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कविता

पतंग
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पतंग

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश में उड़ती रंगबिरंगी पतंगे करती न कभी किसी से भेद भाव जब उड़ नहीं पाती किसी की पतंगे देते मौन हवाओं को अकारण भरा दोष मायूस होकर बदल देते दूसरी पतंग भरोसा कहा रह गया पतंग क्या चीज बस हवा के भरोसे जिंदगी हो इंसान की आकाश और जमींन के अंतराल को पतंग से अभिमान भरी निगाहों से नापता इंसान और खेलता होड़ के दाव पेज धागों से कटती डोर दुखता मन पतंग किससे कहे उलझे हुए जिंदगी के धागे सुलझने में उम्र बीत जाती निगाहे कमजोर हो जाती कटी पतंग लेती फिर से इम्तहान जो कट के आ जाती पास होंसला देने हवा और तुम से ही मै रहती जीवित उडाओं मुझे? मै पतंग हूँ उड़ना जानती तुम्हारे कापते हाथों से नई उमंग के साथ तुमने मुझे आशाओं की डोर से बाँध रखा दुनिया को उचाईयों का अंतर बताने उड़ रही हूँ खुले आकाश में। क्योकि एक पतंग जो हूँ जो कभी भी कट सकती तुम्हारे हौसला खो...
गीता जयंती विशेष
कविता

गीता जयंती विशेष

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** इस बार २५ दिसंबर २०२० को मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि है, जिसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन गीता जयंती का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। गीता ऐसा ग्रंथ है जो कि बुद्धि की शरण में जाने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करता है। वह पूर्ण वैज्ञानिक तरीके से मन को वश में करने का मार्ग बताता है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है कविता- हे मन हे मन, जो तुझे प्राप्त है उसकी कद्र नहीं और अप्राप्त के पीछे भागता है। जैसे कोई कामि पुरुष सर्वगुण संपन्न पत्नी को छोड़ पड़ोसन को ताकता है।। इन कामनाओं का स्वभाव भी अजीब सा, समझ में नहीं आता है। पेट भरता हूं जितना उनका, उतना खाली रह जाता है।। सुख-चैन की आहुति देकर, मैंने इनको पाला है। सच कहूं तो ऐसा लगता, जैसे आग में घी डाला है।। काम, क्रोध, मद, लोभ से भरा मन, तो गंदा नाला है। मत उलझ मर जाएगा यह तो...
अलविदा २०२० को यारो
कविता

अलविदा २०२० को यारो

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** २०२० ने हमें रूलाया है काफी ज़ख़्मो को पाया है महामारी है ये यारो अपनो से भी बिछुड़ाया है कोरोनो ने सताया भी तो घर मे रहना सीखाया है दो गज रख दूरियां अपनी ऑखो से सब कुछ पाया है गम हो या जश्न अपनो ने हमे आकर भी उठाया है खो गए नाते रिश्ते हमारे मोबाइल ने फिर जगाया है मंज़िल के आगे तूफां हारते मास्क ने हमें सिखाया है गर इरादे पक्के सामने हो मुश्किल को आसां बनाया है अलविदा २०२० को यारो मोहन २०२१ अब आया है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
कैसा रहा साल २०२०
कविता

कैसा रहा साल २०२०

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** २०२० की पहली रात खौफ आया, रात १२ बजे से पूरे देश को जगाया। जो वर्ष की पहली रात में सो जायेगा, सुबह वो स्वयं को पत्थर बना पायेगा। वर्ष के प्रारंभ में हुदहुद सुनामी आया, पूरे देश में वह अपना दहशत फैलाया। मार्च २०२० को कोरोना देश में आया, पूर्णरूप से विश्व में हाहाकार मचाया। माह बीतने जाने वाले को हैं अब दस, मैने अब तक एक भी बनाये नहीं बस। हम सभी आपस में मिल करते चरचा, धन्य ये कम्पनी जो दे रही हमें खर्चा। समुद्री तुफान भी त्रासदी खूब मचाया, हवाई अड्डे में ज्यादा पानी घुस आया। दिसंबर बीतने वाला है डियूटी के बिन, अभी तक नहीं बना कोरोना वैक्सीन। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
आभिलाषा
कविता

