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कविता

मध्यमवर्गीयों का दर्द
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मध्यमवर्गीयों का दर्द

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सोच-सोच कर रो रहा हूँ अपनी करनी पर। कैसा वक्त आन पड़ा अब सबको रोने को। चारो ओर मची है अब मंहगाई की मार । फिर भी कहते थक नहीं रहे अच्छे दिन आगये इस बार।। कहा से चले थे कहा तक आ पहुंचे। क्या इससे भी ज्यादा अच्छे दिन अब आयेंगे। जब मध्यमवर्गी लोगों को घर में भूखे ही मरवायेंगे। वैसे भी कौन करता परवाह इन मध्यमवर्गी परिवारों की। न तो वोट बैंक होते है ये और न होते है आंदोलनकारी। फिर क्यों करे चिंता सरकारे मध्यमवर्गी परिवारों की।। फंड मिलता है अमीरो से और वोट मिले गरीबों से। हाँ पर टैक्स सबसे ज्यादा देते ये ही मध्यमवर्गी परिवार। जिस पर यश आराम और राज करती है देश की सरकारें। सबसे ज्यादा अच्छे दिनों में लूट रहे मध्यमवर्गी परिवार। जाॅब चलेंगे नये नहीं है और हुए युवा देश के बेकार। फिर भी अच्छे दिन कहते-२ थक नहीं रही देश की सरकार। हाय हाय अच्छे दिन हा...
फूलों की बगिया
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फूलों की बगिया

शिव कुमार रजक बनारस (काशी) ******************** फूलों की बगिया महकी है, चिड़िया चह - चह चहकी है एक फूल डाली से लटका, अंबर वसुधा देख रहा प्रेम दीवाना एक पागल मुझे तोड़न को सोच रहा मुझको तोड़ दिया हाथों में मन से पुलकित लड़की है । एक फूल माँ की गोदी से दूर कहीं ससुराल चली प्रेम पुष्प टूटा डाली से नयन अश्रु टपकाय चली अश्रु सिमट गए उन नयनों के वह बन गयी जब लक्ष्मी है। एक फूल कविता गीतों का शब्द शब्द से खेल रहा कलमकार के गीत ग़जल का जग में सबसे मेल रहा मिलन विरह की पीड़ाओं को लिखकर मैंने कह दी है। कहि इन्हीं में से एक तो नहीं? परिचय :- शिव कुमार रजक निवासी : बनारस (काशी) शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
पचपन में बचपन की बातें
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पचपन में बचपन की बातें

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** जब जब नववर्ष मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं, पचपन में बचपन की बातें, हँस बच्चों संग बतियाते हैं. साथ मनाते दिन त्योहार, कहीं हाल पूछने जाते हैं, मोरपंख शंख हो बस्ते में, साथी मिल जाये रस्ते में, एक दूजे को खडे खडे, जीवन पूरा कह जाते हैं, पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं। पहला प्यार, छाती की धार, सृजन का सुख, सारा संसार, रुदन उत्पात में दूध दुलार, सोई-जागी संग लोरी-मल्हार, सूखा मुझको, गीले में आप, सर्वस्व समर्पण,सोच ना ताप, गुस्सा, लात, दोष सब माफ, प्रतिकार मुझसे,कहलाता पाप. अब नन्हा-माँ दोनों शर्माते, दूध बोतल में, चाय पिलाते, तब दही छाछ,माखन खाते, पकडी बकरी,मुँह धार लगाते, हँसते सब धूम मचाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं, पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिला...
अपना है कौन…?
कविता

अपना है कौन…?

