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कविता

दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ
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दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** दिलों में रहने का रास्ता ढूंढ पास तो पराए भी बैठ जाते हैं खुशबू बनकर कर महक ने की कोशिश कर फूल तो कागज के भी खिल जाते हैं ताउम्र साथ चलने की कोशिश कर हमसफ़र एक मिल चलने वाले तो हजारों मिल जाते हैं दो कदम चल कर मंजिल तक पहुंच मुश्किलों से हार कर बैठे जाने वाले तो हजारों मिल जाते किताबों से दिल लगा कर देखो यार लोग तो दिल लगाने वाले लाखो मिल जाते हैं अपने सपनों को पूरा कर सपने देखने वाले तो हजारों मिल जाएंगे प्रकृति की तरह कुछ देना सीख बाहे फैलाकर लेने वाले तो हजारों मिल जाएंगे स्वयं खुश रहकर औरों को हंसाने की कोशिश कर बेवजह रुलाने वाले तो हजारों मिल जाते हैं खुशबू बनकर महक गुलाब की तरह फूल तो कागज के भी खिल जाते हैं हो सके तो सच्चा प्यार कर साथी बेवजह धोखा देने वाले तो लाखों मिल जाते नदी की तरह ताउम्र चल मु...
सत्कर्म
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सत्कर्म

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** द्वन्द भरे इस जीवन में, कुछ पाया, कुछ ना पाया। जो पाया वह प्रसाद बना, ना पाया वह अवसाद बना। द्वन्द भरे इस जीवन में, कुछ पाया, कुछ ना पाया। कभी राग मिला, कभी विराग मिला। कभी जीत मिली, कभी हार मिली। जब जीत मिली तब प्रीति मिली। जब हार मिली, तब रिक्त रही। जब रिक्त रही, तब सत्कर्मो कि सुध मिली। जब सुध मिली, तब दृढ हुई। दृढ़ हुई, संकल्प लिए। संकल्प लिए, कटिबद्ध हुई। सत्कर्म को स्वीकार किया। स्वीकार किया, सत्कर्म किये। यही जीवन का आधार बने। आधार बने, अविराम रहे। अविराम रहे, अनुराग बढ़े। अनुराग बढ़े, आनंद मिले। आनंद जीवन का ध्येय बने। द्वन्द भरे इस जीवन में, कुछ पाया, कुछ ना पाया। परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव ...
सलाम लिखता है शायर तुझे
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सलाम लिखता है शायर तुझे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सलाम लिखता है शायर तुझे, तुम्हारे हौसले रखेंगे सदा याद, महामारी २०२० की झेली मार, फिर भी ना की कोई फरियाद। सलाम लिखता है शायर तुझे, युद्ध के नायक तुम कहाते हो, दुश्मन का सीना तुमने चीरा है, तुम दुश्मन का खून बहाते हो। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुमने काव्य लिख डाला बड़ा, सुनकर दुश्मन हौसले है पस्त, दुश्मन के इरादे हुये है ध्वस्त। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुम्हारी मेहनत रंग लाई जगत, कोरोना की खोज डाली दवाई, कितने लोगों की जान बचाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, तुमने जन में अलख वो जगाई, दिन रात सेवा कर की भलाई, भूखे नंगों की कई जान बचाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, युद्ध में तुमने न पीठ दिखाई, मारे दुश्मन एक एक हजारों, दिखा डाली जग की सच्चाई। सलाम लिखता है शायर तुझे, खेतों में करता रहता है काम, मेहनत के आगे कायल नाम, किसान को मिले सच्...
यह जिन्दगी है जनाब
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यह जिन्दगी है जनाब

