उड़ी रे पतंग
रीतु देवी "प्रज्ञा"
(दरभंगा बिहार)
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उड़ी रे पतंग, मेरी उड़ी रे।
हुए डोर पर सवार, उड़ी रे।।
इठलाती, बलखाती है झूमती
संग पवन हंसी ठिठौली है करती।
उड़ी रे पतंग, मेरी उड़ी रे।
हुए डोर पर सवार, उड़ी रे।।
पहन चटकीले रंग के परिधान,
बनाती उड़ी हसीन रंगीन निशान।
उड़ी रे पतंग, मेरी उड़ी रे।
हुए डोर पर सवार, उड़ी रे।।
लायी है मस्ती का आलम
छांटी है काले घनेरे बादल।
उड़ी रे पतंग, मेरी उड़ी रे।
हुए डोर पर सवार, उड़ी रे।।
परिचय रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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