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कविता

सावधान… सावधान…
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सावधान… सावधान…

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बदमाशों की खैर नही कार्यवाही में देर नही नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। बबली को अब घूरना नही उसका पीछा करना नही छेड़ना उसे भूल जाना वरना पड़ेगा जेल जाना जागी चेतना जन जन में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। नष्ट होगा हर भक्षक डगर डगर पर है रक्षक बहकाना आसान नही न कहना विधि का ज्ञान नही मत समझ भोली भाली है हर बेटी यहाँ दुर्गा काली है गीत गाये हम लाडली तेरी शान में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। कैसी सुंदर फुलवारी है महक रही हर क्यारी है निडर हो घूम रही प्रदेश की हर नारी है कर सपने पूरे अपने भर उड़ान आसमान में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। होगा दानव का दलन चलेगा केवल नेक चलन बातें नही होगा समर बेटी की रक्षा में कस ली है कमर निर्भय हो विचरण कर चर्च...
अब और….. नहीं
कविता

अब और….. नहीं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** सिमटी-सिमटी जिंदगी में बसर। अब और नहीं... अब और नहीं। ठहरी -ठहरी राहों का सफ़र। अब और नहीं.. अब और नहीं। बांध ले अपनी हिम्मत को, तिल-तिल कर मरना । अब और नहीं.. अब और नहीं। सिमटी-सिमटी राहों में बसर। अब और नहीं.. अब और नहीं। आशाओं के दिए जला ले, निराशा को दूर भगा ले, वक्त बदलेगा । बदलना होगा...... वक्त को। जीवन का क्रूर प्रहास। अब और नहीं.. अब और नहीं। तुम अकेले नहीं। साथ यह धरा-गगन हैं। मिलेगी हर... राह पर मंजिलें। किस राह पर चलूं....यह सोचना। अब और नहीं.. अब और नहीं। तुझको अपने हाथों से, बदलनी है किस्मत अपनी। बदलेगी...... यह लकीरें। इस इंतजार में गुजर।। अब और नहीं.. अब और नहीं। गमों से भरें, जिंदगी में कल्पनाओं के भंवर। अब और नहीं.. अब और नहीं। जिंदगी को जीना है.. झेलना तो नहीं। जिंदगी से टकराव। अब और नहीं.. अब और न...
दावत पर बुलाया है
कविता

दावत पर बुलाया है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कभी दावत पर बुलाते थे, घर स्नेह निमंत्रण आते थे, प्रीतिभोज, मीठी वाणी से, प्रेम संग खाना खिलाते थे। दावत नहीं वो प्यार होता, खुशियों में दामन भिगोता, भाई भाई को पास बुलाता, आया नहीं जीवनभर रोता। दावत पर कभी बुलाते थे, बैठाकर खाना खिलाते थे, आदर और सम्मान देकर, उन्हें अपने पास बैठाते थे। बैठके खाना खाते थे जब, मन संतुष्टि मिल जाती थी, पानी पीते थे घड़े का ठंडा, मन में खुशी छा जाती थी। शास्त्रों में भी बताया जाता, बैठके खाना खाओ हरदम, रोग दोष से दूर रहोगे फिर, तन व मन में आएगा दम। वक्त ने पलटी खाई ऐसी, आया है खड़ा अब खाना, भाग दौड़कर समय मिले, भागदौड़ कर कैसा खाना? दावत पर बुलाया है जी, एक बार दर्शन दे जाना, खड़े खड़े खाना खाकर, कपड़ों पर दाग लगवाना। एक हाथ में थाली पकड़े, एक हाथ से खाते खाना, बार बार कोई न्यौता न दे, आना बे...
वीर  सपूतों तुम्हें प्रणाम
कविता