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** यह जिन्दगी है जनाब, ऐसे ही नहीं महकेगी, इन फूलों की खुशबू से फूलों की खुशबू से, महक सकता है वातावरण पर जिंदगी तो महकेगी इन काटो की सूलो से, यह जिन्दगी है जनाब तन मन को प्रसन्न कर देगे, यह फूलो की सुंदरता पर जिंदगी को प्रसन्न नहीं कर पाएंगे यह फूलो की कोमलता यह जिंदगी है जनाब इसे फूलों की शया से नहीं सवारी जा सकती है, इन्हें तो काटो की शया से सजाना होगा, यह जिन्दगी है जनाब, कभी तो खुशियां समाई नहीं जाती, कभी तो खुशियां मनाई नहीं जाती, यह जिन्दगी है जनाब, झाड़े की रजाई छोड़ के, सूर्य की गर्मी तोड़ के, खड़े हो जावो अपने सपनों पर, जब तक ना झुको तब तक सपने अपने न हो जाएं। यह जिन्दगी है जनाब, कभी अपनों की तनहाई सताएगी कभी इश्क के लम्हें तड़पपाएंगे, यह जिन्दगी है जनाब, यह रीट के ख़्वाब बोहत बड़े है, इसे पाने के लिए बोहत खड़े है, छोड़ दो अपनी...
वर्ष २०२०- कुछ खोया, कुछ पाया
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वर्ष २०२०- कुछ खोया, कुछ पाया

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** वर्ष २०२०- कुछ खोया, कुछ पाया। कहते हैं बड़ा बुरा था ये साल। लोग घरों में बंद, आवाजाही पर, पार्टी पर, घूमने-घुमाने पर व्यर्थ के दिखावे में बर्बाद होती जिंदगानी पर रोक। यार ऐसे भी कोई जीता है? सच में बड़ा बुरा था ये साल। सच में बुरा तो था पर गरीबों के लिए, यतीमों के लिए उन रोज कमाकर खाने वालों के लिए। क्योंकि रोजगार बंद, रोजगार के साधन बंद। जिंदगी उनकी उलझकर रह गई थी। लेकिन सच पूछिए तो यही वह साल भी था जब परिंदे जी भर कर बिना डर आसमान में उड़े। न धुआं, न शोर। पशु भी आदमी नामक प्राणी से कुछ समय के लिए मुक्ति पाए। प्रकृति ने नई दुल्हन-सा श्रृंगार किया। नदियां नहाई, स्वच्छ हुई। पेड़-पौधे जैसे नवजीवन पाए, धरा ने फिर अपना धवल रूप धरा। मनुष्य भी मनुष्य के करीब आया, न जाने कितने हाथों ने दूसरों के घर आशा का दीप जलाया। घर गुलज़ार हुए, ...
विनती
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विनती

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** ओ नववर्ष! है तुझसे ये इल्तिजा... करना तुम ये दिल से दुआएँ : नववर्ष में समूल मिटे कोरोना! मिले सबको हर्ष अपार!! मिटें सारे कल्मष-तम-अंधकार! मिटें सबके क्लेश दुख औ मनोविकार!! और हो सबका सर्वतोभावेन उत्कर्ष!!! सूखे पपराते होठों पर भी आए मुस्कान औ तरावट! दुखियों और गरीबों की झोली भी भरी हो खुशियों के खनकते सिक्कों से!! धानी संग पिया बिताए कुछ जज्बाती पल! दिनभर टकटकी लगाए बूढ़े मांँ-बाप संग... गुजारे बेटे-बहुएंँ कुछ खुशनुमा लम्हें!! आदमी का आदमी पर बढता जाए विश्वास! न तोड़े कोई पीड़ितों के मन की सुख-आस! भोली आंँखों से कोई छीन न ले पावन-उजास!! महामारी के वैश्विक घोंसले सारे जाएँ उजड़... अनैतिकता औ घृणा सब मन के जाएँ समूल उखड़... मिटे चहुँओर फैली हिंसा-प्रतिहिंसा ... मिटे दुर्भावना व्यभिचार का हर मनसूबा! हिलें छल-वैमनस्य की सब चूलें! ईर्ष्या-प...
आ अब लौट चले …
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आ अब लौट चले …

