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कविता

इश्क़ करना नहीं
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इश्क़ करना नहीं

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** इश्क़ पर तुम किताबें लिखे जा रहे हो। मशवरा है मेरा इश्क़ करना नहीं। दर्द कागज पे अपने लिखे जा रहे हो। मशवरा है मेरा दर्द कहना नहीं। मुस्कुराने की उनकी अदब देखिए तो। देखकर यूँ ही खुद से फिसलना नहीं। लाख कह लें तुम्हें , तुम हो मेरे लिए। मुस्कुराकर कभी सर झुकाना नहीं। चाँद तारों की बातें वो बेशक करें। अपने अंजुली पे सूरज उठाना नहीं। हमसफ़र हैं वो बस कुछ सफर के लिए। हर सफर अपने दिल को जलाना नहीं। बह रही है हवा मौसमी चारों ओर। इन हवा में दुपट्टा उड़ाना नहीं। हैं फिसलती निगाहें जमीं पे यहाँ। पांव कीचड़ से अपने सजाना नहीं। जब भी बारिश की बूंदे भींगाए तुम्हें। रो कर आँखों का पानी छिपाना नहीं। हो मोहब्बत तनिक इस धरा से तुम्हें। कड़कड़ाती बिजलियाँ गिराना नहीं। भेजता हूँ बता क्या रजा है तेरी। चिट्ठियों का भी अब तो जमाना नहीं। तोड़ दो तुम...
उतरन
कविता

उतरन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** स्वयं में गूढ़ अर्थ समेटे हुई है उतरन इसकी उतरन उसकी उतरन, कभी पोशाकों की उतरन कभी विचारों की उतरन। कभी एक अक्स सी उतरती हुई उतरन कभी किसी और के साए में उतरती हुई उतरन सांसों की उतरन, धड़कन की उतरन बोझ से उतरी उतरन। कभी जो समझ सको उतरन की परिभाषा को मरीचिका भी है, वीथिका भी है, गुणों का भंडार है उतरन। गीता की उतरन, रामायण की उतरन, बाइबिल की उतरन, कुरान की उतरन राम से लेकर रहीम मोहम्मद की उतरन पासको यदि कहीं ये उतरन, तो समेट लेना संजो लेना क्योंकि, जिंदगी का सही सार है उतरन।। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उ.प्र.) विशेष : साहित्यि...
बताओ ना… आपको क्या लिखू
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बताओ ना… आपको क्या लिखू

हितेंद्र कुमार वैष्णव सांडिया, पाली (राजस्थान) ******************** सुबह की पहली किरण लिखू, या वर्षा की रिमझिम फुहार लिखू मनभावन सावन की झड़ी लिखू या बरसते बादल की बुँदे लिखू बताओ ना, आपको क्या लिखू चन्दन की महक लिखू, या उपवन की शीतल छाँव लिखू, चंदा की श्वेत ज्योत्सना लिखू या अंधकार में दीप संग बाती लिखू बताओ ना, आपको क्या लिखू ऋतुराज बसंत की फुलवारी लिखू या पुष्प मधुकर का गुंजन लिखू बगिया में नव पल्ल्वित कुसुम लिखू या तरु शाखा विराजित कोकिला लिखू बताओ ना, आपको क्या लिखू मेरी भुली बिसरी यादे लिखू या मेरे गुजरे हुए पल लिखू बिखरी हुई अभिलाषा लिखू या अपूर्ण हुआ सपना लिखू बताओ ना, आपको क्या लिखू परिचय :- हितेंद्र कुमार वैष्णव शिक्षा : बी.ए सम्प्रति : एसईओ, इंटरनेट मार्केटिंग मैनेजर निवासी : ग्राम - सांडिया, जिला : पाली (राजस्थान) विधा : कविता सर्जन शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता...
नारी और न्याय
कविता

