमारी पुकार
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गजानन सुनलो हमारी पुकार

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** गजानन सुनलो हमारी पुकार। गजानन लाओ खुशियां अपार।। विघ्नों के हर्ता हो कष्टों के हर्ता हो मंगलदायक तुम सुखों के कर्ता हो भर दो समृद्धि का भंडार गजानन लाओ खुशियांँ अपार।। कोई काम शुरू हम करते पहले नाम तुम्हारा ही लेते हर संकट करे निवार। गजानन लाओ खुशियाँ अपार।। अज्ञान का छाया है अंधेरा कर सकते हो तुम्ही उजेरा ज्ञान की रोशनी अपार गजानन लाओ खुशियाँ अपार।। विपदाओं का लगा है डेरा कोरोना का है रूप घनेरा। कृपा की कर दो बौछार। गजानन लाओ.खुशियां अपार। कोरोना को तुम दूर भगाओ कष्टों से तुम मुक्ति दिलाओ करो मानवता का उद्धार गजानन लाओ खुशियां अपार गजानन सुन लो हमारी पुकार।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र....
राणा का शौर्य
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राणा का शौर्य

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** अकबर हुआ दुलारों में। हैं राणा खड़े क़तारों में। हम पढ़ते हैं बाज़ारों में। कुछ बिके हुए अख़बारों में। ये जाहिल हमें सिखाते हैं। शक्ति का भान कराते हैं। अकबर महान बताते हैं। राणा का शौर्य छिपाते हैं। कुछ मातृभूमि कोहिनूर हुए। जो मेवाड़ी शमशिर हुए। वो रण में जब गम्भीर हुए। तब धरा तुष्ट बलबीर हुए। अरियों की सेना काँप गई। जब राणा शक्ति भाँप गई। भाले की ताक़त नाप गई। अरि गर्दन भी तब हाँफ गई। कुछ दो धारी तलवारों में। था चेतक उन हथियारों में। वो जलता था प्रतिकारों में। उन मेवाड़ी अधिकारों में। हाथ जोड़ यमदुत खड़ा था। दृश्य देख अभिभूत पड़ा था। मेवाड़ी बन ढाल लड़ा था। चेतक बनकर काल खड़ा था। राजपूताना शमशिरों का, जब पूरा प्रतिकार हुआ। तब तब भारत की डेहरी पर, भगवा का अधिकार हुआ। परिचय :- धीरेन्द्र पांचाल निवासी : चन्दौली, वार...
ऐ दर्द तेरा शुक्रिया
कविता

ऐ दर्द तेरा शुक्रिया

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** ना किसी को थी खबर, ना किसी को था पता। एक थी मैं और एक बस तू ही था, मेरे इस राज़ को, छुपाने का शुक्रिया। ऐ दर्द तेरा शुक्रिया, ऐ दर्द तेरा शुक्रिया......... किसीने साथ छोड़कर, साथ देकर भी तुझे दिया । मिलन का पल हो या जुदाई, दगा बस तूने ना दिया, एक तू ही तो बस था, मेरा हमसफ़र सदा। ऐ दर्द तेरा शुक्रिया, ऐ दर्द तेरा शुक्रिया........ मेरे सब्र का सबूत तू, हरदम सबसे करीब रहा। ऐ मेरे सच्चे रफ़ीक़, सबक तेरी तासीर में था, एक बस तू ही मेरा, हरपल हमदम रहा। ऐ दर्द तेरा शुक्रिया, ऐ दर्द तेरा शुक्रिया...... अश्क़ मेरे चश्म-ए-तर का, दिल की हूक में तरंग रहा। गहरी साँस की राहत पर, होठों की मुस्कान से छुपा, एक तू ही बस रहा, सच्चा हमनशी जहाँ। ऐ दर्द तेरा शुक्रिया, ऐ दर्द तेरा शुक्रिया...... वक़्त की हर मार पर, मरहम जब तूने रखा। जिंदा होने का यकीन मेरे, यक...
माता सीता सी कोई नहीं
कविता

माता सीता सी कोई नहीं

अमित प्रेमशंकर एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) ******************** राधा बनने को सब चाहे माता सीता सी कोई नहीं! सब कृष्ण के प्रेम में भटक रही संग राम के वन में कोई नही!! ये क्यों कहते हैं धोका खा गई रो-रो वक़्त गुज़ार रही सब ढुंढ़ती रही है राजभवन सीता सा वन पथ कोई नहीं।। फिर कहां मिलेगा सत्य प्रेम जो कर्तव्यों से जूझी नहीं। वो जनक सुता महलों की ज्योति वन आकर भी बूझी नहीं।। बीता दिया कांटों में जीवन फिर भी लंका की हुई नहीं।। राम हुए बस सीता के..... वो और किसी की हुई नहीं।। राधा बनने को सब चाहे माता सीता सी कोई नहीं! सब कृष्ण के प्रेम में भटक रही संग राम के वन में कोई नही!! परिचय :- अमित प्रेमशंकर निवासी : एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
माँ
कविता