आभिलाषा

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश **************** नया साल में नए निर्माण में सबको नये संकल्प लेना चाहिये। प्रखरता सूर्य, वचन येशू, वर्षा ज्ञान समर्पण पुष्प जैसा चाहिये। समय, श्रम, भाव अर्पण, विश्वास, मन मधुरता, सुविचार चाहिये। भिन्न चाहे इष्ट हो, या भिन्न पुजा-अर्चना मिलजुल कर रहना चाहिये। राष्ट्र-जागरण की धारा लहराकर भाव-भुमि सबल चाहिये। सुप्रभहरीश्रेष्ठ सजगता, शक्ति, प्रबलता से नया संसार रचना चाहिये। नये-सूरज की किरण से क्रूरतम-दु:स्वप्न तम टूटना चाहिये। बहुत ढोया है मनुजता ने, अँधेरे शाप की पीड़ा से छूटना चाहिये। जनशक्ति को जाग्रत कर नव प्रवाह की दिशा में चलना चाहिए। ले मशाले ज्ञान की लोक-मंगल-पथ, सभी को सुझना चाहिये। लोक सेवा के साथ प्राकृतिक की तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिए। "रश्मि" कहती परमेश्वर से नव वर्ष मे मास्क, दोगज दुरी सेनेटाईजर से छुटकारा चाहिये। परिचय :- डॉ. रश्म...
काश! मै प्रधानमंत्री होता
कविता

काश! मै प्रधानमंत्री होता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** काश! मैं देश का प्रधानमंत्री होता तो पाक को आखिरी सबक सिखाता फिर भी न मानता तो इतिहास में रह जाता। जाति धर्म का भेद मिटाता आरक्षण हटाता, हर गरीब को शिक्षा के लिए आर्थिक सुविधा का कानून बनाता मजहब के नाम पर फूट डालने वालों दंगा करने/कराने वालों को आजीवन कैद का कानून बनाता। देश विरोधी बयान या कृत्य वालों का नागरिक अधिकार छीन लेता। हर जन प्रतिनिधि की जवाबदेही तय करता। जनता को चुने जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार देता। नाम के साथ जाति लिखना बंद करा देता। एक देश, एक विधान, एक संविधान सख्ती से लागू करता। बहन बेटियों से जो भी करता अनाचार/अत्याचार उसको जीवनभर जेल में रखने का प्रावधान करता। नकसलियों, आतंकवादियों, उपद्रवियों को सीधे गोली मारने का फरमान सुनाता। पूरे देश में गौहत्या पर रोक का कानून बनाता। समान ना...
हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं
कविता

हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** पानी में कागज का घर बना रहे हैं लोग सूरज को ही अब रोशनी दिखा रहे हैं लोग। हमीं से सीखकर मोहब्बत का ककहरा आज हमें ही मोहब्बत सिखा रहे हैं लोग। है पता जबकि की टांग की टूटेंगी हड्डियां फिर भी हर बात पर टांग अड़ा रहे हैं लोग। थी मांगी दुआएं जिनके लिए मैंने कभी बददुवावों से मुझको नवाजे जा रहे हैं लोग। जग हंसाई की चिंता को कर दरकिनार खून के रिश्ते से ही सींग लड़ा रहे हैं लोग। सियासी शैतान हवाओं को बिना समझे ही मजहब के नाम पे खून बहा रहे हैं लोग। कलम से कायम,दिलों पे बादशाहत अपनी पर जानबूझ के मेरा दिल दुखा रहे हैं लोग। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प...
मोक्ष
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मोक्ष

