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कविता

कब तक बेचारी कहलाओगी?
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कब तक बेचारी कहलाओगी?

ममता रथ रायपुर ******************** कोई खींचेगा वस्त्र तुम्हारा कोई तुम पर मर्दानगी दिखाएगा बलात्कार, हत्या से अब तुम ही खुद को बचाओगी शस्त्र कब तक ना उठाओगी? यह कलयुग है सतयुग नही यहां शील बचाने कोई आएगा नहीं इन दु:शासन से बचने को अब कब तक ना शस्त्र उठाओगी आदमी के खाल में घुम रहे हैं भेड़िए स्नेह की आस किससे लगाओगी अब खुद को कितना सताओगी आखिर कब तक बेचारी कहलाओगी परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
स्वीकार करो
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स्वीकार करो

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** जो होना है वो होता है, तो फिर काहे को रोता है....। नागफनी से भरा हो मरुस्थल, या गुलाब से खिला हो उपवन। काँटो को तो जब सहना है। तो फिर कहे का रोना है। जो होना है वो होता है, तो फिर कहे को रोता है....। फ़ुहारों से भीगा हो मरुस्थल, या बरखा से महके उपवन। ना भीगा मन का वो कोना है, तो फिर कहे का रोना है। जो होना है वो होता है, तो फिर काहे को रोता है....। उष्ण बयार से तपे मरुस्थल, या पवन से हो शीतल उपवन। मधु से भी जख्मों को सीना है, तो फिर काहे का रोना है। जो होना है वो होता है, तो फिर कहे को रोता है....। शुष्क रेत से जमा हो मरुस्थल, या कीचड़ से सना हो उपवन। हँस-हँस कर जब जीना है, तो फिर काहे का रोना है। जो होना है वो होता है, तो फिर काहे को रोता है....। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. ...
याद रखना बिटिया
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याद रखना बिटिया

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** कोख में लेकर यत्न किया, तुझे जन्म दिया नींद देकर तुझे, खुद न कभी चैन लिया एक आह सुन तेरी, कई रातें जिसने न सोया उस माँ की ममता को याद रखना बिटिया। भूखा रह खुद, जिसने निवाला दिया तुझे पालने हेतु खेतों में दिन-रात काम किया कर्ज लेकर भी मुरादें तेरी, जिसने पूरी किया उस पिता का समर्पण याद रखना बिटिया। अपनी खुशियां त्याग, सपनों का बलिदान दिया पढ़ाने के लिए तुझे, खुद पढ़ना छोड़ दिया तेरी फीस जमा करने हेतु जिसने मजदूरी किया उस भाई का बलिदान याद रखना बिटिया। लक्ष्य मिले तुझे अपना, हर संभव प्रयास किया मंजिल अपनी पा ले तू, वह धैर्य-साहस दिया विपदाएं तेरी सारी, जिसने खुद झेल लिया उस बहन की उम्मीदें, ध्यान रखना बिटिया। खुद्दारी से अपनी, समाज में थोड़ा सम्मान पाया गरीबी में गुजार दी जिंदगी, कभी दगा न किया मेहनत कर ही कमाया और सभी को ख...
जीवन का सफर
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जीवन का सफर

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** तमाम उम्र निकल जाती है, और हम समझ नही पाते कि एक सफर ही तो है जिंदगी जिसका मुकाम सिर्फ एक है,,,,, चाहे राजा हो या हो फकीर अंत सबका एक ही है।।।। बीच मे आते है कई पड़ाव कभी खुशी के, कभी गम के और हम चलते जाते है बस चलते ही जाते है सफर में मिलते जाते है कई मुसाफिर और बिछड़ते भी जाते है और देते जाते है नए अनुभव कभी मीठे, कभी कडुवे और हम उन अनुभव की गठरी बाँधे आगे बढ़ते जाते है कभी खुश होकर, कभी रोकर बस चलते जाते है लेकिन चलना तो अकेले ही है सफर में,, साथी तो बहुत है राह में....... कभी परिवार, कभी दोस्त,कभी प्यार लेकिन जो हर पल साथ निभाये वो हम खुद ही है यार........ तो क्यों किसी से उम्मीद रखें कि वो आपके साथ चले रख भरोसा खुद पर और अपने सफर की राह पकड़,,, कुछ करगुजर मुकाम आने से पहले कि लोग तेरे सफर को याद करे,,, एक खूबसूरत सफर है जिंदगी जिसको तू ...
काम नही–वेतन नही
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काम नही–वेतन नही