माँ

काकोली बिश्वास सिमुलतला (बिहार) ******************** मन का इक कोना है सूना आखिर अब काहे को रोना चित्कार में दफन उस मासूम को किया था मैंने ही अनसुना सिसकियाँ भर जब उसने कहा था न कर मुझको खुद से दूर पत्थर सा मन ना पिघला था न बहा था नेत्र से नीर निठुर खाली गोद अब बिलख रही है मन विसादित है गम से चूर क्यूं आयी कुछ पल के खातिर और आकर अब क्यूं गयी वो दूर? जब हम थे एक ही जाति के फिर क्यूं ये क्रूरतम भेदभाव? सुलगन मन के बुझे न बुझती तन से गहरा मन का घाव तीन महीने का ही रिश्ता वो थी बड़ी निश्चल बड़ा अटूट जाने किसकी थी लगी नज़र क्षण में छन्न से गया वो टूट मन से निकली आह निकली थी पर जुबां तक सिमटकर रह सी गयी तन जख़्मों से तिलमिला उठा आंखों से लहू बह सी गयी रिश्ता था एक माँ बेटी का जो थी मेरे खुन से पली समाज की कुत्सित रूढ़ियों की चढ़ गयी मेरी नवजात शिशु बली मूढ समाज की बेहयाई का इससे बुरा और क्या प...
रात्रि में
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रात्रि में

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** निशा रात्रि में टिमटिमा रही है व्योम में तारक गण सुदूर अनन्त में। झींगुर की आवाजें गहन अंधकार को बेध रही है महाश्मशान में उठ रही है। चिता की लपटें जलती हड्डियां चटक रही है शिवा श्रृंगाल की आवाजें निशा की अपार नीरवता को भंग कर रही है। जल रही मोबतिया भी कुछ दूरियों तक महाश्मशान में जय माँ तारा की आवाजें निशा रात्रि की स्तब्धता को तोड़ रही है। तारापीठ की महाश्मसान में अमावस्या की निशा रात्रि में। साधक गण भी मग्न है अपनी साधना में कुछ क्रियाए और मंत्रोचार में। केवड़ा ,गुलाब की खुश्बू भी फैल गई है इस जाग्रत महाश्मशान में। मै भी टहल रहा हु भय मिश्रित सा माँ की चरण चिह्यो को याद कर । महान साधक वामाखेपा को प्रणाम कर। जीवन की सत्यता को तलाश रहा हु इस निशा के बीतते प्रहरो में समय के साथ अनन्त की लय में खो गया अपनी नश्वर भंगिमाओं के साथ। अनश्वर आत्म...
बारिश की आहट
कविता

बारिश की आहट

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** नभ पर काली घटा छाई, बादल गरज रहे घनघोर, देख -देख नभ की घटा, नृत्य कर रहे वन में मोर। द्युति से चमक रहा नभ, टप टप बूंदों का है शोर, दादुर जल में टेर लगाते, टिड्डे कर रहे मन विभोर। कहीं काले, कहीं नीले, कहीं लोग करे भागदौड़, कोई हँसता खिलखिला, भरेंगे अब तड़ाग,जोहड़। रेगिस्तान में उठी मतंग, मतंग ऋषि के नाम पर, बरसेंगी वो रेगिस्तान में, फिर बारिश हो घर घर। किसान हुये अब प्रसन्न, भीगा उनका तन व मन, खुशगवार होगा मौसम, सावन गया, है अगहन। बारिश की अब आहट, चकौर की बढ़ी चाहत, सूरज डूबा बादल ओट, गर्मी हटे मिलेगी राहत। चकवा चकवी मन हँसे, सीप के मुंह, बने मोती, किसानों ने ली है राहत, अब मिलेगी खूब रोटी। लहलहाएगी ये फसल, अनाज कमी मिले हल, टकटकी लगा देख रहे, ताक रहे नभ पल पल। तरुवर पर आयेगी बहार, चित चोरों की बढ़े प्यास, होगी जमकर अब बार...
होते हैं बहुत रगं सनम
कविता

होते हैं बहुत रगं सनम

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जिन्दगी में तो वक्त के होते हैं बहुत रगं सनम कभी गम के, कभी खुशियों के होते हैं बहुत रगं सनम मेरे जख्मी दिल के घाव पढ़कर तुम कभी तो देखो कभी दर्द तो आँखों में टूटे ख्वाबों के होते हैं बहुत रगं सनम कैसे-कैसे तूफां को हमने थामा है जीवन में ओ खुदा कभी-कभी अपने अरमानों के पंखों के होते हैं बहुत रगं सनम जिन्दगी को कोई खिलौना समझे कैसे हैं नादान लोग कभी रंगीन फिजा उस तबाही के होते हैं बहुत रगं सनम रात पहरों में बदलती है शमा, परवानों तुम तो कुछ समझो कभी जिन्दगी के भी हसीन लम्हों के होते हैं बहुत रगं सनम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परि...
एकता का रूप है हिंदी
कविता

एकता का रूप है हिंदी

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** वंदे मातरम की शान है हिंदी। देश की माला का स्वरूप, भारत मां का मान है हिंदी।। अन्य भाषाओं से बढ़कर है हिंदी। भारत भारतीयों के साथ, संविधान का गौरव है हिंदी।। हिंदुस्तान के नाम में है हिंदी। कड़ी से कड़ी जोड़ने वाली, देश को एक मुठ्ठी में करने वाली है हिंदी।। भारत की आत्मा, चेतना है हिंदी। एकता की नित्य परम्परा, भारत वासियों की पहचान है हिंदी।। अन्य भाषाओं पर विजय पाने वाली है हिंदी। जन-जन की विरासत भाषा, भारत मां की बेटी का रूप है हिंदी।। आदर्शों की मिसाल है हिंदी। हिंदी से ना कोई बढ़कर, वक्ताओं की शक्ति है हिंदी।। कालरूपी अंग्रेजी करती है दबाने को हिंदी। अंग्रेजी को पीछे कर बलवती, दिन-दिन बलवान हो जाती है हिंदी।। फूलों-सी खुशबू महक रही है हिंदी। साहित्य की मन, आत्मा का, जन्मों-जन्मों का साथ है हिंद ।। कवि-लेखकों का मान है ह...