नारी और न्याय

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सदा दर्द में जीती आई, मिला नहीं न्याय, सदियों से शोषित रही, होता रहा अन्याय, आजीवन कष्टों में रहती, कहलाती बेचारी, चीर हरे, कभी हरण करे, जग व्याभिचारी। कमजोर नहीं काम में, फिर भी है अबला, उसकी सुंदरता समक्ष, पुरुष बजाये तबला, न्याय की खातिर जगत, दर-दर भटके नारी, काम वासना के लिए, बहुतों को लगे प्यारी। सतयुग में तारामती, करती थी घर में काम, हरिश्चंद्र मरघट करे, बिके सरदार डोम नाम, रोहित उनका मारा गया, पहुंची मरघट द्वार, न्याय नहीं मिला वहां, अंत में जीत गई हार। त्रेता में सीता नारी, रावण ने किया अपहरण, सीता को न्याय मिले, श्रीराम पहुंचे तब रण, रावण पापी नष्ट हुआ, देर में मिला था न्याय, फिर एक जन बोल से, वन गमन था अन्याय। द्वापर युग भी नहीं भला, द्रोपदी का हरा चीर, भटकती रही हर द्वार पर, कृष्ण हर लिया पीर, द्रोपदी के चीर हरण का,...
मै भारत की बेटी हूं
कविता

मै भारत की बेटी हूं

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मै भारत की बेटी हूं, क्यों ना मै अभिमान करू रज कण जिसके चंदन है, नतमस्तक मै गुणगान करू, आर्या वर्तो की श्रेष्ठ भूमि है, सुरजन वंदन करते है, राम कृष्ण की पावन भूमि, नित अभिनंदन करते है, उत्तुंग शिखर हिमगिरि, श्रेष्ठ धरा पर उन्नत भाल हमारा है, वारिध जिसके चरण पखारे, सप्त स्वरों में गाता है, वेद ऋचाएं जनमी है, दसो दिशाएं सुरभि त है, हवन कुंड से उठता धुंआ, करता मन आनंदित है, पुण्य भूमि है भरत भूमि यह, जिसका मै यश गान करू मै भारत की बेटी हूं क्यों ना मै अभिमान करू..... विंध्या चल है कमर मेखला सतपुड़ा से श्रृंगार हुआ गंगा यमुना ने सींचा जिसको रेवा तट उपहार हुआ ज्ञान दीप हुआ प्रज्ज्वलित देश मेरा दिनमान रहा एक अलौकिक युग दृष्टा आदर्शो का प्रतिमान रहा संस्कृतियों का पलना अद्भुत राष्ट्र भक्ति की त्रिवेणी है जन गण मन का मंत्र जिसका मै रसपान करू ...
प्रतिज्ञा
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प्रतिज्ञा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** ये कैसा महारथ ये कैसा पराक्रम ये कैसी श्रेष्ठता भरे दरबार मे एक स्त्री के शील की रक्षा करने में असमर्थ महारथी ,कुल शिरोमणि। ये कैसा पुरुषार्थ ये कैसा साहस निशक्त विचित्रवीर्य के लिए कर लेते हो अपहरण अंबा, अम्बिका, अंबालिका का उनकी कामना के विरुद्ध जाकर बांध देते हो उन्हें परिणय सूत्र में तुम महारथी, कुल शिरोमणि। पिता शांतनु की काम लोलुपता पर अपने स्वप्नों व दायित्व का बलिदान कर दिया तुमने, देवव्रत काश, किंचित सोच लेते मातृभूमि के लिए तत्समय जो तुम्हारे निज नाम से बड़ी थी महारथी, कुल शिरोमणि। तुम्हारा मौन तुम्हारी सहमति बन कुल को ला खड़ा कर देता है विनाश के द्वार पर तुम क्या सोचते रह गए हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए महारथी, कुल शिरोमणि। उतरे भी रणभूमि में अनीति का साथ देते परिलक्षित हुए, काश की तुम भी दिखाते साहस युयुत्सु जैसा तुमने अपने प...
शिक्षक
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शिक्षक