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कहने को तो सब अपने हैं, लेकिन अपना है कौन? इस झूठ, फरेब की दुनिया में, लेकिन सच्चा है कौन? हमदर्द तो बहुतेरे है तेरे लेकिन जो दर्द को कम कर सके, वो है कौन? मुँह पर मीठे, पीछे बुरा कहते ऐसे तेरे अपने, ये तेरे अपने हैं कौन? जो तेरे दुख में बाहर रोते और भीतर मुस्कुराते, और तेरी खुशी देख कुड़कूड़ाते, ये तेरे ख़ास हैं कौन? ये सब कहने को तो तेरे अपने हैं,, लेकिन अपना है कौन? इस रँगबदलती दुनिया मे, कोई बेरंग सा, साफ दिल वाला है कौन? मत उम्मीद कर इन सबसे तू, इन सबको छोड़कर, बस खुद को देख कि तू है कौन? कहि इन्हीं में से एक तो नहीं? परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा ...
सुंदर मन है असली सुंदरता
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सुंदर मन है असली सुंदरता

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** नही सौंदर्य की कोई परिभाषा तरतीब रहे या बेतरतीब। ये नजरिया होता है आँखों का कोई दूर रहे या कोई रहे करीब।। तन की सुंदरता से ज्यादा प्यारी है मन की सुंदरता। जब कोई मन से प्यार करे तब नही दीखती है कुरूपता।। ये निर्भर है भावों पर, कि, भाव हमारे हैं कैसे वही छबि हो मन में अंकित हैं, हमने भाव बनाये जैसे।। दिव्य गुणों के आगे कभी भी, ठहर न पाये तन का रूप। चाहे सँवारे या न सँवारे, फर्क न कोई पड़े अनूप।। माना, कि इस रूप की ज्योति सब के मन को भाती है। पर, जो होती सच्ची सन्दरता बिन सँवरे, भी लुभाती है।। अतः न होना चाहिये मान रूप रंग का इस जीवन में। जीवन की खुशबू बिखरे भाव से इस बात को समझें अब मन में।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर...
परिवार
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परिवार

संजय जैन मुंबई ******************** जोड़ जोड़कर तिनका, पहुंचे है यहां तक। अब में कैसे खर्च करे, बिना बजह के हम। जहां पड़े जरूरत, करो दबाकर तुम खर्च। जोड़ जोडक़र ......। रहता हूँ मैं खिलाप, फिजूल खर्च के प्रति। पर कभी न में हारता, मेहनत करने से । और न ही में हटता, अपने फर्ज से। पैसा कितना भी लग जाये, वक्त आने पर।। बिना वजह कैसे लूटा दू, अपने मेहनत का फल। सदा सीख में देता हूँ, अपने बच्चो को। समझो प्यारे तुम सब, इस मूल तथ्य को। तभी सफल हो पाओगे, अपने जीवन में।। क्या खोया क्या पाया, हिसाब लगाओ तुम। जीवन भर क्या किया, जरा समझ लो तुम। कितना पाया कितना खोया, सही करो मूल्यांकन। खुद व खुद समझ जाओगे, जीवन को जीने का मंत्र।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक स...
अधूरी कहानी
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अधूरी कहानी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन है एक कहानी, सबने मानी जग जानी, दिल की दिल में रहे, जब करते हैं मनमानी, तमन्ना लेकर आते जन, हो ना पाती जब पूरी, इंसान चले जाते हैं, रह जाती अधूरी कहानी। एक बार की बात है, वृद्ध बता रहा खजाना, अंतिम घड़ी पास में, परिवार ने कहना माना, बताते-बताते साँस छूटी, रह गई अधूरी बात, मन की मन में रह गई, खजाना न लगा हाथ। मियां बीवी चले जा रहे, कार गति बढ़ाई थी, खुश होकर बातें करते, शादी खुशी मनाई थी, रास्ते में हो गई दुर्घटना, दोनों की हो गई मौत, दिल की दिल में रह गई, खामोश रह गये होठ। एक समय की बात है, राजा-रानी चले थे साथ, कहा राजा ने रानी से, बतलाऊंगा कल एक बात नींद में दोनो खो गये, छा गई अंधेरी काली रात, सुबह दोनों चिरनिद्रा में थे, रह गई अधूरी बात। वक्त समय पर काम हो, तब ना रहे अधूरी बात, नहीं पता किस मोड़ पर, हो जाती है मुलाकात...
फागुन गीत
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फागुन गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** उर अभिलाषी है रँगों का, इच्छुक है कल्पना गगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। होली की हुड़दंग मची है, दिशा-दिशा मस्ती छाई है। तन-मन में उल्लास बहुत है, सबके मन होली भाई है। झूम रहे हैं सब नर-नारी, खेल रही रँग सकल नगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। मुख रंगीन किया है तूने, गला और कर भी रँग डाले। पाँवों तक पँहुची रँगधारा, वसन हुए सारे रँगवाले। आशंका है मुझे आज तो, लग जाएगी बुरी नजरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। गली-गली में ढोल बज रहे, होली गीतों की सरगम है। नयन उमंगों से पूरित हैं, परिहासों का अगणित क्रम है। दूर हुए सन्नाटे सारे, हुरियारों से भरी डगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०...
आज़ादी के मज़े
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आज़ादी के मज़े

