Saturday, February 1राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

फिर से होगी सहर
कविता

फिर से होगी सहर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** फिर से होगी सहर उजाला आएगा। अंधियारे का बादल ये छंट जाएगा।। फूल डालियों पर लौटेंगें। भंवरे आकर पहरा देंगे।। गंध हवा में घुल जाएगी। कोयल कूंकेगी गाएगी।। फिर बदला मौसम आएगा। सबमें जीवन छा जाएगा।। हरा भरा गुलशन फिर नगमे गाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। फिर से हाथ मिलाएंगे हम। मिलजुल जश्न मनाएंगे हम।। रंग उड़ेंगे फिर होली के। बंद खुलेंगे फिर चोली के।। नृत्य करेंगे गीत गाएंगे। हाथ कमर में रख पाएंगे।। फिर से रूठी राधा कृष्ण मनाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। फिरसे रोज अजानें सुनकर। नहीं रहेंगे बैठे हम घर।। फिर मंदिर में हलचल होगी। पूजा फिर से अविरल होगी।। धर्म - कर्म लेंगे अंगड़ाई। कर देंगे पिछली भरपाई।। ईश्वर का आशीष नहीं तरसाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। रोजगार फिर घर आएंगे। अन्न पेट भरकर खाएंगे।। नहीं पलायन होगा...
इश्क़-सी कुछ लगे है हवा
कविता

इश्क़-सी कुछ लगे है हवा

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** इश्क़-सी कुछ लगे है हवा मनचली-सी लगे है हवा इससे उससे लिपटती फिरे पागलों-सी लगे है हवा मौसमों-सी बदलती है यह दिल्लगी-सी लगे है हवा बाग, जंगल, पहाड़ी, नदी, ये तो सब को लगे है हवा बन्द कमरों से बाजा़र तक बेहया-सी लगे है हवा परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० ...
लौटेगी ज़िंदगी
कविता

लौटेगी ज़िंदगी

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** इसी कोरोना वायरस ने दुनिया के पहिये को थाम दिया आप भी थम से गए में भी थम गया ओर मानो ज़िंदगी का पहिया जैसे थम सा गया। दिन-रात भी यू कट रही ज़िंदगी पलभर में क्या से क्या बदल गया दुनिया अपनो के जाने से गम के अश्रुओं में बहने लगी सावधानी हटी, नज़र लगी ओर खुशियों को गम में बदल दिया दुनिया के अच्छा वक्त भले ही आज थम गए हो लेकिन उम्मीद है कि ये वक्त भी बदलेगा एक दिन। आज चेहरे की नकली हंसी जैसे चेहरे का नूर ही गुम हो गया सब्र रखो हर चेहरे पे मुस्कान आएगी फिर लौटेगी ज़िंदगी पटरी पे एक दिन। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
अकेला हूं मैं
कविता

अकेला हूं मैं

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सांसों का सिलसिला हूं मैं माया के झंझा बातों में सांसो की आवाजाही में माटी का पुतला हूं मैं पल-पल आघात होता दिल पर कहने को कारवां है कहां तक साथ चले कोई पत्ते उलीचती पगडंडी पर अकेला हूं मैं पल में पथिक पीछे था जाने कहां खो गया उस साथी की छाया में अकेला हूं मैं रविचंद्र भी कभी साथ नहीं चलते इसी तरह विधि के बंधन में बंधा हूं मैं माटी का पुतला हूं मैं परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व व...
संजीवनी बूटी कहा ढुढोगें
कविता

संजीवनी बूटी कहा ढुढोगें

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** तबाह कर दिये जंगल पठार, पर्वत, बची थी खेती जमीन उस पर भी बना लिए पत्थर के जंगल मानवता इंसानियत भी खत्म होती जा रही है, बतलाऔ कहा ढुढोगें अब संजीवनी बूटी और मर रहा है आदमी। हां हां कर मचा विश्व में कृत्रिम आक्सीजन के लिए इस लॉकडाउन महामारी में, उजाड़कर सृष्टि को जो खूबसूरत है, कभी तुमसे कुछ नहीं मांगा बल्कि दिया हमेशा अतुलनीय अनमौल उपहार, आज आदमी बन गया है, आदमी का दुश्मन और मर रहा है आदमी। शैतानी दिमाग पाया है, ईश्वर में भी आस्था कम हो गई है, कुछ अविष्कार क्या कर लिया, ईश्वर को झुठलाने लगा है गगन और तो और अपनी गलती छुपाने के लिए कलयुगी दुहाई देकर बच जाना चाहता है, देख नहीं रहा अपनी गलती आज मर रहा है आदमी। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदे...
ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन
कविता

ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन

अनुपमा पांडेय 'भारतीय' शालीमार गार्डन (साहिबाबाद) ******************** संसद की पावन देहरी से, रक्त दुर्ग की अटारी से, संविधान की गूंजती ऋचाओं से, रावी की झंकृत लहरों से, मां के सुने आंचल से, कफन में लिपटे तिरंगे से, आवाज यही गूंजेगी सदा, आवाज यही गुजरेगी सदा.. ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन, ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन, नमन नमन नमन नमन, नमन नमन नमन नमन, एक बार नहीं शत बार नमन, शत बार नमन, शत बार नमन... हिमालय की तुंग शिखरों से, हिंद सागर के उफानो से, गांधी के अहिंसा के चरखों से, सुभाष के गरजते अंगारों से, फांसी को चूमते भगत, सुख, राज के नारों से, सेलुलर जेल की सलाखों से, जलिया वाले बाग की दीवारों से, सरफरोशी के बसंती चोला से, बिस्मिल की आजादी की गजलों से, इंडिया गेट पर जलती अमर ज्वालों से, आवाज यही गूंजेगी सदा .... ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन..... ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन.... नमन नमन नमन नमन, एक बार नहीं ...
अंतिम विकल्प
कविता

अंतिम विकल्प

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** थम सा गया है हर तरफ शोरगुल जो बांधे कोरोना ने एक से अनेक पुल ये पुल है सबसे अनोखे कि मिलने पर है बिछड़ने के धोखे चारों ओर है बस भय व्याप्त न जाने जीवन कब हो जाए समाप्त खड़े हो रहे हैे शवों के शिखर जो अब तक समेटा, एकदम से जा रहा है बिखर अटल सत्य "अकेले आये सब, सबको जाना भी है अकेले" पर अब तो अनिवार्य हो गया, साथ छोड़ रहना भी है अकेले एकत्र होकर कही स्वयं ही स्वयं को लगा न दे आग तनहा रहे तो आगे ले सकेंगे जीवन के रंगमंच पर भाग वरना जरा जान लो उनसे जिन के घर के बुझ गए चिराग टूटे महामारी का पुल, जो ले हर एक से दूरी रखने का संकल्प न निभा सके संकल्प तो तालाबंदी का पहरा ही है अंतिम विकल्प परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा ...
पृथ्वी दिवस
कविता

पृथ्वी दिवस

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "लोग अक्सर करते हैं जिक्र हमारा, देखते नहीं क्या हो रहा है, हश्र हनारा, जल जंगल जमीन का बिखर रहा नाता, मायूसी के आलम में टूट रहा, सब्र हमारा, जहां, लहलहाते थे, मीलों हरे भरे, जंगल, कुल्हाडी के घावों से रिस रहा लहू हमारा, चीख-चीख कर आगाह कर रहे कई लोग, मतिभ्रम से हो रहा पल पल विनाश हमारा, अनियंत्रित हो रहे हैं, सारे दुनिया, में मौसम, बढती उष्मा से पिघल रहा ग्लेशीयर हमारा, प्रकृति हमेशा देती, इस बात की पूर्व चेतावनी, समय रहते ही जाग कर, बचा लो संसार हमारा." परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन...
विश्व पृथ्वी दिवस
कविता

विश्व पृथ्वी दिवस

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** धरती मेरी हरी-भरी हो, ये संकल्प उठाते हैं वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ यें संदेश फैलाते हैं. वीरों की इस धरती को, हम गुलज़ार बनायेंगे फूलों की बगिया से हर घर को महकायेंगें माटी में ही मिलना हैं, धरती पर ही जीना है आज विश्व पृथ्वी दिवस पर धरती को महकाना हैं धरती का ऑंगन इठलाता, जब पेड़ पौधें लहराते हैं, भू की इस सुंदरता से मन मेरा बहलाता है॥ परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
किताबें
कविता

