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कविता

समाधान…
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समाधान…

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** वक्त है, यह कभी रुकता नहीं है, सच है, यह कभी झुकता नहीं है, साहस है, यह कभी टूटता नहीं है, जिगर जिनके पास है, किस्मत उनका कभी रूठता नहीं है... ईमान है, यह बिकती नहीं है, नीयत खराब, दिखती नहीं है, आशा की किरण, कभी बुझती नहीं है, इज्जत की रोटी, इससे बड़ी संतुष्टि नहीं है... फिर भी कुछ सवाल बड़े हैं, चुनौतियां सामने मुंह बाए खड़े हैं, अच्छे लोगों के साथ, अक्सर बुरा क्यों होता है, बुरे लोगों का साम्राज्य, इतना बड़ा क्यों होता है, जवाब इसका बहुत कठिन नहीं है, बदलाव अगर खुद से शुरू हो, कौन सी ऐसी समस्या है, जिसका समाधान मुमकिन नहीं है... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
गले मिल जाये
कविता

गले मिल जाये

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** उत्तुग श्रंग पर बैठ अपने परो को तोलती, उड़ चली गगन मे वह, मस्त मगन डोलती, न जाने कब तक उडे़गी, वह गगन के वक्ष पर काल कवलित बन गिरे, कब गगन से अवनि पर। कब बढे़गा हाथ उसका कब धूल मे मिल जायेगे कौन जाने कब यहाँ से, रुख्सत हम हो जायेगे आज 'मै' मै बनूँ क्यो, क्यो न हम हो जाये सब, कुछ समय की जिन्दगानी, क्यो एक न हो जाये सब, क्यो मजहब मे रमते रहे क्यो धर्म को कोसे सदा, चार दिन की जिन्दगी है सबको जाना इक जगह। यह भी मेरा वह भी मेरा और किसी को क्यो गने, सोच न हो संकीर्ण इतनी भूमि दो गज ही मिले। तू जले या दफन हो जाना तुझे उस लोक ही, अपने कर्मों का ब्योरा, देना है एक साथ ही, फिर क्यो मन मलिन रखे, क्यों ईष्र्या द्वैश रखे दिल मे, झगडे़ भी हो क्रोधित भी हो, पर गले मिल जाये एक पल मे गले मिल जाये ...... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह...
जब आता है श्राद्ध
कविता

जब आता है श्राद्ध

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जब आता है श्राद्ध, तभी दिखते है श्रद्धा भाव। जीते जी खिलाया नही, अब कहते हो खाओ। ढूंढ़न से मिलते नही, करते कौए कांव कांव। मिलते भी है एक दो, तो सुनते नही बुलाव। समझो उनके अंदर है, उन पूर्वजो का ठांव। वो देख आज पछता रहे, जो दिए आपने घाव। चाहते थे वो आपसे, केवल श्रद्धा और भाव। रखो हमेशा पास उन्हें, तुम रहो शहर या गांव। घर का मुखिया था कभी, उनका सबसे लगाव। वो घर मे दबके रहा, पड़ना था जिनका दबाव। अब तुम मेरे हिस्से का, कौओं को ना खिलाओ। खुदको समझो कौआ, और खुद बैठे बैठे खाओ। करो ना बातें बड़ी बड़ी, मत झूठा प्यार दिखाओ। जो रहते बृद्धाश्रम में, अब उनको भोज कराओ। पछतावा करने में अब, समय ना और गंवाओ। कहीं दान तो कहीं कहीं पर, हरा वृक्ष लगाओ। समय के रहते तुम करो, पितरों का रख रखाव। आशीर्वाद स्वरूप तुम्हें वो दे जाए चन्द्रमा छांव। तर्पण श्र...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** ईश्वर का प्रतिरूप हैं शिक्षक। श्रद्धा रूप अनूप है शिक्षक। संघर्ष से लड़ना सिखाते शिक्षक। राहों को सरल बनाते शिक्षक। हर अँधेरे में रोशनी दिखाते शिक्षक। कभी प्यार से, कभी डांट से हमको ज्ञान देते शिक्षक। हर पल बच्चो का भविष्य बनाते शिक्षक। जीवन के हर पथ पर सही गलत की राह दिखाते शिक्षक। जीवन जीने का पाठ पढ़ाते हैं शिक्षक। बच्चो के भाग्य बनाते है शिक्षक। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप ...
शिक्षक दिवस
कविता