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** न सुकून है न चैन है डूबा हूँ शोर शराबे में प्रजातंत्र के हल्ले गुल्ले में अभिव्यक्ति के घोर खराबे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में जिसे जो मन भाया कर रहा है समाजवाद की टोपी पूंजीवाद पहन रहा है असली चेहरे देखने को मन तरस गया है एक उतारो तो दूसरा मुखोटा मिल रहा है मजा ले रहे है लोग खून खराबे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में पिछोत्तर साल होने आये है फिर भी भरमाये हुये है सभी का अपना व्यक्तिवाद उसे ही समझ रहे राष्ट्रवाद कोई गा रहा वंशवाद के बारे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में देश का जो होना है होवे मेरे ऐश्वर्य में कमी न होवे अली बाबा अकेला जूझ रहा है चालीस चोर मचा रहे है शोर जल्दी लूटो होने वाली है भोर सोच रहे सब अपनी अपनी कौन सोचे देश के बारे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में परिचय ...
चंद्रशेखर आज़ाद
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चंद्रशेखर आज़ाद

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपना नाम ... आजाद । पिता का नाम ... स्वतंत्रता बतलाता था। जेल को, अपना घर कहता था। भारत मां की, जय -जयकार लगाता था। भाबरा की, माटी को अमर कर। उस दिन भारत का, सीना गर्व से फूला था। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ, वंदे मातरम्... भारत मां की जय... देश का बच्चा-बच्चा बोला था। जलियांवाले बाग की कहानी, फिर ना दोहराई जाएगी। फिरंगी को, देने को गोली...आज़ाद ने, कसम देश की खाई थी। भारत मां का, जयकारा ...उस समय, जो कोई भी लगाता था। फिरंगी से वो...तब, बेंत की सजा पाता था। कहकर ...आजाद खुद को भारत मां का सपूत, भारत मां की, जय-जयकार बुलाता था। कोड़ों से छलनी सपूत वो आजादी का सपना, नहीं भूलाता था। अंतिम समय में, झुकने ना दिया सिर, बड़ी शान से, मूछों को ताव लगाता था। हंस कर मौत को गले लगाया था। आज़ाद... आज़ादी के गीत ही गाता था।। परिचय :- प...
स्वाभिमान मरते देखा
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स्वाभिमान मरते देखा

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** इस दुनिया लोगों को हमनें, पीठ पीछे बुराई बकते देखा। ना जाने कैसा दौर आ गया, जहाँ विश्वास भी ढहते देखा। खुद की दुःख का परवाह नही, दुसरो की सुख से जलते देखा। यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा, और स्वाभिमान को मरते देखा। यहाँ खुशियों के हकदार सभी, पर दुःख में कोई साथ नही। पैसों की बात है हर जगह, और प्रेम की बात कही नहीं। इस मीठे मन में हमने, बुरे ख्वाब ख्याल को पलते देखा, यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा, और स्वाभिमान को मरते देखा। पूरी दुनिया जीत जाएंगे, हम अपने संस्कार से। और जीता हुआ भी हार जाएंगे, बस थोड़ी सी अहंकार से। जिसने की छोटी सी चूक, हमने उसको हाथ मलते देखा, यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा, और स्वाभिमान को मरते देखा। परिचय :- विशाल कुमार महतो निवासी : राजापुर (गोपालगंज) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ...
ताना-बाना
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ताना-बाना