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** काम है.... तो वेतन है। अक्सर यही कहा जाता है। ईश्वर तो अपने काम का, कोई भी वेतन नही पाता है। बस सब बनाये जाता है। काम है... तो वेतन है। बस इंसानी कामों को, वेतन दिया जाता है। काम करा कर, धनाढ्य सेठों द्वारा, वेतनभोगी का, आधा हिस्सा मार लिया जाता है। वो जीवन की जरूरतें भी, बड़ी मुश्किल से जुटा पाता है। साहूकार बनता जाता है, दूसरे के मारें वेतन से, तनता जाता है। फिर अपने नीचें, काम करने वालों पर, अपशब्दों से चढ़ता जाता है। वेतन पाने वाला, मंहगाई से दबता जाता है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अप...
एक बहाना था
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एक बहाना था

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** पतंग ऊड़ाने का तो एक बहाना था इसी बहाने तुमसे मिलने आना था नज़र क्या चूके हम, घोर से देखो कटी ऊॅगली तुमको दिखाना था नज़र अंदाज कर रहे थे कभी कभी हक़ीकत-ए-नज़रो से खीजाना था भिन्न रंगो से सज रहा आसमा अपना इन्द्र धनुषी रंगो मे तुमको भीगोना था यही मिलन का एक रंग हे मेरा बार-बार तिरे दिल को लुभाना था "मोहन" तो इक रंग मे डूब गया हे बस इसमे तुमको भी अब नहाना था परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्...
प्रीत की पाती
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प्रीत की पाती

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुमसे परिणय कर मैंने, धन्य किया जीवन अपना। ओ बाला तुम अपने आँगन, पल प्रति पल प्रसन्न रहना। जब कभी स्मरण हो मेरा, नमन माँ को करना तुम। जिसने मुझे बड़ा किया, उनसे प्रेरणा लेना तुम। ओ बाला तुम अपने आँगन पल प्रति पल प्रसन्न रहना। जब कभी स्मरण हो मेरा, बालक को गले लगाना तुम। धीर वीरों सी वीरता, उसको भी सिखलाना तुम। ओ बाला तुम अपने आँगन पल प्रति पल प्रसन्न रहना तुम मेरे नयनो की ज्योति, तुम ही मेरी समर्थ शक्ति। मात-पिता की हितकारी, अपने बच्चों की अनुरागी। तुमसे परिणय कर मैंने, धन्य किया जीवन अपना। ओ बाला तुम अपने आँगन पल प्रति पल प्रसन्न रहना। परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव पुष्प सेवा समिति कि सामाजिक कार...
मृगतृष्णा
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मृगतृष्णा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सागर की गहराई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! निर्धन-निर्बल है परिवार! कुटिया है आवासाधार! परिणय योग्य आत्मजा सहित, कुल सदस्य संख्या है चार! आँगन की शहनाई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! कानन में काटे सब वृक्ष! बना उपनगर व्यापे कक्ष! पर्यावरण हुआ आहत, मौन ही रहे पक्ष-विपक्ष! बस्ती में अमराई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! नभस्पर्शी बने भवन हैं! बढ़ती जाती और लगन है! नियमित भू से दूर हो रहे, लटकन जैसा अब जीवन है! सदन संग अँगनाई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! स्वार्थकेन्द्रित है अब मानव! अंतर में रहता है दानव! पर परिचय की बात करें क्या, आत्मबोध हो गया असंभव! अपनी ही परछाई लगती मृगतृष्णा है! अंबर की ऊँचाई लगती मृगतृष्णा है! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रश...
वंदे मातरम
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वंदे मातरम

