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कविता

मास्क बनाओ ढा़ल
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मास्क बनाओ ढा़ल

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** उड़ती हुई धूल कण से, छोटे कोरोना कण हैं। हैं सुगंध कण जैसे लेकिन, गंध हीनता गुण है।। गोल गोल आकृति पाई है, गोल गोल ही सिर हैं। धूल कणों के साथ तैरते, चलें कभी स्थिर हैं।। कोरोना मरीज के तन से, उड़ते बन गुब्बारे। मानव तन से भूख मिटाने, फिरते मारे मारे।। स्वांसों से कर मेल, नासिका से प्रवेश वे पाते। स्वांस नली से तैर वायरस, फैंफडों में बस जाते।। ऑक्सीजन को हटा, छेद में अपने पैर जमाते। पल-पल में अपने जैसे, लाखों वायरस उपजाते।। साहस का है काम यहां, अपना एकांत बनाना। प्रभु है मेरे साथ स्वयं को, बार बार समझाना।। जाना आना मास्क लगा, मत पास किसी के जाना। समय बुरा है कुछ दिन तक, घर में भी मास्क लगाना।। कोरोना अदृश्य वायरस है, शत्रु वत आ जाए। ढाल मास्क की धारण करना, ये ही जान बचाए।। विश्व ...
नवनीत
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नवनीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव। आसमान के कान काटते, लोहा रेत सीमेंट। थर्राया है मजदूरों का, पन्नी वाला टेंट।। मन यायावर खोज रहा है, शीतल तरु का ठाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।१ निगल लिए हैं अब सड़कों ने, पगडंडी के पाँव। पेटरोल डीजल के कीर्तन, करें कान में काँव।। खपरैलों ने भी साहस कर, लगा दिया है दाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।२ चकाचौंध के आसमान में, उठने लगा गुबार। फव्वारों के उन्नत मस्तक, जता रहे आभार।। स्वागत करने खड़े किनारे, बाँट जोहते गाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
संकट का यह दौर
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संकट का यह दौर

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** आज मानवता संकट में है वक्त कैसा सितम ढा रहा है इंसान को इंसान से दूर कर रहा है बेवजह लोग बीमार पड़ रहे हैं हमें हमारे ही घर में कैद कर रहा है अपनों से दूर कर रहा है एक अदृश्य शत्रु दुश्मन बन रहा है संपूर्ण मानवता को अपने वश में कर रहा है काश कोरोना तुझे हम देख पाते हमारे भारतीय सैनिक से तुझे गोली मरवाते अगर नहीं मरता तू गोली से कमबख्त तुझे हम बम से उड़बातें फिर भी नहीं मरता तो भारत के तेजस व सुखोई लड़ाकू विमान से तुझे टारगेट बनवाते इस दुनिया से तेरा नामो निशान मिटाते वक्त तू कैसा सितम ढा रहा है इंसान को इंसान से दूर कर रहा परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल अध्य...
समय है… गुजर जाएगा
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समय है… गुजर जाएगा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** मुश्किल वक्त है, गुजर जाएगा फिर से नया सबेरा जगमगाएगा। संयम, धीरज, मानवता की अहमियत समझ हे "मन" विकट, विषम, परिस्थितियां है बहुत ना घबरा "तू",खुद पर भरोसा रख बढ़ चल कर्म के रास्तों पर, आगे बढ़, हर मानवता को जुट कर दे हाथ, ना विचलित हो न डर धीरज की परिभाषा को सार्थक कर आंसू की एक बूंद भी हाहाकार मचा दे समंदर में हिम्मत हौसला हो साथ तो न टिक पाएगा कोई तूफान समंदर में अब से समझ ऐ नादान तू जीवनभर के लिए ना खुद को समय से बलवान समझ ना कर अब नादानियां, प्रकृति के विरुद्ध ना ही आंसू का कोई कण दे उन मासूम जीवों की आंखों में हर जीव के खून का हर कतरा, नासूर बना है आज पूरी दुनिया का, सुना था जिंदगियां बदलती हैं समय के साथ पर अब समझ आया बदलता हुआ समय भी जिंदगियां उजाड़ सकता है पल में अमन, चैन, सैयंम, धीरज ...
जिंदगी एक सफर
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जिंदगी एक सफर

