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कविता

चंपा का फूल
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चंपा का फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चंपा के फूल जैसी प्रिये काया तुम्हारी मन को आकर्षित कर देती जब तुम खिल जाती हो चंपा की तरह। तुम भोरे, तितलिया के संग जब भेजती हो सुगंध का सन्देश वातावरण हो जाता है सुगंधित और मै हो जाता हूँ मंत्र मुग्ध। प्रिये जब तुम सँवारती हो चंपा के फूलो से अपना तन जुड़े में, माला में और आभूषण में तो लगता स्वर्ग से कोई अप्सरा उतरी हो धरा पर। उपवन की सुन्दरता बढती जब खिले हो चंपा के फूल लगते हो जैसे धवल वस्त्र पर लगे हो चन्दन की टीके। सोचता हूँ क्या सुंदरता इसी को कहते मै धीरे से बोल उठता हूँ प्रिये तुम चंपा का फूल हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में न...
मुद्दे उठाए जाते हैं
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मुद्दे उठाए जाते हैं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मेरे देश में, मुद्दे उठाए जाते हैं। जिंदगी के असल सच से, लोगों के ध्यान हटाए जाते हैं। घटना को, घटना होने के बाद, देकर दूसरा ही रुख। असल घटनाओं पर, पर्दे गिराए जाते हैं। मेरे देश में मुद्दे उठाए जाते हैं। जिंदगी किन, हालातों में बसर करती है। पंचवर्षीय सरकारों में, अमीर- गरीब के मापदंडों में, मध्यवर्ग को, बस वायदे ही थमाए जाते हैं। मेरे देश में, मुद्दे उठाए जाते हैं। जागे.....असल पहचानिए। जो कानों को, सुनाया जाता है। आंखों को दिखाया जाता है। दो रोटी कमाने के लिए, हम और आप कितनी लड़ाई लड़ते हैं। हमें मुद्दों में, कितना बहलाया जा रहा है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...
खुशियों का पैगाम
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खुशियों का पैगाम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** किसी की याद जब हद से गुजर जाए तो कोई क्या करें.... कोई दूर रहकर भी बहुत याद आये तो कोई क्या करे.... न मिलना हो मुमकिन, न भूलना हो मंजूर.... कोई फितूर बनकर छा जाए तो कोई क्या करे ये खुदा!!!!! अब तो मदद कर या तो मिला दे उसको या फिर ज़ेहन से ही मिटा दे क्योंकि होश के बादल जब छाए तो कोई क्या करे अब जीना भी हुआ मुश्किल और मौत भी आती नहीं ऐसे में बेहोशी अगर छा जाए तो कोई क्या करे ये खुदा!!!!! अब तू ही राह दिखा वरना हर तरफ जब अंधेरा ही दिखाई दे तो कोई क्या करे अब तो हर तरफ बिखेर दे उम्मीदों की लड़ियाँ.... क्योकि मायूसी अगर छा जाए तो कोई क्या करें।। अब बस बहुत हुआ.... अब तो बस कोई खुशियों का पैगाम ही आये, दिल ये दुआ करे परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस...
विश्वास
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विश्वास

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विश्वास की टूट गई है रीढ़! अपनापन नहीं रह गया अब दृढ़!! सदाशयता को हुआ पक्षाघात! अविश्वास देत है नित आघात!! संबंधों की खो गई ऊष्मा! भावनाओं की पूँजी ना जमा!! चहुंँ दिशि हुआ घनीभूत स्वार्थ! निरंतर छीजन ग्रसित परमार्थ!! संस्कारों की डोर पड़ी झीनी! उद्दंडता ने सब लज्जा छीनी!! आंँधी चली है पाश्चात्य की! जड़ें उखड़ी हैं पौर्वात्य की!! आत्मीयता को ग्रस रहा राहू! अपनों को तृषित हो रहे बाहू!! विश्वास का हुआ चतुर्दिक अभाव! घृणा वैमनस्य का बढ़ा प्रभाव!! निष्ठा त कहीं पड़ी हैं मृतप्राय! विश्वास की पूंँजी गलती जाय!! नेह, विश्वास, त्याग, करुणा तज! युग वरे अहं, स्वार्थ, घृणा अज!! विद्वेष का आँचल बढ़ता जाए! सौहार्द्र न अब मन को लुभाए!! संवेदनाओं की गागर रीती! भावुक मन पर, पूछो क्या बीती!! प्रभु! ऐसी कोई हवा चल जाय... युग की नस में ही नेह ढल जाय...
सूक्ष्म पुरुस्कार
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सूक्ष्म पुरुस्कार