शिक्षक दिवस

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** शिक्षक को याद करने का दिन, शिक्षा किसी को न मिलै शिक्षक बिन। शिक्षक का सभी करो सम्मान, बिन शिक्षक मिले नहीं ग्यान। इस बात का रखो तुम ध्यान, शिक्षक का तुम सदैव करो सम्मान। शिक्षक ढूंढन मैं चला शिक्षक मिला न कोय, जो जीवन का सही मार्ग-दर्शन करे वही सच्चा शिक्षक होय। गुरू कुम्हार शिष्य कुम्भ है गढ़ी-गढ़ी काढै खोट, अन्दर हाथ सहार दे बाहर बाजै चोट। गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपनौ गोविन्द दियो बतलाय। पांच सितम्बर अर्थात शिक्षक दिवस भैया साल एक बार ही आय, शिक्षक को सम्मान देकर शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष लेव खुशी-खुशी मनाय। वीरेन्द्र यादव जी शिक्षक दिवस पर कविता दियो बनाय, उनहु को थोड़ा-सा आपन आशीर्वाद दैईदेव बहन और भाय। आधुनिक क्लास में शिष्टाचार का लेशन जोड़ देव मास्टर जी, बच्चे जिससे आपने से बड़ो से बात...
गुरुवर के चरणों की छाँव
कविता

गुरुवर के चरणों की छाँव

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** बुद्धि, विवेक और भाषा ज्ञान की सबकुछ हमें सिखाया है, मंजिल की सीढ़ी चढ़ने का एक मुक्ति-मार्ग दिखलाया है, शिक्षा की उस वट-वृक्ष की, मजबूत शाखा और डाली है, हे गुरुवर आपके चरणों की वो छाव कितनी निराली है।। दिए हुए उस ज्ञान की दीपक, हरपल तन-मन मे जलते हैं, गुरुजनों का ज्ञान पाकर ही, इस जग में आगे बढ़ते है। कर संघर्ष जीवन मे, अपने सदा ही अच्छा करते हैं, और जो न तरे सौ तीर्थ से, वो गुरु के ज्ञान से तरते है। मानव के तन में शब्दों की शक्ति गुरु ने ही तो डाली है, हे गुरुवर आपके चरणों की वो छाव कितनी निराली है।। बिना गुरु कृपा के जग में कितने शिष्य अधूरे है, हुवे ज्ञानी सदा वही, जो गुरु आदेश से जुड़े हैं। गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु, गुरु ही रूप करुणे है, कुछ काम जीवन मे पूरे हैं, कुछ गुरु बिना ही अधूरे है, गुरू की ज्ञान सूरज की रौशनी और किर...
कोरोना काल और शिक्षक
कविता

कोरोना काल और शिक्षक

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कोरोना काल में घर में बंद होकर। सबको जिंदगी के अहम सबक याद आए।। कोरोना काल में घर में बंद होकर। सड़कों पर भटकते मजदूर, गरीब होने की सजा पा रहे थे। जिंदगी के अच्छे दिन आएंगे। यह स्लोगन भी याद आ रहे थे। कोरोना ने कर दिया..क्या हाल। टीवी देख कर आंख में, कुछ के आंसू भी आ रहे थे। विडंबना देखिए ..... हालात और शिक्षण नीतियों के मारे। शिक्षक किस हाल में है। ना किसी को प्राइवेट, और ना सरकारी शिक्षक याद आ रहे थे। जो इस महामारी में, समस्त विषमता से परे। दुनिया को कोरोना क्या शिक्षा दे रहा है। इस बात से अनभिज्ञ, ऑनलाइन पाठ पुस्तकों के चित्र घूमा रहे थे। बस ऑनलाइन सिस्टम की, कठपुतलियां बन के, बच्चों को नोट- पाठ्यक्रम पहुंचा रहे थे। जिंदगी की सच्चाई से ना खुद शिक्षित हुए। ना इसका मूल्य समझा पा रहे थे। कोरोना जिंदगी को, जिस हाशिए पर ख...
मेरा जीवन ऋणी है जिनका
कविता