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** अंधकार था मेरा जीवन, मैं मूर्ख अज्ञान था, चैतन्य प्राणी होने पर भी, मैं सबसे अंजान था, जिसने दिशा का ज्ञान कराया, मानो उसका एहसान, इसीलिए तो सब करते हैं, शिक्षक का सम्मान। हम गीली मिट्टी के पुतले, हर पल उन्होंने हमें संभाला, हाथों से आकृति बनाई, फिर सांचों में हमको डाला अपना सर्वस्व समर्पित, तभी बने महान, इसीलिए तो सब करते हैं, शिक्षक का सम्मान। खुशबू के बिना फूल अधूरा, हरियाली के बिना चमन, जल के बिना अधूरी मछली, गुरु के बिना अधूरा जीवन कलपतरु के जैसे हैं वे, असंख्य गुणों की खान, इसीलिए तो सब करते हैं, शिक्षक का सम्मान। शिक्षक साहिल है नैयाके, वही राष्ट्र निर्माता हैं, इस देश के कर्णधार, भारत के भाग्य विधाता हैं, उनके चरणों में नतमस्तक, कोटि-कोटि प्रणाम, इसीलिए तो सब करते हैं, शिक्षक का सम्मान। परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति...
जीवन का खेल
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जीवन का खेल

रुमा राजपूत पटियाला पंजाब ******************** कुछ खोना है, कुछ पाना है। जीवन का खेल, पुराना है। जब तक सांस, चलेगी हम में, हम को चलते, ही जाना है। यह झूठ का, ज़माना है। यहां सच्च को, दबाया जाता है। जब तक सच्च, बोले तो हम को, मार ही खाना है। कुछ खोना है, कुछ पाना है। जीवन का खेल, पुराना है। यह मुकाबला का, ज़माना है। यहां हारना और, जीतना है। जब तक सांस, चलेगी हम को, संघर्ष करते रहना है। कुछ खोना है, कुछ पाना है। जीवन का खेल, पुराना है। यहां कुछ ऐसे, प्राणी मिलते हैं। जो प्रेम भाव, से रहते हैं। जब तक प्रेम, भाव रहेगा। नफ़रत खत्म, होते जाना है। कुछ खोना है, कुछ पाना है। जीवन का खेल, पुराना है। जब तक सांस, चलेगी हम में, हम को चलते, ही जाना है। परिचय :- रुमा राजपूत निवासी : पटियाला पंजाब घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बेटियाँ आती है
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बेटियाँ आती है

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बेटियाँ आती है पीहर इसी बहाने कोई इसे चाहे माने या ना माने जो खो गया बचपन उसे तलाशने जो छूट गया रिश्ता उसे निभाने स्नेह का बन्धन फिर से बांधने बेटियाँ आती है पीहर... देहरी पर फिर से दीपक जलाने रंगोली और अल्पना से आगंन सजाने वो रस्म और रिवाज निभाने बेटियाँ आती है पीहर... फिर से घर आगंन को महकाने भर-भरकर झोली ममता लुटाने फिर अल्हड़ सी वो राग सुनाने बेटियाँ आती है पीहर... माँ की गोद का सिरहाना बनाने पिता से अनदेखा प्यार जताने नोक झोंक में भाई से हार मनवाने बेटियाँ आती है पीहर... सखियों के संग फिर से बतियाने कुछ उनका सुनकर कुछ अपना सुनाने हो जाए मन हल्का इसी बहाने बेटियाँ आती है पीहर इसी बहाने कोई इसे चाहे माने या ना माने परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ...
विरह वेदना
कविता

विरह वेदना

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में सर्वश्रेठ रही कविता) दीप-बाती बन, जल रही मैं, तकती सूनी भीतो को, प्रीत-दीप, रौशन कर बैठी, तकती बरबस राहों को... विरह-अग्न में, तप रही, हुक उठती, हिय-विकल हैं, निर्झर-नैना, तोड़े बंध सारे, श्वासों का, आवेग प्रबल हैं... अस्त-बिंदु हैं, व्यस्त-वसन हैं, सुधि रही ना, तन मन की, उलझी अलकें, स्थिर पलकें, ताक रही,छवि साजन की... कैसे कह दु ? क्या तुम मेरे हो, बानी को मैं, तरस रही, तपता तन हैं, भीगा मन है, बिन सावन मैं, बरस रही... अरमानों की, सेज सजाएं, भूलि-बिसरी, महकाए रही, कंपित अधरों से, गीत मिलन के, होले से, बुदबुदाए रही... हर आहट पर, आस जगे हैं, तरसु भुज वलय, समाने को सुरभित-मुकलित, यौवनं चाहें, रंग "निर्मल" घुल जाने को... पल पल, हर पल,...
प्रियतम! अब तो आ जाओ
कविता