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** न लिखने की इच्छा है न छपास की मन खाली हो गया है वाह प्रयास की न मिलने की इच्छा है न बिछड़ने की प्रेम के साथ जाती रही इच्छा लड़ने की न कुछ पाने की इच्छा है न ही खोने की पूर्णता, विराम है मरने जीने की न आगमन है न गमन है नही बात शंका की मुमुक्षु नही रहा अब मैं जय हो मोक्ष की। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्ष...
वर्ष का पारा
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वर्ष का पारा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** उतरता जा रहा है वर्ष का पारा दिसम्बर में। सिमट कर रह गया है वक़्त अब सारा दिसम्बर में। अभी से विश्व में 'इक्कीस' के स्वागत की चर्चा है बिछड़कर जा रहा सन् 'बीस' है प्यारा दिसम्बर में। नए में जोश कितना था, पुराने में उदासी है जो जीता जनवरी में था वही हारा दिसम्बर में। निरन्तर रात-दिन ही जगत में रहता समय अविरल नहीं थमती समय की अनोखी धारा दिसम्बर में। गया शैशव तथा अब ढली है तरुणाई भी उसकी हुआ बूढ़ा है लगता वर्ष बेचारा दिसम्बर में। विविध संगीत स्वर स्वागत में गुंजित जनवरी में थे सुनाता है बिदाई गीत इकतारा दिसम्बर में। "कहाँ रुकता समय संसार में मेरी तरह लोगो" कह रहा 'रशीद' अनमन एक बंजारा दिसम्बर में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, ...
बंधन
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बंधन

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बंधन तो बंधन होते है। संबंधों का वंदन है। माँ का मान बढाती है। उस वीर वधू का वंदन है। संस्कारों कि पहनकर माला, जोड़ा दो परिवारों को। अपने स्नेह से सिंचित कर, सुरभित किया घर आँगन को। मेहंदी हाथों में सजी है, नयन स्वप्न लीन है। स्वयं को श्रंगारित करती, वीर की प्रतीक्षारत रहती। वीर वधू का वंदन है। उस वीर वधू का वंदन है। माँ का मान बढाती है। उस वीर वधू का वंदन है। परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव पुष्प सेवा समिति कि सामाजिक कार्यकर्ता एवं श्री अरविन्द सोसायटी कि सदस्य व श्री अरविन्द समग्र शिक्षा अनुसन्धान केंद्र के अन्तर्गत नव विहान शिक्षा अकादमी कि पूर्व संचालिका। रूचि : अध्ययन, सृजन, श्री अरविन्द शिक्षा क...
सोच बदलो
कविता

सोच बदलो

सपना दिल्ली ******************** आगे निकलने की होड़ छोड़ मिलकर कदम बढ़ाओ बदलो न रास्ता मुश्किल में देख बन दुख में साथी दूसरों की हिम्मत बँधाओ घर, बाहर बहू -बेटी, महसूस सुरक्षित करें हो न शोषण मिले सम्मान ऐसा तुम संसार बसाओ। हो न कन्या भ्रूण हत्या केवल पढ़ाओ नहीं उसे सपनों की उड़ान की आज़ादी दिलवाओ भ्रष्टाचार, अत्याचार का मिटे निशान भाईचारे की रीति हो ऐसा प्रेम का तुम संसार रचाओ। सबको मिले न्याय ठोकर न खाए आम जन दर दर की ऐसा न्यायतंत्र बनाओ। सबको  मिले रोज़गार भूखा न सोए कोई मजबूर सिर पर सबके हो छ्त बेसहारा को सहारा मिले सम्मान बड़ों का हो दुश्मन भी बढ़ाए दोस्ती का हाथ... ऐसी दुनिया का निर्माण कराओ! परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अध...
नया साल नया दौर
कविता