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वंदे मातरम वेद मंत्र हैं नित इसका उच्चार करें। आओ भारत वासी मिलकर भारत का जयकार करें॥ सूरज की पहली किरणे जब वंदे मातरम गाती हैं। मंदिर में घंटी बजती हैं चिड़िये दाना खाती हैं॥ खुलते हैं विधा के मंदिर पुस्तक पूजी जाती हैं। मिलता हैं निस ज्ञान हमें यहाँ मानव एक हीं जाति हैं॥ गुरु शिष्य की, परंपरा की शिक्षा मिली, पुराणों से। अडिग रहो, निशदिन पथ पर कुछ सीखों, पेड़ पहाड़ो से॥ अनुशासित मय, हों जीवन यह चलना सदपुरुषों, के पथ पर। ले राष्ट्रभक्ति का, गौरव रथ बढ़ना निस्वार्थ विजय पथ पर॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ ...
अनंत
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अनंत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कठिनाइयों में सोचने की शक्ति आर्थिक कमी से बढ़ जाती संपन्न हो तो सोच की फुरसत हो जाती गुम। अपनी क्षमता अपनी सोच बिन पैसों के होजाती बोनी पैसे हो तो घमंड का बटुवा किसी से सीधे मुँह बात कहा करता। बड़े होना भी अनंत होता हर कोई एक से बड़ा छोटा जीता अपनी कल्पना और आस की दुनिया में। आर्थिकता से भले ही छोटा हो मगर दिल से बड़ा और मीठी वाणी से जीत लेता अपनों का दिल। बड़प्पन की छाया में हर ख़ुशी में वो कर दिया जाता/या होजाता दूर। इंसान का ये स्वभाव नहीं होता पैसा बदल जाता उसके मन के भाव जिससे बदल जाते स्वभाव जो रिश्तों में दूरियां बना मांगता ईश्वर से और बड़ा होने की भीख बड़ा होना इसलिए तो अनंत होता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन...
सूफियाना हुआ दिल
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सूफियाना हुआ दिल

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** सूफियाना हुआ दिल मचलने लगे हम। तेरी याद में नगमे पढ़ने हम।। कैसे बताए क्या चाहते हम। तेरी खुशबू में जो महकने लगे हम।। सूफियाना........ तेरे जुल्फों की घनी छांव में। दबी उंगलियों संग उलझने लगे हम।। तेरी याद में..... मेरे दिल के घरौंदे में आओं कभी थोड़ा बहक जाऊं मैं भी तेरे आगोश में सूफियाना ...... मैं भी बंजर हूं, बेकार सा थोड़ी उग जाओं तुम भी मौसमी पौध सी... सूफियाना ......।। परिचय :- रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com प...
दुल्हन ही दहेज है
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दुल्हन ही दहेज है

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** वास्तव में दहेज का अर्थ स्वेच्छा से दिया गया उपहार होता है, लड़की के मां-बाप का उस उपहार में स्नेह और प्यार होता है। समाज के कुछ लोभी और लालची ने स्नेह व प्यार के उपहार को व्यापार का बना दिया, भारतीय समाज में दहेज रुपी अभिश्राप फैला दिया। देश के कानून ने दहेज लेना व दहेज देना दोनों अपराध बना दिया, फिर भी समाज ने इसे देना-लेना बन्द नहीं किया। मानव तुने अपने ही समाज में ये कैसी कुप्रथा फैला दिया, दहेज लोभी को अपनी बेटी देकर उसको आत्महत्या करने पर विवष कर दिया। हर व्यक्ति की मानसिकता को इस समाजिक कुप्रथा ने बदल दिया, बहुमुल्य उपहरो के साथ बहू घर में आई तो समाज ने अच्छा मान-सम्मान बढ़ा दिया। मेरी बहू महंगे-महंगे उपहार घर में लाई है, समाज में मेरा मान-सम्मान बढ़ाई है। जबकि घर बहू के अच्छे संस्कार व कुशल व्यवहार से चलता है, ...
तू सब कुछ जानता है
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तू सब कुछ जानता है