प्रियतम! अब तो आ जाओ

श्रीमती विजया गुप्ता मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में तृतीय विजेता रही कविता) विरह व्यथा उग्र हुई मनोभूमि व्यग्र हुई छा जाओ मेघ बनकर प्रियतम!अब तो आ जाओ! दग्ध करता बहुत मनसिज खिलना चाहे नेह सरसिज प्रबल हुई पीर तन की बन जलधार बरस जाओ प्रियतम!अब तुम आ जाओ! स्मृति के मेघ घुमड़ते अश्रु बन फिर उमड़ते पंथ तकते ये नयन थके यह मिलन अमर कर जाओ प्रियतम! अब तुम आ जाओ ! राह निहारूं मैं पिय की किससे बात करूं हिय की आकुल मन अति घबराए हृदय कमल खिला जाओ प्रियतम! अब तो आ जाओ ! परिचय :- विवेक श्रीमती विजया गुप्ता जन्म दिनांक : २३/१०/४६ निवासी : मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
का, सजना अब तुम बिन सावन
कविता

का, सजना अब तुम बिन सावन

सतीशचंद्र श्रीवास्तव भानपुरा- भोपाल (म.प्र.) ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में द्वितीय विजेता रही कविता) का, सजना अब तुम बिन सावन मन तड़पत, तरसत हैं अँखियाँ, नहिं भातीं अब मुझको सखियाँ पलक बिछीं हैं राहन... का सजना अब तुम बिन सावन! हूक उठे जियरा में रतिया अधरा फरकें करन को बतिया दादुर. लागे राग सुनावे, मेघा बरसे आँगन... का, सजना अब तुम बिन सावन नाचे मोर, पपीहा बोले, पर आपन मनवा न डोले तुम्हरी बाट में ऐसी खोयी झींगुर लागे मोह रिगावन... का, सजना अब तुम बिन सावन! चारों तरफ हरियाली फैली, सूखे की हालत हो गयी मैली मन का माझी राह निहारे कब आओगे तुम घर साजन... का, सजना अब तुम बिन सावन! परिचय :- सतीशचंद्र श्रीवास्तव निवासी : भानपुरा- भोपाल म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
विरह वेदना
कविता

विरह वेदना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में प्रथम विजेता रही कविता) गाल हथेली पर रख के मैं तनहा सी बैठी रहती, उस पर भी खामोशी जाने क्यों मुझसे रूठी रहती। याद तुम्हारी तो तन मन में कस्तूरी सी बसती है, तुम तो होते पास नहीं हर रात विरह की डसती है। धीर रखती हूँ बहुत पर नीर पलकों से छलकते, दर्द कातर हो उजागर कांपने लगते फलक से। जब मिलन के गीत कोई झुरमुटों के पार गाता, पीर के अतिरेक में फिर आह निकलती हलक से। अब नहीं अभ्यर्थना में मेघ बनकर दूत आते, गर्जना घनघोर करते और रह रह कर डराते। चांद की भी क्या कहूं ऐसे तिल तिल कर जलाये, ज्यों सुहानी रात हो फिर भी कुमुदिनी खिल न पाये। अब किसी टहनी के दिल से फूल मैं ना तोड़ सकती, वेदना क्या है विरह की अब बिछुड़ कर मैं समझती। अपने साजन के बिना सचमुच मुझे कु...
पाखंड
कविता

पाखंड

डॉ. उपासना दीक्षित गाजियाबाद उ.प्र. ******************** सदियों से अपरिभाषित न कोई आकार न कोई प्रकार बेढंगे साँचों में पोषित और साकार अव्यक्त चीत्कारों में चहकता पाखंड कलुषता की भट्टी में दहकता पाखंड। व्यक्ति अनेकों खड़े चेहरों पर परत चढ़े कुटिल मुस्कानों की चमक लिए आगे बढ़े सादगी के चोले में छिपा हुआ पाखंड बात की सहजता का दंभ भरता पाखंड। काया की उन्मुक्तता भावों की गम्भीरता पाप का संसार और घृणित घोर कामना बहुरंगी माया का जाल बना पाखंड। जिधर देखो, उधर दिखे प्रेम का पाखंड सत्य का पाखंड संस्कारी पाखंड व्यभिचारी पाखंड ममता का पाखंड गुरूता का पाखंड आदर का पाखंड लज्जा का पाखंड मित्रता का पाखंड शब्दों की कमी भले पर बहुआयामी पाखंड कलियुगी माया में और चिरन्तन काया में फलता-फूलता और बढ़ता बहुमुखी पाखंड। परिचय :- डॉ. उपासना दीक्षित जन्म - ३० दिसंबर १९७८ पिता - स्व. ब्रजनन्दन लाल मिश्रा मात...
सख्त पत्थर
कविता