नया साल नया दौर

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जीवन के रंग मे खुशियों के संग मे, सुबह की लाली, घटा शाम की तन्हाई मे, हरे-भरे पेड़ों पर, चिड़िया चहकती रहें, खेत-खलिहानों में, फसल लहलहाती रहे, नयी रोशनी में, नये जीवन की शुरुआत हो, सबको जीने की नई दिशा, नयी राह मिले। गाँव मे खुशियों की, नयी सौगात हो , सबको अपनी अभिव्यक्तियों का नया संसार मिले। मन मस्तिक मे नव दुनिया की स्वागत की आशायें हो, जीवन मे नये उद्देश्यों की लौ जले, प्रेम की ज्योति जले खुशबुओं की महक उठे, विज्ञान, तकनीकी, साहित्य की ज्वाला और जले, दुनिया में कला, नृत्य, लोक नृत्य का विकास हो, सभ्यता और संस्कृति का नया आयाम मिले, दुनियाँ में सभी का सभी से भाईचारे का संबंध हो, ना झगड़ा ना झंझट, न हाथापाई का वास हो, राहों-राहों मे दिल और प्यार का मिलन हो, जाति धर्म को मिटाकर सबकी धड़कनो की आवाज़ बनों, ऐसी हो नये साल की शुरुआत ...
रस्मो रिवाज
कविता

रस्मो रिवाज

श्रीमती आभा चौहान अहमदाबाद (गुजरात) ******************** यह रस्मो के बंधन है प्यार के धागे न जाने क्यों लोग इससे है दूर भागे ये रस्में कोई बेड़िया नहीं यह तो अपनी संस्कृति अपनी पहचान है पाश्चात्य संस्कृति को छोड़ो अपने देश का यह अभिमान है प्रेम से अपनाओगे गर इन्हें तो अपनों का मिलेगा प्यार रस्में निभा लोगे हंसते हुए तो खुश होगा सारा परिवार हां कभी-कभी इन को निभाने में शायद होता है थोड़ा मुश्किल पर है तो यह संस्कार हमारे हम सबकी रगो में हैं शामिल यह एक रस्म ही तो है , भाई के सर पर बंधा हुआ सेहरा कलाई पर बंधी राखी भाई के प्यार हो जाता है इससे और गहरा कितनी सुंदर है यह रस्मे दिल से इन्हें अपना लो दूर मत भागो इनसे गले से अपने लगा लो। परिचय :- श्रीमती आभा चौहान निवासी :- अहमदाबाद गुजरात घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
याद है
कविता

याद है

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** सिहर उठता बदन खिल उठती सांसे कि उनका आगोश में आना याद है। सर्द हवाओं का धुंध सा पर्द मौसम मानो छिपा रहा हो फिजा के रुखसार छिपते सूरज सी तेरी; मुस्कान याद है... गुनगुनी धूप, मद्दम पैरों के थाप सरीखे दबे पाँव बिखेरने आती हो खुशरंग, गुलों का मुड़कर उस ओर तेरी तरह इतराना; याद है। होले से रेशमी दुपट्टे का; नाजुक डालियों की तरह लहराना पंखुडियों जैंसे गुलाब की अधरों का खिल जाना फिर कहीं छिप जाती रश्मि; जाने कहाँ? कलियों की धीमी ढ़िढ़ुरन जैसा; तेरा वो शर्माना, याद है। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम मूल निवासी - जिला कटनी, मध्य प्रदेश वर्तमान निवास - जबलपुर मध्यप्रदेश पद - स.उ.नि.(अ), पदस्थ - पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश शिक्षा - समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर सम्मान - जे.एम.डी. प...
मासूम चेहरे का राज
कविता