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** जिंदगी एक सफर है जिंदा रहने का, जिंदगी में जिंदा रहना ही जिंदगी है, आज इंसानियत में इंसानियत को लुटा बैठा है, मानो जिंदगी से जिंदगी को लुभा बैठा हैं, और बहते हुए पानी में हिरे को डूबा बैठा हैं, कहते हैं जिंदगी में जिंदगी गवां बैठा है, जिंदगी में जिंदगी के बहते हुए पानी को देखो, जिंदगी में जिंदा रहने के बहाने न देखो, खुश नसीब है वह जिंदगीयों के मालिख, जो जिंदगी से जिंदगी को लगा बैठा है, जो राष्ट्रीय सम्मान पर लिपट आए तो कह देना जिंदगी में जिंदगी गवां बैठा है, वतन पर वतन की इंसा को डूबा बैठा है और प्यार व त्याग से दूसरों को रुला बैठा हैं ये पल भी ऐसा है मानो सुबह कुछ पाया और रात में गंवाया परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
देखते ही देखते
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देखते ही देखते

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देखते ही देखते वर्ष २०२० बीत गया और २०२१ में हम प्रवेश कर गए। युं तो कई साल आते हैं, गुजर जाते है कुछ यादों में मीठी सी कसक बन बस जाते है कुछ खट्टी इमली का स्वाद छोड़ जाते हैं। पर २०२० एक अलग अनुभव लेकर आया। विश्व कोरोना से संक्रमित हुआ। दुनिया सिमट गयी, लोग घरों में कैद हो गये, हवाएं भी जहरीली हो गयी, सब कुछ जैसे थम गया, मशीनी जिंदगी में ठहराव आ गया। पर यह कोरोना जीवन को एक नया संदेश दे गया, आपसी रिश्तों को महका गया, बिखरे परिवार में नये रंग भर गया। रिश्तो को एक नई आभा, नया रंग दे गया। आवश्यकताओं को सीमित कर गया, जीवन को एक नये मायने दे गया। एक ही धरातल पर सबको खड़ा कर गया। ईश्वर में भक्ति जगा गया, जरूरतमंदो की सहायता करना सीखा गया। कुदरत हमको बहुत बड़ी सीख दे गई। प्रकृति से मत उलझो, पर्यावरण को मत नष्ट करो, ईश्वर की बनाई दुनि...
अभिशाप नही
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अभिशाप नही

गणेश रामदास निकम चालीसगांव (महाराष्ट्र) ******************** कोरोना अभिशाप नही यह है एक आम बिमारी खुद का खयाल रखो बस यह बिनती है हमारी। डरना नही इस बीमारी से बस धोते रहना साबुन से हाथ सबको यह हो सकती है यह देखती नही उच्च नीच जात पात डरना इस बीमारी से भीड़ भाड़में मत जाओ हो सके तो आप सब हर जगह मास्क पहनते रहो। बिना मास्क के तुम कभी इधर उधर मत टहलो भीड़ में जाने से अच्छा है आप घरमे ही रह लो। डरना नही इस बीमारी से बस सावधानी से रहना अफवाहों चक्कर मे लोगो भुलकर भी नही बहना। परिचय :- गणेश रामदास निकम निवासी : चालीसगांव (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवि...
मानवता का रुदन
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मानवता का रुदन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज करोना फिर बढा है मानवता का रुदन बढ़ा है। चाह अमृत की है मगर चीन ने विष-वमन किया है। यह काल महा प्रयलंकार बना है अब वायु में यह वायरस घुला है। प्राण वायु पर पहरा है आज कल यह षड्यंत्र गहरा है। आज मानव गिद्ध बना है हर स्वांस को वह लूट रहा है। मानवता है सेवा भाव फिर दानव बन कोई लूट रहा है। विस्वास प्रेम सौहार्द का वह- क्षण-क्षण, पल-पल घुट रहा है। जीवन उपयोगी अवषधियो को लुटेरे ऊंची कीमत पर बेच रहे है। धैर्य संयम से ही जीतेंगे फिर से नव जीवन खिलेंगे। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
ज्ञान का सागर
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ज्ञान का सागर

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** देखने में छोटी होती है पर इसमें होता ज्ञान का भंडार है इसके बिना शिक्षा की कल्पना करना बेकार है पुस्तकें ज्ञान प्राप्ति का जरिया है इसमे बहता ज्ञान का दरिया है पुस्तकें हमारे अकेलेपन में साथी होती है बोरियत को दूर भगाती है पुस्तकें ज्ञान के साथ-साथ हमारा मनोरंजन भी कराती है कभी हंसाती है और कभी रूलाती है पुस्तक को अपना जीवनसाथी बनाएँ खुद को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाएँ पुस्तकें होती है हमारी मित्र और गुरु जब भी समय मिले पढ़ना करें शुरू पुस्तकें हमें अंधकार से रोशनी की तरफ ले जाती है हमारे जीवन को उज्जवल बनाती है परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
हाहाकार
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हाहाकार