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना शेष रहा कहने सुनने को, क्यो व्यर्थ ठिठौली करते हो ? गर जाना ही था दुर समय से, क्यो पल पल जीते मरते हो ? हर पग पर बिछते स्वप्न मेरे, क्यो राह कंटीली करते हो ? चुन रहा नादा था कंकर पत्थर, क्यो बाण शब्द से भेदते हो ? था हिमशिखर-सा मौन ओढ़े, बन रविकर क्यों बिखराते हो ? हिम विचरता अपने जल में ही, तत्वों को क्या पृथक कर पाते हो? श्रद्धा-भक्ति-तप और मुक्ति, जीव दर्शन किसको समझाते हो ? प्रेम-तृषा प्रथम जग में प्रियवर, पुर्ण आहुति विलय तभी पाते हो... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
आगंतुक
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आगंतुक

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** आइए श्रीमान आशा करते है आप वैसे न होंगे जैसे बिता साल था वो साक्षात काल था। आपसे हमे बस इतना चाहिए सुख, शांति, सद्बुद्धि सहयोग, उन्नति के साथ भाईचारा चाहिए। मत लाना अपने साथ राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध जगाए जो मन मे वितृष्णा का बोध। पवन स्वच्छ हो धरती उगले सोना समय पर आए ऋतुएँ प्रकृति का संतुलन रहे बना । माना कि हम स्वार्थी व उदण्ड है मिल चुका हमे कर्मो का दण्ड है। कण-कण में जीवन हो हर आत्मा पावन हो सभी के सामने भरी थाली हो चंहु और खुशहाली हो हर हाथ कर्मशील हो हर व्यक्ति धैर्यशील हो नूतन वर्ष स्वागत, वंदन, अभिनंदन तुम्हारा, छोटी सी आशा करना पूरी ह्रदय खंडित न करना हमारा। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान म...
आया नूतन वर्ष
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आया नूतन वर्ष

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** भला मनाए कोई कैसे, दुखद समय में हर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। लाखों लोग हुए हैं पीड़ित, लाखों गए सिधार। लाखों कारोबार हुए ठप, लाखों हैं बेकार। अवरोधित हो गया धरा पर, सभी ओर उत्कर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। वैक्सीन की खोज हो रही, विविध चल रहे शोध। मास्क और नियम पालन का, सबसे है अनुरोध। महारोग से विश्व कर रहा, अविरल है संघर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतन वर्ष। कैसे प्रेषित करें बधाई, कैसे हो सुखगान। तन-मन दोनों मलिन हुए हैं, खड़े कई व्यवधान। कोरोना से हुआ जगत में, कहाँ नहीं अपकर्ष। गया नहीं कोरोना जग से, आया नूतनवर्ष। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्द...
नया साल
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नया साल

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** बीत गया जो पल उसे भूल जाते है, आने वाले कल का जश्न मनाते है, अरमान है दिल मे पुड़ी और मीठाई का, पर सुखी रोटी पर संतोष कीए जाते है, मिले खुशबू बेली और चमेली का, पर रजनीगंधा की ओर बढे जाते है, हम जानते है प्रेम एक मर्ज हुआ करता है, फिर देवदास की तरह शराब पिये जाते है, कुछ गलतिया हम जानकर ही करते है, फिर भी गलतियो पे पश्चाप कीये जाते है, हम आशा और उम्मीद पर समाज बदलते है, पर देखते ही सबकुछ बदल जाते है, कल रो रहे थे 'रूपेश' गुजरे हूए ज़माने पर, आज नववर्ष पर उल्लास मनाये जाते है ! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य सं...
वो खूबसूरती की निशानी
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वो खूबसूरती की निशानी

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो खूबसूरती की निशानी वो पूनम का चाँद, आज सुबह जैसे उतर आया मेरी खिड़की पर लगा जैसे कुछ कह रहा है मुझसे... वो मंद मंद मुस्कुराता रहा और कहने लगा कि देख मुझे... आज सबको रोशन कर रहा कल से फिर खत्म हो जाऊंगा फिर खुद को बनाऊंगा, और सम्पूर्णता को पाऊंगा रुचि!!! सुन यही जीवन है... मैं तो सदियों से हर माह जीता मरता हूं लेकिन हर बार इस दुनिया को शीतल रोशनी से भरता हु लाखों तारे है मेरे साथ... फिर भी तो मैं अकेला हूँ।। लेकिन जब मैं चमकता हु, तो सिर्फ मैं ही दिखता हु... मेरी चाँदनी की रोशनी में ही प्रकृति खूबसूरती पाती है।। बस यही सीखाने आया तुझको, कि हर बार नई शुरुआत होती है हर बार पूर्णता आती है, बस चलते चलते तू कर्मपथ पर हर अमावस के बाद पूर्णिमा ही आती है पूर्णिमा ही आती है परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता ल...
मुझे समझौता ही रहने दो…
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मुझे समझौता ही रहने दो…