वीर सपूतों तुम्हें प्रणाम

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर शहर से गांव एक था, जन्मा था एक लाल वहां। बड़ा हुआ भारत की माटी, साधन थे कुछ नहीं जहां।। सुनी कहानी भगत सिंह की, रग- रग में था जोश भरा। निकल पड़ा सेवा करने को, भारत मां का लाल निरा।। जा बेटा रक्षा कर मां की, दुश्मन को तू मार गिरा। कर देना प्राणों की आहुति, मत होना भयभीत जरा।। जा पहुंचा होने को भर्ती, सेना में जज्बात लिए। रग-रग उसका रोमांचित था, मात पिता आशीष दिए।। मिला संदेशा अधिकारी से, युद्ध क्षेत्र में जाना है। धूल चटा दुश्मन को अपने, ध्वज अपना फहराना है।। कर दी बौछारें तोपों से, कर्ज दूध का अदा किया। धराशायी कर अगणित दुश्मन, परिचय निज कर्तव्य दिया।। जान न्यौछावर कर दी लड़कर, ओढ़ तिरंगा पहुंचा ग्राम। क्रंदन करती मां यू बोली, जा बेटा है तुझे सलाम।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं ...
अनकहे रिश्ते
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अनकहे रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो अनकहे से, अनदेखे से, वो अनसुलझे से रिश्ते जो कभी बीच राह में, तो कभी खयाल में बन जाते है।। वो हकीकत से दूर, वो ख्वाबो की दुनिया के रिश्ते लेकिन बड़े खूबसूरत से रिश्ते, हर बार जीवन मे नई उमंग भर जाते है।। राह चलते किसी अजनबी का यू मुस्करा जाना जैसे उपवन में किसी खूबसूरत गुलाब का खिल जाना।। वो बिना नाम, पहचान के रिश्ते, वो दिल से जुड़े अनजाने से रिश्ते... जब राह पर चलते किसी बुजुर्ग को मंजिल तक पहुचना हो या किसी भूखे को पसन्द का खाना खिलाना हो या कभी ला देनी हो किसी बच्चे के चेहरे पर मुस्कान या दिला देना हो किसी कमजोर को सम्मान भर जाता है मन में आत्म सम्मान ये बिना नाम के क्षणिक से रिश्ते ये जीवन के रंगों से लिपटे हुए रिश्ते ये जीवन की ऊर्जा के रिश्ते ये सब धर्मों से परे रिश्ते ये बिना किसी स्वार्थ के रिश्ते ये रिश्ते बहुत खूबसूरत है ये ...
हम नवयुग का दीप जलायें
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हम नवयुग का दीप जलायें

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** थे हिम्मतवाले, वे मतवाले, शांत, सनेही, भोले-भाले, पाँव बिवाई, हाथ में छाले, मेहनत पूरी, रोटी के लाले, नेकी मन में, रखते ना ताले, बोले ना मुंह से, प्रबंध निराले, जो कुछ था सब साथ मिलालें, बात वही मिल बांट के खा लें, साथ रहें मिल बांटें खायें, हम नवयुग का दीप जलायें. ऐसा हो, घर कौन संभाले, पड़ौसी ने तब दो घर पाले, बड़ों का निर्णय सभी निभा लें, बाबा की पाग थी, कौन उछाले, यही कहानी थी, हर घर की, बड़ा कहे, सबने हाँ भर दी, सम्मान मूंछ, उम्र, अनुभव का, कह दें वे तो सब संभव था, बुजुर्ग वही प्रतिष्ठा पायें, हम नवयुग का दीप जलायें. गाय हकदार की ताजी रोटी, भिखारी कुत्ता,अंतिम व छोटी, बिल्ली नाग को दूध पिलाते, मंदिर में सीधा भिजवाते, रस्ते में जहां पेड़, परिंडे थे, अंडों के लिए बरिंडे थे, आटा चींटी को, जोगी को, कडवी गोली मीठे में ...
बदलते परिवेश रो आयो जमानो
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बदलते परिवेश रो आयो जमानो