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोरोना ने मचाया हाहाकार कृष्णजी लगा दो नैया पार बेचारे बच्चे पूछ रहे हैं कब हम बाहर निकलेंगे? कब हम स्कूल जाएंगे ? कब हम मैदान में खेलेंगे ? सुन लो भक्तों की पुकार कृष्णजी लगा दो नैया पार।। बड़े -बूढ़े प्रार्थना कर रहे, घर में कब तक बंद रहेंगे? हाथ धोए सब परेशान हुए शुद्ध हवा कब सांस लेंगे ? जीना हो गया अब दुश्वार, कृष्णजी लगा दो नैया पार।। मजदूर बेचारे बिलख रहे दाने -दाने को तरस रहे हैं। कामकाज सब छूट गए, घर बार अब टूट रहे हैं।। दाने-दाने को हुई दरकार कृष्णजी लगा दो नैया पार।। जब-जब होवे धर्म की हानि तब तब तुम जग में आते हो कोरोना दानव ताण्डव नृत्य क्यों नहीं अब चक्र उठाते हो? वादे को करो अब साकार। कृष्णजी लगा दो नैया पार।। मानवता अब जाग गई है सर्वत्र सेवा भावना आ गई डॉक्टर, पुलिस, कर्मचारी तन मन...
हे पंछी नन्हे…
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हे पंछी नन्हे…

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** हे पंछी नन्हे.... संभलकर भर तू उड़ान! हैं ज़िंदगी अनमोल जान!..... गगन हो रहा रक्तिम लाल, गिद्ध उड़ रहे ओढ़े खाल, हर ओर नुकीले पंजो वाले, रखना रे खुद का ध्यान! संभलकर भर तू उड़ान!.... हैं ज़िंदगी अनमोल जान! हो गई हैं निष्ठा बागी, रोक उड़ानों पर हैं लागी बातो में न आ जाना बंदे, नही पिंजरे में तेरी शान, संभलकर भर तू उड़ान!!...... हैं ज़िंदगी अनमोल जान! जगह जगह लगे हैं फंदे, बहेलियों के यही हैं धंदे, चुग्गा दिखा पर कतरेंगे, ना रहना इससे अनजान! संभलकर भर तू उड़ान! हैं ज़िंदगी अनमोल जान! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
एक उम्मीद
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एक उम्मीद

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** हर तरह प्राणवायु बिखरी है, फिर भी चारों तरफ शोर है।। हम ही काबिल न बचे अब लेने को, हमारे ही फेफड़े अब कमजोर है।। अभी भी वक़्त है सम्हलने का, खुद को ऊर्जा से भरने का।। थोड़ा आसन थोड़ा प्राणायाम और थोड़ा वक्त प्रकृति को देने का।। चलो फिर से पेड़ लगाए, अपनी प्राणवायु स्वयं बनाये।। खुद को फिर मजबूत बनाये अपने को और अपनों को बचाये।। ये वक़्त ही तो है गुजर जाएगा, फिर एक नया सवेरा आएगा।। हम आशाओं के नवदीप जलाए, और दुनिया को फिर से जगमगाये।। माना जो हो रहा है, वो बहुत दर्द दे जाएगा।। मगर हिम्मत रख ले दोस्त, बहुत जल्द ही सब ठीक हो जाएगा।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा...
अब समझ आ रही है
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अब समझ आ रही है

रामकृष्ण शर्मा गुलाबपुरा भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** ऑक्सीजन की कीमत अब समझ आ रही है काटे थे पेड़ धड़ल्ले से अब धड़ल्ले से जान जा रही है बहुत रह लिए शहर अब गांव की याद आ रही है बसाए बेहिसाब सामान अब जिंदगी "बेड'' पर सिमटी जा रही है समझते रहे खुद को शहंशाह अब जीने में भी मुश्किल नज़र आ रही है जिंदगी हाथ में है हमारे अब लापरवाही भारी पड़ती जा रही है परिचय :- रामकृष्ण शर्मा (व्याख्याता) निवासी : गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...
कोरोना का संदेश
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कोरोना का संदेश