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी से , मैंने सौदे तो नही कियें। सच का सामना करने के लिए, मुखौटे भी नही लिए।। मेरा सच, मेरे साथ रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो....... जिंदगी से,प्यार किया। छल तो नही किया।। शब्दों की सलाखों को, मेरे दिल के आर-पार ही रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो......... शिकवे और शिकायतों पर, अब न वक्त जाया कर। शिकायतें सब मेरी, मेरे साथ रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो........ मैं किसी का , अपना कहाँ हो पाया। पराया था, पराया ही रह गया। मुझे अपना तो...रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो....... देख लिया चेहरा दुनिया का, मकसदों और सियासतों का है। मेरा चेहरा, बस मेरा ही रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो। मुझे समझौता ही रहने दो।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
इक्कीसवीं सदी
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इक्कीसवीं सदी

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** इक्कीसवीं सदी को लगा इक्कीसवां साल। आपको हृदय से मुबारक हो यह नया साल। अभिनंदन नववर्ष नव उमंग उम्मीद किरण, करूं अलविदा शत्-शत् नमन पुराने साल। यह काल याद रखेंगी मानव तेरी पीढ़ियां, चंद्रमा का कलंक सदी में यह बीसवां साल। घबराया महामानव प्रकृति चित्कार उठीं, जैसे- तैसे गुजर गया दानव कातिल साल। सदी में यम का जाल कोरोना काल, समय भी याद रखेगा यह बीसवां साल। आओ पधारों सुस्वागतम नूतन वर्ष, तुझे अंतिम सलाम अलविदा रुग्ण साल। हे प्रभु नववर्ष में हर जन खुशहाल रहे, प्रकृति भी संभलें भूलकर यह बीता साल। इक्कीसवीं सदी को लगा इक्कीसवां साल, आपको हृदय से मुबारक हो यह नया साल। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत...
प्रकृति के त्रैमासिक ‘नूतन वर्ष’
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प्रकृति के त्रैमासिक ‘नूतन वर्ष’

अर्चना "अनुपम क्रान्ति" जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दे भेंट धरा पर दिव्य गगन चहुँओर छत्र बिखराता है। जैसे अवनि में स्वयं उतर नववर्ष मनाने आता है।। नटखट खग छोड़ देश अपना यहां कलरव गान सुनाते हैं। और घास-पात की ओसों से करतब कर खुशी जताते हैं।। इस धुँध में भी मकरंद पुष्प की हो सुगंध भीनी भीनी। वाह सुबह खिले जब धूप; ताप सुखमय प्रकृति धीमी-धीमी।। सरसों के पियरे बलखाकर नृत्य जता कुछ कहते हैं। आलिंगन गेहूँ की बाली का कर बधाई संग रहते हैं।। और चने मटर की छीमी की उस नोक-झोक के क्या कहने। गेंदा गुलाब और सुमन कई अवतरित हुये जिम संग रहने।। हम भी ऐसे ही मिलजुलकर खुशियाँ हरएक मनायेंगे । इन मूक जीव अथ प्रकृति के नियमों को सतत् निभायेंगे।। है धन्य धरा यह भारत की जहाँ हर मौसम खिल जाते हैं। एक नहीं यहाँ त्रैमासिक; नूतन वर्ष सदा सुख लाते हैं।। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपना...
ऐ मौत अभी तू वापस जा
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ऐ मौत अभी तू वापस जा