सख्त पत्थर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सख्त पत्थर को गला पानी बनाकर दम लिया। जब हठीले बनगए महफिल सजाकर दम लिया।। हारते कैसे बताओ जंग नाहक से ठनी। जान दे दी हमने अपनी सिर कटाकर दम लिया।। जिद यही थी के सरापा तम हमें भी घेर ले। किन्तु हमने डूबता सूरज उगाकर दम लिया।। लब रहे प्यासे भले मैदान में टूटे न हम। प्यास को भी तो वहां दासी बनाकर दम लिया।। लाख आए जलजले तूफान लेकिन क्या हुआ। हकपरस्तों ने शमा हक की जलाकर दम लिया।। फूलती फलती भला कैसे यजीदी भावना। लुट गया इब्नेअली लेकिन मिटाकर दम लिया।। ताकयामत हक न हारेगा भरोसा रखा "अनन्त"। हकसदा कायमरहा सिक्का चलाकर दम लिया।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...
मेरा कल्पवृक्ष
कविता

मेरा कल्पवृक्ष

राशिका शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** भैय्या मेरा कल्पवृक्ष है छाया उसकी उदार मेरे लिए वही है मेरा सारा संसार जब कभी मुश्किल में पड़ती हूँ उसकी दिखाई रहो पर चलती हूँ भैय्या मेरा सर्वश्रेष्ठ है बाकी पराया देश है गंगा मां सा पुजनीय है वह बड़ा अनमोल है सत्य और न्याय प्रिय उसके मिठे बोल है बस आरजु यही है मेरी ख्वाहिश हर एक हो जाए तेरी पूरी परिचय :- राशिका शर्मा पिता : सुदामा शर्मा माता : मंजुला शर्मा निवासी : इंदौर म.प्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) क...
मजदूर की व्यथा
कविता

मजदूर की व्यथा

शिवांकित तिवारी "शिवा" सतना मध्य प्रदेश ******************** पैदल चलकर नाप रहे ख़ुद सड़कों की लंबाई, भूखें प्यासे बच्चों के संग मज़बूरी में भाई, नंगे सूजे पैर जल रहे, बिना रुके दिन रात चल रहे, भूख की खातिर छोड़ा था घर, गांव छोड़ आये थे वो शहर, भूख के कारण अब उनकी है पेट से स्वयं लड़ाई, रक्तरंजित सड़के और पटरियां, चल रहें पैदल ही लेकर गठरियां, पटरियों पर है पड़ी रह गई भूख, रोटियां भी गई पटरियों पर सूख, पैदल चलते - चलते उनके पांव में फटी बिवाई, खून के आंसू रोते चलते, बच्चों को कंधों पर टांगे, सड़को को आंसू से धोते, घर को निकले सभी अभागे, घर पर बैठा आस लगाये बूढ़ा बाबा बूढ़ी माई, क्या करते शहरों में रहकर, चूल्हा कैसे उनका जलता, नहीं कोई रोजगार बचा जब, फिर पेट सभी का कैसे पलता, कोई भी सरकार नहीं कर पाई जख़्मों की भरपाई, नहीं कोई सरकार सहायक, सिस्टम से सबके सब हारे, बिखर गये सबके सपने अब, भ...
बंद पिंजरा
कविता

बंद पिंजरा

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** मन दुखी हैं और तन्हाईयों में हूं कैद क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता नित खुले आसमान में विचरण हैं मेरा काम क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता वृक्षों और पेड़ों पर हैं मेरा प्यारा सा धाम क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता सांझ-सवेरे मधुर चहकता मेरा गान क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता चुन-चुन कर तिनकों से भी नीड़ न बनाने से दुखी हूं क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता मुझे इस "पिंजरे में से आजाद" कर दो क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता परिचय :- राजेश चौहान (शिक्षक) निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
बुढ़ापा
कविता