मेरा जीवन ऋणी है जिनका

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरा जीवन ऋणी है जिनका, जो खुद ईश्वर कहलाते है। हम चाहे उन्हें भूल भी जाएं, वो हमें कभी ना भुलाते है। बचपन मे जो उंगली पकड़, हमको चलना सिखाते है। क्या है सही गलत जीवन मे, यह सब हमको बताते है। दया धर्म और संस्कार का, वो हमको पाठ पढ़ाते है। रूठे अगर कभी जो हमतो, वो हमको आके मनाते है। हर इच्छा हर ज़िद को जब, हम उनको जाके बताते है। अपनी इच्छा मारके वो तो, हमको खुश कर जाते है। ऐसी मां और पिता को क्यों, हम पास नही रख पाते है। जन्मों जन्मों तक हम उनका, ये ऋण चुका ना पाते है। ऐसे मात पिता को हम तो, प्रतिदिन शीश झुकाते है। वही हमारे सच्चे शिक्षक, जो हमको ज्ञान दिलाते है। परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्...
शिक्षकों का योगदान
कविता

शिक्षकों का योगदान

संजय जैन मुंबई ******************** हूँ जो कुछ भी आज मैं, श्रेय में देता हूँ उन शिक्षकों। जिन्होंने हमें पढ़ाया लिखाया, और यहां तक पहुंचाया। भूल सकता नहीं जीवन भर, मैं उनके योगदानों को। इसलिए सदा में उनकी, चरण वंदना करता हूँ ।। माता पिता ने पैदा किया। पर दिया गुरु ने ज्ञान। तब जाकर में बना लेखक, और एक कुशल प्रबंधक। श्रेय में देता हूँ इन सबका, अपने उनको शिक्षकों। जिनकी मेहनत और ज्ञान से, बन गया पढ़ा लिखा इंसान।। रहे अँधेरा भले उनके जीवन में। पर रोशनी अपने शिष्यों को दिखाते है। जिस से कोई बन जाता कलेक्टर, तो कोई वैज्ञानिक कहलाता है।। सुनकर उन शिक्षकों को, तब गर्व बहुत ही होता है। मैं कैसे भूल जाऊं उनको, जिन्होंने हमें योग बनाया है। देकर ज्ञान की शिक्षा, हमें यहाँ तक पहुंचाया है।। शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं उन सभी शिक्षकों के चरणों मे वंदन करता हूँ। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के न...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रणाम उस मानुष तन को, शिक्षा जिससे हमने हैं पाया। मातृ-पितृ के बाद, जिसकी है हम पर छाया पुनः उनके श्रीचरणों में नमन, जो शिक्षा दे शिक्षक कहलाएं। अच्छे बुरे का फर्क बतला उन्नति का मार्ग हमें दिखलाएं।। शिक्षक, अध्यापक और गुरु संग, आचार्य जैसे है अनेकों पदनाम। कभी भय तो, कभी प्यार जता, करते हमें सिखाने का काम।। कभी डांट तो कभी फटकार कर, कुम्हार के भांति हमें पकाया। अपने लगन और अथक मेहनत से, शिक्षक ने हमें सर्वश्रेष्ठ बनाया।। गुरु तो है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश से भी महान। गुरु की दी शिक्षा ही हमें, दिला रही आज सम्मान।। शिक्षा के बिना तो, ये मानव जीवन है बेकार। शिक्षक ने हमें शिक्षित कर, कर दिया अनेकों उपकार।। अपनी शिक्षा से सफल हमें देख, शिक्षक का होता हर्षित मन। पांच सितंबर क्या, मैं तो कर...
गुरु हैं धरती पर भगवान
कविता

गुरु हैं धरती पर भगवान

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** प्रभू देते हैं जिन्दगी, माता पिता देते हैं खूब दुलार। खूबियों का एहसास करा गुरु जीवन को देते संवार।। गुरु वही जो जीना सिखाये, कराये आपसे आपकी पहचान। गुरु के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना कोई कैसे बने महान।। गुरु ही रखते ज़मीं से आसमां तक, ले जाने का हुनर। गुरु की महिमा से शिष्य की गरिमा बढ़ गई है कुछ इस कदर।। शिष्य ने पाई सफलता की ऊंचाई तो गुरु को भी मिलता सम्मान। तराश कर बना दिया उसे हीरा जिसने, वो है धरती पर भगवान।। ज्ञान से ही बना सुन्दर जीवन, सारथी बन गुरु ने खूब साथ निभाया है। जब जब गिरा सम्भाला उसने, हर मुश्किल को ही आसान बनाया है।। गुरु ब्रम्हा ने उपजाया, गुरु विष्णु की है माया, गुरु महादेव का साया। गुरु के प्रताप से जीवन में सब कुछ है पाया, गुरु ही है पेड़ों की छाया।। गुरु चरणों मे जिसने शीश नवाया, वही ही तो पूरे जगत ...
सृजन
कविता