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** मेरा प्यारा गांँव कहां है १ प्यारा नादान बचपन कहां है मां की लोरी दादा नानी के किस्से कहानी कहां है। हंसते खेलते परिवार कहां है हिल मिलकर रहने वाले वह प्यार लोग कहां हैं। जिस पेड़ की छांव में बैठकर करते थे वार्तालाप वह नीम का पेड़ कहां है । जहां मैं खेल कूद कर बड़ा हुआ वह आंगन गलियां कहां है। मेरे नादान बचपन पर प्यार दुलार लुटाने वाले वह प्यारे लोग कहां हैं। निस्वार्थ सेवा की भावना ऐसे आज मित्र कहां है। बचपन में करते थे स्नान वह कल कल सी बहती स्वच्छ शीतल नदी कहां है। शिक्षा बनी व्यापार निस्वार्थ ज्ञान देने वाले आज गुरु कहां है। दूध देने जाने लगे डेरी पर घर में। मटकी भर मक्खन कहां है। पढ़ाई हो गई कंप्यूटर मोबाइल पर मेरी प्यारी किताब कहां है। फैशन रो आयो जमानो धोती कुर्ता भारतीय नारी रो वस्त्र कहां है। एक बीवी...
उड़ान
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उड़ान

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ये भी जीवन होता कठिन रास्तों का हमेशा सीढ़ियाँ फूँक-फूँक कर चलो तुम ऐसा ये कथ्य है मेरे पिता स्वर्गीय का हाँ ये कि अभी वक्त है उड़ान भर लो तुम समय का कोई अता-पता नहीं होता है कभी किसी गलत रास्ते में भटकना ना तुम ये जमाना बहुत खराब आज के दौर काहै ओ बिटिया बहुत सरल नादानियाँ करना ना तुम मेरी पगड़ी कभी उछलने तुम ना देना अपनी इज्जत अपने हाथों से संभालना तुम जब कभी जिन्दगी में तुम डगमगाओ भी तो अपने को कमजोर बनाना कभी ना तुम हमेशा तुम्हारे हौंसले बुलंद रहे जीवन के और कदम पे कदम बढ़ाते आगे बढ़ना तुम ये आशीर्वाद हमेशा मेरा तुम्हारे साथ है अपने को कर्तव्य मार्ग से कभी हटना ना तुम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
मौन
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मौन

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहने को मैं मौन हूं। जब उधर रहते सिले हुए, आंखें भी निशब्द रहती, तब मैं संवाद कर रहा होता हूं अंतस के साथ बहुत देर तक, जिसे कोई अन्य सुन नहीं पाता। मैं देह का समग्र शक्तिपुंज बन जाता हूं, तर्कपूर्ण संवाद करने को। मेरे साथी बन जाओ या मितभाषी बनो, पर वाचालता मत अपनाओ। चरित्र तुम्हारा इससे तार-तार हो जाएगा। मत झुठलाओ जीवन को। मुझे अपना साथी बना लो। तुम और तुम्हारी शक्ति युवा रहेगी सदा सदा। परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)। निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गिरह़ें पर शब्द प...
हम महान है
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हम महान है