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** धरती के प्रबुद्ध प्राणियों माना कि तुम सब संसार के सबसे जहीन प्राणी हो। मगर ऐसा तुम सोचते हो, मेरी नजर में तो तुम बुद्धिहीन ही नहीं सबसे बड़े बुद्धिहीन हो। क्योंकि तुम स्वार्थी हो,निपट कलंकी हो, खुद को इंसान कहते हो, पर इंसान कहलाने के लायक नहीं हो। गलतियां करके भी औरों को दोष देना तुम्हारी फितरत है, तुम्हें तो अपने आप से भी नफरत है। तुमने तो भगवान को भी हमेशा दोषी ठहराया, अपने कर्मों में कभी खोट न नजर आया, जबसे मैं आया तुम्हारे तो भाग्य खुल गए भाया। मैं कोई रोग नहीं दहशत भर हूँ, बहुत कुछ देखने सुनने तुम्हें समझाने भी आया हूँ तुम्हारी औकात बताने आया हूँ। क्या तुमने इंसानी धर्म निभाया? अपने माँ बाप, परिवार, समाज को तुमने क्या-क्या नहीं दिखाया? लूट, हत्या, अनाचार, अत्याचार षडयंत्र, भ्रष्टाचार का नंगा नाच दिखाया। प्रकृति...
विपुरुषत्व की परिभाषा
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विपुरुषत्व की परिभाषा

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बच्चे से जब जवान हो, बढ़ती है परिजन आशा, विकास में हो भागीदारी, ये पुरुषत्व की परिभाषा। पुरुषत्व वो गुण होता है, जो करता जनहित काम, हर क्षेत्र में जन नाम हो, जीवन बन जायेगा धाम। हर युग में हुये पुरुष वो, मिटा डाले जिन्हें संताप, धर्म कर्म की बेल फैली, उड़ ये पल में सारे पाप। एक से बढ़कर एक हुये, किसका यहां पे नाम लूं, किस गुण की चर्चा हो, हर मानव को पैगाम दूं। भगवान राम अवतार ले, राक्षसों को संहार किया, पुरुषत्व की दी परिभाषा, अमन का ये पैगाम दिया। भागीरथ का जन्म हुआ, लाया वो धरती पर गंगा, जीवन भर वो संघर्षमय, कर गया जन भला चंगा। श्रीकृष्ण अवतार लिया, पुरुषत्व का दिया पैगाम, पापी मिटा दिये पल में, धर्म कर्म का फैला नाम। देव आये हर युग में तो, पुरुषत्व का ले सिर भार, जुटे रहे काम में हरदम, मानी नहीं कभी भी हार।। पुरुषत्व की...
आओ मिलकर किला लड़ायें
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आओ मिलकर किला लड़ायें

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ मिलकर किला लड़ायें कोरोना को दूर भगायें दो गज दूरी मास्क जरूरी का गतिरोध बना बढती गति पर हम रोक लगायें। कोरोना की दूसरी लहर गांव कस्बा या हो शहर नहीं सुरक्षित है कोई भी हर तरफ इसका कहर बारंबार सेनेटाइजर लगायें कोरोना पर काबू पायें। कोरोना का देखो वार हर घड़ी में एक शिकार अनवरत बढ़ रहा निरंकुश सकल राष्ट् में हाहाकार लापरवाही छोड़ सभी हम जीवन है अनमोल बचायें। आगे और बड़ा संकट है पथ पर कंटक ही कंटक है आक्सीजन कम कैसे बचें हम समस्या विकराल विकट है हम सुधरेंगे युग सुधरेंगे पंक्ति को चरितार्थ बनाये। विपत्ति का ये दौर है विपक्ष कर रहा शोर है सर्वदल एकजुट हो जायें वरना ना होगी भोर है इन्हें छोड़ आगे आयें कोरोना को दूर भगायें। जान है तो जहान है नेता भीड़ हेतु परेशान हैं अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता इनका तो बस लक्ष्य एक है जीवन अपना सुल...
देखते-देखते
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देखते-देखते

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आंखे है दहकी दहकी बातें है बहकी बहकी मैं बस देखता ही रहा वो गया देखते देखते हालात बिगड़े बिगड़े रहनुमा तगड़े तगड़े रोक सकते थे उसे पर वो गया देखते देखते मंजर सहमा सहमा माहौल गरमा गरमा अपने देखते ही रह गए वो गया देखते देखते कोई नही अपना अपना हर रिश्ता सपना सपना करते रहो अब इंतजार वो गया देखते देखते दिया प्यार तौल तौल की नेकी बोल बोल कौन सुने दिल खोल वो गया देखते देखते वो गया देखते देखते। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...
प्रहार
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प्रहार