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐ मौत अभी तू वापस जा बीमार की हसरत बाक़ी है। बस देख लूँ उनको फिर आना दीदार की हसरत बाक़ी है।। ग़म जिसने दिए इतने मुझको खुशहाल वो कैसे रहते हैं। आया न समझ में इतनी बस ग़मख़्वार की हसरत बाक़ी है।। साक़ी ने पिलाई जी भर के बोतल न बची मयख़ाने में। फिर भी है शिकायत पीने की मयख़्वार की हसरत बाक़ी है।। अपनों की मोहब्बत से यारों ग़ैरों कि ये नफ़रत अच्छी है। पीकर भी न भूले हम जिसको उस यार की हसरत बाक़ी है।। समझा न किसी ने ग़म मेरा जी भरके निज़ाम अब पीता हूँ। मैं एक शराबी शायर हूँ बस प्यार की हसरत बाक़ी है।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
नव वर्ष
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नव वर्ष

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** हे प्रभु आशाओं का सूरज चमके, बीत गया साल बीस अब न रहें कोई टीस। नव वर्ष का अभिनंदन करते, विगत को भूल नव इतिहास रचायेगें। उत्साह उमंग से करें स्वागत, झूमे नाचे गायेगें। प्राप्त संबल हो सतत, उत्कर्ष का आदर्श का, नव वर्ष की कूख से, जन्म हो नित हर्ष का मातृभाव का वरण, हरण हो प्रेम भाव का, शुभ की दृष्टि सतत हो, सृष्टि बनें उजियारी। कलियों सी खिले, जीवन बगियाँ हमारी, रंगो सी रंगीन हो दुनियां सारी। वर्तमान की मिटे त्रासदी, उर में न् ऊर्जा का संचार हो, यथावत जन जीवन हो। नव वर्ष की नव ज्योति, में प्रभु ऐसी जोत जगा देना। नव वर्ष हो हम सबको, चरण चरण अनुकूल, रहे बरसते रातदिन, सुख वैभव के फूल। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - ...
वो ख़त
कविता

वो ख़त

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** डायरी के पन्नों को पलटते, हमें याद आ गए वो तुम्हारे ख़त कितने महके से हुआ करते थे, वो ख़त, खुशी का खाजाना हुआ करते थे, गहरी नींद से जगा दिया करते थे वो ख़त। जागती आंखों में सुहाने सपने संजोया करते थे वो ख़त!! दिल के हालात और जज़्बात से रूबरू किया करते थे वो ख़त समय की इस दौड़ में ना जाने कहां गुम हो गए वो ख़त, ना वो सपने रहे, ना मीठी नींद भरे सुकून के वो ख़त दूर तक फैली खामोशी, हमसे सवाल करती है कभी-कभी तो बातें हज़ार करती है, कि.. चलो पुराने खतों को फिर से ढूंढते हैं, उन्ही शब्दों को नई पहचान देते हैं, सपने तो अब भी छुपे होंगे उन पन्नों में, कुछ अधूरे, कुछ पूरे, क्या पता फिर से चल पड़ें वो सिलसिलेवार, "वो ख़त"!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म...
२०२० तू जा
कविता

२०२० तू जा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पाखंडी, निष्ठुर, निर्दयी जारे बीस बीस अब तू जा कर अपना मुंह श्याम कारागार में चक्की पीस तू जा जारे बीस बीस अब तू जा। तूने अपनो से किया अलग आज भी ह्रदय रहे सुलग जीवन से तूने नाता तोडा किया सभी को अलग थलग गांव क्या स्मृति से भी तू जा जारे बीस बीस अब तू जा। आंखों से आँसू पाव से रक्त बहाया तूने रोजी रोटी को तरसाया भूखा प्यासा सुलाया तूने सुनी मांग व गोद कह रही तू जा जारे बीस बीस अब तू जा। मिलना था जो दंड मिल गया मेरी करनी का फल मिल गया अब रखूंगा तालमेल सृष्टि से अब चौकड़ी भरना भूल गया मैं हूँ अब प्रभु शरण मे तू जा जारे बीस बीस अब तू जा जारे बीस बीस अब तू जा। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के...
नाराज हो मुझसे
कविता