गौरव हिन्दुस्तानी बरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** युगों-युगों से अडिग खड़े हो, भयंकर आँधियों में, भीषण तूफ़ानों में, बारिशों में, विनाशकारी ओलावृष्टियों में, और तनिक भी न हिले हलाचला आने के बाद भी नहीं, प्रतिवर्ष, प्रतिदिन प्रतिपल देते रहे तुम, शीतल छाया, प्राणदायिनी वायु सभी को, और देते रहे अनुमति पक्षियों को, घोसले बनाने की अपनी विशाल शाखाओं पर बाँधें रहे मिट्टी के एक-एक कण को, अपनी जड़ों से, ऐसी श्रेष्ठतम, सर्वोत्तम, निस्वार्थ सेवा पर, हे बरगद के प्राचीन विशाल वृक्ष मैं अलंकृत करता हूँ तुम्हें पद्मश्री, पद्मविभूषण तथा भारत रत्न जैसे सूक्ष्म पुरुस्कारों से। परिचय :- गौरव हिन्दुस्तानी निवासी : बरेली उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
आशिक तू हमें
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आशिक तू हमें

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** आशिक तू हमें, दिलको कू-ए-यार बना दे। या रब तू अपने, इश्क का बीमार बना दे।। ये सिर तेरे आगे ही झुके मालिके जहां। तेरे ही आगे हाथ उठे मालिके जहां।। दिल तेरी हम्दे पाक पढ़े मालिके जहां। पग राहे हक में ही ये बढ़े मालिक जहां।। यूँ हक की सल्तनत का पैरोकार बना दे। या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।। इंसाफ पर चलने की हमें राह बता दे। मिलने की तमन्नाओं को तू अपना पतादे।। तेरे हैं इस जहान को मौला तू जता दे। खाते में फरिश्तों से कह के नाम खता दे।। नबीयों का रसूलों का वफादार बना दे। या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।। माले हराम पेट में जाने नहीं पाए। छल दिल में कभी पैर जमाने नहीं पाए।। नफरत जेहन में भूल के आने नहीं आने नहीं पाए। गुस्सा कभी भी सिर को उठाने नहीं पाए।। यूँ जिंदगी में सब्र को साकार बना दे। या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।। जो क...
शिक्षक दिवस
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शिक्षक दिवस

डॉ. उपासना दीक्षित गाजियाबाद उ.प्र. ******************** शिक्षा का कर्णधार, क्यों इतना लाचार, कलम की अस्मिता का, मूल्य हुआ निराधार, कलम के सिपाही, पर बेड़ियाँ हजार, असमानता की खाई में, गिर कर हुआ बेकार। आरक्षण की वैसाखी, और व्यक्तिगत संस्थाएँ, शिक्षक की गरिमा को, खूंँटी पर लटकाते, घिसो कलम और घिसो, रक्त बूँद शेष तन में, और घिसो और घिसो, मुँह न खोलो, होंठ सिलो, कम वेतन, कार्य करो, शिक्षा का सूत्रधार, रो रहा लगातार, कलम की अस्मिता का, मूल्य हुआ निराधार। विश्व गुरु का मन अस्वस्थ, पर पुस्तक पर दृष्टि पैनी, रोटी की आपाधापी, बातें 'प्रमुख 'की सहनी, राजनीतिक पदों पर, अनपढ़ों की भरमार, राष्ट्र का निर्माता बना, वित्तहीन बेरोजगार, सत्ता के मदान्धों ने किया, शिक्षा का बंटाधार, बंदरों की मंडली में कैसे, हो शिक्षक दिवस साकार। परिचय :- डॉ. उपासना दीक्षित जन्म - ३० दिसंबर १९७८ पिता - स्व. ब्रजन...
हिन्दी हमको भाती है
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हिन्दी हमको भाती है