बुढ़ापा

संजय जैन मुंबई ******************** न जीत हूँ न मरता हूँ न ही कोई काम का हूँ। बोझ बन कर उनके घर में पड़ा रहता हूँ। हर आते जाते पर नजर थोड़ी रखता हूँ। पर कह नही सकता कुछ भी घरवालो को। और अपनी बेबसी पर खुद ही हंसता रहता हूँ।। बहुत जुल्म ढया है हमने लगता उनकी नजरो में। सब कुछ अपना लूटकर बनाया उच्चाधिकारी हमने। तभी तो भाग रही दुनियाँ उनके आगे पीछे। और हम हो गये उनको एक बेगानो की तरह। गुनाह यही हमारा है की उनकी खातिर छोड़े रिश्तेनाते। इसलिए अब अपनी बेबसी पर खुद ही हंस रहा हूँ।। खुदको सीमित कर लिया था अपने बच्चों की खातिर। और तोड़ दिया थे रिश्तेनाते सब अपनो से। पर किया था जिनकी खातिर वो ही छोड़ दिये हमको। पड़ा हुआ हूँ उनकी घर में एक अंजान की तरह से। और भोग रहा हूँ अब अपनी करनी के फलों को। तभी तो खुद हंस रहा हूँ अपनी बेबसी पर लोगो।। न जीत हूँ न मरता हूँ न ही कोई काम का हूँ। बोझ बन कर उनके घर में प...
फौजी का दर्द
कविता

फौजी का दर्द

संजय सिंह मीणा करौली (राजस्थान) ********************                  (गोली लगने के बाद) गोली लगते ही वीरा को माता की याद सताई है बीवी का प्यार भी याद आया बच्चे की हंसी खुदाई है भाई की यादों में भाई जब अश्क बहाने लगता है बहना प्यारी सी चिडिया है ये सोच सोच के रोता है। उड गया पंक्षी लुट गया मेला कुछ देर सांस बस अटकी है अपशकुन हो गया बीवी को जब फूटी कोरी मटकी है माता की आंखों का तारा पलभर में छलनी कर डाला बापू का पत्थर जैसा दिल भी आंशू रूपी भर डाला। जब खबर गांव मे पहुंची है वीरा ने देह त्यागी है माता बहना बेहोश गिरी बवी भी बाहर भागी है कहाँ गया छोड के ओ साथी तूने धोका मुझसे कर डाला जीना मरना था साथ अकेले केसे छोड चला जारा। बापू की छाती फ़टी निकल गई गंगा रूपी जलधारा बहना चिल्लाई ओ भैया अब तुने ये क्या कर डाला माता जी पागल हुई पडी बेटा बेटा चिल्लाती है छोटी सी अनजानी बच्ची पापा-पापा बिलखाती ...
देश मेरा प्यारा
कविता

देश मेरा प्यारा

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** देश मेरा प्यारा, दुनिया से न्यारा धरती पे जैसे स्वर्ग उतारा।। ऊँचे पहाड़ों में फूलों की घाटी। प्यारे पठारों में खनिजों की बाटी।। हरे-भरे खेतों में सरगम बजाएँ। नदियों के पानी में चाहूँ मैं तरना।। मन ये गगन में उड़े रे। ऐसे ये जी से जुड़े रे।। दूर मेरा देश ये गाँवों में बसता। मुझको पुकारे है हर एक रस्ता।। पैठा पवन मेरे पाँव में। आना जी तू भी मेरे गाँव में।। देश मेरा प्यारा, दुनिया से न्यारा।। परिचय : कार्तिक शर्मा पिता : शुक्राचार्य शर्मा शिक्षा : बी.एड, एम.ए. निवासी : मुरडावा पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक म...
में इतिहास हूं
कविता