सृजन

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ******************** पत्तों पर अल्लड़ अटखेलियां करतीं बूंदें। पेड़ों के कानों में धीरे से कुछ कहती हवा। पेड़ों का उन्मुक्त भाव से झूम उठना। दोपहर में श्याम का गुमा होने लगना। कलरव करते विहग वृंद की घर वापसी। शरारतें, अटखेलियां, प्रकृति की कोख में हलचल। मेंघों की गर्जन पर लहरों का नाचना-गाना। ये बारिश नहीं,बीज वो रहा है समय, परमात्मा की किलकारी का, सृजन का। जैसे प्रकृति खेल रही है, लुभा रही है, मीठी उमंग भर रही है, जवां जवां हो। पोखरों में खुदको निहारते बादल। जाने किसकी प्यास बुझाते बदल। कभी वसुधा के करीब आते, कभी ललचाकर दूर भाग जाते बादल। मचलकर तीव्र वेग से जल तरंगों का, सागर में समाहित होने उसकी तरफ भागना। क्या ऐसा मिलन तुमने कभी देखा है? क्या ऐसा सृजन तुमने कभी देखा है? परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु" निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़ सम्प्रति : अभिभाषक म...
नारी तुम हो अनंत
कविता

नारी तुम हो अनंत

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तुम हो अनंत!....... तुम सृष्टि की जीवन आधार, तुम सृष्टि की अनंत उदार, तुम सृष्टि की शक्ति अपार, तुम सृष्टि की मूरत साकार, तुम समान भगवंत..... नारी तुम हो अनंत!..... तुम बहिना तुम हो वनिता, तुम धात्री तुम हो दुहिता, तुम श्यामा तुम हो प्रियता, तुम सखी तुम हो ममता, तुम ओजवान अत्यंत, नारी तुम हो अनंत...... तुम हो दुर्गा तुम्ही भवानी, तुम हो भावजगत कल्यानी, तुम राधा, मीरा प्रेम दीवानी, तुम हो प्राणतत्व की दानी, तुम्हे प्रणाम जगवंत, नारी तुम हो अनंत........ परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो क...
विद्या का विस्तारक शिक्षक
कविता

विद्या का विस्तारक शिक्षक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** शिक्षा का उन्नायक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। रखता शब्दों का भण्डार करता उनके अर्थ अपार होता है व्याकरणाचार्य, उसमें भाषा पारावार। भावों का अनुवादक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। शिष्य जायसी अथवा सूर। करता है कठिनाई दूर। सहज-सरल उसकी प्रकृति, कभी नहीं होता वह क्रूर। प्रेरक मार्ग प्रदर्शक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। दयावान है अनुशासक भी निष्पादक है निर्णायक भी संपादक है निर्धारक भी, उद्घाटक है संचालक भी दुष्कर प्रश्न निवारक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। ज्ञान और अनुभव की खान उच्च बहुत उसका स्थान राष्ट्र-रीढ़ कहलाता वह, करे सतत् स्वदेश-गुणगान संस्कृति का परिचायक शिक्षक। विद्या का विस्तारक शिक्षक। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र...
गजानन महाराज
कविता

गजानन महाराज

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** भाद्र शुक्ल की चतुर्दशी, मनत है गणपति त्योहार। सवारी जिनका मूषक डिंक मोदक है उनका प्रिय आहार।। उमा सुत है प्रथम पूज्य, कहलाते गजानन महाराज। ऋद्धि सिद्धि संग पधार, पूर्ण करो मेरे सब काज। प्रिय मोदक संग चढ़े इन्हे, दूर्वा, शमी और पुष्प लाल। हे लंबोदर ! हे विध्न नाशक ! आए हरो मेरे सब काल।। हे ऋद्धि, सिद्धि दायक, हे एकदंत ! हे विनायक ! गणेश उत्सव को द्ववार पधारो बनो सदा हमारे सहायक।। बप्पा गणपति पूजा हेतु, दस दिवस को आए। पुत्र शुभ लाभ संग पधार, सारी खुशियां भर लाए।। फूल, चंदन संग अक्षत, रोली, हाथ जोड़ बप्पा हम करते वंदन। हे गणाध्यक्ष!, हे मेरे शिवनंदन, करो स्वीकार अब मेरा अभिनन्दन।। परिचय : अंकुर सिंह निवासी : चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
गुरु
कविता