किताबें

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरे वीरानेपन की है साथी नाता अनुपम जैसे दीया और बाती मन में हो चाहे असंख्य द्वंद्व पुस्तके ह्रदय की पीड़ा को बहलाती मेरे एकांत की विलक्षण साथी सखी मेरी, संगत ना किसी की भाती मेरे सुख-दुख में मुझे गुदगुदाती पल में आंखों से आंसू छीन ले जाती घर बैठे पुस्तक दुनिया की सैर कराती इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र से ज्ञान बढ़ाती वेद, महापुराणों की गाथा पुस्तक गाती बालसंस्कार, नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाती तुम गुरु जगत की, भावों का स्पंदन विविध चरित्र का हो तुम अमिट दर्पण मनुष्य के हर वर्ग का, पठन से खिल उठता चितवन पुस्तक में सिमटा अद्भुत ज्ञान का व्यंजन पुस्तक मनुष्य से देवता तक का सेतु इतिहास रचती पुस्तके मानवता हेतु बन आत्मबोधी बाह्यजगत से कर किनारा अलौकिक शक्ति जगा, ले पुस्तक का सहारा शिथिल जीवन में, उत्साह की आस मित्र...
किताब तो किताब है
कविता

किताब तो किताब है

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** किताब तो किताब है अपनो का प्यार है बीते युग का इतिहास है यही गीता ओर पुराण है दो प्यार करने वालो का छुपा इसमे कई राज है जो अफ़साने बन गए है यह उन्ही का तो ताज है संस्कारो को पाठशाला है गिरता नही कोई वज्रपात मौके हे खुद सम्हलने का अज्ञानियों का मधुमास है किताब, वक्त-ए-मदरसे है बनते यही राम, रावण है पढते-पढते थक जाओगे मोहन जीवन का सार है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
प्रकृति जीवन है
कविता

प्रकृति जीवन है

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** प्रकृति जीवन है, जीवन ही प्रकृति प्रकृति प्राण है, आत्मा भी प्रकृति प्रकृति मरुस्थल में नदी, मीठा झरना है प्रकृति प्रकृति पृथ्वी है, जगत है, धरा है प्रकृति प्रकृति कलम है, दवा है, सस्कृति की गवाह है प्रकृति प्रकृति परमात्मा की स्वयं में गवा है प्रकृति प्रकृति अकेली है, अकेले में ही है प्रकृति इसका का महत्व कम नहीं हो सकता कभी, होने पर दुनिया सशक्त न हो सकती कभी मैं अपनी चंद पंक्तियाँ, प्रकृति के नाम करता हुँ प्रकृति के निस्वार्थता को ह्रदय से प्रणाम करता हुँ परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
पृथ्वी दिवस मनाएँ…. पर्यावरण बचाएँ….
कविता

पृथ्वी दिवस मनाएँ…. पर्यावरण बचाएँ….

शिवेंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जल, जंगल और जमीनें, प्राणाधार हमारे हैं। पूजनीय थे पहले सब, अब हम इनके हत्यारे हैं बंजर होती धरती को, रेगिस्तान नहीं बनने देंगे। बहुत हुई है बर्बादी, अब पेड़ नहीं कटने देंगे। पर्यावरण से है जीवन, इसकी रक्षा करनी होगी। गाँव-गाँव से शहरों तक, अलख जगानी ही होगी। परिचय :-  शिवेंद्र शर्मा पिता : बी.पी. शर्मा जन्म दिनांक : २७/११/१९६३ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) प्रकाशित पुस्तकें : दस्ताने जबरिया, बीन पानी सब सून, सब पढ़ें आगे बढ़ें, उज्जैनी महिमा एवं अन्य १२५ कविताएं व गीतों की रचना आदि। सम्मान : ४० राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मान सम्प्रति : सिविल इंजिनियर (भारत सरकार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
है धरती माँ
कविता