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** हम महान है, इसलिए कि तुम महान हो तुम महान हो, इसलिए कि सारा जहाँ महान है सृष्टि का कण-कण महान है, मिलकर सब इस सुंदर सृष्टि का निर्माण किए है। अब भी समय है, झांको अपने अंदर अहम को पहचानो अपने अंदर छुपे महान व्यक्ति को दुनिया से रूबरू कराओ अपना जीवन धन्य बनाओ। किसान महान है क्योंकि वह पालनहार है गृहणी महान है क्योंकि वह पूरे घर को संभालती है पिता महान है, वह प्रत्येक वस्तुओं की व्यवस्था करता है कवि महान है, फैलता है अपनी भावों की खुशबू हम महान हैं, दुनिया को सुगन्धित करता है, औरों को अपना बनाता है, जीने की कला सिखाता है, और ज़ुबान से फरमाता है कि हर रचना ईश्वर की करमत है महान भावों से ही धरती पर स्वर्ग पनपती है धरती स्वर्ग बन जाती हैं। परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान निवासी : करेला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी ...
योगिनी
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योगिनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सुदूर-क्षितीज में उज्जवल तारे तुझे देख कर विहँस रहे है। नीले अम्बर के नीचे योगनी निलिमामयी आभा बिखरी है। निल मणि सी तू अतिसुन्दर हर पल तू सुन्दर दिखती हो। नूतनता की सेज सजी है मादकता से परिपूर्ण क्षण। तुझे देख कर बिहस रही सब आतुरता की मधुर मिलन क्षण। फिर भी मौन बनी रहती हो प्रखर तेज से दीप्तिमान तू। महायोग में लिप्त रहती हो मौन ध्यान की गहराई में। हरक्षण तू खोयी खोयी रहती हो कुंडलिनी सहस्त्र सार आज्ञाचक्र में रमण करती हो। बोलो तो कुछ मुखारबिंद से इस शरद पूनम में कहा खोयी हो? जय माँ तारा जय माँ तारा की जय घोष को महस्मशान में बोल रही हो। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान...
अलविदा २०२०
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अलविदा २०२०

रागिनी मित्तल कटनी, मध्य प्रदेश ******************** बड़ा बेचैन मन था, बड़ा बुरा हाल था। सब वर्षो में खराब बीता हुआ साल था। जनवरी निकली ठंड में, फरवरी में पढ़ाई का जोर, मार्च में हो गया कोरोना का धमाल था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था । अप्रैल-मई में लॉकडाउन लगा था, मरीजों से चिकित्सालय भरा था, कैसे बचाए इनको सब का यही ख्याल था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था। डॉक्टर, नर्स ने दिन-रात फर्ज निभाया, तब कई जानो में से कुछ को बचाया, कोई गुलशन तो बिल्कुल उजाड़ था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था। मजदूरों में घर वापसी की होड़ लगी थी, जून-जुलाई में पथिको की लाइन लगी थी, सबके सामने बस रोटी का सवाल था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था। शादी, पार्टी मिलना जुलना सब बंद था, अगस्त, सितंबर में इंसान नजर बंद था, हर एक घर में उठ रहा भूचाल था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था। अक्टूबर...
मकर सक्रांति
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मकर सक्रांति

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सूर्य के उत्तरायण का पर्व जिस पर सब करते हैं गर्व जैसे आता मकर-संक्रांति जीवन में लाता है कान्ति गुड़ और चाशनी की खुशबू रिश्तों में मिठास हुबहू खलबट्टे मे कुटे तिल बिना कहे छू जाते दिल सुबह सुबह का वह पवित्र स्नान सूर्य को अर्ध्य देकर करना दान गरम गरम वो घी और खिचड़ी जैसे छप्पन भोग पर भारी पड़ी कहीं इठलाति कही बलखाती कही डालियों में उलझती नीले पीले हरे नारंगी लाल गुलाबी रंग बिरंगी उड़ती है चहुँ ओर पतंग इंद्रधनुषी है जिसके रंग चलो एक ऐसी पतंग बनाये जो आसमान की सैर कराये परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
विदाई
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विदाई