गुरु

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गुरु! तुम हो सृजनहार धरा पर! और माटी के लोंदे हम!! रौंध-रौंध के...थाप-थाप के... सजग प्रहरी-सी संभाल से... देकर भीतर से सहारा! रचा तूने ओ सृजनहारा!! सारी खर-पतवार निकाली... जितने भी खोट के थे उगे! सारे कंकड़-पत्थर बीने... जो घट की सुंदरता छीने!! अहंकार की गांँठ कुचल के! दी विनम्रता की लुनाई!! अज्ञानता की गहन कारा से ले चला निकाल, पकड़ बाहें.. ज्ञान के आलोकमय पथ पर.. निज साँसों की ऊर्जा देकर!! प्रभु ने तो बस जन्म दिया! गुरु ने जीवन को अर्थ दिया!! आहार निद्रा भय मैथुन से उठा... धर्म कर्तव्य का पाठ पढ़ाया!! पशुता की कोटी से निकाल... मनुजता के आसन पर बिठाया!! लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष स्वार्थ से ऊपर स्नेह सौहार्द्र त्याग परोपकार बताया!! बताया: हम हैं कुल से विखण्डित जीवात्मा! सर्वोपरि है सृष्टि कर्ता गोविंद परमात्मा!! गुरु तुम हो पारस से बढ़कर! ...
गुरु नवचेतना वर दो
कविता

गुरु नवचेतना वर दो

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** ज्ञान चाहता है अंतर्मन हर्षित हो जाएं जन जन करते मन में हम यह प्रण शिक्षा का करें अभिनंदन अनुपम प्रकाश भर दो गुरु नवचेतना वर दो। चारों ओर है घोर अंधेरा कर सकते हो तुम उजेरा ज्ञान का होवे यहाँ बसेरा सुख सूर्य का रोज सवेरा ऐसी शक्ति भर दो। गुरु नवचेतना वर दो। नफरत और ईर्ष्या मिट जाए ऊंच-नीच का फर्क मिट जाए जाति-पांति का भेद मिटजाए परस्पर समता भाव लहराए ऐसा ज्ञान भर दो। गुरु नवचेतना भर दो। आज समय की मांग पुकारे कर सकते हो तुम्हें उबारे तुम्ही हो भारत के रखवाले राष्ट्र निर्माता पूज्य हमारे ऐसे गुरु भक्ति दो। गुरु नवचेतना भर दो।। जगती का उद्धार तुम्हीं हो मुक्ति का सही मार्ग तुम्हींहो प्रेम का सद्व्यवहार तुम्हीं हो नैया की पतवार तुम्हीं हो बुद्धि विकास वर दो। गुरु नवचेतना वर दो।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, स...
सपनों को सच होने दो
कविता

सपनों को सच होने दो

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** सपनों को सच होने दो, जीवन को मत रोने दो, जीवन है बहुमूल्य हीरा, जीवन को जग से जीने दो, सपनों को सच होने दो तुम! रह ना जाए कोई बेकार, जीवन को मत भूलने दो, जीवन है फूलों का हार, जीवन को जग जितने दो, सपनों को सच होने दो तुम! प्यार के चक्कर मे पडोगे तो, मोबाइल मे रहोगे तुम, जीवन दो पल की चीज है, इस पल को बर्बाद करोगे तुम, सपनों को सच होने दो तुम! जीवन मे ऐसा करो तुम, तुम्हारे पीछे पूरी जहाँ घूमे, ना किसी के प्यार के चक्कर मे पड़ो तुम, ऐसा करो की तुम्हारे चक्कर मे दुनिया पड़े, सपनों को सच होने दो तुम! कॉल करके रास्ते मे बुलाती हो, मिलने के बहाने पढ़ने जाती हो, अभी तक तुम ना सम्भलोगी तो तुम, तुम्हारी दुनिया नर्क बन जाएगी एक दिन, सपनों को सच होने दो तुम! शिक्षक तुम्हें ज्ञान सिखलाते, कभी ना तुमको गलत राह दिखलाते, तुम शिक्षकों का आदर करोगी तो...
दर्दे जख्म
कविता