है धरती माँ

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** है धरती माँ तुझे प्रणाम, तू कितनी महान। तेरी गोद मे पले जग सारा, हर प्राणी की तू है जान, तू बड़ी महान। सम भाव से सबको हांके, अन्न जल जीवन, सब समस्या का समाधान, तू बड़ी महान। कभी बहाती चंचल धारा, कभी रूखा रेगिस्तान, हर कृषक की पालनहार, तु है बड़ी महान। तुझ पर अडिंग थमें हुऐ है, महल कचहरी और मकान। तू है बडी महान। तेरी महिमा अपरम्पार, अनंत बोझ सहन कर तुमनें, किया है जनजन पर उपकार तुझसे रोशन है सारा जहान। माँ तुझे शत-शत प्रणाम। वसुन्धरा दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं... परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती ह...
टीकाकरण
कविता

टीकाकरण

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** चलो चलें टीकाकरण केन्द्र इंजेक्शन लगायेंगे दो गज की दूरी से, कोरोना को भगायेंगे चेहरे पे मास्क लगाकर जागरुकता फैलायेगें चलो चलें टीकाकरण केन्द्र इंजेक्शन लगायेंगे घर में रह रहकर, योग को अपनायें है जीवन को स्वस्थ, सुखमय मिलके हम बनायेगे घर बैठकर हम सब कोरोना को भगायेंगे चलो चलें टीकाकरण केन्द्र इंजेक्शन लगायेंगे बच्चों की मस्ती छूटी, खेल-कूद दूर हुआ नानी घर जाने को, बच्चे तरस गए... जल्दी जल्दी कोरोना भगाना नियमों का पालन कर चलो चलें टीकाकरण केन्द्र इंजेक्शन लगायेंगे कोरोना महमारी आने से सब हुए दूर-दूर ना किसी का दुख बाॅंटे ना किसी सुख बाॅंटे अपने- अपने घर रहकर कोरोना को भगायेंगे... चलो चलें टीकाकरण केन्द्र इंजेक्शन लगायेंगे परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचन...
आज पुनः
कविता

आज पुनः

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज पुनः फैल रही है कोरोना वायरस की महामारी। चीत्कार फिर मच रही मानवता पर संकट भारी। समसान में धधक रही है चिताओ की ज्वाला भारी। अर्थव्यवस्था जो पटरी पर थी छीन भिन्न हो रहा है सारी। पूरे विश्व मे कोहराम मची है फिर फयल रही है महामारी नित नवीन वैक्सीन बनी फिर फिर भी मानवता पर यह संकट भारी सूरदास, रैयदश आदि संतो ने, देख लिया था दिव्य दृष्टि से मानवता की यह दुर्दिन सारि योग क्षेम प्रणायाम से ही मिट सकेगी यख दूर दिन सारि मानव ही है इसके जड में मानवता पर संकट भारी वुहान लैब में दुसट चीन ने रच डाली यह कुचक्र सारि हाहाकार सर्वत्र मची है यह संकट अति विस्मय करि। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० र...
गुलाब
कविता

गुलाब

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** रंग गुलाबी, महका मंद समीर, कांटों में गुलाब सजता है महकते गुलाब की अदावरी, मधुबन में खुशबू बिखेरता है गुलाब की मोहक अदा से जग दीवाना, अनमोल प्रीत का ख़ज़ाना अदायगी पर गुलाब की, चाहक भ्रमर और चंचल चितवन बहकता है कांटो में रहकर भी मुस्कुराए, मंत्रमुग्ध करें भीनी भीनी सुगंध खुद का मोल न जाने, हिरण की नाभि में जैसे कस्तूरी गंध दो पल की देकर खुशबू, मदमाता गुलाब ख्वाबों सा बिखरता है मोह लेता है हर मन, खिल उठता भगवन के चरण कमल मन मोहिनी कर श्रृंगार गुलाब का, सजाती केश मलमल ओस भीगी घनेरी जुल्फों में, सुरभित इत्र सा गुलाब महकता है प्रेमियों के प्रीत का प्रतीक, गुलाब की अदा पर कवि रचे कविता नि:शब्द हो बांटता है सुगंध, शख्सियत गुलाब की मधुमिता मालकौंस गाती गुलाब की पंखुड़ियों पर मनभावन भंवरा मंडराता है ना घमंड नजा़कत और नजा़रो...
हिंदी
कविता

