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कविता

प्यार की ठंडी फुहार
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प्यार की ठंडी फुहार

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार में, जब होता है, इंतजार, खुशियों के, गुब्बारे ऊडते हजार, दिन रात चैन कभी पडता नहीं, सफर भी, ये लगता है, फिर बेजार, कभी न की हमनें उनसे बदज़ुबानी, जाने, किस बात की, है उन्हें तकरार, बारिशों में जब भीग गई सारी कायनात, हमनें, फिर मोहब्बत का, किया इज़हार, दिलवर की, नज़र-ए-इनायत, क्या हुई, तन्हा दिल पर पडी, प्यार की ठंडी फुहार परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये ह...
कोई कह दो की ये सब खत्म होगा
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कोई कह दो की ये सब खत्म होगा

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ ******************** जिधर भी देखती हूँ रात्रि का पहरा जड़ा है पराजित हो तिमिर से भाष्कर जड़वत खडा है उजालो का कोई साथी यहाँ का तम हरेगा कोई कह दो की ये सब खत्म होगा समय के सामने रख कर करारी हार का शव अगर तू पूछता है क्यूँ हुआ इतना पराभव नहीं ये सच नही कह कर हमारा भ्रम हरेगा कोई कह दे की ये सब खत्म होगा कहाँ से आ गया भटका हुआ मनहूस साया जहाँ जो भी मिला इससे वही है मात खाया मिलेगा कौन जो अभिमान इसका कम करेगा कोई कह दो की ये सब खत्म होगा हमारी वत्सला धरती कभी क्या फिर हरी होगी विविध आभूषणो से युक्त मुक्ता की लड़ी होगी कौन फिर आ सकेगा जो की इसका क्रम बनेगा कोई कह दो की ये सब खत्म होगा। परिचय :- माधवी मिश्रा (वली) जन्म : ०२ मार्च पिता : चन्द्रशेखर मिश्रा पति : संजीव वली निवासी : लखनऊ शिक्षा : एम.ए, बीएड, एलएल बी, पीजी डी एलएल,...
सामना करुँ
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सामना करुँ

अभय चौरे हरदा (मध्य प्रदेश) ******************** कैसे जाउँ मै पास उसके कैसे मैं सामना करू। कल तक जो खिल्ती थी सुहाग के जोड़े में कैसे मैं उसका वैधव्य का सामना करुँ।। छोटी थी जबसे दुलार किया उसके दुख को कैसे सहारा मैं दूँ। हस्ता खेलता परिवार बिखर गया काटों की तरह कैसे मै उसका संबल बनू।। करीब जाने की हिम्मत नही मुझमें कैसे मैं खुद्को इस योग्य करुँ। कल तक जो सुहाग थे उसके जाने का उनके कैसे ढाढस बँधु।। छोटे-छोटे हैं दो बालक उनके कैसे मैं उनका सहारा बनू। कैसे गुजर बसर होगा उनका अब कैसे मैं उनकी मदद करू।। परिचय :- अभय चौरे निवासी - हरदा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
तुम्हारे लिये
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तुम्हारे लिये

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** तुम्हारे लिये ही सजी ये डगर है। कहाँ हो बिछाई अजी ये नज़र है। कहा था तुम्ही ने हमे चाहते हो। करें याद तुमको सुबह दोपहर है। सजे ख्वाब आँखों तुम्हारे सनम जी। रहे ध्यान अब देख शामो सहर है। मनाते तुम्हे हम चले आ रहे हैं अजी देख होता न तुझपे असर है। कभी तो नजर तुम मिला लो सितमगर। अजी यूँ नहीं आप डालो कहर है। सुनो बात मेरी कहूँ मैं तुम्ही से। भरोसा मुझे देखिये आप पर है। परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी...
वैक्सीन
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वैक्सीन

