मध्यमवर्गीयों का दर्द
संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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सोच-सोच कर रो रहा हूँ
अपनी करनी पर।
कैसा वक्त आन पड़ा
अब सबको रोने को।
चारो ओर मची है
अब मंहगाई की मार ।
फिर भी कहते थक नहीं रहे
अच्छे दिन आगये इस बार।।
कहा से चले थे
कहा तक आ पहुंचे।
क्या इससे भी ज्यादा
अच्छे दिन अब आयेंगे।
जब मध्यमवर्गी लोगों को
घर में भूखे ही मरवायेंगे।
वैसे भी कौन करता परवाह
इन मध्यमवर्गी परिवारों की।
न तो वोट बैंक होते है ये
और न होते है आंदोलनकारी।
फिर क्यों करे चिंता सरकारे
मध्यमवर्गी परिवारों की।।
फंड मिलता है अमीरो से
और वोट मिले गरीबों से।
हाँ पर टैक्स सबसे ज्यादा देते
ये ही मध्यमवर्गी परिवार।
जिस पर यश आराम और
राज करती है देश की सरकारें।
सबसे ज्यादा अच्छे दिनों में
लूट रहे मध्यमवर्गी परिवार।
जाॅब चलेंगे नये नहीं है
और हुए युवा देश के बेकार।
फिर भी अच्छे दिन कहते-२
थक नहीं रही देश की सरकार।
हाय हाय अच्छे दिन
हा...