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** वो बचपन की धुंधलकी याद अब प्यारी सी लगती है समझता था जिसे जन्नत वो गोद न्यारी सी लगती है समझता था बड़ा अपने को उसकी गोद में चढ़कर नहीं दूजा कोई था सुख उसकी गोद से बढ़कर वो पल छिन याद जब आते वो दुनिया भली लगती है सुनहरे दिन वो छुटपन के मासूम सी कली लगती है वो दिन आया बिछड़ने का वो मेरी प्यारी बहना थी सजाने चली दूजा घर जो मेरे घर की गहना थी विदाई कैसे देखूंगा बहन की सोचा मैं रुककर तत्क्षण अश्रु बह निकले मेरे पोंछा उन्हें छुपकर करुण क्रंदन बहन का सुनता मैं यह तो असंभव था कान को बंद कर छुपना ही मेरे लिए संभव था हुआ आश्वस्त अपने से धीरे से कान को खोला नज़र दौड़ाई उस रस्ते में जहां से गुज़रा बहन का डोला बहनें क्यों छोड़ कर जाती यह रीति अटपटी लगती है बिछड़कर बहन से भाई की दुनिया लुटी-लुटी लगती है परिचय :-  सुधाकर मिश्...
भूल जाओ
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भूल जाओ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। जो समय के साथ गुज़रा, वह बवंडर भूल जाओ। समय में बदलाव है अब, कल गया है आज आया, चल दिया तम कष्ट का सब, उजाला अब सुखद छाया। रहे जो भारी हृदय पर, पल भयंकर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। हो सकी आशा न पूरी, अधूरे रह गए सपने। रूठ कर जाने कहाँ पर, चल दिए कुछ लोग अपने। विरह के क्षण भूल पाना, कठिन है पर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। दुखद कोरोना भयानक, प्राणघातक महामारी। कर रहा था विश्व में वह, शवों पर अपनी सवारी। महामारी कम हुई है, रोग का डर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्...
सोच
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सोच

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** संचित मनुज दिमाग में, भ्रमित श्रमित अचिरात, कर देती गुमराह ही, व्यर्थ निरथर्क बात। हर बातों में सोचना, आगे ही परिणाम, है न भला चिन्तन भला, जो हाथों काम। दिल दिमाग को साफ रख, सोच न कर दिन रात, कल की चिन्ता छोड़कर, करो आज की बात। दूर दर्षिता ठीक है, द्धष्टी जहाँ तक जाय, क्षितिज परिधि के पार तो, अंधकार हो जाय। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी...
अगर मैं फौजी होता
कविता

अगर मैं फौजी होता

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** काश मैं कवि होता, तो हिंदुस्तान पे, कविताऐ लुटा देता ! अगर मैं फौजी होता , वतन के लिए जान लुटा देता ! काश मैं गुलाब होता, तो वतन के लिए अपनी खुशबू लुटा देता ! काश मैं वृक्ष होता तो वतन के लिए अपनी छाँव लुटा देता ! काश में सूर्य होता, तो वतन के लिए अपनी रोशनी लुटा देता ! काश मैं कवि होता तो वतन पर अपनी कविताऐ लुटा देता ! काश में फौजी होता, तो वतन के लिए जान लुटा देता !! परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल अध्ययनरत राष्ट्रीय सेवा योजना एन.एस.एस. स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
स्वंय को जाने
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स्वंय को जाने

संजय जैन मुंबई ******************** तन की खूबसूरती एक भ्रम है..! जो इंसान को घमंडी बना देता है। मन की खूबसूरती ही असली सुंदरता है। जो दिलको शांत और मनको व्यवहारिक बनता है। सब से खूबसूरत तो आपकी "वाणी" है..! जो चाहे तो दिल जीत ले.. या चाहे तो दिल चीर दे !! वाणी की मधुरता से गैर अपने हो जाते है। और आपकी दिलसे तरीफ करते है। इन्सान सब कुछ कॉपी कर सकता है..! लेकिन अपनी किस्मत और नसीब को नही..! यदि कर्म अच्छे करोगें तो फल अच्छा मिलेगा। भले श्रेय मिले न मिले, पर श्रेष्ठ देना बंद न करें। आपकी सेवा भक्ति एकदिन रंग लायेगी। तब लोगो की जुबा पर तुम्हारा ही नाम रहेगा। कुछ आपके आलोचक तो कुछ प्रसंशक होंगे। जो समाज में आपको शांति से नहीं रहने देंगे। रखेंगे स्वंय अपना ख़याल तो आपका हरपल शुभ होगा। आपके कर्मो से ही मुक्ति का मार्ग प्रसव होगा। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान मे...
आओ हिन्दी का गुणगान कराएं
कविता