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वैक्सीन लगाना किसी इंसान की शारीरिक मृत्यु पर मुझे उतना दुःख नहीं होता जितना इंसानियत की मृत्यु पर किसी देह की मृत्यु कुछ पल कुछ घंटे, कुछ दिन या कुछ सालों का मृत्यु है पर इंसानियत की मृत्यु एक युग, एक सभ्यता या हजारों वर्षों की मृत्यु है, किसी इंसान के मृत्यु शाश्वत व सत्य है पर इंसानियत की मृत्यु सत्य की मृत्यु है, मां की कोख में कन्या भ्रूण का कत्ल करना हजारों वर्षों का मानवीय सभ्यता का कत्ल है, बूढ़े मां बाप को वृद्धाश्रम भेजना हजारों लाखों वर्षों के रिश्तों की बुनियादों का ध्वस्त हो जाना, अमृता प्रीतम, निर्मल वर्मा, नेमीचंद कमलेश्वर, सुनिल गंगोपाध्याय आदि साहित्यकार व वुद्धिजीवियों की मृत्यु की खबरों से फिल्मि नायक-नायिकाओं के जन्मदिन की खबर महत्वपूर्ण हो जाना हजारों वर्षों के वौद्धिक विचारों को दरकिनार कर पंगु बना देना, हवश...
तेरे झूठे मन से
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तेरे झूठे मन से

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुझसे तेरे झूठे मन से मैंने कर ली कुट्टी मैं नहीं बोलती। जब देखो तब मुझे सताए बात बात में रूठ जाए मुझसे हर एक राज छुपाए मैं मन का हर भेद खोलती, नहीं बोलती। गली मोहल्ले नाच नचाए आमराई में मुझे बुलाए कान्हा बनकर बंसी की हर ताल ताल पर मुझे नचाए कह दो इस गांव की राधा ऐसे वैसे नहीं डोलती, नहीं बोलती। खींचकर प्यार की लक्ष्मण रेखा वह अपने अधिकार जताए छू ले मेरी कंघी टिकुली आंखों से दर्पण दिखलाएं मेरी क्वारी नजरें शर्म से झुकती टटोलती, नहीं बोलती। कसमें वादों की नींव पर सपनों का इंद्रधनुषी महल बनाए रहेगा प्यार कयामत तक हर पल एहसास कराएं खुशी-खुशी मैं प्रीत के आंगन दिन दोपहरी रात डोलती, नहीं बोलती। उसकी कसमें टूट गई टूट गए कितने वादे लादे फिरते हैं फिर भी जर्जर आस को साधे मैं हूं उससे रूठी रूठी व...
अल्प जरूरतें सागर सी
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अल्प जरूरतें सागर सी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अल्प जरूरतें सागर सी, इतनी भी आसान नहीं राई को परबत सा मान, भ्रम का समाधान नहीं। बच्चों को खेल-खेल में, चंदा ख्वाहिश होती है चाँद सितारे पाने में, काया-कल्प ही होती है जटिल राह के राही को, समझो तुम नादान नही अल्प जरूरतें सागर सी, इतनी भी आसान नहीं राई को परबत सा मान, भ्रम का समाधान नहीं। भाव शब्द भंडार से, जीवन शैली अति सरल है कब कहाँ कैसे क्या, परख होती नहीं गरल है आनेवाली हर विपदा, खुद की है मेहमान नहीं अल्प जरूरतें सागर सी, इतनी भी आसान नहीं राई को परबत सा मान, भ्रम का समाधान नहीं। गणित सदा है सूत्रधार, समीकरण तो बराबर हो जीव भौतिकी रसायन, कुछ भी नहीं सरासर हो परिवार समाजलाभ तो, पुरुष से है परिधान नहीं अल्प जरूरतें सागर सी, इतनी भी आसान नहीं राई को परबत सा मान, भ्रम का समाधान नहीं। परिवर्तन नाम प्रकृति है, मानव भी ये ख्याल रखे य...
ये कैसा तूफान
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ये कैसा तूफान

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** ये कैसी विवशता है, ये कैसा तूफान है, कैसे दाँव पर लगा रहा, इन्साँ को इँसान है। सोचो जरा समझो जरा, संयम से कुछ काम लो, सब धरा रह जायेगा, वो मान हो अपमान है। कर्मपथ जटिल सही, उसको अंगीकार कर, भुजायें बलिष्ट है, बेकसूर पर न वार कर! लक्ष्मीबाई बनो मगर, उनसा कार्य भी करों. उनको नमन मै करू, उन्है नमन तुम भी करो। ऐसी कोई न जिद करो, अहंकार को बढने न दो" जैसी हटेगी धुँध वो, शायद न नजर उठा सको! क्षमा से बढकर, सृष्टि मे कुछ भी बडा है न होगा कभी" कुछ पल के बदले के लिऐं, खुद लिऐ दुआ करो.!!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
प्यार
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प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कोरोना संक्रमण प्रेम की दूरियां बढ़ाता प्रेम की परिभाषा को लील गया। दूरियां से रिश्ते के समीकरण डगमगा गए और आना शब्द रिश्तों की किताब से जैसे हट गया हो। प्रेम पत्र के कबूतर मर चुके आँखों से ख्वाब का पर्दा उम्र के मध्यांतर पर गिर गया। कुछ गीत बचे वो जब भी बजे दिलों के तार छेड़ गए प्यार के हंसी पल वापस रेत मुठ्ठी में भर गए। दिल से ख्वाब हटते नहीं शायद रूहें भटकती इसलिए की उनसे कभी प्यार खुमार लिपटा हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्र...
सूक्ष्म दानव
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सूक्ष्म दानव