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** एक-दूसरे पर छींटाकशी छोड़कर कल जो था वो भूलकर नहीं रहे मन मसोस कर संभले आज को जीकर मन के भाव सँवार कर तृप्त हो जाए हम प्यार परोसकर प्यार के एहसासो को चुनकर संग-संग जिंदगी का ताना बाना बुनकर जो बिखरा है उसे समेटकर और कुछ उधडा है तो उसे सीकर मिलन की आस को पूरा कर खुशियों के रंग बिखेरकर एक दूजे की सुनकर चले समझ कर सँभाल कर पहले से हो जाए ओर भी बेहतर दिल का हर जख़्म जाए भर क्योंकि समय का पहिया चले निरंतर कितना भी हो जाए अगर मगर बीच राह मे छोड़, न जाना ठहर रूह से रूह का आलिंगन कर जन्मो-जन्मो तक चले संग, बनकर हमसफर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
माँ
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माँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ का आँचल आँखों का काजल मीठे से सपने जैसे खो गए हो अपने बिन माँ के लगता है कोरा संसार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार ऊपर वाले ओ रखवाले अंधेरों में भी देता उजियाले मेरी विनती सुन, दे माँ का प्यार बिन माँ के कहाँ से पाउँगा माँ का प्यार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न...
रश्मियाँ भोर की
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रश्मियाँ भोर की

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है सभी को साथ वो रश्मियाँ भोर की लोगों की चहल-पहल दिखने लगी है सड़क पर साथ चमकती ये रश्मियाँ भोर की कार्य शुरू होने लगे घरों के और जाने लगे दफ्तर, स्कूल को बच्चे सभी जीवन संघर्ष होनें लगा दिन भर की दिनचर्या लेकर साथ रश्मियाँ भोर की ये तो राज गहरा है जिन्दगी में दिनकर, आदित्य, रवि और इस धरती का सखि उजाला देकर अंधकार भू-माता संग लोगों की है हरती ये रश्मियाँ भोर की अस्त भी होते हैं सूर्य देव शाम को दूसरी भोर में उदय होने के लिए हे इंसा ताकि संसारिक बुने सपने, उठ सकें देखने को हँसती रश्मियाँ भोर की चलती है जीवन की डोर कुदरती सुंदरता से भी जो लुभाती है मन को ओस की बूँदें पत्तियों पर पड़ी खिलने लगतीं हैं देखकर रश्मियाँ भोर की परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं य...
बंद दीवारो मै
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बंद दीवारो मै

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** बंद दीवारो मै इश्क सवाल करने लगा हजारो बंदीशे बाद भी सवाल करने लगा छु कर हमें वो खामोश कदमो चल दिये हे बीना सोचे वो हमसे बवाल करने लगा लौट के फिर आएगे इक दिन वो यहां पर तन्हाई के आलम मे वो मलाल करने लगा हमने तो बे इंतहां उन पर यकीं किया, मगर मुहब्बत के नाम पर वो हलाल करने लगा यकीं कोई करता नही सुनाएं किस्से किसको हमारा तो हाल हर कोई बे हाल करने लगा कैद भी किया है हमें तो कच्चे धागे से साहब सच मानोगे यारो हर कोई सवाल करने लगा इश्क के सफ़र मे ऐसी जोफ वो दे गए मोहन यकीनन खुदा भी अब तो कमाल करने लगा परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
नहीं मिला
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नहीं मिला

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जो कुछ खोया मैं ने यहां दुबारा नहीं मिला थी तलाश जिसकी वो किनारा नहीं मिला‌। लौट आता मैं भी किसी मौसम की तरह मुझे तुम्हारी ओर से कोई इशारा नहीं मिला। टूटा,बिखरा और बिखरकर निखरा मैं अकेले जरूरत थी मुझे तब तेरा सहारा नहीं मिला। मेहमान बनकर आए दुख,दर्द जीवन में मेरे, पर खुशियों को ढूढ़े घर हमारा नहीं मिला। स्याह रातों में सिसकियों का साथ मिला उमंग भरे जो मन में वो सितारा नहीं मिला। चीखती हैं अजीब खामोशियां रह-रह के मुझमें मुझे कोई मुझ सा नसीब का मारा नहीं मिला। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दू...
नारी तुम नारायणी
कविता