आओ हिन्दी का गुणगान कराएं

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** आओ हिन्दी का गुणगान कराएं भारत माॅ की हम शान बढाएं घर बाहर विदेशी मे जाकर हम बोल हम हिन्दी का मान बढाएं अंग्रजी भी माना एक भाषा है होठो पर हिंदी की मुस्कान लाए सरल, सहृदय, कोमल है भाषा अपनी नन्ही जुबान पर सजाएं अंग्रेजी, उर्दं, अन्य समझ से परे कोशीश हमारी विदेशी अपनाएं हिन्दी से हिन्दुस्तान की पहचान आओ ऐसे हम शीश नमाएं मातृ भाषा अपनी न पशेमा हो तब हिन्दुस्तानी हम कहलाएं सब आभूषण से पूर्ण आभूषण हिन्दी का हम गोरव गान गाएं मील कर शंखनाद करे हम सभी ग्रंथ सभी मील कर हार बनजाएं हाथ जोड़ विनती करू हिन्दी सब अपना मोहन सबसे विनती करे इसे सब अपनाए परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
आओ करें, नूतन वर्ष का अभिनंदन
कविता

आओ करें, नूतन वर्ष का अभिनंदन

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** आओ करें, नूतन वर्ष का अभिनंदन, कष्टों का हरण हो, सुशोभित हो जीवन, अभिलाषाएं हो पूर्ण, पुलकित रहे मन, विघ्नों का हो नाश, प्रसन्न रहे तन मन, समृद्धि में हो वृद्धि, जन कल्याण का हो चिंतन, निर्बल का बने सहारा, तोड़ दें दुर्जनों का घमंड, बाधाओं से करें आलिंगन, बन कर सज्जन, दुष्टों से द्वंद रहे जारी, मित्रों से समर्पण, स्वाभिमान से हो समझौता, नहीं हो ऐसा बंधन, भुजंग से लिपट कर भी रहे सुरक्षित, जैसे चंदन, पराजय में रहे हौंसला कायम, विजय में संयम, विचारधारा रहे पवित्र, खुशियों से भर जाए जीवन... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** कैसे लिखूँ मैं प्रीत की पाती याद करूँ तुझको दिन राती किसी और को ना कह पाती, विरह वेदना सही न जाती। जबसे गए हो तुम जहान से, पलभर को भी भूल न पाती। संग तुम्हारे ना आ पाती, लिख रही हूँ तुमको पाती। प्रभु चरणों मे तुम हो बैठे, कह दो उनसे सारी बाती। रुग्ण हुई यह मानव जाति, पीड़ा के ही गीत है गाती। प्रियतम मेरे यह भी कहना, अपने हाथों जग को गहना। सोचके अब मैं हूँ घबराती, कैसे पहुँचे तुझ तक पाती। पढ़कर तेरी आँख भर आती, पहुँच जो जाती मेरी पाती. मन से मन की बात हो जाती, अब पहुंची मेरी प्रीत की पाति। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
भारत तिलक विवेकानंद!
कविता

भारत तिलक विवेकानंद!

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हे संन्यासी हे अमर सपूत भारतवर्ष के! आधार भारत माता के गर्व-हर्ष के!! तुमने की थी युवा संन्यासियों की मांग जो भारत भर के ग्रामों में फैल देशवासियों की सेवा में जाएं खप! आज भी सख्त प्रासंगिकता है तेरी इस मांग की देश की बलिवेदी पर सहर्ष डालें हविष... आज सभी युवा अपने अपने स्वार्थ की! हे मनीषी! तेजोदिप्त संन्यासी!! हिन्दू धर्म के गौरवशिखर!! हे आध्यात्मिक चिंतक! वेदांतों के समर्थ व्याख्याता!! तूने धर्म को सदा रखा मनुष्य-सेवा के केन्द्र में और देश के सर्वतोभावेन कल्याण का कैसा विलक्षण-क्रांतिकारी उपाय सुझाया "देश के ३३ कोटि भूखे-दरिद्र-कुपोषण के शिकार को कर दो मंदिरों में स्थापित देवी देवताओं की तरह! और हटा दो मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को!! फिर करो उनकी बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिश! क्या रंग निखरेगा धर्मप्राण भारत का जो ऐसी पावन पूजा ...
कुछ याद नहीं
कविता