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** कहते हैं तू सब कुछ जानता है। पर क्या मेरे मन की पहचानता है।। कहते हैं तु सब जगह साथ साथ है। तो क्या तू मेरे भी आस-पास है ।। कहते हैं तुझे तो सबकी ही फिक्र है। पर क्या तेरे यहां मेरे दर्द का भी जिक्र है।। कहते हैं सब कुछ तेरी मर्जी से होता है। यह तो बता अच्छा इंसान ही क्यों रोता है।। कहते है तू ही तो बेसहारो का सहारा है। तो क्या मेरी कश्ती का भी तू किनारा है।। इन सब सवालों का जवाब सिर्फ आस है। जैसा भी है जो भी है मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है।। परिचय :-  मनीषा शर्मा जन्म : २८/८/१९८२ शिक्षा : बी.कॉम., एम. ऐ. लेखन शुरुआत वर्ष : लेखन में रुचि बचपन से है लेखन विधा : कविता ,व्यंग्य ,कहानी समसामयिक लेखन। व्यवसाय : आकाशवाणी केंद्र इंदौर उद्घोषक निवासी : इंदौर म.प्र. घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
मजनूं
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मजनूं

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तुम्हारी गली से गुजरा था कई बार यकीन मानो। ना जाने क्या सोचकर रह गया। तुमसे मिल ना सका मैंने तुम्हारे घर की खिड़की देखी पैबंद लगा टाट का पर्दा नहीं था वहां। लहराता रेशमी पर्दा मानो कह रहा था। "वह अब यहां नहीं रहती" पर्दों के इनकार को सही मान लिया। तुमसे मिल ना सका। तेरे दर की चौखट से आती रोशनी, खूबसूरत रेशमी पर्दों की शान बढ़ा रही थी। पंखे की तेज हवा उसके इतराने में मददगार थी। तुम भला यहां कैसे रह सकती थी? मैंने समझाया अपने मन को। तुमसे मिल न सका। बड़ी खाला के खखारने की आवाज खामोश हो गई थी। शायद बदले में रुक रुक कर खिलखिला हट की गूंज रही थी। बाहर रखी हसीन चप्पलें मानो कह रही थी । "कौन चाहिए?" आंखों की कोरें शरारती हंसी से भरी होती। मैं दीवाना इतना भर कह आगे बढ़ गया "कोई नहीं" असल में तुम्हारी चप्पल देख रहा था जैसे चोर ...
आजादी के मतवाले सरदार भगत सिंह
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आजादी के मतवाले सरदार भगत सिंह

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी भगत सिंह नाम था, आजादी रग रग में बसे, आजादी पाना काम था, अंग्रेजों से किया मुकाबला, आजादी दीवाना था, अत्याचारों के आगे न झुके, ऐसा वो परवाना था। केंद्रीय संसद में बम फेंके, सांडर्स को जाके मारा, सुनकर उनकी दीवानगी, खून खौलता है हमारा, रंग दे बसंती चोला गीत, सिर चढ़कर बाला था, अंग्रेजी हुकूमत खातिर, बम, बारूद व गोला था। असहयोग आंदोलन जब, पूरे देश में फेल हुआ, भगत सिंह, राजगुरु सुखदेव, क्रांतिकारी नाम दिया बंगा गांव में जन्में थे, भागोंवाला उन्हें नाम दिया, ऐसा बहादुर वीर जिन्होंने पूरे जग में नाम किया। जिस दिन उनका जन्म हुआ, शुभ दिन कहलाया उस दिन उनके चाचा अजीत, सुवर्ण, कृष्ण आये उनके पिता किशन सिंह, निज भाई गले से लगाये भगत की दादी मां, बेटों को देखकर अति हर्षाये २३ मार्च १९३१ को अंग्रेजों ने, उ...
बेटी करे पुकार
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बेटी करे पुकार