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! काल के विकराल गाल में, बन कोरोना ग्रास आया। प्रचंड रूप से उसने फिर, मौत का ताण्डव दिखाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! भय व्याप्त चहुँ दिशा में, करुण रुदन मन ने छुपाया। इसके विभत्स रूप ने फिर, मानव शक्ति को लाचार बनाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! चाँद आग उगलता गगन में, तारों ने हो अंगार बरसाया। हरेक के मन का कोना-कोना, झुलस उठा बेचैन सिसकाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! मृतबन्धु,वत्स, माता-बहनों से चिर- विरह का दुख दिखाया, करुण- चीत्कारों से इसने फिर, हाय! प्रभु कैसा दिल दहलाया। प्रवेश किया जब इसने तन में, निकट को विकट बनाया। सबसे पास था उसको फिर, खुद से दूर बहुत दूर हटाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचा...
पापा
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पापा

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** कोरोंना ने रास्ता है नापा बहुत ही प्यारे थे मेरे श्री पापा बारिश बिना हे ये धरती प्यासी मेरे पापा का नाम था नरसी खेत किनारे चमक रहा है रेती मेरे पापा करते थे खेत में खेती होली के त्यौहार मे उभरे हैं रंग उतरायन में वो उड़ाते थे पतंग घर हमारा था झुग्गि झो्‍पड़े दीपावली मे वो दिलाते कपड़े खेत में वो बहुत ही काम करते भगवान शिवा न किसी से डरते कपड़े मिलमे वो करते थे काम रख दिया उन्होने गुलाब मेरा नाम पढ़ने न आता था उन्हे बाइबल लेकिन वो चलाते थे सायकिल गांव में मुखिया फूला भाई नामदार मेरे पापा थे एक मिल कामदार हमारे घर में निकला था एक चिता पापा ने कहा कि तुम सिगरेट मत पीना पढ़ना चाहे तुम गीता और रामायण श्री गुलाब कहे तुम करना पापा का पूजन परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार...
जिन्दगी  की धूप
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जिन्दगी की धूप

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** जिन्दगी में धूप कभी आई नहीं, जिंदगी हमेशा कुहरे से ढकी रही कितना चाहा, कोहरा चीर निकल जाऊँ ऊपर जा सूरज को ही पकड़ लाऊँ, पर चाहने भर से क्या होता है, चाहने भर से क्या सब मिलता है? तेरी यादें परछाई बन चलती है कोहरे के कारण छिपी रहती हैं, कुछ पत्थर बन अडिग रही, कुछ नश्तर बन दिल गड़ती रही न जाने कब ये कुहरा छूटेगा, धूप का एक टुकड़ा मुझे मिलेगा परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
रंग जोगिया
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रंग जोगिया

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जोग रंग में तरबतर, मलंग हैं बीच बाज़ार, चढ़े ना रंग दूजा कोई, जग डालें रंग हजार.. लाल, हरा हो या पीला, ग़ुलाल रंगों या अबीर, रंग जोगिया में जो रंगा, वो ही खरा पीर फ़क़ीर... मोह में चाहें तन रंगे, करे मलयज भाल बसर, अतरंगी मति पर ना होवे, सतही सतरंगी असर... नित्य भिगोये देह नीर से, कब डालें चित्त नीर, चित्त ढाह जो ढह गया, उबर जायेगा भव तीर... तन रँगे वो रंगरेज हैं, मन का रंगरेज तो पीर, तन मन दोनों ही रंग लिया, वो ही 'निर्मल' फ़क़ीर... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
लड़कियां
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लड़कियां