दर्दे जख्म

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** कभी पूछा तो होता दर्द क्यों होता है मैं क्या बताऊं दर्द रिश्तो को तोड़ भी सकता है दर्द रिश्तो को जोड़ भी सकता और जोड़ता भी है समय-समय पर इससे पहले कि दर्द उठे वक्त-इज्जत-का ध्यान तो हर बार रखो चेहरा तो हंसता रहे-जब दिल में दर्द हो यह चेहरा ही है जो दर्द ओ गम दिखाता है रिश्ते टूट जाए तो दिल का परिंदा उड़ जाता है कांच का टुकड़ा गिरता है तो इंसानी जख्म बना देता है यह जख्म कभी कभी-नासूर बन जाते हैं जिंदगी के दर्दों से-बच के चलो हिम्मत से चलो-संभल के चलो देखो किसी को चोट ना लगे सामान को भी संभाल कर रखो तन मन को भी संभाल कर रखो देखो किसी के जख्मों पर चोट ना लगे आप अपना फर्ज निभाते चले जाओ इसका परिणाम मत लो जिंदगी की खुशबू है इस खुशबू को चारों ओर फैलने दो बस मुझसे मत पूछो दर्द क्या परिचय :- प्रवीण कुमार बहल जन्म : ११-१०-१९४९ पिता : ड...
सिक्के के पहलू
कविता

सिक्के के पहलू

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सिक्के के दो पहलू जैसे, निर्णय में होते दो जवाब। अच्छा या कम अच्छा, एक हो सकता बहुत खराब। अलौकिक दुनिया में कभी, भाग्य एक सा नहीं होता। देखा नहीं दुख अभी तलक, कोई उम्मीद रोशनी खोता। दुख दरिया का पड़ाव, कब बन जाता सैलाब। सिक्के के दो पहलू जैसे, निर्णय में होते दो जवाब। अच्छा या कम अच्छा, एक हो सकता बहुत खराब। किनारे नज़र ना आये कभी, जुगनू भी नहीं होता। कुछ आशाओं की मंशा में, रात रात नहीं सोता। हाथ खींचते नज़र चुराते, काम ना आये कभी शराब। सिक्के के दो पहलू जैसे, निर्णय में होते दो जवाब। अच्छा या कम अच्छा, एक हो सकता बहुत खराब। वक़्त पलटकर रख देता, निश्चय फिर पलटे जरूर। कर्मरथी के राही को, दायित्व बोध बने सुरूर। जब सीखे संस्कार घरों से, जीवन जीते ज्यों नवाब। सिक्के के दो पहलू जैसे, निर्णय में होते दो जवाब। अच्छा या कम अच्छा, एक हो ...
वो देश के शहीद
कविता

वो देश के शहीद

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** जब एक उम्र थी हमारी जोश था देश के लिए कुछ तो करने का सपना ऐसा कि कुछ मैं कर जाऊँ जैसे वो देश के शहीद कर गए हम घरों में बैठे होते हैं हर सुख लिए हो गर्मी, सर्दी, बरसात कि उमंग लिए मेरी भी दीवानगी देश प्रेम की है ऐसी जैसे वो देश के शहीद कर गए हम न कभी डरे ना कभी पीठ दे भागे हर दाँव का जवाब हम देते गए मौका मिला करने का तो कोशिश की जैसे वो देश के शहीद कर गए हिन्द को आजाद कराने में भूमि को नेताओं, क्रांतिकारियो की है रही देश भक्ति महिलाओं में भी हमनें देखी जैसे वो देश के शहीद कर गए जवानों के नाम गुमनाम नहीं हैं हर माँ, बहन, पत्नी, दोस्तों के दिल में हैं समाज को भी उनकी कुर्बानी याद है जैसे वो देश के शहीद कर गए हम तो उस घर की बेटी हैं जहाँ पिता, भाई, चाचा सेवा करते हैं पिता ने देश के लिए सुख छोड़े जैसे वो देश के शहीद कर गए परिचय ...
श्रद्धा ही श्राद्ध है
कविता