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** हिन्दी हमको भाती है, सबको खूब सिखाती है, चुन्नी-मुन्नी तुम भी पढ़ लो, दीदी आज बताती है। जन-जन की भाषा हिन्दी, कहता रंभाकर नन्दी, कोयल बागों में बोले, सुन्दर लगती है बिन्दी। संस्कृत भाषा की बेटी, नेह बाँहों में समेटी, यही बनाती है ज्ञानी, समृद्धि देती भर पेटी। परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ...
बेरोजगार
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बेरोजगार

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** देश विदेश में शिक्षा की, ना बन पाया कुछ काम। युवाओं का हाल हुआ बेहाल, एक के साथ एक हो रहे बेरोजगार...... बेरोजगार की है अनेक परिभाषा, पर ना कर पाया कोई उसे परिभाषित। एक काम पर अनेक करते काम, कभी प्रच्छन्न तो कभी घर्षित हो जाते बेरोजगार...... मशीनीकरण की क्रांति एसी आई, हजारों का कार्य मशीनों ने लिया। हस्तशिल्प उद्योग पर है बढ़ावा, पर आगे चलकर ना आता कोई बेरोजगार...... परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ...
इक अफसाने को याद कर
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इक अफसाने को याद कर

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** मेरी आज इक अफसाने को याद कर रात गुज़रेगी सनम जो कल मुझसे मिले थे उनकी याद कर रात गुजरेगी सनम दो पल ठहरे थे कि उनसे मुलाकात हुई थी हमसे बस लब्जो के बाण जो चले आज वो याद कर रात गुजरेगी सनम उन लम्हों में मुझे अपनापन सा मिला था जीवन का मुहोब्बत हो चली है मुझे वो बातें याद कर रात गुजरेगी सनम मेरे हर गम, जख्म, दर्द को तथा जज्बातों को समझा था उन्होंने मेरी आँखों से जो खुशी छलकी थी वो याद कर रात गुजरेगी समन जिन्दगी का वो हसीन महीना, दिन, तरीख आज ही तो है क्योंकि उन्होंने मेरा आज ही हाथ थामा है वक्त याद कर रात गगुजरेगी सनम कभी भी मुझ संग तुम दगा, दिल्लगी ना करना और बेवफाई क्योंकि आज तुम्हारी वो हर कसमें याद कर रात गुजरेगी सनम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार स...
करे योग रहे निरोग
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करे योग रहे निरोग

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** वो मेरे देश के बच्चे, बुढ़ो, महिलाओं और नौजवानों, राम देव बाबा के योग्य विद्या को तुम जरा पहचानो। राम देव बाबा हर भारतीय को रहे समझाय, जो जन नित्य सुबह योग करे भाय । उसके निकट जल्दी कोई रोग नहीं आय, रामदेव बाबा रोज योग कर रहे और रहे कराय। योग गुरु बाबा रामदेव रहे सबको समझाय, विश्व योग दिवस सम्पूर्ण विश्व हर वर्ष रहा मनाय। रोगों को अपने शरीर से वही रहा भगाय, जो जन नित्य योग सुबह-सुबह करे भाय। उसके शरीर से रोग हो जाय टाटा बाय बाय, उदर, हृदय और मधुमेह रोग उनके निकट कभी न जाय। जो जन नित्य सुबह-सुबह योग करन जाय, जो नित्य सुबह-सुबह करे नियमित योग। वो सदैव रहे स्वस्थ, मस्त और रहे निरोग, जो रहे स्वस्थ, मस्त व निरोग उसका डॉक्टर से जल्दी होत नहीं योग। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र ...
शिक्षक क्या है
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शिक्षक क्या है