मासूम चेहरे का राज

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बड़ा कातिल चेहरा है, होता है जन को नाज, लो तुम्हें मैं बतलाता, मासूम चेहरे का राज। प्यारी सी सूरत लगती, सिर पर रखा है ताज, बहुत छुपा रखा जन, मासूम चेहरे का राज। धर्म कर्म की बात पर, हो जिस पर हमें नाज, कृति के पन्नों में छुपा, मासूम चेहरे का राज। देेश सीमा पर जा रहे, सुरक्षा उनके सरताज, कहीं पैर न डगमगाएं, मासूम चेहरे का राज। हसरतें छुपा प्यार की, दफन हैं दिल में राज, भेद अब न खुल जाये, मासूम चेहरे का राज। मां का साया उठ गया, पिता नहीं रहे हैं आज, दर्द भरा दिल पुकारता, मासूम चेहरे का राज। राज्य भर में टाप रहा, हर मानव को है नाज, मन ही मन छुपा रहा, मासूम चेहरे का राज। गणेश जी ध्यान धरा, संपूर्ण हुये सब काज, सारी खुशियां छुपाई, मासूम चेहरे का राज। सूदखोर लो खा रहा, गरीब जन का ब्याज, आगे की सोच बताए, मासूम चेहरे का राज। चरव...
मेरी आधुनिकता
कविता

मेरी आधुनिकता

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** आज मेरे पास मोबाइल फोन है और रंगीन टीवी भी है। आधुनिक ज़माने को परिभाषित करती एक सुशिक्षित बीवी भी है। ज़रूरी नहीं है आधुनिकता के लिए बंगले और बड़ी कार का होना, दुमंज़िला मकान और एक अच्छी-सी नौकरी भी है। सोफे पर बैठकर बड़ा इतरा के दबाता हूँ रिमोट टी.वी का, और ए.एक्स.एन चैनल की गौरांगनाएँ घेर लेती हैं मुझे। उनके सफेद बालों को देखकर पिता जी के सन जैसे सफेद बाल तैर जाते हैं मेरी आँखों में। धरी रह जाती है मेरी आधुनिकता। कुछ लिपटने के अंदाज में पत्नी कहती है:- जानू, तुम फिर क्यों उदास हो गए? ले आइए ना पिता जी को यहाँ, रख लेंगे किसी वृद्धाश्रम में! तुम्हारी चिंता भी जाती रहेगी और मिल भी लिया करना एक-दो महीने में। मुझसे तुम्हारी ये उदासी देखी नहीं जाती, कम-से-कम अपना नहीं तो मेरा तो खयाल किया करो! और मनान...
मां और सर्दी का मौसम
कविता

मां और सर्दी का मौसम

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** मां और सर्दी का मौसम सर्दी का मौसम मां तुम्हारी बड़ी याद दिलाता है। बचपन की वादियों में ले जाकर, अक्सर घुमा लाता है। छुटपन में जब गठरी बन कर रजाई में तुम्हारे छिपकर हम सो जाते थे, तुम धीरे- से थोड़ा खिसककर, रजाई से हमें अच्छे से ढंककर, अपने थोड़ा बाहर होकर सोती और प्यार से हमें ढंकती थी, वो स्पर्श याद दिला जाता है। चाहे कितनी भी ठंड हो, अंगीठी की सुर्ख आंच पर, हमारे लिए रोज चाव से कुछ न कुछ बनाना और हमें खाते देख निहाल हो जाना, सच कहूं मां तुम्हारे प्यार से पगा वो स्वाद बार-बार याद दिला जाता है। गरम कपड़ों से पूरा लदे होने पर भी तुम्हारी आंखों की वो चिंता कहीं ठंडी न लग जाए। स्कूल निकलने के समय काफ़ी दूर तक हमें जाते देखते खड़े रहना और तुम्हारी आंखों का भर जाना, आज भी याद दिलाता है। ये कमबख्त सर्दी का मौसम तुम्हारे न होने की स...
दिल धड़कता रह गया
कविता

दिल धड़कता रह गया

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** यूं अचानक से कोई कुछ पास आकर कह गया, बस उन्हें फिर याद कर ये दिल धड़कता रह गया। जज़्बातों की बात क्या सब ख्वाब जलकर खाक हैं, अरमानों की बुझी राख में शोला भड़कता रह गया। शोर सहता है बहुत मन पर भीड़ में रहता अकेला, अपने तो दिल का मंजर सूनी सड़क सा रह गया। कनखियों से वार कर खामोशियां रुखसत हुईं, मुट्ठियों में उसके बस वह खत फड़कता रह गया। खुशी ओढ़ ली चेहरे पर पत्थरदिल बनकर विवेक वह उन्मन है यही सोच तन मन तड़पता रह गया। परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। ...
ठंढी की कहानी
कविता