नाराज हो मुझसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खपा-खपा लगते हो, बस शिकायत तुझसे, मुंह चिढ़ा बात करते क्यों नाराज हो मुझसे? बस यूं ही बात करते, फुरसत क्षणों में तुझसे, वादों पर खरा उतरा हूं, क्यों नाराज हो मुझसे? कभी झगड़ा ना हुआ, शिकायत नहीं तुझसे, बातें नहीं कर रहे हो, क्यों नाराज हो मुझसे? कभी दिल दुखाया ना, हँसकर बातें की तुझसे, मुंह फेर लेते मिलने पर, क्यों नाराज हो मुझसे? साथ-साथ चलते आये, दूर ना हुये कभी तुझसे, बातें करना गवारा नहीं, क्यों नाराज हो मुझसे? जब भी कष्ट मिला है, पुकारा बस मैंने तुझको, पर अब वो बात नहीं, क्यों नाराज हो मुझसे? साथ खाना खाया हमें, खपा नहीं कभी तुझसे, तुम अलग राह चलती, क्यों नाराज हो मुझसे? रात दिन तुझे चाहा था, मुहब्बत बड़ी थी तुझसे, दूर-दूर छुपकर रहते हो, क्यों नाराज हो मुझसे? खेल अधूरा छोड़ों ना, यह प्रार्थना बसु तुझसे, अच्छा नहीं लग...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** अजीब से रिश्ते इस दुनिया के अजीब सी है रिश्तों की दुनिया तरह तरह के किरदार मे लोगों को बहकाती दुनिया कोई सगा, कोई सौतेला, कोई अपना तो कोई पराया तरह-तरह के संबंधों को अपने ढंग से निभाती दुनिया लेकिन सब रिश्तों को पीछे छिपी हुई है स्वार्थ की दुनिया बड़ी मुश्किल से मिलेंगे इस दुनिया मे निस्वार्थ के रिश्ते... ऐसे रिश्तों को ही केवल, दिल से निभाती है दुनिया बाकी तो सब दिखावे के है रिश्ते जो सिर्फ बेमतलब निभाती है दुनिया..... रुचि!!!! मत उलझ इन रिश्तों के भंवर में सबको भटकाती है ये दुनिया चलती जाओ बस कर्म पथ पर सुलझती जाएगी ये रिश्तों की दुनिया अजीब से रिश्ते इस दुनिया के अजीब सी है रिश्तों की दुनिया परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयो...
जा रहा हूँ मैं हूँ साल दो हज़ार बीस
कविता

जा रहा हूँ मैं हूँ साल दो हज़ार बीस

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा करना, नफ़रत स्वाभाविक है, छीना जो है बहुत कुछ, बच्चों से पिता को, बहन से भाई को, पत्नी से पति को, ना जाने कितने रिश्तों से रिश्तों को, कारोबार, ऐशो आराम, सुख चैन, फ़ेहरिस्त लंबी है, द्वेष है, क्रोध है, नाराज़गी है, इच्छा यह सभी की है, कब जाओगे, कब आएगी चैन की नींद, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।। लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने, नदियों को साफ़ पानी, पेड़ों को हरियाली, पहाड़ों को झरने, बेघर पशु-पक्षियों को घर, धड़कनों को सांसें, जीवन को अर्थ, रिश्तों को प्यार, बागों में फूलों की बहार, सर्दी की बर्फ़, गर्मी को ठंडी हवाएं, सूखे को बरसात, ज़िंदगी को मौसमी सौगात, रखना याद हर हार के बाद है जीत, जा रहा हूँ,मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।। दुखों को नहीं खुशियों को याद रखना, मिली है जो सीख, उसे सं...
थोड़ी बहुत पिया करो
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थोड़ी बहुत पिया करो