कुछ याद नहीं

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** भला करना बुरा नहीं है, करते रहना सदा भलाई, एक दिन सबको जाना, कभी न लो कोई बुराई। किसका भला किया था, किसे दिया था सम्मान, अब स्मृतियां खोई कही, अब कुछ भी याद नहीं। अच्छे कामों से बनती हैं, सारे जहां में नेक इंसान, सत्कर्मों से आशीर्वाद ले, बन जाती जन पहचान। सदा किया वो काम हमें, जो लगते जन सदा सही, परहित में जीना सीखा है, पर अब कुछ याद नहीं। मां बाप का ऋण रहेगा, चाहे जन्म लेना हजार, उतारा नहीं वो जा सके, जन्म जन्मांतर रहे भार। पैदा छोटे बच्चे होते हम, मां ने पिलाया दूध दही, याद करते उनकी बातें, पर अब कुछ याद नहीं। दर्द कभी दे जाते आंसू, भूला नहीं पाता है जन, समय बीत जाए बेशक, याद आता सदा दर्द मन। बिछुड़ गये कितने अपने, दिल से अब आंसू बही, कितने हम यादों में रोये, हमें तो कुछ याद नहीं। सपने तो, सच्चे नहीं हो, सपने कभी रुला ...
पिताजी का महत्व
कविता

पिताजी का महत्व

रागिनी मित्तल कटनी, मध्य प्रदेश ******************** पिता के साथ वो बाजार जाना। आगे-आगे उछल के थोड़ा जल्दी आना। हर चीज की तरफ उंगली दिखाना। पापा का चुपचाप दिलवाना। बाजार में हम खुद को समझते सम्राट थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट बाट थे। पाठशाला में जब पिता के साथ जाते। अध्यापक जी मेरी शिकायत लगाते। आंखों ही आंखों में मुझको धमकाते। पर हम तब नहीं आंखें झुकाते। क्योंकि, पिता जो होते हमारे साथ थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे। भाई बहनों में होती लड़ाई थी। मैं उससे कभी नहीं जीत पाई थी। वह मुझ को मार कर भाग जाता था। पापा से ना कहना वह धमकाता था। लगे ना लगे मैं तब तक रोती थी, जब तक ना आ जाएं पिता जी पास थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे। थी नौकरी छोटी सी, फरमाइशें सबकी। पूरा करते थे फिर भी ख्वाइशें सबकी। कोशिश करते थे कोई रह ना जाए। इसीलिए स्कूल के साथ वो ट्यूशन पढ़ाएं। काम कर-कर उनके खस्त...
रिश्ते … 2
कविता

रिश्ते … 2

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** रिश्ते तरह-तरह के कुछ दूर के, कुछ पास के और कुछ आसपास के कुछ निभाए जाते है मिलकर तो कुछ दूरभाष से है जीवित कुछ रहते हमेशा साथ भले ही उनमे न हो मिठास अब क्या कहूं रिश्तों की परिभाषा इन पर ही टिकी रहती सबकी आशा जिस रिश्ते में जितनी आशा अक्सर मिलती वही निराशा जहाँ जितना अंध विश्वास वही आ जाती है खटास कुछ रिश्ते है बड़े रसीले कभी है खट्टे कभी है मीठे ऐसे रिश्तों से टिका परिवार सारा इनके बिना न जीवन गुजारा लेकिन एक रिश्ता है अटूट जिसमे चलता कभी न झूठ वो रिश्ता है आत्मा का परमात्मा से और अपना अपनी अंतरात्मा से बस यही रिश्ता है अनमोल अगर समझ सको इसका मोल परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया ह...