अंजली कुमारी सैनी चैनपुर, सीवान, (बिहार) ****************** शिक्षक हमारे गुरु होते है, जैसे बुजुर्गों ने कहाँ है, की शिक्षक एक भगवान का रुप होते है, और उनका आदेश का पालन करना, हमारा परम कर्तव्य बनता है, उन्हें भेद-भाव का कोई भावना नही होता है, एक विद्यार्थी का जीवन मे, शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है शिक्षक वैसे होते हैं, जो विद्यार्थी पर ज्यादा ध्यान रखते है, और विद्यार्थी को भी वैसा होना चाहिए, की शिक्षक के हर बातों को, ध्यान से सुनना , समझना चाहिए, एक विद्यार्थी के जीवन मे, शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जो अपने ज्ञान, धैर्य और प्यार से , देख-भाल कर उसके पूरे जीवन को, एक मजबूत आकार देते है, इस संसार मे, शिक्षक के पदों को, सबसे अच्छा और आदर्श, पदों के रुप मे, माना जाता है, क्योकिं शिक्षक किसी के, जीवन सवारने मे, निस्वार्थ-भाव से सेवा देते है! परिचय : अंजली कुमारी सैनी शिक्षा : ...
पंछी
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पंछी

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** देखकर हालात कहता, है मेरे मन का अनुभव। नींड का निर्माण होना, है असंभव। देखते हो क्या नहीं तुम, घिर उठी बदली गगन में आंकते हो क्या नहीं तुम, क्षणिक देरी है प्रलय में। बहलिये का सर सधा है, आज इस नन्हें सदन में, जीत होगी क्या हमारी, हो रही शंका हर्दय में। स्वपन का साकार होना, है असंभव, नीड़ का निर्माण होना है असंभव। मिलन के इस मृदु क्षणों में क्यों न पूछू प्रश्न नटवर, घन्य यदि जग पा सके कुछ, शव हमारा प्राण प्रणवर। सुन बहे उदगार सत्वर। मिलन का अभिसार होना है असंभव। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र...
नारी का सम्मान करो
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नारी का सम्मान करो

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को बंदिशों में जकड़ी एक भोली भाली नारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! तरह-तरह के छल दुनिया में छल से छली गई जीत भरोसा उसका,छली बेंच रहे व्यापारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! नौ दिन देवी समझें फिर जुल्मों अत्याचार करें मंदिर में प्रतिबंधित देखा है भाग्य की मारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! जिसका जो भी मन सब कहकर चलते बनते हैं जब तब कड़वे ताने सुनते पाया उस संसारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! नारी का सम्मान करो,कभी नहीं अपमान करो देख रहा भगवान अत्याचार संग अत्याचारी को! समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को नारी से है देश महान,जिससे बढ़ती देश की शान आंचल में ममता,दया,पलकें अश्कों से भारी को समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को! परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू द...
मेरे सपने
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मेरे सपने

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** अभी तो मेरे सपनों की बहुत बड़ी उड़ान बाकी है बहुत कुछ पा लिया और बहुत कुछ पाने की ख्वाहिश बाकी है... हर वक्त मन में एक हलचल सी रहती है जैसे सागर में लहरों का शोर अभी और बाकी है कभी-कभी लगे कि बहुत कुछ है जीने के लिए मेरे पास.... लेकिन कभी लगे ऐसा जैसे अभी तो अपनी पहचान बनाना बाकी है... कभी दिल कहता है कि छोड़ दे उम्मीदें लगाना लेकिन कभी लगे ऐसा जैसे अभी तो आसमान से तारे तोड़कर लाना बाकी है... शायद इसीलिए मेरे सपनों की अभी एक और उड़ान बाकी है अभी एक और उड़ान बाकी है परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
शिक्षकों से मिला हमें
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शिक्षकों से मिला हमें