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** बेटी करे पुकार चित्कार! मांँ मुझे दे तु कोख में मार!! बाबा तुम मेरी सुनो अरज! मुझे ना लाओ इस धरा पर!! हे राष्ट्र के पालक पिता! दें सुतों को अनुशासन उम्दा!! मेरी तो रूह काँपती है देख देख... कालिख सनी विक्षिप्तों की उन्माद रेख!! सुनो आर्यावर्त की प्रणम्य जननी! लांक्षित है तेरे पूतों की करनी!! पुत्र रत्न पाकर ही न हो जा धन्या ! संस्कार सिखा, सम्मान करें कन्या!! गढो़ पूतों के चरित्र तुम उज्ज्वल! देखें हर बाला को वे नयन विमल!! ना करें किसी कन्या-आत्मा का दमन! हर कली निर्भय विचरे राष्ट्र चमन!! विकृत! तेरे कृत्य से पशु लज्जावनत! लज्जित मानव: गरिमा को संघर्षरत!! उदात्त भाव से करें स्व को संपृक्त! नारी शक्ति पूज्य निज संस्कृति समृद्ध!! समाज के पहरूओ! सुत विकृति मुक्त करो.... तब कन्या-आगमन लालसा से भरो!! हर बेटी के जन्म पर हर्षित हों नयन! म...
जाओ खेलो बेटियों
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जाओ खेलो बेटियों

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** स्तब्ध है यह मन मेरा कहीं प्राण भी अशक्त है खो न जाए इस जहाँ में मन में अन्तर्द्वन्द है जन्म से ही मन है शंकित धडकनें अब मंद है हाथ उसके रक्त रंजित फिर भी वह स्वच्छंद है कहा न जाए सुना न जाएं ऐसी उसकी दर्द गाथा शोर पर है शोर होता पर जहाँ निशब्द है इस जहाँ में “सुकून” कही भी ढूंढ दे ऐसी जगह जहाँ उसको छू न पाए हाथ जो उद्दंड है जाओ खेलो बेटियों तुम भी जहाँ में पारियां जान जाए मान जाए हो रही अब शिकस्त है परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
सैनिक की कुर्बानी
कविता

सैनिक की कुर्बानी

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ये फैलाई गई है चीनों की आतंकित जाल माया डराने को भारत पर क्यों चीन ने डाली है कू छाया कह दो उनसे हाँ नहीं किसी से है भारत भी कम बुलंद जज्बा रखते हैं बाजुओं में है लड़ने का भी दम अब तो डट चुकी सेना हमारी इन्डियन चायना बॉर्डर पर ले तिरंगा हाथ लगा जय हिंद नारा, बाँध कफन सर बेवजह के जुल्म ढाने वालों से हम कभी भी नहीं डरेंगे हर आतंक फैलाने वालों को गोली से भून कुचल डालेंगे हमनें नहीं की शुरूवात कभी किसी पर भी भारत ने पहले अब बगावत और भ्रष्टाचार नहीं सहेगे हम भी बिल्कुल उनके इतनी सस्ती नहीं है जान भारत के हमारे वीर जवानों की अब जंग मैदान में दिखा देगें सैनिकों कीमत बन बहादुरों की ऐसी संख्या माया की आज तक बनी ही नहीं देश प्रेमों की जो अपना लहू बहाते हैं देश भक्ति पर, हँसते-हँसते जानें देते कभी मिट जातें हैं माँ के वीर जन्में वो जब भ...
मुसाफिर
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मुसाफिर

पवन जोशी रामगढ़- महूगांव महू (म. प्र.) ******************** राहें तांक रही है चल मुसाफिर चलते जा। मंजिल बाकी है रोड़ो को बस छलते जा।।१ धूप है दोपहर की तो क्या शाम भी तो आएगी। बेकार नहीं वो सीखें हर ठोकर काम ही तो आएगी।। कांटे भी होंगें जख्म चुभन तक सहते जा। राहें तांक रही है चल मुसाफिर चलते जा।।२ अपने साये सी परछाई को तू छांव बना। गहरा है दरिया तू चुन तिनका और नाव बना।। सुन जग के ताने उन तानो से अपनी तान बना। आते जाते है ढेरों हट कर अपनी पहचान बना।। आस जीत की लक्ष्य आँखों में बस जगते जा।। राहें तांक रही है चल मुसाफिर चलते जा।।३ थकान तो लगती है ठहर दम भर पर रुक मत जाना। बैठै है वो लेकर सांचे आकर झांसे में झुक मत जाना।। ऊंची कर उड़ान ये अपनी के कोई छू न पाए। बरसेंगें बादल तो छा एसा के छप्पर चू न पाए।। तेज भले हो दरिया मौके तक धारा सगं बहते जा। राहें तांक रही है चल मुसाफिर चलते जा।।४ ...
कब तक?
कविता