नारी तुम नारायणी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नारी तुम नारायणी हो हे दयामूर्ति हे आत्मशक्ति हे यशाकीर्ति तुम सदाचारिणी हो नारी तुम नारायणी हो तुम देती संबल फैलाकर आंचल पल पल हर पल तुम दुखहारिणी हो नारी तुम नारायणी हो ममता की मूरत भगवान सी सूरत गहना है अस्मत तुम ज्ञानदायनी हो नारी तुम नारायणी हो तुममें है वो साहस करते हैं आभास देवता भी अनायास तुम दुर्गनाशिनी हो नारी तुम नारायणी हो लेना है लड़कर चाहे हँस कर चाहे रो कर जिसकी तुम अधिकारिणी हो नारी तुम नारायणी हो परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी...
समाज की धुरी
कविता

समाज की धुरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह झुकती है हरदम झुकती है कहीं कचरा विनती कहीं गोबर व टोरती कहीं लकड़ी छिलती कहीं लकड़ी उठाती कहीं घन चलाती कहीं शिशु पीठ पर बांध थी वह झुकती है तो सभी उसे और झुकाने अवसर ढूंढते हैं वह झुकती है क्योंकि वह नारी है उसे संज्ञा अबला की है वह अक्सर दिखती आंखों में आंसू लिए आंचल में शिशू ढाके सिर पर बोझ लिए वह जाती दिखाई देती है खेतों नदियों किनारे पगडंडी पर शराबियों से खुद को बचाती वह झुकती है झूला झूलते टोकनी उठाते उपले थापती वह झुकती कमान कि तरह ऊपर उठ पुनः तार-तार होने के लिए पुनः धरा पर जाने की हिम्मत जुटाने के लिए वह है झुकती है समाज परिवार के लिए क्योंकि वह जानती है वह झुकेगी तो परिवार समाज झुकेगा सुदृढ बनेगा कहीं सहारा कंधे का कहीं लकड़ी का कहीं चौखट पर चंडी बनकर खड़ी मैंने उसे देखा है आंखों में डर लिए अपने आप को छुपाते हुए दीवार दी...
निर्गुण सृजन
कविता

निर्गुण सृजन

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** पीत पल्लव की बारी है, नव कोपल प्रस्फुटन जारी है। सृष्टि का सृजन करके फिर, ये प्रकृति कब हारी है। जीवन की जीवन से देखो, जंग निराली है....... माटी का जो घट खाली है, मनोराग-संचयन भारी है। कर्मो का अर्जन करके फिर, माटी से सतत मिलन जारी है। जीवन की देखो जीवन से, जंग निराली है....... वसन तो इसका तन बना है, प्राण जब दीपक की बाती है। नौ द्वार के राजमहल में फिर, प्रियतम-प्रभु आत्मा से यारी है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........ जब तक ये घट तेल भरा है, तब तक दीपशिखा जली है। कर्म प्रारब्ध पूरन हुए फिर, प्राण बिना ये घट खाली है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........ काया को तो आत्मा ही प्यारी है, हरि-मिलन अंतिम तैयारी है। जब भान हो इस बात का फिर, वही अनुभूति तो चमत्कारी है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है......... परिचय :...
वक्त की बात क्या करें कोई
कविता

वक्त की बात क्या करें कोई

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** वक्त की बात क्या करें कोई फिर वही बात क्या करें कोई हम तो अपने सनम की बाहों में फिर नरम हाथ क्या करें कोई खुद को खोना तुझको पाना है । फिर तेरा साथ क्या करें कोई मुंतशिर इस तरह हुए अरमा फिर नए ख्वाब क्या करें कोई "अनु" अपनी वफा की राहों में। बेवफा रात क्या करें कोई। परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु" निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़ सम्प्रति : अभिभाषक घोषणा पत्र : मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक कर...
टेसू के फूल
कविता

टेसू के फूल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** होले-होले फैल रहीं, जंगल की आग, खिल रहे पलाश, सुबह हो या शाम, बौराये आम, चुप है चमेली, मौन अमलतास, होले-होले फैल, रहीं है आग। फूल आफताब, सुर्ख सा गुलाब, कैद है खुशबू, जहान बदहवास, रूप कचनार, अकेली रतनार, प्रियतम के दिन, प्रियतम के पास, खिले टेसू मौन, चुप चमेली अमलतास। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प...
हिन्दी तेरी शब्दों की मिठास
कविता