हिंदी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश)) ******************** राष्ट्र का मान है सम्मान है हिंदी...! भारत की आन है पहचान है हिंदी...!! मीरा की कृष्ण के प्रति भक्ति है हिंदी...! सुरदास के सूर में शक्ति है हिंदी...!! निराशा में भी आशा की किरण है हिंदी...!! कभी शब्द तो कभी शब्दों का अर्थ है हिंदी...!! राधा कृष्ण के परिशुद्ध प्रेम की परिभाषा है हिंदी...! प्रकृति का मधुर स्वर है हिंदी..!! मानव की मानवता का अस्तित्व है हिंदी...! 'निराला' की कविता का रस है हिंदी...!! पवन की पुरवाई में समाई है हिंदी...! नभ की काली घटाओ में है हिंदी...!! माटी की खुशबू में महकती है हिंदी...! वीरों के लहू में धडकती है हिंदी...!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अप...
काजल का टीका लगा दु
कविता

काजल का टीका लगा दु

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** भारत की सेहत पर खामोशी के नजारे है, किसके हौसलों ने बचा लिया पर हौसला न था किसके पास तो अखियो में जुदा होंने का गम पसार गया मेरे भारत को किसकी नज़र लग गई सोचता हूं कि कभी शनिवार-वार को मिर्ची से नज़र उतार दु फिर से मेरे भारत को उम्मीदो पर काजल का टीका लगा दु। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmai...
सुकून की नींद
कविता

सुकून की नींद

भूपेंद्र साहू रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** चिंताओं के जूतों को दहलीज पे उतार होठों में एक प्यारी सी मुस्कान लेके कर चौखट पार गुजरते हुए खुशियों के लम्हों को अपनी खिड़की से पुकार घर में रख एक ऐसा छोटा सा कोना जहां तू अपनी दिल की बाते दिमाग को सुना वक्त के पिटारे से खुद के लिए, कुछ लम्हें उधार ले ये जिदंगी तेरी है एक सुकून कि नींद ले। अपनों का पेट भरने के लिए अपना पेट काटता है औरों कि रातें चमकाने के लिए अपना दिन जलाता है लेकिन अब बस, चिंताओं को रख परे परेशानियों को दूर हटा बड़े इंतजार के बाद आयी है ये रात यूं ही ना टले ये जिंदगी तेरी है एक सुकून कि नींद ले एक दिन मौत कि गोद में सबको सुकून कि नींद आयेगी फिर तो वक्त भी तुम्हे ना जगा पाएगी इससे पहले कि जिंदगी मौत का खेल खेले ये जिंदगी तेरी है चल एक सुकून की नींद ले ले।। परिचय :- भूपेंद्र साहू पिता : श्री मोहन सिंह नि...
नवरात्री
कविता

नवरात्री

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** नवरात्र में माँ फिर आई है स्वागत में सृष्टि ने धरा सजाई है नौ दिवस नवरूप लिए नूतन वर्ष में खुशियाँ लेकर आई है चित्र शुक्ला प्रतिपदा तिथि गुणगान हिन्दु संवतसर है हमारा अभिमान दुःख मिटे सुख मिले सबको अपार आशाएँ है पूर्ण समृद्धि की बरसे बहार देखो मौसम भी कितना खुशगवार हर घर में सजे तोरणा और बंधनवार प्रकृति ने सुंदर परिधान सजाए नव पल्लव नव मुकुल वृन्द देखो इतराए बौर वृंदो से शै हैं दर्शनीय हर ग्राम ताल सप्त स्वर नवकार वसुधा गा रही हैं लावण्य गान पक्षी सारे फुदकते चहचहाते हर्ष से मानों नवगीत गाते आदि शक्ति को देख सारा जग सरसाया नई उमंगे नये पल नव विश्वास हैं जगाया आओ मिल माता का सजाएँ दरबार माँ दुर्गा शक्ति रुपी हरती कस्ट अपार हिन्दु नव वर्ष विक्रम संवत दो हजार अठ्ठत्तर मनाएँ शक्ति पर्व के रूप से सनातनी धर्म निभाएँ भावसागर को पार कर अपना जीवन ...
जन्म दिवस पर बधाई पत्र
कविता