अलका जैन (इंदौर) ******************** ओ सजनी ना कर शराब बंदी मिन्नतें करे दीवाना दो घूंट में तू भी विश्व सुंदरी नजर आती जान जानी कर मेहरबानी दिवाने आने दे आशियाने में दुनिया से क्या पूछे दिवानै से पूछ शराब क्या है जन्नत में भी शराब मिलती बहुत रानी खुशी हो या गम शराब साथ जिसके जन्नत उसकी दिवाने का बस चले तो शराब राष्ट्रीय पेय घोषित करवा डाले सुन सजनी शराब बांट कहलाये बावले सायाने नेता शराब में नहीं कोई खराबी मान मेहबूबा शराब भरे सरकारी खजाने तो काहे नहीं पिये मयकश मयकशी में है कितने मजा एक घुंट तू पीले जानी घूंघट में तेरी जवानी काहे खराब करे जानी तू भी पी के टन हो जा मे भी जन्नत देखू मजा ज़िंदगी यूं ले हम तुम जानू जिसने नहीं पी शराब उसकी जिंदगी समझो आधी हुई बेवजह खराब जानू शराब से जिंदगी बन जाती मान जानू जिसके साथ हम प्याला हो गया इंसान उसकी यारी दोस्ती कभी नहीं टूटे जानू शराब ऐसे रिश्ते ...
मौन
कविता

मौन

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मौन तो, केवल मन से है। जीवन की आपाधापी में, कलह, क्यों........? मन-मन है। मौन तो, केवल मन से है। कौन जीत गया। कौन हार गया। एक लड़ रहा। एक तैयार खड़ा। यह सारी, क्या........? भागमभागी है। जो चुप न रहा। जो कहता ही रहा। यह शब्द भी, बहुत खुराफाती है। जो समझ गया। और मौन रहा।। मन को मथ, ज्ञान रत्न वो ढूंढ लिया। शोर-शोर में सब गया। मन को तो, कुछ न मिला। जीवन मंथन, जब-जब किया। मौन को, मन में जब धरा। लेश यहीं ही वाकि है। शेष यहीं ही वाकि है।। मौन तो, केवल मन से है। मौन तो केवल मन से है।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...
प्यार ऐसा ही होता
कविता

प्यार ऐसा ही होता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** धड़कन की चाल बढ़ सी जाती जाने क्यों जब तुम सामने से गुजरती आँखों में अजीब सा चुम्बकिय प्रभाव छा सा जाता शब्दों को लग जाता कर्प्यू देह की आकर्षणता या प्यार का सम्मोहन कल्पनाएं श्रृंगारित आइना हो जाता जीवित राह निहारते बिना थके नैन पहरेदार बने इंतजार के प्यार के लहजेदार शब्द लगे यू जैसे वर्क लगा हो मिठाई में संदेशों की घंटियां घोल रही कानों में मिश्रिया इंतजार में नाराजगी वृक्षों को गवाह तपती धूप ,बरसता पानी फूलों की खुशबू लुका छुपी का खेल होता है प्यार में विरहता में प्यार छूटता रेलगाड़ी की तरह बीती यादों के सिग्नल तो अपनी जगह ठीक है उम्र की रेलगाड़ी अब किसी स्टेशन पर रूकती नहीं प्यार का स्टेशन उम्र को मुंह चिढ़ा रहा जब उम्र थी तब बैठे नहीं गाड़ी में आखरी डब्बे का गार्ड दिखा रहा झंडी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी व...
चाहत
कविता

चाहत

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** कहानी गूंजे घर-घर में, कर गुज़र ऐसा कुछ तू भी बदल दे ज़ायका सुनने का, शोरगुल के ज़माने में दुनिया में है दम घुटता, ये कैसा छाया अब मंज़र खरे उतरें ना क्यों हम सब, इंसानियत के पैमाने में ओढ़कर चोला रहबर का, लगे रहबरी ज़ताने में पाप का घड़ा है जब भरता, भटकते हैं ज़माने में सब कुछ पाने की चाहत में, तनहा हो गई ज़िन्दगी परेशां होते हैं जब हम, जवाब ढूंढते हैं मयखाने में लूटने मज़ा जिंदगी का, गिर जाते हैं हद से भी बात जब आती अपने पर, कहते भूल हुई अंजाने में परिचय :-  सुधाकर मिश्र "सरस" निवासी : किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) शिक्षा : स्नातक व्यवसाय : नौकरी पीथमपुर जन्मतिथि : ०२.१०.१९६९ मूल निवासी : रीवा (म.प्र.) रुचि : साहित्य पठन व सृजन, संगीत श्रवण उपलब्धि : आकाशवाणी रीवा से कहानियां प्रसारित, दैनिक जागरण रीवा से ...