कब तक?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आखिर कब तक हम बेटियों के साथ हो रही दरिंदगी को देखते रहेंगे। कब तक सख्त कदम उठाने का ढोल पीटते रहेंगे। सख्त कारवाई और कड़ी सजा की आड़ में हम बेटियों की लाशों पर बेशर्म बन रोते रहेंगे। आखिर कब तक हम बेटियों से होती दरिंदगी के बाद हो रही उनकी मौतों पर, उनकी वीभत्स लाशों पर यूँ ही घड़ियाली आँसू बहाते रहेंगे। कब तक हम बेटी बचाओ और बेटी दिवस के नाम पर बेटियों को झुनझुना पकड़ाते रहेंगे। कब तक हम यूँ ही खुद को समझाते रहेंगे। एक और बेटी के साथ हो दरिंदगी की सिर्फ़ बाट जोहते रहेंगे, फिर वही अपना कोरा राग कड़ी कारवाई ,सख्त सजा का राग अलापते रहेंगे। बेटी डर कर जिये या दरिंदगी का शिकार हो मरती रहे हम मुगालते का शिकार हो कब तक खुद को बहलाते रहेंगे। बटी की दर्द पीड़ा से खुद को बचाते रहेंगे। आखिर कब तक.....कब तक और कब तक। परिचय :- सु...
मैं भी पढ़ने जाऊंगा
कविता

मैं भी पढ़ने जाऊंगा

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा। सीख सीख कर सारी बातें, तुमको भी बतलाऊंगा। माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा। पांच जन्मदिन बीत गए हैं, अब स्कूल जाना है। पढ़ लिखकर बनूँगा अफसर, ऐसा मैंने ठाना है।। बैठके ऊंची कुर्सी पर, मैं भी हुकुम चलाऊंगा। माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।। गणवेश का कपडा लाना, अच्छे दर्जी से सिलवाना। जूते मोज़े और स्वेटर, अपने हाथों से पहनाना।। पहनकर कोट सबसे ऊपर, मैं भी टाई लगाऊंगा। माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।। बस्ता लाओ अच्छा सुंदर, छपा हो जिसपे भालू बंदर। रबर पेन्सिल और किताबें, मम्मी रखना उसके अंदर।। जेब में रखकर दस का नोट, मैं भी चिज्जी खाऊंगा। माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।। पढ़ लिखकर हम बने महान, पूरा हो सर्व शिक्षा अभियान। माता पिता और गुर...
प्रकृति और मानव
कविता

प्रकृति और मानव

सुनीता पंचारिया गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ******************** प्रकृति और मानव का, रिश्ता बहुत पुराना है, हम प्रकृति से, प्रकृति हम से है, साधु संतों के आध्यात्म में, विश्व की सभ्यता के विकास में, मनुष्य की चीर सहचरी, ईश्वर प्रदत्त उपहार है। भावाभिव्यक्ति का उद्गम स्थल, सर्वव्यापी सत्ता का भाव है। प्रकृति नदियों की कलकल, समुंदर की हलचल, रिमझिम सावन की बरसात है, मौसम का मिजाज है। लेकिन..... जब मानव मन में लालच जन्मा, ताप बढ़ा धरती का, धरती कांपी अंबर कांपा कांपा ये संसार, बूंद बूंद पानी को तरसा ये सारा जहान, गुस्सा फूटा प्रकृति का किया जो तूने खिलवाड़, बढाधरती पर भूकंप बाढ़ व सुखा सैलाब का तूफान, नहीं बचा पाएगा तू अपना सम्मान रे। मानव तू नहीं सुधरा तो, दूर नहीं विनाश रे, मुझ पर कहर खूब ढाया, अब बारी मेरी है। मैं थी और मैं हूं और मैं रहूंगी, पर तेरा अस्तित्व नहीं रहेगा, यह कहावत सिद्ध हो पाई "जै...
साहित्य की प्रतिज्ञा
कविता