ठंढी की कहानी

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** बेजुबान कढ़ाके ठंढी की कहानी, कई हजारों साल की है ये पुरानी। ठंढी के दिन की शुरुआत जब होये, सभी ढूढे अपने गर्म कपड़े जो खोये। किसान गेहूँ का बीज,खाद सब जोहे, कड़ाके की ठंढ़ में खेत में गेहूँ बोये। नंगे पाँव वह खेत में गेहूँ सिचने जाये, उसे ठंढ़ की चिंता बिल्कुल न सताये। ठंढ जनवरी में इतनी ज्याद बढ़ जाये, सूरज ठंढ में बर्फ का गोला बन जाये। पानी सब लोग पिये गरमाय-गरमाय, ठंढ में खीर-पूड़ी,पकवान सब खाय। गरम समोसा पैक करके घर ले आय, कई गरम जिलेबी दुकान पर ले खाय। कोई स्वैटर व जाकिट पहिन ठिथुराय, कोई उलेन का पैंट-शर्त रहा बनवाय। फिर भी सबको ठंढ रहा बहुत सताय, गर्मकर रहा हाथ कोई लकड़ी जलाय। फिर भी ठंढ नहीं रही किसी की जाय, पीये काफी कोई पीये चाय पर चाय। फिर भी ठंढ रहा सबको बहुत सताय, फिर भी ठंढ रहा सबको बहुत सताय। परिचय ...
जय जवान, जय किसान, जय स्वच्छकार
कविता

जय जवान, जय किसान, जय स्वच्छकार

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** देश, जवान, किसान की जय, जय स्वच्छकार की करते हैं। आप सभी गौरव भारत के, गर्व आप पर करते हैं। भारत देश हमारा है, बहुत प्यार हम करते हैं। जन्म लिए हम भारत में, जय भारत, भीम की करते हैं। जवान देश के सैनिक हैं, ये देश की रक्षा करते हैैं। गर्मी, ठंडी में दिनों रात, सीमा पर ड्यूटी करते हैं। जय जवान, जय देश के सैनिक, नमन आपको करते हैं। देश में रहते अमन चैन से, याद आपको करते हैं। किसान हमारे शुद्ध रत्न, धूप में तपते रहते हैं। तन, मन, धन, श्रम अर्पित करके, अन्न उगाया करते हैं। अन्न उगाकर कृषक लोग, पेट देश का भरते हैं। जय जवान, जय धरती मां, हम नमन आपको करते हैं। जय जय जय जय स्वच्छकार, स्वच्छ देश को करते हैं। अपनी चिंता किए बगैर, दिन-रात सफाई करते हैं। आत्मसुरक्षा नहीं, उपकरण, स्वच्छकार ना पाते हैं, मेनहोल, सीवर में घुसकर, स्वास ब...
पछतावा
कविता

पछतावा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** किसी को सता कर जिये तो क्या जिये, किसी को रुला कर जिये तो क्या जिये। करता रहा तुम पर भरोसा अटूट हर पल, उसी को आजमां कर जिये तो क्या जिये। किया जिंदगी की जमा-पूंजी नाम तुम्हारे, उसे घटिया बता कर जिये तो क्या जिये। जिसके अश्रुधार बहे सिर्फ तुम्हारे ही लिए, उसे नजरों से गिरा कर जिये तो क्या जिये। किया जो कुछ, सब तुम्हारी खुशी के लिए, उसी का दिल दुखा कर जिये तो क्या जिये। लहू के रिश्ते जैसा ही रिश्ता था जब उससे रिश्ते में दाग़ लगा कर जिये तो क्या जिये। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक ...
कौड़ियों में बिकता श्रम किसान का
कविता