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कब थमेगा सिलसिला' मौत के प्रहार का! हे प्रभु तिनेत्र धारी' काल के संहार का! जो यहाँ निर्दोष है' वो भी है 'डरे हुए! धैर्य अब बचा नही' दर्द है 'प्रलाप का! दूर कही हंस रहा' काल मुंह फाडे हुए! बिषम परिस्थिति बनी, जल रहा दवनाल सा! मौत ताण्डव करे, धरा भी अब शून्य है! अब क्रोध चहुँ ओर है' कुछ कही थमा नहीं! गरल विष फैला हुआ, हर तरफ बस 'धुध है! रक्त पानी बन चला, कैसा ये संताप है! लडे तो किससे लडे" जिसका न अस्तित्व है! कुछ तो अब रास्ता दिखा' मेरे प्रभु तू है कहाँ! कोई शक्ति ढाल दे, अस्तित्व को आकार दे! अब तो अधेरा दूर कर, प्रकाश ही प्रकाश दे! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
चांदनी
कविता

चांदनी

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान में बादलों का डेरा और चांद का सफर गोरे काले छितरे से बादलों में चांद कभी छुपता कभी निकलता बच बच के भागा जा रहा है ना जाने कहां? मध्यम सी रात नीरवता छाई है चांदनी फिसल रही है छतों से मकानों से आकर पेड़ों पर अटक गई आहिस्ता-आहिस्ता पत्तियों से टपकने लगी चांदनी ... अब धीरे से गली में बिखरने लगी असीम शांति की अनुभूति ... मैं आंखों से बटोरने लगी अस्तित्व में समोने लगी चांदनी की शुभ्रता चांद फिर बादलों से उलझा अठखेलियां करने लगा चांदनी सिमटी फिर बरसने लगी पेड़ों के साए बढ़ने लगे अजब खुमारी छाने लगी लगा समय थम जाए बस ये चांद चलता रहे मैं चांदनी पीती रहूं इस निशब्दता को जीती रहूं ये हठी चांद चलता ही जा रहा है अब खिड़की पर ठिठक गया श्वेत धवल चंचल चंचल चांदनी कमरे में बरस पड़ी उनिदी आंखों से मैं फि...
आज फिर कोई रोया
कविता

आज फिर कोई रोया

अंकु कुमारी शर्मा गोपालगंज (बिहार) ******************** आज फिर कोई रोया फिर कोई टूटा कितनी निर्भया, कितनी प्रियंका अब किसकी है बारी न्याय का गुहार, मोमबत्ती जलाकर क्या फायदा हर रोज जलती इस नर्क में कई नारी और कितना नारियों का चीरहरण बाकी है न्यायालय भी शान्त पड़ी है, किससे अब गुहार लगाए क्यों होती है चरित्रहीन नारियां ही नारी क्या इंसान नहीं। हर युग में चीरहरण होता है नारी की अग्नि परीक्षा भी देती नारी क्या... ये नारी का अपमान नहीं। सर्व शक्तिमान मान बैठे हैं पुरुष पुरूष क्या भगवान है खुद के गिरेबान में झांक कर देख ये बल रहा अभिमान है ये ताकत दिखाते फिरते क्या इतना बड़ा शक्तिमान हो ये शक्ति नहीं है तेरी निचता से भी नीच तेरा काम है। कल तक थी खुशी की जिन्दगी कब आ जाएं निर्भया, प्रियंका की जिंदगी क्यों कदम बढ़ाते डर सहम कर? दुनिया के हजारों प्रश्नों में घिर जाती है नारी पुरूष से क्यों क...
नारी
कविता

नारी

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** नारी से ही जगत में, है नर का सम्मान। शक्ति बिना शिव भी बनें, पल में शव प्रतिमान।। जिसकी गोदी में पलें, उद्भव और विनाश। शक्ति पुञ्ज शिव सहचरी, काटे भव के पाश।। नारी से ही चल रहा, यह जैविक संसार। नारि बिना नर का सकल, बल विक्रम बेकार।। नारि बिना संसार का, हो न चक्र गतिमान। अतः सदा इसका रखें, सभी तरह से ध्यान।। परिचय :- अनन्या राय पराशर निवासी : संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी...
जिंदगी का ये कारवां
कविता