जन्म दिवस पर बधाई पत्र

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** हे जननायक, भाग्य विधायक, अवध बिहारी राम। जन्मदिवस पर अमित बधाई, है धनु धारी नाम।। सोचा था, हम चलें अयोध्या, जाकर करें प्रणाम। त्रेता युग सा, समय आ गया, फैल गया कोहराम।। माता केकई फिर चिंतित हैं, प्रजा पाल हितकारी। गुप्त राक्षस प्रकट हुआ है फैल रही महामारी।। रहो अयोध्या में ही अब प्रभु, नहीं कोई लाचारी। मत जाना वनवास सहा केकई ने अपयश भारी।। अब तो तुम राजा हो जग, के राजनीति अपनाना। कृपा कोर से ही भक्तों की बिगड़ी बात बनाना।। जन्म दिवस पर विनय पत्रिका, लिखकर शब्द, बधाई। विनय स्तुति भूल गए हैं, क्षमा करें रघुराई।। भक्तों की है विनय जगतपति, योद्धा तो है भारी। भरत, शत्रुघ्न, हनुमत, लक्ष्मण, हैं जिनके आभारी।। नवयुग है, नव युवकों ने, इसका रहस्य पहचाना। भक्तों की रक्षा हित हे प्रभु, लव कुश क...
सावधानी ही बचाव है
कविता

सावधानी ही बचाव है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** स्वस्थ रहो मस्त रहो कोरोना से डरो नही वर्तमान की यह रीत है संयम मे रहो सादगी रहो अभी सबका यही मीत है स्वस्थ रहो ......... दो गज दूरी नियम में रहो यही बचाव का गीत है स्वस्थ रहो .......... जान है तो जहान में रहो इसी से सबका प्रीत है स्वस्थ रहो .......... घर पर रहो सुरक्षित रहो यही जिन्दगानी की जीत है स्वस्थ रहो .......... घरेलू नुस्खे अपनाते रहो डाॅ.की सलाह लेते रहो यही लाकडाउन की जीत है स्वस्थ रहो .......... स्वस्थ रहो मस्त रहो कोरोना से डरो नही वर्तमान की यह रीत है।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर ,पोस्ट- धनेली, जिला - बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
बाबुल का घर
कविता

बाबुल का घर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** निहारती रहती हूँ बाबुल का घर कितना प्यारा है मेरा बाबुल का घर आँगन, सखी, गलियों के सहारे बाबुल का घर लोरी, गीत, कहानियों से भरा बाबुल का घर। बज रही शहनाई रो रहा था बाबुल का घर रिश्तों के आंसू बता रहे ये था बाबुल का घर छूटा जा रहा था जेसे मुझसे बाबुल का घर लगने लगा जेसे मध्यांतर था बाबुल का घर। बाबुल से फरमाइशे करती थी बाबुल के घर हिचकी संकेत अब याद दिलाता बाबुल का घर सब घरों से कितना प्यारा मेरा बाबुल का घर एक दिन तो जाना ही है, छोड़ बाबुल का घर। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे...
गुलाब हो या दिल
कविता

गुलाब हो या दिल

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गुलाब हो या मेरा या उसका तुम हो दिल। तुम ही बतला दो अब ये खिलते गुलाब जी।। दिल में अंकुरित हो तुम। इसलिए दिल की डालियों, पर खिलाते हो तुम। गुलाब की पंखड़ियों कि, तरह खुलते हो तुम। कोई दूसरा छू न ले, इसलिए कांटो के बीच रहते हो तुम। पर प्यार का भंवरा कांटों, के बीच आकर छू जाता है। जिसके कारण तेरा रूप, और भी निखार आता है।। माना कि शुरू में कांटो से, तकलीफ होती हैं। जब भी छूने की कौशिश, करो तो चुभ जाते हो। और दर्द हमें दे जाते हो। पर तुम्हें पाने की, जिद को बड़ा देते हो। और अपने दिल के करीब, हमें ले आते हो।। देखकर गुलाब और, उसका खिला रूप। दिल में बेचैनियां बड़ा देता हैं और मुझे पास ले आता है। और रातके सपनो से निकालकर। सुबह सबसे पहले, अपने पास बुलाता है। और अपना हंसता खिल खिलाता रूप दिखता है।। मोहब्बत का एहसास, कराता है गुलाब। महफिलों की शान, ब...