कौड़ियों में बिकता श्रम किसान का

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में बिकता, मेरे हस्तांतरित भोजन से, हर एक जीव का पोषण होता, शाक, पात, आहार में फिर क्यों मेरा अर्पित समर्पण नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! मैं अन्न के हर एक कण को, सींचकर जीवित न सदा रखता, माटी से माटी के पुतलों का फिर कैसे जगत में जीवन अनवरत चलता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! अन्न से है दौड़ता खून नसों में, जीव की देह को जो ऊर्जा से भरता, धरा का प्रथम पुत्र बनकर फिर क्यों फल में लाल रंग मेरा रुधिर नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! लेह, चौष्य, भक्ष्य हो या भोज्य, हर पदार्थ मेरे उद्यम से ही बनता, साधुओं-सा जीवन जीता फिर क्यों सबमें आहुति-सा तुम्हे नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! चाहता हूँ, बस अब इतना ही, चाहे अन्नदाता तू मुझे ना कहता, निज स्व...
भूख
कविता

भूख

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी मन्दिर की सीढ़ियों पर... तो कभी मज्जिद के बाहर... कभी गुरुद्वारे के लंगर में... तो कभी चर्च के गलियारों में... कुछ चेहरे हर जगह नजर आ जाते है जिनके पेट की भूख, उन्हें हर जगह ले आती है... ये वो लोग होते है, जिनका कोई धर्म नही, कोई मज़हब नही होता।। जो उन्हें कुछ दे दे, बस वही इनका भगवान होता है इनके लिये हर धर्म का भी बस 'रोटी' नाम होता है। दुनिया इन्हें भिखारी कहे, या कहे बेचारे लेकिन ये है सब किस्मत के मारे।। मज़हब के लिये लड़ना सिर्फ हम जानते है, जो भूख से तरसते है, वो सबको मानते है।। हम इंसान तो भगवान से भी महान हो गए जब मज़हब के नाम पर लाखों कुर्बान हो गए।। कभी भेद न किया उसने किसी पीर में फकीर में, और हम खींचते चले गए धर्म पर धर्म की लकीरें।। इस दुनिया में भूख का कोई मजहब नही होता और इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नही होता।। परिचय :-  रु...
ज़मी पर लाया उसने
कविता

ज़मी पर लाया उसने

रवि चौहान आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ज़मी पर लाया उसने, पकड़ ऊँगली चलना सिखाया उसने! कंधे पर बिठा, सारा जहाँ दिखाया उसने! चलता रहा कांटो भरी राह पर, फुलो की राह पर चलाया उसने! चुभे कांटे पैरो मे जब, रोया मगर आंसू नहीं बहाया उसने! देख दर्द उसका रो न दू मै, अपने दर्द को छुपाए उसने! लड़ता रहा सारे जहाँ से, मेरी खुशियों की खातिर, खुद रो कर भी मुझे हसाया उसने! छोड़ अपने सपनो को, मेरे सपनो को अपनाया उसने! गवा दिया जीवन अपना मेरी खातिर, मेरी कामयाबी में खुद को कामयाब पाया उसने! परिचय :- रवि चौहान निवासी : आजमगढ़ (शेखपूरा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु ...
बेटे
कविता

बेटे

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** आन, बान और शान हैं बेटे। हिम्मत और अभिमान है बेटे। दादा दादी के हैं प्यारे, मां बापू के राजदुलारे। खुशियों भरी उड़ान हैं बेटे। आन, बान और शान हैं बेटे। कविता दोहे छंद सरीखे, खुशबू और मकरंद सरीखे। फूलों के उद्यान हैं बेटे। आन, बान और शान हैं बेटे। हैं खुशियों के रेले जैसे घर के अंदर मेले जैसे। आशा और अरमान है बेटे। आन, बान और शान हैं बेटे। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें h...