श्रद्धा ही श्राद्ध है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** श्रद्धा ही श्राद्ध है। इसमें कहाँ अपवाद है। सत्य .....सनातन सत्य। जो वैज्ञानिकता का आधार है। इसमें कहा अपवाद है। श्रद्धा ही श्राद्ध है। सत्य-सनातन संस्कृति पर, जो उंगलियां उठाते है। इसे ढोंगी, ढपोरशंखी बताते है। वो भरम में ही रह जाते है। आधें सच से, सच्चाई तक, कहाँ पहुंच पाते है। श्राद्ध श्रद्धा और विश्वास है। यह निरीह प्राणियों की आस है। यह मानव कल्याण का सृजन है। यह पर्यावरण का संरक्षक है। यह ढ़ोग नही है। यह ढ़ाल है। यह मानव का आधार है। इसीसे निकलें, सभी धर्म और विचार है। सत्य सनातन को , कौन झुठला सकता है। लेकिन अफवाहें फैला कर। इस पर आक्षेप तो लगा ही सकता है। रीतियों को, कुरीतियां बता कर, कटघरे में खड़ा तो, कर दिया गया। क्या......? हमनें और आप ने, सच को समझने का, कभी हौंसला किया। हम समझें नही। लेकिन हमने, हां में हां तो ...
मानवता
कविता

मानवता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज धरा पर उन्माद बड़ा है, मानवता खतरे में पड़ा है! "महाविनाश" की तैयारी मे विश्व-पटल पर कुचक्र बढा हैं! चीन राष्ट्र ही इसकी धुरी हैं यह विस्तार वाद की नीति गढा है आज "मानवता" खतरे में पड़ा है। जल, थल, नभ में खतरे की, महायुद्ध की उन्माद जगह है। पुनः हिमालय कि तुंंग शिखर को, दुश्मन फिर ललकार रहा है। एटम, हाइड्रोजन नये प्रक्षेपास्त्र से रण कौशल में सैन्य सजा है आज धरा पर उन्माद बड़ा है। भुखमरी बेरोजगारी से लड़ने के बदले मानव-मानव का शत्रु बना है। भारत की शांति नीति को चीन पाक ठुकरा रहा है। विश्व युद्ध की आहट से मानवता खतरे में पड़ा है। खबरदार हो जाओ दोनों पुनः बुद्ध मुस्कुरा रहा है। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com...
तुम साथ रहना
कविता

तुम साथ रहना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** दिन हो चाहे रात, तुम साथ रहना बिगड़े कोई बात, तुम साथ रहना! जिंदगी की डोर है अब तेरे ही हाथ समझ मेरे जज्बात, तुम साथ रहना! दूरियों के दिन भी जैसे-तैसे गुजरेंगे रंग लाएगी मुलाकात, तुम साथ रहना! हमारा मिलना भी अखरेगा कुछ को उठते रहेंगे सवालात, तुम साथ रहना! हर पल खड़ा मिलूंगा मैं तुम्हारे साथ चाहे जो हो हालात, तुम साथ रहना! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय ...
लोक अदालत और गांधी दर्शन
कविता

लोक अदालत और गांधी दर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सभी सुखी खुशहाल रहे सब, गांधी जी का ये सपना था। भले कोई कितना दुश्मन हो, वो भी तो उनका अपना था गांधी के सपनों का भारत, ये था इसको याद रखें हम। उनके पदचिह्नों पर चलकर, भारत को आबाद रखे हम।। सत्य अहिंसा की ताकत से, कबतक कतराएगी दुनिया। है विश्वास यकीनन एकदिन, इस पथ पर आएगी दुनिया।। जिसकी लाठी भैंस उसी की, क्या ये सोच बनी फलदाई। झगड़े से झगड़ा बढ़ता है, क्या दिल से आवाज न आई।। सदा युद्ध के परिणामों में, जीता एक, एक हारा है। पर क्या हार जीत ने कोई, समाधान को स्वीकारा है।। समाधान की दिशा अहिंसा, इसमें कोई हार नहीं है। जश्न जीत का दोनों ही मिल, मना सकें त्यौहार यही है।। नही फैसले, समाधान की, ओर बढ़ें तो सुख पाएंगे। लोक अदालत गांधी दर्शन, है ये सब को समझाएंगे।। जड़से अगर समस्या कोई, खत्म हमे करना है लोगों। "अनन्त" गांधी दर्शन को ही, आज ...