संजय जैन मुंबई ******************** दिया मुझे शिक्षकों ने, हर समय बहुत ज्ञान। तभी तो पढ़ लिखकर, कुछ बन पाया हूँ। इसलिए मेरी दिल में, श्रध्दा के भाव रहते है। और शिक्षकों को मातपिता से बढ़ाकर उन्हें सम्मना देता हूँ। जो कुछ भी हूँ मैं आज, उन्ही के कारण बन सका। इसलिए उनके चरणों में, शीश अपना झुकता हूँ।। शिक्षा का जीवन में लोगों, बहुत ही महत्त्व होता है। जो इससे वंचित रहता है जीवन उनका अधूरा होता है। शिक्षा को कोई न बाट और न छिन सकता है। जीवन का ये सबसे अनमोल रत्न जो होता है। धन दौलत तो आती और जाती रहती है। पर ज्ञान हमारा संग देता जिंदगीकी अंतिम सांसों तक।। जितना तुम पूजते अपने मात पिता को। उतना ही गुरुओं को भी अपने दिल से पूजो तुम। देकर दोनों को तुम आदर, एक तराजू में तौलो तुम। दोनों ही आधार स्तंम्भ है, तुम्हारे इस जीवन के। जो हर पल हर समय, काम तुम्हारे आते है। तभी तो मातपिता और, शिक्षक दिवस...
विरह-वेदना
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विरह-वेदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आतुर विरह की स्वर बून्दो में भर प्रियतम की अधरों पर बरस। हे ऋतुओ की रानी विरह वेदना को कर सरस पावस की अगणितकण बरस-बरस। प्रिया है ब्याकुल-आतुर विरह की वेदना बून्दो में भर तू प्रियतम की सूखी अधरों पर बरस। कोयल की कुक-चातक की पिऊ-पिऊ आवाज श्रावण की मास विरह -वेदना की। असह्य आग तू कर सरस विरह की वेदना कर सरस। पावस की कण तू बरस बरस। प्रिया की भीगी कपोलो बिंदी सी बून्दो की चमक। भीगी गात-अपलक नयन विरह की वेदना में मगन। प्रिया कर रही- अपनी प्रियतम की मिलन की जतन। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौल...
अरे राम, अरे राम राम !!
कविता

अरे राम, अरे राम राम !!

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** मुसकानों के ऐसे काम ! अरे राम, अरे राम राम !! मौसम की हृष्ट-पुष्ट बांँहों की अंँगडा़ई, बूंद-बूंद यौवन में मादकता सरसाई; टेर पपीहे की अविराम! अरे राम! अरे राम राम !! नदियों के कूल- कछारों में, तटबन्धों में, गदराई पुरवा के बदराये छन्दों में व्याकुल अभिसारी आयाम ! अरे राम ! अरे राम राम !! कलियों की मदिर चाह करे नये-नये यत्न, गलियों में गूंज रहे भंँवरों के यक्षप्रश्न; प्रणय-पत्रिकाओं के नाम ! अरे राम ! अरे राम राम !! परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
समाधान…
कविता

समाधान…

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** वक्त है, यह कभी रुकता नहीं है, सच है, यह कभी झुकता नहीं है, साहस है, यह कभी टूटता नहीं है, जिगर जिनके पास है, किस्मत उनका कभी रूठता नहीं है... ईमान है, यह बिकती नहीं है, नीयत खराब, दिखती नहीं है, आशा की किरण, कभी बुझती नहीं है, इज्जत की रोटी, इससे बड़ी संतुष्टि नहीं है... फिर भी कुछ सवाल बड़े हैं, चुनौतियां सामने मुंह बाए खड़े हैं, अच्छे लोगों के साथ, अक्सर बुरा क्यों होता है, बुरे लोगों का साम्राज्य, इतना बड़ा क्यों होता है, जवाब इसका बहुत कठिन नहीं है, बदलाव अगर खुद से शुरू हो, कौन सी ऐसी समस्या है, जिसका समाधान मुमकिन नहीं है... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
गले मिल जाये
कविता