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छोटी हमउम्र लड़कियां खेल रही है आंगन में खेल में उनकी मसरूफियत किरदार में उनका डूब जाना आसपास फुदकती गिलहरियों को भाता है लड़कियों के फ्रॉक पर बने फूल महकने लगे है और उन पर बनी तितलियों ने भर ली है उड़ान खुले खुले नीले आसमान में। लडकिया कुछ नही जानती वे तो मसरूफ है अपने किरदार में। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय...
बंधन सारे टूट रहे हैं
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बंधन सारे टूट रहे हैं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बंधन सारे टूट रहे हैं साथी सारे छूट रहे हैं कैसे पहुँचे मंज़िल डोली जब कहार ही लूट रहे हैं गेह प्रेम के सूखे है अब धन वैभव के भूखे है सब अहं सातवें आसमान पर देख पसीने छूट रहे हैं रंगहीन संसार लग रहा इंसां का अरमान जल रहा कश्ती बिन पतवार चल रही नाविक भी अब रूठ रहे हैं शुचिता टंगी हुई खूँटी पर सच को चढ़ा दिया सूली पर ख़ुशी के ग़ुब्बारे सारे ही एक एक करके फूट रहे हैं संबंधी का टोटा है अब बहुरैंग़े ख़ुशियों के दिन कब साहिल जिए भरोसे किसके मालिक तुमसे पूँछ रहे हैं परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११...
हालात
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हालात

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आयेंगे? सब कुछ होगा पास मग़र, तन्हा हो जायेंगे। रिश्ते नातों की मर्यादा पता नहीं कब टूट गई। धन वैभव अम्बार लगा पर क़िस्मत फूट गई। निपट अकेले पड़े बेचारे, जो सांस नहीं ले पाए। क़िल्लत है हर जगह, काश ऑक्सीजन आये। विपदा में ही जीना होगा, दूजों को सिखलायेंगे। क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आयेंगे? बार-बार धोते हाथों की भाग्य लकीरें घिसतीं। जीवनरक्षक दवा दुआ, ऊँचें दामों पर बिकतीं। हुआ पलायन मजदूरों का, भूखे प्यासे दिखते। काल कोरोना बन बैठा है, कैसे वो भी टिकते। अपनों के संग रह लेंगे, ये बात सभी दुहराते। अंदर है जो दर्द छुपा, वो खुलकर न कह पाते। पता नहीं कब आ जाए, कुछ, समझ न पाएंगे। क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आएंगे? परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्...
आखिरी शाम
कविता

आखिरी शाम

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** ए संवत् २०७७ की आखिरी शाम है, जो लिपट कर मुझ से ये कह रही है कि, एक बार गले तो लगा लो, अलविदा तो मैं खुद हो रही हूँ.. कभी मैं जीता, कभी वक्त जीत गया, इसी कशमकश में, यह संवत् २०७७ बीत गया.. तारों भरी रात अलविदा कह रही है, अब लफ़्ज नम हो रहे हैं, धड़कन थमने सी लगी है, पर... विक्रम संवत् २०७८ ये कह रही है, उठ.. ईश्वर को नमन कर, नव वर्ष का स्वागत कर.. अलविदा २०७७ स्वागत २०७८ परिचय :-  ओंकार नाथ सिंह निवासी : गोशंदेपुर (गाजीपुर) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने...
डर फिर से लोक डाउन का
कविता

डर फिर से लोक डाउन का

डाॅ. राज सेन भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कैसे सो जाऎं साहब हम निश्चिंत होकर सुकून से क्या बताऎं किस दौर से गुजर रही हैं जिन्दगी हमारी रोज तड़के इस आस में पहुँच जाते हैं चौराहे पर नुमाइश करते हैं दिखते तन और अदृश्य मन की पर कहाँ आता हम सबके हिस्से में रोज काम कल के लिए आस लगाकर बैठजाते हैं दोपहर बाद किसी छाँव तले चाय शाय के लिए हम में से कुछ जोखिमदार अपनी गाढ़ी पूँजी से एक थड़ी या फिर थैला चलाते हैं जानते है अभी परिस्थितियों के प्रश्न सामने आ रहे हैं और शायद हमें लगता है अक्सर हम कम पढ़े लिखे या अनपढों के सामने हम कामगार मजदूरों के सामने जिन्दगी कठिन प्रश्न ही लाती हैं बिना किसी सामयिक नियम का पालन किये और अक्सर रोजी रोटी का प्रश्न तो छूट ही जाता है बहुत कोशिश के बाद भी हम इसका जवाब लिख ही नहीं पाते फिर भी पाठ्यक्रम से बाहर के प्रश्न भी ले आती है जिन्दगी जाने क्यों और लोक डाउन ...
पूरे जीवन में
कविता