में इतिहास हूं

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। मैने शूरवीरों के रक्त से, सिचा है इस इतिहास को। में अफवाहों का पुंज नहीं, सत्य घटनाओं का कुंज हूं। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। में उन पड़ावों ओर कोरवो की गाथा का बखान करता हूं। में उन यशोदा के लाल की गीता का बखान करता हूं। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, में इतिहास हूं। मैने महान शासक चंद्रगुप्त मौर्य को, राज सिहासन पर बैठते हुए देखा है। मैने सिकंदर को, शुरवीरो की धरती से, वापस लौटते हुए देखा है। मुझे ऐसे ही नहीं याद किया जाता, मे इतिहास हूं। मैने मेवाड़ के शेर से, अकबर को धूल चाटते हुए देखा है। मैने रानी पद्मिनी की चतुराई से, अलाउद्दीन खिलजी की मूर्खता को देखा है। मुझे ऐसे ही नहीं किया जाता, में इतिहास हूं। आजाद की गोली से, गौरो को डरते हुए देखा है। मैने गांधीजी की लाठी...
परिंदे
कविता

परिंदे

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** उड़ने दो मासूम परिंदो को खुले आसमां में फैलाने दो अपने पंख इन्हें विशाल गगन में इनके कर्म से है बुलंदी इस जहान की ईश्वर भी सिर झुकाए इनके दर पर फड़फड़ाने दो इनके पंख स्वछंद हवाओं में छू लेने दो आकाश की बुलंदियों को इन्हीं से है रोशन हर घर का अंधेरा मत तोड़ो इनकी ऊंचाइयों की डोर मत मसलों इन्हें, मत दफन करो, सुरों के सारे संगीत बसते हैं इनकी चहचहाट में शून्य रह जाएगा ये जहान इनके बगैर क्योंकि,ये "बेटियां" हैं, जिनसे है रोशन जहां सारा। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उ.प्र.) विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों ...
गजानन सुनलो हमारी पुकार
कविता

गजानन सुनलो हमारी पुकार

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** गजानन सुनलो हमारी पुकार। गजानन लाओ खुशियां अपार।। विघ्नों के हर्ता हो कष्टों के हर्ता हो मंगलदायक तुम सुखों के कर्ता हो भर दो समृद्धि का भंडार गजानन लाओ खुशियांँ अपार।। कोई काम शुरू हम करते पहले नाम तुम्हारा ही लेते हर संकट करे निवार। गजानन लाओ खुशियाँ अपार।। अज्ञान का छाया है अंधेरा कर सकते हो तुम्ही उजेरा ज्ञान की रोशनी अपार गजानन लाओ खुशियाँ अपार।। विपदाओं का लगा है डेरा कोरोना का है रूप घनेरा। कृपा की कर दो बौछार। गजानन लाओ.खुशियां अपार। कोरोना को तुम दूर भगाओ कष्टों से तुम मुक्ति दिलाओ करो मानवता का उद्धार गजानन लाओ खुशियां अपार गजानन सुन लो हमारी पुकार।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र....
राणा का शौर्य
कविता

राणा का शौर्य

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** अकबर हुआ दुलारों में। हैं राणा खड़े क़तारों में। हम पढ़ते हैं बाज़ारों में। कुछ बिके हुए अख़बारों में। ये जाहिल हमें सिखाते हैं। शक्ति का भान कराते हैं। अकबर महान बताते हैं। राणा का शौर्य छिपाते हैं। कुछ मातृभूमि कोहिनूर हुए। जो मेवाड़ी शमशिर हुए। वो रण में जब गम्भीर हुए। तब धरा तुष्ट बलबीर हुए। अरियों की सेना काँप गई। जब राणा शक्ति भाँप गई। भाले की ताक़त नाप गई। अरि गर्दन भी तब हाँफ गई। कुछ दो धारी तलवारों में। था चेतक उन हथियारों में। वो जलता था प्रतिकारों में। उन मेवाड़ी अधिकारों में। हाथ जोड़ यमदुत खड़ा था। दृश्य देख अभिभूत पड़ा था। मेवाड़ी बन ढाल लड़ा था। चेतक बनकर काल खड़ा था। राजपूताना शमशिरों का, जब पूरा प्रतिकार हुआ। तब तब भारत की डेहरी पर, भगवा का अधिकार हुआ। परिचय :- धीरेन्द्र पांचाल निवासी : चन्दौली, वार...