गले मिल जाये

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** उत्तुग श्रंग पर बैठ अपने परो को तोलती, उड़ चली गगन मे वह, मस्त मगन डोलती, न जाने कब तक उडे़गी, वह गगन के वक्ष पर काल कवलित बन गिरे, कब गगन से अवनि पर। कब बढे़गा हाथ उसका कब धूल मे मिल जायेगे कौन जाने कब यहाँ से, रुख्सत हम हो जायेगे आज 'मै' मै बनूँ क्यो, क्यो न हम हो जाये सब, कुछ समय की जिन्दगानी, क्यो एक न हो जाये सब, क्यो मजहब मे रमते रहे क्यो धर्म को कोसे सदा, चार दिन की जिन्दगी है सबको जाना इक जगह। यह भी मेरा वह भी मेरा और किसी को क्यो गने, सोच न हो संकीर्ण इतनी भूमि दो गज ही मिले। तू जले या दफन हो जाना तुझे उस लोक ही, अपने कर्मों का ब्योरा, देना है एक साथ ही, फिर क्यो मन मलिन रखे, क्यों ईष्र्या द्वैश रखे दिल मे, झगडे़ भी हो क्रोधित भी हो, पर गले मिल जाये एक पल मे गले मिल जाये ...... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह...
जब आता है श्राद्ध
कविता

जब आता है श्राद्ध

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जब आता है श्राद्ध, तभी दिखते है श्रद्धा भाव। जीते जी खिलाया नही, अब कहते हो खाओ। ढूंढ़न से मिलते नही, करते कौए कांव कांव। मिलते भी है एक दो, तो सुनते नही बुलाव। समझो उनके अंदर है, उन पूर्वजो का ठांव। वो देख आज पछता रहे, जो दिए आपने घाव। चाहते थे वो आपसे, केवल श्रद्धा और भाव। रखो हमेशा पास उन्हें, तुम रहो शहर या गांव। घर का मुखिया था कभी, उनका सबसे लगाव। वो घर मे दबके रहा, पड़ना था जिनका दबाव। अब तुम मेरे हिस्से का, कौओं को ना खिलाओ। खुदको समझो कौआ, और खुद बैठे बैठे खाओ। करो ना बातें बड़ी बड़ी, मत झूठा प्यार दिखाओ। जो रहते बृद्धाश्रम में, अब उनको भोज कराओ। पछतावा करने में अब, समय ना और गंवाओ। कहीं दान तो कहीं कहीं पर, हरा वृक्ष लगाओ। समय के रहते तुम करो, पितरों का रख रखाव। आशीर्वाद स्वरूप तुम्हें वो दे जाए चन्द्रमा छांव। तर्पण श्र...
शिक्षक
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शिक्षक

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** ईश्वर का प्रतिरूप हैं शिक्षक। श्रद्धा रूप अनूप है शिक्षक। संघर्ष से लड़ना सिखाते शिक्षक। राहों को सरल बनाते शिक्षक। हर अँधेरे में रोशनी दिखाते शिक्षक। कभी प्यार से, कभी डांट से हमको ज्ञान देते शिक्षक। हर पल बच्चो का भविष्य बनाते शिक्षक। जीवन के हर पथ पर सही गलत की राह दिखाते शिक्षक। जीवन जीने का पाठ पढ़ाते हैं शिक्षक। बच्चो के भाग्य बनाते है शिक्षक। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप ...
शिक्षक दिवस
कविता