जिंदगी का ये कारवां

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** यूं ही गुजरे जा रहा हैं जिंदगी का ये कारवां, बेगुनाह इंसान और दम तोड़ रही हैं जिंदगियां। थमने का नाम नहीं, और बढ़ता ही जा रहा ये सिलसिला। कहां कमी हुई हुक्मरानों से और अपनों से बड़ी गलतियां। गर संभल गये तो रुक सकता हैं अब भी मौत का ये कारवां। गलतियों को गर सुधार ले तो, बिखेर सकते हैं खुशियों का दारवां। अपनों के बीच आज अपने ही बेगानें हो चुकें हैं, पास होकर भी लाशों से कितने दूर हो चुकें हैं। चाह कर भी कोई रीति रिवाज ना निभा पा रहे हैं हम। अपनों के ही सामने अपनी जान को बचा रहें हैं हम। सिसकती मौत और जिंदगी की ये कैसी जंग हैं, ना कोई दृश्य शत्रु हैं ना कोई शरीर भंग हैं। एक वायरस के आगे महाशक्तियां भी दंग हैं, जिंदगी जिना भी चाहे तो अब जिंदगी कितनी बदरंग हैं। हाथ उठते हैं मदद के तो क्यों थम जाता हैं, इंसान भी आज इंसान की ...
संकल्प
कविता

संकल्प

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आद्य मन के भाव समर्पित l कृतज्ञता से करें अर्पित l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर, करें वंदना अति हर्षित l माँ के रक्त से तन है सिंचित, वाणी से वर्त्तन पोषित l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर करें वंदना अति हर्षित l स्वर से वर्ण है श्रृंगारित, हिंदी पल्लव (रस, छंद, अलंकार) से सुरभित l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर, करें वंदना अति हर्षित l द्यू लोक से उत्तर धरा पर, व्यक्त हुई यह वाणी है l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर, करें वंदना अति हर्षित l भारत गौरव गाथा की, परिचायक हिंदी भाषा है l भाषा भारती मात हमारी, हम ही उत्तराधिकारी l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर, करें वंदना अति हर्षित l परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव पुष्प सेवा ...
कौन है
कविता

कौन है

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मन बेचैन है, न जाने किसके ढुंढ रहा है जी चाह रहा है, किसी को गले लगा लूँ। किसे लगाऊ? जो मुझे अच्छा लगे, या मैं जिसको अच्छी लगूँ पृथ्वी ने आकाश को चूना सागर ने नदी को, चाँद ने चाँदनी को, सूरज ने रश्मि को, मेरे मन ने उसे माँगा, जो पहुँच से बाहर है, जिसके स्पर्श से मैं अनजान हूँ, वो मेरे प्राणों को व्याकुल करता है।। मैं ढूँढ रही हूँ उस ज्योति को, जो जीवन राह को अंधेरे से निकाले, मेरी मौन व्यथा को सुने संगीत रागिनी का रस-पान कराये।। भटक रही हूँ मैं कौन है जिसे दूँ प्यार, जो मुझे अच्छा लगा, या मैं उसे अच्छी लगूँ ।। परिचय :- प्रभा लोढ़ा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और पठन में रुचि बचपन से थी। आपने दिल्ली से बी.ए. मुम्बई से जैन फ़िलोसफी की परीक्षा पास की। आप गृहणी की भुमिका निभाते हुए कई संस्थाओं में ...
घड़ियाली आंसू
कविता

घड़ियाली आंसू

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** चारों तरफ मौत कर रहा तांडव, संकट में जिंदगी, संकट में मानव, दिल व्यथित, विलाप कर रहा है, ना जाने किस गलती का पश्चाताप कर रहा है, अपने अपनों से मिल नहीं पा रहे, अपनों का शव घर भी नहीं ला रहे, सारी उन्नति हमें मुंह चिढ़ा रहा है, प्रकृति हमें हमारी हैसियत बता रहा है, कितने हुए तबाह, कितने आंसू बहा रहे, फिर भी कुछ लोग सियासती अहम दिखा रहे, इंसानिय मौन, नैतिकता शरमा रहा है, मौत अपना विभत्स रूप दिखा रहा है, यह सबक कठोर, सीख है बड़ी, हम मौत से लड़ रहे, उन्हें कुर्सी की पड़ी, इंसान अपनी मूर्खतापूर्ण तरक्की की सजा पा रहा है, इन लाशों की ढेर पर कोई घड़ियाली आंसू बहा रहा है परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ह...