पूरे जीवन में

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** पूरे जीवन में एक इंसान ऐसा न मिला जिसका कोई स्वार्थ न हो... कितने रूप है तेरे स्वार्थ, हर जगह बस चलता तेरा ही राज।। कितना भी अच्छा हो रिश्ता, कितना भी लगता हो सच्चा।। लेकिन आ ही जाता बीच में, निकाल कर नया रास्ता अब कहाँ महसूस होती रिश्तों में पहले सी गहराई, ऐसा लगता अब तो मुझको हो गई मैं खुद से भी पराई।। जिधर देखो बस अनजाना है सब, अपना होकर भी बेगाना है सब, हर जगह बस तेरा चलता राज, सब में निहित होता तेरा काज।। कहाँ मिलते अब निःस्वार्थ के रिश्ते बहुत मुश्किल से दिखते अब परमार्थ के रिश्ते अगर मिल जाये कभी कोई रिश्ता ऐसा, तो समझना उसको ईश्वर के मिलन जैसा।। खोना नहीं उसे बनकर अनजान सहेजना उसे समझकर सबसे मूल्यवान।। तभी समझना खुद को भाग्यवान।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहर...
और कुछ नहीं जिन्दगी
कविता

और कुछ नहीं जिन्दगी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** छायी हर तरफ हाहाकारी समय अब पड़ रहा भारी बंद है काम धंधे सब कैसे हो बन्दोबस्त अब कैसे कट रही जिन्दगी बस कट रही जिन्दगी बस डर है बस खौफ है और कुछ नहीं जिन्दगी घर के अन्दर है बैचैनी बाहर है मौत का पहरा ऊपर वाला क्या सोंचे क्या पता इंसान तो इंसान ठहरा विपदा की इस घड़ी में कुछ लोग ऐसे हैं हर हाल में जिनको कमाने सिर्फ पैसे हैं किस बात का गुरुर इन्सान तू करता है यहीं सब छूट जाना है जो जमा तू करता है बस तेरी नेकी जायेगी बस तेरे ये कर्म जायेंगे यहाँ न कुछ लेकर आये थे न ही कुछ लेकर जायेंगे दो पल का "सुकून" किसी को देकर तू देख फिर बदले में ऊपर वाला तूझे क्या देता है तू देख परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप...
दर्द है विरह का
कविता

दर्द है विरह का

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** पथराई आंखों में छलकते आंसुओं के समंदर का दर्द है विरह। किसे पता है, यह किसकी आंखें हैं, किसे पता है ये आंसू किसके हैं, कोई नहीं जानता आंसुओं के समंदर पर ये अश्रु हैं किसके। पिया मिलन की आस लिए, विरह में पथराई सजनी की आंखें अपने बच्चों से विरह हुए, मां की आंखें भी हो सकती हैं या पिता के अश्रुओ का समंदर भी हो सकता हैं विरह केवल बौझिल नहीं है, आंसुओं का समंदर भी नहीं है। जीत का मार्ग भी होता है विरह। सीता से विरह के बाद ही, लंका पर विजयश्री का मार्ग प्रशस्त किया श्रीराम ने। पत्नी रत्नावली के प्रेम से विरक्त होकर, विरह जीवन बिताकर रामबोला से गोस्वामी तुलसीदास बन, रचित किया श्रीरामचरितमानस ग्रंथ विरह में केवल डूबना ही नहीं होता, भवसागर भी पार हो जाता। लेखक परिचय :-  अन्नू अस्थाना निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश कविता लिखन...
बनके “काली”
कविता

बनके “काली”

