जिंदगी का ये कारवां
डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज'
नागपुर (महाराष्ट्र)
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यूं ही गुजरे जा रहा हैं
जिंदगी का ये कारवां,
बेगुनाह इंसान और
दम तोड़ रही हैं जिंदगियां।
थमने का नाम नहीं, और
बढ़ता ही जा रहा ये सिलसिला।
कहां कमी हुई हुक्मरानों से
और अपनों से बड़ी गलतियां।
गर संभल गये तो रुक सकता हैं
अब भी मौत का ये कारवां।
गलतियों को गर सुधार ले तो,
बिखेर सकते हैं खुशियों का दारवां।
अपनों के बीच आज अपने
ही बेगानें हो चुकें हैं,
पास होकर भी लाशों से
कितने दूर हो चुकें हैं।
चाह कर भी कोई रीति रिवाज
ना निभा पा रहे हैं हम।
अपनों के ही सामने अपनी
जान को बचा रहें हैं हम।
सिसकती मौत और
जिंदगी की ये कैसी जंग हैं,
ना कोई दृश्य शत्रु हैं
ना कोई शरीर भंग हैं।
एक वायरस के आगे
महाशक्तियां भी दंग हैं,
जिंदगी जिना भी चाहे तो
अब जिंदगी कितनी बदरंग हैं।
हाथ उठते हैं मदद के तो
क्यों थम जाता हैं,
इंसान भी आज इंसान की
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