शिक्षक दिवस

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** शिक्षक को याद करने का दिन, शिक्षा किसी को न मिलै शिक्षक बिन। शिक्षक का सभी करो सम्मान, बिन शिक्षक मिले नहीं ग्यान। इस बात का रखो तुम ध्यान, शिक्षक का तुम सदैव करो सम्मान। शिक्षक ढूंढन मैं चला शिक्षक मिला न कोय, जो जीवन का सही मार्ग-दर्शन करे वही सच्चा शिक्षक होय। गुरू कुम्हार शिष्य कुम्भ है गढ़ी-गढ़ी काढै खोट, अन्दर हाथ सहार दे बाहर बाजै चोट। गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपनौ गोविन्द दियो बतलाय। पांच सितम्बर अर्थात शिक्षक दिवस भैया साल एक बार ही आय, शिक्षक को सम्मान देकर शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष लेव खुशी-खुशी मनाय। वीरेन्द्र यादव जी शिक्षक दिवस पर कविता दियो बनाय, उनहु को थोड़ा-सा आपन आशीर्वाद दैईदेव बहन और भाय। आधुनिक क्लास में शिष्टाचार का लेशन जोड़ देव मास्टर जी, बच्चे जिससे आपने से बड़ो से बात...
गुरुवर के चरणों की छाँव
कविता

गुरुवर के चरणों की छाँव

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** बुद्धि, विवेक और भाषा ज्ञान की सबकुछ हमें सिखाया है, मंजिल की सीढ़ी चढ़ने का एक मुक्ति-मार्ग दिखलाया है, शिक्षा की उस वट-वृक्ष की, मजबूत शाखा और डाली है, हे गुरुवर आपके चरणों की वो छाव कितनी निराली है।। दिए हुए उस ज्ञान की दीपक, हरपल तन-मन मे जलते हैं, गुरुजनों का ज्ञान पाकर ही, इस जग में आगे बढ़ते है। कर संघर्ष जीवन मे, अपने सदा ही अच्छा करते हैं, और जो न तरे सौ तीर्थ से, वो गुरु के ज्ञान से तरते है। मानव के तन में शब्दों की शक्ति गुरु ने ही तो डाली है, हे गुरुवर आपके चरणों की वो छाव कितनी निराली है।। बिना गुरु कृपा के जग में कितने शिष्य अधूरे है, हुवे ज्ञानी सदा वही, जो गुरु आदेश से जुड़े हैं। गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु, गुरु ही रूप करुणे है, कुछ काम जीवन मे पूरे हैं, कुछ गुरु बिना ही अधूरे है, गुरू की ज्ञान सूरज की रौशनी और किर...
कोरोना काल और शिक्षक
कविता

कोरोना काल और शिक्षक

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कोरोना काल में घर में बंद होकर। सबको जिंदगी के अहम सबक याद आए।। कोरोना काल में घर में बंद होकर। सड़कों पर भटकते मजदूर, गरीब होने की सजा पा रहे थे। जिंदगी के अच्छे दिन आएंगे। यह स्लोगन भी याद आ रहे थे। कोरोना ने कर दिया..क्या हाल। टीवी देख कर आंख में, कुछ के आंसू भी आ रहे थे। विडंबना देखिए ..... हालात और शिक्षण नीतियों के मारे। शिक्षक किस हाल में है। ना किसी को प्राइवेट, और ना सरकारी शिक्षक याद आ रहे थे। जो इस महामारी में, समस्त विषमता से परे। दुनिया को कोरोना क्या शिक्षा दे रहा है। इस बात से अनभिज्ञ, ऑनलाइन पाठ पुस्तकों के चित्र घूमा रहे थे। बस ऑनलाइन सिस्टम की, कठपुतलियां बन के, बच्चों को नोट- पाठ्यक्रम पहुंचा रहे थे। जिंदगी की सच्चाई से ना खुद शिक्षित हुए। ना इसका मूल्य समझा पा रहे थे। कोरोना जिंदगी को, जिस हाशिए पर ख...