साहित्य की प्रतिज्ञा

श्रवण कुमार सायक ग्राम दूबकला, (श्रावस्ती उ.प्र.) ******************** सत्ता का गुणगान करें हम साहित्य को ग़ुलाम करें हम ऐसा हरगिज हो नहीं सकता ऐसा सायक लिख नहीं सकता स्याही पर आग लगा दूंगा तुझमें में मैं क्रांति जगा दूंगा शब्द शब्द अंगार लिखूंगा वीरों का श्रृंगार लिखूंगा माता का वह त्याग लिखूंगा आज सपूतों जाग लिखूंगा सिंहासन पद भ्रष्ट हो गए न्याय देवता सटट् हो गए राजा का शीश झुका दूंगा साहित्य को अमर बना दूंगा साहित्य राह दिखलाता है राजा को पुनः जगाता है सब ओर क्रांति छा जाएगी यह कलम वही सुस्तायेगी परिचय :-  श्रवण कुमार सायक शिक्षा : एम.ए., बी.एड. निवासी : ग्राम दूबकला जनपद- श्रावस्ती उ.प्र. घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...
महात्मा गाँधी
कविता

महात्मा गाँधी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पावन पोरबंदर के परम प्रिय पुत्र गुजरात के गर्व और गौरव भारतभू के परिचायक भारतीय संस्कृति के गुणगायक भारतीय भाषाओँ के संरक्षक हिन्दी राष्ट्रभाषा होने के अभिलाषी विश्वदृष्टा ऐतिहासिक युग-पुरुष मनसा वाचा कर्मणा सत्याग्रही अहिंसा के ध्वजवाहक प्रेम के पोषक-प्रचारक कुशल वक्ता लेखक संपादक विश्वबंधुत्व के पक्षधर साबरमती के 'बापू' गुरुदेव के शब्दानुसार 'महात्मा' नेताजी के मतानुसार 'राष्ट्रपिता' राजनीतिज्ञों में संत संतों में राजनीतिज्ञ रंगभेद नीति विरोधी महान मानवतावादी दलित-पीड़ित-शोषित के अभिभाषक स्वदेशी जागरण के प्रणेता सशक्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राष्ट्रीय आंदोलनों के सूत्रधार राष्ट्रीय एकता के संदेशवाहक "सादा जीवन उच्च विचार" के अनुकरणीय उदाहरण महादर्शवादी महानायक जिनका जन्म दिवस 'अहिंसा दिवस' और पुण्य तिथि 'शहीद दिवस' उन्हें शत-शत प्र...
हिन्दी ढूँढे पहचान
कविता

हिन्दी ढूँढे पहचान

दीप्ति शर्मा "दीप" जटनी (उड़ीसा) ******************** (हिन्दी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त रचना) हिन्दी के प्रेमी बनो, दो विशेष सम्मान। नित्य मने हिन्दी दिवस, ना हो अब अपमान।। मिलाती दिलों को सदा, लाती सबको पास। साहित्य की बहे नदी, भाषा है ये खास।। हिन्दी को सब पूज लो, वही हमारी मात। प्यार से लगाती गले, पूछे न कभी जात।। सोये भारतीय सुनो, जगाओ स्वाभिमान। हिन्दी भाषा अब बनें, हम सबकी पहचान।। देख स्वयँ की दुर्दशा, हुई आज हैरान। हाय व्यथा किससे कहे, है बड़ी परेशान।। भाषाओं की माँ यहाँ, ढूँढ रही पहचान। वो अपने ही देश में, बन गई मेहमान।। ए बी सी जाने सभी, वर्ण का नहीं ज्ञान। अंग्रेजी की धूम है, हिन्दी से अंजान।। हाथ जोड़ विनती करूँ, हिन्दी को दो मान। उसको कभी मिले नहीं, दोयम दर्जा स्थान।। परिचय :- दीप्ति ...