हिन्दी तेरी शब्दों की मिठास

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** पढ़ना, लिखना, सुनना तुझको ये विश्वास हमारी हैं, गीत, गजल में तुझे ही गाऊँ अब ये प्रयास हमारी हैं जो अल्फाज़ो में जान भरे वो एक आस तुम्हारी हैं, हे हिन्दी तेरे शब्दों की वो मिठास कितनी प्यारी हैं । वो मिठास कितनी प्यारी हैं ।। इस जग में बोल-चाल की भाषाए तो अनेक हैं, कोई सुना, कोई समझा, कोई कहा एक से एक हैं, न जाने क्या खाश बात है तेरी ही एक भाषा में तुहि अच्छी, तूही सुंदर, और तुही सबसे नेक है । तुझको ही हम समझते रहे, ये अभ्यास हमारी है, हे हिन्दी तेरे शब्दों की वो मिठास कितनी प्यारी हैं । वो मिठास कितनी प्यारी हैं ।। क्या कहु इस हिन्दी को ये हिन्दी बहुत महान है, मातृ भाषा, राष्ट्र भाषा, और भारत की शान है । ये प्यारी और हमारी हिन्दी हम सबकी तो जान हैं, इस हिन्दी के उपकार हम सबको मिली पहचान हैं। तुहि एक ऐसी भाषा है, जिससे हर आस हमारी है...
मिट्टी मेरे गांव की
कविता

मिट्टी मेरे गांव की

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** युगों युगों से रही बोलती, भाषा जो सद्भाव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। खेतों में हरियाली वसुधा, का श्रृंगार कराती है। एक पड़ोसन दूजे के घर, मठ्ठा लेने जाती है। भाईचारा सिखलातीं हैं, गलियां मेरे गांव की । जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। यहाँ सूर्य भी पहले आकर, उजियाला फैलाता है। और पिता के नाम से हर इक, घर को जाना जाता है । आती यादें, चोर सिपाही, कागज वाली नांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। गाँव में किशनू के आने को, ईश्वर भी ललचाते हैं। राम, श्याम, घनश्याम यहाँ, नामों में सबके आते हैं। चारों धामों से बड़कर है, मिट्टी माँ के पांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। परिचय : किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती ...
एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे
कविता

एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** आँखों मे कब तक वो नज़ारे छुपाओगे आँखों ओर पलको को कब तक रुलाओगे, नज़ारो को देख आखों को आंसुओ में कब तक भिगाओगे, एक दिन दोनो नज़ारे देख थक कर रूठ जाएगी अगर आखों में यू ही नज़ारे लिए बैठोगे तो एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे।। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक कर...
क्या करोगे जानकर
कविता

क्या करोगे जानकर

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** क्या करोगे जानकर मेरे बारे में। समझ नहीं पाओगे। इसीलिए तुम अपनी सुनाओ। अपने जीत का कोई गीत गुनगुनाओ। मेरे हृदय के छाले देख घबराओ मत, वो तो अपनों ने दिए हैं, वो ही तो हार हैं मेरे गले का। नहीं , मत लगाओ मोल इस हार का तुम इतने बड़े सौदागर नहीं। नहीं समझ पाओगे इनकी कीमत क्योंकि अभी समय और रिश्तों की चक्की में, तुम पिसे नहीं , नफरतों के सील-बट्टों से तुम घिसे नहीं। ये रिश्ते ना, बड़े अजीब होते। दूर के ढोल जैसे सुहावने से प्रतीत होते हैं। पर जब उतरो इस सागर में, तब सच्चाई दिखती है। उसमें तैरती गंद को देख बड़ी तकलीफ़ होती है। मृगतृष्णा हैं सारे भ्रम के हैं बादल ये कारे। बस स्वार्थ तक ही सीमित, होते कई रिश्ते हमारे। इसीलिए मत पूछो मुझसे कुछ भी अंदर तक जला है दिल फूट पिघलेगा। सुनाओ अभी अपनी कहानी क्योंकि अभी कोरा है रिश्ता, यहीं से अभी समय...