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** माता रानी का है आगमन हो रहा, उनके दरबार जाकर कृपा पाइए। अपने श्रद्धा सुमन उनको अर्पित करो, सब रहें स्वस्थ, अर्ज़ी लगा आइए। मातारानी का है........... लखनऊ पर है माँ के हेतु कृपा, सारे ही पीठ लेकर है माँ आ गई। विश्व का पहला मंदिर बनाया यहां, पहले दर्शन पे सबपर कृपा होगई। अपने दुःख दर्द की पोटली बांधकर, मातारानी के चरणों मे रख जाइये। मातारानी का है............ तेरे दरबार मे भक्त जो आरहे, उनपे अपना सुरक्षा कवच डालिये। किसकी क्या है जरूरत तुझे ज्ञात है, हर उचित मांग को पूर्ण कर डालिये। आप ही सृजन करती और है पालती, ज्ञान की ज्योति को भी जला जाइये। मातारानी का है........ माँ तेरे भक्त तो सदा आश्रित तेरे, उनको हो कष्ट तू कैसे सह पाएगी। माँ कॅरोना से भयभीत बच्चे तेरे, जग को छोड़ेंगे तो तू भी दुःख पायेगी। तेरे सेवक की माँ तुझसे विनती यही, ब...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** प्रकृति हमें शिक्षा देती, मार्ग हमारे प्रशस्त करती। नदी कहती बहते चलो, मधुर निनाद करते चलो। स्व शक्ति का लाभ ले लो, जीवन की सफ़लता पाओ। विश्व शांति का गीत गाओ, अशांति को दूर भगाओ। प्रकृति हमें शिक्षा देती पर्वत कहते,चोटी देखो, मेरे जैसी ऊंचाई पाओ। दृढ़ता के गुण अपना लो, विश्व का नव निर्माण करो। नवीनता का आश्रय ले लो, श्रेष्ठकर्म से सफल हो जाओ। उड़ती कला में उड़ते चलो। प्रकृति हमें शिक्षा देती। पेड़ कहते,फलते रहो, नम्र चित्त सरल बनो। शीतल छाया दान करो, जग में पुण्य यूं कमाओ, पीढ़ियां याद करती चले। अभिमानी कभी न बनो, क्रोध अंहकार छोड़ दो। सब होंगे काम तमाम, पूर्णता को पा जाओगे। प्रकृति हमें शिक्षा देती। सूर्य चांद कहते चमको, नभ को देदीप्यमान करो, घोर रात्रि का ज्ञान दे दो। सोझरे में खड़े हो जाओ। कर्म करते कर्मयोगी बनो, ऊंच पद को प्राप्त...
मैं बँधन में नहीं लिखता
कविता

मैं बँधन में नहीं लिखता

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** आदत होती है इंसान की, रहे दास या फिर आजाद, दास जीवन नरक समान, करता रहता वो फरियाद। बंधन में बंधकर लिखना, घुट घुटके मरने समान है, आजादी में जो रहता हो, वो जन जीवन महान है। 30 वर्ष से लिखता आया, सीधा सादा इंसान दिखता, रोब झाड़के कितने गये हैं, मैं बँधन को नहीं लिखता। बंधन में जीवन जो जिये, हो जाये जीना तब हराम, सारे जीवन ही अच्छे हो, बुरा होता है बंधन काम। बंधन में जीता था भारत, गुलाम कभी देश अपना, मन की बातें मन में रहे, आजादी बन गया सपना। वीर जांबाज लाख आये, तोड़ डाले गुलामी बंधन, अंग्रेजों के दांत किये खट्टे, अंग्रेज घबरा करते क्रंदन। खाना,पीना, हँसना, रोना, सबके सब हैं बंधन मुक्त, बंधन में एक बार बंधा, मस्तिष्क हो जाता रिक्त। पैदा होता इंसान आजाद, बंधन में बंधता दिन रात, लाखों बंधन बन जाते हैं, कभी उसको लगती लात। लिखने ...
मोहब्बत का नशा
कविता

मोहब्बत का नशा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मोहब्बत का नशा बड़ा अजीब सा होता है। जब मोहब्बत पास हो तो दिल मोहब्बत से घबराता है। और दूर हो तो मिलने को बार बार बुलाता है। और दिलों में एक आग सी जलाये रखता हैं।। दूर होकर भी दिल के पास होने का एहसास हो। मेरे दिलकी तुम ही साँस हो। तभी तो ये पागल है और तुम्हें याद करता है। तुम जहां से गये थे मुझे अकेला छोड़कर। हम आज भी खड़े है वही पर तुम्हारे लिये।। जिंदगी भी क्या है कभी हंसती है तो। कभी अपनो के लिए रोती है। और जीने की जिद्द करती है। जबकि उसे पता है कि अकेले ही जाना है। फिर भी साथ रहने की जिद्द करती है।। चाँद जब भी निकलता है चंदानी उसे खोज लेती है। फिर आँखों ही आँखों से आपस में कुछ कहते है। और दोनों की आँखों से मोती जैसे आँसू बहते हैं। और रात की हरियाली पर सफेद चादर बिछा देती हैं। और मेहबूबा को मेहबूब से सुहानी रातमें मिला देते हैं।। ठं...